हैलो दोस्तों!मेरी नई कहानी में आपका स्वागत है। मेरा नाम निकिता है, और मैं दिल्ली की रहने वाली हूँ। एक सेक्सी हिंदू लड़की, जिसकी हाल ही में मुस्लिम लड़के समीर से शादी हुई है। मेरी हाइट 5 फुट 6 इंच है, दूधिया गोरी स्किन और 34-26-34 का परफेक्ट फिगर मेरी पहचान है।
निकिता का चुदाई ट्राइएंगल 2 – मेरी मुस्लिम शादी
मेरे उभरे हुए कर्व्स—गोल-मटोल बूब्स, पतली कमर और भरी हुई गांड—हमेशा मुझे सबसे अलग बनाते हैं। जब मैं शीशे में खुद को देखती हूँ, मेरे लंबे काले बाल मेरे कंधों पर लहराते हैं, और मेरे होंठों पर हल्की मुस्कान खिल जाती है—एक ऐसी मुस्कान, जिसे समीर अच्छे से समझता है।समीर मेरे बैल-शेप्ड बूब्स का दीवाना है।
“जब तू चलती है, तेरे बूब्स का उछाल और गांड का थिरकना मुझे पागल कर देता है,” वह अक्सर कहता।
मेरे गीले बालों को देखकर वह मेरे गालों को चूमता, मेरी नशीली आँखों में खो जाता, और मेरी मुलायम स्किन को सहलाते हुए कहता,
“तू मेरी हिंदू परी है।”
मैं जानती हूँ कि मैं हॉट भी हूँ और नॉटी भी। कॉलेज में समीर के साथ छिपकर किस करना, बिना पैंटी के उसकी बाइक पर बैठना—ये सब मेरे लिए रोमांच था। यह अहसास मुझे कॉन्फिडेंट बनाता है।शादी के बाद की दुनियामैं खुद को ओपन-माइंडेड मानती थी। लेकिन शादी के बाद समीर का घर मेरी सोच से कहीं आगे निकला। यह एक मुस्लिम परिवार था, जहाँ नंगापन और सेक्स को लेकर कोई हिचक नहीं थी। मेरी माँ ने शादी से पहले चेतावनी दी थी,
“निकिता, मुस्लिम लड़के से शादी करेगी तो उनकी हर बात माननी पड़ेगी। बुर्का पहनना पड़ेगा, उनकी औरतों की तरह रहना पड़ेगा।”
मैंने हँसकर कहा था,
“माँ, समीर ऐसा नहीं है। वो मॉडर्न है।”
लेकिन यहाँ आकर देखा तो बुर्के का तो सवाल ही नहीं था। यहाँ लोग रात को नंगे सोते थे, खुलेआम चुदाई करते थे, और सुबह नाश्ते की मेज़ पर पिछली रात की बातें हँसी-मज़ाक में शेयर करते थे।शादी के दिन मैंने लाल जोड़ा पहना था, मांग में सिंदूर भरा था, और गले में मंगलसूत्र डाला था—हमारी हिंदू रीति से हुई शादी की निशानियाँ। लेकिन समीर के परिवार ने इसे अजीब नज़रों से देखा। उसकी तलाकशुदा बहन जन्नत ने तंज कसा था,
“ये मंगलसूत्र यहाँ क्या काम आएगा? हमारे घर में तो प्यार और जिस्म ही सब कुछ है।”
मैं चुप रही। समीर ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा था,
“तू मेरी हिंदू बीवी है, लेकिन अब हमारी दुनिया में आ गई है।”
उसकी बातों में प्यार था, पर एक अनजाना डर भी।
चार दिन का तूफानशादी को कुछ ही दिन हुए थे। समीर के मम्मी-पापा चार दिनों के लिए गाँव गए थे। सुबह-सुबह वे निकल चुके थे, कुछ रिश्तेदार की तबीयत खराब होने की खबर थी। अब घर में सिर्फ मैं, समीर, उसका बड़ा भाई अबरार, छोटा भाई जाबिर, और उनका जीजा बचे थे।अबरार से मैं खुल चुकी थी। वह अपनी दो बीवियों—रेशमा और फातिमा—के साथ हमारे कमरे में सोता था। हर रात जब मैं समीर के साथ चुदती, अबरार की नज़रें मुझ पर टिकी रहतीं। उसकी बीवियों की चुदाई की आवाज़ें—
“आह… ऊह… अबरार, ज़ोर से!”—मेरे कानों में गूँजतीं।
पहले मुझे शर्मिंदगी होती थी, लेकिन अब आदत सी हो गई थी।जाबिर से बात कम होती थी। वह शर्मीला सा लगता, नज़रें चुराता, लेकिन जब मैं उसकी तरफ देखती, उसकी आँखों में एक शरारत झलकती—कुछ ऐसा जो मुझे अंदर तक बेचैन कर देता। मुझे नहीं पता था कि ये चार दिन मेरी ज़िंदगी में एक ऐसा तूफान लाने वाले थे, जो मेरी हिंदू पहचान और इस मुस्लिम परिवार की दुनिया के बीच की हर दीवार तोड़ देगा।रात का सरप्राइज़उस रात मैंने कुछ खास करने की ठानी। सोने से पहले मैं नहाने गई। बाथरूम में गर्म पानी की बूँदें मेरे जिस्म पर गिर रही थीं। मैंने अपने बालों में शैंपू लगाया, अपनी गोरी स्किन पर साबुन फेरा, और सोच रही थी कि आज समीर को कैसे चौंकाऊँ। मेरे मन में एक शरारत भरी योजना थी—मैं बाहर निकलूँगी तो सिर्फ तौलिया लपेटूँगी, कुछ ऐसा जो समीर को मेरे ऊपर टूट पड़ने को मजबूर कर दे।
आज कमरा सिर्फ हमारा था। अबरार और दोनों भाभियाँ मम्मी-पापा के बड़े रूम में सोने वाले थे। इसका मतलब था—कोई डिस्टर्बेंस नहीं, कोई रोक-टोक नहीं, बस मैं और समीर, पूरी रात अपनी मर्ज़ी से मज़े करते हुए।नहाने के बाद मैंने अपने गीले बालों को थोड़ा सँवारा। तौलिया मैंने जानबूझकर नीचे बाँधा, ताकि मेरे आधे बूब्स बाहर झाँकें। मेरी गहरी क्लीवेज साफ दिख रही थी, और मंगलसूत्र मेरे बूब्स के बीच लटक रहा था। पानी की बूँदें मेरे कंधों से होते हुए मेरे सीने पर टपक रही थीं। मैंने अपने होंठों पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक लगाई, अपनी आँखों में काजल डाला, और धीरे से दरवाज़ा खोला। मेरे नंगे पैरों की छम-छम फर्श पर गूँजी, लेकिन कमरा खाली था।”समीर?” मैंने हल्की आवाज़ में पुकारा।
मेरे गले में एक अजीब सी घबराहट थी। कोई जवाब नहीं आया। मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई। शायद वह पानी लेने किचन गया हो। मैं तौलिया संभालते हुए बाहर निकली। घर में सन्नाटा पसरा था, बस कहीं से हल्की-हल्की फुसफुसाहट की आवाज़ें आ रही थीं। मैंने अपने मंगलसूत्र को छुआ—यह मुझे मेरी माँ की याद दिला रहा था, जो इस शादी से खुश नहीं थी।किचन में टकरावकिचन के दरवाज़े पर पहुँची। अंधेरे में एक साया दिखा। मैंने आगे कदम बढ़ाया, तभी अबरार से टकरा गई। मैं चौंक पड़ी। तौलिया सरकने लगा, मैंने जल्दी से उसे पकड़ा।
“त-तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” मैंने हकलाते हुए पूछा, मेरी आवाज़ में घबराहट थी।अबरार की नज़रें मेरे जिस्म पर ठहर गईं। उसने एक गहरी साँस ली और हँसते हुए कहा,
“बस पानी लेने आया था, लेकिन तुझे देखकर लगता है अल्लाह ने आज कुछ खास इनाम दिया है।”
उसकी बातों में एक मुस्लिम लहजा था, जो मुझे हमेशा अजीब लगता था। उसकी आँखों में वही शरारत थी जो मैंने पहले कई बार देखी थी।इससे पहले कि मैं कुछ कहूँ, पीछे से किसी ने मुझे कसकर जकड़ लिया। मैं सिहर उठी। सिर घुमाया तो जाबिर था। उसका एक हाथ मेरे बूब्स पर था, दूसरा मेरे नंगे पेट पर। वह तौलिया नीचे खींचने लगा। उसकी उंगलियाँ मेरी स्किन पर गड़ रही थीं। अबरार मेरे उभरे बूब्स को ताक रहा था, और जाबिर पीछे से अपना सख्त लंड मेरी गांड पर रगड़ रहा था। मेरे शरीर में ठंडी सिरहन दौड़ गई। मेरे मंगलसूत्र की ठंडी चेन मेरे बूब्स पर चुभ रही थी।”शर्म नहीं आती? क्या कर रहे हो? चले जाओ, वरना शोर मचा दूँगी!” मैंने गुस्से से चिल्लाया, अपने आपको छुड़ाने की कोशिश की।अबरार ठहाका मारकर हँसा।
“शोर मचा ले, सबको बुला ले। हमारे घर में ये सब आम है। रोज़ तुझे समीर के साथ नंगी देखता हूँ, आज क्या नया है? और समीर को बुलाने की बात? ये सब उसी का प्लान है। बुलाऊँ उसे?”
उसकी आवाज़ में एक ढिठाई थी, जो मुझे चुभ गई।मैं सन्न रह गई। मेरी साँसें तेज़ हो गईं, दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। “क्या मतलब?” मैंने सोचा। तभी समीर किचन में आया। उसके होंठों पर हल्की हँसी थी।
“अरे निकिता, मज़े कर न। कौन सा रोज़ ऐसा मौका मिलता है? मैं मम्मी-पापा के कमरे में जा रहा हूँ। ये दोनों तेरे साथ हैं, आराम से इंजॉय करो।” उसने हल्के से हँसते हुए कहा।”क्या?” मैंने अविश्वास से उसकी तरफ देखा। मेरी आँखें गुस्से और दर्द से भर आईं।
“समीर, तू ऐसा कैसे कर सकता है? मैं तेरी बीवी हूँ, कोई खिलौना नहीं! ये क्या मुस्लिम तरीका है अपनी पत्नी का?” मेरी आवाज़ काँप रही थी। मेरे मन में माँ की बातें गूँज रही थीं— “उनकी संस्कृति अलग है, तू नहीं संभाल पाएगी।”समीर मेरे पास आया। उसने मेरे गाल पर हाथ रखा और कहा,
“अरे, हमारे यहाँ सब कुछ शेयर होता है—प्यार भी, मज़ा भी। तू मेरी हिंदू रानी है, लेकिन अब हमारी दुनिया में ढल जा। ये मंगलसूत्र उतार दे, यहाँ इसकी ज़रूरत नहीं।”
उसकी बातों में प्यार था, लेकिन एक अजीब सा दबाव भी। वह मुस्कुराया और चला गया।मेरा दिमाग सुन्न हो गया। क्या ये उनकी संस्कृति का हिस्सा था? मेरी हिंदू पहचान—मंगलसूत्र, सिंदूर—क्या यहाँ सब बेकार था? मैं शर्मिंदगी, गुस्से और डर के बीच फँस गई थी।बाथरूम का खेलजाबिर ने मेरी कलाई पकड़ ली और फुसफुसाया,
“हमेशा अकेले क्यों नहाती है? आज हम भी साथ नहाएँगे।”
उसकी आवाज़ में एक अजीब सा जोश था। इससे पहले कि मैं विरोध कर पाती, वे मुझे बाथरूम में खींच ले गए।अबरार ने दरवाज़ा बंद किया। उसने अपनी काली कुर्ती और पायजामा उतार दिया। उसका मज़बूत जिस्म नज़र आया। जाबिर ने भी अपनी टी-शर्ट और जींस फेंक दी। फिर जाबिर ने मेरा तौलिया एक झटके में छीन लिया। मैं नंगी खड़ी थी। मंगलसूत्र मेरे बूब्स के बीच लटक रहा था, मेरे गले में ठंडा-ठंडा लग रहा था। मैंने अपने हाथों से बूब्स और चूत को ढकने की कोशिश की। शर्मिंदगी से मेरा चेहरा लाल हो गया।”ये गलत है,” मैंने कमज़ोर आवाज़ में कहा।
समीर की बात मेरे दिमाग में गूँज रही थी— “हमारे यहाँ सब कुछ शेयर होता है।”जाबिर मेरे पास आया। उसने मेरे बूब्स को ज़ोर से दबाया और अपने मुँह में ले लिया।
“आह… क्या रसीले बूब्स हैं तेरे! ये हिंदू गोरी चमड़ी का कमाल है,” वह चूसते हुए बोला।
उसकी जीभ मेरे निप्पल्स पर गोल-गोल घूम रही थी। मेरे शरीर में एक अजीब सी गर्मी फैलने लगी।अबरार पीछे आया। उसने अपने 8 इंच लंबे और 4 इंच मोटे लंड को मेरी गांड पर सटाया।
“क्या सॉफ्ट, गोरी गांड है! अल्लाह की देन है तू,” वह ज़ोर-ज़ोर से रगड़ते हुए बोला।
उसकी गर्मी मेरे जिस्म में उतर रही थी। उसने मेरे कूल्हों को मसला, जैसे कोई मालिक अपने माल को परख रहा हो।जाबिर ने शॉवर चालू कर दिया। ठंडा पानी हम तीनों पर गिरने लगा। मेरे गीले बाल मेरे चेहरे और पीठ पर चिपक गए। अबरार पीछे से मेरे शरीर से चिपका था, उसका लंड मेरी गांड के बीच फिसल रहा था। जाबिर मेरे सामने खड़ा होकर मेरी तरफ बढ़ रहा था। उसका लंड मेरी चूत को छूआ। मैं पीछे हटी, तो अबरार का लंड मेरी गांड में और दब गया। मैं उनके बीच सैंडविच हो गई थी।उन्होंने साबुन लिया और मेरे जिस्म पर रगड़ना शुरू किया। अबरार के हाथ मेरी गांड और जाँघों पर फिसल रहे थे। उसने कहा,
“हमारे यहाँ बीवी का मज़ा सब लेते हैं। तुझे भी आदत हो जाएगी।”
जाबिर मेरे बूब्स और पेट को सहला रहा था। उसने मेरे मंगलसूत्र को छूकर कहा,
“ये अब उतार दे, निकिता। अब तू हमारी हो गई है।”मेरे मन में उलझन थी। क्या ये सचमुच उनकी मुस्लिम संस्कृति थी? या समीर का कोई खेल? मेरी माँ की बातें याद आ रही थीं— “तुझे उनकी हर बात माननी पड़ेगी।” लेकिन मेरे शरीर में एक अजीब सा रोमांच भी जाग रहा था।
“अगर समीर को परवाह नहीं, तो मैं क्यों शर्माऊँ?” मैंने खुद से कहा।मैंने साबुन लिया और उनके लंड पर रगड़ा। जाबिर का लंड मेरे हाथ में सख्त हो गया, अबरार का मेरी उंगलियों में थरथराने लगा। मैंने उनकी छाती और जाँघों पर भी साबुन फेरा। पानी की बूँदें हमारे जिस्मों पर नाच रही थीं। अबरार ने मेरे बाल पकड़े और मेरे चेहरे को अपने पास खींचा।
“तू सचमुच जन्नत की हूर है,” उसने कहा।
हम तीनों नहाते हुए एक-दूसरे को छूते रहे।चुदाई का तांडवनहाने के बाद वे मुझे बाहर ले आए। अबरार ने मुझे फर्श पर लिटा दिया। मेरे गीले बाल फैल गए, मेरा नंगा जिस्म ठंडे फर्श पर सिहर रहा था। मंगलसूत्र मेरे बूब्स के बीच हिल रहा था। अबरार मेरे बूब्स पर झुका और उन्हें चाटने लगा। उसकी जीभ मेरे निप्पल्स पर गोल-गोल घूम रही थी। उसने मेरे मंगलसूत्र को एक तरफ सरकाया और कहा,
“ये हिंदू चीज़ यहाँ अच्छी नहीं लगती।”जाबिर मेरी टाँगें फैलाकर मेरी चूत पर जीभ फेरने लगा। उसकी गर्म साँसें मेरे अंदर तक सनसनी पैदा कर रही थीं। मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं—
“आह… ऊह… आह्ह!”
मैं रोकना चाहती थी, लेकिन मेरा शरीर मेरे बस में नहीं था।अबरार मेरी जाँघों पर चढ़ गया। उसका मोटा लंड मेरी चूत पर रगड़ने लगा, जैसे कोई जानवर अपने शिकार को सूँघ रहा हो। उसने मेरे पेट पर हाथ फेरा और कहा,
“तेरी गोरी चमड़ी हमारे लंड को और गर्म कर देती है।”जाबिर ने मेरे पैर पकड़े और एक झटके से फैला दिए। अबरार ने अपना लंड मेरी चूत में धीरे-धीरे घुसाना शुरू किया। पहले 2 इंच, फिर रुक गया। उसने बाहर निकाला और एक ज़ोरदार झटके के साथ 4 इंच अंदर डाल दिया। मैं चीख पड़ी,
“आह्ह!”
मेरे अंदर सनसनी फैल गई।जाबिर मेरी छाती पर चढ़ा। उसने अपने लंड को मेरे रसीले बूब्स के बीच रखा और दोनों तरफ से दबाकर रगड़ने लगा। मेरे बूब्स उसकी हरकत से हिल रहे थे।
“मुझे इसकी गांड चाहिए,” जाबिर बोला।अबरार लेट गया, उसने अपना लंड सीधा पकड़ा। मैं उसके ऊपर बैठी और धीरे-धीरे उसका लंड अपनी चूत में लिया। मेरी गांड ऊपर उठी। जाबिर पीछे आया, उसने मेरी सॉफ्ट गांड पर हाथ फेरा और अपना लंड मेरे छेद पर सटाया। उसने कहा,
“तेरी हिंदू गांड को आज मुस्लिम लंड की आदत डाल देंगे।”उसने धीरे-धीरे अंदर घुसाना शुरू किया। मैं चीखी,
“नहीं… आह्ह!”
लेकिन अबरार ने मुझे नीचे से कसकर पकड़ा और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उसकी जीभ मेरे मुँह में घूमने लगी, और उसके हाथ मेरे बूब्स को मसल रहे थे। जाबिर ने एक झटके में अपना लंड मेरी गांड में डाल दिया। दर्द और मज़े का मिश्रण मेरे पूरे शरीर में फैल गया।दोनों मुझे एक साथ चोद रहे थे—अबरार मेरी चूत में, जाबिर मेरी गांड में। मैं उनकी कठपुतली बन गई थी। मेरे बूब्स हवा में उछल रहे थे, मेरी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। अबरार ने मेरे मंगलसूत्र को खींचकर फेंक दिया और बोला,
“अब तू पूरी हमारी हो गई।”थकान के बाद मैं नंगी उठी। मेरे पैर काँप रहे थे। मैं किचन गई, वहाँ से खाना लाई। हम तीनों ने साथ बैठकर खाया। खाने के बाद समीर कमरे में आया।
“कैसा रहा मज़ा, निकिता? मेरी हिंदू रानी ने इन मुस्लिम शेरों को थका दिया न?” उसकी हँसी में गर्व था।मैंने गुस्से से उसकी तरफ देखा।
“ये क्या तरीका है, समीर? मेरी माँ सही थी—तुम लोग मुझे अपनी तरह ढालना चाहते हो। ये शादी नहीं, कोई सौदा है क्या?” मैंने सवाल किया।वह हँसा,
“अरे, हमारे घर में ये सब नॉर्मल है। तू मेरी बीवी है, लेकिन मेरे भाई भी तो फैमिली हैं। हमारे यहाँ सब शेयर करते हैं।”
उसकी बातों में ढिठाई थी। मैं चुप रही, लेकिन मेरा मन उलझन में डूब गया।जाबिर ने मुझे कमर से पकड़ा और घुटनों पर बैठा दिया। मैं डॉगी स्टाइल में आ गई। मेरे हिप्स फैल गए। उसने अपना लंड मेरी गांड पर सटाया और ज़ोर-ज़ोर से रगड़ने लगा। अबरार मेरे सामने आया, उसने अपना लंड मेरे मुँह में डाल दिया। मैं उसे चूसने लगी। जाबिर ने मेरे झूलते बूब्स को दबाया और अपना लंड मेरी गांड में घुसा दिया।”आह्ह… ऊह…” मेरी सिसकारियाँ अबरार के लंड से दबी हुई थीं।
अबरार मेरे मुँह में झड़ गया, उसका गर्म पानी मेरे गले में उतर गया। जाबिर ने मेरी गांड पर अपना पानी छोड़ दिया और उसे मेरे कूल्हों पर फैला दिया।रात के 3 बज चुके थे। हम तीनों थककर चूर थे। फिर से शॉवर लिया—गर्म पानी के नीचे हम नंगे खड़े थे। इसके बाद फर्श पर नंगे ही सो गए। जाबिर ने मेरी एक जाँघ अपने पैरों में दबाई, अबरार ने दूसरी। उनके लंड मेरे जिस्म से चिपके थे।तेल का खेलसुबह मैं मैक्सी पहनकर उठी। चाय बनाई, हम सबने साथ पी। समीर ऑफिस चला गया। दिन में अबरार और जाबिर मेरे पास आए। अबरार ने मेरी मैक्सी के ऊपर से मेरे बूब्स दबाए, जाबिर ने मेरी जाँघों पर हाथ फेरा।
“अभी और मज़ा बाकी है,” अबरार ने कहा।दोपहर को हम कमरे में गए। मैंने मैक्सी उतारी और नंगी लेट गई। वे तेल की बोतल लाए। अबरार ने मुझे उल्टा लिटाया और मेरी पीठ पर तेल डाला। उसका हाथ मेरी कमर से होते हुए मेरी गांड तक गया। उसने मेरे कूल्हों पर तेल रगड़ा, मेरी गांड को मसलने लगा।
“क्या मुलायम है,” वह बड़बड़ाया।
फिर उसने मेरी जाँघों पर तेल फैलाया, उसकी उंगलियाँ मेरे अंदर तक पहुँच रही थीं।जाबिर ने मुझे सीधा किया। उसने मेरे बूब्स पर तेल डाला और मसाज शुरू की। उसकी उंगलियाँ मेरे निप्पल्स को छू रही थीं, मेरे बूब्स तेल से चमक रहे थे।
“आह… कितना मज़ा आ रहा है,” मैंने सोचा।
फिर वह नीचे आया, मेरी चूत पर तेल डाला और अंदर-बाहर उंगलियाँ फेरने लगा। मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं।मैंने भी उनकी मालिश की। अबरार का लंड मेरे हाथों में सख्त हो गया, जाबिर का थरथराने लगा। जाबिर मुझे चिपकाकर चूमने लगा, उसने अपना लंड मेरी चूत में डाला और अंदर-बाहर करने लगा। अबरार पीछे से मेरी गांड पर लंड रगड़ रहा था। हम तीनों तेल से लथपथ थे। लाइट ऑफ कर हम सो गए।शाम को उठी। अबरार मेरे दाएँ बूब को नींद में दबा रहा था, जाबिर ने मेरी चूत में उंगली डाली हुई थी और बाएँ बूब को मुँह में लिए सोया था। मैं उनके बीच लेटी थी। अगले दो दिन यही चलता रहा—कभी बाथटब में सेक्स, कभी बूब्स चूसना, कभी लंड रगड़ना।सस्पेंस और अंततीसरे दिन दोपहर को अचानक दरवाज़े की घंटी बजी। मैं चौंकी। मैक्सी डालकर बाहर झाँका। मम्मी-पापा वापस आ गए थे। मेरे हाथ-पैर ठंडे पड़ गए।
“ये लोग तो चार दिन बाद आने वाले थे,” मैंने सोचा।
क्या वे कुछ शक करेंगे?अबरार और जाबिर हड़बड़ाकर कपड़े पहनने लगे। मैंने जल्दी से कमरा ठीक किया। मम्मी-पापा अंदर आए। मम्मी ने मुझे देखा, उनकी नज़रें मेरे गीले बालों और मैक्सी पर ठहर गईं।
“तू ठीक है न, निकिता?” उन्होंने पूछा।
फिर उनका ध्यान फर्श पर पड़े मंगलसूत्र पर गया।
“ये यहाँ क्या कर रहा है? तूने इसे क्यों उतारा?” उनकी आवाज़ में शक था।मैंने हड़बड़ाते हुए कहा,
“हाँ, मम्मी… बस नहाते वक्त उतार दिया था।”
लेकिन मेरे चेहरे की घबराहट छिप नहीं रही थी। पापा ने अबरार और जाबिर को देखा, जो अभी तक पूरी तरह कपड़े नहीं पहन पाए थे।
“ये लोग यहाँ क्या कर रहे हैं?” पापा ने सख्ती से पूछा।शाम को समीर ऑफिस से लौटा। उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी। वह मेरे पास आया, मेरे कंधे पर हाथ रखा और धीरे से बोला,
“क्या हुआ, निकिता? डर गई?” उसकी हँसी में कुछ छिपा था।”तूने ये सब क्यों किया, समीर?” मैंने उससे सवाल किया। मेरी आवाज़ में गुस्सा था।
“क्या ये तुम्हारी मुस्लिम संस्कृति है, या मेरी हिंदू पहचान को मिटाने का खेल?”वह चुप रहा, बस मुस्कुराता रहा। फिर फुसफुसाया,
“अभी तो खेल शुरू हुआ है। मम्मी-पापा को कुछ पता चला तो मज़ा आएगा।”उसकी बात ने मुझे और उलझन में डाल दिया। क्या यह उसका कोई नया खेल था? क्या उसे सब पता था? या फिर मेरी हिंदू पहचान और इस मुस्लिम परिवार के बीच का टकराव अब खुलकर सामने आने वाला था?