ऋचा मेरी बेहतरीन सहेलियों में से है. हम दोनों न सिर्फ क्लासमेट हैं बल्कि हमारी पसंद, शकल-सूरत और ऊँचाई भी एक सी है. हम दोनों के दूसरे की सेक्स-मित्र भी हैं. यह भी बता दें की हमारी ब्रा का साइज भी एक ही है– 32 में बड़ावाला.
चूत के मामले में मैं थोड़ी भारी पड़ती हूँ. मेरी चूत का आकार ऋचा के मुकाबले बड़ा है.
ऋचा के पापा, हरीशजी, हमारे अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर भी हैं. वे शुरू से ही मुझ पर कामुक नीयत रखते थे. वे कई बार इशारे में मुझे सेक्स का न्योता भी दे चुके थे.
एक दिन उन्होंने एकांत पा करके मुझे अचानक भींच लिया. पहले एक हाथ से मेरे बूब्स को मसला फिर मेरे होठों को भी चूसने लगे.
हालाँकि मैं उन्हें ताउजी कहती हूँ, फिर भी अगर वे मुझसे सेक्स करना चाहते थे तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं थी. मैंने भी उन्हें बराबर की टक्कर दी. मैंने उनके पैंट की जिप खोल करके पहले उनका लंड हाथ में लिया और बाद में मुंह में लेकर तब तक खेलती रही जब तक वे झड़ नहीं गए. मेरे मुंह में ही.
तबसे वे मेरे दीवानों में शामिल हैं. आखिर मैं जवान और सेक्स के लायक हूँ. कोई मुझे न चोदना चाहे तो मेरे लिए शर्म की बात होती है.
वैसे भी, मैं नए, कमसिन लौंडों बजाय उमरदराज लोगों की फ़िराक में अधिक रहती हूँ. सेक्स के लिए मुझे या तो लड़कियां या फिर बुजुर्ग हीं पसंद हैं.
एक दिन मैं उनके साथ अकेले में बैठ कर उनके लंड को सहला रही थी. वे मजे के मारे छटपटा रहे थे. तभी मुझे ख्याल आया कि उनकी बिटिया, ऋचा, ने आज तक किसी मर्द का मजा नहीं लिया है. हालाँकि उसकी चूत कुंआरी नहीं है.
उसने मेरे सेक्स खिलौनों का स्वाद खूब लिया है. कई प्रकार के कृत्रिम लंड उसके चूत में जाने कितनी बार समा चुके हैं. मेरी उँगलियाँ और जीभ तो उसकी चूत में डली ही रहती हैं. इनसे उसका काम चलता रहता है.
फिर भी, मर्द तो मर्द ही होता है. उसको अभी तक असली लंड नहीं मिला था.
मैंने अचानक ही हरीशजी से पूछ लिया- ताउजी, मैं आपकी बिटिया जैसी नहीं लगती हूँ क्या?
बिलकुल, बेटा! ताउजी ने शरारती अंदाज में कहा- तुम मेरी बेटी हो और मैं बेटीचोद.
मैंने ताऊ के लंड पर कार्रवाई तेज कर दी. उन्हें जब और भी मजा आने लगा तो मैंने फिर पहले की ही तरह अचानक ही प्रश्न किया- आपने कभी ऋचा को चोदा है?
वे सकपका गए. फिर धीरे से बोले- नहीं तो!
फिर बेटीचोद कैसे? मैंने बात आगे बढ़ाई .
ताउजी समझ गए कि मैं क्या कहना चाहती हूँ.
उन्होंने बात को सम्हालते हुए सफाई दी- असल में यह विचार कभी मेरे मन में आया ही नहीं. हमारे यहाँ ऐसा माहौल भी नहीं है. फिर ऋचा ने भी तो कभी कोई इशारा तक नहीं दिया है.
मैं बोली-तो क्या वह हाथ में बैनर लेके आये कि पापा मुझे चोद दो?
अब ताउजी तय नहीं कर पा रहे थे की क्या कहें. बस मेरी तरफ देखते रहे.
मैं धीरे से उनके लंड पर चढ़ने लगी. जब उनका लंड मेरी चूत में पूरी तरह से घुस गया तो वे झटके देने की कोशिश करने लगे. मैं मजे लेते हुए बात को आगे बढ़ाने लगी.
मैंने कहा कि ऋचा को पता है कि ताईजी के साथ आपका सेक्स जीवन करीब-करीब खत्म सा है. वे अब सेक्स में कोई रुचि नहीं लेतीं. ऋचा को इस बात का अफ़सोस भी है क्योंकि वह जानती है कि आप आज भी सेक्स में रुचि रखते हो. आपको सेक्स की जरूरत है.
उसे यह भी पता है कि आप मेरे से सेक्स करते हो. मुझे चोदते हो.
ताउजी झुंझला के बोले- तो क्या इसी वजह से मैं अपनी बिटिया को चोद दूं?
मैंने अगला प्रश्न किया- तो फिर मुझे क्यों चोदते हो? मैं आपकी बिटिया जैसी नहीं हूँ क्या?
ताउजी निरुत्तर हो गए. मैं जानती थी वे मेरे बारे में कोई कठोर वचन कढ़ा के मुझे खोने की जोखिम नहीं ले सकते थे.
थोड़ी देर तक मैं उनके लंड पर उछलती रही. जब मुझे लगा कि वे झड़ जायेंगे तो मैं हट गयी और उनका लंड अपने मुंह में ले लिया. उन्हें ज्यादा मजा आने लगा था.
वे हमेशा ही मूड बनाने के लिए ऐसा ही करते थे. मुंह में दिए बगैर वे पूरे मन से चोद नहीं पाते थे.
मैंने अपनी एक ऊँगली उनके गांड में भी डाल दी. यह उनकी दूसरी पसंदीदा स्टाइल थी.
गांड में ऊँगली डालते ही किसी के लंड को खड़ा होते मैंने पहले न तो देखा, न सुना था. लेकिन ताउजी तो ऐसे ही गरम होते थे.
उन्होंने मेरे बालों को पकड़ लिया और अपने लंड को मेरे मुंह में भीतर तक धकेलने लगे.
जब पूरी तरह गरम हो लिए तो वे अपनी शर्ट उतारने लगे. मुझसे भी कहा कि अब मैं भी अपने कपड़े उतार दूं. मैं उनके लंड की चुसाई छोड़ के अपने कपड़े उतारने लगी. हरीशजी तो पहले ही नंगे हो चुके थे. जब मैं बिलकुल ही नंगी होकर उनके खड़े लंड पर दुबारा चढ़ने लगी तो मैंने अचानक पूछ लिया- ऋचा को बुलवाऊं क्या?
ताउजी शेखी मारने के अंदाज में बोले- अब किसी को भी बुलवा लो. उसीको चोद दूंगा. मैं ऋचा तो क्या उसकी सारी सहेलियों को भी चोद दूं. पर वह चुद्वाए तो सही.
थोड़ी ही देर में मैंने उछल-उछल कर ताउजी को झटके देने शुरु कर दिए. जब वे झड़ने ही वाले थे तभी मैंने उनको अपने ऊपर कर लिया. एक चीख सी मारते हुए उन्होंने हमेशा की तरह अपना ढेर सारा मॉल मेरी चूत में निकल के मुझे तर कर दिया.
जब वे पस्त होकर पीछे हटे तो मैं भी उनसे अलग होकर ऋचा को अपनी मोबाइल से काल मिलाने लगी.
वे उलझन में पड़ गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हुआ और क्या हो रहा है.
उन्होंने पूछा- अचानक किसे फोन करनी की जरूरत पड़ गयी?
मैंने जबाब दिया- ऋचा को. मैं उसे बुला रही हूँ.
ताउजी उलझन भरी नजरों से मुझे देखते रहे. ऋचा को काल करने के बाद मैं वापस ताऊ के लंड को सहलाते हुए उस पर चढ़ने लगी. मैंने गौर किया कि कुछ तो मुझे अभी-अभी चोद के फ्री होने के कारण और कुछ ऋचा का नाम सुन कर ही उनका लंड ढीला पड़ गया था.
उन्होंने थोड़ा नर्वस अंदाज में पूछा- ऋचा आ रही है क्या?
मैं बोली- वह यहीं है और हमें चुदाई करते हुए देख के गयी है.
ताऊ का मुंह खुला का खुला रह गया.
तभी ऋचा कमरे में आ गयी.
मैं वापस ताऊ के लंड से लग गयी. उसे मुंह में लेकर चूसने लगी. धीरे-धीरे वे मूड में आने लगे.
मैंने ऋचा को कपड़े उतारने का संकेत किया और ताउजी के गांड में एक बार फिर ऊँगली डाली.
ऋचा की नंगी जवानी और उठी हुयी जबरदस्त चूचियों को देख के वे सन्न रह गए.
मेरे अलग हट जाने से उनका लम्बा लेकिन लटका हुआ लंड अब हम दोनों के साफ सामने था. ऋचा बड़ी हसरत से उसे देख रही थी.
मैंने आगे बढ़ के उसे सहलाना शुरू कर दिया. वे अब एक बार फिर तुरत ही टन्न हो गए. तब मैंने उनका लंड तो हाथ में पकड़े रखा लेकिन थोड़ा पीछे हटते हुए ऋचा को चार्ज दे दिया.
‘आ मेरी बुलबुल. अपने पापा पे चढ़ जा.’
ऋचा ने बिना झिझक मेरे हाथ से अपने बाप का लंड ले लिया और उसे चूसने की तैयारी करने लगी. वह अपने घुटनों के बल बैठ गयी और बड़ी सफाई से हरीशजी के लंड को चूसने लगी. मैं उसके पीछे बैठ कर उसके मस्त कूल्हों को सहलाती रही.
थोड़ी देर में मैंने उसकी चूत की खबर लेने के लिए अपनी हथेली को वहां फिराया. सब कुछ गीला-गीला सा हो रहा था.
अब मैं खड़ी हो गयी और पीछे से ही ऋचा को उसके जांघों से पकड़ के उठाते हुए उसके बाप के लंड पर धर दिया.
मेरा निशाना सही नहीं था.
हरीशजी का लंड चूत में नहीं गया. तब ऋचा ने खुद अपने हाथ से अपने बाप का लंड सेट किया और एक जोर का धक्का दिया.
एक ही बार में गच्च से हरीशजी का लंड ऋचा चूत में समा गया.
मजे के मारे ऋचा चीख पड़ी- अह! मैं मरी रे बबिता. तू किधर है?
मैं तो वहीँ थी.
हरीशजी ने अब सारी झिझक छोड़ के ऋचा को पटक लिया और उसके ऊपर चढ़ के उसे पूरी ताकत से चोदना शुरु कर दिया. ऐसा लग रहा था मानो वे कोई खुन्नस सी निकाल रहे हों.
अभी थोड़ी ही देर पहले वे झड़ के अलग हुए थे. इसलिए काफी देर तक वे मजे लेकर ऋचा को चोदते रहे. उन्होंने ऋचा को बुरी तरह से पस्त लेकिन मजे में मस्त करके ही छोड़ा.
फिर हम तीनों ने एक साथ चाय पी और कोई डेढ़ घंटे बाद मैंने हरीशजी से दुबारा चुदवाया. अबकी बार ऋचा हमारे पास में बैठी रही.
जब मैं अपने हास्टल को चलने लगी तो मैंने ऋचा को उसके चूचियों से पकड़ कर दबाया और होठों पर जोर से चूमते हुए कहा- मेरी बुलबुल, अब तो हर रात तेरी हसीन रात है. मजे से पापा से चुदाया कर.
चूत नाईट एंड गुड बाय!
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