गाँव की गोरी और डॉक्टर-2

कहानी का पिछला भाग: गाँव की गोरी और डॉक्टर-1

गोरी की नशीली नज़रें मेरे दिल में आग लगा रही थीं। उसका गोरा बदन, तनी हुई चूचियाँ, और गीली चूत मेरे मूसल को बेकाबू कर रहे थे। वह डरते हुए बोली, “डॉक्टर साहब, मुझे बहुत डर लग रहा है। मेरी इज़्ज़त से मत खेलिए! जाने दीजिए, मेरा बदन… उई माँ!” मैंने उसका चेहरा थामकर कहा, “गोरी, मुझ पर भरोसा रख। यह एक मर्द का वादा है। तेरी चूत का बहता रस, तेरी कसी चूचियाँ चीख-चीखकर बता रही हैं कि तुझे अब मर्द की ज़रूरत है।” वह बोली, “साहब, मैं माँ बनूँगी ना? राजन मुझे मारेगा नहीं?” मैंने उसकी आँखों में देखकर कहा, “हाँ, गोरी। तू बिल्कुल चिंता मत कर।”

उसने मादक अंदाज़ में कहा, “तो अपनी फीस ले लो, साहब। मेरी जवानी आपकी है।” मैंने उसे बाँहों में खींचकर कहा, “आ जा, मेरी रानी!” हम एक-दूसरे से लिपट गए। मेरा मूसल तनकर 8 इंच का हो गया, उसका लाल सुपारा टमाटर-सा चमक रहा था। उसकी साँसें गर्म थीं, और उसका बदन मेरे सीने से चिपककर पिघल रहा था। वह सिसकी, “साहब, मैं सालों से प्यासी हूँ। किसी मर्द ने मेरी आग नहीं बुझाई। मेरी चूत की तड़प मिटा दो!” मैंने कहा, “तो अपनी मखमली गुफा मेरे मूसल पर रख, और मेरे बदन से लिपट जा!”

मैंने अपनी कमीज़ के बटन खोले। कमीज़ उतरी, और मेरे चौड़े सीने पर गर्मी की पसीने की बूँदें चमकने लगीं। गोरी की नज़रें मेरे मज़बूत बाजुओं और सपाट पेट पर टिकी थीं। मैंने पैंट उतारी, और मेरा अंडरवियर फटने को था। मैंने उसे खींचकर फेंक दिया। मेरा लौड़ा पूरी शान से तन गया, जैसे किसी योद्धा का हथियार। गोरी ने देखा और चीख पड़ी। वह नंगी ही बिस्तर से कूदकर दरवाज़े की ओर भागी। मैंने घबराकर पूछा, “क्या हुआ, गोरी?” वह चिल्लाई, “नहीं, साहब! आपका लौड़ा… बाप रे! ये तो गधे जैसा मोटा है! ये मेरी चूत चीर देगा!”

मैंने उसे दरवाज़े पर पकड़ा और शांत किया, “आ, गोरी। डर मत। असली मर्द का मूसल ही कुँवारी चूत को फाड़ सकता है। इसे छू, प्यार कर। फिर देख, ये तुझे कितना मज़ा देगा।” वह रुकी और मेरे मूसल को देखने लगी। उसने धीरे से कहा, “साहब, ये तो बड़ा मस्त है। उफ़! कितना मज़बूत! पर ये मेरी चूत में कैसे घुसेगा? राजन का लंड तो इसके सामने बच्चा है।” मैंने हँसकर कहा, “यही मर्द की कला है, रानी। कुँवारी चूत को चोदना हर किसी के बस की बात नहीं। शुरू में थोड़ा दर्द सहेगी, फिर तू चुदाई का मज़ा भूल नहीं पाएगी।”

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मैंने उसे बाँहों में उठाकर बिस्तर पर लिटाया। उसकी चूत इतनी गीली थी कि रस उसकी जाँघों से होते हुए घुटनों तक बह रहा था। उसकी चूचियाँ सख्त और भारी हो गई थीं, जो साँसों के साथ ऊपर-नीचे हो रही थीं। उसकी साँसें तेज़ थीं, मानो वह किसी तूफ़ान के लिए तैयार हो। मैं उसके सीने पर बैठ गया और अपने मूसल को उसकी चूचियों के बीच रखा। मैंने उसकी चूचियों को दोनों हाथों से मसला, और मेरा लौड़ा उनके बीच फिसलने लगा। सुपारा कभी उसके होंठों को छूता, कभी उसकी गहरी नाभि को। वह चिल्लाने को हुई, और मेरा सुपारा उसके मुँह में घुस गया। वह “गों… गू…” की आवाज़ करने लगी।

मैंने ज़ोर लगाया, और 3 इंच लौड़ा उसके मुँह में समा गया। गोरी का मुँह मेरे सुपारे को चूस रहा था, जैसे कोई भूखी शेरनी शिकार पर टूट पड़ी हो। मैं स्वर्ग में था। उसकी चूचियाँ और सख्त हो गई थीं। मैं आगे सरका, उसकी चूचियों पर बैठा, और जितना हो सका, लौड़ा उसके मुँह में ठूँसा। उसका बदन मेरी जाँघों के बीच मछली-सा तड़प रहा था। वह मेरे मूसल को चूस रही थी, और उसकी जीभ मेरे सुपारे पर नाच रही थी। थोड़ी देर बाद मैंने लौड़ा निकाला। गोरी ने मेरे टट्टों को चाटना शुरू किया, फिर मेरे मूसल पर जीभ फेरी। वह सुपारे को चूस रही थी, मानो उसका रस पी जाना चाहती हो।

मैंने 69 की पोज़ीशन ली। गोरी मेरे चूतड़ों को चाटने लगी, और उसकी उंगलियाँ मेरे टट्टों से खेल रही थीं। मैंने उसकी चूत को जीभ से चोदा। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरी जीभ मुश्किल से घुसी। मैंने उसके गोल नितंबों को चूसा, और उसकी गाँड के छेद पर जीभ फेरी। गोरी सिसकारियाँ भर रही थी, “साहब, मेरी चूत की आग बुझा दो!” वह चिल्लाई, “अपना लोहे का डंडा मेरी चूत में डाल दो! फाड़ दो मुझे!” वह मेरे मूसल को दोनों हाथों से पकड़कर चूस रही थी, और उसकी चीखें कमरे में गूँज रही थीं, “चोद दो मुझे, साहब! मेरी चूत को अपने लौड़े से चीर दो! नहीं तो मैं मर जाऊँगी!”

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मेरा लौड़ा कामवासना की चरम सीमा पर था। मैं उसकी टाँगों के बीच बैठा, उसकी टाँगें हवा में V-शेप में उठाईं, और उसकी पतली कमर पकड़कर अपने मूसल को उसकी चूत पर रखा। मैंने धीरे से दबाया। उसकी चिकनी, गीली चूत ने सुपारे को निगल लिया। गोरी चीखी, “आह! मर गई, साहब!” मैंने कहा, “डर मत, रानी।” मैंने लौड़ा और घुसाया। वह धक्का देने लगी, दर्द से चिल्ला रही थी। मैंने उसे नीचे पटका और उस पर लेट गया। उसकी चूचियाँ मेरे सीने से कुचल रही थीं। मैंने आधा घुसा लौड़ा बाहर खींचा और एक ज़बरदस्त धक्का मारा।

गोरी की चीख ने बंगले की दीवारें हिला दीं। उसका कौमार्य फट गया। उसकी चूत से रस की धार बही, और वह हाँफने लगी। मैंने धक्के जारी रखे। उसकी टाइट चूत की दीवारें मेरे मूसल से रगड़ खा रही थीं। मैंने लौड़ा बाहर खींचा, और एक “पॉप” की आवाज़ के साथ वह आज़ाद हुआ। मैंने उसे डॉगी स्टाइल में किया और पीछे से लौड़ा उसकी चूत में ठूँसा। गोरी मस्ती में आ गई, “चोदो मुझे, साहब! मेरी चूत फाड़ दो! और ज़ोर से!” वह चिल्लाई, “मैं तुम्हारी दासी हूँ! रोज़ नंगी होकर तुम्हारे बिस्तर पर लेटूँगी! बस मेरी चूत को चोदते रहो!” उस रात मैंने गोरी को दो बार चोदा, हर बार उसकी चूत को भोसड़ा बनाकर।

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दूसरे दिन दोपहर में ठकुराइन क्लिनिक आई। मैंने कहा, “चेकअप हो गया। शाम तक ऑपरेशन पूरा हो जाएगा, और कल गोरी घर जा सकती है।” ठकुराइन संतुष्ट होकर हवेली लौट गई। उस रात गोरी उतावली थी। उसे पता था कि यह आखिरी रात है मेरे साथ। वह कामवासना में डूबी थी। मैंने उसे हर तरह से चोदा—मिशनरी, काउगर्ल, और साइड-बाय-साइड। हमने एक-दूसरे के अंगों को चूसा, सहलाया, और जी भरकर प्यार किया। मैंने उसे समझाया कि ससुराल में राजन के साथ कैसे रहना है, और मेरे पास चेकअप के बहाने आती रहना है।

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अगले दिन राजन शहर से लौटा। मैंने उसे समझाया, “गोरी का ऑपरेशन हो गया। अब वह माँ बन सकती है। पर एक महीने तक उससे दूर रहना, और बीच-बीच में चेकअप के लिए भेजते रहना।” राजन ने असमंजस में हाँ भरी और गोरी को ले गया। गोरी मेरे प्लान के मुताबिक शाम को क्लिनिक आने लगी, जब मरीज़ नहीं होते थे। रात 8-9 बजे तक मैं उसकी चूत को चोदता, और वह मस्ती में मेरे मूसल का मज़ा लेती।

दो महीने बाद गोरी का गर्भ ठहर गया। मैंने उसे समझाया कि अब राजन से चुदवाए। मेरे मूसल ने उसकी चूत को पहले ही भोसड़ा बना दिया था, जहाँ राजन का लंड आसानी से घुस जाता था। राजन खुश था कि मेरे इलाज से वह गोरी को चोद पा रहा है। गोरी मेरी दीवानी थी, और मेरे बिस्तर पर उसकी सिसकारियाँ गूँजती थीं।

जब ठकुराइन को पता चला कि गोरी के पाँव भारी हैं, वह क्लिनिक आई और मेरा शुक्रिया अदा किया। मैं खुश था, और अब किसी नई गोरी की तलाश में अपना क्लिनिक चला रहा हूँ।

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