रिश्तों में जबरदस्त चुदाई। मेरी शादी हो गई थी। पता नहीं क्यों मैं शादी के नाम से बहुत डरता था। एक नयी लंबी-चौड़ी औरत आएगी, तो रात भर मेरे बगल में सोएगी। रात भर मुझे उसको लेना होगा, नहीं तो बच्चा नहीं होगा। मेरे दोस्त यही मुझसे कहते थे। मैं बचपन में खूब बेइंतहा मुठ मारा करता था। इतना ही नहीं, मेरे दोस्त मौका मिलने पर मेरी गाण्ड भी खूब मारते थे।
बस, तभी से मैं शादी के नाम से डरता था। मुठ मारते-मारते मैं 32 साल का हो गया। मेरे सभी पांच भाइयों की शादी हो गई, और अब मेरा नंबर आ गया। पर मेरी तीन छोटी बहनें भी थीं। मेरी शादी के बाद मेरी बहनों की शादी होनी थी। इसलिए मेरे पिताजी और सभी भैया मेरी शादी की बात चलाने लगे।
वो लोग लड़की भी पसंद कर आए। मैं दिन-ब-दिन टेंशन में आने लगा। सच ये था कि मैं गाण्डू था। मैं आज भी 32 का होने के बाद अपने जिगरी दोस्तों से चोरी-छिपे गाण्ड मरवाता था। मैंने आज तक कोई लौण्डिया नहीं चोदी थी। हाँ, जब-जब चुदास जागती थी, मुठ मारता था या गाण्ड मरवाता था।
मेरे दोस्त मेरा मजाक उड़ाने लगे। “अबे, इसकी जोरू को या तो इसके दोस्त चलाएंगे या इसके बड़े चार भाई!” सब कमेंट करने लगे। मेरी गाण्ड फट गई। मैं डर गया, खौफजदा हो गया। मैंने कई बहाने मारे, पर मेरे पिताजी और भाइयों ने मिलकर मेरी शादी कर दी। मेरी जोरू घर आ गई।
मैं तो पतला पापड़ था, और हरामी मेरे भाई ये पहलवान जोरू ले आए। विदाई के बाद मुझे मेरी भाभियों ने जबरदस्ती सुहागरात मनाने भेज दिया। मेरे बड़े भाइयों ने मुझे लौण्डिया चलाना, यानी कि चोदना, सिखा दिया था। मैं कमरे में गया, तो मेरी गाण्ड फटी थी।
मेरा कालेज धक-धक कर रहा था। मैं डर से काँप रहा था। मेरी जोरू साड़ी के लाल लहंगे में थी, घूंघट किए हुए। मैं सफेद पलंग पर उसके बगल बैठ गया। कुछ देर हाल-चाल हुआ। उससे पूछा, कहाँ से, किस कॉलेज से पढ़ाई की है, मैंने कहाँ से पढ़ा है, ये सब बातें हुईं। फिर बात खत्म। मेरी जोरू भावना ने घूंघट हटाया, दूध पिलाकर लाइट ऑफ कर दी।
“आप कपड़े निकालिए! मैं भी निकाल रही हूँ!” मेरी जोरू भावना बोली।
मैं डरे-सहमे हाथों से कपड़े निकालने लगा। मेरी जोरू 6 फिट की मजबूत कद-काठी की औरत थी। देखने में तो पहलवान लगती थी, वजन कोई 80 किलो होगा। कहाँ मैं 40-45 किलो का पतला पापड़ था। कहाँ मेरी एक-एक हड्डी चमकती थी, कहाँ मेरी जोरू के बदन पर गोश्त ही गोश्त था। खैर, मैंने कपड़े निकाल दिए। मेरी पहलवान जोरू नंगी पलंग पर लेट गई।
“आइए जी!” वो बोली।
मेरी तो गाण्ड फट गई। मुझे रह-रहकर अपने दोस्तों की बात याद आ रही थी, “अबे! इसकी जोरू को या तो इसके दोस्त चलाएंगे या इसके बड़े भाई!” मैं सहम गया। मैं नंगा होकर अपनी जोरू के ऊपर लेट गया। उसकी मस्त-मस्त बड़ी-बड़ी छातियाँ पीने लगा। काफी देर हो गई।
“रात बहुत हो रही है जी! अब करिए! सुबह जल्दी उठना भी है!” मेरी जोरू भावना बोली।
“करता हूँ!” मैंने कहा।
पर आधे घंटे तक अपनी पहलवान 80 किलो की बीवी की दोनों छातियाँ पीने के बाद भी मेरा लण्ड नहीं खड़ा हुआ। कहीं मैं छक्का तो नहीं हूँ, मैंने सोचा। फिर मैं अपनी पहलवान जोरू की चूत पीने लगा, शायद लण्ड खड़ा हो जाए, पर नहीं हुआ। मेरी बीवी ध्यान से मेरे लण्ड को देखने लगी।
“भावना! मेरा खड़ा नहीं हो रहा!” मैंने कहा।
मेरी बीवी बहुत निराश हो गई। उसने बड़ी देर तक मेरा लण्ड पिया, पर फिर भी खड़ा नहीं हुआ। मैं निराश हो गया। उस सुहागरात में हम बिना सेक्स के ही सो गए। अगली रात फिर यही हाल। धीरे-धीरे मेरी बीवी जान गई कि मैं हिजड़ा हूँ, नामर्द हूँ।
“चिराग! साफ-साफ बताओ कि बचपन में तुमने क्या-क्या कुकर्म किए थे, वरना मैं अपने पापा को बता दूँगी कि तुम हिजड़े हो!” मेरी पहलवान बीवी ने मुझे धमकाते हुए कहा।
मैंने उसे बता दिया कि बचपन में मैं हर दिन 3-4 बार मुठ मारता था, और हर दूसरे दिन दोस्तों से गाण्ड मरवाता था।
“हाय भगवान! मेरे तो कर्म फूट गए! एक छक्के से मेरी शादी करा दी गई!” मेरी जोरू रोने लगी और बिस्तर पर सिर पकड़कर बैठ गई।
मैं भी रोने लगा। दोस्तों, धीरे-धीरे मैं बहुत डिप्रेशन में आ गया। एकांत, चुप्पी, और हमेशा गुमसुम रहने लगा। मैंने डर से अपने दोस्तों से मिलना छोड़ दिया। हमेशा उनकी वही बात याद आती, “अरे, चिराग की जोरू को तो इसके दोस्त या इसके बड़े भैया चलाएंगे।” दोस्तों, मैं आत्महत्या के बारे में सोचने लगा।
एक दिन मेरे सबसे बड़े भैया ने मुझे छत पर बुलाया और बड़े प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरा।
“चिराग! शादी से ही तू बड़ा दुखी-दुखी लगता है! क्या बात है?”
“भैया, मैं अपनी जोरू को नहीं ले पा रहा हूँ! मेरा लण्ड ही नहीं खड़ा होता है!” मैंने बता दिया।
अचानक उनका मिजाज बिगड़ गया। उन्होंने मुझे एक तमाचा मारा। “बहनचोद! पहले नहीं बता पा रहा था ये समस्या! बेकार में एक नई लड़की की जिंदगी बर्बाद कर दी!” बड़े भैया बोले।
मैं रोने लगा।
“जरूर तूने कुछ हरमपन किया होगा!” बड़े भैया बोले। उन्होंने मेरी पैंट उतरवाई। मेरी गाण्ड देखी, तो ये गाण्ड बड़ी हो गई थी मरवा-मरवाकर। “बहनचोद! तूने बचपन में खूब गाण्ड मरवायी है! इसी का नतीजा है!”
बड़े भैया चिल्लाए और लात-मुक्कों की बौछार कर दी। मेरा मुँह फट गया। मेरे दूसरे भाई, पिताजी, माँ जी भी आ गए कि क्या हुआ। शर्म से मैंने कुछ नहीं बताया। रात को बड़े भैया सज-धजकर मेरे कमरे में मुझे लेकर आए।
“बहू! तेरे दर्द के बारे में मैं जान चुका हूँ। पर बहू, हमारे घर की इज्जत के लिए ये बात तुम किसी से मत कहना। आज से चिराग की जिम्मेदारी मैं उठाऊँगा! ये नामर्द है, मैं नहीं। मैं तुझे बच्चा दूँगा!” बड़े भैया बोले। “अबे, तू यहाँ खड़ा होकर झाँट उखाड़ रहा है। जा, एक शेविंग किट लेकर आ!” बड़े भैया ने मुझसे कहा।
मैं दौड़कर एक शेविंग किट ले आया। मैंने दरवाजा बंद कर दिया।
“चिराग! तेरी बीवी को चोदूँगा, तो मेरी सेवा तुझे ही करनी होगी! आकर मेरी झाँटें बना। तेरी बीवी को आज रातभर पेलूँगा!” भैया बोले।
भैया ने अपना सफेद कुर्ता-पाजामा उतार दिया। खूब इत्र लगाकर आए थे। अपनी बनियान और अंडरवियर भी उतार दिया। मेरी जोरू भावना के बगल नंगे होकर लेट गए। मैंने रेजर शेविंग मशीन में लगाया, भैया की झाँटें बनाने लगा। बड़ी लंबी-लंबी झाँटें थीं, जंगली झाड़ की तरह।
मैं जान गया कि मेरी भाभी भी झाँटों में ही पेलवाती होगी। मैंने बड़े भैया की झाँटें साफ की, फिर उनकी गोलियाँ बनाई। फिर मैंने सारे बाल एक पिन्नी में भर दिए।
“चिराग! तू इधर ही कुर्सी पर बैठ जा, अगर रात में तू बाहर रहेगा, तो घरवाले सवाल करेंगे!” बड़े भैया बोले।
मैं उधर ही कुर्सी पर बैठ गया। रात के 11 बज चुके थे। मेरे घर के बाकी सदस्य अपने-अपने कमरों में सो गए थे। मेरे बड़े भैया मेरे सामने मेरी जोरू भावना को चोदने-खाने वाले थे। क्योंकि मैं छक्का था, मैं हिजड़ा था, मेरा लण्ड ही खड़ा नहीं होता था। मैं कैसे अपनी जोरू को लेता? मेरी जोरू भावना ने मेरे बड़े भैया की बात मान ली।
भैया बेड पर आ गए, भावना को पास बुला लिया। भावना ने लाल रंग की मैक्सी पहन रखी थी। नंगे भैया को देखकर भावना थोड़ा शर्माई, क्योंकि भैया 10 साल उससे बड़े थे। भैया बड़े मोटे-ताजे थे, मेरी जोरू भावना से भी तगड़े थे। उन्होंने मेरी जोरू को अपनी बाँहों में भर लिया।
उसके होंठों पर ताबड़तोड़ चुम्मा जड़ दिया। गठीले बदन वाली भावना थोड़ी असहज महसूस करने लगी। “भैया, ये ठीक नहीं है… चिराग…” उसने हिचकिचाते हुए कहा। “चुप कर, बहू! तेरा नामर्द मर्द नहीं बना सकता, मैं बनाऊँगा!” भैया ने गुर्राते हुए कहा। उन्होंने मेरी जोरू को पलंग पर अपने बगल लेटा लिया। उनके हाथ भावना की पहलवानी छातियों पर जाने लगे। भावना थोड़ा परेशान हो गई। मेरी ओर ताकने लगी। मैंने नजरें फेर ली।
क्योंकि मैं उसे एक महीने में एक बार भी नहीं ले पाया था। तभी भैया ने मेरी जोरू की दोनों हेडलाइट को हाथ में भरा और अचानक कसके नींबू की तरह निचोड़ दिया। “आआह्ह!” भावना की चीख निकली, और वो पलंग पर उछल पड़ी। 80 किलो की जोरू पर जब मेरे 120 किलो के बड़े भैया चढ़ गए, तो साली की माँ चुद गई।
वो कुछ नहीं कर पाई। बड़े भैया मेरी पहलवान जोरू के दोनों मोटे-मोटे होंठ पीने लगे। “उम्म्म… हाय!” भावना सिसक रही थी। मैं एक किनारे अपनी जोरू को चुदते देख रहा था। मेरी आँखों में आँसू थे, पर मेरा लण्ड धीरे-धीरे खड़ा होने लगा। मैं शर्म और चुदास के बीच फँस गया। मैंने चुपके से अपनी पैंट में हाथ डाला और लण्ड सहलाने लगा।
थोड़ी जलन भी हो रही थी कि मेरे माल को मेरे भैया खा रहे थे, वो भी प्यार से धीरे-धीरे। फिर खुद पर पछतावा होने लगा कि अगर बचपन में मुठ न मारी होती, गाण्ड न मराई होती, तो ऐसी नौबत नहीं आती। मैं रोने लगा, पर आँसू बाहर नहीं आने दिए। मेरी जोरू के दोनों मोटे-मोटे लबों को चूसने के बाद बड़े भैया ने मेरी जोरू की वो लाल मैक्सी निकाल दी। भावना का नया, गोरा, चिकना, कसा, अनछुआ, अनचुदा बदन उनके सामने था। भैया ने भावना की लाल पैंटी और ब्रा भी निकाल दी।
“वाह, बहू! क्या माल है तू!” भैया ने लार टपकाते हुए कहा। उन्होंने मेरी जोरू की दोनों टाँगें खोल दीं। एक हाथ से चूत गोल-गोल सहलाने लगे, “हाय, कितनी गीली है तेरी चूत!” भैया बोले। मुँह से मेरी जोरू की बड़ी-बड़ी विशाल अनारों, यानी चुच्चों का रसपान करने लगे। “आआह्ह… उम्म्म!” भावना की सिसकियाँ तेज हो गईं। मेरा खून खौल गया ये सीन देखकर। मेरा लण्ड अब पूरा तन गया था। मैंने पैंट नीचे सरकाई और जोर-जोर से मुठ मारने लगा।
मैंने तो कभी अपनी भाभी के अनारों को नहीं पिया था। फिर ये क्यों कर रहे हैं ऐसा? फिर वही हिजड़ा होने की मजबूरी। मन हुआ कि ये सब देखने से पहले जहर खा लूँ। या यहाँ से कहीं भाग जाऊँ। पर बाहर जाता, तो घरवाले कहते कि आधी रात में अपनी जवान जोरू को छोड़कर कहाँ गया था।
कई सवाल करते मुझसे, इसलिए मैं चुपचाप रोता रहा और ये सब बर्दाश्त करता रहा। मेरे लण्ड से पानी टपकने लगा था। मैंने अपनी मुठ की रफ्तार बढ़ा दी। बड़े भैया मेरे लाइसेंस पर गाड़ी चला रहे थे। मेरा माल मेरे सामने खा रहे थे। वो मेरी जोरू के मम्मों को खूब मजे से मुँह चलाकर पी रहे थे। “चूसो भैया, और जोर से!” भावना अब चुदास में डूब चुकी थी। वो भूल गई थी कि जिसके साथ उसने सात फेरे लिए थे, वो एक किनारे कुर्सी पर बैठा रो रहा था और मुठ मार रहा था।
बड़े भैया ने उसकी दूसरी छाती अपने मुँह में भर ली और आँखें बंद करके पीने लगे। “उम्म्म… हाय, कितना मजा आ रहा है!” भावना सिसक रही थी। उधर मेरी जोरू भी आँखें बंद करके अपने मम्मे पिलाने लगी। मेरा लण्ड फटने को था। मैंने मुठ मारते हुए अपनी कमीज से पानी पोंछ लिया।
लगा कि दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हों। ये देखकर मेरी तो झाँटें लाल हो गईं। उधर बड़े भैया जहाँ मम्मे पी रहे थे, वहीँ उँगलियों से मेरी जोरू भावना की बाल-साफ चूत में उंगली कर रहे थे। “पच-पच!” चूत की गीली आवाज कमरे में गूँज रही थी। मेरी जोरू के भोंसड़े की कलियाँ मुझे साफ-साफ दिख रही थीं।
मेरी जोरू चुदासी होती जा रही थी। “हाय भैया, अब डाल दो ना!” भावना ने चुदास में कहा। फिर बड़े भैया ने मम्मे पीना बंद कर दिया। मेरी जोरू के दोनों पहलवानी पैरों को खोल दिया। भोंसड़े पर भैया ने लण्ड रखा और 2-3 बार प्यार भरी थपकी भोंसड़े के द्वार पर दी। बड़े भैया का लण्ड बॉक्सिंग खिलाड़ी खली के लण्ड की तरह विशाल और भयानक था।
“ऐ गाण्डू! आ इधर आ! आके देख कैसे नयी नवेली बहू की नथ उतारते हैं!” भैया बोले।
मैं रोते-रोते और मुठ मारते हुए उनके पास गया और खड़ा हो गया। मेरा लण्ड टपक रहा था। “देख, चिराग! अब तेरी जोरू की चूत का उद्घाटन होगा!” भैया हँसे।
“भावना! हल्का दर्द होगा, सह लेना बहू! बस चींटी-सी कटेगी, यही लगेगा!” भैया ने मेरी जोरू से कहा और धक्का दे दिया।
लण्ड बर्फ तोड़ने वाली मशीन की तरह, उनका विशाल लण्ड मेरी जोरू की बुर के होंठों को तोड़ता हुआ अंदर घुस गया। “आआह्ह! ऊउ!” भावना ने दर्द से चीख मारी और पलंग की चादर को हाथ में लेकर भींच लिया। “हाय! मर गई!” भावना की चीख निकली। भैया ने अपनी तोंद से एक और धक्का मारा, तो लण्ड ने मेरी जोरू की गाँड फाड़ दी। “गप-गप, ठप-ठप!” पलंग की आवाज गूँजने लगी।
“ले रानी, ले मेरी बहू! आज तेरी सील तोड़ दूँगा!” भैया गरजते हुए बोले। भावना के चेहरे पर दर्द और चुदास का मिश्रण था। “आआह्ह! धीरे भैया! मर जाऊँगी!” वो सिसकते हुए बोली। मैं वापस कुर्सी पर बैठ गया और मुठ मारने लगा। मेरे लण्ड से पानी निकल गया, पर मैं रुका नहीं।
“चिराग गाण्डू! अब समझ में आया मर्द होने का मतलब!” भैया हँसते हुए बोले।
अपनी जोरू की अपने सामने सील टूटते देख मैं रो पड़ा, पर मुठ मारना नहीं रुका। मेरा लण्ड फिर से तन गया। मैंने अपना सिर दोनों पैरों में छुपा लिया, पर चुपके से सब देख रहा था। बड़े भैया मेरी जोरू को तोंद हिला-हिलाकर पेलने लगे। “गप-गप, ठक-ठक!” पलंग की आवाज तेज हो गई। अब मेरी जोरू की गाँड फट गई थी। उसको असली मर्द मिल गया था।
“हूँ हूँ हूँ! ले, कितना लण्ड खाएगी! आज तुझे इतना लण्ड खिलाऊँगा कि एक ही बार में पेट से हो जाएगी, छिनाल!” चुदास में भैया उत्तेजक स्वर में बोले और मजे से ठक-ठक करके कूल्हे चलाकर मेरी जोरू को गपागप पेलते गए। “आआह्ह! ऊउउ! भैया, और जोर से!” भावना चीख रही थी। पलंग डाँवाडोल होने लगा, चरमराने लगा, लगा कहीं टूट न जाए।
“हाय, भैया! मेरी चूत फट रही है! आआह्ह!” भावना का बदन काँपने लगा। उसकी चूत से पानी निकल गया। “हाँ, बहू! पहला ऑर्गेजम तेरा!” भैया हँसे और और जोर से पेलने लगे। मैंने मुठ मारते हुए फिर पानी छोड़ा। मेरी कमीज गीली हो गई थी। शायद वो इसी तरह की गहरी चुदाई की उम्मीद कर रही थी। बड़े भैया ने क्या शानदार चुदाई की थी मेरी चुदासी जोरू की। “हच-हच!” गहरे धक्के मारते गए, उनको फिक्र नहीं थी कि पलंग टूटे चाहे रहे।
चोद-चोद कर बड़े भैया ने मेरी जोरू की चूत का हलवा बना दिया। मेरी जोरू “आएँ आएँ!” करने लगी। भैया ने चोदन करते-करते छिनाल की छातियों की काली भुंडियों को पकड़ लिया और बेरहमी से इतना तेज अपने नाखूनों से कुचला कि मेरी जोरू ने मूत मारा। “हाय! मर गई!” वो चीख पड़ी। “ले रंडी! अभी तो शुरू हुआ है!” भैया गुर्राए। मैंने फिर मुठ मारी और पानी छोड़ा।
बड़े भैया नहीं रुके, बिना कोई फिक्र किए गचागच पेलते गए। “आआह्ह! ऊउउ! और जोर से, भैया!” भावना अब चुदास में डूब चुकी थी। उस रात बड़ी तोंद वाले बड़े भैया ने मेरी जोरू को 4 घंटे पेला। फिर कुतिया बनाकर उसकी गाण्ड मारी। “गप-गप!” गाण्ड में लण्ड जाते ही भावना की चीख निकली, “हाय! मेरी गाण्ड फट गई!” वो चीख रही थी। “चुप, छिनाल! तेरी गाण्ड भी आज खोल दूँगा!” भैया ने कहा और गच-गच पेलते गए।
“आआह्ह! भैया, बस! हाय, मर गई!” भावना का बदन फिर काँपने लगा। उसकी गाण्ड से भी पानी निकल गया। “हाँ, बहू! दूसरा ऑर्गेजम!” भैया हँसे। मैंने मुठ मारते हुए चौथा पानी छोड़ा। मेरी जोरू की गाण्ड फट गई। वो चारों खाने चित हो गई।
5 घंटों के महाचोदन और पेलन के बाद बड़े भैया उठ खड़े हुए। “आआह्ह!” भैया का लण्ड फट पड़ा और उनका माल भावना की चूत और गाण्ड पर गिर गया। “ले, बहू! तेरा काम हो गया!” भैया हाँफते हुए बोले और पाजामा का नारा बाँधने लगे। “आ गाण्डू! तेरा काम कर दिया मैंने!” भैया मुझसे बोले और बाहर निकल गए।
मैंने दरवाजा बंद कर लिया। जाकर कुर्सी पर बैठकर रोने लगा। अपने बचपन के कुकर्मों पर बड़ा गिला हुआ। मेरी पैंट और कमीज मेरे ही माल से गीली थी। एक नजर अपनी जोरू की ओर देखा, छिनाल दोनों पैर खोलकर लेटी थी, उसकी चूत और गाण्ड से भैया का माल टपक रहा था। शायद उसे नींद आ गई थी। वो खुश और संतुष्ट लग रही थी। मैंने अपना सिर फिर से दोनों पैरों में डाल लिया और रोने लगा।
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