मेरी विधवा चुत

शादी के बाद के वो पल मेरे लिए सपनों की तरह थे। पहले कुछ महीने तो हर रात जैसे सुहागरात ही होती थी। मेरे पति मुझे प्यार से अपनी बाहों में भरते और घंटों तक मेरी चूत को सहलाते। उनके लंड की गर्माहट मेरे जिस्म में एक अलग ही सिहरन पैदा कर देती थी।

मगर धीरे-धीरे यह सब कम होता गया। पति बिजनेस में इतना व्यस्त हो गए कि रात को थककर सीधे सो जाते। मैं उनकी बाँहों में सिमटी रहती, लेकिन वो मुझे प्यार करने के बजाय टीवी देखने में लगे रहते। कई बार तो मैं खुद उनके ऊपर चढ़कर उन्हें उत्तेजित करने की कोशिश करती, मगर वो बस मुस्कुरा देते और मुझे प्यार से चूमकर सुला देते।

मेरी चूत में हर रात आग लगती, लेकिन बुझाने वाला कोई नहीं था। मैं करवटें बदलती, तकिये को जकड़कर अपनी प्यास बुझाने की नाकाम कोशिश करती।

फिर एक दिन मैंने इंटरनेट पर कुछ कहानियाँ पढ़नी शुरू कीं। वो कहानियाँ मेरे मन में ऐसी आग लगातीं कि मैं खुद को रोक नहीं पाती। बिस्तर पर लेटकर मैं अपनी ही उंगलियों से अपनी चूत को सहलाने लगती। धीरे-धीरे उंगलियाँ अंदर जातीं और मेरे बदन में एक झनझनाहट दौड़ जाती।

मगर उंगलियों से वो मजा नहीं आता जो एक गर्म, मोटे लंड से आता है। मुझे किसी लंड की जरूरत थी, जो मेरी चूत को भर दे और मेरी प्यास बुझा दे।

कुछ महीनों बाद, मेरी सहेली नीता मेरे घर आई। नीता शादीशुदा थी और उसकी शादी को दो साल हो चुके थे। जब भी हम मिलते, नीता हमेशा अपने पति दीप की तारीफ करती। वो बताती कि दीप उसे हर रात अलग-अलग तरीके से चोदता है। उसके लंड की लंबाई और मोटाई के बारे में सुनकर मेरी चूत भी भीग जाती थी।

एक दिन जब हम दोनों बैठकर कॉफी पी रहे थे, नीता ने मुझसे मजाक में कहा –
“अंजू, तेरा पति अब नहीं रहा, लेकिन तू अभी जवान है। तुझे भी किसी मर्द का सहारा चाहिए।”

मैंने हँसते हुए कहा –
“हाँ, लेकिन कोई मर्द खुद आकर मेरी चूत में लंड डाले, ऐसा तो नहीं होगा।”

नीता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया –
“अगर तू चाहे तो दीप को भेज सकती हूँ।”

उसकी बात सुनकर मेरे बदन में अजीब सी सिहरन दौड़ गई। मैंने झूठ मूठ का गुस्सा दिखाते हुए कहा –
“तू पागल है क्या? अपने पति को मुझसे क्यों चुदवाएगी?”

नीता ने ठहाका लगाकर कहा –
“मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है, बस दीप की भी मर्जी होनी चाहिए। वैसे भी दीप ने मुझसे कई बार कहा है कि वो किसी और औरत के साथ चुदाई करना चाहता है।”

उस रात नीता के साथ बैठकर मैंने काफी बातें कीं। धीरे-धीरे मेरी झिझक खत्म होने लगी। मुझे लगा कि शायद दीप मेरी प्यास बुझा सकता है।

अगले हफ्ते नीता और दीप मेरे घर आए। हम तीनों ने डिनर किया और फिर नीता ने धीरे से मेरे कान में फुसफुसाया –
“क्या तू तैयार है?”

मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई थी। मैंने सिर हिलाकर हाँ कहा।

नीता ने दीप को इशारा किया और दीप मेरे पास आकर बैठ गया। उसने मेरे गालों को सहलाया और धीरे-धीरे मुझे किस करने लगा।

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मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और खुद को दीप की बाहों में समर्पित कर दिया।

नीता वहीं बैठी थी और हमें देख रही थी। दीप ने मेरे कुर्ते को ऊपर सरका दिया और मेरी ब्रा खोलकर मेरे मम्मों को बाहर निकाल लिया। उसके हाथ मेरे मम्मों को मसल रहे थे और मेरे मुंह से हल्की-हल्की सिसकारियाँ निकल रही थीं।

नीता ने दीप के कान में कहा –
“जरा आराम से, अंजू को पहली बार किसी गैर मर्द का लंड मिलने वाला है।”

दीप ने मेरी आँखों में देखा और अपनी पैंट खोलकर अपना लंड बाहर निकाल लिया। लंड देख कर मेरी आँखें फटी रह गईं। वो इतना मोटा और लंबा था कि मेरी चूत गीली हो गई।

“तू तो कह रही थी कि दीप का लंड बहुत बड़ा है, लेकिन इतना बड़ा होगा, सोचा नहीं था!” मैंने नीता से कहा।

नीता हँसते हुए बोली –
“अब इसकी पूरी लंबाई का मजा ले।”

दीप ने धीरे-धीरे मेरे पैरों को फैलाया और अपना लंड मेरी चूत के पास रख दिया। फिर एक जोर का धक्का लगाया।

“आह आह… धीरे दीप!” मैंने दर्द से कराहते हुए कहा।

दीप ने मेरी बात सुनी और धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा। मेरी चूत उसके लंड को पूरी तरह अंदर ले रही थी। नीता वहीं बैठी हमें देख रही थी और अपनी उंगलियों से अपनी चूत को सहला रही थी।

थोड़ी देर बाद, नीता भी दीप के पीछे आ गई और उसे पीछे से पकड़ लिया।

“अब तुम दोनों मिलकर मुझे चोदोगे।”

दीप ने मुझे कसकर पकड़ लिया और उसके पीछे नीता भी आकर मेरे ऊपर झुक गई। तीनों के बदन एक-दूसरे से चिपक गए थे। दीप का लंड मेरी चूत में था और नीता मेरे मम्मों को चूस रही थी।

दीप का लंड मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था, और नीता मेरे मम्मों को ऐसे चूस रही थी जैसे बहुत दिनों की भूखी हो। उसका जीभ मेरे निप्पल के चारों ओर घूम रहा था, और दीप का लंड मेरी चूत की दीवारों को रगड़ता हुआ मुझे सिहरन दे रहा था।

नीता की उंगलियाँ मेरी चूत के पास आ गईं और वो दीप के लंड के साथ-साथ मेरी चूत के बाहर के हिस्से को सहलाने लगी। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और खुद को पूरी तरह से इस पल के हवाले कर दिया।

दीप की साँसें तेज हो गईं, और उसने मेरी जाँघों को कसकर पकड़ लिया। मैं उसकी हर धक्के पर कराह रही थी, और नीता मेरी कराहटों का आनंद ले रही थी।

“कितनी प्यासी थी तू, अंजू,” नीता ने फुसफुसाते हुए कहा। “मैंने सही कहा था न, दीप तुझे तृप्त कर देगा।”

मैंने आँखें खोलकर नीता की ओर देखा, जो अब अपने ही लंड की प्यासी हो चुकी थी। उसकी उंगलियाँ खुद की चूत में जा रही थीं, और उसकी साँसें भी तेज हो रही थीं।

दीप ने अचानक अपने लंड को बाहर निकाला और मुझे पलटने को कहा। मैं बिस्तर पर उलटी लेट गई, और उसने मेरे पीछे से मेरी गांड के पास अपने लंड को रख दिया।

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“दीप, पहली बार है,” मैंने धीरे से कहा, लेकिन मेरे स्वर में कोई विरोध नहीं था।

नीता ने मेरी कमर पर हाथ फेरते हुए कहा, “चिंता मत कर, दीप आराम से करेगा।”

दीप ने मेरी गांड के ऊपर अपना लंड रगड़ना शुरू किया, और मैं उसकी गर्माहट महसूस कर रही थी। फिर उसने धीरे-धीरे धक्का दिया। पहली बार उसकी लंड की नोक मेरी गांड में गई, और मैं हल्के से कराह उठी।

“आराम से, दीप,” नीता ने कहा, “धीरे-धीरे अंदर डाल।”

दीप ने मेरी कमर पकड़कर धीरे-धीरे अपने लंड को और अंदर डाला। मेरी गांड में हल्का दर्द था, लेकिन उसके लंड की गर्माहट और नीता की उंगलियों का स्पर्श उस दर्द को सुख में बदल रहा था।

“तू बहुत टाइट है,” दीप ने धीमे स्वर में कहा।

“पहली बार है, दीप,” नीता ने जवाब दिया। “आहिस्ता कर, लेकिन रुकना मत।”

मैंने अपने हाथों से बिस्तर को जोर से पकड़ा और दीप की हर धक्के का आनंद लेने लगी। नीता अब मेरे सामने आ गई और अपने मम्मों को मेरे मुंह के पास ले आई।

“ले, इसे चूस।”

मैंने उसकी मम्मों को पकड़कर अपने मुंह में भर लिया। उसकी निप्पल मेरे होंठों के बीच थी और मैं उसे प्यार से चूस रही थी। दीप ने अब अपनी गति बढ़ा दी थी, और मेरी गांड उसके लंड को पूरा अंदर ले चुकी थी।

नीता मेरे बालों को सहला रही थी और दीप लगातार मुझे चोद रहा था। इस तिहरी अनुभूति ने मुझे चरम सीमा तक पहुँचा दिया। मेरी चूत से पानी निकल रहा था और दीप की हर धक्के के साथ मैं झड़ रही थी।

“आह… दीप… और तेज़,” मैंने कराहते हुए कहा।

दीप ने अपनी गति और तेज़ कर दी, और कुछ ही मिनटों बाद उसने मेरे अंदर झड़ने का एहसास कराया। उसका गर्म वीर्य मेरी गांड के अंदर फैल रहा था और मैं पूरी तरह तृप्त हो चुकी थी।

नीता ने मेरे होंठों को चूमा और कहा, “कभी भी जरूरत हो, मुझे और दीप को बुला लेना। तुझे अकेला महसूस नहीं होने देंगे।”

मैंने मुस्कुराकर उसे देखा और कहा, “तुम दोनों ने आज मेरी जिंदगी में जो कमी थी, उसे भर दिया।”

तीनों ने एक-दूसरे को बाहों में लिया और मैं सोचने लगी कि जिंदगी में कभी-कभी ऐसे लम्हे भी आते हैं जो हमें नए अनुभव और सुख की ओर ले जाते हैं।

उस रात के बाद मेरी जिंदगी में एक नई चमक आ गई थी। दीप और नीता के साथ बिताए गए वो पल मेरी यादों में एक खुशनुमा राज़ की तरह बस गए थे। मैं अकेली थी, मगर अब ऐसा महसूस नहीं होता था।

अगले ही हफ्ते नीता का फोन आया –
“अंजू, घर पर हो?”

“हाँ, क्यों?” मैंने पूछा।

“दीप ऑफिस गया है, और मेरा मन नहीं लग रहा। तुझे मिलकर कुछ बात करनी थी,” नीता ने धीमे स्वर में कहा, जैसे कोई शरारत उसकी आवाज़ में छिपी हो।

“आजा, मैं अकेली ही हूँ,” मैंने उत्सुकता से कहा।

नीता ने दरवाजे पर दस्तक दी, और जब मैंने दरवाजा खोला तो उसकी आँखों में वही पुरानी चमक थी। उसने अंदर आते ही मुझे गले से लगा लिया।

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“क्या हुआ?” मैंने पूछा।

“कुछ नहीं… बस वो रात बहुत याद आ रही है।”

हम दोनों हँस पड़े, लेकिन नीता के हाथ धीरे-धीरे मेरी पीठ पर फिसलने लगे थे। मैंने उसकी आँखों में देखा, और उसने मेरे होंठों पर हल्की सी किस कर दी।

“दीप को बिना बताए?” मैंने फुसफुसाया।

“कभी-कभी हमें भी अपनी प्यास बुझाने का हक है,” नीता ने कहा और मेरी कमर पकड़कर बिस्तर की ओर ले गई।

हम दोनों बिस्तर पर बैठ गए, और उसने मेरी साड़ी के पल्लू को नीचे सरकाया। उसकी उंगलियाँ मेरी चूत तक पहुँच गईं और धीरे-धीरे सहलाने लगीं। मेरी आँखें बंद हो गईं और मैं खुद को उसके हवाले कर चुकी थी।

उसने मेरी चूत के ऊपर झुककर अपनी जीभ फेरनी शुरू की। मैं सिसकारी भरती रही, और मेरी उँगलियाँ उसके बालों को सहलाने लगीं। उसकी जीभ मेरी चूत के अंदर तक जा रही थी, और मैं धीरे-धीरे झड़ने के करीब पहुँच रही थी।

“तू बहुत गर्म है, अंजू,” नीता ने कहा और अपने कपड़े उतारने लगी। उसकी गोरी मखमली देह देखकर मेरी चूत और भीग गई थी।

हम दोनों एक-दूसरे के ऊपर लेट गईं और एक-दूसरे की चूत को सहलाने लगीं। नीता की उंगलियाँ मेरे अंदर जा रही थीं और मेरी उंगलियाँ उसकी चूत के अंदर।

हम दोनों का बदन पसीने से भीग चुका था, और इस बीच हम दोनों ने एक-दूसरे के मम्मे चूसने शुरू कर दिए। उसकी निप्पल मेरे होंठों के बीच थी, और मैं उसे प्यार से चूस रही थी।

थोड़ी देर बाद, नीता ने मेरे दोनों पैरों को फैलाकर अपनी चूत को मेरी चूत के साथ रगड़ना शुरू कर दिया। हम दोनों की चूतें आपस में रगड़ती रहीं और हमारी सिसकारियाँ कमरे में गूँजने लगीं।

“अंजू, तू बहुत तेज है,” नीता ने कहा और हमारी रगड़ तेजी से बढ़ने लगी।

कुछ ही मिनटों में हम दोनों ने एक साथ झड़ने का एहसास किया। हम दोनों बिस्तर पर एक-दूसरे को बाहों में लिए लेटी रहीं, हमारी सांसें धीरे-धीरे सामान्य हो रही थीं।

“दीप को बताना है या नहीं?” मैंने पूछा।

“शायद नहीं… ये बस हमारा एक सीक्रेट रहेगा,” नीता ने मुस्कुराते हुए कहा।

उस दिन के बाद, मेरी और नीता की दोस्ती और भी गहरी हो गई। अब जब भी दीप व्यस्त होता, नीता मेरे पास आ जाती, और हम दोनों एक-दूसरे की प्यास बुझाने लगते।

हम दोनों जानते थे कि यह रिश्ता सिर्फ जरूरत का था, मगर इससे हमें खुशी और संतोष मिलता था।

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