संस्कारी बहु अपने ससुर की रंडी बन गई 1

वक़्त भी क्या क्या खेल दिखता है, अभी दो साल पहले की ही बात है जब मेरी माँ का देहांत हो गया था, लगा की जैसे दुनिया ही लूट गई, मेरी मा ही थी जिनसे मेरे दिल का रिश्ता था, वो मेरे और पिता जी के बीच संवाद का माध्यम थी, मेरे पिता जी फौज में थे बहुत ही अनुशासित जीवन का पालन करने वाले और बहुत ही कड़क उनसे मेरे कभी नही बनी.

मैं उनसे इतना डरता था की उनके सामने होने से हकलाने लगता था वो भी मुझे बिल्कुल भी पसन्द नही करते थे, मैं उनके जैसा नही था उन्हें एक कड़क मर्द चाहिए था और मैं एक सामान्य सा लड़का था जो जोर से चिल्लाने से ही डर जाया करता था.

मैं अपनी मा पर गया था, उनकी कोमलता शायद औरत होने के कारण सबको बहुत पसंद आती थी लेकिन मेरी कोमलता मेरे पिता को बिल्कुल भी पसन्द नही थी, मैं हमेशा ही अपनी मा के पल्लू में छिपकर रहा करता था, कुछ चाहिए तो अपनी मा से मांगता वो मेरे पिता से कहती थी.

“उसे मेरे सामने आने से इतना डर क्यो लगता है, अब वो बड़ा हो गया है जो कहना है मेरे सामने आ कर कहे” ये आवाज अक्सर मेरे कानो में पड़ा करती थी, पिता जी लंबे चौड़े और भारी भरकम शरीर के मालिक थे और साथ ही उनका व्यक्तित्व बहुत ही जानदार था, अक्सर लडकिया उनपर मर जाया करती थी.

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वो मेरे लिए कितने भी सख्त क्यो ना रहे पर माँ की हर बात वो मान ही लिया करते थे, वो माँ से बहुत प्यार करते थे और कभी उनपर रौब झड़ते हुए मैंने उन्हें नही देखा वो आखरी समय में भी उनका बहुत ख्याल रखते थे, यही वजह थी की जब माँ ने अपनी आखरी इच्छा रखी तो वो ना नही कर पाए…

“मेरे जाने के बाद अमित की शादी कर देना, ये तो तुमसे नही कह पायेगा लेकिन मेरे जाने के बाद वो बेसहारा ना हो जाय, और इस घर में एक लड़की का होना जरूरी है” माँ ने जब ये बात कही थी तो मेरे और पिता जी के आँखों में आंसू आ गए, माँ के जाने के कुछ ही महीनों के बाद मेरी शादी कर दी गई.

मैं शहर में एक साफ्टवेयर इंजीनियर था और शहर में ही रहता था, पिता जी गांव में रहकर गांव की खेती देखते थे, ना मेरी कभी इतनी हिम्मत हुई की मैं उन्हें अपने साथ शहर आने का निमंत्रण दु ना ही वो खुद से कभी शहर आये, लेकिन सब कुछ बदलने वाला था, ये बदलाव आया मेरी पत्नी की वजह से खुशबू…

रूप की रानी और मासूमियत की देवी खुशबू, गांव की लड़की थी, बेहद ही सुंदर, मेरी अच्छी नॉकरी और मेरे परिवार की इज्जत का परिणाम थी खुशबू, एक बड़े किसान परिवार से आयी थी और संस्कारो से भरी हुई थी, घर आने के कुछ ही दिनों में उसने ना जाने क्या जादू चला दिया.

वो मेरे और पिता जी के दिलो में राज करने लगी, मैं तो उसकी सुंदरता पर मोहित था ही, पिता जी भी उसे बेहद प्यार किया करते थे, उसने कुछ ही दिनों में मेरी मा की जगह ले ली, लेकिन अब मुझे गांव से शहर जाना था…

“पिता जी आप भी चलिए ना हमारे साथ” खुशबू सर में घूंघट डाले पिता जी के सामने खड़ी थी जो अभी एक आराम कुर्सी में बैठे थे, खुशबू का चहरा साफ दिख रहा था वो नई दुल्हन के लिबास में ही रहना पसंद करती थी, हाथो में भरी चूड़ियां और मांग में भरा हुआ सिंदूर. हाथो में एक ट्रे था जिसमे पानी का एक ग्लास और चाय का कप था, पिता जी ने पहले पानी पी फिर चाय का कप पकड़ते हुए कुर्सी में पसर गए.

“नही बहु यहां बहुत काम है, और इस गांव में ही तो मेरा सबकुछ है इसे छोड़कर कैसे जा सकता हु, यहां बसी यादे….” बस वो इतना ही बोल पाए.

“तो क्या हम आपके अपने नही है.”

पिता जी के होठो पर मुसकान आ गई” बेटा ये तुमसे किसने कह दिया की तुम मेरे अपने नही हो, लेकिन अभी अभी तो तुम दोनो ही शादी हुई है, थोड़ा प्रिवेसी भी तो चाहिए तुम दोनो को, और यहां मेरी सेवा करने के लिए नौकर भी तो है.”

खुशबू के आंखों में आंसू आ गए थे.

“क्या मेरे होते हुए आपकी सेवा नौकर किया करेंगे,” वो सुबकते हुए बोली, पिता जी खड़े हो गए और उसके सर पर अपना हाथ फेरने लगे, खुशबू पिता जी के छातियों तक ही आ रही थी.

“अरे बेटा उदास क्यो हो रही हो, मैं आऊंगा ना तुमसे मिलने के लिए, लेकिन अभी नही अभी तुम दोनो जाओ अपनी गृहस्थी सम्हालो.”

पिता जी मेरी तरफ देखने लगे, अचानक उनके चहरे में आये भाव से मेरा कलेजा कांप गया, वो मुझसे कभी इतने प्यार से बात नही करते थे…

“अमित.”

“जी जी पिता जी” मैं हकलाया जिससे खुशबू थोड़ी हँस पड़ी, जिससे मैं और भी नर्वस हो गया.

“अगर बहु को कोई भी शिकायत हुई तो…..”

“जी जी पिता जी.”

खुशबू सर गड़ा कर हँसने लगी वही पिता जी खुशबू को देखकर मुस्कुराने लगे. गांव से शहर आकर मुझे बहुत ही हल्का महसूस हुआ, गांव में पिता जी की उपस्तिथि में मुझे बंधा हुआ सा फील होता था, लेकिन मेरे बीवी के लिए चीजे बिल्कुल ही अलग थी.

वो हमेशा ही गांव में पली बढ़ी थी बड़े से घर में रहने की आदत, खुला हुआ आंगन, बड़े बड़े खेत और बगीचे और शहर में मेरा 2bhk का घर, जितना बड़ा यहां पर गार्डन था उतनी तो मेरे घर की बाड़ी थी जंहा हम सब्जियां बोया करते थे, उसे ये सब कुछ अजीब सा लग रहा था, लेकिन वो अपनी पूरी कोशिस कर रही थी.

मैं एक साफ्टवेयर} इंजीनियर था और मेरे आसपास के लोग भी अधिकतर it के लोग थे, उनका रहन सहन सब खुशबू से अलग ही था, वो साड़ी से लिपटी हुई, हल्का घूंघट डाले जब मेरे फ्लेट से निकलती थी तो लोग उसे अजीब नजरो से देखते थे, ऐसा नही था की वो पढ़ी लिखी नही थी, उसने भी ग्रेजुएशन किया था लेकिन माहौल का फर्क उसे रास नही आता था.

उसके बावजुद उसके मिलनसार स्वभाव और गांव से मिला हुआ अपनत्व की भावना से उसने अपने आस पास के लोगो का दिल जितना शुरू कर दिया था, मेरा शमशान सा घर अब बगीचे की तरह महकने लगा था, लोग मुझे भाभी जी के पति के रूप में जानने लगे थे.

मेरे घर में आसपास की औरते आने जाने लगी थी, और ये सब 1 ही महीने में होना शुरू हो गया था, खुशबू को लोग बहुत पसन्द करते कारण था की वो खुलकर लोगो की मदद करती, मैं एक बुझा हुआ आदमी था वही खुशबू एक जिंदादिल महिला……

इधर हमारा शाररिक आकर्षण भी एक दूसरे के लिए बढ़ने लगा था, उसकी चंचलता, सादगी और प्यार ने मुझे उसका दीवाना बना दिया था, मैं उसका गुलाम ही होता जा रहा था, उसकी हर अदा मुझे उसका दीवाना बना देती, मेरे दोस्त भी मेरी किश्मत पर रक्स करने लगे थे.

वो गदराए हुए जिस्म की मलिका थी, जिसे वो अधिकतर अपनी साड़ी से ढककर ही रखती, कालोनी की दूसरी औरतों के कहने पर उसने अभी अभी सलवार पहनना भी शुरू कर दिया था लेकिन कम ही, मैंने भी अपनी तरफ से उसे खोलने की बहुत कोशिस की और उसके लिए नए नए डिजाइनर अंडरगारमेंट्स उसे लाकर दी.

उसके पुराने अंडरगारमेंट्स को फेकना पड़ा तब जाकर वो नए पहनना शुरू की, और समय के साथ साथ ही वो बिस्तर पर भी खुलने लगी थी, जब वो बस अपने पेंटी और ब्रा में होती तो उसका बदन जानलेवा हो जाता था, दूध में सिंदूर मिले रंग सी उसकी त्वचा और भरा हुआ शरीर मेरे पसीने ही छुड़ा देता.

लेकिन उसकी सबसे बड़ी ताकत उसका शर्माना था, उसकी शर्म सचमे जानलेवा थी, वो अपने पत्नी के धर्म को बखूबी निभाती और गर्म होने पर पूरा साथ देती थी… उसके अंदर का जानवर जब बाहर आता तो मेरे लिए भी उसे सम्हालना मुश्किल हो जाता.

वो ठहरी गांव की तुस्त दुरुस्त गदराई लड़की, जिसका पूरा जीवन ही मेहनत के कामो में निकला था वही मैं एक मरियल सा सॉफ्टवेयर इंजीनियर, उसकी ताकत के सामने मैं अधिकतर ही फीका पड़ जाता था, लेकिन गांव में मिले उसके संस्कारो ने शाररिक सुख को कभी भी हमारे बीच का बहस बनने नही दिया.

उसे जितना भी मैं दे पाया मैंने दिया और उसे जितना मिला वो उसमे ही बहुत खुस रही, कभी कभी मुझे इसका अफसोस भी होने लगा था, मैं उसके सामने टिक ही नही पता था, मैंने कुछ तरीके खोजे जिससे मैं उसे संतुस्ट कर पाउ, जैसे की सेक्स से पहले उसकी योनि को खूब चाटना, उंगली करना, फोरप्ले में ज्यादा समय देना और जब वो झरने वाली हो तब अपने लिंग को उसके अंदर घुसाना.

वो इससे संतुस्ट हो जाती थी, लेकिन एक मर्द की तरह मैं उसे रगड़ नही पता था, सप्ताह दो सप्ताह में उसे रगड़ने के लिए कुछ दवाईया लेता, जाहिर है की मैं दवाई रोज नही ले सकता था क्योकि उनका साइड इफेक्ट नपुंसकता ही होता है.

दवाइयों के असर में मैं मर्द बन जाता था लेकिन फिर भी नार्मल सेक्स का मजा दवाई वाले सेक्स में नही होता, फिर भी हम दोनो खुस थे एक दूसरे की बहुत इज्जत और प्यार करते थे, एक दूसरे का ख्याल रखते थे, कुल मिलाकर एक परफेक्ट कपल की तरह समाज हमे देखने लगा था…

वो पिता जी को बहुत याद करती लगभग रोज ही उनसे बात करती थी, मैं इससे दूर ही रहता था, अब शहर आये हमे 3 महीने हो चुके थे, आखिर पिताजी को भी अपनी बहु से दूरी बर्दास्त नही हुई और खेती का काम निपटते ही उन्होंने कुछ दिनों के लिए शहर आने का मन बनाया…

खुशबू ने ये खबर मुझे सुनाई, मैं ना ही ज्यादा खुस था ना ही दुखी, ऐसे भी मैं सुबह से काम पर निकल जाता और शाम को आता था, अब मैं थोड़े और देर से काम कर पाऊंगा क्योकि अब मुझे घर आने की कोई जल्दी नही होगी, मैं मन में ही सोच कर हँस पड़ा…

सफेद शर्ट और नीला जीन्स, रौबदार मूंछे, सफेद पड़ने को हुए बाल, सलीके से पहने गए काले जूते, जो दर्पण की माफिक चमक रहे थे, चौड़ी छाती जिसका पता शर्ट के ऊपर से भी लगाया जा सकता था, आंखों में काला रेबेन का चश्मा, हाथो में टाइटन की महंगी घड़ी, वो किसी बड़े अधिकारी की तरह रौबदार लग रहे थे.

जब वो ट्रेन से उतारे तो मैं और खुशबू मुह फाडे उन्हें देखने लगे, पिता जी को हमने ऐसे वेशभूषा में कभी नही देखा था, लेकिन मुझे याद आया की वो जब फ़ौज में थे और माँ जिंदा थी तो वो माँ को पूरा देश घुमा चुके थे, वो गांव में आने के बाद से गांव की वेशभूषा अपना चुके थे.

“ऐसे क्या देख रहे हो, जैसा देश वैसा भेष” उन्होंने अपना लगेज मुझे थामते हुए कहा, हम दोनो ही उनके पैरो में झुक गए.. उन्होंने खुशबू के सर पर हाथ फेरा जो की बहुत ही खुस दिख रही थी.

“कैसी हो बेटी तुम्हे देखे जैसे सादिया बीत गई.”

“अच्छी हु बाबूजी आप तो बहुत ही हेंडसम लग रहे है” वो चहकी, पीली साड़ी में गहनों से ढकी हुई और घूंघट किये हुए उसका चहरा कुंदन की तरह दमकने लगा था…

बाबूजी उसके मुस्कुराते हुए खिले चहरे को देखकर और भी खुस हो गए और उन्होंने प्यार से उसके गालो पर हाथ फेर दिया, मैं समझ सकता था की वो खुशबू को बहुत ही प्यार करते है.

“मैं समान गाड़ी में रखता हु.”

हमने एक ओला किराए पर लिया था.

“तू खुद की गाड़ी क्यो नही ले लेता.”

बाबूजी और खुशबू पीछे की सीट पर बैठे थे वही मैं सामने ड्राइवर के साथ,

“बाबूजी जरूरत नही है.” मैं थोड़ा डरते हुए कहा

“अरे ऐसे कैसे तू हमेशा से नालायक है, बहु मैं तुम्हारे लिए गाड़ी लूंगा और जब तक मैं यहां हु तुम्हे चलना भी सीखा दूंगा.”

मैं उनकी बात काटने की हिमाकत कैसे कर सकता था.

“सच्ची बाबुजी” खुशबू फिर से चहकी, ऐसा लग रहा था जैसे किसी बच्ची को उसके बाप ने चॉकलेट दे दी हो.

“हाँ बिल्कुल अभी तो मैंने फसल बेची है, बहुत पैसा है मेरे पास बैंक में, और मेरी बच्ची यहां किराए की गाड़ी में घूम रही है.”

हे भगवान काश कभी बाबुजी ने मेरे ऊपर इतना प्यार दिखाया होता,

“अमित अभी चलो, हम गाड़ी लेकर ही घर जाएंगे.”

मैं हड़बड़ाया “बाबुजी अभी.”

“क्यो सुनाई नही देता क्या.”

“जी जी” मैंने ड्राइवर को इशारा किया जो की हमारी बात सुनकर मुस्कुरा रहा था, उसने गाड़ी मारुति के शोरूम में ले जाकर रोक दी और बाबुजी ने तुरंत एक swift dzire खरीद कर खुशबू को गिफ्ट कर दी, मेरा बापू है तो दिलदार आदमी, पहली बार मुझे उनके फैसले से बहुत खुसी हुई क्योकि गाड़ी तो मेरे नीचे ही आनी थी, अभी तो मैं उसे चलते हुए घर भी ले आया अब कल से शुरू होनी थी खुशबू की ट्रेनिंग.

पिता जी के आने के बाद घर का माहौल ही बदल गया था, खुशबू ऐसे खुस थी जैसे कोई मिल का जादू आ गया हो, वो दिन भर ही उससे चिपकी रही, यहां आने के बाद और मेरे और उसके सहेलियों के कहने के बाद से ही उसने साड़ी पहनना बंद कर दिया था लेकिन आज वो फिर से अपनी सहेजी हुई साड़ियां निकाल कर रख ली.

वो फिर उसी भेष में घूमने लगी जो वो शादी के बाद घुमा करती थी, वही हाथो में भरी चूड़ियां, मांग में गढ़ा सिंदूर आदि आदि… रात पिता जी के पास बैठकर वो गांव के बारे में सब पूछने लगी जैसे की सालो हो गए हो उसे गांव छोड़े, पता नही पिता जी को भी क्या हो गया था की वो उससे इतने प्यार से व्यवहार करते, मुझसे तो कभी सीधे मुह बात तक उन्होंने नही की थी.

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रात बीती और पिता जी के कारण मैं सेक्स से वछित रह गया, खुशबू ने मुझे बस इतना ही कहा की जब तक पिता जी है कोई सेक्स नही छोटा सा घर है अगर उन्हें पता चल गया तो… मैं तो कंडोम का फैमली पैक लेकर रखे हुए था, अभी उनमे 20-25 कॉन्डोम पड़े ही थे.

सोचा था की 15-20 दिन में खत्म हो जाएगा लेकिन अब लगा की ये महीना तो गया, सुबह मैं जल्दी से तैयार हो कर ऑफिस गया और देर से वापस आया, मेरा बॉस तो इस बात को लेकर बहुत ही खुस हुआ लेकिन मैं थककर चूर हो चुका था. ये कहानी आप फ्री सेक्स कहानी डॉट इन पर पढ़ रहे है.

दरवाजा खुशबू ने खोला और उसे देख कर मेरा दिमाग ही ठनक गया, वो सलवार में थी, हाथो में वैसे ही चूड़ियां और मांग में वैसा ही सिंदूर लेकिन साड़ी के जगह सलवार मेरी नजर की परेशानी समझ कर वो बोल पड़ी.. “पिता जी ने कहा पहनने को.”

मेरी आंखे और चौड़ी होती उससे पहले ही पिता जी की दमदार आवाज मेरे कानो में पड़ी “बहु को शहर ले आया लेकिन रखना गांव की तरह ही चाहता है, इतना पढा लिखा है और अपनी पत्नी को थोड़ी भी छूट नही देता, ये तेरी पत्नी है कोई गुलाम नही, अब बहु वो सब कुछ पहनेगी जो शहर की लडकिया पहनती है समझा…” वो डांटने के अंदाज में बोले.

“लेकिन पिताजी मैं तो.”

“चुप रहो, इतना पढ़ाया लिखाया लेकिन अभी भी दिमाग तेरा गवार का ही है.”

खुशबू उनकी बात सुनकर हल्के हल्के हँसने लगी, मैं गुस्से से उसे देखा वो मुझे आंख मार कर अंदर चली गई… रात मैं उसका इंतजार करता रहा, 12 बजे वो कमरे में आयी और मेरे बाजू में आकर लेट गई.

“अच्छा डांट खिला दिया तुमने.”

वो जोरो से हँसी, और मेरे सीने से जा लगी “आज पिता जी मुझे गाड़ी सीखने ले गए थे, तो उन्होंने कहा की जैसा देश वैसा भेष अब ऐसे कपड़े मत पहना कर और मुझे सलवार खरीदने की बात करने लगे, मैंने कहा की मेरे पास तो बहुत से कपड़े है तो वो यहां आकर मेरी अलमारी देखने लगे,”

खुशबू का चहरा लाल हो गया था, मुझे समझ नही आया क्यों.

“तो क्या हुआ तुम ऐसे क्यो शरमा रही हो.”

“ओहो आपने कभी मेरी अलमारी देखी है क्या?” वो थोड़े गुस्से में बोली, मैंने ना में सर हिलाया.

“जा के देखो.”

मैं झट से उठाकर उसकी अलमारी खोली, ओ माई गॉड.. इतने दिनों में मैंने उसे बहुत सी सेक्सी पेंटी और ब्रा गिफ्ट की थी, इंटरनेट से एक से बढ़कर एक बेबीडॉल मांगवाए थे, जिसमे से कई को तो पहनी भी नही थी, वो सभी वँहा खुले पड़े थे,  बाकी के कपड़े तह किये हुए रखे थे, उसमे उसके सेक्सी नाइट गाउन्स भी थे. मुझे पिता जी पर गुस्सा भी आया की कोई ऐसे कैसे किसी की पर्शनल चीजो को देख सकता है… मैं वापस आया तो खुशबू मुस्कुरा रही थी

“जब उन्होंने सब देखा ही था तो मुझे क्यो डांटा.”

वो फिर से मुस्कुराई “क्योकि जब उन्होंने ये सब देखा तो मैं बहुत ही घबरा गई थी, और जब उन्होंने आश्चर्य से पूछा की ये सब तुम्हारा है और तूम इसे पहनती हो तो मैं डर कर बोल दी की नही ये सब हमसे पहले यहां रहने वाली लड़कियों का है, आपको ये सब पसंद नही तो मैं इसे नही पहनती, और वो यानी की आप इसे फेंकने की सोच रहे है.”

वो गुस्से में बोले की “आने दो उसे तुम्हे क्या गुलाम समझता है की जो वो बोलेगा वही तुम पहनोगी, उन्होंने कहा तूम इसे पहना करो और तुम्हारी मर्जी हो तो और कपड़े ला दूंगा ये दुसरो के कपड़े क्यो पहनोगी, अब आप ही बताओ मैं क्या कह सकती थी.”

उसकी मासूम से जवाब ने मुझे चुप करा दिया था.

“लेकिन ये क्या बात हुई वो कैसे तुम्हारे पर्सनल चीजो को देख सकते है” मैं हल्के से भुनभुनाया.

वो हँसी “अच्छा तो कल बता दूंगी क्या उन्हें की आप ऐसा बोल रहे थे.”

मैं बुरी तरह से हड़बड़ाया “पागल हो क्या.”

वो खिलखिलाकर हँस पड़ी “अच्छा तो आज गाड़ी सीखने गए थे क्या हुआ आज.”

वो एक अजीब नजर से मुझे देखने लगी.

“अरे क्या हुआ?”

“कुछ नही बाबुजी ने मुझे थोड़ा सा सिखाया और खुद भी चला कर दिखाया, वो बोल रहे थे की कुछ ही दिन में मैं अच्छे से सिख जाऊंगी.”

खुशबू ने कभी मुझसे झूट नही कहा था लेकिन आज जब वो बोल रही थी उसकी नजर नीचे थी, मैं समझ नही पाया की वो मुझसे क्या छुपा रही है, लेकिन कुछ तो था खैर जो भी हो बाबुजी उसके साथ थे तो मुझे डरने की क्या जरूरत थी, मैं उसके पास आने लगा लेकिन वो मुझे झटके से दूर कर दी.

“बाबुजी है” उसने मझे समझने वाले अंदाज में कहा और मैं मन मसोज कर ही रह गया.

ऑफिस से आकर दरवाजा खटखटाया और जब दरवाजा खुला तो साथ ही मेरा मुह भी खुला हुआ रह गया, खुशबू मेरी संस्कारी, शर्मीली खुशबू, साड़ी में लिपटे रहने वाली खुशबू, बस एक फ्रॉक में घूम रही थी, वो मुझे देखकर थोड़ी शरमाई, आश्चर्य तो ये था की इस कपड़े के होने का भी मुझे पता नही था.

रात मुझे पता चला की आज वो और बाबुजी शॉपिंग के लिए गए थे और वहां उसने ये सब खरीदा था, वो इस मॉर्डन ड्रेस में इतनी कमाल की लग रही थी की मुझे अपनी ही किस्मत पे नाज होने लगा था, मेरी शादी के समय कुछ लड़कियों के पारखी दोस्तो ने मुझे कहा था की तेरी किस्मत बहुत ही अच्छी है जो तुझे इतनी अच्छी लड़की का साथ मिला.

आज वो बात मेरे समझ में आ रही थी, खुशबू कमाल की लग रही थी, इसके सभी रंग मैं देख रहा था, वो आज जरूरत से ज्यादा ही शर्मा रही थी लेकिन मुझसे ना की बाबुजी से, मेरे बैडरूम में आ जाने के बाद भी वो एक घंटे तक उनके रूम में बैठी हुई उनसे बतियाती रही. और मुझे रोज की तरह सेक्स से साफ साफ मना कर दिया, रोज तो मैं खुद को सम्हाल ही लेता था लेकिन आज उसके रूप को देखकर मेरे अंदर का जानवर बार बार जाग रहा था और मैं कुछ भी नही कर पा रहा था…

“ओह बाबुजी.”

“अरे मेरी कोमल कोमल बहु.”

“छोड़िए ना.”

“क्यो अच्छा नही लग रहा है क्या?”

“बहुत ही अच्छा लग रहा है लेकिन वो आ जाएंगे तो.”

“अरे वो साला क्या करेगा, वो मर्द भी है क्या, मेरी चौड़ी छातियों में तुझे मजा आता है की उसकी.”

“बाबुजी आपकी बालो से भरी चौड़ी छाती मुझे आपके मर्द होने का अहसास देती है वो तो किसी लड़की के जैसे लगते है जब से मैं आपके बांहो में आयी हु.”

“तो खोल दु तेरी फ्रॉक.”

“ह्म्म्म.”

बाबुजी का हाथ सीधे खुशबू के फ्रॉक के अंदर चला गया..

“नही…..”

“क्या हुआ, अरे क्या हुआ आप ऐसे कांप क्यो रहे हो, इतना पसीना क्यो आ रहा है.”

मैंने चारो ओर देखा, है भगवान ये कैसा सपना था, मेरा चहरा पसीने से भरा हुआ था दिल की धड़कने बहुत ही तेज थी और सबसे बड़ी बात लिंग पूरी तरह से अकड़ा हुआ था, मैंने पूरे कमरे में एक नजर डाली, ac अभी भी चालू था.

“क्या हुआ आपको” खुशबू थोड़ी डर गई थी.

“कुछ भी नही बस ऐसे ही तुम सो जाओ.”

मैं पानी का एक ग्लास पी कर सोने लगा… ये क्या था और सबसे बड़ी बात क्यो था, मैं अपने खयालो में खो गया, कालेज के दिनों में मैं बहुत सेक्स स्टोरीज़ पढ़ा करता था, उनमे से मेरा फेवरेट जेनर था cuckold, उसमे मेरे जैसी की कंडीसन होती थी.

अगर मैं बाबुजी को मर्द मान लू तो एक ताकतवर मर्द एक कमजोर से मर्द की बीवी को उसके सामने से सेक्स करता है और कमजोर मर्द इसे देखकर उत्तेजित हो जाता है, बीवी सुंदर होती थी और ताकतवर मर्द के व्यक्तित्व से बहुत ही प्रभावित भी होती थी, लगभग ऐसी ही सिचुएशन मेरे साथ हो रही थी लेकिन यहाँ सामने कोई मर्द नही था सामने मेरे बाबुजी थे जो की खुशबू से बच्चों की तरह प्यार करते है.

क्या सचमे, मेरे दिमाग ने कहा, नही नही तू साले परवर्टेड इंसान ऐसे रिस्तो के बारे में भी गलत सोच रहा है, लेकिन कुछ भी कहो ये सोचकर मेरा लिंग तो तन चुका तन चुका था और बेहद ही बुरी तरह से तना हुआ था, खुशबू सेक्स दे नही रही थी शायद इसी का नतीजा था जो मेरे अवचेतन मन ने अपनी दमित कामनाओं का प्रक्षेपण मेरे सपनो में किया था.

जो भी मैं उसी सपने को फिर से सोच सोच कर जोरो से हिलाना शुरू किया और सच में मुझे बड़ा ही मजा आया, दूसरे दिन ऑफिस बहुत ही बोझील सा हो गया था, बार बार वही तस्वीरे सामने आ रही थी, इतने दिनों तक मैं रोज ही देर तक ऑफिस में पड़ा रहता था, तो आज जल्दी जाने के बात सोची बॉस भी मान गया.

मैं दोपहर में ही घर पहुच गया, अभी कोई 4 ही बजे थे, बाबुजी के आने के बाद से मैं 9-10 बजे तक ही आता था, नीचे कार गायब थी शायद दोनो कही गए थे, घर में ताला लगा था मेरे पास दूसरी चाबी थी तो मैं उससे दरवाजा खोल अंदर आ गया, फ्रेश होकर अपने सोचा थोड़ा आराम कर लू फिर सोचा यार कही घूम के आउ तो थोड़ा ठिक लगे.

भीड़ भाड़ वाला इलाका था लेकिन पास ही एक गार्डन और उससे लगा हुआ खेल का मैदान था, शाम होने पर गार्डन में भीड़ ज्यादा हो जाती थी वही मैदान में कुछ सेहत पसंद लोग जोग्गिग किया करते थे, मैं पैदल ही वहां पहुचा, शाम का हल्का अंधेरा था और मैदान में दूर एक गाड़ी दिखाई दे रही थी जो धीरे धीरे चल रही थी.

मुझे वो गाड़ी पहचानते देर ना लगी वो हमारी ही गाड़ी थी जरूर पिताजी यहां खुशबू को ड्राइविंग सीखने लाये होंगे, दोपहर के वक़्त खेलने वाले बच्चों से ये मैदान भरा होता है, अभी कुछ कुछ खाली था लेकिन फिर भी भीड़ थी, मुझे उहे देखकर डर लगने लगा क्योकि कही खुशबू किसी से टकरा ना जाय, कुछ बच्चे अभी भी खेल रहे थे.

मैं चलता हुआ उनके पास जाने लगा मैं थोड़ी ही दूर में था खुशबू गाड़ी चलाने में मसरूफ थी वही पिता जी का हाथ बार बार खुशबू के हाथो को छू रहा था जो की स्टेरिंग में था, वो थोड़ी देर तक उसे पकड़े रहते खासकर जब जब कोई मोड़ लेना हो.

वो डर के उछलती, जिसने कभी स्कूटी भी नही सीखी थी से कार की स्टेरिंग में बैठा दो तो यही हाल होता है, सब कुछ ठिक ही तो लग रहा था, खुशबू ने आज फिर से कोई नई ड्रेश पहनी थी, वो क्या था वो तो समझ नही आ रहा था लेकिन मुझे लगा की वो हो ना हो फ्रॉक ही होगा, वो इतनी खुस दिख रही थी की उसके चहरे में जो मेरी नजर जमी तो जम सी ही गई.

प्यारी सी मेरी जान, और खड़ूस से मेरे बाबुजी, थोड़ी देर तक यू ही चलने के बाद वो थामे और पोजिशन चेंज किया, फिर गाड़ी दौड़ाते हुए चले गए, उन्होंने मुझे देखा भी नही था, मैं थोड़ा प्रकृति का मुआयना करता है घूम रहा रहा था, सच में भागदौड़ भरी जिंदगी में हम प्रकृति से बहुत ही दूर निकल जाते है.

तभी मेरे पास फोन आया, “आप कहा हो.”

“क्या हुआ.”

“आप ऑफिस से आ गए हो क्या आपके कपड़े रखे है.”

“हाँ पास वाले गार्डन में हमने चले आया.”

“ओह ठिक है, तो जल्दी आ जाओ साथ ही खाना खा लेंगे..”

“अरे बाबुजी…” खुशबू समझ गई.

“ह्म्म्म अब बच्चे हो क्या जो ऐसे डरते हो चलो आ जाओ मैं बाबुजी को बता रही हु की हम साथ ही खाना खाएंगे.”

वो मेरी बात सुने बिना ही फोन पटक दी… मैं डरता हुआ घर आया और बड़ी मुश्किल से सामने बैठ के खाना खा पाया, उसके बाद के मैं कभी भी जल्दी घर आने के बारे में नही सोचा और ऐसे ही वो महीना बीत गया, खुशबू के पास मॉर्डन कपड़ो की ढेर थी जिसे पहनने में वो बिल्कुल भी नही शर्माती थी, और बाबुजी के जाने का दिन भी आ गया.

खुशबू अब ज्यादा मॉर्डन हो चुकी थी, ज्यादा खुली हुई, बस एक चीज था पूरे महीने मुझे सेक्स नही मिला था, लेकिन फिर भी मैं खुस था, स्टेशन में माहौल गमगीन था, खुशबू उनसे लिपट कर रो रही थी इन एक महीनों ने उन्हें बहुत पास ला दिया था.

वो आज खुद ही गाड़ी चलाते हुए आयी थी, जाने से एन वक्त पहले बाबुजी ने मुझे अपने पास बुलाया, और खुशबू से थोड़ा दूर मुझे ले गए… मैं बहुत डरा जैसे की कोई बड़ा गुनाह तो मुझसे नही हो गया लेकिन उनका लहजा बहुत ही शांत था. ये कहानी आप फ्री सेक्स कहानी डॉट इन पर पढ़ रहे है.

“देखो अमित तूम तो नालायक हो लेकिन मेरी बहु सोना है और तुम्हारे हाथ में मैं उसे छोड़कर जा रहा हु… अगर कोई भी ऊपर नीचे हुई, या तुमने उसे फिर से किसी भी बात को लेकर बांधने की कोशिस की तो… तुम समझदार हो..”

गाड़ी में बैठकर चले गए और मैं समझने की कोशीस ही करने लगा की साला आखिर मेरी क्या गलती है, बिना किसी बात के ही मुझे सुना के चले जाते है समझते क्या है अपने को, लेकिन फिर भी मैं कुछ नही बोल पाया. बाबू जी के जाने के बाद से ही मेरा चहरा फक्क पड़ा हुआ था खुशबू को समझते देर नही लगी,

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“बाबुजी ने कुछ बोल दिया क्या.”

मैं सोफे में बैठा था, वो मेरे पास आकर बैठ गई, मेरे आंखों में पानी था “बचपन से लेकर आज तक उन्होंने कभी शाबासी के दो शब्द भी नही कहे, तुम्हारे लिए उनके मन में प्यार है लेकिन मैं… और तुम ही बताओ की क्या मैं तुम्हें कुछ कमी होने देता हु, क्या तुम्हे मुझसे किसी भी तरह की कोई भी परेशानी है ? क्या मैंने तुम्हे कभी भी बांधने की कोशिस की और वो जाते जाते भी मुझे सुना कर चले गए.”

खुशबू बड़े ही प्यार से मेरा सर अपने सीने में रखती है और बड़े ही प्यार से उसे सहलाती है.

“आप बहुत ही अच्छे है लेकिन बाबुजी को हमेशा से चाहते थे की उनका बेटा उनके जैसे रहे, तगड़ा और एक मर्द की तरह, वो तो आपको अपनी तरह बनाना चाहते थे लेकिन आप मां जी के जैसे निकल गए बहुत ही कोमल स्वभाव के, अब देखिए ना आपकी गलती नही थी तो भी आप उनके सामने चुप खड़े थे, मर्द की तरह क्या आप उनसे ये नही कह सकते थे की आपकी कोई भी गलती नही है.”

“तो क्या मैं मर्द नही हु.”

मैं उसके चहरे को देखने लगा, वो एक कुटिल सी मुस्कान अपने चहरे में ले आई की मेरे दिल के तार तार बिखर गए, जैसे वो मुझसे कह रही हो की नही आप मर्द नही है, मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे जलील कर दिया हो, वो बस मुस्कुराती रही.

“लीजिये पानी पी लीजिये.”

“नही पीना मुझे पानी,” मैं गुस्से से अपने रूम में चला गया, और खुशबू अपने काम में बिजी हो गई, थोड़े देर बाद जब मेरा गुस्सा उतरा तो मुझे याद आया की मैंने महीने भर से खुशबू से सेक्स नही किया है, मैं झट से उठा और दराज खोला जंहा मैंने अपने कॉन्डोम का फैमली पैक रखा था, ये क्या बस 5 ही बचे थे, ये तो कम से कम 20-25 रहे होंगे,

मैं इसी असमंजस में था की खुशबू कमरे में आ गई, वो मुझे कॉन्डोमस को देखता हुआ पाकर मुस्कुराई “बाबुजी गए नही की आपको शरारत सूझ गई” वो एक कुटिल मुस्कान से मुस्काई पता नही उसने ये कहा से सीखा था लेकिन ये मुस्कान बड़ी ही अजीब थी इसमें एक टीस सी थी जो की सीधे मेरे दिल को चिर देती थी.

“ये तो 20-25 थे.”

“वो बाबुजी देख ना ले इसलिए फेक दिए.”

वो बड़े ही इत्मीनान से बोली

“तो ये पांच.”

“अरे मुझे पता थी की बाबुजी के जाने के बाद ढूंढोगे इसलिए छिपा के रखे थे, आज ही वहाँ रखे है.”

वो शरारती मुस्कान से मुस्कुराई लेकिन उसके जवाब से मेरा दिल बाग बाग हो गया था, मैं उसके पास आया और उसे बिस्तर में पटक दिया लेकिन वो तो मांसल देह की सुंदरी थी जिसके अंदर मुझसे बहुत ज्यादा ताकत थी, वो मुझे उलटे ही पटक दी.

“रुको तो थोड़ा मैं अभी आयी” वो खड़ी हुई और जाकर कुछ कपड़े उठाकर बाथरूम में चली गई… थोड़ी देर बाद जब वो आयी तो मैं उसे देखता ही रह गया, वो एक झीनी सी नाइटी में थी जो उसके जांघो के ऊपर था, काले कलर की नाइटी उसके मांसल बदन में कमाल की लग रही थी, मैं तो मुह फाडे उसे देखता ही रह गया.

उसने काले कलर की ही पेंटी पहने हुई थी जो की उसके पारदर्शी नाइटी से झांक रही थी और बिना ब्रा के उसके उजोर गोर रंग के कारण बाहर झांक रहे थे वो इतनी मादक लग रही थी की मुझे लगा मैं अभी ही गिर ना जाऊ, वो मेरे पास आयी और मेरे बाजू में बैठ गई, तभी मुझे याद आया की ये जो वो पहने हुई है वो सब ही नया है.

“ये कब खरीदा.”

“वो…वो बाबुजी ने लेके दिया.”

मेरा हलक सुख गया, बाबुजी ने अपनी बहु को सेक्सी नाइटी और पेंटी गिफ्ट किया.

“क्या हुआ वो बड़े ही शौकीन है, वो इसे खरीद कर लाये और जब मैंने उन्हें ये पहन के दिखाया तो वो बहुत ही खुस हुए.”

मुझे यकीन नही हो रहा था की ये मेरे घर में क्या हो रहा था, मेरे बाबुजी मेरी बीवी को इन कपड़ो में देख कर खुस हो रहे थे और मेरी बीवी उन्हें ये पहन कर भी दिखा रही थी.

“तुम उन्हें ये पहन कर दिखती थी.”

“हा वो ये वाला बहुत ही पसंद करते थे, इसीलिये तो आज इसे पहना.”

“ये वाला मतलब, और भी था क्या.”

मैं बौखला गया था, लेकिन खुशबू के चहरे में वही कमीनी वाली मुस्कान खिल गई, उसने उंगली आलमारी की तरफ दिखाई.

“वो पूरा भरा हुआ है ऐसे कपड़ो से.”

मैं बुरी तरह से चौक गया “लेकिन क्यों.” मेरा हलक सुख चुका था, मैं थूक गटक रहा था, पसीना मेरे चहरे में तैर रहा था और एक अजीब सी चीज की खुशबू को इस तरह बाबू जी के सामने सोच कर ही मेरा लिंग तन रहा था.. खुशबू मेरे पास आयी और उसके जिस्म की गर्मी का अहसास मुझे होने लगा.

“क्योकि वो मर्द है असली मर्द” वो मेरे कानो में फुसफुसाई.

ये वही लड़की थी जिससे मेरी अभी अभी शादी हुई थी, जो मेरे एक इशारे में कुछ भी करने को तैयार होती थी, वो मुझसे ऐसा बोलेगी मुझे तो अपने कानो पर ही यकीन नही आ रहा था

“जानते हो उनके पसीने की बु इतनी बेहतरीन है की कोई भी लड़की उनकी दीवानी हो जाय, और उनके शरीर का एक एक कसाव, और…”

वो रुकी उसने अपना हाथ मेरे लिंग पर रखा जो की खुशबू की बातो से तना हुआ था, वो उसे मसली.

“ओह.”

“और उनका लिंग….आपसे तो दुगुना होगा, और वो सभी कॉन्डोम उन्होंने ही खत्म किया है, मेरे ऊपर” वो बोली और खिलखिला के हँस पड़ी.

मैं स्तब्ध सा बैठा ही रहा, मैं गुस्से में आग बबूला हो गया मैं उसके बालो को कसकर पकड़ लिया और उसे झापड़ में मारने ही वाला था की वो चीखी

“खबरदार…अगर मेरे ऊपर हाथ लगाया तो सोच लो, बाबू जी आपका क्या हाल करेंगे.”

मैं एक अजीब से डर से भर गया था मेरे हाथ अपने ही आप ढीले पड़ गए, मैं रोने के कगार पर था.

“अब समझ आया की असली मर्द क्या होता है, तुम तो उनका नाम सुनकर भी काँपने लग गए हो, तो खुद ही सोचो की एक लड़की किसे चुनेगी उसे जो अपने बाप का नाम सुनकर ही काँपने लगता है या उसे जिसका नाम सुनकर उसका जवान बेटा भी कांप जाता है.”

उसके तिस्कार भरे शब्द ने मुझे अंदर तक झंझोर कर रख दिया, मैं रोने लगा, ये मेरी बीवी थी, मेरी सुशील बीवी जिसे मैं दिलो जान से प्यार करता था…

“मैं हमेशा ही सोचता था की तुम मेरी मा की जगह को पूरी करोगी जो मुझे कोई दुख होने नही देती थी, जो मुझे बाबू जी के गुस्से से बचा कर रखती थी.”

खुशबू फिर से जोरो से हँसी लेकिन इस बार उसकी हँसी में एक गुस्सा भी था.

“मैं तुम्हारे माँ की ही तो जगह हु, तुम्हारी माँ भी तो रोज रात को उनके नीचे आती रही होगी क्यों.”

वो चुप हो गई, और मैं पागल, इतना बेइज्जत मैं कभी नही हुआ था, मैं अपने ही कमजोरी पर रो रहा था, थोड़ी देर कमरे में किसी की आवाज नही आयी, आखिर खुशबू मेरे पास आकर बोली…

“रोने की कोई बात नही है, ऐसा हमारे बीच कुछ भी नही हुआ, ये कॉन्डोम सच में मैंने फेक दिए थे, और ये सब पिताजी ने नही मैंने ही खरीदे थे पिताजी से छुपकर सोचा था की इन बातो से आपके अंदर का मर्द तो जागेगा लेकिन नही पिता जी का गुस्सा सही है, मुझे भी उनके जैसा पति चाहिए, अगर कोई दूसरा होता तो मेरी क्या मजाल थी की मैं आपके सामने ये सब बोल पाती, आप तो उनका नाम सुनकर ही काँपने लगे” वो सुबकने लगी.

उसने जो बोला वो सच या झूट मुझे नही पता लेकिन उसके आंसू तो असली ही थे.

“आपको क्या पता मुझे कैसा लगता होगा जब वो मेरे ही सामने आपको डांटते है और आप गलती ना होने के बाद भी चुप चाप सब कुछ सुनते हो, वो मेरे सामने आपकी बुराई करते है की उन्हें एक मर्द चाहिए था और आप क्या पैदा हो गए.”

इस बार खुशबू का रोना और भी बढ़ गया था, जो जोरो से रोने लगी थी और मेरे बाजू में ही आकर बैठ गई थी, मैंने उसके कंधे पर अपना हाथ रखा लेकिन उसने उसे हटा दिया.

“छूना नही मुझे, मैं उन्हें अपने पिता की तरह मानती हु लेकिन मेरा पति ही नामर्द है और वो…..”

खुशबू चुप हो चुकी थी, मैं उसे आंखे फाडे देख रहा था, खुशबू मेरी तरफ घूमी “बाबुजी उतने अच्छे नही है अमित जितने लगते है.”

अब मेरा माथा और भी भनक गया, ये तो उनकी दीवानी थी अब इसे क्या हुआ.

“वो मेरा फायदा उठाने की कोशिस करते थे, उन्होंने जब कंडोम का पैकेट देखा तो वो मुझसे अजीब सवाल करने लगे जैसे की क्या इसे अमित खत्म कर पता है, क्या वो सब कर पता है, मुझे बहुत ही बेकार लगा इसलिए मैंने सब फेक दिया, वो कभी कभी मुझे छूने की कोसीसे करते, पहले तो मुझे कोई भी बुराई नही लगी लेकिन बाद में वो मेरा हाथ भी सहलाते थे, तो कभी मेरी…” वो चुप हो गई.

मैं उसके चहरे को देखे जा रहा था.

“जांघ, और कभी अंदर हाथ ले जाने की कोशिस करते थे” वो फिर से फफक के रो पड़ी.

“क्या सच में ये सब जान कर भी तुम्हारा खून नही खोलता अमित.”

वो रोते रोते मुझे पूछने लगी, मैं क्या कहता, क्या करता, मेरे दिल में जो उनका ख़ौफ़ था, क्या मैं सच में एक नामर्द हो गया हु, मैंने खुद से कहा, मुझे खामोश देखकर खुशबू और भी तडप गई.

“तो क्या मैं उनकी रंडी बन जाऊ क्या यही तुम्हे पसंद आएगा, मैंने उन्हें इतने मुश्किल से रोका था, ये सोचा था की जब मेरे पति को पता चलेगा तो उसका खून खोल जाएगा, वो मेरी हर बेज्जती का बदला लेगा लेकिन मैं ही मूर्ख थी, जो पीने पिता के साथ अपनी बीवी को सेक्स करते सोच कर ही अपना लिंग खड़ा कर रहा है वैसा नामर्द कैसे मेरी रक्षा करेगा.

सच ही कहते थे बाबुजी की तुम नामर्द हो और तुम्हारे ये सब जानने से क्या हो जाएगा, तुम्हारी इतनी औकात ही नही की तुम अपनी बीवी की जवानी को सम्हाल सको, मुझे मेरा जवाब मिल गया अमित, और जब तुममें इतनी हिम्मत नही तो तुम इस जवानी के लायक भी नही हो, जिसे छीनना है वो छीन ही लेगा, हा तुम्हारा बाप इसे तुम्हारे सामने ही भोगेगा और तुम नामर्द से देखते रहना….”

वो गुस्से में बोली और वँहा से चले गई दरवाजा जोरो से बजा मूर्खों जैसे बस खुशबू की बातो को ही सोचता रह गया था, क्या वो सच कह रही थी, लेकिन उसके और बाबुजी के व्यवहार से तो मुझे कभी कोई ऐसी बात नही लगी, क्या उसने उनके साथ सेक्स किया या जैसा वो बोल रही थी की बाबुजी ने कोशिस की लेकिन उसने मना कर दिया…

मैं बस सोचता ही रह गया लेकिन एक बात थी की जो भी हुआ हो बाबुजी से लड़ने की हिम्मत मैं नही जुटा पाया था… एक सप्ताह से खुशबू ने मुझे हाथ तक लगाने नही दिया था, मैं और भी बेचैन हो गया था क्योकि खुशबू का कहना था की एक मर्द बनकर अपने ही पिता के सामने खड़ा हो जाऊ. ये कहानी आप फ्री सेक्स कहानी डॉट इन पर पढ़ रहे है.

जितने भी बार वो मुझसे ये कहा करती मैं और भी बेचैन हो जाता, अगर खुशबू झूट बोल रही हो और बाबुजी ने ऐसा कोई भी काम नही किया हो तो क्या होगा, लेकिन अगर खुशबू सच बोल रही हो तो….क्या मैं उनसे लड़ पाऊंगा, क्या मैं इसकी कोशिस भी करूँगा.

क्या होगा मुझे नही पता लेकिन कुछ तो होना ही था, जो शायद मैं बर्दास्त ना कर पाउ, क्या ये बाबुजी और खुशबू की ही कोई तरकीब थी जैसा की उन स्टोरीज़ में होता है की एक पति अपनी पत्नी को दूसरे से सेक्स करता देखने में मजबूर हो जाय…जो भी हो मैं अब भी खुशबू को मनाने में लगा था लेकिन फिर से एक कांड हो गया. बाबुजी का फोन आया उन्होंने खुशबू को गांव बुलाया था.

“लेकिन मुझे तो छुट्टी नही है” मैं बेचैनी से कह गया.

“तो मैं उन्हें मना कर दु” खुशबू ने तिरिस्कार भरे निगाहो से मुझे देखा.

“मैं कोसिस करता हु छुट्टी लेने की.”

खुशबू के चहरे में एक मुस्कान आ गई, वो अजीब नजरो से मुझे घूर रहि थी, अब वो मुझे नामर्द तो नही कहती लेकिन फिर भी जितनी हो सके मुझसे दूर ही रहा करती थी.

“क्या हुआ तुम ऐसे क्यो हँस रही हो.”

“तुम सच में अपने बाबुजी से डरते हो या तुम्हे भी मजा आता है अपनी बीवी को दूसरे के साथ देखकर.”

“खुशबू” मैं और भी लज्जित हो गया, लेकिन मेरा सर भी नीचे हो गया था.

“अगर ऐसी ही बात थी तो बोल देते तुम्हारे बाबू जी को गांव में मुझे नही बुलाना पड़ता, मैं भी जानती हु की वो मुझे बुला कर क्या करना चाहते है लेकिन सोच लो… अब मेरे मन में हमारी शादी को लेकर कोई भी दुविधा नही है, अब मैं उन्हें नही रोकने वाली जब मेरा पति ही ये नही चाहता तो मैं क्यो फालतू में अपने मजे को खराब करू.”

उसने एक एक बोल मेरे दिल में कटार की तरह चल रहे थे, मैं शर्म से गड़ा जा रहा था मेरे आंखों में आंसू आ गए, शायद खुशबू को भी मेरा दिल दुखा कर कोई खुसी नही हुई थी वो मेरे पास आयी और अपने हाथो को मेरे गले में डाल कर मुझे अपने ओर खिंच ली, ये सप्ताह में पहला दिन था जब वो मुझसे यू गले मिली थी, वो मेरे बालो को ऐसे सहला रही थी जैसे कोई मा अपने बच्चे के बालो को प्यार से सहलाये.

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“मैं तो तुम्हारी ही बनकर पूरी जिंदगी बिताना चाहती हु लेकिन तुम ये क्या कर रहे हो अपने डर के सामने हमारे रिस्तो का सौदा कर रहे हो आखीर कब तक मैं उनसे बच पाऊंगी, या तुम्हे ये लग रहा है की मैं झूट बोल रही हु, तुम्हे तो लगता होगा की तुम्हारा बाप बहुत ही पवित्र है या वो अपनी ही बहु साथ ऐसा कैसे कर सकता है.

मैं खुद को कब तक सम्हाल पाऊंगी हमारा समाज कभी भी मर्दो को गलत नही मानता, अगर मैं गांव में जाकर हल्ला भी मचाया तो हो सकता है वँहा के लोग मुझे ही गलत बना दे, और तुम अगर मेरे साथ नही रहोगे तो…….तो उसकी हिम्मत और भी बढ़ जाएगी, प्लीज् मेरे साथ चलो.”

उसकी बातो में एक दर्द का अहसास था, अगर ऐसा है तो खुशबू मुझसे बहुत प्यार करती है और मैं कैसे सिर्फ अपने डर के कारण उसे जलील होने दूंगा, मेरे दिल ने मुझसे ढेरों सवाल कर दिए.

“हा मैं तुम्हे किसी के भी सामने जलील नही होने दूंगा, मैं तुम्हारे साथ रहूंगा, लेकिन अभी तो मुझे कोई भी छुट्टी नही मिल पाएगी, मैं क्या करू, क्या हम कुछ दिनों के बाद नही जा सकते, मैं तुम्हे वँहा अकेले नही भेजना चाहता.”

मेरे आंखों से आंसू सुख चुके थे और मेरे दिल में पहली बार एक हिम्मत का अहसास जन्म ले रहा था, मैं अपने पिता से अगर खुशबू सही है तो मारकर भी उसे बचाने की ठान ली लेकिन खुशबू सही है या गलत इसका फैसला कौन करेगा, हो सकता है की खुशबू ही पिता जी को भड़का रही हो.

लेकिन उनके यहां रहते हुए तो मुझे नही लगा, ऐसे ये भी तो नही लगा की खुशबू दुखी है, या ये दोनो के मील जुले प्लान का कोई हिस्सा था, खैर मुझे छुट्टी चाहिए थी, मेरे पास गांव में बहुत जमीन थी और मैं उसका अकेला ही हकदार था.

लेकिन मैं गांव में नही रहना चाहता था इसलिए यहां आके रह रहा था, मेरे लिए इस नॉकरी के कोई खासे मायने भी नही थे, मैंने सोच लिया अगर छुट्टी नही मिली तो नॉकरी ही छोड़ दूंगा, खुशबू आज खुस थी पहली बार उसने मेरे अंदर एक मर्द को जन्मते हुए देखा था, वो मेरे गालो में एक भरपूर चुम्मन जड़ दिया..

“आप छुट्टी का कल बताइये मैं कल ही निकल जाऊंगी आप जल्दी से आ जाना हो सके तो कल साथ ही चले जाएंगे.”

दूसरे दिन मैंने अपने मैनेजर से बात की उसने मुझे दो दिन बाद एक इम्पोर्टेन्ट काम खत्म करके जाने और वॉर्क फ्रॉम होम की परमिशन दे दी, खुशबू शाम को ही निकल गई, और मुझे जल्दी आने का कह गई, वो फिर से अपने सादे लिबास में थी, वही साड़ी घूंघट चूड़ियां, मांग में भरपूर सिंदूर आदि…

मैं ऑफिस से सीधे स्टेशन ही आया था उसे छोड़ने, मैं थका हुआ अपने घर पहुचा, मेरे लिए ये दो दिन बहुत ही मुश्किल होने वाले थे, मैं जाकर खुशबू की आलमारी खोला, और देखकर ही चौक गया क्योकि अंदर उसके वेस्टन कपड़े तो थे लेकिन उसकी एक भी पेंटी और नाइटी नही थी, वो अपने सभी सेक्सी अंतःवस्तो को ले गयी थी सिर्फ एक लाल कलर की पेंटी वहां पड़ी थी जिसमे एक कागज रखा दिखा लिखा था.

‘अगर समय में नही आये तो सभी कपड़ो का मजा तुम्हारा वो बाप ही लेगा, यही याद दिलाने को ये पेंटी छोड़ जा रही हु.”

ये मेरी बीवी थी मेरी मासूम बीवी जो अब इतनी खतरनाक हो गई थी, पता नही ये दो दिन वो दोनो क्या करेंगे, खुशबू की अदाओं से तो मुझे लगता था की वो मुझे जला रही है, लेकिन क्या उसके आंसू भी नकली थे, कहते है की कभी सुना था त्रिया चरित्र के बारे में आज देख भी रहा था, एक अंतर्द्वंद दिमाग में चल रहा था जिसका कोई भी हल मेरे पास नही था.

मैं भी गांव जाने को बेकरार था, मैंने फैसला कर लिया था अगर खुशबू गलत होगी तो उसे तलाक दे दूंगा, अगर बाबुजी गलत होंगे तो पोलिस में भी जाना पड़े लेकिन खुशबू को बचाऊंगा, फिर कभी गांव नही जाऊंगा लेकिन उनसे हमेशा के लिए ही रिश्ता तोड़ दूंगा, और अगर दोनो ही गलत हुए ????????????

तो शायद उन स्टोरीज की तरह मुझे भी वो सब देख कर मजे लेना पड़ेगा, क्या सच में मैं मजे ले पाऊँगा या मेरा जमीर जागेगा, और दोनो को सजा देगा, क्या होगा मुझे नही पता बस दो दिन का इंतजार और था सब कुछ ही पता चल जाना था.

चिट्ठी को पड़ने के बाद मैं गुस्से में आकर उसे डस्टबीन में फेक दिया लेकिन मेरे हाथो में खुशबू की पेंटी भी थी, मैं उसे भी फेकने ही वाला था की मुझे उसके रेशमी कपड़े का अहसास हुआ, और मेरे हाथ रुक गए, मैंने उसे प्यार से छुवा और वो बड़ा ही उत्तेजक था, खुशबू के साथ सेक्स किये कई दिन हो गए थे.

अब वो पेंटी भी मुझे इतना मजा दे रही थी, मैंने उसे अपनी नाक से लागकर जोर से सूंघा, खुशबू के सूखे हुए रस की थोड़ी सी खुसबू(या बदबू )मेरे नाक में भर गई, साली ने इसे धोया भी नही था, शायद ये मेरे लिए ही था, मेरी प्यारी सी लगने वाली बीवी इतनी चालक होगी मैं तो सपने में भी नही सोच सकता था, रात मैं उस पेंटी को ही अपने लिंग से लगा कर हिलाने लगा.

और ये सोच सोच कर मेरा लिंग और भी अकड़ जाता की बाबुजी खुशबू के साथ क्या कर रहे होंगे…, दूसरा दिन भी काम में बीत गया अभी भी खुशबू की कोई खबर नही थी, शाम मैंने उसे फोन लगाया उसके मोबाइल में 5 रिग चले गए लेकिन उसने नही उठाया मैं और भी बेचैन हो गया था, शाम रात में बदल गई जब खुशबू का काल आया.

“मैंने तुम्हे इतना काल किया…”

“मैं काम में थी जी, आप कैसे हो..”

खुशबू इतनी नार्मल थी.

“अरे तुम इतनी नार्मल हो? बाबुजी ने कुछ किया तो नही ना.”

वो हल्के से हँसी “वो मेरे ससुर है उनकी मर्जी, और आप को कैसे फिक्र हो रही है मेरी, अभी तक कहा थे.”

खुशबू मुझे जलाने का कोई भी मौका नही छोड़ती थी

“ठीक क्या रहेंगे वो, मेरे आते ही छेड़छाड़ शुरू कर दिए, कल से बस धोती पहने घूम रहे है घर में.”

“वो तो घर में धोती ही पहनते है ना.”

“हाँ लेकिन अंदर तो कुछ पहनते है, अभी तो बस जानबूझ कर मुझे अपना सामान दिखाते फिर रहे है.”

खुशबू की बात से मैं थोड़ी देर को चुप हो गया, समझ ही नही आ रहा था की क्या जवाब दु.

“क्यो चुप हो गए… ऐसे उनका हथियार है तो जानदार, आपसे तो डेढ़ गुना होगा.”

खुशबू की हँसी से मेरे दिल में अजीब सी कसक उठी लेकिन दिल के किसी कोने में एक अजीब सा अहसास भी हुआ मानो मैं इन बातो से उत्तेजित हो रहा था, मेरी बीवी किसी गैर के हथियार की तारीफ कर रही थी वो भी मेरे सामने.

“क्या सोच रहे हो.”

खुशबू की आवाज ने मेरा ध्यान भंग किया “कुछ कुछ भी तो नही” मैं थोड़ा हड़बड़ाया.

“ये तो नही सोच रहे हो की अगर वो मेरे अंदर गया तो मुझे कैसा लगेगा, ऐसे सच बताऊ दिन भर से मैं यही सोच रही थी हा हा हाँ.”

खुशबू ने एक ठहाका मारा, लेकिन ये मेरे लिए कोई खुसी की बात नही थी, मेरी बीवी किसी और से चुदने की बात कर रही थी वो भी मेरे सामने, मुझे खुशबू के ऊपर गुस्सा आया.

“ये क्या बत्तमीजी…”

“सुनो ना आज जानते हो क्या हुआ.”

खुशबू मेरे बात को आधे में काट दी, मेरे दिल में ये जानने की तो उत्सुकता थी की आखिर क्या हो गया.

“क्या” मैं बुझे हुए स्वर में बोला.

“आज बाबुजी ने मुझे आकर पीछे से पकड़ लिया, मैं साड़ी में ही थी, और जानते हो.”

खुशबू चुप हो गई और मैं बेचैन हो कर रह गया, मैं आगे तो सुनना चाहता था लेकिन, लेकिन ये खुशबू से कैसे कहता, की मैं ये सब सुनना चाहता हु, मेरी चुप्पी को खुशबू समझ गई वो भी जानती थी के इससे मुझे मजा भी आता है और गुस्सा भी लेकिन मुझे ये समझ नही आ पा रहा की किसका साथ दु, गुस्से का या मजे का..

“जानते हो, उनका वो सच में बहुत मजबूत है, जब वो मेरे पिछवाड़े में गड़ा ना” वो धीरे से एक एक शब्द में पूरा जोर देकर बोल रही थी.

“तो ऐसे चुभ रहा था जैसे की कोई लकड़ी हो, आपका तो नरम हो जाता है.” वो फिर से खि खि कर हँसने लगी.

मेरी तो गांड ही जल गई थी, झांटो का सुलगना क्या होता है ये मुझे अभी पता चल रहा था.

“मैं रख रहा हु.”

“ऐसे कैसे पूरी बात नही सुनोगे क्या.”

खुशबू ने फिर से एक बम फेका

“क्या” मैं अपने स्वर को रूखा बनाने की कोसीसे कर रहा था लेकिन मेरा मुह सुख चुका था और आवाज ऐसे भी नही निकल रही थी, लिंग पूरी तरह से अकड़ा हुआ था और सांसे अनियंत्रित तो रही थी.

“कुछ नही आपको नींद आ रही होगी जाओ सो जाओ” जरूर उसके चहरे में इस वक्त एक कातिलाना मुस्कुराहट होगी, मैं कहना चाहता था की बताओ ना लेकिन नही कह पाया,

“ओके जान रखु फोन” खुशबू ने बड़े ही प्यार से कहा, मैं जानता था की वो क्या कहना चाहती थी, मैं कुछ भी नही कहा.

“अच्छा तो सुन लो वरना रात भर नींद नही आएगी, उन्होंने कहा की वो मुझे आपके सामने भी… यानी मुझसे कहा की तुम डरो नही अमित कुछ भी नही कर पायेगा, और वो मुझे आपके सामने, …” खुशबू कितनी भी बेवफा या बेफिक्र क्यो ना हो जाए कुछ लाज तो उसके अंदर अभी भी बाकी था.

“क्या?” आखिर मैंने पूछ ही लिया

“वो मुझे आपके सामने भी चोद….”

खुशबू चुप हो गई और मैं सब कुछ समझ गया, ये मेरी गांव की सीधी साधी बीवी थी जो मुझे बता रही थी की उसका लवर जो की मेरा बाप भी है वो उसे मेरे सामने चोदने में भी नही चुकेगा और मैं सिर्फ देखता रह जाऊंगा किसी मुर्दे की तरह मैं बस….

“ऐसा नही होगा, मेरे जिंदा रहते ऐसा कभी नही होने दूंगा” मैं गर्जा पहली बार मैंने खुशबू के सामने इतना गुस्सा दिखाया था, खुशबू तो खुस ही हो गई.

“सच में, आप ऐसा करोगे” क्या वो रो रही थी, क्या खुशबू सचमे भोली भाली है और मेरा खड़ूस बाप ही उसको बिगाड़ने में तुला हुआ है…

“हा मेरी जान मैं तुम्हे रुसवा नही होने दूंगा” मुझे उधर से खुशबू के रोने की आवाज सुनाई दिया.

“काश आप इतनी हिम्मत पहले दिखाते तो… तो शायद मुझे यहां नही आना पड़ता, अब जल्दी से यहां आओ ना जाने वो कल क्या गुल खिलाये और आके मुझे उसके हाथो से बचाओ वरना जो पेंटी दी थी याद है ना…” वो रोते रोते हँस पड़ी..

तभी किसी ने उसका दरवाजा खटखटाया.

“आ गया बुड्डा चलो रख रही हु, जी बाबुजी आयी.”

उसने मेरे जवाब की इंतजार किये बिना ही काल रख दिया, और मुझे बेचैन ही छोड़ दिया, तड़फने लगा था, आखिर इस वक्त बाबुजी को खुशबू से क्या काम आ गया, अगर आज ही वो उसके साथ जबरदस्ती किये तो….नही मुझे कुछ तो करना ही पड़ेगा. मैंने आधे घण्टे बाद फिर से खुशबू को फोन किया कोई भी जवाब नही, एक घण्टे बाद फिर से काल किए लेकिन फिर से कोई जवाब नहीं.

मेरा बीपी बढ़ने लगा था, मैं लगातार उसे फोन करने लगा लेकिन कोई भी जवाब नही मिला, आखिर में मैंने हिम्मत की और बाबुजी के फोन में काल किया ये मेरे लिए बहुत ही मुश्किल हो रहा था, हर रिंग के साथ मेरे दिल की धड़कने बढ़ रही थी लेकिन किसी ने फोन नही उठाया, 2 बार काल करने के बाद बाबुजी के फोन में काल करने की मुझे हिम्मत ही नही हुई. मैं फिर इस खुशबू के पास काल किया लेकिन कोई जवाब नही मुझसे अब सह पाना मुश्किल हो गया था.

मेरे दिमाग में बार बार खुशबू की प्यारी सी चुद में बाबुजी का बड़ा सा हथियार घुसता हुआ दिखाई देने लगा था एक तरफ ये सब सोच कर ही मेरे दिल की धड़कने बढ़ रही थी तो दूसरी तरफ मेरा लिंग भी अकड़ने लगा था, आखरी मैंने फैसला किया की नॉकरी माँ चुदाये मैं गांव जाऊंगा और अभी जाऊंगा, मैंने थोड़े कपड़े तुरंत पैक किये और कार से गांव की ओर निकल पड़ा, 4-5 घंटे का रास्ता था, लेकिन मैं जितने जल्दी हो सके वँहा पहुचना चाहता था. दोस्तों कहानी अभी बाकि है आगे मैं बताऊंगा कैसे मैंने बाबूजी को खुशबू को चोदते देखा. आगे क्या हु अगले भाग में…

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