ये बात लगभग एक साल पहले की है। मेरे रिश्तेदारों में किसी की मृत्यु हो गई थी। मेरे पति अपने काम-धंधों में इतने उलझे थे कि वो जा नहीं सकते थे, इसलिए मुझे अकेले ही जाना पड़ा। सफर ट्रेन का था, और चूंकि मुझे अकेले यात्रा करनी थी, मेरे पति ने मेरे लिए प्रथम श्रेणी एसी में रिजर्वेशन करवा दिया। ट्रेन रात दस बजे की थी। मेरा नाम आश्ना है, और मैं एक ऐसी औरत हूँ, जिसके अंदर की वासना कभी-कभी मुझे खुद हैरान कर देती है।
मेरे पति मुझे स्टेशन तक छोड़ने आए। उन्होंने मुझे मेरे कूपे में बिठाया, जो सिर्फ़ दो सीटों वाला था। दूसरी सीट अभी खाली थी, कोई यात्री नहीं आया था। मैंने अपने सामान को व्यवस्थित किया—मेरा छोटा सा सूटकेस, जिसमें कुछ कपड़े, खाना, और जरूरी चीजें थीं। फिर मैं अपने पति का इंतज़ार करने लगी, जो टिकट चेकर से मिलने गए थे।
थोड़ी देर में मेरे पति वापस आए, उनके साथ एक आदमी था, जो ब्लैक कोट में था। वो टिकट चेकर था। उसकी उम्र करीब छब्बीस साल की रही होगी। गोरा रंग, लगभग पौने छह फीट लंबा, और चेहरा ऐसा कि कोई भी औरत एक बार पलटकर देख ले। उसका शरीर गठीला था, और उसकी मुस्कान में एक अजीब सी मासूमियत थी, जो उसे और भी आकर्षक बना रही थी। मेरे पति ने उससे मेरा परिचय करवाया। उसका नाम संजय था, और वो न सिर्फ़ देखने में हैंडसम था, बल्कि बात करने में भी बेहद शालीन और आत्मविश्वास से भरा हुआ था।
उसने मुझसे कहा, “चिंता मत कीजिए मैडम, मैं इसी कोच में हूँ। कोई भी परेशानी हो, मुझे बता दीजिएगा, मैं तुरंत हाज़िर हो जाऊँगा। आपके साथ वाली बर्थ खाली है, और अगर कोई यात्री आया भी, तो कोई महिला ही आएगी। आप निश्चिंत होकर सो सकती हैं।”
उसकी बातों से मुझे और मेरे पति को राहत मिली। ट्रेन चलने वाली थी, तो मेरे पति नीचे उतर गए। उसी वक्त ट्रेन ने हल्का सा झटका लिया और धीरे-धीरे चल पड़ी। मैंने खिड़की से अपने पति को बाय किया और फिर अपनी सीट पर आराम से बैठ गई। मेरे मन में एक अजीब सा खालीपन था। मुझे अपने पति से दूर जाने का बिल्कुल मन नहीं था। इसका कारण था मेरी माहवारी, जो एक दिन पहले ही खत्म हुई थी। आप तो जानते ही हैं, ऐसे दिनों में चूत की प्यास कितनी बेकाबू हो जाती है। मैं अपने पति के साथ जी भरकर चुदवाना चाहती थी, लेकिन ये अचानक आया सफर मेरे सारे अरमानों पर पानी फेर रहा था। मैं मन ही मन उदास थी, और मेरे शरीर में एक अजीब सी बेचैनी थी, जैसे कोई आग धीरे-धीरे सुलग रही हो।
तभी कूपे में वो हैंडसम टीटी, संजय, फिर से आया। उसने कहा, “मhighestम, आप गेट बंद कर लीजिए। मैं कुछ देर में आता हूँ, तब आपका टिकट चेक कर लूँगा।” उसकी आवाज़ में एक अजीब सी गर्माहट थी, जो मेरे अंदर की आग को और भड़का गई।
उसके जाने के बाद मैंने सोचा कि रात भर का सफर है, और साड़ी में नींद नहीं आएगी। मैंने कपड़े बदलने का फैसला किया। अपना सूटकेस खोला, तो मैं सिर पकड़कर बैठ गई। जल्दबाजी में मैं गाउन का ऊपरी जालीदार हिस्सा तो ले आई थी, लेकिन अंदर पहनने वाला हिस्सा घर पर ही रह गया। ये जालीदार गाउन ऐसा था कि उसमें से सब कुछ साफ़ दिखता था—मेरे बड़े-बड़े बूब्स, मेरी रेड कलर की ब्रा और पैंटी, सब कुछ। मैंने एक पल के लिए सोचा कि अब क्या करूँ, लेकिन फिर मेरी अंतर्वासना ने मुझे उकसाया।
मैंने सोचा, क्यों न आज इस हैंडसम नौजवान के साथ थोड़ा मज़ा लिया जाए? ये ख्याल मेरे दिमाग में आते ही मेरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई। मैंने वो जालीदार गाउन निकाला और अपनी साड़ी, ब्लाउज़, और पेटीकोट उतार दिए। अब मैं सिर्फ़ रेड कलर की जालीदार ब्रा और पैंटी में थी, और ऊपर से वो सफ़ेद जालीदार गाउन, जो मेरे शरीर को ढकने की बजाय और नंगा कर रहा था। मेरे चूचुक साफ़ दिख रहे थे, और मेरी चूत की हल्की सी शेप भी बाहर से नज़र आ रही थी। मैंने आईने में खुद को देखा, और मेरे होंठों पर एक शरारती मुस्कान आ गई। मैं खुद को देखकर गर्म हो रही थी, और मेरे मन में ये ख्याल आया कि अगर संजय मुझे ऐसे देख लेगा, तो उसका क्या हाल होगा?
सारी तैयारी करने के बाद मैं अपनी सीट पर लेट गई और एक मैगज़ीन पढ़ने का नाटक करने लगी। मेरे मन में एक अजीब सी बेचैनी थी, और मेरी चूत में हल्की-हल्की सनसनी हो रही थी। मैं सोच रही थी कि कब संजय आएगा और कब ये खेल शुरू होगा। पाँच मिनट इंतज़ार करने के बाद मैंने सोचा कि पहले खाना खा लूँ, ताकि बाद में कोई रुकावट न आए। मैंने घर से लाया हुआ खाना निकाला—पराठे, सब्ज़ी, और थोड़ा सा अचार।
खाना शुरू करते हुए मैंने सोचा कि अगर संजय बीच में टिकट चेक करने आ गया, तो मुझे उठकर टिकट निकालना पड़ेगा। इसलिए मैंने अपने पर्स से टिकट निकाला। जैसे ही टिकट मेरे हाथ में आया, मेरे दिमाग में फिर से संजय का जवान बदन घूम गया। मेरे अंदर की वासना अब पूरी तरह जाग चुकी थी। मैंने जानबूझकर टिकट को अपनी ब्रा के अंदर, अपने लेफ्ट बूब के निप्पल के पास, डाल लिया। टिकट बाहर से साफ़ दिख रहा था, और मेरी ब्रा की जाली में से मेरा निप्पल भी झाँक रहा था। मैंने मन ही मन सोचा, “अब देखते हैं, संजय इसे कैसे निकालता है।”
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पूरी तैयारी के बाद मैं खाना खाने लगी। तभी कूपे का गेट खुला, और संजय अंदर आया। मुझे इस हाल में देखकर उसका चेहरा लाल हो गया। उसकी आँखें मेरे पारदर्शी गाउन पर अटक गईं, और वो हड़बड़ा गया। वो इधर-उधर देखने लगा, जैसे समझ नहीं पा रहा हो कि क्या करे। मैंने उसका हौसला बढ़ाने के लिए उसकी तरफ़ मुस्कुराकर देखा और बोली, “आइए, संजय जी, बैठिए। खाना लेंगे आप?” मेरी आवाज़ में एक शरारती लहजा था, जो उसे और घबरा रहा था।
वो हकलाते हुए बोला, “न-न-नहीं मैडम, आप खाइए। मैं तो बस आपका टिकट चेक करने आया था। कोई बात नहीं, मैं बाद में आ जाऊँगा।” मैंने उसे सामने वाली सीट पर बैठने का इशारा किया और कहा, “अरे, बैठिए ना! मैं अभी टिकट दिखाती हूँ।” ये कहकर मैंने खाने का डिब्बा नीचे रखा और टिकट ढूँढने का नाटक शुरू कर दिया। मैं बार-बार नीचे झुक रही थी, ताकि मेरे बड़े-बड़े बूब्स उसकी आँखों के सामने झूलें। मेरी ब्रा में से मेरे निप्पल साफ़ दिख रहे थे, और गाउन की जाली में से मेरी चूत की हल्की सी शेप भी नज़र आ रही थी।
मेरे बूब्स का साइज़ 36D है, और वो इतने भरे हुए हैं कि किसी का भी ध्यान खींच लें। मैं जानबूझकर अपनी छातियाँ हिलाती रही, और संजय की आँखें उन पर टिकी थीं। वो बार-बार अपनी नज़रें हटाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मेरे बूब्स उसे बार-बार खींच रहे थे। आखिरकार, उसने मेरे बूब्स की तरफ़ इशारा करते हुए हल्के से कहा, “मैडम, लगता है आपका टिकट आपके… उम… ब्लाउज़ में है।”
मैंने अनजान बनते हुए अपने गले की तरफ़ देखा और हँसते हुए कहा, “अरे, ब्लाउज़ कहाँ है यार? ये तो ब्रा में रखा है!” ये कहते हुए मैंने अपने खाने से सने हाथों से टिकट निकालने की नाकाम कोशिश की। मैं अपनी उंगलियाँ ब्रा के अंदर डाल रही थी, और जानबूझकर अपने बूब्स को हल्का-हल्का दबा रही थी, ताकि संजय का ध्यान और खींचा जाए। मेरी हरकतों से वो और बेचैन हो रहा था।
जब मेरी उंगली से टकराकर टिकट और अंदर सरक गया, तो मैंने शरारती मुस्कान के साथ कहा, “सॉरी यार, अब तो आपको ही मेहनत करनी पड़ेगी।” मेरी बात सुनते ही संजय मेरे पास आया और हल्के से हँसते हुए बोला, “क्यों नहीं मैडम, मैं निकाल लूँगा!” उसकी आवाज़ में अब शरम की जगह एक अजीब सी हिम्मत आ गई थी।
उसने डरते-डरते मेरे गाउन के अंदर हाथ डाला। उसका हाथ मेरी ब्रा को छू रहा था, और मेरे निप्पल उसके उंगलियों के पास थे। वो टिकट पकड़ने की कोशिश कर रहा था, लेकिन टिकट मेरे निप्पल के ठीक ऊपर अटक गया था। अब उसे ब्रा के अंदर हाथ डालना था। वो थोड़ा हिचक रहा था, इसलिए मैंने उसका हौसला बढ़ाया, “हाँ-हाँ, ब्रा के अंदर डालो ना प्लीज़, निकाल लो!”
मेरी बात सुनते ही उसकी आँखों में चमक आ गई। उसने अपना पूरा हाथ मेरी ब्रा के अंदर डाल दिया। जैसे ही उसका हाथ मेरे निप्पल को छुआ, मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया। उसने टिकट पकड़ा, लेकिन साथ ही मेरी चूची को हल्के से सहलाना शुरू कर दिया। उसकी उंगलियाँ मेरे निप्पल को छू रही थीं, और मैं जानबूझकर हल्की सी सिसकारी ले रही थी, “उम्म… आह…”
मुझे ये सब इतना अच्छा लग रहा था कि मैंने उसकी तरफ़ देखकर मुस्कुरा दिया। मेरी मुस्कान देखकर वो और बोल्ड हो गया और मेरी चूची को ज़ोर से दबाने लगा। उसका हाथ मेरी ब्रा के अंदर था, और वो मेरे निप्पल को अपनी उंगलियों से मसल रहा था। मैंने महसूस किया कि मेरी पैंटी गीली होने लगी थी। उसने आखिरकार टिकट निकाला, उसे चेक किया, और मेरी तरफ़ आँख मारते हुए बोला, “आप खाना खा लीजिए, मैं बाकी सवारियों को चेक करके अभी आता हूँ।”
मैंने उसे और उकसाते हुए कहा, “ज़ल्दी आना, संजय!” वो हल्का सा हँसा और बाहर निकल गया। मैंने जल्दी-जल्दी खाना खत्म किया और उसका इंतज़ार करने लगी। मेरी चूत में अब आग लगी थी, और मैं बस यही सोच रही थी कि कब वो आएगा और कब ये खेल आगे बढ़ेगा।
पाँच-सात मिनट बाद संजय वापस आया। वो अंदर आते ही कूपे का दरवाज़ा लॉक कर लिया और मेरे पास आकर बोला, “आश्ना, अब तुम्हें फर्स्ट एसी का पूरा मज़ा दिलाता हूँ!” उसकी आवाज़ में अब शरम की जगह एक मर्दाना आत्मविश्वास था। उसने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया, और मैंने उसकी गर्दन में हाथ डालकर उसके होठों पर अपने होठ रख दिए।
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हमारे होठ एक-दूसरे से टकराए, और अगले ही पल वो मेरे निचले होठ को चूसने लगा। मैं उसके ऊपरी होठ को चूस रही थी, और मेरी जीभ उसके मुँह में चली गई। वो मेरी जीभ को बड़े प्यार से चूस रहा था, और उसके हाथ मेरी कमर पर फिसल रहे थे। उसका दायाँ हाथ धीरे-धीरे मेरी बायीं चूची पर आया और उसे ज़ोर से दबाने लगा। मैंने एक गहरी सिसकारी ली, “आह… संजय… उफ़…”
हमारी चूमा-चाटी से मेरे अंदर की आग और भड़क गई थी। मैंने महसूस किया कि मेरी पैंटी अब पूरी तरह गीली हो चुकी थी। संजय का लंड उसकी पैंट में तन चुका था, और मैं उसकी पैंट के ऊपर से उसे महसूस कर रही थी। वो मेरी चूची को दबाते हुए मेरे कान के पास आया और बोला, “आश्ना, तुम बहुत गर्म हो… आज तो मज़ा आएगा।”
मैंने उसकी आँखों में देखकर कहा, “तो फिर देर किस बात की, संजू? शुरू करो ना!” मेरी बात सुनकर वो और जोश में आ गया। लेकिन तभी उसने रुककर कहा, “मैडम, एक प्रॉब्लम है।”
मैंने चौंकते हुए पूछा, “क्या हुआ?”
वो बोला, “मेरा एक साथी और है इसी कोच में। अगर मैं ज्यादा देर न दिखा, तो वो मुझे ढूँढता हुआ यहाँ आ जाएगा। अगर आप इजाज़त दें, तो क्या मैं उसे बुला लूँ?”
उसकी बात सुनकर मेरी आँखें चमक उठीं। मैंने मन ही मन सोचा, “वाह, आज तो दो-दो लंड मिलने वाले हैं!” मैंने तुरंत कहा, “हाँ-हाँ, बुला लो, लेकिन ध्यान रखना, किसी और को पता नहीं चलना चाहिए। जाओ, जल्दी बुला लाओ।”
वो दरवाज़ा खोलकर बाहर गया और कुछ ही मिनटों में वापस आया। उसके साथ एक और आदमी था। उसकी उम्र करीब पैंतीस साल की थी, रंग काला, लेकिन चेहरा ठीक-ठाक था। वो थोड़ा मोटा था, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। मैंने सोचा, भले ही ये उतना हैंडसम न हो, लेकिन दो लंड मेरी प्यास तो बुझा ही देंगे।
संजय ने उसका परिचय करवाया, “आश्ना, ये मेरा दोस्त सी. देवगौड़ा है।” मैंने खड़े होकर उससे हाथ मिलाया और संजय से बोली, “ये तो ठीक है, लेकिन तुमने अपना नाम तो बताया ही नहीं।”
वो हँसते हुए बोला, “मुझे संजय कहते हैं, लेकिन तुम मुझे संजू बुला सकती हो।” मैंने हँसकर कहा, “संजू, नाम तो अच्छा है, लेकिन ये मैडम-मैडम क्या लगा रखा है? मेरा नाम आश्ना है। तुम मुझे कुछ भी सेक्सी नाम से बुला सकते हो।”
परिचय के बाद माहौल थोड़ा खुल गया। लेकिन दोनों अभी भी थोड़ा शरमा रहे थे। मैंने सोचा, पहल मुझे ही करनी पड़ेगी। मैंने संजू के गले में हाथ डाले और उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया। वो मेरी कमर पकड़कर मुझे चिपकाने लगा। उसका लंड अब पैंट में साफ़ महसूस हो रहा था। मैंने देवगौड़ा को अपने पास बुलाया और उसकी पैंट के ऊपर से उसके लंड पर हाथ फेरना शुरू किया।
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कुछ देर तक हम खड़े-खड़े चूमा-चाटी करते रहे। संजू मेरे होठों को चूस रहा था, और देवगौड़ा मेरी गर्दन पर अपने दाँत गड़ा रहा था। मैंने दोनों के लंडों को पैंट के ऊपर से सहलाना शुरू किया, ताकि वो और जोश में आएँ। जैसे ही वो दोनों गर्म हुए, उन्होंने मुझे उठाकर सीट पर लिटा दिया।
संजू मेरे होठों को चूसते हुए मेरी चूचियों से खेलने लगा। उसने मेरी ब्रा को हल्का सा नीचे खींचा और मेरे निप्पल को मुँह में ले लिया। उसकी जीभ मेरे निप्पल पर गोल-गोल घूम रही थी, और मैं सिसकारियाँ ले रही थी, “आह… संजू… उफ़… और ज़ोर से… चूसो…”
उधर, देवगौड़ा ने मेरी पैंटी उतार दी और मेरी चूत को देखकर बोला, “वाह, आश्ना, तेरी चूत तो बिल्कुल चिकनी है!” उसने मेरी चूत के होंठों को अपनी उंगलियों से फैलाया और अपनी जीभ अंदर डाल दी। उसकी गर्म जीभ मेरी चूत के दाने को छू रही थी, और मैं पागल हो रही थी, “आ… ह… ओह… देवगौड़ा… ऐसे ही… चाटो… उफ़… मेरी चूत… आह…”
दोनों मुझे एक साथ चूम रहे थे, चाट रहे थे, और मेरे शरीर में आग लगी थी। लेकिन मैं चाहती थी कि वो अपने कपड़े भी उतारें। मैंने उन्हें रोकते हुए कहा, “रुको, मेरे यारों! सिर्फ़ मेरे कपड़े उतारोगे, तो मज़ा कैसे आएगा? तुम भी तो अपने लंड निकालो!”
देवगौड़ा ने तुरंत अपनी पैंट उतारी। उसका लंड बाहर आया—करीब छह इंच लंबा, लेकिन तीन इंच मोटा, बिल्कुल काला और सख्त। मैंने सोचा, ये तो मेरी गांड के लिए परफेक्ट है। मैंने उसका लंड अपने मुँह में लेने की कोशिश की, लेकिन वो इतना मोटा था कि मेरे मुँह में पूरा गया ही नहीं। मैंने अपनी जीभ से उसके सुपाड़े को चाटना शुरू किया। उसका प्री-कम नारियल के पानी जैसा स्वादिष्ट था। मैं चूसते हुए आवाज़ें निकाल रही थी, “सुड़प… सूद… चाट… स्स…”
इसी बीच, संजू ने भी अपने कपड़े उतार दिए। उसका लंड सात इंच लंबा और दो इंच मोटा था, बिल्कुल गोरा और खूबसूरत। मैंने उसे देखते ही कहा, “संजू, तेरा लौड़ा तो कमाल का है!” मैंने ट्रेन की सीट पर अधलेटते हुए उसका लंड अपने मुँह में ले लिया। उधर, देवगौड़ा मेरी चूत चाट रहा था। उसने अपनी जीभ मेरी चूत के अंदर तक डाल दी, और मैं चिल्ला उठी, “आ… ह… ओह… देवगौड़ा… मेरे राजा… ऐसे ही… चाट… मेरी चूत… उफ़… आ… ह…”
ट्रेन की रफ्तार के साथ-साथ हमारा जोश भी बढ़ रहा था। ट्रेन की आवाज़ें—“धडक… धडक… खटाक…”—और मेरी सिसकारियाँ मिलकर एक अजीब सा संगीत बना रही थीं। संजू मेरे मुँह में अपना लंड अंदर-बाहर कर रहा था, और वो भी सिसकारियाँ ले रहा था, “आह… आश्ना… चूस… और ज़ोर से… भोसड़ी की… ले… पूरा ले…”
मैंने उसका लंड पूरा मुँह में लिया, और वो मेरे सिर को पकड़कर धक्के मारने लगा। मुझे चूत चटवाने और लंड चूसने में इतना मज़ा आ रहा था कि मैं पागल हो रही थी। लेकिन तभी संजू ने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी और चिल्लाने लगा, “आ… ह… ले… आश्ना… पी ले… मेरा… पानी… चूस… ले…” और मेरे मुँह में उसकी पिचकारी छूट गई।
उसका गर्म-गर्म वीर्य मेरे मुँह में भरा, और मैंने उसे पूरा पी लिया। स्वाद अच्छा था, थोड़ा नमकीन, लेकिन मज़ेदार। मैंने उसका लंड चाट-चाटकर साफ़ किया। वो हँसते हुए बोला, “वाह, आश्ना, तू तो कमाल है!”
उधर, देवगौड़ा मेरी चूत चाटते-चाटते थक गया था। वो खड़ा हुआ और बोला, “आश्ना, मेरा भी चूस ना!” मैंने हँसकर कहा, “अरे, तुम दोनों मेरे मुँह में ही झड़ जाओगे, तो मेरी चूत का क्या होगा?” वो बोला, “चिंता मत कर, मैं तेरी चूत में ही पानी डालूँगा।”
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मैंने उसका मोटा लंड मुँह में लिया और चूसना शुरू किया। उसका लंड इतना मोटा था कि मेरे मुँह में मुश्किल से आ रहा था। थोड़ी देर चूसने के बाद उसने लंड निकाला और बोला, “चल, मेरी रानी, अब कुतिया बन जा। आज तेरी चूत का भोसड़ा बनाऊँगा!”
मैंने तुरंत डॉगी स्टाइल में पोज़िशन ले ली। उसने मेरी चूत पर अपना लंड लगाया और एक ज़ोरदार धक्का मारा। “आ… ई… ई… गया… पूरा… अंदर… आ… गया… मेरे राजा…” मैं चिल्ला उठी। उसका मोटा लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर गया, और मैं दर्द और मज़े के बीच झूल रही थी।
ट्रेन की रफ्तार और उसके धक्कों की गति मिलकर मुझे जन्नत का मज़ा दे रही थी। वो बड़बड़ाने लगा, “ले… मेरी जान… ले… मेरा लंड… तेरी चूत फाड़ दूँगा… बहनचोद… ले…” मैं भी जोश में आ गई और बोली, “हाँ… और ज़ोर से… चोद… मेरे राजा… फाड़ दे… मेरी चूत… आ… ह… उफ़… और डाल… गांड में भी डाल… गांडू…”
मेरी बात सुनकर उसने लंड चूत से निकाला और मेरी गांड के छेद पर लगाया। मैंने अपनी गांड को और ऊपर उठाया और बोली, “धीरे… धीरे… डाल… मेरी गांड में…” उसने निशाना लगाया, लेकिन उसका लंड चूत के पानी से चिकना था, और फिसल गया। उसने फिर कोशिश की और इस बार ज़ोर से धक्का मारा। उसका मोटा लंड मेरी गांड को चीरता हुआ अंदर गया, और मेरी चीख निकल गई, “आ… ई… ई… मर गई… मादरचोद… फाड़ दी… मेरी गांड… धीरे… उफ़…”
वो रुका नहीं और धक्के मारता रहा। दर्द इतना था कि मेरी आँखों में आँसू आ गए, लेकिन धीरे-धीरे मज़ा आने लगा। मैंने नीचे से अपनी चूत को मसलना शुरू किया, और मेरी सिसकारियाँ फिर शुरू हो गईं, “आ… ह… हाँ… ऐसे ही… चोद… मेरी गांड… उफ़… मज़ा आ रहा है…”
तभी कूपे का दरवाज़ा खुला, और तीन आदमी अंदर आ गए। ट्रेन किसी बड़े स्टेशन पर रुकी थी। मैं चौंक गई और जल्दी से अपनी ब्रा और गाउन उठाकर बदन छुपाने लगी। देवगौड़ा ने चहकते हुए कहा, “आओ बॉस! मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था!” उसने दरवाज़ा लॉक किया और बोला, “आश्ना, ये मेरे दोस्त हैं। तेरी चूत में कुछ डलवाने की इच्छा थी ना, ये लोग वही मज़ा देंगे।”
मुझे उनका इस तरह आना बिल्कुल पसंद नहीं आया। मैंने गुस्से में कहा, “चुप रहो! मुझे रंडी समझा है क्या? जो आएगा, मैं उससे चुदवाऊँगी? बाहर निकलो, नहीं तो शोर मचा दूँगी!”
मेरे गुस्से से वो डर गए। देवगौड़ा ने मनाते हुए कहा, “नहीं आश्ना, ऐसा नहीं है। अगर तुम नहीं चाहोगी, तो कुछ नहीं होगा।” नए आए लोगों में से एक ने कहा, “हमें संजय ने भेजा था। अगर तुम्हें बुरा लग रहा है, तो हम चले जाते हैं। प्लीज़ शोर मत मचाना, हमारी नौकरी चली जाएगी।”
वो चारों मुझे मनाने लगे। मैंने सोचा, इन्होंने मुझे नंगा देख लिया है, और मेरी चूत की आग अभी बुझी नहीं है। सुबह तो उतरकर चले ही जाना है। मैंने कहा, “ठीक है, तुम्हें आधा घंटा देती हूँ। जल्दी-जल्दी करो और निकल जाओ। कोई और अब यहाँ नहीं आएगा।”
वो खुश हो गए और मेरे करीब आए। दो लोगों ने मेरी चूचियों को दबाना शुरू किया, और एक नीचे बैठकर मेरी चूत चाटने लगा। देवगौड़ा ने अपना ढीला लंड मेरे मुँह में डाल दिया। मैंने उसे चूसना शुरू किया, और धीरे-धीरे वो फिर टाइट हो गया। मेरी चूत फिर से गर्म हो रही थी, और मैं जोश में आ गई।
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मैंने देवगौड़ा से कहा, “चल, अब अपना अधूरा काम पूरा कर!” वो मेरे पीछे आया और बोला, “ले, अब मज़ा ले!” मैं डॉगी स्टाइल में झुकी। एक आदमी मेरे नीचे था, मैंने उसका लंड अपनी चूत में लिया। देवगौड़ा ने मेरी गांड में लंड डाला, और दो लोग मेरे मुँह के पास अपने लंड लेकर खड़े थे।
चुदाई शुरू हुई, और मेरे सभी छेद लंडों से भर गए। मैं चिल्ला रही थी, “आ… ई… ओह… हरामी… ज़ोर से… फाड़ दो… मेरी चूत… मेरी गांड… आ… ह… उफ़…” वो और जोश में आ गए। देवगौड़ा ने मेरी गांड से लंड निकाला और मेरे मुँह में डाल दिया, “ले, मेरा रस पी ले!” उसने मेरे मुँह में अपना वीर्य छोड़ दिया। उधर, मेरी चूत में लंड डालने वाला भी झड़ गया।
बाकी दो बचे थे। मैं थक गई थी, तो पीठ के बल लेट गई और बोली, “चलो, अब तुम दोनों मेरी चूत में बारी-बारी डालो।” पहले वाले ने मेरी चूत में लंड डाला और पेलना शुरू किया। मैं फिर चरम पर थी, “आ… ह… चोद… ज़ोर से… फाड़ दो…” वो जल्दी झड़ गया, और मुझे गुस्सा आया।
आखिरी वाला, जिसका नाम पंवार था, बोला, “ले, अब मैं तेरी चूत फाड़ता हूँ!” उसका लंड मोटा और कड़क था। उसने तेज़-तेज़ धक्के मारे, और मैं चिल्ला उठी, “हाँ… शाबाश… चोद… मेरे राजा… आ… ई… मैं… झड़… रही… हूँ…” मैं झड़ गई, लेकिन उसने चुदाई जारी रखी। आधे घंटे बाद वो बोला, “ले, अब मेरा पानी पी!” उसने लंड मेरे मुँह में डाला, और उसका गाढ़ा वीर्य मेरे गले तक गया। मैंने उसे चाट-चाटकर पी लिया।
दोस्तों, क्या आपको मेरी ये चुदाई की कहानी पसंद आई? अपनी राय ज़रूर बताएँ।
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यार कसम से मेरा मन भी तुम्हे चोदने का करने लगा। खड़ा हो गया है और लग रहा कि हिलाना पड़ेगा क्योंकि बनारस में तो आप मिलोगी नहीं।