Bhabhi, Nand aur Devar Threesome sex – मेरा नाम गज़ल अफसर है। मैं अपनी तारीफ खुद तो नहीं करती, लेकिन जो लोग मुझे देखते हैं, खासकर मेरा शौहर, वो कहते हैं कि मैं बहुत खूबसूरत हूँ। मेरी उम्र 26 साल है, और मेरा रंग गोरा, कद 5 फीट 6 इंच, और फिगर 34-28-36 है, जो मुझे एक आकर्षक औरत बनाता है। मेरी आँखें बड़ी-बड़ी हैं, और होंठ गुलाबी, जो मेरे चेहरे को और निखारते हैं। 21 साल की उम्र में मेरी सगाई हो गई थी, और 5 साल बाद, 26 की उम्र में मेरी शादी होकर मैं अपने शौहर के घर आ गई।
जिस वक्त की कहानी मैं बयान करने जा रही हूँ, उस वक्त मेरी शादी को 6 महीने ही हुए थे। मैं अपने ससुराल और शौहर से बहुत खुश थी। मेरे ससुराल में मेरे शौहर अफसर, मेरी सास, ससुर, एक देवर सरवर, और एक ननद नाज़, कुल 6 लोग एक बड़े से घर में रहते थे। मेरे देवर और ननद की अभी शादी नहीं हुई थी। मेरे शौहर अफसर, जो 30 साल के हैं, बहुत अच्छे इंसान हैं। वो मुझसे बहुत मोहब्बत करते हैं और मेरा हर तरह से ख्याल रखते हैं। अफसर शरीफ और थोड़े रिज़र्व मिज़ाज के हैं।
लेकिन मेरा 25 साल का देवर सरवर उनके बिल्कुल उलट था। वो बहुत शरारती, हँसमुख, और लंबा-तड़ंगा था। पहली नज़र में ही मुझे वो बहुत अच्छा लगा था। शायद इसकी वजह ये थी कि वो मुझसे हमेशा मज़ाक करता, और मैं उसकी बातों को सुनकर खूब हँसती थी। रात को अफसर अखबार या किताब पढ़कर जल्दी अपने बेडरूम में चले जाते थे, जबकि मैं ड्रॉइंग रूम में देर रात तक सरवर और उनकी 23 साल की छोटी बहन नाज़ के साथ गपशप में मशगूल रहती थी।
नाज़ एक नाज़ुक, बहुत प्यारी और बेहद खूबसूरत लड़की थी। अपने भाइयों की तरह लंबी, उसका कद 5 फीट 7 इंच था, और उसका फिगर 32-26-34 इतना आकर्षक था कि उसकी खूबसूरती पर नज़रें टिकना मुश्किल था। उसका चेहरा इतना हसीन था कि देखने वाले की साँसें थम जाएँ।
जैसा कि मैं पहले बता चुकी हूँ, मेरा देवर सरवर मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैं उसकी हँसी-मज़ाक को बहुत पसंद करती थी। खासकर जब से उसने मुझसे “हाथापाई” वाला मज़ाक शुरू किया, मुझे उसमें और भी मज़ा आने लगा। मैं अपने ससुराल में अपनी इस खुशकिस्मती से बहुत खुश थी। मेरी सास, ससुर, देवर, और ननद नाज़ मेरे बहुत करीब थे। उनके साथ मेरा रिश्ता बहुत प्यारा और सच्चा था।
अफसर मेरे साथ एक अच्छे शौहर की तरह बर्ताव करते थे, लेकिन सेक्स के मामले में वो इसे सिर्फ़ एक ज़रूरत या फर्ज़ समझते थे। सेक्स के दौरान वो बस कपड़े उतारते, चूमते, चाटते, लंड डालते, डिसचार्ज होते, और सो जाते। लेकिन जब मेरी सहेलियाँ अपनी शादीशुदा ज़िंदगी के बारे में बातें करतीं, तो मुझे अहसास होता कि उनके शौहर उनके साथ बहुत दिलचस्प और उत्तेजक तरीके से सेक्स करते हैं। उनकी बातें सुनकर मेरे मन में बस एक ख्वाहिश थी कि काश अफसर भी मेरे साथ वैसा ही सेक्स करें जैसा मैं अपनी सहेलियों की ज़ुबानी सुनती थी।
मेरे ससुराल वाले काफी अमीर और मॉडर्न लोग थे। उनका रहन-सहन हमारे मिडिल-क्लास परिवारों से बहुत अलग था। ये बात मुझे तब समझ आई जब मैं शादी के बाद ससुराल में रहने लगी। मेरे अपने भाइयों के मुकाबले मेरा देवर सरवर घर में अक्सर शॉर्ट्स पहनता था। शुरू-शुरू में मुझे ये अजीब लगा क्योंकि मैं ऐसे माहौल की आदी नहीं थी। लेकिन वक्त के साथ मैं भी इन सब चीज़ों की आदी हो गई।
जब सरवर शॉर्ट्स पहनकर मेरे सामने सोफे पर बैठकर टीवी देखता, तो कई बार मेरी नज़र उसके शॉर्ट्स में से हल्का-सा झाँकते हुए उसके लंड पर पड़ जाती। पहली बार जब मेरी नज़र उस पर पड़ी, तो शर्म और घबराहट से मेरे पसीने छूट गए। मुझे लगा जैसे मैंने अनजाने में कोई बहुत बड़ा गुनाह कर लिया। लेकिन सरवर का अपने घर में अपनी मम्मी और बहन के सामने शॉर्ट्स में घूमना और बैठना एक आम बात थी। तो धीरे-धीरे मैं भी इसकी आदी हो गई। फिर मैं खुद भी चोरी-छिपे उसकी शॉर्ट्स में से बाहर झाँकते हुए उसके बड़े लंड को देखने की कोशिश करती और मुझे इसमें मज़ा भी आने लगा।
एक बार मौका पाकर मैंने सरवर को बाथरूम के रोशनदान से नहाते हुए भी देखा था। रोशनदान ऊँचा होने की वजह से मैं उसके शरीर का निचला हिस्सा तो नहीं देख पाई, लेकिन उसकी चौड़ी, नंगी छाती, जो मांसपेशियों से भरी थी, ने मुझे बेचैन कर दिया। सच कहूँ तो सरवर मुझे बहुत अच्छा लगता था। मेरे दिल में ये ख्वाहिश भी जाग चुकी थी कि काश मैं उसके साथ सेक्स कर पाऊँ। मेरे तन-बदन में उसके औज़ार ने आग तो लगा दी थी, लेकिन इस ख्वाहिश को पूरा करने की हिम्मत मुझमें नहीं थी।
कहते हैं ना कि जहाँ चाह, वहाँ राह। कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। आखिरकार मुझे वो मौका मिल ही गया जिसकी मुझे तलाश थी। हमारी पूरी फैमिली अक्सर हर हफ्ते कहीं ना कहीं घूमने-फिरने जाती थी। इस बार मेरे शौहर अफसर ने कराची के दमलोटी में एक प्लांटर नाम के फार्महाउस में जाने और वहाँ रात गुज़ारने का प्रोग्राम बनाया। हम ससुराली फैमिली और कुछ रिश्तेदार दोपहर को एक साथ उस जगह पहुँच गए।
ये फार्महाउस पेड़ों, फूलों, और हरियाली से घिरा हुआ था। शायद इसलिए इसका नाम प्लांटर रखा गया था। मैंने आज तक ऐसी खूबसूरत जगह नहीं देखी थी। वहाँ का माहौल इतना सुकून देने वाला था कि मुझे वहाँ बहुत अच्छा लग रहा था। मेरे साथ-साथ बाकी फैमिली वाले भी शायद पहली बार इस फार्महाउस में आए थे। मॉनसून की बारिश के इस मौसम में फार्महाउस का मज़ा लेने में सबको बहुत आनंद आ रहा था।
उस दिन शाम को हमने फार्महाउस के स्विमिंग पूल में नहाने का प्रोग्राम बनाया। मेरे शौहर अफसर, देवर सरवर, और फैमिली के बाकी लड़के और मर्द शॉर्ट्स या शलवार-पजामे में थे, जबकि मैं, मेरी ननद नाज़, और फैमिली की बाकी औरतें शलवार-कमीज़ में ही स्विमिंग पूल में उतर गईं। हम सब पूल में नहा रहे थे और एक-दूसरे पर पानी की छींटें मार रहे थे। पूल का पानी इतना साफ था कि सब कुछ साफ-साफ दिख रहा था।
अफसर कुछ देर बाद ही बाहर चले गए और अपनी मम्मी-पापा से बातें करने लगे। उधर सरवर अपनी बहन नाज़ को तैरना सिखा रहा था। वो दोनों हाथों से उसे पकड़कर पानी की सतह पर हाथ-पैर चलाना सिखा रहा था। मैं भी अपने ख्यालों में मगन, फैमिली के बच्चों और रिश्तेदारों के साथ पानी में खेल रही थी।
खेलते-खेलते अचानक मेरी नज़र सरवर के निचले हिस्से पर पड़ी, जो शॉर्ट्स पहने हुए था। मैं ये देखकर हैरान रह गई कि उसका लंड शॉर्ट्स में पूरी तरह तना हुआ था। शाम का वक्त था, और रोशनी कम थी, लेकिन फिर भी साफ दिख रहा था कि उसका लंड शॉर्ट्स के अंदर मचल रहा था। मैं इसलिए हैरान थी क्योंकि सरवर किसी गैर लड़की या कज़न को नहीं, बल्कि अपनी सगी बहन नाज़ को तैरना सिखा रहा था। फिर उसका लंड इस तरह खड़ा कैसे हो सकता था?
“शायद मुझे कोई गलतफहमी हुई,” मैंने अपने आप से कहा। लेकिन जब मेरा दिल नहीं माना, तो मैंने पानी में एक-दो बार गोता लगाकर सरवर को करीब से देखने की कोशिश की। तब मुझे पूरा यकीन हो गया कि जैसा मैंने सोचा, वैसा ही था। सरवर ने जब नाज़ की दोनों टाँगों के बीच से होकर उसे तैरने को कहा, तो ये बात बिल्कुल साफ हो गई कि उसने अपना लंड नाज़ की टाँगों के बीच टिकाया हुआ था।
मेरी हैरानी तब और बढ़ गई जब मैंने देखा कि तैरते वक्त जब नाज़ को लगा कि कोई उनकी तरफ ध्यान नहीं दे रहा, तो उसने पानी के अंदर अपना हाथ ले जाकर अपने भाई के लंड को शॉर्ट्स के ऊपर से एक पल के लिए पकड़कर छोड़ दिया। मैं ये नज़ारा देखकर सन्न रह गई। सगा भाई-बहन आपस में ऐसी हरकतें कैसे कर सकते हैं? सगे भाई-बहन का रिश्ता इस तरह मज़ाक बन सकता है, ये मैंने कभी सोचा भी नहीं था। मेरे दिल में एक अजीब सी व्हशत भर गई।
शाम का अंधेरा गहराने पर सब लोग पूल से बाहर निकल आए। फिर रात का खाना खाकर सब आपस में गपशप करने लगे। लेकिन मेरे दिमाग में सरवर और नाज़ का वो मंज़र बार-बार घूम रहा था। इस दौरान मैंने नोटिस किया कि वो दोनों हमारे साथ नहीं थे। मुझे उत्सुकता हुई कि देखूँ तो सही, ये दोनों कहाँ गए। मैं बिना किसी को कुछ बताए खाने की टेबल से उठ गई।
मैंने टीवी लाउंज में वीडियो गेम खेल रहे एक बच्चे से पूछा कि सरवर कहाँ है। उसने बाहर की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वो नाज़ आपा के साथ उधर गए हैं। मैं दबे पाँव उसी तरफ चल पड़ी। मैं ये देखना चाहती थी कि वो दोनों क्या कर रहे हैं। रात थी, लेकिन पार्क की लाइट्स की वजह से कुछ-कुछ दिख रहा था।
नंगे पाँव मैं आखिरकार उस घने पेड़ों के झुरमट के पास पहुँच ही गई, जहाँ मुझे शक था कि वो दोनों होंगे। मैंने पेड़ों के बीच इधर-उधर नज़र दौड़ाई, और आखिरकार वो मुझे नज़र आ ही गए। वो एक बड़े पेड़ के पीछे एक-दूसरे से चिपटे हुए थे। उनके मुँह एक-दूसरे में डूबे हुए थे, और वो एक-दूसरे को किस कर रहे थे।
मैं खामोशी से एक पेड़ की आड़ में खड़ी उन भाई-बहन को एक-दूसरे के होंठ चूसते और चाटते देखती रही। मैं हैरान थी। वो दोनों काफी देर तक एक-दूसरे को किस करते रहे। कुछ देर बाद सरवर ने नाज़ से कहा, “अब वापस चलते हैं। तुम रात को मेरे साथ ही सोना।”
नाज़ ने अपने भाई की बात सुनकर कहा, “भाई, पूरी फैमिली यहाँ मौजूद है। मुझे डर है कि अगर किसी ने देख लिया तो गज़ब हो जाएगा।”
सरवर ने जवाब दिया, “सब लोग दिनभर के खेल-कूद की वजह से थके हुए हैं। सब गहरी नींद सोएँगे। डरो मत, कुछ नहीं होगा।”
भाई की बात सुनकर नाज़ खामोश हो गई। मैं वहीं पेड़ की आड़ में दबककर बैठ गई और उन्हें पहले वापस जाने दिया। उनके जाने के कुछ देर बाद मैं भी अपनी जगह से उठी और वापस कमरे में आ गई।
उस रात कमरे कम होने की वजह से फैमिली के सब लोगों को बेडरूम नहीं मिल सके। इस वजह से मुझे, अफसर, सरवर, और नाज़ को बाहर हॉल में फर्श पर बिस्तर लगाकर सोना पड़ा। सब अपने-अपने कमरों में सोने चले गए। मैं अपने शौहर के करीब लेट गई, जबकि हॉल के दूसरे कोने में सरवर और नाज़ अलग-अलग बिस्तर बिछाकर लेट गए।
अफसर तो लेटते ही कुछ देर में सो गए। लेकिन मेरी नज़र और कान हॉल के दूसरे कोने की तरफ थे। हॉल में पूरा अंधेरा था, इसलिए सिर्फ इतना दिख रहा था कि वो दोनों एक-दूसरे के पास लेटे हुए हैं। वो दोनों कुछ “करवट” ले रहे थे, लेकिन मैं यकीन से कुछ नहीं कह सकती थी।
नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी। मेरे दिमाग में बार-बार वो भाई-बहन के पास-पास मस्ती करने का मंज़र घूम रहा था। उसे सोच-सोचकर मैं हैरान होने के साथ-साथ जज़बाती भी हो रही थी। मैंने एक-दो बार अफसर से चिपटने की कोशिश की, लेकिन वो दुनिया-जहान से बेखबर सोने में मस्त थे। मैं पूरी रात सो नहीं पाई और ऐसे ही जागते हुए गुज़ार दी।
इस दिन से पहले मेरी ख्वाहिश थी कि मैं नाज़ की शादी अपने भाई से करवाऊँ। लेकिन अब मैंने अपना फैसला बदल लिया कि ऐसा नहीं होगा। अगले दिन हम सब अपने घर वापस लौट आए।
घर वापस आने के बाद सरवर और नाज़ आपस में नॉर्मल बिहेव कर रहे थे। धीरे-धीरे मैं भी नॉर्मल हो गई थी। लेकिन फिर भी सरवर को नाज़ के साथ देखने का जुनून मुझ पर तारी रहा। जब से मैंने उन दोनों का मंज़र अपनी आँखों से देखा था, मैं बस यही सोच रही थी कि अगर एक शख्स अपनी सगी बहन के साथ ऐसा कर सकता है, तो सगी भाभी के साथ क्यों नहीं?
मैं हर वक्त उनके पीछे रहती कि उन्हें साफ-साफ देख लूँ। क्योंकि अपनी आँखों से सब कुछ देखने के बावजूद मुझे अब भी ये शक था कि शायद दोनों में सिर्फ छेड़छाड़ ही हो और वो आखिरी हद तक ना गए हों। इस शक को दूर करने के लिए मैंने बहुत कोशिश की कि किसी तरह उन्हें फिर से रंगे हाथों पकड़ूँ, लेकिन मुझे मौका नहीं मिल रहा था।
फिर एक दिन मेरा काम बन ही गया। उस दिन अफसर किसी काम से अपनी मम्मी और अब्बू के साथ शहर से बाहर गए हुए थे। उनका इरादा एक दिन बाद वापस आने का था। उस रात मैं, नाज़, और सरवर ड्रॉइंग रूम में बैठकर एक इंडियन मूवी देख रहे थे। ये इमरान हाशमी की मूवी थी, जिसमें बहुत सारे जज़बाती और सेक्सी सीन थे।
मूवी देखते-देखते मैंने सरवर की तरफ देखा तो उसका लंड शॉर्ट्स के अंदर तना हुआ दिखाई दिया। मैं मूवी देखने के साथ-साथ चोरी-छिपे नाज़ और सरवर को भी देख रही थी। मैंने नोटिस किया कि वो दोनों खास सेक्सी सीन पर एक-दूसरे को देखते और जैसे कोई गुप्त इशारा कर रहे थे। मैं समझ गई कि आज उनका आपस में कुछ शुगल करने का इरादा है।
मैंने मूवी अधूरी छोड़कर अंगड़ाई लेते हुए अपनी जगह से उठी और कहा, “मुझे नींद आ रही है, मैं सोने जा रही हूँ।” फिर मैं वहाँ से अपने कमरे में चली गई। मैं बिस्तर पर लेटी करवटें बदल रही थी, सोच रही थी कि आज ज़रूर उन दोनों को देख पाऊँगी।
मूवी की हल्की-हल्की आवाज़ आ रही थी, और आखिरकार जब आवाज़ बंद हुई, तो मैं दबे पाँव ड्रॉइंग रूम की तरफ गई। ड्रॉइंग रूम की लाइट जल रही थी, लेकिन वो दोनों वहाँ से गायब थे। मैं धीरे-धीरे नाज़ के कमरे की तरफ गई। देखा कि उसके कमरे का दरवाज़ा बंद है और कमरे में पूरी खामोशी है। इससे मुझे अंदाज़ा हो गया कि वो लोग वहाँ भी नहीं हैं।
मैं उसी तरह दबे पाँव सरवर के कमरे के पास पहुँची। बाहर से ही उसके कमरे की लाइट जलती दिखी, और मुझे यकीन हो गया कि वो दोनों अंदर मौजूद हैं। मैंने कमरे के बंद दरवाज़े को हल्का-सा छुआ, तो खुशकिस्मती से दरवाज़ा खुला हुआ मिला। लगता था कि शायद जल्दी में वो दरवाज़ा बंद करना भूल गए हों।
सरवर के कमरे के दरवाज़े के सामने एक पर्दा लटका हुआ था। मैंने धीरे से पर्दा हटाया, तो देखा कि नाज़ बिल्कुल नंगी बिस्तर पर पड़ी हुई है, और सरवर उस पर लेटा हुआ अपना लंड उसकी चूत में डाले हुए अंदर-बाहर कर रहा था। नाज़ ने अपनी टाँगें अपने भाई की कमर के चारों ओर लपेट रखी थीं। दोनों एक-दूसरे को चूम रहे थे, और नाज़ नीचे से सरवर के साथ ताल मिलाकर उछल रही थी।
कमरे की पूरी रोशनी में नाज़ का शरीर साफ नज़र आ रहा था। मेरे मुकाबले में नाज़ का फिगर कहीं ज़्यादा आकर्षक था। उसकी चिकनी, गोरी त्वचा और गोल-मटोल चुचियाँ चमक रही थीं। सरवर का लंड, जो उसकी बहन की चूत में समाया हुआ था, दूर से ही बहुत बड़ा और मोटा दिख रहा था।
उन दोनों की चुदाई का मंज़र देखकर मेरी चूत पूरी तरह गीली हो गई थी। मैं आज पहली बार एक जवान लड़के और लड़की की लाइव चुदाई देख रही थी, वो भी सगे भाई-बहन की। मैं जज़बाती हो रही थी, और मेरा दिल चाह रहा था कि मैं भी उन दोनों से चिपट जाऊँ। मेरी दिली ख्वाहिश थी कि अगर सरवर मुझे चोदना चाहे, तो इसकी शुरुआत वो खुद करे। मैं खुद को उनके सामने किसी रंडी की तरह पेश नहीं करना चाहती थी।
मैं अभी तक कमरे से बाहर, पर्दे के पीछे ही खड़ी थी। हॉल में पूरा अंधेरा था, इसलिए उन्हें मेरी मौजूदगी का अहसास नहीं था। उनकी गर्मजोशी भरी चुदाई ने मेरी चूत को पानी-पानी कर दिया था, और अब मेरा सब्र जवाब देने लगा था।
मैंने और इंतज़ार न करते हुए दरवाज़े पर लटके पर्दे को एकदम हटाया और ये कहती हुई कमरे में घुस गई, “ये क्या हो रहा है, नाज़?”
मुझे यूँ अपने सामने देखकर दोनों के जिस्म एकदम रुक गए। अब वो दोनों बेड पर बिल्कुल नंगे, डरी हुई नज़रों से मुझे देख रहे थे। मैंने बनावटी गुस्से का इज़हार करते हुए कहा, “तुम दोनों को शर्म नहीं आती? एक-दूसरे के साथ ऐसी गंदी हरकत करते हुए। अब आने दो तुम्हारी अम्मी, अब्बू, और तुम्हारे भाई को, मैं उन्हें बता दूँगी कि तुम लोग कितने गंदे हो।”
जैसे ही मैं बेडरूम से अपने कमरे की तरफ वापस मुड़ी, नाज़ एकदम उठकर खड़ी हो गई और मेरे सामने आकर मेरे सीने से चिपट गई। वो रोते हुए कहने लगी, “भाभी, हमसे गलती हो गई। प्लीज़, प्लीज़, आप इस बात का ज़िक्र किसी से न करें।” उसकी आँखों में आँसू थे, और वो सचमुच रो रही थी।
उसका इस तरह रोना देखकर मैंने मान जाने की एक्टिंग की और उसे और ज़ोर से अपने जिस्म से चिपटा लिया। मैंने उसकी पेशानी पर किस करते हुए कहा, “अच्छा नाज़, तुम लोगों की ये हरकत राज़ ही रहेगी। तुम लोग घबराओ मत।”
इतनी देर में सरवर भी नंगा ही मेरे पीछे से चिपट गया और कहने लगा, “थैंक यू भाभी, आप बहुत अच्छी हैं।” मैं दोनों नंगे भाई-बहन के बीच चिपटी हुई थी। उनके जिस्मों की गर्मी और उनके साथ इस तरह चिपटने का मज़ा मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। मेरा दिल चाह रहा था कि कहीं वो मुझे छोड़ न दें।
मैंने नाज़ की आँखों में झाँकते हुए कहा, “प्यारी बच्ची, मैं तुम दोनों को दुखी नहीं देख सकती।” लेकिन वो दोनों जैसे अभी तक मेरी बात पर यकीन नहीं कर रहे थे। दूसरी तरफ, सरवर के मेरे साथ इस तरह लिपटने की वजह से उसका लंड, जो उसकी बहन की चूत के पानी से तर-बतर था, मेरी टाँगों के बीच से होता हुआ मेरी शलवार में छुपी चूत को छूने लगा।
सरवर के लंड को अपनी चूत के इतने करीब पाकर मैं और बेकाबू हो रही थी। मज़े और मस्ती की वजह से मेरी आँखें अपने आप बंद होने लगीं। जब मेरे बिल्कुल सामने खड़ी नाज़ ने मेरी बदलती हुई हालत देखी, तो उसने अपने भाई सरवर को आँखों ही आँखों में कोई खास इशारा किया।
इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, सरवर ने मुझे अपनी बाहों में भरे हुए मेरे जिस्म को अपनी तरफ मोड़ा, और मैं एक मोम की गुड़िया की तरह उसकी तरफ मुड़ गई। जैसे ही मेरी चटिया उसके नंगे, मज़बूत सीने से टकराईं, मुझे लगा जैसे मेरी कमीज़ और ब्रा के बावजूद मेरे निप्पल तनकर खड़े हो गए।
सरवर ने मेरे होंठों को अपने होंठों में कैद कर लिया, और मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी रूह ही जिस्म से फरार हो गई। इतनी देर में नाज़ फिर से अपने भाई के बिस्तर पर चढ़कर लेट गई। जैसे ही सरवर ने उसे बिस्तर पर जाते देखा, उसने मुझे अपनी मज़बूत बाहों में उठाकर अपनी बहन नाज़ के साथ बिस्तर पर लिटा दिया।
मैं नाज़ के साथ लेट गई, और दूसरी तरफ सरवर भी मेरे पीछे आकर मुझसे लिपटकर चिपट गया। सरवर के मेरे पीछे लेटने की वजह से उसका लंड मेरी गांड की फाँकों में चुभ रहा था। मेरे सामने से नाज़ ने आगे बढ़कर मेरे होंठों को अपने होंठों में लिया और मेरे होंठों पर किस्सेस की बरसात कर दी।
किसी औरत के साथ किस करने का ये मेरा पहला तजुर्बा था, जिसने मेरे जिस्म में एक अजीब सी आग लगा दी। मैं और नाज़ आपस में किसिंग में मशगूल हो गए, जबकि सरवर मुझसे चिपटा हुआ था और उसका लंड मुझे पीछे से चुभ रहा था। सरवर के लंड को अपनी गांड की फाँकों में महसूस करते ही मैं तुरंत सीधी होकर बिस्तर पर लेट गई।
मेरे इस तरह सीधा लेटते ही सरवर मेरे ऊपर आ गया और मुझे बेतहाशा किस करने लगा। नाज़ भी मेरे जिस्म को सहलाने लगी, और मैं खुश थी कि अब मेरी ख्वाहिश पूरी हो रही थी। मैंने सरवर को अपनी बाहों में चिपटा लिया, और सरवर ने मेरी कमीज़ ऊपर कर दी। मेरी ब्रा में कसे हुए मेरे मम्मे पहली बार उन भाई-बहन के सामने आधे उघड़े नज़र आए।
नाज़ ने मुझे और अपने भाई को एक-दूसरे में मगन होते देखा, तो उसने आगे बढ़कर मेरी शलवार का नाड़ा खोला और मेरी शलवार उतार दी। मैं कुछ न बोली। इस दौरान सरवर लगातार मेरे होंठों को चूस रहा था, और मैं उसके होंठों को चूस रही थी। मेरी शलवार उतारकर नाज़ ने अपने भाई को धक्का देकर मेरे जिस्म से अलग किया, जिसकी वजह से सरवर मेरे साथ ही बिस्तर पर लेट गया।
नाज़ मेरी टाँगों के बीच आई और मेरी चूत को चाटने लगी। मैं हैरान हो गई और सोचने लगी कि ये दोनों शायद हर तरह से सेक्स करते हैं। अफसर ने तो मेरी चूत में लंड डालने के अलावा कभी हाथ भी नहीं लगाया था। नाज़ जैसी मासूम और खूबसूरत लड़की की ज़ुबान मेरी चूत को चाट रही थी, और अब मैं काबू से बाहर हो गई थी।
उधर मेरे साथ लेटा हुआ मेरा देवर सरवर मेरे मम्मों को चूसने लगा। दोनों भाई-बहन के होंठ मेरी चूत, मम्मों, और पूरे तन-बदन में आग बरसा रहे थे। थोड़ी देर बाद सरवर ने नाज़ को हटाया और मेरी टाँगों के बीच आ गया। अब नाज़ मेरे पहलू में लेट गई और मेरे मम्मों को सहलाते हुए मेरे होंठों पर किस करने लगी।
नाज़ के चाटने की वजह से मेरी चूत गीली हो चुकी थी। सरवर ने अपना लंड मेरी चूत पर रखा और अंदर डालने लगा। वही लंड, जो मेरा सपना था, जिसे मैं बार-बार उसकी शॉर्ट्स में से देखा करती थी। आज वही लंड मेरे अंदर जा रहा था। सरवर का लंड मैं पहले देख चुकी थी—गज़ब का मोटा और लंबा, लगभग 7 इंच लंबा और 2 इंच मोटा।
जैसे ही सरवर ने अपना लंड मेरी चूत में डाला, मज़े के मारे मेरी चीख निकल गई, “आआह्ह!” मेरी चीख सुनते ही नाज़ मेरे ऊपर लेट गई और मेरे होंठों को किस करते हुए कहने लगी, “भाई, ज़रा धीरे करो, भाभी को तकलीफ हो रही है।”
सरवर ज़रा रुक गया और धीरे-धीरे करने लगा। मैं हैरान थी कि इतना बड़ा लंड नाज़ जैसी नाज़ुक लड़की कैसे बर्दाश्त कर लेती होगी। लंड पूरी तरह अंदर जा चुका था, और मैं खुशी से दीवानी हो गई थी। ऐसा लंड, ऐसा जवान और बेहोश करने वाला लंड! मैं पागल हो गई और सोचने लगी कि यही है असली सेक्स।
नाज़ को सरवर ने मेरे ऊपर से हटा दिया और खुद मेरे होंठों पर आ गया। वो अपना लंड अंदर-बाहर करने लगा। नाज़ मेरे पहलू में लेटी अपने नाज़ुक हाथों से मेरे मम्मों को सहला रही थी। सरवर के लंड ने मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। मैंने अपनी टाँगें उसकी कमर से लपेट ली थीं।
मैंने ऐसा अफसर के साथ कभी नहीं किया था। सरवर का लोहे जैसा मज़बूत बदन मुझे अपने अंदर समा चुका था, और उसका लंड बहुत ज़बरदस्त धक्के मार रहा था, “फच-फच-फच!” नाज़ फिर से मेरी टाँगों के बीच आई और मेरी चूत के साथ-साथ अपने सगे भाई के लंड को भी चाटने लगी। ये लम्हा मुझे क़यामत से कम नहीं लग रहा था।
मैंने अपनी टाँगों और बाहों से सरवर को जकड़ रखा था। मैं उसके लंड को अपनी रूह, दिल, दिमाग, और चूत—हर जगह महसूस कर रही थी। मैं बेतहाशा उसके होंठों को चूस रही थी और उसकी शरीयर आँखों में अपने लिए बेपनाह मोहब्बत देख रही थी। सरवर काफी ऊपर उठकर धक्के मार रहा था, और मेरा बदन सेक्स के शौक में मचल रहा था।
लंड मेरी चूत में बुरी तरह फँसा हुआ था और चूत के एक-एक हिस्से को देहला रहा था, “आआह्ह… ऊऊह्ह… सरवर… और ज़ोर से!” नाज़ की ज़ुबान मेरी चूत में अजीब बहार और मस्ती बिखेर रही थी। मैं तो भूल चुकी थी कि मैं कौन हूँ। बस एक लड़की थी, जो ज़िंदगी में पहली बार सेक्स का असली मज़ा लूट रही थी।
मैंने कसम खाई कि मैं सरवर को कभी नहीं छोड़ूँगी। सरवर मेरे ऊपर से उतरकर फर्श पर खड़ा हो गया। उसने मुझे बिस्तर से खींचकर मेरे जिस्म को बेड के किनारे तक लाया। फिर मेरी टाँगें उठाकर अपने कंधों पर रख लीं और पूरी तरह मुझ पर झुककर अंदर-बाहर करने लगा, “फट-फट-फट!”
मैं जान रही थी कि ताकतवर सेक्स और वो भी सरवर जैसे देवर से क्या होता है। नाज़ ने मेरी उठी हुई टाँगें देखीं, तो वो भी बिस्तर से उतरकर फर्श पर बैठ गई। फिर अपने भाई की टाँगों के बीच से होती हुई मेरी गांड के ठीक नीचे आ गई और अपनी ज़ुबान से मेरी गांड के सूराख को चाटने लगी, “आआह्ह… नाज़… ओह्ह!”
मैं मज़े की शिद्दत से मरी जा रही थी। हर जगह से अलग-अलग लुत्फ़ आ रहा था। दोनों भाई-बहन ने आज मुझे अपना राज़दान बनाने के लिए सब कुछ करने की कसम खा ली थी। मैं भी तो आज पहली बार सेक्स के इस नए अंदाज़ का मज़ा लूट रही थी।
सरवर ने कुछ गज़बनाक धक्के लगाए, “फच-फच-फच!” जिससे मैं अपने पानी छोड़ने के करीब आ गई। मेरा देवर मेरी फुद्दी की चुदाई करते वक्त बार-बार एक ही बात कह रहा था, “भाभी जान, तुमने मुझे अपना दीवाना बना दिया है।”
उसकी बात सुनकर मैं खुश हो गई, बल्कि मदहोश हो गई। जिसका मैं दीवानी थी, वो मेरा भी दीवाना बन गया। हकीकत ये थी कि आज इन दोनों भाई-बहन ने मुझे उनका दीवाना बना दिया था।
कुछ ही देर बाद सरवर मुझमें डिसचार्ज होने लगा। उसका डिसचार्ज होने का अंदाज़ ऐसा था जैसे वो मेरी चूत में नहीं, बल्कि मेरी चूत को अपने लंड के पानी से नहला रहा था। उसके लंड के पानी को अपनी चूत में महसूस करके मैं भी डिसचार्ज हुई, और ऐसी हुई जैसे मैं पहली बार डिसचार्ज हो रही हूँ।
डिसचार्ज होते वक्त मेरे जिस्म को ऐसे ज़ोर-ज़ोर से झटके लगे जैसे मेरे सारे जिस्म का जूस निकल गया। उस रात हम तीनों सुबह तक नंगे रहे। सरवर ने मेरे सामने नाज़ के साथ एक बार फिर सेक्स किया।
अब तो मेरी ज़िंदगी का एक-एक दिन खुशियों से लबरेज़ हो गया है। क्योंकि जैसा “सासुराली प्यार” मुझे अपने ससुराल में मिला, वो शायद ही दुनिया की किसी और बहू को अपने ससुराल में मिला हो।
अब आप बताइए, क्या आपको भी ऐसा सासुराली प्यार मिला है? अपनी राय कमेंट्स में ज़रूर बताएँ।