Muslim mom son sex story – Ammi sex story: दोस्तों, ये कहानी उस रात के बाद की है, जब रेहाना दो दिन की ट्रिप पर गई थी और घर में सिर्फ मैं और अम्मी थे।
कहानी का पिछला भाग: अम्मी की प्यास बुझाने को मजबूर हुआ बेटा – 1
अगली सुबह से अम्मी कुछ परेशान-परेशान सी घूम रही थीं। आखिर मैंने पूछ ही लिया, “अम्मी, क्या हुआ, सुबह से इधर-उधर क्यों फिर रही हो?” वो बोलीं, “बेटा, कमर में बहुत दर्द है, रेहाना होती तो मालिश कर देती, तुम कर दो तो अच्छा, पर तुम्हें माँ का ख्याल कहाँ है।” मैंने हँसकर कहा, “अच्छा-अच्छा, गुस्सा मत करो, आ रहा हूँ।”
अम्मी अपने कमरे में गईं और पेट के बल लेट गईं। मैंने उनकी कमीज़ थोड़ी ऊपर उठाई और कमर पर मलहम लगाकर धीरे-धीरे मालिश करने लगा। मालिश करते वक्त मेरी नजर उनके कुल्हों पर गई, सलवार थोड़ी नीचे सरक गई थी, गहरी गांड की लकीर साफ दिख रही थी। पहली बार दिल में कुछ हुआ, लंड तुर तुरंत खड़ा हो गया।
अम्मी ने खुद अपनी कमीज़ और ऊपर कर ली, सफेद ब्रा की स्ट्रिप दिखने लगी। मुझे पसीना छूट गया। वो शायद समझ गईं, बोलीं, “शाहिद, गर्मी लग रही है तो एसी चला लो,” और हल्के से मुस्कुराईं। फिर अचानक उठकर बैठ गईं और बोलीं, “एक बात कहूँ, गुस्सा मत करना।”
मेरे तो पसीने छूट रहे थे, मैंने कहा, “बोलिए।” “तुम शादी कर लो।” “अम्मी, आप फिर वही बात?” “हाँ फिर वही बात, तुम्हारी ये हालत देखकर ही कह रही हूँ।” “कौन सी हालत?” मैंने अनजान बनते हुए पूछा। अम्मी ने मेरे बालों में हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा, मैं तुम्हारी माँ हूँ, सब जानती हूँ।”
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, शर्म के मारे कमरे से बाहर भाग आया और पूरा दिन अपने कमरे में बंद रहा। शाम को अम्मी मेरे कमरे में आईं, “क्या हुआ, खाना भी नहीं खाया, सुबह से बंद हो?” मैं गुस्से में बोला, “कुछ नहीं, शांति से रहने दो।” वो बोलीं, “अरे मैंने तो ऐसे ही पूछ लिया था, चलो बाहर आओ कुछ खा लो।”
खाना खिलाते वक्त वो मेरे पास बैठी मुझे देखती रहीं। मैंने कहा, “अब मुझे घूर क्यों रही हो?” वो मुस्कुराईं, “बेटा, पैसे चाहिए क्या?” “पैसे किसे नहीं चाहिए।” वो अंदर गईं और पाँच हजार रुपए लाकर मेरे हाथ में थमा दिए। मैं हैरान था। वो बोलीं, “सोचा जरूरत होगी।” मैंने पैसे लेकर बाहर चला गया। रात को देर से लौटा तो अम्मी इंतजार कर रही थीं, डाँट पड़ी, “क, “जल्दी आने को कहा था न!” मैं गुस्से में अपने कमरे में चला गया। वो पीछे-पीछे आईं, “चलो खाना खा लो, आज मेरे कमरे में सो जाना।” मैं चिल्लाया, “न खाना चाहिए न आपके कमरे में सोना है, जाओ यहाँ से!”
अगले दिन रेहाना वापस आ गई। घर फिर पहले जैसा हो गया। उसके बाद कई दिन अम्मी बहुत कम बोलतीं, ज्यादातर खामोश रहतीं। यहाँ तक कि रेहाना से भी कम बात करतीं। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया था। रेहाना ने बताया कि जब मैं नहीं होता तो अम्मी अकेले रोती रहती हैं कि बेटा उनकी बात नहीं सुनता।
समय गुजरा, मैं कॉलेज जाने लगा, रेहाना बारहवीं में पहुँच गई। एक दिन अम्मी और रेहाना दो दिन के लिए चकवाल रिश्तेदार की शादी में गईं। लौटने के बाद अम्मी में अजीब बदलाव आया। पहले बहुत चुप थीं, अब पहले से भी ज्यादा बोलने लगीं, मुझे कुछ भी करने से नहीं रोकती थीं। मुझे अच्छा ही लग रहा था।
फिर एक दिन रेहाना कॉलेज गई हुई थी, अम्मी मेरे कमरे कमरे में आईं, मेरे पास बैठ गईं और बोलीं, “शाहिद, आज तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है।” “जी बोलिए।” “बेटा, नाराज मत होना, आज जो दिल में है वो सच-सच बताऊँगी, फिर तुम्हारी मर्जी।” “बताइए न।”
अम्मी ने गहरी साँस ली और बोलीं, “तुम्हारे अब्बू को गए बहुत साल हो गए, मैं अकेली हूँ। हाँ मैं तुम्हारी माँ हूँ, पर एक औरत भी हूँ, मेरी भी इच्छाएँ हैं, मेरा दिल भी धड़कता है।” मैं चुप था। “मैंने तुम्हें बहुत समझाने की कोशिश की, तुम नहीं समझे, इसलिए अब साफ-साफ कह रही हूँ।”
फिर बिना कुछ कहे उन्होंने अपना हाथ मेरी पैंट पर रख दिया, सीधे लंड पर। मुझे जोर का झटका लगा, आवाज ही नहीं निकली। वो धीरे-धीरे मसलने लगीं। मेरा लंड पत्थर जैसा हो गया। मैं पागल हो रहा था, सब भूल गया कि ये मेरी माँ हैं।
मैंने उनके बोबे पकड़ लिए, चाटने लगा। वो मेरे ऊपर चढ़ गईं, मेरे गले, सीने, पेट को चाटने लगीं। फिर पैंट की चेन खोली, हाथ अंदर डालकर लंड पकड़ लिया और मसलने लगीं। हम दोनों जानवर बन चुके थे।
अम्मी ने मेरे सारे कपड़े उतार दिए, खुद भी नंगी हो गईं, सिर्फ ब्रा-पैंटी रही। मैंने वो भी उतार दी। उनके भारी-भारी बोबे लटक रहे थे, चूत पर हल्के बालों वाली गीली हो चुकी थी। वो मेरा मुँह अपने बोबों पर दबा दिया, मैं चूसने लगा, निप्पल काटने लगा।
फिर मैंने शहद लिया, उनके पूरे बदन पर लगाया और चाट-चाट कर साफ किया। अम्मी ने भी मेरे ऊपर शहद डाला और पूरा चाट गईं। मैंने उन्हें लिटाया, टाँगें चौड़ी कीं और अपना मोटा लंड उनकी चूत में धीरे से सरकाया।
“आह्ह्ह… शाहिद… धीरे बेटा… आह्ह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह… ह्ह्ह्ह्ह… मर गई… आह्ह्ह्ह्ह…” मैं किस करते हुए धक्के मारने लगा। वो नीचे से कमर उचका-उचका कर साथ दे रही थीं, “आह… हाँ बेटा… जोर से… आह्ह्ह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह… तेरी अम्मी की चूत फाड़ दे… ऊईईई… आह्ह्ह्ह्ह… ह्ह्ह्ह्ह्ह…”
हमने कई पोजिशन बदले, डॉगी बनाया, अम्मी ऊपर आईं और खुद लंड पर उछलने लगीं, उनके भारी बोबे हिल रहे थे, “आह्ह्ह… आह्ह्ह्ह… मेरा राजा… आह्ह्ह… तेरी अम्मी तेरी रंडी है… चोद… ओह्ह्ह्ह्ह… ह्ह्ह्ह्ह्ह…”
पूरे दो घंटे हम एक-दूसरे को चाटते, चूसते, चोदते रहे। रेहाना के आने का वक्त हुआ तो अम्मी बोलीं, “बस बेटा… अब कपड़े पहन लो।” हम जल्दी से नहाए, कपड़े पहने।
शाम को अम्मी मेरे कमरे में आईं, मुस्कुराते हुए बोलीं, “क्या हुआ, बाहर क्यों नहीं आ रहे?” मैंने शरमाते हुए पूछा, “ये सब सच था न?” वो हँस पड़ीं, “हाँ बेटा, मजा आया न?” “बहुत…” “तो फिर हम फिर करेंगे?” “जरूर करेंगे,” वो बोलीं और मुझे किस कर लिया।
अगले दिन सुबह मैं किचन में पीछे से गया, कमर पकड़कर दबाया, “क्या बना रही हो?” “तेरे लिए नाश्ता,” वो शरमाईं। मैंने कहा, “एक शर्त पर खाऊँगा, तुम भी मेरे साथ खाओगी।” वो हँसीं और एक निवाला खुद खाकर मुझे खिलाने लगीं, एक घूँट चाय वो पीतीं, उसी कप से मैं।
एक दिन अम्मी ने खुद बताया, “शादी में मेरी पुरानी सहेली मिली थी, सारी बात बताई तो उसने कहा, ‘खुलकर उससे बात कर, अपना जिस्म दे दे, फिर देखना वो गुलाम बन जाएगा।’ मैंने सोचा मरना-मरना तो रोज है, एक बार कोशिश कर लूँ। और कामयाब हो गई।”
उसके बाद मैं अम्मी की हर बात मानने लगा।
दो साल बाद अम्मी का इंतकाल हो गया। आज भी मुझे पछतावा है कि जो हुआ वो गलत था, पर उस वक्त मजबूरी और प्यास दोनों थे।
दोस्तों, ये मेरी सच्ची आपबीती है। मैंने बहुत छोटा करके बताया है, पर जो हुआ वो गलत था। आप कभी ऐसा मत करना।
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