राजू से मेरी पहली चुदाई

Virgin girl sex story: मैं, नेहा वर्मा, अपनी जिंदगी का पहला चुदाई का अनुभव तुम्हारे सामने पेश कर रही हूँ। उस वक्त मैं बी.ए. के दूसरे साल में थी। सहेलियों की चटपटी बातें सुन-सुनकर मेरा भी मन लड़कों की तरफ खिंचने लगा था। उनकी चुलबुली हरकतें, चुदाई की कहानियाँ सुनकर मैं भी सोचती थी कि मैं कब ऐसे मजे लूँगी। धीरे-धीरे मैंने खुद को संवारना शुरू किया। मेकअप, टाइट कपड़े, सब कुछ ट्राई करने लगी। जब मैं कॉलेज में टाइट पैंट पहनकर जाती, तो मेरे चूतड़ों की गोलाई इतनी मादक लगती कि लड़के चोरी-छिपे मुझे घूरते। उनकी नजरें मेरी गांड पर टिक जातीं, और मुझे ये देखकर अजीब सा मजा आता। जीन्स में मेरा फिगर उतना उभरता नहीं था, लेकिन पैंट में मेरे कर्व्स ऐसे चमकते कि हर कोई ठहरकर देख ले। मैं जानबूझकर ऐसे कपड़े चुनती, ताकि लड़कों को उकसाऊँ। मन में एक आग सी जल रही थी—सब सहेलियाँ चुदाई के मजे ले रही थीं, और मैं बस उनकी बातें सुनकर तड़प रही थी।

हमारे कॉलेज में एक नए कंप्यूटर टीचर आए थे, जिनका नाम था राजू। वो इतने स्मार्ट और हैंडसम थे कि मैं उन्हें देखकर पिघल जाती। उनके बाल हवा में लहराते, तो मैं बस खो जाती। उनकी मुस्कान, उनका स्टाइल, सब कुछ मुझे पागल कर देता। मैं जानबूझकर उनके आसपास रहने की कोशिश करती। वो मुझे राजू सर कहलवाते थे, और मैं उनकी हर अदा पर फिदा थी। मुझे लगता था कि वो मेरी अदाओं को समझते हैं, पर कुछ बोलते नहीं। उनकी चोरी-छिपे नजरें मेरे उभरे हुए बूब्स और चूतड़ों पर टिकती थीं। मैंने सोचा, बस थोड़ी सी मेहनत और, ये सर मेरे जाल में आ ही जाएंगे।

एक दिन मैंने हिम्मत जुटाई और उनसे कहा, “सर, मैं आपसे ट्यूशन पढ़ना चाहती हूँ। क्या आप मुझे कंप्यूटर सिखाएंगे?”
उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “हाँ, क्यों नहीं? अपने पापा से बात कर लो।”
मैंने तुरंत कहा, “पापा ने ही तो सुझाया है।”
“कब से शुरू करें?” उन्होंने पूछा।
“कल से, सुबह 8:30 बजे,” मैंने उत्साह से कहा।
“ठीक है, नेहा। थैंक यू,” वो बोले, और मेरे दिल में लड्डू फूटने लगे।

अगले दिन मैंने पूरी तैयारी कर ली। मैंने एक छोटी सी स्कर्ट पहनी, जो इतनी टाइट थी कि मेरे चूतड़ों की हर गोलाई साफ दिखे। अंदर मैंने एक छोटी सी पैंटी पहनी, जो झुकने पर मेरी गांड को मुश्किल से ढक पाती थी। ऊपर मैंने ढीला सा टॉप चुना, जो इतना पारदर्शी था कि मेरे बूब्स का आधा हिस्सा झांकता रहता। टॉप का गला इतना गहरा था कि जरा सा झुकने पर मेरे कठोर निप्पल तक नजर आ जाएं। मैंने खुद को शीशे में देखा और सोचा, “नेहा, आज राजू सर का दिल जीत ही लेगी।”

ठीक 8:30 बजे राजू सर घर आए। पापा ने उनसे थोड़ी बात की और मुझे बैठक में बुला लिया। पापा-मम्मी ऑफिस जाने की तैयारी में लग गए। जैसे ही राजू सर ने मुझे देखा, उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं। मेरी स्कर्ट, मेरे बूब्स, मेरी नंगी जांघें—वो सब कुछ घूर रहे थे। मैंने उनकी नजरों को पकड़ा और मन ही मन मुस्कुराई। मेरा तीर निशाने पर लग चुका था।

मैंने मासूमियत से पूछा, “सर, आज कहाँ से शुरू करें?”
वो हड़बड़ाते हुए बोले, “हाँ… हाँ, बैठो। पहले अपनी बुक ले आओ।”
मैं जानबूझकर बुक लेकर आई और टेबल पर उसे “गलती से” गिरा दिया। फिर मैंने धीरे से झुककर उसे उठाया, इस तरह कि मेरे चूतड़ राजू सर की तरफ हों। मेरी छोटी सी पैंटी और गांड की गोलाई उनकी आँखों के सामने थी। मैंने तिरछी नजर से देखा—वो मेरी गांड को ही घूर रहे थे। उनके माथे पर पसीना छलक आया। मैंने बुक टेबल पर रखी और उनकी पैंट की तरफ देखा। उनका लंड साफ उभर रहा था, और वो उसे छिपाने की कोशिश कर रहे थे। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।

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फिर वो मुझे कंप्यूटर के पास ले गए और बोले, “अब प्रैक्टिकल सिखाता हूँ। इस स्टूल पर बैठो।”
मैंने छोटे से गोल स्टूल पर बैठते हुए अपनी गांड थोड़ी पीछे की, ताकि मेरी स्कर्ट और ऊपर चढ़ जाए। वो कंप्यूटर पर कुछ समझाने लगे, लेकिन उनकी नजरें बार-बार मेरे बूब्स पर अटक रही थीं। मैंने जानबूझकर टॉप को थोड़ा और नीचे खिसकाया, ताकि मेरे निप्पल का उभार साफ दिखे। वो समझ गए कि मेरा ध्यान पढ़ाई पर नहीं, बल्कि उन पर है। उनकी साँसें तेज होने लगीं। अचानक उन्होंने अपनी जांघ से मेरे चूतड़ों को छूना शुरू किया। मैं सिहर उठी। उनका स्पर्श मेरे बदन में आग लगा रहा था।

वो अब मेरे हाथ पर हाथ रखकर कीबोर्ड और माउस चलाने लगे। उनकी उंगलियाँ मेरी बाँहों को सहला रही थीं। मैंने देखा कि वो मेरे टॉप के अंदर झाँक रहे हैं, मेरे बूब्स को निहार रहे हैं। मैंने और झुककर उन्हें पूरा मौका दिया। उनका लंड अब पूरी तरह खड़ा था और वो उसे मेरे कंधे पर रगड़ने लगे। मैंने भी हल्के से अपना कंधा दबाया, ताकि उनका लंड और भिंच जाए। उनके मुँह से एक हल्की सी “आह” निकल गई। मेरा बदन रोमांच से काँपने लगा।

तभी पापा की आवाज आई, “नेहा, हम ऑफिस जा रहे हैं। कॉलेज जाओ तो घर अच्छे से बंद करना।”
मैं उठकर खिड़की पर गई और पापा-मम्मी को कार में जाते देखा। अब घर में सिर्फ मैं और राजू थे। ये सोचकर मेरी धड़कनें बेकाबू हो गईं। राजू भी खिड़की पर आ गया। वो मुझे गहरी नजरों से देख रहा था। उसकी आँखों में वासना साफ झलक रही थी। मैंने सोचा, मौका है, इसे जाने मत दे। लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी।

राजू मेरे पास खड़ा होकर बाहर झाँकने लगा। उसका एक हाथ धीरे से मेरे चूतड़ों पर आ गया। उसने हाथ नहीं हटाया। मैंने सोचा, “हाय, ये तो मेरे चूतड़ दबाने वाला है!” मैं रोमांच से भर उठी। मैंने उसकी तरफ मुस्कुराकर देखा। उसने भी नजरें मिलाईं और धीरे-धीरे मेरे चूतड़ों को सहलाने लगा। उसका स्पर्श मेरे बदन में बिजली दौड़ा रहा था। मैं चुप रही, बस उसे करने दिया। मेरी इच्छा थी कि वो और जोर से दबाए।

अचानक उसने मेरी स्कर्ट में हाथ डालकर मेरे एक चूतड़ को कसकर पकड़ लिया। मैंने प्यार भरी नजरों से उसकी तरफ देखा। वो और पास आया। हमारी नजरें एक-दूसरे में डूब गईं। उसने मुझे खिड़की से खींचकर अंदर ले लिया। मैं उसकी बाहों में समा गई। उसने धीरे से कहा, “नेहा, अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा।”
उसने अपने गर्म होंठ मेरे नरम होंठों पर रख दिए। उसका चुम्बन इतना गहरा था कि मैं खो सी गई। मैंने भी अपनी अदाएँ दिखाईं और बनावटी शर्मिंदगी से कहा, “सर, ये क्या कर रहे हैं? छोड़ो ना… शर्म आ रही है।”
लेकिन उसने मेरी बात अनसुनी की और अपनी बाँहें मेरी कमर में डालकर मेरे चूतड़ों को जोर-जोर से मसलने लगा। उसका कड़क लंड मेरी गांड में धंस रहा था। मेरी छोटी सी पैंटी उसे रोक नहीं पा रही थी। मैंने कहा, “आह… नहीं, राजू… बस करो… सीस्स…”
लेकिन वो रुका नहीं। उसने मुझे पीछे से पकड़कर मेरी स्कर्ट कमर तक चढ़ा दी और मेरे बूब्स को मसलने लगा। उसका लंड मेरी गांड के छेद को छू रहा था। मैं वासना की आग में जल उठी। मुझे पता था, आज मैं चुदने वाली हूँ। यही तो मैं चाहती थी।

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उसके हाथ मेरे कठोर बूब्स को सहला रहे थे। वो मेरे निप्पलों को खींच रहा था, मसल रहा था। मैं सिसकार उठी, “आह… सीस्स… राजू, मैं मर जाऊँगी…”
वो बोला, “नेहा, मुझे सर मत कहो, राजू बोलो। तेरे निप्पल कितने कड़क हैं… हाय, तू कितनी मस्त है!”
उसका लंड मेरी गांड पर जोर-जोर से धक्के मार रहा था। मेरी पैंटी अब पूरी तरह नीचे खिसक चुकी थी। उसने अपनी पैंट उतारी और अपना मोटा, कड़क लंड मेरी गांड के छेद पर सेट किया। मैंने उसकी तरफ देखा। उसकी आँखों में सिर्फ वासना थी। मैं समझ गई कि वो मेरी गांड मारना चाहता है। मैंने खुद को उसके हवाले कर दिया और घोड़ी बन गई।

उसने मेरी गांड पर थूक लगाया। ठंडा-ठंडा थूक मेरे छेद पर लगा, और मैं रोमांच से काँप उठी। मैं सोच रही थी, “हाय, आज मेरी गांड की सील टूटने वाली है!” तभी उसने अपने लंड की सुपारी मेरे छेद में दबाई। मैं दर्द और आनंद से चीख पड़ी, “आह… राजू!”
उसने सुपारी निकाली और फिर जोर से धक्का मारा। इस बार उसका लंड आधा अंदर घुस गया। मैं चिल्लाई, “राजू… दर्द हो रहा है… निकालो!”
लेकिन वो नहीं रुका। उसने एक और जोरदार धक्का मारा, और उसका पूरा लंड मेरी गांड में समा गया। मैं दर्द से तड़प उठी, “हाय… राजू, निकालो… मैं मर जाऊँगी!”
पर वो मेरी बात सुनने को तैयार नहीं था। उसने तेज-तेज धक्के मारने शुरू कर दिए। पहले तो दर्द असहनीय था, लेकिन धीरे-धीरे मुझे मजा आने लगा। मेरी गांड उसके लंड को थामने लगी। मैं सिसकार रही थी, “आह… राजू… हाँ… अब मजा आ रहा है…”

उसने मेरे बूब्स को और जोर से मसला और बोला, “नेहा, तेरी गांड कितनी टाइट है… हाय, क्या मजा है!”
कुछ देर बाद उसने लंड निकाला और मुझे सीधा करके मेरी चूत पर सेट किया। मेरी चूत पहले से गीली थी, लेकिन मैं डर रही थी—पहली बार कोई लंड अंदर जाएगा। उसने धीरे से लंड दबाया, और उसकी सुपारी मेरी चूत में घुसी। मैं सिहर उठी। फिर उसने एक जोरदार धक्का मारा, और उसका पूरा लंड मेरी चूत में उतर गया। मेरी सील टूट गई, और मैं चीख पड़ी, “हाय… राजू, मैं मर गई!”
जमीन पर खून की कुछ बूँदें टपक पड़ीं। मैं घबरा गई, “राजू, ये क्या… खून?”
उसने मेरी पीठ सहलाई और बोला, “नेहा, तू तो वर्जिन थी… सॉरी, मुझे नहीं पता था। मैं धीरे करता अगर…”
मैंने डरते हुए कहा, “नहीं, रुकना मत… चोदो ना… अब तो मजा आ रहा है!”
वो मुस्कुराया और बोला, “हाँ, मेरी रानी, अब तो बस मजा ही मजा है।”

उसने फिर से लंड मेरी चूत में डाला और हौले-हौले धक्के मारने लगा। मेरी चूत में मीठी-मीठी गुदगुदी होने लगी। मैं सिसकार रही थी, “राजू… और जोर से… हाय, कितना मजा है!”
वो भी जोश में आ गया। उसने मुझे गोद में उठाया और बिस्तर पर पटक दिया। मेरी चूत इतनी गीली थी कि उसका लंड फिसलता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था। मैंने अपनी टाँगें और ऊपर उठाईं, ताकि वो और गहराई तक जाए। वो बोला, “हाँ, नेहा… ऐसी ही चुद… ले मेरे लंड को पूरा!”
मैं नीचे से अपने चूतड़ उछाल-उछालकर उसका साथ दे रही थी। मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं, “आह… राजू… फाड़ दे मेरी चूत… चोद दे… हाय… सीस्स… और जोर से!”

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उसने मेरे बूब्स को अपने मुँह में लिया और मेरे निप्पलों को चूसने लगा। उसकी जीभ मेरे निप्पलों पर नाच रही थी, और मैं पागल हो रही थी। मैंने उसके चूतड़ों को पकड़ लिया और जोर-जोर से दबाने लगी। फिर मैंने हिम्मत करके अपनी एक उंगली उसकी गांड के छेद में डाल दी। वो सिहर उठा, “नेहा… धीरे… हाय!”
मैंने उंगली और अंदर-बाहर की, और उसका लंड मेरी चूत में और कड़क हो गया। मैंने अपनी चूत सिकोड़ ली, और उसका लंड मेरे अंदर भिंच गया। वो चिल्लाया, “नेहा… मेरा निकल जाएगा!”
मैंने हँसते हुए कहा, “तो चोद ना… रुक क्यों गया?”
उसने मेरी चूत को ढीला छोड़ने को कहा, और मैंने ऐसा ही किया। फिर उसने ट्रेन की स्पीड से धक्के मारने शुरू किए। मेरी चूत में आग लग रही थी। मैं चिल्ला रही थी, “हाय… राजू… मैं मर गई… चोद दे… फाड़ दे… आह… मैं गई… मेरा पानी निकल रहा है!”

मेरा बदन अकड़ गया, और मैंने जोर-जोर से पानी छोड़ दिया। मेरी चूत से गर्म-गर्म रस बहने लगा। राजू बोला, “अरे, तू तो झड़ गई… रुक, अभी मैं आता हूँ!”
उसने मुझे पलट दिया और मेरी गांड पर फिर से सवार हो गया। उसने लंड मेरी गांड के छेद पर सेट किया और एक जोरदार धक्का मारा। उसका लंड फिर से मेरी गांड में घुस गया। मैं चीख पड़ी, “राजू… नहीं… दर्द हो रहा है!”
लेकिन वो नहीं रुका। उसने मेरे बूब्स पकड़े और तेज-तेज धक्के मारने लगा। मैं दर्द से कराह रही थी, लेकिन उसकी वासना रुकने का नाम नहीं ले रही थी। मैंने तकिए में मुँह दबाया और अपनी टाँगें और फैला दीं। उसकी गति इतनी तेज थी कि पूरा बिस्तर हिल रहा था। वो बोला, “नेहा… मेरी रानी… ले… मैं गया… आह… निकला!”

उसका गर्म-गर्म वीर्य मेरी गांड में भरने लगा। वो मेरी पीठ पर निढाल होकर गिर पड़ा। मैंने अपनी गांड हिलाकर उसका ढीला लंड बाहर निकाला। उसका वीर्य मेरी गांड से बहकर बिस्तर पर फैल गया। मैंने देखा, उसका लंड मेरे रस और उसके वीर्य से चिपचिपा हो गया था। मेरी गांड भी पूरी तरह लथपथ थी।

हम दोनों हाँफते हुए बिस्तर पर पड़े रहे। कुछ देर बाद मैं उठी और नहाने चली गई। जब तक मैं नहाकर लौटी, राजू जा चुका था। टेबल पर एक कागज की स्लिप थी, जिस पर लिखा था:
“सॉरी, नेहा… मुझे माफ कर देना। मैं खुद को रोक नहीं पाया। अगर माफ कर सकती हो, तो कॉलेज में मुझे बता देना। —राजू”

मैं पढ़कर मुस्कुरा उठी। उसे क्या पता, ये उसकी गलती नहीं थी। मैंने ही तो उसे उकसाया था। मैं चाहती थी कि वो मुझे चोदे। पहली चुदाई का डर तो था, लेकिन अब मुझे लग रहा था कि ये जिंदगी का सबसे बड़ा सुख है। राजू ने मेरी वासना की आग बुझाई थी, और मैं अब और मजे लेने को बेताब थी।

दोस्तो, मेरी ये कहानी कैसी लगी? अपनी राय जरूर बताना।

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