Delhi girl ki Tailor/Darzi se chudai श्वेता, 21 बरस की एक गजब की माल लड़की, दिल्ली के गलियारों में बसी थी। मध्यमवर्गीय खानदान से थी वो, और अपने माँ-बाप के साथ-साथ 18 साल के छोटे भाई बिट्टू के साथ पूर्वी दिल्ली के एक साधारण से 2BHK फ्लैट में रहती थी। बिट्टू कॉलेज में फर्स्ट ईयर का छोरा था, और श्वेता दिल्ली यूनिवर्सिटी में आर्ट्स की पढ़ाई कर रही थी। क्लास में वो इतनी शर्मीली और भोली थी कि लड़के उसका मजाक उड़ाते, कभी उसकी गांड पर हाथ फेर देते, कभी चूचियों को दबा देते, पर श्वेता अपनी शर्मिंदगी में कुछ न बोल पाती।
श्वेता का कद 5 फीट 6 इंच था, हल्का पतला बदन, सांवली रंगत, और लंबे काले बाल जो उसकी कमर को चूमते थे। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें, पतली भौहें, और गुलाबी रसीले होंठ उसे किसी अप्सरा सा बनाते थे। उसकी 32C की चूचियां भरी-पूरी थीं, और चौड़ी गांड के साथ उसकी जांघों में नेचुरल गैप उसे चोदने लायक माल बनाता था। वो हमेशा अपने बालों को चोटी में बांधती, जो उसकी मासूमियत को और बढ़ाता।
वो बड़ी मेहनती थी। घर का सारा काम खुद संभालती। फर्श पोंछते वक्त वो घुटनों के बल बैठकर कपड़े से सफाई करती, जिससे उसकी गांड और सख्त, गोल-मटोल हो गई थी। उसकी जांघें भी मजबूत और चौड़ी थीं, जो उसकी मेहनत की गवाही देती थीं।
एक पारिवारिक जलसे के लिए उसे नया सलवार-कमीज चाहिए था। उसने अपनी माँ से कुछ रुपये उधार लिए और पुरानी दिल्ली के गफ्फार मार्केट की ओर चल पड़ी। उसने पीला कुरता और सफेद लेगिंग्स पहनी थी। कपड़ा इतना पतला था कि उसकी ब्रा की स्ट्रैप्स और बगलें साफ झलक रही थीं। गर्मी की दोपहर में पसीने से उसकी पीठ और बगलें गीली थीं, जिससे दाग साफ दिख रहे थे।
वो एक ऑटो में चढ़ी। सड़कें सूनी थीं, गर्मी में लोग छांव में दुबके थे। ऑटो ड्राइवर अपनी रियर मिरर से श्वेता की चूचियों को ताड़ रहा था। कभी-कभी उसकी नजरें उसकी ब्रा स्ट्रैप्स पर ठहर जातीं, जो कंधों पर साफ दिख रही थीं। श्वेता को उसकी गंदी नजरें खटक रही थीं, पर वो चुप रही।
“भैया, यहीं उतार दो,” श्वेता ने दबी आवाज में कहा।
ऑटो रुका, और उसने ड्राइवर को रुपये दिए। ड्राइवर ने जानबूझकर उसके हाथ को छुआ और एक हरामी सी मुस्कान दी। श्वेता ने नाक सिकोड़ी और तेज कदमों से दर्जी की दुकान की ओर बढ़ गई।
दुकान का मालिक, जिसे वो बचपन से जानती थी, उस दिन गायब था। उसकी जगह उसका भतीजा आलम था, 30 साल का मुस्लिम दर्जी, लंबा-चौड़ा, कसरती बदन, और चेहरे पर दबंगई भरी मुस्कराहट।
“हाँजी, बोल, क्या बनवाना है?” आलम ने उसकी चूचियों और गांड को ताड़ते हुए पूछा।
“सलवार-कमीज, हरे कपड़े से,” श्वेता ने अपनी भोली आवाज में जवाब दिया।
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“साइज क्या है?” आलम ने पूछा, उसकी नजरें अब श्वेता की ब्रा की आउटलाइन पर थीं।
श्वेता घबरा गई, नजरें जमीन पर गड़ा दीं, साइज याद करने की कोशिश में। आलम ने कहा, “कोई बात नहीं, अंदर चल, अभी नाप लेता हूँ।”
श्वेता ने सैंडल उतारे और दुकान के अंदर कदम रखा। आलम उसे एक तंग, अंधेरे कमरे में ले गया, जहाँ पर्दों ने बाहर की दुनिया को ढक रखा था। कमरे में गर्मी थी, और पसीने की गंध हवा में तैर रही थी। आलम ने मापने का टेप लिया और उसे श्वेता के कंधों पर लटकाया। उसने उसे एक छोटे से प्लेटफॉर्म पर खड़ा होने को कहा।
“हाथ ऊपर कर,” आलम ने हुक्म दिया।
श्वेता ने हाथ हवा में उठाए। आलम उसके पीछे खड़ा हो गया। उसकी आँखें श्वेता की ब्रा स्ट्रैप्स और पसीने से तर बगलों पर टिकी थीं। पतला कुरता उसके बदन से चिपका था, जिससे उसकी ब्रा की हर डिटेल उभर रही थी। आलम की नजरों में गंदी चमक थी। श्वेता का बदन कांप रहा था। एक अनजान मर्द के साथ इस तंग कमरे में वो अकेली थी, जो उससे उम्र और ताकत में बड़ा था।
आलम ने उसकी बाहों का नाप लिया, पर उसका टेप जानबूझकर श्वेता की ब्रा की क्लिप को छू रहा था। “जरा ठहरके खड़ी रह!” वो चिल्लाया, जब श्वेता हल्का सा हिली।
उसने टेप को श्वेता की गर्दन से शुरू किया और रीढ़ के साथ नीचे ले गया, दूसरा सिरा उसकी गांड की दरार को छू रहा था। उसने टेप को लेगिंग्स पर दबाया, ताकि श्वेता की पैंटी की बनावट महसूस हो। श्वेता को उसका स्पर्श खटक रहा था, पर वो शर्म और डर से चुप रही।
आलम ने टेप को उसकी जांघों के इर्द-गिर्द लपेटा, और उसकी गोल, मुलायम गांड को अच्छे से मसला। “क्या मस्त गांड है, साली,” वो मन ही मन बुदबुदाया। श्वेता कांप रही थी, पर कुछ न बोली। आलम को उसकी खामोशी ने और जोश दिलाया। उसने अपनी उंगलियों को श्वेता की जांघों के बीच गुदगुदाया, जहाँ उसे पैंटी की सीम और हल्का गीलापन महसूस हुआ।
श्वेता ने खांसी के साथ हल्का सा झटका लिया। आलम ने फट से हाथ खींचा और डांटा, “क्या साली, थोड़ी देर चुपचाप नहीं खड़ी रह सकती?”
वो श्वेता के सामने आया, उसकी आँखों में दबंगई के साथ देखा। श्वेता ने शर्मिंदगी में नजरें झुका लीं। उसके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं। उसके हाथ हवा में दर्द करने लगे थे।
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आलम को कोई फिक्र नहीं थी। वो श्वेता की चूचियों के पास आया और टेप को उनकी चारों ओर लपेटा, इतना कसकर कि श्वेता की सांसें अटक गईं। उसका हाथ श्वेता की ब्रा को दबा रहा था, उसकी नरम चूचियों को मसल रहा था। श्वेता ने हांफते हुए उसे धक्का दे दिया।
आलम ने गुस्से से देखा। श्वेता ने तुरंत अपनी गलती समझी और नजरें फेर लीं। उसने अपने हाथ नीचे किए और कुरता ठीक किया। आलम की नजरें उसकी छाती पर थीं, जहाँ पसीना उसकी नेकलाइन को भिगो रहा था।
“तेरे कपड़े इतने मोटे हैं कि नाप सही नहीं आ रहा,” आलम ने हरामीपन भरे लहजे में कहा। “इन्हें उतार दे, रंडी।”
श्वेता के चेहरे पर जैसे बम फटा। वो सुन्न पड़ गई, पर जलसे की तारीख नजदीक थी, और उसे लगा कि और कोई चारा नहीं। वो कांप रही थी, पर चुप रही।
आलम ने श्वेता के कुरते का किनारा पकड़ा। श्वेता ने हाथ हवा में रखे, आँखें बंद कीं। उसका चेहरा शर्म से लाल था। एक भोली लड़की के लिए ये पल बड़ा भारी था। आलम ने धीरे-धीरे उसका कुरता खींचा, हाथों से निकाला, और जमीन पर फेंक दिया। श्वेता अब सिर्फ लाल ब्रा में थी। उसने बाहों से अपनी चूचियों को ढकने की कोशिश की, पर आलम ने सख्ती से कहा, “हाथ ऊपर कर, साली।”
आलम को श्वेता के डियो की खुशबू हवा में महसूस हुई। उसने उसकी लेगिंग्स की ओर देखा और बोला, “इसे भी उतार, रंडी।”
श्वेता, डर और आज्ञाकारिता में डूबी, एक हाथ से अपनी क्लीवेज ढकते हुए झुकी और लेगिंग्स को घुटनों तक खींच लिया। आलम ने सुख की आह भरी, जब उसने श्वेता की लाल पैंटी देखी, जो उसकी चूत को ढक रही थी। पैंटी की बनावट साफ थी।
आलम ने उसे ऐसे ही खड़े रहने को कहा, ब्रा और पैंटी में, हाथ फैलाए। उसने फिर नाप लेना शुरू किया। वो श्वेता की गर्दन के पास अपना चेहरा ले गया, उसकी गंध को सूंघते हुए। उसने चूचियों का नाप लिया, इस बार ढीला, ताकि वो सहज रहे। फिर वो नीचे झुका और कमर का नाप लिया। उसे श्वेता की पैंटी के किनारों से झांकते प्यूबिक हेयर दिखे।
आलम ने मुस्कुराते हुए नाप लिया, बिना छेड़छाड़ के। श्वेता को उसका ये रवैया राहत दे रहा था। उसे लग रहा था कि अब वो सुरक्षित है। आलम ने उसकी सहजता भांप ली। उसने देखा कि श्वेता अब चुपके-चुपके उसकी ओर ताक रही थी।
“कोई बॉयफ्रेंड है तेरा?” आलम ने पूछा।
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श्वेता ने सिर हिलाकर “नहीं” कहा।
“किसी ने तेरी चूत को चखा है?” आलम ने गंदी बात करते हुए पूछा।
श्वेता खामोश रही, अपने पैरों की ओर देखते हुए, घबराहट और जोश के मिश्रण में।
आलम ने अपना हाथ पीछे से श्वेता की जांघों के बीच सरकाया और पैंटी के ऊपर से उसकी चूत को छुआ। उसने उंगलियों को हल्के से रगड़ा, उसकी गर्मी और गीलापन महसूस किया। श्वेता का बदन झटके से कांप उठा। उसकी रीढ़ में सिहरन दौड़ी, और उसने “आह” की सिसकारी भरी। आलम ने देखा कि पसीने की बूंद उसकी बायीं ब्रा के कप में टपकी।
आलम ने फट से श्वेता की ब्रा खोल दी। ब्रा फर्श पर गिरी, और उसने पीछे से उसकी चूचियों को अपने मजबूत हाथों में मसल लिया। श्वेता ने सुख की सिसकारी भरी, “उह्ह… आह्ह…” उसने आँखें बंद कीं और होंठ काट लिए। आलम ने उसकी गर्दन पर पीछे से चुम्बन लिया, और उसका खड़ा लंड श्वेता की गांड की दरार में रगड़ने लगा।
“आज मैं तेरी चूत का भोसड़ा बना दूंगा, रंडी,” आलम ने उसके कान में फुसफुसाया।
उसने श्वेता की पैंटी नीचे खींच दी। पैंटी गीली थी, और आलम ने देखा कि श्वेता ने अपने प्यूबिक हेयर नहीं ट्रिम किए थे। वो उसकी भोलीपन पर मुस्कुराया। उसने अपनी उंगलियों से श्वेता की क्लिट को गोल-गोल रगड़ना शुरू किया। श्वेता को ऐसा सुख मिला, जो उसने पहले कभी न महसूस किया था। उसकी टांगें कांप रही थीं। “आह्ह… भैया… ये क्या कर रहे हो…” वो सिसक रही थी।
आलम ने श्वेता की चूत पर एक जोर का थप्पड़ मारा। उसकी चूत से रस टपकने लगा, और वो चीखी, “आआह्ह!” आलम ने उसे टेबल पर बिठाया और उसकी टांगें चौड़ी कीं। वो नीचे झुका और श्वेता की चूत को सूंघा। उसकी गंध ने उसे पागल कर दिया। उसने अपनी जीभ से उसकी क्लिट को चाटना शुरू किया, पहले धीरे, फिर तेज। श्वेता की सिसकारियां तेज हुईं, “उह्ह… आह्ह… भैया, बस करो…” पर उसका बदन सुख की लहरों में डूब रहा था।
आलम ने दो उंगलियां श्वेता की चूत में डालीं, धीरे-धीरे अंदर-बाहर करते हुए। उसकी चूत टाइट थी, और वो हर हरकत पर सिसक रही थी। “आह्ह… धीरे… दर्द हो रहा है…” श्वेता ने कहा, पर आलम ने अनसुना किया। उसने उंगलियों को तेज किया, और श्वेता की चूत से रस बहने लगा।
“तेरी चूत कितनी रसीली है, साली,” आलम ने गंदी बात की। “आज मैं इसे चोदकर फाड़ दूंगा।”
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श्वेता की सांसें तेज थीं, और वो अब आलम के हवाले थी। आलम ने उसे घुटनों पर बिठाया और अपनी पायजामा उतारी। उसका 7 इंच लंबा, मोटा, खतनायुक्त लंड बाहर निकला। श्वेता ने पहली बार मर्द का लंड देखा। उसकी आँखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गईं।
“इसे पकड़, रंडी,” आलम ने हुक्म दिया।
श्वेता ने कांपते हाथों से उसका लंड पकड़ा। वो गर्म और सख्त था, नसें उभरी हुई थीं। उसे छूते हुए सिहरन हो रही थी। आलम ने उसे हिलाने को कहा। श्वेता ने अपनी पतली उंगलियों से उसका लंड हिलाना शुरू किया, अनमने ढंग से। उसकी मासूमियत आलम को और जोश दिला रही थी।
“मुंह खोल, साली,” आलम ने कहा।
श्वेता को ब्लोजॉब का कुछ नहीं पता था। आलम ने हंसकर कहा, “लॉलीपॉप चूसने जैसा है।” श्वेता ने हिम्मत जुटाई और अपने होंठों से उसके लंड के गुलाबी सिरे को चाटा। स्वाद अजीब था, पर वो उत्साहित थी। उसने उसके ग्लान्स को चाटा, और आलम ने सिसकारी भरी, “आह्ह… चूस, रंडी।”
आलम ने अपना लंड उसके मुंह में ठूंस दिया। “इसे ऐसे ही रख,” उसने कहा। श्वेता का मुंह फूल गया, और वो खांसने लगी। आलम ने उसके सिर को पकड़ा और आगे-पीछे करने लगा। “उह्ह… गग्ग…” श्वेता के गले से आवाजें निकल रही थीं। वो आँखें बंद किए आलम को रोक नहीं रही थी।
आलम का चेहरा सुख से चमक रहा था। वो एक भोली, कुँवारी लड़की के मुंह को चोद रहा था। कुछ देर बाद, उसने श्वेता को टेबल पर लिटाया और उसकी टांगें चौड़ी कीं। श्वेता की चूत गीली थी। आलम ने अपना लंड उसकी चूत के मुहाने पर रखा और धीरे से दबाया।
“आआह्ह!” श्वेता जोर से चीखी। उसकी टाइट चूत में आलम का मोटा लंड चीरता हुआ गया। श्वेता की आँखों में दर्द के आंसू आए। आलम ने उसे कसकर पकड़ा और धीरे-धीरे अंदर-बाहर करना शुरू किया। “उह्ह… धीरे… भैया…” श्वेता सिसक रही थी।
“तेरी चूत को आज मैं चोदकर खोल दूंगा, साली,” आलम ने गंदी बात की।
उसने रफ्तार बढ़ाई। “फच-फच-फच” की आवाजें कमरे में गूंज रही थीं। श्वेता की सिसकारियां दर्द से सुख में बदल गईं। “आह्ह… उह्ह… और जोर से…” वो बुदबुदा रही थी। आलम ने उसकी चूचियों को मुंह में लिया और जोर-जोर से चूसा। उसने एक चूची का आधा हिस्सा अपने मुंह में खींच लिया। श्वेता ने सिसकारी भरी, “आआह्ह… भैया… चूसो मेरी चूचियां…”
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श्वेता ने अपने नाखून आलम की पीठ पर गड़ाए, जिससे खरोंच के निशान बन गए। आलम ने और जोर से धक्के मारे। टेबल दीवार से टकराकर “खट-खट” की आवाज कर रहा था। कमरे में गर्मी थी, और दोनों पसीने से तर थे। श्वेता की चूत अब पूरी तरह खुल चुकी थी।
“तेरी चूत का भोसड़ा बना दूंगा, रंडी,” आलम ने कहा, और उसने अपनी उंगलियों से श्वेता की क्लिट को रगड़ना शुरू किया, साथ ही धक्के मारते हुए। श्वेता की सिसकारियां चीखों में बदल गईं। “आआह्ह… और जोर से… चोदो मेरी चूत…” वो अब पूरी तरह खुल चुकी थी।
आलम ने अचानक अपना लंड बाहर निकाला और हिलाने लगा। कुछ पलों में, उसका गर्म, गाढ़ा वीर्य श्वेता की चूचियों, होंठों, और आँखों पर छलक पड़ा। श्वेता ने आँखें बंद रखीं और उस नमकीन स्वाद को अपने होंठों पर महसूस किया। आलम ने जोरदार सिसकारी भरी। उसका लंड थोड़ा लाल था, क्योंकि उसने श्वेता की कुँवारी चूत को फाड़ दिया था।
दोनों की सांसें तेज थीं। आलम ने श्वेता को जमीन पर उतारा। श्वेता कमजोर और संतुष्ट थी। आलम ने उसे साफ करने में मदद की और उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारे। श्वेता ने अपने बदन से वीर्य और पसीना साफ किया। उसने जल्दी-जल्दी कपड़े पहने, क्योंकि देर हो रही थी।
आलम ने पायजामा ऊपर की और पानी की बोतल गटक गया। श्वेता ने आलम के डेस्क पर रुपये रखे। आलम ने कहा, “तीन दिन बाद वापस आ, रंडी।”
श्वेता चुपचाप बाहर निकली, एक ऑटो रोका, और अपनी गली की ओर चल पड़ी।
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