गर्ल्स हॉस्टल में लेस्बियन रैगिंग

Lesbian ragging sex story – Girls hostel sex story – Senior junior lesbian sex story: मैं जब गर्ल्स हॉस्टल में पहली बार आई तो कमरे देखकर बहुत खुश हुई। एमए की पढ़ाई करने वालों को सिंगल रूम मिलते थे, कमरा बड़ा, साफ-सुथरा और सभी सामान से भरा हुआ। हॉस्टल में आते ही जो अनुभव मुझे मिला, वो आज तक याद है।

शाम को सभी नए-पुराने स्टूडेंट डिनर के लिए मेस की तरफ जा रहे थे। रूम के बाहर ही तीन सीनियर लड़कियां मुझसे टकरा गईं। मैंने झट से गुड इवेनिंग कहा। वो आगे निकल गईं, लेकिन उनमें से एक मुड़कर वापस आई और बोली, “क्या नाम है तेरा?”

“दिव्या सक्सेना…” मैंने धीरे से कहा।

“डिनर के बाद ठीक दस बजे रूम नंबर 20 में आना।”

“कोई काम है दीदी?”

“नई आई है ना… सबको तेरा स्वागत करना है।”

“जी… ठीक है…”

वो मेस में चली गई। मेरे हाथ-पैर ठंडे पड़ गए, पसीना छूटने लगा। मैं समझ गई थी कि अब रैगिंग होने वाली है।

मेस में खाना मुंह में रखते ही गले से नीचे नहीं उतर रहा था। जैसे-तैसे खाना निपटाया और अपने रूम में आ गई। घबराहट इतनी थी कि कुछ सूझ ही नहीं रहा था। घड़ी देखी तो दस बजने वाले थे। मन को मजबूत किया और ठीक दस बजे रूम नंबर 20 के सामने खड़ी हो गई।

दरवाजा खटखटाने ही वाली थी कि वही सीनियर लड़की आती दिखी। मुझे देखते ही मुस्कुराई, “आ गई दिव्या?”

“जी हाँ…” मैंने सिर झुकाकर कहा।

“मेरा नाम मंजू है, लेकिन तुम मुझे दीदी कहोगी,” उसने दरवाजा खोलते हुए कहा, “अंदर आ जाओ।”

कमरे में आते ही उसने मुझे सोफे पर बैठने को कहा। फिर धीरे-धीरे नियम समझाने लगी, “पहली बात, जब भी कोई सीनियर नजर आए तो विश करना, समझी?”

मैं चुपचाप सिर हिलाती रही।

फिर वो मुस्कुराई, “अच्छा, अब स्वागत के लिए तैयार हो ना?”

मेरा गला सूख गया, पसीना फिर छूटने लगा।

“घबराओ मत यार, सिर्फ स्वागत है…” उसने मेरी आँखों में देखते हुए कहा।

“जी…”

“खड़ी हो जाओ और सीना आगे को उभारो।”

मैंने हाथ पीछे करके सीना आगे कर दिया। मंजू दीदी की नजरें मेरे सीने पर टिक गईं।

“शाबाश, बहुत अच्छे हैं तेरे बूब्स,” उसने हल्के से हंसते हुए कहा, “अब अपना टॉप उतारो।”

“नहीं दीदी… शर्म आती है…”

“वो ही तो दूर करनी है,” उसकी आवाज में हल्की सख्ती आई।

“कोई देख लेगा दीदी… और बाकी सीनियर्स भी तो आने वाले हैं…”

“अब उतारती है या मैं उतारूं?”

मैंने काँपते हाथों से टॉप उतार दिया। फिर उसने ब्रा भी उतारने को कहा। झिझकते हुए मैंने ब्रा भी निकाल दी। मेरे बूब्स हवा में उछलकर बाहर आ गए।

इसे भी पढ़ें  Naukrani ki chudaai ki kahani, बंगाली नौकरानी को बिस्तर पर चोदा भाग -1

“इधर आ,” उसने बुलाया।

मैं उसके पास गई। मंजू दीदी खड़ी हुईं और पास से मुझे निहारने लगीं। उनकी गर्म साँसें मेरी गर्दन पर लग रही थीं। फिर धीरे से हाथ बढ़ाकर मेरे बूब्स पर रखा, “कितने सुंदर और मुलायम हैं रे…”

उँगलियाँ मेरी चूचियों पर फिसलने लगीं, हल्के-हल्के सहलाने लगीं। मेरे बदन में सिरहन दौड़ गई। उसने चूचियों को हौले से दबाया, घुमाया, मेरे मुंह से अनायास सिसकारी निकल गई, “आह्ह…”

मंजू दीदी मुस्कुराईं और पीछे घूमकर मेरे चूतड़ों को देखने लगीं। दोनों हाथों से सहलाया, फिर हल्का सा थप्पड़ मारा, “कितने गोल-मटोल हैं तेरे चूतड़।”

“किस करना आता है?” उसने अचानक पूछा।

“जी हाँ… आता है।”

“तो मेरे होंठों पर किस कर।”

मैंने झुककर हल्के से होंठों पर छू दिया।

“अरे ऐसे थोड़े करते हैं,” उसने मेरे बाल पकड़े और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। गहरा, गीला किस शुरू हो गया। उसकी जीभ मेरे मुंह में घुस आई, मेरे होंठ चूसने लगी। मेरे बदन में आग सी लग गई।

“समझी? अब अपनी स्लैक्स उतारो।”

“दीदी… ऐसे तो मैं पूरी नंगी हो जाऊँगी…”

“स्वागत में सबको नंगी होना पड़ता है, रंडी।”

मैंने स्लैक्स उतार दी और सीधी खड़ी हो गई।

मंजू दीदी पास आईं, उनका हाथ मेरे बदन पर फिरने लगा। धीरे-धीरे नीचे सरका और मेरी चूत पर पहुँचा। उँगलियाँ हल्के से चूत के ऊपर फेरने लगीं, मेरी चूत पहले से ही गीली हो चुकी थी। बीच-बीच में वो मेरे चूतड़ दबातीं, सहलातीं।

“दीदी… अब कपड़े पहन लूँ? बाकी सीनियर्स आ जाएँगे…”

“वो देर से आएँगे,” उसने हँसते हुए कहा, “अब तू मेरे कपड़े उतार।”

मैंने उनका कुरता उतारा। ब्रा नहीं पहनी थी, उनके बड़े-बड़े बूब्स उछलकर बाहर आ गए। फिर पजामा उतारा, पैंटी भी। मंजू दीदी पूरी नंगी हो गईं।

“अब खुश ना? शर्म नहीं आ रही अब?”

मैंने सिर झुकाकर मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं दीदी… अब आप भी…”

“अच्छा, बताओ इसे क्या कहते हैं?”

“स्तन… या बूब्स…”

“देसी में बोल ना।”

“चूचियां…” मैं शरमाकर बोली।

“और नीचे?”

“चूत…”

“वाह, तू तो सब जानती है,” उसने मुझे जोर से गले लगा लिया। उसका हाथ मेरे चूतड़ों पर पहुँच गया और जोर-जोर से मसलने लगा। मुझे लगा रैगिंग तो बहाना है, दीदी मुझे चोदना चाहती हैं।

मंजू दीदी गरम हो चुकी थीं, उनकी साँसें तेज चल रही थीं। “दिव्या… तू भी कुछ कर ना…”

मैंने उनके बूब्स सहलाने शुरू कर दिए। उनके मुंह से सिसकारियाँ निकलने लगीं, “हाँ… जोर से मसल… चूचियों को खींच…”

इसे भी पढ़ें  एक दुसरे की बहनों की अदल बदल कर चुदाई

मैंने जोर से खींचा, मसला। अचानक महसूस हुआ कि उनकी एक उंगली मेरी चूत में घुस गई है। मैं चिहुक उठी, “हाय दीदी… आह्ह्ह…”

“मजा आ रहा है ना?”

“हाँ दीदी… बहुत…”

मैंने भी उनकी चूत में उंगली डाली और अंदर घुमाने लगी। उनकी चूत पूरी गीली थी, चिपचिपा रस मेरी उँगलियों पर लग रहा था।

“बस…” अचानक मंजू दीदी दूर हटीं, “कपड़े पहन लो।”

हम दोनों ने कपड़े पहन लिए। उन्होंने अलमारी से मिठाई निकाली और मेरे मुंह में डालते हुए बोलीं, “मुंह मीठा कर… स्वागत पूरा हो गया। डर तो नहीं लगा?”

“नहीं दीदी… मुझे तो बहुत मजा आया…”

मैं अचानक उनसे लिपट गई, “दीदी… आज रात आपके साथ रह जाऊँ?”

उन्होंने प्यार से मेरी पीठ सहलाई, “क्यों… क्या इरादा है?”

“दीदी… अब मैं रात भर सो नहीं पाऊँगी… मुझे शांत कर दो ना…”

“तुझे कौन जाने देगा… मुझे भी तो पानी निकालना है।”

हम दोनों फिर कपड़े उतारकर बिस्तर पर आ गए।

लेटे-लेटे मैंने पूछा, “वो बाकी सीनियर लड़कियाँ कब आएँगी?”

“कोई नहीं आएगा,” उसने मेरे होंठ पर उंगली रख दी।

“पर आप तो कह रही थीं…”

“मैंने तुझे देखा था तो लगा कि तू पट जाएगी। इसलिए अकेले बुलाया। उनको कुछ पता नहीं।”

कहते हुए उन्होंने अपनी नंगी जाँघ मेरी कमर पर रख दी और होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। धीरे से मेरे एक बूब को सहलाने लगीं। मैंने उन्हें अपने ऊपर खींच लिया। हमारा किस गहरा होता गया, जीभें एक-दूसरे में उलझी हुई थीं।

मंजू दीदी मेरे ऊपर चढ़ गईं, जोर से लिपट गईं और होंठ चूसने लगीं। मैं उनके बूब्स मसल रही थी, उनकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “आह्ह… ह्ह्ह… दिव्या…”

फिर उन्होंने अपनी चूत मेरी चूत से मिला दी और लड़कों की तरह पटकना शुरू कर दिया। चूत पर चूत रगड़ खा रही थी, गीले रस की चिपचिपी आवाज आ रही थी।

“हाय रे… कितना मजा आ रहा है,” मंजू दीदी सिसककर बोलीं।

“हाँ दीदी… मेरी चूत तो पूरी गीली हो गई है… आह्ह्ह…”

“मेरे चूतड़ पकड़कर दबा… हाय…”

मैंने दोनों हाथों से उनके गोल चूतड़ दबाए। उनका एक हाथ मेरी चूत पर पहुँचा और दो उँगलियाँ अंदर घुसा दीं। मैं तड़प उठी, “आह्ह… दीदी… जोर से… ऊईईई…”

“दीदी… लंड होता तो कितना मजा आता…” मैंने कराहते हुए कहा।

“हाँ… लंड तो लंड होता है,” वो हाँफते हुए बोलीं, “सुन… मेरे पास है… तुझे उससे चोदूं?”

मैं उनसे लिपट गई, “हाँ दीदी… जल्दी लाओ…”

मंजू दीदी ने तकिए के नीचे से चुपके से मोटा डिल्डो निकाला। बोलीं, “टाँगें ऊपर कर।”

इसे भी पढ़ें  मेरी सुहागरात

“पहले डिल्डो तो दिखाओ…”

“नहीं… पहले टाँगें ऊपर… तेरी चूत देखूँ।”

मैंने दोनों टाँगें ऊपर उठा दीं। दीदी ने प्यार से चूत सहलाई, फिर डिल्डो चूत पर रखा और धीरे से अंदर घुसाने लगीं।

“हाय दीदी… मोटा लंड अंदर जा रहा है… आह्ह्ह्ह… ऊओह्ह…”

मंजू दीदी ने स्पीड बढ़ा दी, लंड अंदर-बाहर होने लगा। मैं आनंद में करवटें बदलने लगी, लेकिन दीदी ने लंड नहीं निकलने दिया। मैं घोड़ी बन गई, चूतड़ ऊपर उठाकर दीदी के सामने कर दिए। दीदी पीछे से जोर-जोर से ठोकने लगीं।

“हाय दीदी… मेरा निकलने वाला है… आह्ह्ह… ऊईईई… अब नहीं रुकता…”

“झड़ जा… अपना रस छोड़ दे…”

“दीदी… अभी तो गांड भी मारनी है ना… फिर मजा नहीं आएगा…”

दीदी ने चूत से लंड निकाला और मेरे चूतड़ फैलाए। गांड के छेद पर थूक लगाया और डिल्डो रख दिया।

“अब डालूँ?”

“हाँ दीदी… घुसाओ… पूरी तरह…”

धीरे-धीरे लंड गांड में घुसता गया। फिर स्पीड बढ़ी, एक हाथ से चूत में उँगलियाँ घुमा रही थीं। दोनों तरफ से हमला हो रहा था। मेरे बदन में बिजली सी दौड़ गई।

“दीदी… क्या कर रही हो… आह्ह्ह ह्ह्ह्ह… मैं मर रही हूँ… ऊओह्ह्ह… हाय रे… गयी… गयी मैं… आआआईईईई…”

मेरा रस जोर से छूटा, थोड़ा सा स्क्वर्ट भी हुआ। मैं हाँफते हुए एक तरफ लुढ़क गई।

मंजू दीदी बोलीं, “कैसा लगा?”

मैंने आँखें बंद करके सिर हिलाया।

फिर मैं उठी और बोली, “अब मेरी बारी… तुम चाहे कितनी करवटें बदलो, लंड बाहर नहीं निकलेगा।”

मैंने भी उन्हें डिल्डो से चोदा। वो तरह-तरह से चुदवाती रहीं, चीखती रहीं, “आह्ह… दिव्या… जोर से… ह्ह्ह्ह… मेरी चूत फट जाएगी…”

आखिर में उनका भी रस छूट गया।

हम दोनों टाँगें फैलाकर नंगी लेट गईं। कब नींद आ गई, पता नहीं चला।

सुबह उठी तो दीदी ने मुझे चादर ओढ़ाई हुई थी। मुस्कुराकर झुककर किस किया और बोलीं, “दिव्या… थैंक यू…”

ये मेरा हॉस्टल का पहला अनुभव था, जो मैं आपसे साझा कर रही हूँ।

Related Posts

Leave a Comment