दादा का आलू जैसा सुपाड़ा देखा

मेरा नाम वैशाली है, पर सब मुझे वैश्य बुलाते हैं। मैं 19 साल की हूँ, गोरी, लंबी, और मेरे कूल्हे भरे-भरे हैं, जो टाइट कपड़ों में और उभर आते हैं। मेरे बाल लंबे, काले, और हमेशा हल्के गीले से रहते हैं, जैसे मैं नहाकर अभी-अभी निकली हूँ। मैं पुणे में संतोष के घर रहती हूँ, जिसे मैं दादा कहती हूँ। संतोष, यानी दादा, 32 साल के हैं, गठीले बदन के, कद में मुझसे थोड़े लंबे, और उनकी आँखों में हमेशा एक चमक रहती है, जैसे वो हर चीज को गौर से देखते हों। उनकी शादी समीरा भाभी से हुई है, जो 28 साल की हैं। भाभी पतली, नाजुक, और बेहद खूबसूरत हैं, उनकी हँसी में एक अजीब सी मासूमियत है, लेकिन उनकी आँखें बताती हैं कि वो बिस्तर में शेरनी हैं। उनका एक 5 साल का बेटा है, चोटू, जो गोरा, नटखट, और हमेशा इधर-उधर भागता रहता है।

मैं कॉलेज खत्म करके पुणे जॉब के लिए आई थी। दादा ने मेरी मदद की और एक अच्छी सी जॉब दिलवा दी। मैं सुबह 6:30 बजे ऑफिस जाती थी, और दादा की शिफ्ट कभी दिन की, कभी रात की होती थी। हम सब एक छोटे से सिब्बल रूम में रहते थे—एक तंग सा किचन, एक चार फीट का बाथरूम, और एक कमरा, जो बेडरूम और लिविंग रूम दोनों था। बाथरूम इतना छोटा था कि नहाते वक्त ऊपर से सब दिख जाता था। अगर कोई बाहर खड़ा हो, तो मेरे गीले बदन की हर लकीर साफ नजर आती थी। दादा ने मुझे कई बार नहाते देखा था। उनकी नजरें मेरे गीले बूब्स और कूल्हों पर रुकती थीं, और मैं जानबूझकर तौलिया थोड़ा ढीला छोड़ देती थी। उनकी वो भूखी नजरें मुझे सिहरन देती थीं, पर मैं चुप रहती थी।

एक सुबह की बात है, दादा नाइट शिफ्ट से लौटे। मैं उस दिन जॉब पर नहीं गई थी, क्योंकि मेरी तबीयत ठीक नहीं थी। भाभी टॉयलेट गई थीं और उन्होंने बाहर से कुंडी लगा दी थी। मैं गहरी नींद में थी, चादर पूरी ओढ़े हुए। दादा सुबह 7:30 बजे घर आए। उन्हें लगा कि मैं जॉब पर गई हूँ और बेड पर सो रही हूँ भाभी। वो हमेशा की तरह चुपके से बेड पर आए और मेरी चादर में घुस गए। मैं नींद में थी, कुछ समझ नहीं पाई। दादा ने मेरा गाउन धीरे से कमर तक उठाया। मेरी पतली सी पैंटी को साइड में खिसकाया और अपने लंड को मेरी चूत के होंठों पर रगड़ने लगे। उनका लंड गर्म था, मोटा, और उसका सुपाड़ा इतना बड़ा था कि मेरी चूत के मुहाने पर रगड़ते ही मेरे बदन में करंट सा दौड़ गया। वो मेरे बूब्स को जोर-जोर से दबाने लगे, मेरे निप्पल उनकी उंगलियों के बीच मसल रहे थे। मेरी चूत गीली होने लगी थी, और मैं नींद में भी सिसकारियाँ ले रही थी।

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तभी भाभी ने बाहर से दरवाजा खटखटाया और आवाज दी, “संतोष, खोलो!” दादा एकदम चौंककर हटे, चादर खींची और दरवाजा खोलने दौड़े। उन्होंने भाभी से पूछा, “तुम बाहर? तो ये बेड पर कौन? वैशाली गई नहीं?” भाभी ने बताया कि मेरी तबीयत खराब थी, इसलिए मैं घर पर ही थी। मैं चादर में लिपटी पड़ी रही, जैसे कुछ हुआ ही न हो। दादा की साँसें तेज थीं, और वो मुझसे नजरें चुरा रहे थे। मैं समझ गई कि दादा ने गलती से मुझे भाभी समझ लिया था।

थोड़ी देर बाद भाभी बाहर गईं, तो दादा मेरे पास आए और धीमी आवाज में बोले, “वैशाली, सुबह जो हुआ, उसके लिए माफी माँगता हूँ।” मैंने अनजान बनते हुए कहा, “क्या हुआ, दादा? किस बात की माफी?” वो थोड़ा हड़बड़ा गए और बोले, “कुछ नहीं, बस ऐसे ही।” फिर चुपचाप बाहर चले गए। लेकिन मेरे दिमाग में वो सुबह का वाकया बार-बार घूम रहा था। दादा का वो मोटा, गर्म लंड, उसका आलू जैसा सुपाड़ा जो मेरी चूत पर रगड़ रहा था, और मेरे बूब्स पर उनकी उंगलियों का दबाव। मैं बाथरूम में गई, अपनी चूत को सहलाया, और सोच-सोचकर गीली हो गई। उस दिन के बाद दादा को देखने का मेरा नजरिया बदल गया। मैं उनकी तरफ खिंचने लगी थी।

दादा की डे शिफ्ट होती थी, तो वो और भाभी नीचे फर्श पर गद्दे बिछाकर सोते थे। मैं ऊपर बेड पर सोती थी। चोटू कभी-कभी मेरे पास आकर सो जाता था। जिस रात लाइट बंद होती थी, उस रात दादा और भाभी की चुदाई शुरू हो जाती थी। भाभी की सिसकारियाँ, बेड की चरमराहट, और दादा की भारी साँसें कमरे में गूँजती थीं। पहले मैं इन आवाजों को अनसुना कर देती थी, लेकिन अब मेरे मन में कुछ और ही चल रहा था। मैं उनकी चुदाई देखना चाहती थी, उनके जिस्मों को एक-दूसरे में डूबते हुए महसूस करना चाहती थी।

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एक रात फिर वही सिसकारियाँ शुरू हुईं। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मैंने धीरे से बेड से उठकर लाइट ऑन कर दी। सामने का नजारा मेरे होश उड़ा गया। भाभी कुत्तिया की तरह झुकी थी, उनका गाउन कमर तक चढ़ा हुआ था। उनकी गोरी, चिकनी गांड हवा में थी, और दादा उनके पीछे घुटनों पर बैठे थे। उनका लंबा, मोटा लंड भाभी की चूत में गहराई तक जा रहा था। हर धक्के के साथ भाभी की चूत से फच-फच की आवाज आ रही थी। दादा की कमर तेजी से हिल रही थी, और वो भाभी की गांड पर थप्पड़ मार रहे थे। भाभी की सिसकारियाँ तेज थीं, “आह… संतोष… और जोर से…” वो बार-बार कह रही थीं। दादा का लंड भाभी की चूत में गीलेपन से चमक रहा था, और उसका सुपाड़ा इतना मोटा था कि हर बार बाहर निकलने पर भाभी की चूत के होंठ फैल जाते थे।

मुझे देखते ही दादा ने अपना लंड बाहर खींचा। वो सुपाड़ा चमक रहा था, भाभी की चूत के रस से तर। दादा ने जल्दी से चादर ओढ़ ली और लेट गए। भाभी ने भी अपनी चादर खींची और मुँह फेर लिया। मैंने धीरे से “सॉरी” कहा और बाथरूम चली गई। वहाँ मैंने अपनी चूत को छुआ, जो पहले से ही गीली थी। मैंने अपनी उंगलियाँ चूत में डालीं और दादा के लंड की कल्पना करने लगी। मेरी साँसें तेज हो गईं, और कुछ ही देर में मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। मैं वापस आई, लाइट बंद की, और बेड पर लेट गई। लेकिन नींद नहीं आई। दादा का वो मोटा लंड और भाभी की चूत में उसका अंदर-बाहर होना मेरी आँखों के सामने बार-बार आ रहा था।

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उस रात के बाद मैंने ठान लिया कि मुझे दादा का लंड अपनी चूत में चाहिए। मैं उनके आसपास ज्यादा रहने लगी। टाइट टॉप और शॉर्ट्स पहनती, ताकि मेरे बूब्स और कूल्हे उभरकर दिखें। नहाते वक्त बाथरूम का दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ती, ताकि दादा की नजरें मुझ पर पड़ें। उनकी आँखों में वही भूख दिखती थी, जो मुझे और उकसाती थी। लेकिन मौका नहीं मिल रहा था। भाभी हमेशा आसपास होती थीं, और दादा भी उस सुबह की गलती के बाद सतर्क थे।

फिर कुछ दिन बाद मुझे मौका मिला। वो सात महीने तक चला, जब मैंने दादा के साथ हर रात चुदाई की। उनका मोटा लंड मेरी चूत को चीरता था, और मैं हर धक्के में खो जाती थी। लेकिन वो कहानी फिर कभी।

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