रेशमी भाभी का नाम सुनते ही मेरे दिल में एक अजीब सी हलचल मच जाती थी। वो थी ही ऐसी, एकदम माल, 32-28-34 का फिगर, दूध सा गोरा रंग, और वो कातिलाना अदा जो किसी का भी लंड खड़ा कर दे। मैं, अनूप, स्कूल टाइम से ही लड़कियों में पॉपुलर था। कई गर्लफ्रेंड्स थीं, पर मैंने कभी किसी के साथ गलत नहीं किया। लेकिन रेशमी भाभी में कुछ तो बात थी, जो बाकी किसी में नहीं थी। उनकी वो नशीली आँखें, वो मुलायम होंठ, और वो बदन, हाय, बस देखते ही मन डोल जाता था। गाँव में कई भाभियाँ मेरे साथ रात बिताने को तैयार थीं, कुछ की आग मैंने बुझाई भी, पर रेशमी की बात ही अलग थी।
बात कुछ महीने पुरानी है। सुबह-सुबह मैं छत पर कबूतरों को दाना डालने गया। वहाँ मेरी नजर भाभी पर पड़ी। वो कोने में सलवार का नाड़ा खोल रही थीं। फिर झट से नीचे बैठ गईं और पेशाब करने लगीं। मैं छुपकर देखता रहा, दिल धक-धक कर रहा था। उनकी गोरी टाँगें, वो हल्का सा दिखता बदन, मैं तो बस पागल सा हो गया। मैंने जल्दी से दाना डाला और नीचे भाग आया, डर था कहीं वो मुझे देख न लें। ऐसा एक-दो बार और हुआ, पर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकिन मन में कहीं न कहीं एक आग सी सुलग रही थी।
फिर आया होली का दिन। गाँव में रंगों का माहौल, बच्चे-बड़े सब मस्ती में डूबे हुए। मैं भाभी के घर होली खेलने पहुँचा। सबको गुलाल लगाया, बच्चों को रंग डाला, और फिर भाभी को भी हल्का सा गुलाल मल दिया। उनकी मुस्कान देखकर मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। थोड़ी देर बाद भाभी ने एक बाल्टी पानी उठाई और मेरे ऊपर उड़ेल दी। मैं पूरा भीग गया, पर मजा आ रहा था। मैंने भी बदला लेने की ठानी। एक बाल्टी में पक्का रंग मिलाया और भाभी पर डाल दिया। पानी से भीगते ही उनकी कमीज़ उनके बदन से चिपक गई। उनके मोटे-मोटे कूल्हे, वो भारी-भारी चुचियाँ, सब साफ दिख रहा था। मेरा लंड तो पैंट में फुंफकार मारने लगा।
मैंने मौका देखा और भाभी को पकड़ लिया। उनके गीले बदन पर गुलाल मलने लगा। मेरे हाथ उनकी कमीज़ के अंदर चले गए, उनकी नरम-नरम चुचियों पर रंग मलने लगा। मैंने हल्के से उनकी चुचियाँ दबाईं, तो मेरा लंड उनके कूल्हों के बीच चुभने लगा। भाभी की साँसें तेज हो गईं, वो भी मस्ती में डूब रही थीं। अचानक उन्होंने अंजान बनते हुए मेरे लंड को छू लिया, और हल्के से दबा दिया। “उम्म्ह… अहह… हाय…” मैं तो जैसे सातवें आसमान पर था। भाभी ने ये सब ऐसे किया जैसे गलती से हो गया हो। मैंने भी मौके का फायदा उठाया, उन्हें उठाकर कीचड़ की ओर ले गया। धक्कम-धक्की में मेरा हाथ बार-बार उनकी चूत को टच कर रहा था। वो और मस्त हो रही थीं, उनकी आँखों में वो हवस साफ दिख रही थी। मुझे लगा, हाँ, ये ग्रीन सिग्नल है।
उस दिन के बाद मैं कुछ दिन उनके घर नहीं गया। मन में डर था, कहीं कुछ गलत न हो जाए। लेकिन भाभी अब मुझे छेड़ने लगी थीं। हर बार मिलने पर कहतीं, “क्या अनूप, फिर से होली खेलें?” मैं हँसकर टाल देता। एक दिन मजाक में मैंने कह दिया, “तो चलो भाभी, इस बार पिचकारी से खेलते हैं, सफेद रंग लगाकर!” वो मेरी बात सुनकर नशीली नजरों से देखने लगीं और मुस्कुराईं। बस, मेरा तो दिल ही बैठ गया। मैंने उन्हें पकड़ लिया, पर वो बोलीं, “अरे, अभी नहीं, कोई देख लेगा!” मैंने उनसे रात को मिलने की बात की, और वो मान गईं।
एक रात, करीब 11 बजे, भाभी का मिस्ड कॉल आया। मैंने कॉल बैक किया तो उन्होंने बाहर आने को कहा। मैं तुरंत निकल पड़ा। भाभी बाहर इंतजार कर रही थीं, एक पतली सी सलवार-कमीज़ में, जो उनके बदन को और निखार रही थी। वो मुझे सरसों के खेत में ले गईं, जहाँ कुछ सरसों पहले से कटी हुई थी। वहाँ एक दरी बिछी थी, जैसे सब पहले से प्लान था। मैंने और इंतजार नहीं किया। भाभी को पकड़कर पागलों की तरह चूमने लगा। उनके होंठ, उनकी गर्दन, उनके कंधे, हर जगह मेरे होंठ घूम रहे थे। मैंने उनकी कमीज़ के ऊपर से उनकी चुचियों को हल्के से काटा, तो वो “उम्म्ह… अहह…” करके सीत्कार उठीं।
भाभी भी पीछे नहीं थीं। उन्होंने मेरी कैपरी खींचकर उतार दी और बोलीं, “ये टी-शर्ट भी निकाल दे, अनूप!” मैंने फटाफट सारे कपड़े उतार दिए। अब मैं सिर्फ़ अंडरवियर में था, और मेरा लंड तंबू बनाए खड़ा था। मैंने भाभी से कहा, “अब तुम भी सूट निकालो!” वो हँसते हुए बोलीं, “खुद ही निकाल ले, शरमाता क्यों है?” मैंने उनकी कमीज़ गले से पकड़कर खींच दी, वो फट गई। उस आवाज से मेरा जोश और बढ़ गया। मैंने उनकी ब्रा और सलवार भी फाड़ दी। अब भाभी सिर्फ़ पैंटी में थीं। चाँदनी रात में उनका गोरा बदन संगमरमर की तरह चमक रहा था। मैंने उनकी पैंटी भी फाड़ दी, और उनकी चुचियों को मुँह में भर लिया। एक चुची को चूस रहा था, दूसरी को हाथ से मसल रहा था। भाभी की साँसें तेज थीं, वो “हाय… अनूप… और जोर से…” कह रही थीं।
मैं नीचे सरका और उनकी चूत को देखा। वो पूरी गीली थी, जैसे पानी छोड़ रही हो। मैंने अपनी उंगलियाँ उनकी चूत पर फेरी, तो वो और सिहर उठीं। भाभी बोलीं, “अनूप, अब और मत तड़पा… अपना लंड डाल दे… मेरी चूत की आग बुझा दे!” मैंने अपना लंड उनकी चूत पर सेट किया। वो इतनी गीली थी कि लंड आसानी से स्लिप कर रहा था। मैंने एक जोरदार झटका मारा, और मेरा पूरा लंड उनकी चूत में समा गया। भाभी की चीख निकल गई, उनकी आँखों में आँसू आ गए। मैं रुक गया और पूछा, “दर्द हो रहा है, भाभी?” वो हाँफते हुए बोलीं, “दर्द तो हो रहा है, पर तू रुक मत… चोद मुझे… जोर से चोद!”
मैंने धीरे-धीरे चुदाई शुरू की। उनकी चूत इतनी टाइट थी कि हर धक्के में मजा दोगुना हो रहा था। भाभी भी कमर उठा-उठाकर मेरा साथ दे रही थीं। “हाय… अनूप… और गहरा… फाड़ दे मेरी चूत को…” वो बार-बार कह रही थीं। मैंने उनकी एक टाँग उठाई और कंधे पर रख ली, ताकि लंड और गहराई तक जाए। भाभी की सिसकारियाँ पूरे खेत में गूँज रही थीं, “उम्म्ह… अहह… हाय… और तेज…!” मैंने रफ्तार बढ़ा दी। उनकी चुचियाँ हर धक्के के साथ उछल रही थीं, मैंने एक हाथ से उनकी चुची पकड़कर मसली और दूसरा हाथ उनकी गांड पर ले गया। उनकी गांड इतनी मुलायम थी कि मैंने हल्के से थप्पड़ मार दिया। भाभी और जोश में आ गईं, “हाय… मार और… मेरी गांड को लाल कर दे!”
करीब 15 मिनट की चुदाई के बाद भाभी का बदन अकड़ने लगा। वो जोर-जोर से चिल्लाईं, “अनूप… मैं झड़ रही हूँ… हाय…!” उनकी चूत ने इतना पानी छोड़ा कि दरी भी गीली हो गई। मैंने भी रफ्तार और तेज कर दी। मेरा लंड अब उनकी चूत में फुल स्पीड में अंदर-बाहर हो रहा था। भाभी की सिसकारियाँ, उनकी गंदी बातें, और वो माहौल, सब कुछ मुझे पागल कर रहा था। पाँच मिनट बाद मैं भी झड़ने वाला था। मैंने पूछा, “भाभी, कहाँ झड़ूँ?” वो बोलीं, “अंदर ही डाल दे… मेरी चूत को भर दे!” मैंने एक आखिरी जोरदार धक्का मारा और उनकी चूत में ही झड़ गया। हम दोनों हाँफ रहे थे, पसीने से लथपथ। भाभी ने मुझे गले लगाया और मेरे होंठों को चूम लिया।
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मैंने कपड़े पहने और जाने लगा। भाभी अभी भी नंगी थीं, चाँदनी में उनकी गांड और चुचियाँ और भी सेक्सी लग रही थीं। मेरा लंड फिर खड़ा हो गया। मैंने उन्हें फिर पकड़ लिया और बोला, “भाभी, एक राउंड और?” वो हँसते हुए बोलीं, “तू तो पूरा रांडखाना खोल देगा!” मैंने उन्हें घोड़ी बनाया और उनकी गांड को सहलाते हुए फिर से लंड उनकी चूत में डाल दिया। इस बार मैंने और जोर-जोर से धक्के मारे। भाभी चिल्ला रही थीं, “हाय… अनूप… मेरी चूत फट जाएगी… और तेज!” मैंने उनकी गांड पर दो-तीन थप्पड़ मारे, जिससे वो और मचल गईं। करीब 20 मिनट की चुदाई के बाद मैं फिर उनकी चूत में झड़ गया।
सुबह जब भाभी से मिला, वो एकदम फ्रेश और खुश लग रही थीं। उन्होंने मुझे चुपके से थैंक्स कहा और एक नशीली स्माइल दी। उसके बाद जब भी मन करता, मैं भाभी के घर चला जाता। उनकी चूत की आग बुझाना मेरे लिए जैसे रोज का काम हो गया। गाँव में दो और भाभियों को भी मैंने शारीरिक सुख दिया, पर रेशमी भाभी का मजा कुछ और ही था।
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