सुहागरात से पहले

मेरी सगाई की तारीख पक्की हो चुकी थी। जब मैं पहली बार सुनील से मिली, तो उसकी हँसमुख अदा और मस्ती भरी बातों ने मुझे बाँध लिया। वो न सिर्फ़ देखने में आकर्षक था, बल्कि उसका मज़ाक करने का अंदाज़ भी कमाल का था। मैं तीन दिन से इंदौर में थी, और सुनील हर रोज़ मुझसे मिलने आता। हमारी बातें, हँसी-मज़ाक, और नज़दीकियाँ बढ़ती जा रही थीं। एक दिन हम सिनेमा देखने गए। हॉल के अंधेरे में उसने मौका पाकर मेरे स्तनों को हल्के से छुआ। उसका स्पर्श मुझे रोमांच से भर गया, और मैंने मन ही मन उसकी इस शरारत को पसंद किया।

पापा ने बताया कि उज्जैन के मंदिर की बहुत मान्यता है। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर हम चाहें, तो वहाँ दर्शन के लिए जा सकते हैं। बस फिर क्या था, हमने तुरंत उज्जैन जाने का प्लान बना लिया। अगली सुबह आठ बजे हम कार से निकल पड़े। लगभग दो घंटे में 70-75 किलोमीटर का सफर तय करके हम उज्जैन के एक शानदार होटल में पहुँच गए।

होटल के कमरे में कदम रखते ही सुनील ने मुस्कुराते हुए कहा, “नेहा, जल्दी फ्रेश हो जाओ। नाश्ता करके मंदिर चलेंगे।”

मैं बाथरूम में चली गई। नहाकर बाहर आई, तो हल्का मेकअप किया। मेरी लाल सलवार-कमीज़ में मैं खुद को शीशे में निहार रही थी, तभी नाश्ता आ गया। नाश्ते के दौरान सुनील की नज़रें बार-बार मुझ पर टिक रही थीं। उसकी आँखों में एक चमक थी, जो मुझे बेकरार कर रही थी। मैंने शरारत भरे लहजे में पूछा, “क्या देख रहे हो?”

वो हल्के से मुस्कुराया, “तुम्हें… नेहा, तुम आज कुछ ज़्यादा ही खूबसूरत लग रही हो।”

“हटो, चुप करो!” मैं शरमा गई, लेकिन मन ही मन उसकी तारीफ से खुश हो रही थी।

“सच कह रहा हूँ, तुम्हें अभी बाँहों में लेने का मन कर रहा है,” उसने धीमे स्वर में कहा।

“सुनील!” मैंने नकली गुस्सा दिखाया, लेकिन मेरी आँखें उसकी चाहत को पढ़ रही थीं।

वो कुर्सी से उठा और बाँहें फैलाकर बोला, “आ जाओ, मेरे पास… गले लग जाओ।”

मैं धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ी। मेरी आँखें बंद थीं, और दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। जैसे ही मैं उसकी बाँहों में समाई, उसने मुझे कसकर जकड़ लिया। उसके पैंट में उभरता लंड मेरी जाँघों के बीच चुभने लगा। मैं और करीब चली गई, उसके सीने से चिपककर उसकी गर्मी महसूस करने लगी। उसने मेरा चेहरा ऊपर उठाया और मेरी आँखों में देखने लगा। मेरी साँसें तेज़ थीं। अचानक उसके होंठ मेरे होंठों से जा टकराए। वो मुझे बेतहाशा चूमने लगा। उसने मेरे निचले होंठ को चूसा, फिर ऊपर वाले को हल्के से काटा। मैं आनंद के सागर में डूबने लगी। उसका उभार अब मेरी चूत के पास ठोकरें मार रहा था। मैंने अपनी जाँघें थोड़ी सेट कीं, ताकि उसका लंड बिल्कुल सही जगह पर लगे। अब वो मेरी चूत पर जोर-जोर से दबाव डाल रहा था, और मैं भी नीचे से उसका साथ दे रही थी।

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वो हाँफते हुए अलग हुआ और बोला, “नेहा… एक बात कहूँ?”

“कहो, सुनील,” मैंने धीमे स्वर में जवाब दिया।

“मैं तुम्हें… पूरा देखना चाहता हूँ,” उसकी आवाज़ में एक अजीब सी चाहत थी।

मैं उसका इशारा समझ गई, लेकिन उसे तड़पाने का मज़ा लेने लगी। “तो देखो ना, मैं तो सामने खड़ी हूँ!”

“नहीं, ऐसे नहीं… बिना कपड़ों के,” उसने हिम्मत करके कहा।

“हटो, सुनील! शरम नहीं आती?” मैंने हँसते हुए उसे छेड़ा।

“अच्छा, छोड़ो… मैं तो बस यूँ ही कह रहा था,” वो थोड़ा झेंप गया।

मैं उससे लिपट गई और प्यार से बोली, “मेरे सुनील, सच बोलो… क्या चाहते हो?”

वो मेरी आँखों में देखने लगा, फिर धीरे से बोला, “तुम्हें बिना कपड़ों के देखना चाहता हूँ… तुम इतनी सुंदर हो, नेहा।”

मैंने उसकी बाँहों में सिमटते हुए कहा, “सुनो, मैं तो तुम्हारी हूँ। खुद ही उतार लो मेरे कपड़े।”

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उसकी आँखों में चमक आ गई। “सच?” उसने मेरे टॉप को धीरे-धीरे ऊपर खींचा और उतार दिया। मेरी ब्रा में कसे उरोज उसके सामने उभर आए। मेरी साँसें तेज़ हो गईं। उसने मेरे उरोजों को हल्के से सहलाया। उसका स्पर्श ऐसा था, मानो बिजली का झटका लगा हो। फिर उसने मेरी ब्रा के हुक खोल दिए। मेरे मस्त उरोज आज़ाद हो गए। सुनील की आँखें चमक उठीं। उसने मेरे निप्पल्स को अपने होंठों में लिया और चूसने लगा। मैं सिहर उठी। “सुनील… हाय… मैं मर जाऊँगी… बस करो!” मेरी आवाज़ में ना से ज़्यादा हाँ थी।

वो रुका नहीं। उसने मेरी पैंट की चेन खोली और उसे नीचे सरकाने लगा। मैंने उसकी मदद की और पैंट उतार फेंकी। अब मैं सिर्फ़ पैंटी में थी। वो घुटनों पर बैठ गया और मेरी चूत को पैंटी के ऊपर से निहारने लगा। धीरे-धीरे उसने मेरी पैंटी भी उतार दी। मेरी चिकनी, गीली चूत उसके सामने थी। उसने मेरे नितंबों को पकड़ा और मुझे अपनी ओर खींच लिया। उसकी जीभ मेरी चूत की फाँकों के बीच घुस गई। मैंने अपनी जाँघें और खोल दीं, ताकि वो और गहराई तक चाट सके। उसकी जीभ मेरे दाने को छू रही थी, और मैं आनंद से काँप रही थी। “हाय… सुनील… बस… अब रुको!” मैंने सिसकते हुए कहा, लेकिन वो कहाँ मानने वाला था।

वो खड़ा हुआ। उसका लंड पैंट में तंबू बनाए हुए था। मैंने हँसते हुए कहा, “अब मेरी बारी… मैं भी तुम्हें देखना चाहती हूँ।”

सुनील ने झट से अपने कपड़े उतार फेंके। उसका कसरती शरीर और कड़क लंड देखकर मेरी साँसें थम गईं। उसका लंड लंबा, मोटा, और पूरी तरह तैयार था। मैंने मन ही मन सोचा, “हाय… ये तो मस्त चीज़ है… मज़ा आएगा!” मैं उसके पास गई और उससे चिपक गई। उसका लंड मेरी चूत से टकरा रहा था, जिससे मेरी उत्तेजना और बढ़ गई। मुझे गाँड की चुदाई हमेशा से पसंद थी, और उसका मोटा लंड देखकर मेरी गाँड में खुजली होने लगी। मैंने सोचा, क्यों ना आज इसे और मज़ेदार बनाया जाए?

सुनील ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया, जैसे मैं कोई हल्का सा खिलौना हो। उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया रख दिया, ताकि मेरी गाँड थोड़ी ऊँची हो जाए। वो मेरी जाँघों के बीच में आकर बैठ गया। उसने धीरे से कहा, “नेहा… अगर मैं तुम्हारी गाँड को चोदूँ, तो कैसा रहेगा?”

मैं मन ही मन खुश हो गई। वो खुद ही वही चाहता था, जो मुझे चाहिए था। मैंने हँसते हुए कहा, “मेरे राजा, जो चाहे करो… बस अब और इंतज़ार नहीं होता।”

“इससे कोई खतरा भी नहीं होगा,” उसने मुस्कुराते हुए कहा।

“अरे, सुनील… अब चुप भी करो और शुरू करो!” मैंने बेसब्री से कहा।

मैंने अपनी टाँगें ऊँची कर लीं, ताकि मेरी गाँड का छेद उसे साफ़ दिखे। मैं हमेशा अपनी गाँड को चिकनाई से तैयार रखती थी, और आज भी वैसा ही था। सुनील ने अपने लंड पर थूक लगाया और उसकी सुपारी को मेरी गाँड के छेद पर सेट किया। उसने हल्का सा जोर लगाया, और सुपारी आसानी से अंदर सरक गई। मैंने आह भरी, “हाय… सुनील!”

“दर्द हो रहा है, नेहा?” उसने चिंता से पूछा।

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“अरे, नहीं… और करो… आगे बढ़ो!” मैंने उसे उकसाया। उसे क्या पता, मैं गाँड की चुदाई में माहिर थी। उसने धीरे-धीरे धक्के शुरू किए। उसका लंड मेरी गाँड में धीरे-धीरे गहराई तक जा रहा था। मैंने उसे और उत्तेजित करने के लिए कहा, “सुनील, ये क्या… बैलगाड़ी की तरह धीमे-धीमे? ज़ोर से करो ना!”

मेरी बात सुनते ही उसने एक ज़ोरदार धक्का मारा। उसका लंबा, मोटा लंड मेरी गाँड में जड़ तक उतर गया। मेरी चीख निकल गई, “हाय… मार डाला!” लेकिन ये दर्द मज़े में बदल रहा था। उसने अब रफ्तार पकड़ ली। उसका लंड मेरी गाँड को चीरता हुआ अंदर-बाहर होने लगा। हर धक्के के साथ मेरी सिसकारियाँ तेज़ हो रही थीं, “हाय… मेरे राजा… और ज़ोर से… चोद दो मेरी गाँड… हाय… मज़ा आ रहा है!”

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सुनील भी पूरी तरह उत्तेजित था। उसकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “नेहा… ओह… कितनी टाइट है तुम्हारी गाँड… मज़ा आ रहा है!” उसने मेरी जाँघों को कसकर पकड़ रखा था और पूरी ताकत से धक्के मार रहा था। मैं अपनी चूचियों को खुद मसल रही थी, उनके निप्पल्स को चुटकी में लेकर खींच रही थी। मज़ा दोगुना हो रहा था। मैंने अपनी गाँड को और सिकोड़ लिया, ताकि उसे और आनंद आए। लेकिन ये मेरी गलती थी।

“नेहा… ये क्या… आह… मेरा निकल गया!” उसने सिसकते हुए कहा। मेरी गाँड में गर्म लावा उगलने लगा। मैंने तुरंत अपनी गाँड को ढीला किया, लेकिन तब तक उसका वीर्य मेरी गाँड को भर चुका था। उसका लंड सिकुड़कर बाहर आ गया। “हाय… नेहा… मैं तो गया… आह!” वो हाँफ रहा था।

मैंने तौलिये से उसका वीर्य साफ़ किया, लेकिन मेरी चूत अभी तक तड़प रही थी। मैं झड़ी नहीं थी, और मेरी प्यास अधूरी थी। फिर भी, मैं उसके साथ उठी। हम दोनों ने कपड़े पहने और होटल के भोजनालय में चले गए। दोपहर के 12 बज रहे थे। खाना खाकर हम उज्जैन की सैर को निकल पड़े। मंदिर के दर्शन किए, बाज़ार घूमे, और स्थानीय मिठाइयों का मज़ा लिया। सुनील मेरे साथ हर पल मस्ती करता रहा, कभी मेरा हाथ पकड़ता, तो कभी चुपके से मेरी कमर पर हाथ रख देता। उसकी हर हरकत मुझे और करीब ला रही थी।

शाम चार बजे हम होटल वापस लौट आए। कमरे में बैठकर हमने ढेर सारी बातें की। मैंने सुनील से उसकी पसंद पूछी। उसने खुलकर बताया कि उसे गाँड की चुदाई बहुत पसंद है, क्योंकि उसमें मज़ा भी है और कोई चिंता भी नहीं। चूत की चुदाई तो उसे भी अच्छी लगती थी, लेकिन गाँड में उसे ज़्यादा आनंद आता था। मैंने हँसते हुए कहा, “अच्छा, तो मेरे राजा को गाँड मारने का शौक है!” उसने शरमाते हुए हामी भरी। हमारी बातें अब खुल चुकी थीं, और वो परदा जो पहले था, वो पूरी तरह हट गया था।

कमरे में आते ही मैं बाथरूम चली गई। मैंने कपड़े उतारे और शावर के नीचे नहाने लगी। मेरी चूत अभी भी तड़प रही थी, और मैं चाहती थी कि सुनील फिर से तैयार हो। तभी मुझे अपनी कमर पर एक सुहाना सा स्पर्श महसूस हुआ। मैंने बिना पलटे कहा, “सुनील, बाहर जाओ… यहाँ क्यों आए?”

लेकिन सुनील पहले ही नंगा होकर बाथरूम में घुस चुका था। उसका गर्म शरीर मेरी पीठ से चिपक गया। शावर का पानी हमें भिगो रहा था। “मुझे भी तो नहाना है, नेहा,” उसने शरारत भरे लहजे में कहा। उसका लंड मेरे चूतड़ों में घुसने की कोशिश कर रहा था। मैं तुरंत घूमी और उससे लिपट गई। उसका कड़क लंड अब मेरी चूत से टकरा रहा था। मैं फिर से उत्तेजित हो रही थी। मेरी चूत में लंड की चाहत तेज़ हो गई। हम दोनों शावर के नीचे एक-दूसरे को सहलाने लगे। मैं उसके गालों पर अपने गाल रगड़ रही थी, और वो मेरी चूचियों को दबा रहा था। उसका लंड मेरी चूत पर ठोकरें मार रहा था, जैसे कोई दरवाजा खटखटा रहा हो।

उसने मुझे स्टील की रॉड पकड़कर झुकने को कहा। मैंने रॉड पकड़ी और अपनी गाँड पीछे निकाल दी, ताकि मेरी चूत की फाँकें खुल जाएँ। शावर का ठंडा पानी मेरी पीठ पर बरस रहा था, लेकिन मेरे जिस्म में आग लगी थी। सुनील ने अपना लंड मेरी चूत की फाँकों पर रगड़ा। उसका लंड मेरे दाने को छू रहा था, जिससे मेरे पूरे शरीर में गुदगुदी सी दौड़ गई। मैं सिसक उठी, “हाय… सुनील… करो ना!”

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उसने अपने लंड को मेरी चूत के मुँह पर सेट किया और एक ज़ोरदार धक्का मारा। उसका मोटा लंड मेरी चूत को चीरता हुआ जड़ तक घुस गया। मैं आनंद और दर्द के मिश्रण में चीख पड़ी, “हाय रे… मार डाला!” लेकिन ये दर्द मुझे और मज़ा दे रहा था। उसने धक्के शुरू किए। हर धक्के के साथ उसका लंड मेरी चूत की गहराइयों को छू रहा था। शावर का पानी हमारे जिस्मों पर बरस रहा था, लेकिन हमारी आग बुझने का नाम नहीं ले रही थी।

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“नेहा… सुबह तो तुम्हें मज़ा नहीं आया होगा… अब ले मज़ा!” उसने हाँफते हुए कहा।

मुझे हँसी आ गई। उसे क्या पता, सुबह की गाँड की चुदाई कितनी मज़ेदार थी। लेकिन हाँ, चूत की प्यास तो अभी बाकी थी। मैंने सिसकते हुए कहा, “हाँ… अब मत छोड़ना… मेरी चूत का पानी निकाल दे!”

उसके धक्के अब और तेज़ हो गए। उसका लंड मेरी चूत में सटासट अंदर-बाहर हो रहा था। फच-फच की आवाज़ें बाथरूम में गूँज रही थीं। मैंने अपनी टाँगें और खोल दीं, ताकि वो और गहराई तक जा सके। मेरी चूत में मीठी सी जलन बढ़ रही थी। मैं चिल्ला रही थी, “सुनील… और तेज़… कसकर चोदो… हाय… मज़ा आ रहा है… और ज़ोर से!”

वो भी पूरी ताकत से धक्के मार रहा था। उसकी कमर तेज़ी से हिल रही थी, और उसके चूतड़ मेरी चूत पर ज़ोर-ज़ोर से टकरा रहे थे। “हाँ… नेहा… ले… और ले… कितनी चिकनी है तुम्हारी चूत!” उसकी सिसकारियाँ मेरे कानों में मधुर संगीत की तरह गूँज रही थीं। मैं अपनी चूचियों को मसल रही थी, उनके निप्पल्स को चुटकी में लेकर खींच रही थी। मेरी चूत अब झड़ने के कगार पर थी।

मैंने सुनील की ओर देखा। उसकी आँखें बंद थीं, और उसका चेहरा उत्तेजना से लाल हो रहा था। मैं चिल्लाई, “सुनील… हाय… मेरा निकल रहा है… आह… मैं गई… हाय रे!” मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। मैं ज़ोर से झड़ गई। मेरे पूरे शरीर में कंपकंपी छा गई। लेकिन सुनील रुका नहीं। वो और तेज़ी से धक्के मारता रहा। मैंने हाँफते हुए कहा, “बस… सुनील… अब छोड़ दो… लग रही है!”

उसने आखिरी बार एक ज़ोरदार धक्का मारा और अपना लंड बाहर निकाला। उसका लंड अभी भी उफन रहा था। मैंने तुरंत उसे अपने हाथ में लिया और तेज़ी से मुठ मारने लगी। मैंने कसकर उसका लंड दबाया और खींचा। कुछ ही पलों में उसका वीर्य बाहर छलक पड़ा। “नेहा… आह… हो गया… बस!” वो सिसक रहा था। उसका गर्म वीर्य मेरे हाथों पर गिर रहा था। मैंने उसका लंड खींच-खींचकर सारा रस निकाल दिया। शावर के पानी ने उसका वीर्य धो दिया।

हम दोनों शावर के नीचे लिपटे खड़े रहे। मैं उसके सीने से चिपकी थी, और वो मेरे बालों को सहला रहा था। कुछ देर तक हम एक-दूसरे को प्यार करते रहे। फिर शावर बंद करके हम बाहर आए। तौलिये से एक-दूसरे को पोंछा और कपड़े पहने। हमारी आँखों में एक नया प्यार झलक रहा था। उस दिन के बाद हमारा रिश्ता और गहरा हो गया।

शाम छह बजे हम उज्जैन से रवाना हुए। मन में उज्जैन की यादें और सुनील के प्यार भरे लम्हों को समेटे हम इंदौर की ओर चल पड़े।

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