मेरे बाप ने नशे में मुझे ही चोद दिया

ये मेरी जिंदगी का सबसे अजीब और गहरा अनुभव है, जिसने मुझे ये सिखा दिया कि मर्द को बस औरत चाहिए, चाहे वो कोई भी हो! मेरा नाम कनिष्का है, और ये कहानी उस रात की है जब मेरे बाबूजी ने, नशे की हालत में, मुझे अपनी हवस का शिकार बना लिया।

मेरी शादी को पांच साल हो चुके थे। मेरा एक ढाई साल का बेटा है, जिसका नाम रवि है। मैं जयपुर में ब्याही हूँ, लेकिन मेरा मायका हिमाचल के एक छोटे से गांव में है। हर साल सावन के महीने में मैं मायके आती हूँ, वो भी अपने बेटे के साथ। इस बार भी मैं अपने मायके आई थी, जहां मेरे पिताजी, जिन्हें हम बाबूजी कहते हैं, मेरी बीमार माँ, मेरा बड़ा भाई, और मेरी भाभी रहते हैं। बाबूजी हट्टे-कट्टे मर्द हैं, 63 साल की उम्र में भी उनकी ताकत और जोश देखने लायक है। उनका गठीला बदन और भारी-भरकम आवाज हर किसी को चौंका देती थी। मेरी माँ, जो अक्सर बीमार रहती हैं, उन्हें कुछ होश ही नहीं रहता कि घर में क्या चल रहा है। मेरा भाई एक सेल्स एग्जीक्यूटिव है, और महीने में आधा वक्त टूर पर रहता है। इस बार भी वो टूर पर था, तो घर में सिर्फ मैं, मेरा बेटा, भाभी, माँ, और बाबूजी थे।

हमारे घर में तीन कमरे हैं। एक में भाभी सोती हैं, दूसरे में माँ, और तीसरे में बाबूजी। मैं अपने बेटे रवि के साथ एक अलग कमरे में ठहरी थी, जो गैलरी के पास था। भाभी और मेरी उम्र लगभग एक जैसी थी, 26-27 साल, और हमारी कद-काठी भी एक-दूसरे से मिलती-जुलती थी। भाभी खूबसूरत थी, उनकी गोरी चमड़ी और भरा हुआ बदन किसी का भी मन मोह ले। मैं भी कम नहीं थी—मेरा फिगर 34-28-36 का था, और मेरे लंबे बाल और नशीली आँखें मेरे पति को हमेशा पागल कर देती थीं।

मुझे मायके आए दो दिन ही हुए थे। उस रात, करीब 11:30 बजे, मैं अपने बेटे के साथ सोई हुई थी। तभी गैलरी में किसी के चलने की आवाज आई। मेरे कान खड़े हो गए। फिर भाभी के कमरे से दरवाजा भेड़ने की हल्की सी आवाज आई। भाभी कभी दरवाजा बंद नहीं करती थी, बस पर्दा खींच देती थी। मेरा मन बेचैन हो गया। मैं चुपके से उठी और पहले बाथरूम की तरफ गई, शायद कोई वहाँ हो। लेकिन वहाँ कोई नहीं था। फिर मैंने माँ के कमरे की तरफ देखा। माँ बेसुध पड़ी थी, उनके खर्राटे गूंज रहे थे, लेकिन बाबूजी का कहीं अता-पता नहीं था। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। कुछ गलत होने का अंदेशा हुआ।

मैं चुपके से भाभी के कमरे के पास गई और पर्दे की दरार से झाँकने की कोशिश की। अंदर हल्की सी चांदनी खिड़की से आ रही थी, जिससे कमरा धुंधला-सा दिख रहा था। मैंने देखा, एक शख्स बिस्तर के पास खड़ा था। कुछ सेकंड बाद वो बिस्तर पर चढ़ा और किसी के साथ लेट गया। मेरी आँखें अंधेरे में कुछ साफ देखने की कोशिश कर रही थीं। फिर मुझे लंबे-लंबे बाल लहराते दिखे—ये भाभी थी। दूसरी तरफ बाबूजी थे। मेरा दिल और तेजी से धड़कने लगा। बाबूजी के हाथ भाभी के बदन पर चल रहे थे, उनकी साड़ी को धीरे-धीरे ऊपर उठा रहे थे। फिर चूमने और चाटने की आवाजें आने लगीं—चप-चप, जैसे कोई भूखा शेर अपनी शिकार को चख रहा हो।

भाभी की साड़ी अब उनकी कमर तक थी। बाबूजी उनके ऊपर चढ़ गए, और भाभी की एक गहरी सिसकारी निकली—“आह…”। फिर बाबूजी ने अपने चूतड़ हिलाने शुरू किए। धीरे-धीरे, फिर तेज-तेज। कमरे में सिसकारियों का शोर बढ़ने लगा—उम्म्ह… अहह… हाय… याह…। मैं दरार से देख रही थी, और अब साफ हो गया था कि बाबूजी भाभी की चुदाई कर रहे थे। भाभी की टाँगें हवा में थीं, और बाबूजी उनके हाथ दबाए हुए थे, जैसे कोई जंगली जानवर अपनी मादा को काबू में कर रहा हो। भाभी की सिसकारियां और तेज हो रही थीं, और बाबूजी पूरी ताकत से धक्के मार रहे थे। अचानक भाभी की एक गहरी चीख निकली, जैसे उनकी जान निकल गई हो। उसी पल मेरी चूत से पानी टपकने लगा। मैंने अपने आप को संभाला, लेकिन मेरा बदन जल रहा था। मेरी सांसें उखड़ रही थीं, और मुझे अपने पति रमेश की याद आ रही थी। लेकिन रमेश तो कुछ ही मिनट में थक जाता था, और यहाँ बाबूजी भाभी को रगड़-रगड़ कर चोद रहे थे।

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बाबूजी ने भाभी के दोनों पैर उनके सिर की तरफ मोड़ रखे थे। उनकी चुदाई इतनी जोरदार थी कि बिस्तर हिल रहा था। भाभी की सिसकारियां अब चीखों में बदल गई थीं—“आह… बाबूजी… धीरे…” लेकिन बाबूजी रुके नहीं। वो जानवर की तरह धक्के मार रहे थे। मेरा बदन कामवासना में जल रहा था। मेरी चूत गीली हो चुकी थी, और मैंने खुद को रोकने की कोशिश की, लेकिन मेरा हाथ नीचे चला गया। मैंने अपनी सलवार में उंगली डाली और हल्के-हल्के रगड़ने लगी। करीब 15 मिनट तक बाबूजी ने भाभी को चोदा, फिर एकदम से रुक गए। भाभी ने अपने पैर सीधे किए, और बाबूजी उनके ऊपर ढेर हो गए। उनकी सांसें धीरे-धीरे सामान्य हो रही थीं। फिर बाबूजी ने भाभी के होंठ चूमे, उनके गाल थपथपाए, और बिस्तर से उतर गए।

मुझे लगा कि बाबूजी अब बाहर आएंगे। मैं जल्दी से अपने कमरे में भागी और बिस्तर पर बैठ गई। एक मिनट बाद गैलरी में उनके कदमों की आहट सुनाई दी, और वो माँ के कमरे में चले गए। मेरा शक सही था—बाबूजी ने भाभी को चोद कर अभी-अभी निकले थे। मैं बिस्तर पर लेट गई, लेकिन नींद कोसों दूर थी। मेरे दिमाग में बार-बार वही नजारा घूम रहा था। बाबूजी की ताकत, उनकी हवस, और भाभी की सिसकारियां। मैं सोच रही थी कि इतनी उम्र में भी बाबूजी में इतना दम है। साला, क्या ठरकी मर्द है!

करीब 15 मिनट बाद, मैंने टॉर्च ली और भाभी के कमरे की तरफ गई। उनका दरवाजा खुला था। मैंने सावधानी से टॉर्च की रोशनी डाली। भाभी करवट लेकर सो रही थी। उनकी गांड मेरी तरफ थी, और उनकी साड़ी अभी भी कमर तक उठी हुई थी। उनकी चूत उभरी हुई थी, और उसमें से गाढ़ा सफ़ेद वीर्य टपक रहा था, जो उनकी गोरी जांघों पर फैल गया था। उनके बाल बिखरे थे, और गाल पर हल्के से दांतों के निशान दिख रहे थे। लग रहा था कि बाबूजी ने उनकी चूत की अच्छी तरह रगड़ाई की थी। मैं ये सब देखकर पागल हो रही थी। मेरी फुद्दी मचल रही थी। मैंने अपने बेटे की तरफ देखा, वो गहरी नींद में था। मैंने अपनी उंगली अपनी चूत में डाली और तेजी से रगड़ने लगी। 30-40 बार उंगली चलाने के बाद मैं झड़ गई। लेकिन मन नहीं भरा। मैं सोच रही थी कि भाभी को बाबूजी ने ऐसा चोदा कि उनकी चीखें निकल गईं, और मेरा पति रमेश तो बस दो मिनट में पसर जाता है।

सुबह सब कुछ सामान्य था। भाभी बाबूजी को “पापा जी, चाय पी लो!” कह रही थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो। मैं हैरान थी कि ये औरत रात भर ससुर के नीचे चुदती रही, और अब इतने प्यार से चाय दे रही है। मैंने सोचा, साली, क्या मस्त माल है! अगली रात मैं इंतजार करती रही, लेकिन कुछ नहीं हुआ। मेरा मन बेचैन था। तीसरी रात फिर वही मंजर। बाबूजी भाभी के कमरे में गए। मैंने दरार से देखा। इस बार भाभी बिस्तर पर उलटी थी, और बाबूजी फर्श पर खड़े होकर उनकी गांड में लंड पेल रहे थे। भाभी की सिसकारियां पूरे कमरे में गूंज रही थीं—“आह… पापा जी… उफ्फ… धीरे…”। बाबूजी ने 12 मिनट तक उनकी चुदाई की, और मैं बाहर खड़ी अपनी चूत रगड़ रही थी। मुझे भाभी से जलन होने लगी। साली, कैसे इस औरत ने मेरे बाप को अपने जवान बदन से कब्जे में कर लिया? मैं भी तो कम नहीं थी। मेरा बदन भी जवान था, मेरी चूचियां भरी हुई थीं, और मेरी गांड भी टाइट थी। लेकिन अपने बाबूजी के नीचे लेटना? ये सोचकर ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

मैंने सोचा, क्यों न भाभी से खुलकर बात की जाए? हम दोनों हमउम्र थीं, और सेक्स की बातें करना हमारे लिए नया नहीं था। एक दिन मैंने बात छेड़ दी, “भाभी, असली मजे तो तुम ले रही हो जवानी के!” वो चौंक गई और बोली, “कनिष्का, तू भी… छी! तेरी प्यास अभी तक नहीं बुझी क्या?” मैंने बिना वक्त गंवाए कहा, “भाभी, और रात को तुम जो मजे लेती हो, उसका क्या? भैया में ऐसी क्या कमी है?” उनका चेहरा शर्म से लाल हो गया। फिर वो बोली, “अरे कनिष्का, बस जिंदगी ऐसे ही चलती है। औरत तो बस एक मोहरा है। मुझे इस घर में रहना है। जल में रहना है तो मगर से बैर नहीं किया जाता। बता, तुझे कब पता लगा और तूने क्या देखा?” मैंने सब बता दिया—कैसे मैंने बाबूजी को उनकी चुदाई करते देखा, कैसे उनकी सिसकारियां सुनीं।

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मैंने कहा, “भाभी, अगर कोई चीज मजा देती है, तो उसे बांटकर खाने में क्या बुराई?” भाभी ने गहरी सांस ली और बोली, “देख, पहले तो पापा जी ने जोर-जबरदस्ती की थी। एक रात वो नशे में मेरे कमरे में आए और मेरे साथ… मैंने भैया को डर के मारे नहीं बताया। फिर धीरे-धीरे मुझे आदत हो गई। लेकिन कनिष्का, वो तेरे बाबूजी हैं। तुझमें इतनी हिम्मत है?” मैंने कहा, “भाभी, अभी कुछ नहीं कह सकती, लेकिन तुम कोई रास्ता बताओ।” भाभी ने जो कहा, वो सुनकर मेरे होश उड़ गए। उन्होंने कहा, “देख, ऐसा कर। मैं तेरे बेटे के साथ सो जाऊंगी, और दो दिन तक मैं पापा जी को कोई बहाना बनाकर रोक लूंगी। तू मेरे बेड पर मेरे कपड़े पहनकर लेट जाना। वो कुछ बोलते नहीं, बस प्यार करते हैं और अपनी प्यास बुझाकर चले जाते हैं।”

मुझे भाभी का सुझाव पसंद आया, लेकिन मन में डर था कि सुबह क्या होगा? मैंने पूछा, तो भाभी बोली, “अरे, सुबह की सुबह देख लेंगे।” दो दिन बाद मैंने उनकी नारंगी साड़ी पहनी और रात को उनके बिस्तर पर लेट गई। मेरी गांड दरवाजे की तरफ थी, ठीक वैसे ही जैसे भाभी लेटती थी। मेरा दिल धक-धक कर रहा था। मैं सोच रही थी कि मैं ये क्या करने जा रही हूँ? लेकिन मेरी चूत में चुलबुलाहट हो रही थी, और वो आग सिर्फ बाबूजी ही बुझा सकते थे।

रात करीब 12 बजे दरवाजा बंद होने की आवाज आई। मेरे पीछे कोई लेट गया। उनकी सांसों से दारू की तेज गंध आ रही थी। बाबूजी ने दारू पी रखी थी। उन्होंने मेरे बाल हटाए और मेरी गर्दन पर चूमना शुरू किया। मेरे बदन में करेंट दौड़ गया। फिर वो मेरे गालों, होंठों को चूमने लगे और मेरे ब्लाउज के ऊपर से मेरी चूचियां दबाने लगे। मैं सिसकारी लेना चाहती थी, लेकिन डर के मारे चुप रही। उनका हाथ मेरे पेट पर गया, और उन्होंने मेरी साड़ी ऊपर उठा दी। फिर उन्होंने मुझे सीधा किया और मेरे ऊपर चढ़ गए। उनकी जांघों ने मेरी टांगें चौड़ी कीं, और मैंने उनके लंड को अपनी चूत पर महसूस किया। साला, इतना मोटा और गर्म लंड! मैंने पहले कभी ऐसा नहीं लिया था।

बाबूजी ने एक जोरदार धक्का मारा, और उनका लंड मेरी चूत में घुस गया। मैं आनंद के मारे दुहरी हो गई। “आह…” मेरे मुंह से हल्की सी सिसकारी निकल गई। बाबूजी मुझे भाभी समझकर धीरे-धीरे पेलने लगे। मेरी चूत के सलवट खुल रहे थे। ऐसा मस्त रगड़ाई मेरे पति ने कभी नहीं की थी। बाबूजी का लंड कम से कम सात इंच लंबा और दो इंच मोटा था। वो मुझे किसी भालू की तरह चोद रहे थे। मैंने मस्ती में आकर उनकी कमर पकड़ ली और उनके चूतड़ों पर हाथ फेरने लगी। उनके चूतड़ सॉलिड थे, जैसे पत्थर के। अब मुझे समझ आया कि भाभी क्यों चीखती थी।

बाबूजी ने मेरे ब्लाउज के बटन खोलने की कोशिश की, लेकिन जब नहीं खुले तो एक झटके में बटन तोड़ दिए। मेरी चूचियां बाहर आ गईं, और वो उन्हें बुरी तरह मसलने लगे। उनके हाथों में किसान की ताकत थी। उनका लंड मेरी चूत में ठोकरें मार रहा था, और फिर उन्होंने इतनी गहराई में पेला कि मुझे लगा मेरी बच्चेदानी हिल गई। मैं सिसकारियां रोक नहीं पा रही थी—“आह… बाबूजी… उफ्फ…”। वो और जोश में आ गए। उनकी हर धक्के में मेरी चूत चीख रही थी। आखिरी पलों में मुझे लगा मैं स्वर्ग में हूँ। बाबूजी ने पूरी ताकत से धक्के मारे, और फिर गर्म-गर्म वीर्य की फुहारें मेरी चूत में समा गईं। “आह… क्या आनंद था!” मैंने सोचा। उनका लंड मेरी चूत में कांप रहा था। फिर वो अचानक मेरे ऊपर से उतरे, अपना कच्छा उठाया, और तेजी से कमरे से निकल गए।

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मुझे लगा, शायद मेरी आवाज से उन्हें कुछ शक हो गया। मैं कुछ देर बाद भाभी के पास गई। उन्होंने लाइट जलाई और मेरी हालत देखकर हंस पड़ी। मेरा ब्लाउज खुला था, मेरे बाल बिखरे थे। “कनिष्का, हो गया तेरा काम? ठंड पड़ गई?” उन्होंने मजे लेते हुए पूछा। मैंने शर्माते हुए कहा, “भाभी, तुम बाबूजी को कैसे झेलती हो? साला, उनका लंड तो कोबरा जैसा है!” वो हंस पड़ी और बोली, “अरे, हमारे मर्द तो बाबूजी के सामने कुछ भी नहीं। आज तो तूने देख ही लिया, क्या करेंट है ससुर जी में!” मैंने कहा, “भाभी, अब सुबह क्या होगा? मैं उन्हें कैसे मुंह दिखाऊंगी?” उन्होंने कहा, “चिंता मत कर। शर्म तो उन्हें होगी कि अपनी बेटी की चूत बजा डाली नशे में!”

अगली रात भाभी ने मुझे फिर उनके बिस्तर पर भेजा। मैं वही नारंगी साड़ी पहनकर लेट गई। बाबूजी आए और फिर वही मंजर। इस बार मैंने खुद को रोका नहीं। उनकी हर धक्के के साथ मैं सिसकारियां ले रही थी—“आह… बाबूजी… और जोर से…”। लेकिन आखिरी पल में मैंने कह दिया, “बाबूजी, मैं कनिष्का हूँ।” वो एकदम रुक गए और बोले, “साली, कल जब तेरी चुदाई हो रही थी, तभी बता देती कि तू कनिष्का है!” मैंने कहा, “बाबूजी, आप इतने जोश में थे, मैं शर्म के मारे चुप रही।” उन्होंने कहा, “तो फिर आज ये शर्म क्यों? चुपचाप पड़ी रह, मेरा मूड बना हुआ है!” फिर उन्होंने मेरे गालों पर दांतों से काटा। “आह… साला, क्या बुड़का मारा!” मैंने सोचा।

अब तो हर रात मेरा और भाभी का नंबर लगने लगा। एक रात भाभी की चुदाई होती, दूसरी रात मेरी। एक रात जब बाबूजी मुझे चोद रहे थे, भाभी अचानक आ धमकी और लाइट जला दी। हम दोनों बाप-बेटी पानी-पानी हो गए। बाबूजी ने खिसियाकर अपना लंड मेरी चूत से निकाला। मैंने पहली बार उनका लंड देखा—काला, सात इंच लंबा, दो इंच मोटा, बिल्कुल कोबरा जैसा। भाभी ने हंसते हुए कहा, “पापा जी, करते रहो न, बेचारी को मजा आ रहा था!” फिर वो बगल में लेट गई। बाबूजी ने मेरी चुदाई पूरी की, और फिर भाभी बोली, “पापा जी, आपको ज्यादा मजा किसके साथ आया?” बाबूजी ने कहा, “तुम दोनों मेरी जान हो। ये पूछने की क्या जरूरत?” फिर उन्होंने हंसते हुए कहा, “देख बहू, सच कहूं, तेरी चूचियां सॉलिड हैं, और कनिष्का की गांड सॉलिड है। इसकी फुद्दी थोड़ी ढीली है, लेकिन तेरी टाइट है।”

फिर बाबूजी ने हमें अपनी चौड़ी, बालों वाली छाती पर लिटा लिया। हम दोनों उनकी बाहों में थीं, और हमें पता ही नहीं चला कब नींद आ गई। सुबह बाबूजी खेत पर चले गए। मैंने भाभी से पूछा, “उन्होंने कुछ कहा?” भाभी बोली, “नहीं यार, कुछ नहीं। तू फिक्र मत कर।” मैंने कहा, “भाभी, अब क्या होगा?” वो बोली, “जब तक तू यहाँ है, मजे ले। बाबूजी का लंड तो पुराना है, साला जल्दी झड़ता ही नहीं। और औरत को इससे ज्यादा क्या चाहिए?” मैं हंस पड़ी, लेकिन मन में एक ग्लानि थी कि मैं अपने ही बाप से चुद गई। लेकिन भाभी ने कहा, “फिक्र मत कर, मैं सब संभाल लूंगी। तू बस अपनी जवानी के मजे ले।”

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