किस्मत का खेल देहाती चुदाई कहानी (Long Story)

हम सब की ज़िंदगी में कितने ही मौसम आते है कभी सुख कभी दुःख,कभी कोई ख़ुशी घनघोर बारिश की तरह मन को तर कर जाती है तो कभी कुछ गहरे दुःख जेठ की तपती दुपहरी सी जला जाती है पर ज़िन्दगी ऐसी ही होती है कभी नर्म तो कभी गर्म.

चौपाल के इकलौते बरगद के पेड़ के नीचे बैठा मैं गहरी सोच में डूबा हुआ था, मेरी जेब में कुछ दिन पहले आया खत था जिसमे लिखा था की ताऊजी आज पूरे दो महीने की छुट्टी आ रहे है और यही शायद मेरी परेशानियों का सबब था.

ताऊजी, चौधरी प्रह्लाद सिंह फौज में सूबेदार है गांव बस्ती में भी खूब सम्मान प्राप्त कोमल ह्रदय सबको साथ लेके चलने वाले इंसान, हसमुख और मिलनसार पर उस चेहरे की असलियत सिर्फ मैं और ताईजी ही जानते थे,मैंने अपनी कलाई में बंधी घडी पर नजर डाली अभी ट्रैन आने में घंटे भर का समय था.

मैंने अपनी साइकिल ली और धीमे धीमे पैडल मारते हुए स्टेशन की तरफ चल दिया जो करीब 5 कोस दूर था वैसे तो सांझ ढालने को ही थी पर गर्मी झुलसती दोपहरी की ही तरह थी पसीने और गर्म हवा से जूझते हुए मेरी मंजिल स्टेशन ही था.

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पर हाय रे फूटी किस्मत, आधे रस्ते से कुछ आगे साइकिल पंक्चर हो गयी,सुनसान सड़क पर अब ये नयी मुसीबत पर समय से मेरा पहुचना जरुरी था क्योंकि ताऊजी को लेट लतीफी पसंद नहीं थी मैं पैदल ही साइकिल को घसीटते हुए जाने लगा. पहुचते ही मैंने रेल का पता किया तो मालूम हुआ आज रेल करीब पौन घंटे पहले ही आ गयी थी.

मैंने अपना माथा पीट लिया पर इन चीज़ों पर मेरा जोर कहा चलता था, साइकिल ठीक कार्रवाई और वापिस मुड़ लिया मन थोड़ा घबरा रहा था ताऊजी के गुस्से को मैं जानता था पर घर तो जाना ही था. जब मैं घर आया तो सांझ पूरी तरह ढल चुकी थी ताईजी रसोई में थी घर में जाना पहचाना सन्नाटा छाया हुआ था.

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ताई- सलाद रख आ बैठक में.

मैं समझ गया ताऊजी आ चुके है और शायद आते ही पीने का कार्यक्रम चालू कर दिया है, मैंने प्लेट ली और बैठक में गया तो देखा ताऊजी आधी बोतल ख़त्म कर चुके है मैंने प्लेट मेज पर रखी और ताऊजी के पैरों को हाथ लगाया ही था की मेरी पीठ पर उनका हाथ पड़ा और फिर एक थप्पड़ गाल पर “हरामजादे, कहा मर गया था तू स्टेशन क्यों नहीं आया.”

मैं- जी वो साइकिल ख़राब हो गयी थी इसलिए देर से पंहुचा और रेल भी पहले आ गयी थी.

ताऊ- चल दिखा साइकिल.

वो मुझे बाहर ले आया.

ताऊ- सही तो है ये.

मैं- जी पंक्चर लगवा लिया था.

ताऊ- झूठ बोलता है कही आवारगी कर रहा होगा तू, वैसे भी तुझे क्या परवाह मेरी.

मैं- जी ऐसी बात नहीं है वो सच में ही.

आगे की बात मेरी अधूरी रह गयी नशे में चूर ताऊ ने पास पड़ा डंडा लिया और मारने लगा मुझे कुछ गालिया बकता रहा और मैं किसी बुत की तरह शांत मार खाता रहा इन लोगो के सिवा इस दुनिया में और कौन था मेरा बस यही सोच कर सब सह लेता था.

अपने दर्द से जूझते हुए मैं आँगन में ही बैठ गया अब दो महीने तक इस घर में ये सब ही चलना था दिन में शरीफ ताऊजी रात होते ही शराब के नशे में हैवान बन जाते थे धीरे धीरे घर में बत्तियां बुझ गयी पर मैं वही बैठा सोचता रहा. अपने बारे में, इस ज़िन्दगी के बारे में ऐसा नहीं था की मैं इन लोगो पर कोई बोझ था बिलकुल नहीं.

पर माँ बाप की एक हादसे में मौत के बाद मैंने भी मान लिया और फिर इनके अलावा कौन था मेरा पर कभी कभी इन ज़ख्मो से दर्द चीख कर पूछता था की आखिर क्या खता है क्यों सहता है ये सब. और मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था,खैर रात थी कट गयी सुबह ही मैं खेतो पर आ गया था.

बारिश की आस थी ताकि बाजरे की बुवाई कर सकू खेती की ज्यादातर जमीन आधे हिस्से में दी हुई थी कुछ पर मैं कर लिया करता था. आज दोपहर से ज्यादा समय हो गया था भूख सी भी लग रही थी पर ताईजी आज खाना लेकर नहीं आयी थी बार बार मेरी आँखे रस्ते को निहारती की अब आये अब आये पर आज शायद देर हो गयी थी.

“क्या हुआ दीपक, बार बार आज निगाहे सेर की तरफ हो रही है ” नीलम ने मेरी तरफ आते हुए कहा.

नीलम और उसका पति हमारे खेतो पर ही काम करते थे नीलम कोई 27-28 साल की होगी पर स्वभाव से मसखरी सी थी.

मैं- कुछ नहीं वो ताईजी आज खाना लेकर न आयी बस बाट देख रहा था.

नीलम- कुछ काम पड़ गया होगा वैसे तू चाहे तो मेरे साथ दो निवाले खा ले.

मैं- ना, ताईजी आती ही होंगी.

नीलम- दीपक, रोटी में जात पात न होती वो पेट भरती है बस चाहे तेरी हो या मेरी.

मैं- अब इसमें ये बात कहा से आ गयी,चल ला दे रोटी पर मैं भरपेट खाऊंगा क्योंकि कल का भूखा हु.

नीलम- खा ले.

नीलम ने अपनी पोटली खोली और खाना निकाला रोटी और चटनी थी लाल मिर्चो की पर भूख जोरो की लगी थी तो जायकेदार लगी मैं खाता गया कुछ बाते करता गया उससे और तभी ताईजी आ गयी ताईजी ने कुछ अजीब नजरो से नीलम को देखा.

ताईजी- नीलम खेतो के दूसरी तरफ पानी छोड़ जाके.

जैसे ही नीलम गयी ताईजी मेरी तरफ मुखातिब हुई और बोली- दीपक, कितनी बार मैंने कहा है नीलम से दूर रहा कर और मैं खाना ला तो रही थी आज थोड़ी देर हो गयी तो.

मैं- ताईजी मैं उसे मना नहीं कर पाया.

ताई- मैं सब समझती हूं उसका तो काम है बस लोगो को अपने झांसे में लेना ये तो मेरा बस नहीं चलता वरना कब का उसे निकाल चुकी होती यहाँ से खैर तू खाना खा ले.

ताईजी पंप हाउस की तरफ चल गयी और मैं खाना खाते हुए ये सोच रहा था की ताईजी को नीलम से क्या दिक्कत है. मैंने अपना खाना खाया और फिर पंप हाउस की तरफ चल दिया ये सोचते हुए की कुछ देर सुस्ता लूंगा ताईजी वहाँ पर चाबी पाना लिए एक मोटर को खोलने की कोशिश कर रही थी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

मैं- इसे क्या हुआ.

ताई- जल गयी है, इसे ठीक करवाना होगा.

मैं- आप रहने दो मैं थोड़ी देर में खोल दूंगा.

ताई- तू बैठ मैं खोलती हु.

मैं पास ही चारपाई पे बैठ गया और ताई मोटर से जोर आजमाइश करने लगी पर मोटर पुरानी थी बोल्ट जाम थे तो इसी कोशिश में ताई की कोहनी ऊपर रखे मोबिल के डिब्बे से टकराई और ढेर सारा मोबिल उनकी साडी पे आ गिरा.

ताई- ओह्ह ये क्या हुआ,क्या है ये.

मै – ताईजी मोबिल गिर गया एक मिनट रुको.

मैं एक पानी की बाल्टी लाया.

मैं- जल्दी से इसे साफ़ कर लो.

ताई- ये तो साबुन से ही साफ होगा कमबख्त एक से एक मुसीबत सर पर खड़ी रहती है.

मैं- कोई बात नहीं साबुन लाता हु आप अभी साड़ी धो दो थोड़ी देर में सूख जायेगी.

ताई- अब ये ही करना पड़ेगा वर्ना ऐसे में घर कैसे जाउंगी.

मैंने साबुन लाके दिया ताई शायद साड़ी मेरे सामने उतारने में थोड़ा असहज महसूस कर रही थी ये बात थोड़ी देर में मुझे समझ आयी.

मैं- आप आराम से इसे धो लो मैं तब तक खेत का चक्कर लगाके आता हूं.

ताई- नहीं पूरा दिन हाड़ तोड़ मेहनत करता है तू थोड़ी देर आराम कर ले मैं धो लेती हु वैसे भी तू मेरा बेटा ही तो है.

ताई ने मुस्कुराते हुए कहा,मैं लेट गया ताई ने साड़ी उतारी, आज पहली बार मैंने ताईजी को पेटीकोट और ब्लाउज़ में देखा था बस देखता ही रह गया गोरा रंग कसा हुआ ब्लाउज़ और थोड़ा सा फुला हुआ पेट पर मैंने तुरन्त ही नजरे हटा ली.

मैंने आँखे बंद कर ली और सोने की कोशिश करने लगा कुछ देर बीती पर नींद न आयी तो मैं उठ बैठा देखा ताई की पीठ मेरी तरफ थी और वो अपने काम में लगी हुई थी पर एक बार फिर मेरी निगाह उनके नितंबो पर जा टिकी. मैंने अपने सर को झटका और सोचा की ये मैं क्या देख रहा हु ऐसे देखना शोभा नहीं देता और मैंने सोचा चलता हूं यहाँ से.

मैं- ताईजी मैं जरा दूसरी तरफ होकर आता हूं.

ताई ने सर हिलाया और मैं पंप हाउस से उस तरफ आ गया जहाँ नीलम काम कर रही थी.

मैं- नीलम, मिश्री ना दिख रहा.

नीलम- चौधरी साहब के काम से शहर गया है कल तक लौटेगा.

मैं- क्या काम.

नीलम- पता नहीं.

मैं- तो रात को अकेली रहेगी तू.

नीलम- मुझे क्या डर है अकेले में,सोना ही तो है बस आँख मींची और हुआ सवेरा.

मैं- तू कहे तो मैं पंप हाउस पे रुक जाऊ.

मैं खुद घर से दूर रहने का बहाना तलाश रहा था क्योंकि रात को ताऊजी फिर क्लेश करते और फिर जी दुखी होता.

नीलम- दीपक, तुम्हे मेरी फ़िक्र हुई मैं शुक्रिया करती हूं पर तुम मेरे बारे में इतना मत सोचो मालकिन को मालूम हुआ तो मुझे फिर कड़वी बाते सुनना पड़ेगी.

मैं- जब कभी पानी देना होता है रातो में तब भी तो यहाँ रुकता हु न और सच कहूं तो घर पे ताऊजी की वजह से मैं जाना नहीं चाहता.

नीलम- दीपक, वैसे तो छोटा मुह बड़ी बात पर मैं नहीं चाहती की तुम यहाँ रुको.

मैं- कोई बात नहीं नीलम मैं तो ऐसे ही बोल रहा था.

फिर सांझ ढलने तक मैंने खेत में काम किया ताईजी घर जा चुकी थी मुझे भी अब घर ही जाना था पर मन नहीं था तो मैं ऐसे ही घूमने निकल गया, घूमते घूमते मैं नहर के आगे जंगल की तरफ निकल गया. एक जगह बैठ कर मैं ऐसे ही सोच रहा था की मुझे पंप हाउस वाली बात याद आयी.

पेटीकोट और ब्लाउज़ में ताईजी को ऐसे देखना कुछ रोमांचक सा लग रहा था पर कुछ ग्लानि सी भी हो रही थी की जो मेरा पालन पोषण करती है उसके बारे में ऐसे सोचना पर बार बार मेरे मन के दरवाजे पर वो द्रश्य ही दस्तक दे रहा था,हल्का हल्का सा अँधेरा होने लगा था.

पर मुझे कहा कोई जल्दी थी जब भी अकेला होता तो मैं अपने बारे में सोचता, आगे मेरा क्या होगा जीवन में मुझे क्या करना है,सोचते हुए मैं घास पर लेट गया और कब आँख लग गयी कौन जाने पर जब नींद टूटी तो चारो तरफ घुप्प अँधेरा था कुछ कुछ जानवरो की आवाजें आ रही थी.

कुछ देर तो समझ ही न आया की मैं कहा हु पर जल्दी ही दिमाग काबू में आया और मै थोड़ा सा डर भी गया की जंगल में अकेला हु,अँधेरे की वजह से घडी में टाइम भी न देख सका पर वापिस तो जाना था ही तो की हिम्मत और कुछ सोच के खेतों की तरफ हो लिया.

दूर से ही मुझे नीलम के कमरे में रौशनी दिख गयी इतनी रात तक जाग रही है ये सोचके कुछ कोतुहल सा हुआ मुझे. मैंने सोचा कही उसे डर तो नहीं लग रहा होगा, एक काम करता हु उसके कमरे के पास से होकर निकलता हु तो तसल्ली हो जायेगी.

धीरे धीरे पगडण्डी पर चलते हुए मैं उसके कमरे की तरफ बढ़ने लगा, पर फिर सोचा की इतनी रात को ठीक नहीं मैं पंप हाउस की तरफ बढ़ गया पर तभी मुझे एक हँसी सुनाई दी तो कान खड़े हो गए यक़ीनन ये नीलम की ही आवाज थी पर इतनी रात को, मैं धीमे कदमो से दरवाजे के पास गया और अपने कान लगा दिए.

और जल्दी ही मैं समझ गया की अंदर नीलम अकेली तो बिलकुल नहीं है, पर कौन है उसके साथ क्योंकि मिश्री तो शहर गया हुआ है, अब ये तो पता करना ही होगा, मैं पीछे की तरफ गया तो देखा खिड़की खुली पड़ी है. मैंने अंदर झाँक के देखा तो नीलम की पीठ मेरी तरफ थी और वो, और वो एक दम नंगी थी.

एक पल उसको ऐसे देख कर मैं चौंक गया पर अभी तो झटका लगना और बाकी था, जैसे ही वो साइड में हुई अंदर मौजूद इंसान को देख कर मेरे होश उड़ गए. ताऊजी और नीलम दोनों नंगे थे ताऊ ने नीलम को खींच कर अपनी गोदी में बिठा लिया और उसके सुर्ख होंठो का रसपान करने लगे साथ ही अपने दोनों हाथों से उसके नितंबो को भी दबा रहे थे.

पल भर में ही मेरे दिमाग का चौंकना कम होकर बस अब आँखों के सामने जो हाहाकारी दृश्य चल रहा था उस पर केंद्रित हो गया. दोनों एक दूसरे के बदन को चूम रहे थे सहला रहे थे और फिर ताऊ ने नीलम को बिस्तर पर पटक दिया नीलम ने अपनी जांघो को फैलाया और जिंदगी में पहली बार मैंने चूत के दर्शन किये.

काले काले बालो से ढकी हुई गहरे लाल रंग की, मेरी आँखे फ़टी की फटी रह गयी. ताऊ ने अपने मुह को उसकी टांगो के बीच घुसा लिया और उसकी चूत को चाटने लगा, मुझे बहुत अजीब लगा कैसे कोई मूतने की जगह पर जीभ चला सकता है पर मेरे भ्र्म को नीलम की मस्ती भरी आवाज ने पल भर में तोड़ दिया.

ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ताऊ की इस हरकत से उसे बहुत अच्छा लग रहा था और वो बार बार हस्ते मुस्कुराते हुए अपने कूल्हों को ऊपर नीचे कर रही थी, आँखों के सामने चल रहे इस दृश्य को देख कर मेरे कान भी गर्म होने लगे थे बदन तपने लगा था.

और मैंने भी अपने लण्ड में सख्ती महसूस की मेरा हाथ अपने आप मेंरे औज़ार पे पहुच गया तभी ताऊ ने नीलम को खड़ी किया और खुद लेट गया नीलम ने अपनी चूत पर थूक लगाया और ताऊ के लण्ड पर बैठ कर कूदने लगी. मैं बड़े गौर से पूरे दृश्य को देख रहा था और तभी नीलम की नजर खिड़की पर पड़ी.

वो बुरी तरह चौंक गयी मुझे देखकर पर मैं तुरंत ही वहां से भाग लिया और सीधा पंप हाउस आकर रुका, मेरी चिंता ये नहीं थी की उसने मुझे देख लिया बल्कि ये थी की अगर ताऊ को मालूम हुआ तो मेरी पिटाई तय थी पर साथ ही मेरे मन में हज़ारों सवाल खड़े हो गए थे.

जैसे नीलम ताऊ से क्यों चुद रही थी और ताऊ जिसकी खुद इतनी सुंदर पत्नी थी आँखों के आगे बार बार वो चुदाई के लम्हे आ रहे थे और मैं खुद भी उत्तेजित महसूस कर रहा था. तभी मेरे मन में ख्याल आया की कही इसी वजह से तो ताईजी नीलम को पसंद नहीं करती अवश्य ही उनको मालूम होंगा ताऊ के इस अवैध संबंध का.

बस यही सब बातें सोचते सोचते कब मैं सो गया पता नहीं पर अगला दिन शायद कुछ अलग होने वाला था. खेत में ही नहा धोकर जैसे ही मैं घर पंहुचा ठीक तभी बाथरूम से नहा कर ताईजी बाहर निकली पूरा बदन बूंदो में लिपटा हुआ बदन पर ब्रा और बस एक हलकी सी साड़ी और मुझे पक्का यकीन था की नीचे पेटीकोट बिलकुल नहीं था.

जैसे ही हम दोनों की नजर मिली ताई बुरी तरह से शर्मा गयी और लगभग भागते हुए अपने कमरे में चली गई. मेरी निगाह उसकी अधनंगी पीठ और थिरक्ते नितंबो के बीच फंस कर रह गयी कुछ रात वाली घटना का असर कुछ ताई का ये रूप एक बार फिर से मेरा बदन तपने लगा.

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खैर कुछ देर बाद नाश्ता पानी हुआ फिर ताऊ मुझे कपड़ो की दूकान पे ले गया कुछ कपडे दिलवाये और दर्ज़ी के वहा से होते हुए हम घर आ रहे थे की उनको कोई मिल गया और मैं अकेला ही घर आ गया मैंने देखा ताई बरामदे में बैठी अपने पैरों में नेल पॉलिश लगा रही थी.

साड़ी कुछ पिंडियों से ऊपर थी तो मेरी नजर उनके पैरों पर रुक सी गयी गोरे पैरो पर काले रेशमी बाल बहुत सुंदर लग रहे थे पर इससे पहले के ताई मेरी चोर नजरो को पकडे मैं अपने कमरे में आ गया और सुस्ताते हुए बस ताई के बारे में सोचने लगा.

मेरी ताई का नाम बीना था उम्र होगी 38 के आस पास रंग गोरा और बदन तो पूछो ही मत ब्लाउज़ से आधी झांकती चूचिया थोड़ी सी मोटी कमर पेट कुछ फुला सा और कुछ चौड़े नितम्ब अक्सर घरेलु कामो में व्यस्त रहती थी तो शरीर पे रौनक थी.

मैं खुद हैरान था कि मात्र दो दिन में कैसे पूजनीय ताई के प्रति मेरे विचार आदर भाव से हटकर कामुकता की और चले गए थे,ताई को मैं सदा माँ सामान मानता था और अब मैं उसके बदन की एक नयी मूरत अपने मन में गढ़ रहा था. शाम तक मैं घर पर ही रहा पर जैसे ही देखा ताऊ ने बोतल खोल ली है मैं खेतो पर आ गया वहाँ आके देखा मिश्री लौट आया था और मोटर चला के नहा रहा था.

मैं- आ गया भाई.

मिश्री- हां भाई बस थोड़ी देर पहले आया हु.

मैं- बढ़िया.

मिश्री- चाय पिओगे.

मैं- हां.

तो मिश्री के नहाने के बाद हम दोनो उसके कमरे में आ गए नीलम एक पल मुझे देख कर चौंक गयी पर अगले ही पल वो सम्भल गयी मिश्री के कहे अनुसार उसने चाय बनाई और मिश्री शहर की बाते बताने लगा. मैं नीलम के चेहरे पर आये भाव समझने की कोशिश कर रहा था पर कामयाबी न मिली.

चाय ख़तम करके मैं कुछ देर इधर उधर चक्कर लगाया और फिर आके सो गया वैसे तो दिन में भी एक दो घंटे सोया था पर नींद जल्दी ही आ गयी. रात के कितने बजे थे की कुछ हलचल से मेरी आँख खुल गयी तो मैंने देखा की एक साया मेरी तरफ आ रहा है.

मैंने टोर्च जलाई और दूसरे हाथ में लट्ठ लेके टोर्च उसकी तरफ की ही थी की। की तभी टोर्च की रौशनी उस साये की आँखों में पड़ी और उसकी आँखे चुंधिया गयी,उसके कदम लड़खड़ाये और वो मुझे लिए लिए ही जमींन पर गिर गया धम्म से गिरते ही मुझे तेज दर्द हुआ

मैं- कौन है रे आह मार दिया,

मैंने गुस्से से उसे परे धकेला और खड़ा हो ही रहा था की उसकी चादर हट गयी और मैंने देखा ये तो एक लड़की थी, एक लड़की रात के इस वक़्त वो भी इस हाल में मेरे खेत में मेरे दिमाग की तो बत्ती ही बुझ गयी एक बार तो विस्वास ही न हुआ. पर हकीकत आँखों के सामने थी एक बीस बाइस साल की युवती के रूप में, टोर्च की रौशनी में मैंने उसको देखा,अपने चेहरे पर आयी बालो की लट को सरकाते हुए वो अभी भी मेरी तरफ देख रही थी

वो- टोर्च बंद करो जल्दी.

मैंने बंद की, और पूछा – कौन हो तुम.

पर वो बस मुझे देखती रही कुछ बोली नहीं.

मैंने फिर पूछा- कौन हो तुम.

वो- पानी मिलेगा थोड़ा.

मैंने एक नजर उसे देखा फिर अपनी चारपाई के पास रखी हांडी से एक गिलास भरके उसे दिया कुछ घूंट भरे उसने फिर बोली- मेरा नाम रिंकी है.

मैं- इतनी रात को यहाँ, और इतना हांफ क्यों रही हो तुम.

रिंकी- वो मेरे पीछे, मेरे पीछे जंगली कुत्ते पड़े थे.

मैं- जंगली कुत्ते सरहदी इलाके में है वो इधर कभी नहीं आते और चलो आ भी गए तो भी मैंने बस तुम्हे देखा उन्हे नहीं ना कोई आवाज कही तुम कोई चोर तो नहीं.

रिंकी- तुम्हे मैं चोर नजर आती हु.

मैं- साहूकार इतनी रात को नहीं मिला करते.

रिंकी- मैंने कहा न चोर नहीं हूं.

मैं- तो इतनी रात को कैसे किसलिए भटक रही है ये तो बता दे.

रिंकी- मैं चौधरी भानु सिंह की छोरी हु.

वो नाम सुनते ही मैं हिल गया मैं कभी खुद को तो कभी उसको देखता भानु सिंह गांव के सरपंच थे और बड़े ही नीच किस्म के इंसान थे, मक्कारी में उनका कोई सानी न था शायद ही कोई काण्ड बचा हो जो उसने किया न हो.

मैं- चौधरी साहब की छोरी इस वक़्त मेरे खेत में, एक काम कर तू अभी के अभी निकल.

मेरी टेंशन अचानक बढ़ गयी ये भागती हुई आयी थी यहाँ मतलब कुछ गड़बड़ और ऊपर से रात का समय.

मैं- सुना नहीं तू अभी जा मेरे खेत से.

रिंकी- मेरे पैर में लग गयी, चला न जा रहा मुझसे.

उसने रोनी सी सूरत बना के कहा.

मैं- क्या मुसीबत है चाहे कुछ भी हो तू जा बस.

रिंकी- जरा मुझे खड़ा तो कर.

उसने अपना हाथ आगे किया मैंने उसे सहारा दिया वो जमींन से उठ के चारपाई पे बैठ गयी और बोली- घुटने में लग गयी है बड़ा दर्द हो रहा है.

मैं- मरहम लगा लेना अपने घर जाके.

रिंकी- हमेशा ऐसा रुखा बोलता है क्या तू.

मैं- ना, पर खैर जाने दे.

रिंकी- नाम क्या है तेरा.

मैं- क्यों अपने बापू को बताएगी क्या तू रहने दे नाम को.

रिंकी- अच्छा अब समझी तू एकदम से मुझे यहाँ से जाने को क्यों बोल रहा खैर, मैं जा ही रही हु पर सुन मैं अपने बापू सी बिलकुल नहीं हूं और दूसरी बात मैं कोई चोर न हु वो तो किस्मत ख़राब थी जो कुत्ते लग गए और तुझसे पाला पड़ गया.

रिंकी उठी और लड़खड़ाते हुए दूसरी तरफ जाने लगी पर लग रहा था की उसको चोट ज्यादा लगी थी कुछ सोचकर मैंने आवाज दी.

“रुक, मैं साथ चलता हूं आगे तक.”

उसने कुछ भी नहीं कहा मैंने अपना लट्ठ उसे दिया सहारे के लिए और टोर्च लेके उसके साथ साथ चलने लगा/

मैं- इतनी रात को बाहर घूम रही है डर न लगे.

रिंकी- जानता है किसकी बेटी हु ,मुझे किसका डर.

मैं- घमण्ड बहुत है तुझे, पर मान ले इस रात के अकेले में खुदा न खस्ता कोई मुसीबत आ जाये तो क्या हो सोचा तूने.

रिंकी- वो मेरी परेशानी तुझे क्या है.

मैं- ना बस ऐसे ही पूछ रहा था.

रिंकी- इतनी कमजोर भी ना समझ लियो आत्म रक्षा के गुर सीखे है मैंने.

मैं- तभी कुत्तो से डर के भाग रही थी.

उसने कुछ गुस्से से देखा मुझे और बोली- आदमियो की बात कर रही थी मैं.

मैं- गुस्सा क्यों होती है.

वो- तू खेत में क्यों सो रहा था अब क्या फसल का मौसम है.

मैं- बस यु ही.

रिंकी- चल बस गाँव आ गया है आगे मैं चली जाउंगी.

मैं- तेरी मर्ज़ी.

रिंकी को वही से विदा किया और आके सो गया ये सोचते सोचते की रात को ये किसलिए भटक रही होगी जरूर कोई प्रेम प्रसंग का मामला होगा, तभी इतना रिस्क लिया जा सकता है अब बड़े घर की बेटी नखरे देख कर बिगड़ैल सी ही लगी मुझे. सुबह जब जागा तो नीलम चारपाई के पास ही खड़ी थी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

मैं- तू सुबह सुबह.

नीलम- चाय लाइ थी.

मैं- ला.

मैंने उसके हाथ से कप लिया पर वो वही खड़ी रही तो थोड़ी मुश्किल सी हो गयी उस रात उसने मुझे देख लिया था तो हम दोनों ही कुछ बोल न पा रहे थे.

पर अचानक वो बोली- दीपक उस रात.

मैं- वो तेरा मामला है नीलम, तेरी निजी जिंदगी है तू जैसे चाहे जी पर गलती मेरी है मुझे ऐसे टांक झाँक नहीं करनी थी.

नीलम- मेरी बात सुन तो सही.

मैं- उस रात के अलावा कुछ कहना है तुझे.

नीलम कुछ कहना चाहती थी पर तभी हमने ताऊ को आते देखा मैं चारपाई से उठ गया.

ताऊ- दीपक, तेरी ताईजी को आज बड़े मंदिर जाना है तो तू साथ चले जाना और खेत पर आने की जरूरत नहीं आज मैं यहाँ हु मैं संभाल लूंगा यहाँ.

मैंने गर्दन हिलायी और चल दिया कुछ दूर जाके मैंने मुड़के देखा तो ताऊ का हाथ नीलम की कमर पे था,मैं समझ गया आज फिर इनका कार्यक्रम होगा पर कैसे आज तो मिश्री भी यही है सोचते सोचते मैं घर पर आ गया.

ताईजी- नाश्ता कर ले.

मैं- वो ताऊजी ने कहा है की आपके साथ बड़े मंदिर जाना है.

ताई- पर मैंने तो उनको साथ चलने को कहा था पर कोई बात नहीं नाश्ता करके तैयार होजा फिर चलते है.

करीब एक घंटे बाद हम दोनों मंदिर के लिए निकल पड़े बड़ा मंदिर गांव से कोई दो कोस दूर पहाड़ी के ऊपर था आज न जाने ताईजी का क्या मन हुआ अब चढ़ने उतरने में ही हाथ पाँव फूल जाने थे. ताई ने सफ़ेद ब्लाउज़ और नीला घाघरा पहना हुआ था जिसमे वो कुछ ज्यादा ही सुंदर लग रही थी.

गर्मी से बगलों में जो पसीना आया था ऊपर से कसा हुआ ब्लाउज़ जो बिलकुल चिपक गया था अंदर पहनी काली ब्रा साफ़ दिख रही थी. वो मुझसे कुछ आगे चल रही थी तो न चाहते हुए भी मेरे मन के चोर की नजरें उनके इठलाते हुए नितंबो पर ठहर ही गयी थी.

उस लचक ने मेरे मन में सुलगते वासना के शोलो को कुछ हवा सी दे दी थी. माँ से भी बढ़कर ताई के बारे में अब मेरे मन में एक तंदूर दहकने लगा था और जिसे अब बस वासना से सुलगना था,रस्ते भर बस कुछ हलकी फुलकी बाते हुई हमारे बीच.

तो मालूम हुआ आज के दिन किसी बाबा ने मंदिर में समाधी ली थी तो उसकी ही पूजा थी. ऊपर चढ़ने में ताई की साँस फूल गयी तो उन्होंने एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया और मेरे साथ चलने लगी,उस परिस्तिथि में मेरी कोहनी हलके हलके से उनके वक्षो से रगड़ खाने लगी तो मेरे बदन में अजीब सा होने लगा ऊपर से उनकी वो पसीने की महक.

एक ऐसा अहसास जो मुझे उत्तेजना की तरफ ले जा रहा था मेरा मन अब सब कुछ भूल कर ताई की वो महक लेना चाहता था कभी कभी मेरी कोहनी कुछ तेजी से उनके वक्षो पर रगड़ी जाती पर ताई के लिए ये सब सामान्य सा प्रतीत हो रहा था,प्रांगण में काफी भीड़ थी तो हम भी लाइन में लग गए.

ताई- भीड़ बहुत है, दर्शन में देर होगी.

मैं- जी, घंटा भर तो लग ही जायेगा.

ताई- आज गर्मी भी ज्यादा ही पड़ रही है एक मेह पड़ जाए तो कुछ चैन मिले.

ताई ने मेरे हाथ से थाली ली और लाइन में लग गयी,मैं भी उनके पीछे खड़ा हो गया पर क्या जानता था कि बस इसी लम्हे से मेरे पतन के अध्याय की पहली कलम चलेगी,लाइन किसी चींटी सी रेंग रही थी और धीरे धीरे भीड़ बढ़ रही थी.

हम कुछ आगे हुए थे की पीछे से कुछ धक्का सा आया और मैं बिलकुल ताई के पिछले हिस्से से रगड़ खा गया और बदहवासी में मेरा हाथ ताई के पेट से थोड़ा ऊपर कसा गया,ताई हल्का सा कसमसाई और बोली-” आराम से बेटा, ऐसे धक्के तो लगते ही रहेंगे थोड़ा आराम से गिर न जाना किसी का पाँव लगा तो चोट लगेगी.”

मैं- जी.

कुछ समय औऱ गुजरा भीड़ बढ़ी और साथ ही मेरे और ताई के बीच जो भी गैप था वो भरता गया एक बार फिर से ताई के नर्म कूल्हों का स्पर्श मेरे अगले हिस्से पर होने लगा और इस बार चाह कर भी मैं अपने उत्तेजित होते लण्ड पर काबू ना रख सका.

चूँकि मैंने पायजामा पहना हुआ था तो अब समस्या विकट हो चली थी मैं चाहकर भी इसको रोक नहीं पा रहा था और तभी पीछे से लगे झटके ने बाकि काम कर दिया मेरा तना हुआ लण्ड सीधा ताई के कूल्हों की दरार पर जाके लगा और शायद ताई ने भी उस तूफान को महसूस कर लिया एक बार पलट कर देखा उन्होंने.

और फिर थोड़ा सा आगे को सरकी पर शायद आज ये सब ही होना था उस लंबी लाइन में ये बार बार दोहराया गया जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे शरीर और संकुचित हो रहे थे मैं ताई की गांड को खूब अच्छे से महसूस कर रहा था. उनके पसीने की महक मेरे तन में मादकता भर रही थी मेरे लण्ड का दवाब अपनी गांड पर लगातार महसूस करते हुए ताई की आँखे बस आस पास के लोगो पर ही घूम रही थी.

ताई- दीपक, अपना नंबर आने वाला है भीड़ ज्यादा है मैं थाली ऊँची कर रही हु तू अपने हाथ नीचे कर ले ताकि कुछ गिरे तो पकड़ ले.

मैं- जी.

ताईजी ने अपने दोनों हाथ ऊपर किये और मैंने अपने हाथ उनकी बगलों के नीचे से आगे को कर दिए अब हुआ यु की इस तरह मैं पूरी तरह से उनके पीछे चिपक सा गया और मेरे लण्ड का दवाब एक बार फिर से ताई के चूतड़ पर बढ़ गया.

पर साथ ही अब मेरी दोनों कोहनियां ताई की चूचियो से रगड़ खा रही थी उत्तेजना अपने चरम पर थी. ऊपर से ताई की बार बार हिलती गांड जो मुझे वही छूट जाने पर मजबूर कर रही थी पर कुछ देर बाद ही ये अवसर ख़तम हो गया.

हमने पूजा ख़त्म की और बाहर निकल आये ताई एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ गयी और मुझे थोड़ा पानी लाने को कहा. मैं पानी लेने गया तो देखा की रिंकी कुछ बाबा लोगो के पास बैठी कुछ इकतारे जैसा बजा रही थी हमारी नजरे मिली तो वो मेरे पास आई.

रिंकी- तू यहाँ.

मैं- ताईजी को पूजा करनी थी साथ आया हु,तू क्या कर रही बाबाओ के बीच.

रिंकी- बस ऐसे ही,मै तो सुबह से ही आयी हुई हु ऐसे ही टाइम पास कर रही थी.

मैं- चल मिलते है फिर, ताईजी के लिए पानी ले जाना है.

रिंकी- ठीक है.

जाते जाते उसने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे कुछ कहना चाहती हो पर चुप रह गयी मैंने ताई को पानी दिया, जब वो पानी पी रही थी तो मेरी निगाह उन बूंदो पर थी जो छलक कर उनकी छातियों को गीला कर रही थी इस अवस्था में सफ़ेद ब्लाउज़ गजब ही था खैर कुछ देर रुकने के बाद हम वापिस घर की तरफ चल पड़े.

घर आते ही मैंने अपना कमरा बंद किया और अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया आज ये बुरी तरह से उत्तेजित था मैं धीरे धीरे हस्तमैथुन करने लगा और अपने आप ताई के बारे में मैं सोचने लगा तो लण्ड की अकडन बढ़ गयी साथ ही मजा भी अलग जितना ताई के बारे में सोचता उत्तेजना उतना ही ज्यादा होने लगी.

और जब पानी गिरा तो जैसे मेरा सारा दम ही निकल गया हो, थकान सी लगने लगी और फिर मैं बस सो गया. जितना ताई के बारे में सोचता उत्तेजना उतना ही ज्यादा होने लगी और जब पानी गिरा तो जैसे मेरा सारा दम ही निकल गया हो, थकान सी लगने लगी और फिर मैं बस सो गया.

पर जब उठा तो ताऊ ताई से झगड़ा कर रहा था सच कहूं तो अब मुझे कोफ़्त सी होने लगती थी मैंने देखा ताऊ ने ताईजी की चोटी पकड़ रखी थी और गन्दी गंदी गालिया दे रहे थे, मेरा दिल बहुत दुखता था घर में ऐसा क्लेश देख कर मैं ताई को छुड़ाने के लिए आगे बढ़ा ही था कि ताईजी ने इशारे से जता दिया की मैं बीच में न पड़ू.

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पर मैं ये सब देख भी तो नहीं सकता था तो घर से बाहर निकल गया,कुछ गुस्सा सा उबलने लगा था कुछ बेबसी सी थी अक्सर मैं सोचता था की ताऊजी ऐसा क्यों करते है. कुछ देर चौपाल पे बैठा पर दिल को सकून नहीं मिला कभी कभी लगता था यहाँ से कही दूर भाग जाऊ जहा बस मैं अकेला ही रहूं.

जब दिल की तल्खी कुछ बढ़ सी गयी तो मैं बेखुदी में घूमते घूमते जंगल की तरफ बढ़ गया. जब थकने लगा तो एक नीम के पेड़ के नीचे बैठ गया और सोचने लगा जबसे कुछ समझने लगा था तब से बस यही ज़िन्दगी थी घर में दो लोग मैं और ताईजी.

साल में दो बार ताऊजी महीने महीने की छुट्टी आते और हमारी ज़िंदगी नर्क हो जाती कभी मुझे पीटते, कभी ताईजी को. पर क्यों ये कोई नहीं जानता था, मैंने पेड़ से टेक लगायी और आँखे मूँद ली, ज़िन्दगी में कोई ऐसा चाहिए था जिससे अपनी सब बातें कर सकूँ कोई साथी होता मेरा भी तो ये जो अपने आप से अजनबी सा था ये ना रहता.

खाली बैठे दिल कुछ कुछ सोचने लगा था मैंने आँखे खोली तो देखा ऊपर डाली पर शहद का छत्ता लगा था मैंने सोचा की शहद ही खाया जाए तो मैं पेड़ पर चढ़ा पर मधुमखिया ज्यादा थी और मेरे पास उन्हें भागने के लिए धुंआ नहीं था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

तो मैंने कपडे उतारे और गीली मिट्टी बदन पर लपेट ली ताकि अगर ये काटे तो बचाव हो मैंने जुगाड़ तो सही किया था अपने तरीक़े से,तो गया छत्ते के पास और तोड़ने लगा पर मधुमक्खियां गुस्सा हो गयी और एक के बाद एक काटने लगी मुझे.

बड़ी मधुमक्खियां जहा जहा काटे वहाँ तेज दर्द हो और लाल लाल निशान से हो जाए,पर आँखों को सामने शहद दिख रहा था मैंने अपना हाथ छत्ते में दिया ही था कि तभी उन्होंने मेरे दूसरे हाथ पर काट लिया और मेरा संतुलन बिगड़ गया. धम्म से मैं पेड़ से नीचे गिर गया सर बड़ी जोर से टकराया लगा हड्डिया गयी काम से और मैं जैसे होश ही खो बैठा.

पता नहीं कितनी देर बाद मेरी चेतना लौटी तो रात हो रही थी सर दर्द से फटा जा रहा था और बदन भी. कुछ पल लगे मुझे याद आने में मैंने अपने कपडे लिए और नहर पर आके नहाया और लंगड़ाते हुए पंप हाउस आया भूख भी लगी थी तो मैं नीलम के पास गया उससे कह ही रहा था की चक्कर सा आया तो मैं दिवार का सहारा लेके बैठ गया.

नीलम- क्या हुआ दीपक.

मैं- कुछ नहीं चक्कर सा आया.

नीलम- लेट जाओ थोड़ी देर मैं पानी लाती हु.

मैं चारपाई पे लेट गया अचानक कमजोरी सी लगने लगी बदन कांपने लगा तभी नीलम पानी ले आयी मैंने जैसे तैसे पानी पिया.

मैं- नीलम सो जाऊ कुछ देर तबियत ठीक ना लग रही.

वो- हाँ सो जाओ.

दर्द बढ़ता जा रहा था पसीना आने लगा कुछ नीम बेहोशी जैसा हाल होने लगा था पर जब होश आया तो कुछ बेहतर महसूस हुआ दिन निकला हुआ था मैंने देखा शरीर सूजा हुआ है मैं मूतने गया तो देखा मेरा लण्ड भी कुछ सूजा सा लग रहा था. तो सोचा की मधुमखी की वजह से हुआ होगा मैं सीधा वैद्य जी के घर गया तो उनकी लुगाई ने दरवाजा खोला.

मैं- वैद्य जी है.

वो- बैठो मैं बुलाती हु.

मैं इंतज़ार करने लगा कुछ देर बाद वो आये तो मैंने पूरी बात बताई, उन्होंने कुछ पुड़िया दी और बोले सूजन उतर जायेगी, तीन दिन बाद फिर आना. मैं वापिस आया घर तो ताई जी अपने कमरे में थी मैं उनके पास गया उन्होंने भी मेरी सूजन के बारे में पूछा और बताने पर डांट भी लगाई, तभी मैंने उनके हाथों पे कुछ नीले निशान देखे.

मैं- ये क्या है ताईजी.

ताई- कुछ नहीं.

पर मैंने उनके हाथों को अपने हाथों में लिया और सहलाते हुए बोला- ये क्या है.

वो- कुछ नहीं दीपक, ठीक हो जायेंगे.

मैं- दवाई लगा दू.

वो- जरूरत नहीं तू नहा धो ले खाना खाके आराम कर.

मैं बाथरूम में गया तो देखा की खूँटी पे ताई के कपडे थे मैंने ताई के ब्लाउज़ को सुंघा तो एक जानी पहचानी महक मेरे नथुनों से टकराई,ऐसा लगा की ताई की छातियों को सूंघ रहा हु पास ही ताई की काली कच्छी टँगी थी. मैंने उसे अपने हाथ में लिया और देखने लगा सोचने लगा ऐसा लगा जैसे ताई की मोटी जांघो पर ये कसी हुई हो.

मैं एक बार फिर से उत्तेजित होने लगा था वो कच्छी सूखी थी शायद ताईजी बाद में धोने वाली थी जैसे ही मैंने उसे अपने नाक पे लगाया पेशाब की सी महक आयी. शायद जब वो मूतती होंगी तो कुछ बूंदे यहाँ गिर जाती होंगी पता नहीं मुझे क्या हुआ.

मैंने अपनी जीभ उस हिस्से पर फेरी ऐसा लगा की ताई की चूत पर ही जीभ फेर दी हो जैसे मैंने अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया और वो कच्छी उसपे लपेट के मुट्ठी मारने लगा. ऐसा लग रहा था की जैसे ताई की चूत में लण्ड डाल दिया हो पर तभी मेरे लण्ड में जोर से दर्द होने लगा.

तो सारी उत्तेजना गायब हो गयी, मेरी समझ में ये नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है. मैं जैसे तैसे नहाया और एक पुड़िया गटक ली तो कुछ आराम आया एक तो शहद के चक्कर में ये मुसीबत मोल ले ली ऊपर से ताई को जब भी देखता दिल में ये गलत ख्याल आने लगते.

खैर इन सब बातों के बीच तीन दिन बीत गए बदन की सूजन गायब हो गयी थी पर एक बात बहुत परेशां किये हुए थी. मैं जैसे तैसे नहाया और एक पुड़िया गटक ली तो कुछ आराम आया एक तो शहद के चक्कर में ये मुसीबत मोल ले ली ऊपर से ताई को जब भी देखता दिल में ये गलत ख्याल आने लगते.

मेरे लण्ड की सूजन जरा भी कम नहीं हुई थी हर समय वो किसी बेलन की तरह रहने लगा था और जब भी मैं उत्तेजना महसूस करता उसमे दर्द होता और साथ ही वो और फूल जाता किसी बैंगन की तरह, यहाँ तक की जब मैं कच्छे में होता तो वो उभार साफ़ दीखता था.

अजब सी समस्या खड़ी हो गयी थी,खैर तीसरे दिन मैं वैद्य जी के घर गया तो उनकी लुगाई ने ही दरवाजा खोला, इस बार मैंने जो उसे देखा बस देखता ही रह गया,उसने अपनी साड़ी घुटनो तक बाँधी हुई थी और पल्लू कमर में खोंसा हुआ था. जिससे उसका ब्लाउज़ वाला हिस्सा खुला हुआ था और सर पे भी कुछ नहीं था एक पल तो मैं उसे देखता ही रह गया.

वो- दरवाजे पे ही रहेगा या अंदर आएगा.

मैं- जी.

मैं उसके पीछे पीछे अंदर आया उसकी बलखाती कमर और लचकते कूल्हे मेरे मन में सुरसुराहट सी होने लगी उसने मुझे बैठने को कहा और अंदर चली गयी थोड़ी देर में कुछ पुड़िया लेके आयी और बोली- बैद्य जी ये दे गए है तुम्हारे लिए.

मैं- ये तो ठीक है पर दे गए है मतलब.

वो- मतलब ये की अभी वो घर पे है नहीं.

मैं- कब तक आएंगे.

वो- अपने मित्रो के साथ देशाटन पे गए है अब कौन जाने कब आये दस दिन पंद्रह दिन या महीना दो महीना.

मैं- पर मेरे लिए उनसे मिलना बहुत जरुरी है.

वो- ऐसी क्या बात है,मुझे बता दे वैसे भी उनकी अनुपस्तिथि में मैं ही मरीज़ों को देखती हूं,तुझे भी देख लुंगी.

मैं- मुझे उनसे ही परामर्श करना है.

वो- अब वो तो है नहीं,तो तू सोच ले जो भी तकलीफ है या तो मुझे बता दे नहीं तो फिर इंतज़ार कर पर जब तक दुखी तू ही पायेगा. उसकी बात तो खरी थी पर मैं एक नारी को कैसे अपने अंग की समस्या बता सकता था कुछ का कुछ मतलब निकाल लेगी तो, हिचक सी हो रही थी मुझे पर वैद्य जी अब कब के निकले कब आये तब तक सूजन और बढ़ गयी तो.

वो- क्या विचार करने लगा.

मैं- आप मेरी समस्या का समाधान कर देंगी क्या.

वो- न हम तो यहाँ मोमबत्तिया बनाने को बैठे है, है ना.

मैं- वो बात ही कुछ ऐसी है की आप पहले वादा कीजिये मुझे गलत नहीं समझेंगी.

उसने लगभग घूर कर ही मुझे देखा और बोली- चल वादा.

मैंने घबराते हुए उसे पूरी बात बता दी,उसने पुरे ध्यान से मेरी बात सुनी और बोली- हम्म। पर अब शारीर पे सूजन तो न दिख रही.

मैं- सूजन है.

वो- कहा है मुझे तो दिख न रही.

मैं- अब आपको कैसे दिखाऊ मैं दरअसल वो यहाँ है.

मैंने अपने पेन्ट पर बने उभार की ओर इशारा किया.

उसने अजीब सी नजरो से देखा और बोली- मसखरी करने को मैं ही मिली क्या.

मैं- इसलिए तो ना बता रहा था मैं तो परेशां हु और आप को मसखरी लग रही.

वो- एक काम कर चल दिखा तभी कुछ पता लगेगा.

मैं- पर मैं कैसे दिखा सकता .हु

वो- दिखाना तो पड़ेगा तभी तो कुछ मालूम होगा.

अब बात तो सही थी बैद्य जी की लुगाई जैसे मेरे पुरे बदन का अवलोकन कर रही थी अब मुझे तो इलाज से मतलब,मैंने अपनी पेन्ट खोली और कच्छा सरका दिया घुटनो पे,और जैसे ही उसकी नजर मेरे सूज़े हुए झूलते हुए लण्ड पर पडी उसका मुंह खुल गया.

एक पल वो जैसे स्तब्ध सी हो गयी और फिर बोली- यकीन नहीं होता, ये तो सच में ही सूज़ा हुआ है और नीला भी पड़ गया है ज़हर चढ़ गया इसके तो उसकी बात सुनकर मैं घबरा गया ज़हर चढ़ना मतलब जान का खतरा.

मैं- कही मैं मर तो न जाऊंगा.

वो- क्या पता.

बिना मेरी ओर देखे वो दरवाजे की तरफ गयी उसको अंदर से बंद किया और बोली- पेन्ट और कच्छे को उतार के कुर्सी पे बैठ जा. मैंने वैसे ही किया,वो नीचे झुकी और मेरे लण्ड को अपने हाथ में लेके दबाते हुए बोली- मोटा तो खूब है.

मैं- सूज़न से हुआ है.

वो- हां हां, वार्ना कहा इतनी मोटाई मिलती है देखने को.

वो कभी धीरे से दबाती तो कभी सख्त और पूछती- दर्द होता है.

मैं- ऐसे नहीं होता.

वो- तो कब होता है .

अब उसको मैं क्या बताता उत्तेजना की बात.

वो- बता न कब होता है दर्द, अब न बतायेगा तो सूज़न कैसे जायेगी.

मैं- जब उत्तेजना आती है.

वो- उत्तेजना शाबाश लड़के शाबाश.

मैंने नजर नीचे कर ली. वो धीरे धीरे मेरे लण्ड को सहलाने लगी उसकी उंगलियो की गर्मी से मेरा लण्ड खड़ा होने लगा और कुछ ही पल में एक दम छत की तरफ खड़ा होकर तन गया.

वो- हथियार तो चोखा है.

मैं- क्या.

वो- कुछ नहीं.

उसने दोनों हाथों से मेरे लण्ड को पकड़ लिया और ऐसे करने लगीं जैसे मुठिया रही हो.

मैं- ऐसा मत करो.

वो- देखना तो पड़ेगा न.

मैं- आपके स्पर्श से गुदगुदी होती है और जब ये तनता है तो फिर दर्द होता है.

वो- तुझे अच्छा लगा मेरा स्पर्श.

मैं- हां, पर दर्द.

वो- नीला हुआ पड़ा है तो साफ़ है कोई डंक रह गया होगा मैं गर्म पानी लाती हु इसको साफ़ करुँगी फिर डंक देखूंगी.

कुछ ही देर में वो एक कपडा और पानी ले आयी वो उस कपडे से लण्ड को भिगो के रगड़ने लगी मुझे दर्द के साथ उस गर्माहट मे मजा भी आने लगा मेरा लण्ड झटके खाने लगा. वो बार बार कपडे को पानी में भिगोती और मेरे लण्ड पर रगड़ती कुछ देर बाद उसने पाया की तीन डंक थे उसने निकाले और बोली- मधुमक्खियों को भी ये पसंद आ गया क्या जो इस पर टूट ही पड़ी.

मैं चुप रहा.

वो- एक आयुर्वेदिक तेल दूंगी सुबह शाम इस पर मलना और ऐसे ही गर्म पानी और कपडे से सेक करना कुछ दिन, आज तो मैं तेल लगा देती हूं तुम देखना और फिर करना.

वो घुटनो के बल मेरे सामने बैठ गयी और अपने हाथों से मेरे लण्ड पर तेल मलने लगी तो मुझे मजा आने लगा बदन में कम्पन होने लगा,साथ ही ब्लाउज़ से उसकी झुकी चूचिया देख कर लण्ड और तनाव में आ गया. वो भी ताड़ गयी की मैं उसकी चूचियो को घूर रहा हु तो बोली- अछि लगी.

मैं- क्या?

वो- जो तू देख रहा है.

मैं कुछ न बोला.

वो- बताना अब मुझसे क्या पर्दा.

मैं- सही है.

वो- बस सही है.

मैं- मतलब सुंदर है.

वो अब मालिश भूल के जोर जोर से मेरे लण्ड को मुठियाने लगी थी उसने अपनी छातियों को और झुका लिया ताकि गहरायी तक मैं देख सकू, वो लगभग पूरी तरह मेरे लण्ड पर झुक चुकी थी. अब लण्ड में दर्द की जगह रोमांच ने ले ली थी वो बस तेजी से उसको मुठिया रही थी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

हम दोनों की सांस भारी हो चली थी, उसका मुंह मेरे लण्ड के इतनी पास आ चुका था कि एक दो बार होंठो को स्पर्श भी कर चुका था और उसके तेजी से चलते हाथ, अब मामला कुछ और ही रंग पकड़ चूका था. मुझे लगने लगा था की बस मैं झड़ने वाला हु मैं उसे रोकना चाहता था पर अब शायद समय बीत गया था.

तभी उसने बहुत जोर से मेरे लण्ड को हिलाया और मेरे सुपाड़े से गाढ़े सफ़ेद वीर्य की धार निकल कर सीधे उसके चेहरे पर गिरने लगी, एक के बाद एक पिचकारियां उसके होंठो, गालो और माथे पर गिरने लगी उसका पूरा चेहरा गाढ़ेपन से सन गया.

पर वो बस मेरी मुट्ठी मारती गयी जबतक की वीर्य की अंतिम बूँद तक न निचोड ली उसने,फिर उसने अपनी ऊँगली से गाल पर लगे वीर्य को लिया और ऊँगली अपने मुंह में डाल ली. मैं तो हैरान रह गया उसे तो गुस्सा करना चाहिए था पर वो तो मजे से अपने चेहरे से पूरे वीर्य को साफ़ करके चाटती गयी और दूसरे हाथ से लगातार मेरे लण्ड को सहलाती रही.

वो- रस का स्वाद तो गजब है.

मैं- क्या.

वो- इतना भी भोला मत बन तू, मेरा मतलब तो समझ गया होगा ही तू.

ये कहकर उसने मेरे अंडकोषों को मुट्ठी में भर लिया कुछ पल वो ऐसे ही खेलती रही फिर उसने मेरा हाथ पकड़ के कुर्सी से उठाया और अपने साथ उसके कमरे में ले आयी.

मैं- यहाँ क्यों लायी हो.

वो- बताती हु.

वो आगे बढ़ी और उसने अपने मुंह में मेरे होंठो को भर लिया मैं तो हक्का बक्का रह गया उसकी जीभ मेरे होंठो को कुरेदने लगी और तभी मेरा मुह खुल गया, उसकी जीभ मेरी जीभ से रगड़ खाने लगी मेरे बदन में जैसे जलजला ही आ गया.

ये पहली बार था जब मैं चुम्बन का अनुभव कर रहा था जैसे जैसे उसकी त्रीवता बढ़ती जा रही थी मेरे बाहे अपने आप उसकी पीठ पर कसती जा रही थी, कुछ मिनट बाद हाँफते हुए उसने अपने होंठ अलग किये कुछ पल हमारी आँखे एक दूसरे को देखती रही फिर उसने मेरा हाथ अपनी चूची पर रख दिया.

मैं पहली बार किसी औरत के साथ इतनी करीब था उसने इशारा किया तो मैं दोनों हाथों से उसकी चूचियो को दबाने लगा “आह,सीईई” उसके मुंह से आहे निकलने लगी और मेरे जेहन में वो तस्वीरे आने लगी वो लम्हे जब मैंने नीलम और ताऊजी को देखा था.

मेरे हाथ कब उसके ब्लाउज़ को खोलने में कामयाब हो गए पता न चला मध्यम आकार के उसके काली जालीदार ब्रा में कैद वक्ष देखकर मैं जैसे अपने होश खोने को ही था. उसने अपनी ब्रा को उतार दिया और मुझे झुकाते हुए मेरे लबो पर अपने एक चूचक को लगा.

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मेरा मुह अपने आप खुल गया और जैसे स्तन पान करते है मैं उसके चूचक को चूसने लगा, मैंने उसके बदन में होते कम्पन को साफ़ साफ़ महसूस किया. बारी बारी वो अपने दोनों उभारो को चुसवा रही थी उसके चूचक किसी काले अंगूर जैसे हो गए थे उसकी साडी आधी खुलके बस अटकी हुई थी.

मैंने हलके से झटका दिया और बस एक पेटिकोट ही शेष रह गया. हमदोनो कुछ बोल नहीं रहे थे पर हो बहुत कुछ रहा था मेरा लण्ड एक बार फिर से तन चूका था, उसने खुद अपना पेटिकोट उतार दिया और जीवन के मैंने साक्षात ऐसा हाहाकारी नजारा आज इतने करीब से देखा इतना सुंदर इतना मोहक.

उसकी टांगो के बीच जो जोड़ था वो पूरी तरह से गहरे घुंघराले बालो से ढका हुआ था अपने कांपते हाथो से मैंने उस द्वार को छुआ जहा से सब जन्म लेते है आज ज़िन्दगी का एक जरुरी पाठ पढ़ने को मैं अग्रसर था मेरी उंगलिया उसकी योनि प्रदेश पर किसी सांप की भांति रेंगने लगी.

उसके पैर थरथराने लगे और जैसे ही मेरी उंगलियो ने योनि की दरार पर उन लाल लालिमा लिए फांको को छुआ, उंगलिया योनि के रस से भीगने लगी, कुछ नजाकत कुछ वक़्त का तकाजा एक बार फिर हमारे होंठ आपस में जुड़ गए. बस फर्क इतना था कि इस बार पहल मैंने की थी मेरी एक ऊँगली पूरी तरह उसकी चूत में जा चुकी थी.

शहद सा मुह में घुलने लगा था बदन की गर्मी धीरे धीरे बढ़ रही थी मैंने उसे धक्का दिया और पलँग पर गिरा दिया उसने लगभग बेशर्मी से अपनी टांगो को चौड़ा करते हुए मुझे अपना खजाना दिखाया. मैं भी पलँग पर चढ़ गया और उसे चूमने लगा वो मेरे लण्ड को अपनी चूत के छेद पर रगड़ने लगी.

उसकी सिसकिया पल पल ये एहसास करवा रही थी की अब देर करना उचित नहीं, मैं भी इस फल को अब चखना चाहता था. मैंने धीरे धीरे अपने लण्ड को चूत में घुसना किया और बस ठीक तभी, तभी मैं भी पलँग पर चढ़ गया और उसे चूमने लगा वो मेरे लण्ड को अपनी चूत के छेद पर रगड़ने लगी.

उसकी सिसकिया पल पल ये एहसास करवा रही थी की अब देर करना उचित नहीं, मैं भी इस फल को अब चखना चाहता था. मैंने धीरे धीरे अपने लण्ड को चूत में घुसना किया और बस ठीक तभी, तभी बाहर से किवाड़ पीटने की आवाजें आने लगी “शोभा, शोभा कहा मर गयी शोभा.”

और वैद्य जी की लुगाई की सारी आग एक पल में शांत पड़ गयी उसने मुझे धकेला और चिल्लाई “आयी मांजी.”

शोभा- पिछले दरवाजे से निकल जाओ मेरी सास आ गयी है, इस को भी अभी आना था.

जैसे तैसे उसने अपनी साड़ी लपेटी और मुझे पिछले दरवाजे से निकाला.

शोभा- कल दोपहर में आना.

सब कुछ एक झटके में हो गया कई देर मैं पिछली गली में खड़ा रहा पर आने वाले कल की उम्मीद में मैं घर वापिस आ गया.

ताईजी- दीपक, कहा गायब हो सुबह से.

मैं- कुछ काम से गया था.

ताईजी- तेरी नानी का फ़ोन आया था तुझे बुलाया है कुछ दिन.

मैं- क्यों.

ताई- वो लोग कही बाहर जा रहे है तो घर पे कोई नहीं रहेगा इसलिए.

मैं- हां, मैं तो हु ही चौकीदारी के लिए.

ताई- ऐसा कड़वा मत बोला कर बेटे.

मैं- और नहीं तो क्या, वैसे तो कभी दोहते की याद न आती पर जब खुद की गरज हो तो बुलाते है.

ताई- दीपक, ऐसी बात नहीं है सबकी अपने अपने फ़साने होते है रिश्तेदारी का मान तो रखना ही पड़ता है न और फिर तू अकेला नहीं रहेगा तेरी छोटी नानी पुष्पा को भी बुलाया है.

पुष्पा मेरी नानी की सबसे छोटी बहन थी, मेरी नानी 5 बहने थी जिसमे पुष्पा के प्रति नानी का विशेष स्नेह था क्योंकि उसका पति कुछ काम धाम करता नहीं था और मार पिटाई भी करता था,नानी अक्सर किसी न किसी बहाने से उसकी मदद करती रहती थी और मेरी भी अच्छी पटती थी उससे.

मैं- कब जाना है.

ताई- रात को फिर से फोन करेंगी वो तो तू बात कर लेना.

मैं- ठीक है.

मैं अपने कमरे में आ गया और बस वैद्य जी की लुगाई शोभा के बारे में सोचने लगा, अगर आज उसकी सास न आती तो उसकी चूत मार चूका होता पर तक़दीर के खेल निराले पर उसने ये भी तो कहा था कि कल दोपहर में आना, अब कल तो कल ही आये।

बार बार मेरी आँखों के सामने शोभा का गदराया शारीर ही आ रहा था, शोभा वैद्य जी की साली थी उनकी पत्नी के आकस्मिक देहांत के बाद शोभा को उनके पल्ले लगा दिया गया था. दोनों की उम्र में भी काफी अंतर था वैद्य जी जहाँ पचास पर थे शोभा तो तीस की भी न होगी,पर मुझे क्या मतलब इनसब से मुझे तो शोभा खुद आगे चल कर अपनी जवानी का मजा चखाना चाह रही थी तो मैं पीछे क्यों रहता

पर मेरी समस्या ज्यो की त्यों थी, मेरे लण्ड की सूजन, इसका ठीक होना जरुरी था पर शोभा ने कहा ही था कि ठीक हो जायेगा, दोपहर बाद मैं खेतो पर गया तरबूज़ो की बाड़ी में अब कुछ ही बचे थे इस बार हमे अच्छा मुनाफा हुआ था. बस एक खेप और बाजार में भेजने के बाद इस खेत को खाली छोड़ देना था कुछ समय के लिए तभी मिश्री आया.

मिश्री- दीपक, गाँव में बाज़ीगर आये है रात को देखने चलोगे.

मैं- चलते है किस तरफ डाला है डेरा उन्होंने.

मिश्री- सरकारी स्कूल के पास.

मैं- बढ़िया, आज मजा आएगा.

मिश्री- एक बात और, कुछ पैसे मिल जाते तो.

मैं- हां क्यों नहीं, शाम को देता हूं.

बाकि समय खेत पर ही बिताया ताऊजी भी आ गए थे मैं समझ गया कि उनका ही विचार होगा की मिश्री को रफा दफा करके नीलम को चोदने का, फिर मैं कुछ देर इधर उधर घूमता रहा चौपाल पे बैठा इधर उधर की सुनी कुछ अपनी कही जब रोटियों का समय हुआ तो मैं घर आ गया ताईजी आँगन में ही चूल्हे पर खाना पका रही थी.

वो मेरी तरफ देख के मुस्कुराई मैं पास ही बैठ गया चोरी छिपे मैं ताई को निहारने लगा चूल्हे की तपत में ताई का चेहरा सुनहरा लग रहा था, एक बार फिर ताई के लिए मेरे अरमान सुलगने लगे पर तभी फ़ोन की घंटी ने ध्यान खींचा मैंने फ़ोन उठाया नानी का ही था.

वो लोग गंगोत्री और आस पास घूमने जा रहे तो नानी ने कहा कि करीब दस बारह दिन तो लगेंगे, मैंने कहा कि मैं अगले हफ्ते आ जाऊंगा उन्होंने हां कह दी खा पीकर मैं स्कूल के पास के मैदान में पहुच गया और देर रात तक मैंने खेल तमाशा देखा पर एक बात और थी की मिश्री नहीं आया था यहाँ.

रास्त को करीब दो बजे जब तमाशा ख़त्म हुआ,घर जाने के बजाय मैंने खेतो पर जाने का सोचा पता नहीं क्यों पर मैं फिर से ताउजी और नीलम को देखना चाहता था. मैं बाहर बाहर ही चल पड़ा रस्ते में कभी कभी कोई कुत्ता देख पर भौंक देता था बाकी हर तरफ अँधेरा ही था.

हवा के जोर से आस पास के पेड़ एकदम से हिल पड़ते थे कई बार अँधेरे में कुछ भ्रम सा उत्पन्न हो जाता पर हम तो किसान थे टेम बेटेम खेतो में आना जाना लगा रहता था. मैं जेब में हाथ डाले कुछ गुनगुनाते हुए चले जा रहा था तभी मुझे ऐसे लगा की कोई मेरे आगे से गुजर गया हो यहाँ तक की मैंने पैरो की आवाज भी सुनी,पर घने अँधेरे में कुछ दिखा नहीं.

मैं- कौन है,कोई है क्या.

पर कोई जवाब नहीं आया शायद हवा का झोंका होगा मैंने ऐसा सोचा पर दिल मानने को तैयार नहीं था मैंने अपने आस पास देखा, ये एक कच्चा चौराहा था चार दिशाओ में जाते चार रस्ते और दो तरफ दो खूब विशाल पेड़ हवा चलनी अचानक से बंद हो गयी थी पर मैं यही रुक गया अपने आस पास मैंने चारो तरफ देख लिया अगर कोई होता तो ज्यादा दूर नहीं जा सकता था.

खैर मुझे जल्दी थी तो फिर मैं अपने रास्ते पर बढ़ गया इस उम्मीद में की नीलम और ताऊजी की रास लीला देखने को मिलेगी पर बस कुछ कदम ही चला था कि। हवा चलनी अचानक से बंद हो गयी थी पर मैं यही रुक गया अपने आस पास मैंने चारो तरफ देख लिया अगर कोई होता तो ज्यादा दूर नहीं जा सकता था.

खैर मुझे जल्दी थी तो फिर मैं अपने रास्ते पर बढ़ गया इस उम्मीद में की नीलम और ताऊजी की रास लीला देखने को मिलेगी. जल्दी जल्दी मैं खेतो पर पहुंचा और देखा की मिश्री के कमरे के बाहर जो खाली जगह थी वही पर पलँग बिछा हुआ था लट्टू की रौशनी में दूर से ही देखा जा सकता था.

तो मेरी उम्मीद के अनुसार उसी पलँग पर ताऊजी लेटे हुए थे और नीलम उन पर झुकी हुई थी। मैं समझा की आज भी ताऊ ने मिश्री का पत्ता काट दिया है पर शायद मेरा वहम था, हकीकत से तो अभी गुलज़ार होना बाकी था।

नीलम शायद झुक कर ताऊ का लण्ड चूस रही थी पर तभी, मिश्री नंगा अंदर से अपने हाथ में एक कटोरी लेके आया और नीलम के चूतड़ पर कटोरी से कुछ लगाने लगा शायद तेल था, मैं ये देख कर हैरान था की मिश्री भी शामिल था, साला खुद अपनी औरत चुदवा रहा था बल्कि साथ मजा कर रहा था.

मुझे बुरा लग रहा था कैसे कोई खुद अपनी औरत को किसी और के साथ साँझा कर सकता था पर धीरे धीरे नारजगी पर मजा हावी होने लगा, नीलम ताऊ की जांघो पर झुके हुए लण्ड चूस रही थी और इस बीच मिश्री में तेल से सनी ऊँगली उसकी गांड में सरका दी थी.

ऊपर से नीचे तक नीलम का पूरा बदन हिचकौले खा रहा था, मैं ऐसा नजारा देख कर मस्त हो गया और थोड़ा और आगे आके छुप गया ताकि अच्छे से ये रासलीला देख सकू. अब नीलम ताऊ की जांघो पर आ गयी और लण्ड को अपनी चूत पे टिका के उसपे बैठने लगी.

जैसे जैसे उसके चूतड़ नीचे आ रहे थे लण्ड चूत में गायब हो रहा था, और फिर मिश्री ने भी अपने लण्ड पर तेल चुपड़ा और उसे नीलम की गाँड़ पे सटा दिया और अगले पल जब मिश्री का लण्ड नीलम की गाँड़ में घुसा तो नीलम की आहे उस ख़ामोशी में गूंज उठी.

जैसे डबल रोटी के दो टुकड़ों के बीच ढेर सारा मक्खन उसी तरह वो लग रही थी दो मर्दो के बीच नीचे से ताऊ और ऊपर से मिश्री नीलम को पेल रहे थे. मैं आँखे फाड़े बस उनकी चुदाई देखता रहा मेरा भी मन करने लगा पर अपना कहा जोर था मैंने उनकी पूरी लीला देखि और फिर पंप हाउस पे आके सो गया.

सुबह नीलम को देखकर एक पल भी ऐसा नहीं लगा की दो दो लण्ड एक साथ खाएं है जिसने रात को, अपनी उसी मस्ती में वो काम कर रही थी पर मुझे जल्दी से दोपहर होने का इंतज़ार था ताकि मैं शोभा के पास जा सकू और खुद भी सम्भोग का प्रथम स्वाद चख सकू.

समय काटे नहीं कट रहा था खैर दोपहर हुई और मैं पिछली गली में पहुच गया दरवाजा खुला ही था मैं चुपके से अंदर गया और शोभा को देखने लगा,वो तभी आंगन में आयी उसने कमरे की तरफ इशारा किया तो मैं उसके कमरे में घुस गया.

कुछ देर बाद वो आयी और बोली- सास को मैंने नींद की गोली दे दी है कुछ देर में सो जायेगी फिर बस तुम और मैं.

मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और खींच लिया उसे, चूमने लगा.

शोभा- थोड़ी देर का सब्र करो फिर तुम्हे अच्छे से खुश करुँगी एक बार मेरी सास सो जाये फिर बस हम दोनों ही होंगे.

ये कहकर शोभा बाहर चली गयी मैं बैठ गया कुछ देर का इंतज़ार और फिर मजा तो था ही दस पंद्रह मिनट बाद वो आयी और कमरे की अंदर से कुण्डी लगा ली सीधा आ लिपटी मुझसे और हमारी चूमा चाटी शुरू हो गयी मैं कुछ कहना चाहता था पर उसने फुसफुसाते हुए आवाज करने से मना किया.

धीरे धीरे कपडे उतरते गए मैंने शोभा की चूचिया दबानी शुरू की ऐसा लगा की जैसे हवा भरे गुब्बारे से खेल रहा हु, एक आग सी थी शोभा के जिस्म में वो धीरे धीरे मेरे लण्ड को हिलाने लगी थी मैं बारी बारी उसकी चूचियो को पी रहा था शोभा अपनी आहो को रोकने की कोशिश में नाकामयाब पड़ने लगी तो उसने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया.

शोभा- मैं तो पागल हो गयी हु जबसे तेरा ये सूजा हुआ लण्ड देखा है कितना मजा आएगा जब ये मेरी चूत में जायेगा मैं बेकरार हु इसे अपने अंदर लेने के लिए.

शोभा ने अपनी टाँगे फैलायी और चूत पर थोड़ा सा थूक लगा लिया उसके कहे अनुसार मैंने अपने सुपाड़े को चूत के द्वार पर लगा दिया शोभा की गर्म चूत के अहसास ने मुझे पागल सा कर दिया था बेशक मेरा पहली बार था पर कुछ काम बस अपने आप हो जाते ही है मैंने शोभा की जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ाया और एक झटका मारते हुए लण्ड का कुछ हिस्सा चूत में डाल दिया, शोभा ने एक आह भरी मेरे लण्ड की मोटाई उसकी चूत को चौड़ा करने लगी.

शोभा- आह रे, फट रही है मेरी आआई.

मैं- क्या हुआ.

शोभा- कुछ नहीं, तू डाल दे रे जल्दी से डाल पूरा डाल आआई आई.

अब आधा लण्ड उसकी चूत में जा चूका था और मुझे चूत की गर्मी मिलनी शुरू हो गयी थी शोभा की चूत का छल्ला अब कसने लगा था, उसने अपने कूल्हों को ऊपर को उचकाए और बाकि का काम भी पूरा हो गया शोभा ने अपनी बाहों में कस लिया.

और कुछ देर हम बस पड़े रहे उसके बाद उसने मुझे कमर हिलाने को कहा और जल्दी ही मैं अपना काम पूरी रफ्तार से करने लगा शोभा के गालो को उसके होंठो को मैं दबा के चूस रहा था. मेरे नीचे बेशक शोभा थी पर मेरे जेहन में नीलम और थी वो हर पल जब कैसे उसे दो मर्द चोद रहे थे, मेरे हर धक्के पर शोभा हुमच हुमच कर साथ दे रही थी मेरी जीभ उसके मुह के हर कोने में रेंग रही थी उत्तेजना सर चढ़ के बोल रही थी.

की शोभा ने अपनी टांगो को मेरी कमर पर लपेट लिया और जैसे उसकी चूत में तूफ़ान आ गया हो, चिकनाई बहुत बढ़ गयी थी कुछ पल शोभा किसी जोंक की तरह मुझसे चिपक गयी और फिर ढीली पड़ गयी शोभा ने पैरो को अब x की तरह कर लिया और मेरा लण्ड इस दवाब को सह नहीं पाया मेरे बदन में जैसे अंगारे भर गए थे और एक के बाद एक मेरे वीर्य की पिचकारियां उसकी चूत में गिरने लगी मैं झड़ कर उसके ऊपर ही गिर गया.

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