भैया मुझे कोई अच्छा सा गन्ना दो ना

Khet me bahan ki chudai sex story: मेरा नाम धवल है, दोस्तों, मेरी उम्र इक्कीस साल के आसपास है, लंबाई पांच फुट सात इंच, रंग गोरा और चेहरा इतना हैंडसम कि लड़कियां पीछे मुड़कर देखने लगती हैं। अभी कुछ हफ्ते पहले ही बाहर शहर में नई नौकरी लगी थी, लेकिन मैंने कुछ दिनों की छुट्टी ली और गर्मियों की धूप में घर लौट आया, जहां सब कुछ वही पुराना लग रहा था लेकिन मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। ये पूरी घटना पिछले महीने की है, जब मैंने अपनी छोटी बहन प्रिया की चुदाई खेतों की हरियाली में की और उसके बाद जो कुछ हुआ, वो सब इस कहानी के पन्नों में ही समेटा है, तो चलिए शुरू से बताता हूं। दोस्तों, सबसे पहले आपका परिचय करा दूं अपनी उस बहन से, जिसका नाम प्रिया है, उम्र बीस साल के करीब, फिगर इतना कातिलाना कि 36-28-34 का माप देखकर कोई भी सांस थम जाए, चेहरा फूलों सा नाजुक, लंबे काले बाल जो कमर तक लहराते हैं, और वो शहर में पढ़ाई के लिए रहती है लेकिन कॉलेज की छुट्टियों में घर आती है तो पूरा गांव उसकी खूबसूरती पर फिदा हो जाता है।

प्रिया जब शहर से लौटी तो वो पहले से कहीं ज्यादा समझदार लग रही थी, शायद कॉलेज की आजादी ने उसे खोल दिया हो, छोटे-छोटे टाइट कपड़े पहनती, क्रॉप टॉप और शॉर्ट्स में घूमती, जिससे उसके गोरे मोटे बूब्स और भरी हुई गांड की शेप साफ झलकती, और वो फिगर देखकर तो मेरी तरह किसी का भी लंड खड़ा हो जाए, खासकर जब बाहर नौकरी में महीनों चूत की भूख सहनी पड़ती है, वहां तो अकेले रातें कटती हैं बिना किसी माल के। घर आते ही तो बस प्रिया को देखकर मेरी हालत खराब हो गई, हर वक्त मन में बस यही घूमता रहता कि किसी की भी चूत मिल जाए, चाहे वो प्रिया की ही क्यों न हो, बस चुदाई की आग बुझानी थी, वो भी बिना किसी रोकटोक के। तभी एक दोपहर की बात है, मैं घर के आंगन में बैठा प्रिया के बूब्स को चुपके से निहार रहा था, कैसे वो टॉप के अंदर से उभर आए हैं, निप्पल्स की शेप तक साफ, तभी मां ने आवाज लगाई, “धवल बेटा, जा बाबूजी को खेत पर खाना दे आ, वो इंतजार कर रहे होंगे।” मैंने तुरंत हामी भरी, “हां मां, आप पैक कर दो, मैं अभी निकलता हूं।” तभी प्रिया ने बीच में टोकते हुए कहा, “मां, मैं भी भैया के साथ चलूंगी खेत देखने, कितने दिन हो गए मुझे वहां घूमे हुए।” मां ने मुस्कुराते हुए हामी भर दी, खाना पैक किया और मुझे थमा दिया, हम दोनों बाहर निकल पड़े, हल्की हवा चल रही थी जो प्रिया के बालों को उड़ा रही थी।

मैंने साइकिल उठाई और प्रिया से कहा, “आगे बैठ जा, पीछे असुविधा होगी।” वो हंसते हुए आगे बैठ गई, उसके कूल्हे मेरी जांघों से सटे हुए, हर धक्के पर थोड़ा रगड़ खा रही थी, और हम खेतों की पगडंडी पर चल पड़े, धूप मद्धम थी लेकिन पसीना छूट रहा था। खेत पहुंचकर बाबूजी को खाना दिया, वो खुश हुए और खाने लगे, हम दोनों इधर-उधर टहलने लगे, हरी-भरी फसलें लहरा रही थीं। बाबूजी खाना खत्म कर एक मजदूर को घर बुलाने चले गए, जाते-जाते बोले, “मैं थोड़ी देर में आऊंगा, तुम दोनों घूम लो और घर चले जाना।” फिर क्या था, हम टहलने लगे, वहां गन्ने का खेत था, घने झाड़ियां, मैंने एक मोटा गन्ना तोड़ा और चूसने लगा, रस टपक रहा था मुंह में। तभी प्रिया ने नजदीक आकर कहा, “भैया, मुझे भी गन्ना चाहिए, कुछ मीठा खा लूं।” मैंने हंसकर एक और तोड़ा और उसे थमा दिया, वो मजे से चूसने लगी, होंठों पर रस चिपक गया, देखकर मन में शरारत दौड़ने लगी। कुछ देर बाद प्रिया ने शरमाते हुए कहा, “भैया, मुझे टॉयलेट लग गई है, अब क्या करूं।” मैंने कंधे उचकाते हुए कहा, “यहां तो खुले में ही कर लो, कोई दरवाजा-वगैरह कहां, मैं आगे चला जाता हूं।” कहकर मैं आगे बढ़ गया, लेकिन एक गन्ने के झुंड के पीछे छुप गया, चुपके से देखने लगा, दिल धड़क रहा था।

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प्रिया ने चारों तरफ देखा, फिर अपनी जींस के बटन खोले और नीचे सरका ली, अंदर पिंक कलर की चमकदार पैंटी थी, वो भी उतार फेंकी, और पहली बार मैंने प्रिया की गोरी-चिकनी गांड देखी, गोल-गोल उभरी हुई, बीच में गुलाबी लकीर, देखते ही मेरा लंड जोर से खड़ा हो गया, पैंट में दबाव महसूस हो रहा था। वो सॉरी कर रही थी, लेकिन जब खड़ी हुई तो गांड का वो गुलाबी छेद चमक उठा, इतना साफ और टाइट कि मन में आया दौड़कर चाट लूं, लेकिन रुका रहा, सांसें तेज हो गईं। प्रिया ने जल्दी से जींस पहनी, पैंटी जेब में ठूंस ली और मुझे पुकारा, “भैया, कहां हो तुम?” मैं बाहर निकला, उसके पास पहुंचा, लेकिन मेरी नजरें नीचे थीं, लोअर में टेंट साफ दिख रहा था, प्रिया की नजर पड़ी तो वो मुस्कुराई, शायद समझ गई कि मैं छुपकर देख रहा था। फिर वो शरारत से बोली, “भैया, मुझे कोई अच्छा सा गन्ना तोड़कर दो ना, मोटा और रसीला वाला।” मैं पहले तो हक्का-बक्का हो गया, लेकिन फिर बोला, “रुक, मैं तेरे लिए बेस्ट वाला लाता हूं।” प्रिया ने बेताबी से कहा, “जल्दी करो भैया, मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा।” उसकी बातों में शरारत झलक रही थी, जैसे कोई इशारा हो।

मैं खेत के अंदर चला गया, घने गन्नों के बीच एक साफ जगह मिली, जहां चादर बिछाने लायक फर्स था, और मन में प्रिया की वो गोरी गांड घूम रही थी, आग लगी हुई सी। मैंने अपना आठ इंच का मोटा लंड बाहर निकाला, जो पागलों की तरह खड़ा था, और मुठ मारने लगा, आंखें बंद, कल्पना कर रहा था प्रिया को नंगा करके चोदते हुए। उधर प्रिया इंतजार करते-करते अंदर आ गई, बिना आवाज के, और अचानक मुझे किसी मुलायम हाथ का एहसास हुआ लंड पर, मैंने आंख खोली तो प्रिया घुटनों पर बैठी मेरे लंड को सहला रही थी, उसकी आंखों में चमक, होंठ काटे हुए। मैं हड़बड़ा गया, “प्रिया, ये क्या कर रही है तू?” वो मुस्कुराई और बोली, “भैया, ये तो आपकी ये हालत मेरी वजह से हुई ना, तो मैं ही ठीक कर दूं, फेयर है ना?” मैं चुप रहा, चेहरे पर मुस्कान आ गई, उसने इसे हामी समझा और लंड मुंह में लेकर चूसने लगी, जीभ से सर्कुलर मोशन में घुमा रही, जैसे कोई प्रो हो, कभी सिर चाटती, कभी गेंदें सहलाती, मेरे मुंह से आह्ह्ह… ओओओह्ह… निकलने लगीं, मैं उसके सिर पर हाथ फेर रहा था, बालों को उलझा रहा, वो गन्ने की तरह चूस रही थी, रस निचोड़ रही।

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काफी देर तक वो चूसती रही, मेरी कमर कांप रही थी, फिर मैंने उसे खींचकर खड़ा किया, टी-शर्ट के ऊपर से उसके मोटे बूब्स दबाए, निप्पल्स सख्त हो चुके थे, वो सिसकारी भर रही थी, “उम्म्म… भैया…” मैंने कहा, “रुको, अभी आता हूं।” वो बोली, “कहां जा रहे हो?” मैं भागा और बाबूजी की खाने की चादर उठा लाया, जगह पर बिछा दी, फिर प्रिया की टी-शर्ट ऊपर की, ब्रा खोली, बूब्स बाहर उछल पड़े, पपीते जैसे गोल, फिर जींस-पैंटी उतारी, वो पूरी नंगी हो गई, चूत पर हल्के बाल, गीली चमक रही। मैंने भी कपड़े उतार फेंके, नंगा हो गया, प्रिया को चादर पर लिटाया, बूब्स मुंह में लेकर चूसने लगा, निप्पल्स काटते हुए, जीभ से घुमाते, एक हाथ कमर पर, दूसरा चूत पर सरका दिया, उंगली अंदर-बाहर करने लगा, वो तड़प रही थी, “आह्ह्ह… हां भैया… और…” चूत गीली हो गई, रस टपकने लगा, मैंने दो उंगलियां डालीं, तेजी से हिलाईं, वो कमर उचकाने लगी। फिर वो बोली, “भैया, अब सह ना जाता, डाल दो अंदर।” मैंने लंड पर थूक लगाया, चूत पर सेट किया, जोर का धक्का मारा, आधा लंड सरक गया, वो चीखी, “आआआह्ह्ह… धीरे…” फिर दो-चार धक्के और, पूरा अंदर, टाइट चूत ने जकड़ लिया, मैंने चोदना शुरू किया, मिशनरी में पैर फैलाए, हर थैप-थैप से चूत का रस छलक रहा, उसके बूब्स उछल रहे, मैं बाल खींचते हुए बोला, “तेरी चूत कितनी टाइट है रे, शहर में कौन पेलता है तुझे?” वो हंसकर बोली, “उफ्फ्फ… भैया, पहले तू पेल, फिर बताऊंगी… आह्ह्ह… तेज…” मैंने स्पीड बढ़ाई, घोड़ी बनवाया, पीछे से पकड़कर थोका, गांड पर थप्पड़ मारे, वो चिल्ला रही, “हां… मारो… ओओओह्ह…” मन में ख्याल आया कि ये तो पहले भी चुद चुकी है, लेकिन फर्क न पड़ा, इतनी हॉट माल है कि कोई भी चोदे, मैंने 20 मिनट तक जोर-जोर से पेला, वो बोली, “आह्ह्ह… भैया… झड़ने वाली हूं… छोड़ो मत…” मैंने और तेज धक्के मारे, वो कांपकर झड़ी, रस बहा, मैं भी बाहर निकालने वाला था, थोड़ा और रुका, फिर झड़ गया, गरम वीर्य उसके पेट पर।

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जैसे ही लंड निकाला और हम खड़े हुए, तो सामने बाबूजी खड़े थे, हम दोनों के होश उड़ गए, जुबान लटक गई, क्या बोलें समझ न आया। बाबूजी आगे आए, मुस्कुराते हुए प्रिया की गांड पर हाथ फेरा, बोले, “अरे प्रिया, तू तो शहर जाकर और कड़क माल बन गई है, देखकर मजा आ गया।” हमारी जान में जान आई, डर उड़ गया। प्रिया ने झट से घुटनों पर बैठकर बाबूजी की पैंट खोली, उनका नौ इंच लंबा दो इंच मोटा लंड बाहर आया, काला चमकदार, वो सहलाते हुए बोली, “इतना मोटा ताजा लंड घर में ही है, बाहर के मर्दों से क्या मतलब।” फिर मुंह में लेकर चूसने लगी, गले तक लेती, जीभ घुमाती, बाबूजी आहें भर रहे, “हां बेटी… चूस…” मैं देखता रहा, मेरा लंड फिर खड़ा हो गया, मैं प्रिया के पास खड़ा हो गया, उसने एक हाथ से मेरा लंड पकड़ा, बारी-बारी चूसा, दोनों लंडों को। काफी देर बाद बाबूजी लेट गए, प्रिया उनकी चूत पर सेट होकर बैठ गई, ऊपर-नीचे होने लगी, बाबूजी धक्के मार रहे, “उफ्फ्फ… तेरी चूत ने जकड़ लिया…” प्रिया पहले मेरा लंड चूसी, फिर मैंने खुद मुठ मारी, पीछे की तरफ देखा तो प्रिया की गोरी गांड लहरा रही, मुंह में पानी आ गया। मैंने लंड पर थूक लगाया, गांड के गुलाबी छेद पर सेट किया, प्रिया ने पीछे मुड़कर स्माइल दी, जैसे हामी भरी, फिर मैंने जोरदार धक्का मारा, लंड फिसलता हुआ अंदर चला गया, टाइट गांड ने दर्द दिया लेकिन मजा आया, हम दोनों ने धक्के शुरू किए, बाबूजी नीचे से, मैं ऊपर से, प्रिया चिल्ला रही, “आआआह्ह्ह… बाबूजी तेज… और भैया गांड फाड़ दो… ओओओह्ह… हां…” बाबूजी ने स्पीड बढ़ाई, मैंने गांड में उंगली डाली चूत की मदद के लिए, 30 मिनट तक चला, बारी-बारी झड़े, प्रिया ने दोनों लंड चूसकर साफ किए, रस चाटा। फिर कपड़े पहने, बाहर निकले, घर लौट आए।

उस रात मां सो गई तो हम तीनों छत पर चढ़ गए, फिर चुदाई का दौर चला, प्रिया को बीच में लेकर बारी-बारी पेले, घोड़ी, लपेटकर, पैर उठाकर, हर पोज में, गंदी बातें, “तेरी गांड कितनी रसीली है बेटी,” बाबूजी बोलते, मैं चूत चाटता, वो तड़पती, छुट्टियां खत्म होने तक रोज मजे लिए, चुदाई की होली खेली। फिर प्रिया कॉलेज चली गई, मैं जॉब पर, लेकिन रोज शाम फोन पर बातें, गंदी वाली, और दीवाली की छुट्टियों में फिर घर आऊंगा, प्रिया भी आएगी, तो फिर वही गन्ने के खेत में शुरूआत करेंगे।

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