गोकुलधाम में दया बाबूजी से चुद गयी

Gokuldham sex story गोकुलधाम सोसाइटी की नींव अभी कुछ ही समय पहले पड़ी थी। उस वक्त वहां गिनती की कुछ फैमिलीज़ रहती थीं – गड़ा फैमिली, सोढ़ी फैमिली, भिड़े फैमिली, हाथी फैमिली और मेहता फैमिली। हर घर में अपनी-अपनी कहानियां थीं, लेकिन गड़ा हाउस की कहानी कुछ ऐसी थी कि सुनकर किसी का भी दिल धड़क उठे। गोकुलधाम की चमक-दमक के पीछे एक ठरक भरी दुनिया थी, जहां हर कोई अपनी हवस की आग बुझाने की फिराक में था।

गड़ा फैमिली में जेठालाल, एक 38 साल का मोटा-ताजा बिजनेसमैन, जो अपनी इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान चलाता था। उसकी बीवी दया, 32 साल की, एक गुजराती हसीना, जिसकी साड़ी में लिपटी कमर और भारी-भरकम बूब्स मोहल्ले के मर्दों की नींद उड़ा देते थे। दया की हंसी और उसकी भोली-सी बातें हर किसी को लुभाती थीं, लेकिन उसकी चूत में लगी आग सिर्फ जेठालाल ही बुझा पाता था। उनके बेटे टपू, 18 साल का जवान लड़का, जो कॉलेज में पढ़ता था और अपने दोस्तों के साथ मस्ती में डूबा रहता था। और फिर थे बापूजी, 62 साल के चंपकलाल, जिनकी उम्र भले ही ढल चुकी थी, लेकिन उनकी आंखों में ठरक की चमक अभी भी बाकी थी। बापूजी की पत्नी का देहांत हो चुका था, और वो अब गड़ा हाउस में अपने बेटे-बहू के साथ रहते थे।

एक सुबह की बात है। सूरज की किरणें गोकुलधाम की बालकनियों में झांक रही थीं। जेठालाल बेड पर पड़ा खर्राटे भर रहा था। उसकी नींद ऐसी थी मानो दुनिया खत्म हो जाए तो भी न टूटे। दया, अपनी पीली साड़ी में लिपटी, किचन से चाय का कप लेकर आई और उसे उठाने की कोशिश करने लगी।

“जेठिया, उठो ना! सुबह के नौ बज गए हैं। दुकान नहीं जाना?” दया ने अपनी मधुर आवाज में कहा, लेकिन जेठालाल ने सिर्फ करवट बदली और तकिए में मुंह घुसा लिया।

दया ने एक गहरी सांस ली। उसकी साड़ी का पल्लू थोड़ा सरक गया, और उसकी गहरी नाभि चमक उठी। वो रूम के बाहर झांकी, देखा कि टपू कॉलेज जा चुका था और बापूजी मंदिर गए थे। घर में सन्नाटा था। दया की नजरें जेठालाल पर पड़ीं, और उसके होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई।

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“अच्छा, नहीं उठ रहे हो? ठीक है, मैं ही उठाती हूं!” दया ने साड़ी का पल्लू कंधे पर ठीक किया और बेड के पास आ गई। उसने धीरे से जेठालाल का पजामा नीचे खींचा। जेठालाल का लंड, जो अभी सोया हुआ था, बाहर आ गया। दया ने उसे अपने नाजुक हाथों में लिया और हल्के-हल्के मसलने लगी।

“उम्म… दया, क्या कर रही हो?” जेठालाल ने आंखें बंद किए हुए ही बुदबुदाया, लेकिन उसका लंड अब तनने लगा था। दया ने कोई जवाब नहीं दिया। वो बस लंड को सहलाती रही, और धीरे-धीरे उसे अपने मुंह के पास ले गई। उसकी गर्म सांसें जेठालाल के लंड पर पड़ रही थीं।

तभी दया ने सोचा, “क्यों न इसे और मजा दूं?” वो बेड पर चढ़ गई और अपनी साड़ी को कमर तक उठा लिया। उसका पेटीकोट उसकी मोटी जांघों को ढक रहा था, लेकिन उसकी चूत की गर्मी साफ महसूस हो रही थी। दया ने अपने ब्लाउज के ऊपर से अपने बूब्स को जेठालाल के चेहरे पर रगड़ा।

“जेठिया, अब तो उठ जाओ!” दया ने हंसते हुए कहा। जेठालाल की आंखें खुलीं, और वो दया को देखकर चौंक गया। उसने फट से दया की कमर पकड़ी और उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया।

“अरे वाह, मेरी रानी! सुबह-सुबह इतना जोश?” जेठालाल ने दया के होंठों को चूम लिया। दोनों एक-दूसरे को पागलों की तरह चूमने लगे। जेठालाल का हाथ दया की साड़ी के नीचे घुस गया, और उसने दया की चूत को पेटीकोट के ऊपर से सहलाया।

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“आह… जेठिया, धीरे… कोई आ जाएगा!” दया ने सिसकारी भरी, लेकिन उसकी आंखों में हवस की चमक थी।

तभी बाहर से दरवाजे की घंटी बजी। बापूजी मंदिर से लौट आए थे। दया और जेठालाल ने जल्दी से खुद को ठीक किया। दया ने साड़ी संभाली और बाहर चली गई। बापूजी सोफे पर बैठ गए, लेकिन उनके कानों में अभी भी दया और जेठालाल की शरारती आवाजें गूंज रही थीं। वो सोचने लगे, “ये मैं क्या सोच रहा हूं? छी, अपनी बहू के बारे में ऐसा थोड़े ना सोचते हैं!”

बापूजी ने खुद को समझाया और अखबार उठा लिया। लेकिन उनकी आंखें अखबार पर नहीं, बल्कि दया की कमर पर टिकी थीं, जो किचन में चाय बना रही थी।

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कुछ दिन बीत गए। एक दिन जेठालाल को अचानक बिजनेस के सिलसिले में शहर से बाहर जाना पड़ा। वो दया को बोला, “दया, मैं 10-12 दिन में लौटूंगा। तुम टपू और बापूजी का ख्याल रखना।”

“ठीक है, जेठिया। आप फिकर मत करो,” दया ने मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन अंदर ही अंदर उसकी चूत में आग लग रही थी। जेठालाल हर रात उसे चोदता था, और उसकी चुदाई के बिना दया का मन नहीं लगता था।

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जेठालाल के जाते ही दया की रातें सूनी हो गईं। वो रात को बिस्तर पर करवटें बदलती रहती। उसकी चूत में खुजली मच रही थी, और उंगलियां डालने से भी उसकी प्यास नहीं बुझ रही थी।

एक सुबह की बात है। बापूजी नहाने गए, लेकिन बाथरूम में पानी अचानक बंद हो गया। वो साबुन से लथपथ हालत में चिल्लाए, “दया, बहू! जरा एक बाल्टी पानी ला दो!”

दया ने जल्दी से बाल्टी में पानी भरा और बाथरूम के दरवाजे पर पहुंची। “बापूजी, दरवाजा खोलिए,” उसने कहा।

बापूजी ने, जिनके चेहरे पर साबुन लगा था, बिना सोचे-समझे पूरा दरवाजा खोल दिया। दया की नजर सीधे बापूजी के लंड पर पड़ी। वो लंड, जो उम्र के बावजूद 7 इंच का था और मोटा-ताजा दिख रहा था। दया की आंखें फटी रह गईं। वो जल्दी से बाल्टी रखकर बिना कुछ बोले अंदर चली गई।

बापूजी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि दया ने उन्हें नंगा देख लिया था। लेकिन दया का दिमाग उसी लंड के इर्द-गिर्द घूम रहा था। वो सोचने लगी, “हे भगवान! बापूजी का लंड इतना बड़ा? जब यंग होंगे तो कितना मोटा-लंबा रहा होगा!”

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उस रात दया ने बापूजी के लंड के सपने देखे। उसकी चूत गीली हो गई, और वो उंगलियां डालकर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश करती रही। लेकिन उसे कुछ और चाहिए था।

अगली सुबह दया ने एक शरारती प्लान बनाया। उसने बापूजी के बाथरूम के दरवाजे में एक छोटा-सा छेद कर दिया। छेद ऐसा था कि बाहर से देखने पर सीधे नल दिखे, और बापूजी का लंड भी उसी के पास नजर आए।

जब बापूजी नहाने गए, दया चुपके से बाथरूम के बाहर पहुंची। उसने छेद में आंख लगाई और बापूजी के लंड को देखने लगी। वो लंड पानी की बौछारों में चमक रहा था। दया की सांसें तेज हो गईं। उसने अपनी साड़ी उठाई और चूत में उंगली डाल दी।

“आह… बापूजी… कितना बड़ा है!” दया ने धीरे से बुदबुदाया। उसकी उंगलियां तेजी से चूत के अंदर-बाहर हो रही थीं। वो इतनी खो गई कि उसे समय का अंदाजा ही नहीं रहा।

तभी बापूजी नहाकर निकलने वाले थे। दया ने जल्दी से साड़ी ठीक की और वहां से भाग गई।

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अगले कुछ दिन यही सिलसिला चला। दया हर सुबह बापूजी को छेद से देखती और रात को उनकी कल्पना में उंगलियां डालती। लेकिन एक दिन उसका खेल बिगड़ गया।

उस सुबह बापूजी सिर्फ दांत साफ करके बाथरूम से बाहर निकल आए, क्योंकि वो तौलिया लेना भूल गए थे। दया, जो छेद से झांक रही थी, जल्दी से भागी, लेकिन बापूजी को शक हो गया।

अगले दिन बापूजी ने जानबूझकर जल्दी बाथरूम से निकलने का प्लान बनाया। दया फिर छेद के पास बैठी थी। जैसे ही बापूजी ने दरवाजा खोला, दया नीचे गिर पड़ी। उसके पैर में मोच आ गई, और वो “आउच!” चिल्लाई।

बापूजी ने उसे सहारा दिया और बेडरूम में लिटाया। “दया, तुम ठीक तो हो? रुको, मैं अंजली या माधवी को बुलाता हूं,” बापूजी ने कहा।

लेकिन बाहर निकलते ही बापूजी रुक गए। उनकी आंखों में एक ठरकी चमक थी। वो सोचने लगे, “क्यों न इस मौके का फायदा उठाया जाए? दया तो मेरे लंड को देख रही थी। इसका मतलब उसकी चूत में भी आग लगी है।”

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बापूजी थोड़ी देर बाद लौटे और बोले, “दया, सोसाइटी में कोई औरत नहीं है जो तुम्हारे पैर की मालिश कर सके। तुम्हारा दर्द बढ़ रहा है। मैं ही मालिश कर देता हूं। शर्माने की कोई बात नहीं।”

दया दर्द से तड़प रही थी। वो सिर्फ सिर हिलाकर हां कह पाई। बापूजी ने तेल की शीशी उठाई और दया का पेटीकोट उसकी जांघों तक उठा दिया। दया की गोरी, मोटी जांघें देखकर बापूजी का लंड तन गया।

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बापूजी ने तेल लगाकर मालिश शुरू की। उनके हाथ दया की जांघों पर फिसल रहे थे। दया को दर्द में राहत मिल रही थी, लेकिन उसकी चूत गीली हो रही थी। बापूजी का स्पर्श उसे जेठालाल की याद दिला रहा था।

धीरे-धीरे बापूजी के हाथ दया की चूत के पास पहुंच गए। उन्होंने जानबूझकर दया की चूत को हल्के से छुआ। दया ने “आह!” सिसकारी भरी और आंखें बंद कर लीं।

बापूजी ने मौके का फायदा उठाया। वो दया के कूल्हों तक पहुंच गए और तेल लगाकर उसकी गांड को मसलने लगे। दया अब आधी नींद में थी, लेकिन उसकी सिसकारियां रुक नहीं रही थीं।

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अचानक दया की आंखें खुलीं। वो बापूजी को देखकर बोली, “बापूजी, आपको कभी अकेलापन नहीं लगा? इतने सालों से आप अकेले हैं। हम तो हैं, लेकिन वो सुख… वो चुदाई का मजा… वो तो कोई और ही दे सकता है।”

बापूजी ने सीधे बात पकड़ ली। “तू सेक्स की बात कर रही है, बहू? सच कहूं, कभी-कभी बहुत मन करता है। लेकिन तेरी सास चली गई, अब क्या करूं?”

फिर बापूजी ने गूगली फेंकी, “वैसे, तू बाथरूम के पास क्या कर रही थी?”

दया को लगा कि अब सब खुल जाएगा। वो शर्म छोड़कर बोली, “बापूजी, जेठिया कई दिनों से नहीं हैं। मुझे बहुत अकेलापन लगता है। आप भी अकेले हैं, मैं भी अकेली। क्यों न हम एक-दूसरे का साथ दें?”

बापूजी की आंखें चमक उठीं। वो दया के पास आए और उसके माथे पर चूम लिया। “बेटा, मैं हमेशा तुम्हारे लिए हूं,” उन्होंने कहा और कमरे से चले गए।

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दया का दर्द अब कम हो गया था। वो किचन में खाना बनाने लगी। तभी बापूजी पीछे से आए और दया को कमर से पकड़ लिया। उनके हाथ दया के बूब्स पर चले गए।

“बापूजी, ये क्या कर रहे हैं?” दया ने शरमाते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज में हवस थी।

“बहू, अब तुझे जेठिया की कमी नहीं खलेगी। हम दोनों एक-दूसरे की प्यास बुझाएंगे,” बापूजी ने कहा और दया के बूब्स को जोर से दबाया।

दया ने सिर झुका लिया। बापूजी ने उसे किस करने की कोशिश की, लेकिन दया शरमाकर हॉल में भाग गई। बापूजी ने उसका पीछा किया और उसे दीवार से सटा लिया।

“अब कहां भागेगी, मेरी रानी?” बापूजी ने दया के होंठों को चूम लिया। दया ने भी उनका साथ दिया। दोनों एक-दूसरे को पागलों की तरह चूमने लगे। बापूजी का लंड पजामे में तन गया था।

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थोड़ी देर बाद दया ने खुद को छुड़ाया और बोली, “बापूजी, चाय पिएंगे?”

बापूजी ने हंसकर हां कहा। दया ने चाय दी और खाना बनाने लगी। लेकिन दोनों की आंखों में हवस की आग जल रही थी।

रात को टपू सो गया। बापूजी चुपके से दया के कमरे में पहुंचे। दया ने साड़ी पहनी थी, लेकिन उसकी आंखों में शरारत थी।

“बापूजी, इतनी रात को?” दया ने बनावटी हैरानी से पूछा।

“बहू, सुबह तेरी चोट मेरी वजह से लगी। और तू दिनभर काम करती है। सोचा, तेरे बदन की मालिश कर दूं,” बापूजी ने कहा।

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दया मुस्कुराई और बेड पर लेट गई। बापूजी ने दरवाजा बंद किया और बोले, “कपड़े निकाल दे, बहू। मालिश अच्छे से हो जाएगी।”

दया ने थोड़ी शरमाई, लेकिन फिर साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज उतार दिया। वो सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी। उसने तौलिया लपेटा और उल्टा लेट गई।

बापूजी ने तेल लिया और दया के पैरों से मालिश शुरू की। उनके हाथ दया की गोरी जांघों पर फिसल रहे थे। दया की सिसकारियां शुरू हो गईं।

“आह… बापूजी… कितना अच्छा लग रहा है!” दया ने सिसकारी भरी।

बापूजी के हाथ अब दया की गांड पर पहुंच गए। उन्होंने तेल डाला और दोनों कूल्हों को जोर-जोर से मसलने लगे। दया की गांड गोल-मटोल थी, और बापूजी का लंड अब पजामे में तंबू बना रहा था।

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“उफ्फ… बापूजी… धीरे!” दया ने सिसकारी भरी, लेकिन उसकी चूत गीली हो चुकी थी।

बापूजी ने दया की पैंटी को हल्का-सा नीचे खींचा और उसकी गांड के बीच तेल डाल दिया। उनके हाथ अब दया की चूत के पास पहुंच गए। दया ने “आह!” चीख मारी, लेकिन टपू के डर से अपनी आवाज दबा ली।

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बापूजी अब दया की पीठ पर तेल डालकर मालिश करने लगे। वो जानबूझकर दया के बूब्स को हल्के-हल्के छू रहे थे। दया का सब्र टूट गया। वो पलटी और बोली, “बापूजी, अब नहीं रहा जाता। कितने दिन से अकेली हूं। प्लीज, मुझे चोद दो!”

बापूजी की आंखें चमक उठीं। “बहू, यही सुनना चाहता था,” उन्होंने कहा और कमरे से बाहर गए। वो टेबल के नीचे छुपाया हुआ कंडोम का पैकेट ले आए।

बापूजी ने अपना पजामा उतारा। उनका 7 इंच का लंड तनकर खड़ा था। दया की आंखें फटी रह गईं। बापूजी बेड पर चढ़े और दया को जोर से चूमने लगे। उनके हाथ दया की ब्रा में घुस गए और बूब्स को मसलने लगे।

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“आह… बापूजी… कितने जोर से दबा रहे हैं!” दया ने सिसकारी भरी।

बापूजी ने दया की ब्रा और पैंटी फाड़ दी। दया अब पूरी नंगी थी। उसकी चूत गीली और चमक रही थी। दया ने बापूजी से कहा, “बापूजी, मेरी चूत चाट लो। बहुत मन कर रहा है।”

बापूजी ने दया के गाल पर एक तमाचा मारा। “सुन, बहू! मुझे ये चाटना-वाटना पसंद नहीं। सीधे चुदाई करेंगे। समझी?”

दया ने सिर झुका लिया। वो बापूजी के सामने अपनी चूत फैलाकर लेट गई। बापूजी ने कंडोम पहना और दया को घोड़ी बनाया।

उन्होंने अपना लंड दया की चूत पर रगड़ा। दया की सिसकारियां तेज हो गईं। “आह… बापूजी… डाल दो… प्लीज!”

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बापूजी ने एक जोरदार धक्का मारा, और उनका पूरा लंड दया की चूत में समा गया। दया ने “आआह!” चीख मारी। बापूजी का लंड जेठालाल जितना ही बड़ा था, और दया को ऐसा लग रहा था जैसे उसकी चूत फिर से जवान हो गई हो।

“उफ्फ… बापूजी… कितना बड़ा है… आह!” दया सिसकार रही थी।

बापूजी ने धक्के मारने शुरू किए। हर धक्के के साथ दया की गांड हिल रही थी। “चटाक… चटाक…” की आवाजें कमरे में गूंज रही थीं।

“ले, बहू! ले मेरा लंड! कितने दिन से प्यासा था!” बापूजी ने कहा और दया की गांड पर एक चपत मारी।

“आह… बापूजी… जोर से… और जोर से!” दया चिल्ला रही थी। उसकी चूत से रस टपक रहा था।

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बापूजी ने दया को पलटाया और उसके पैर कंधों पर रख लिए। वो फिर से लंड डालकर धक्के मारने लगे। दया के बूब्स हर धक्के के साथ उछल रहे थे।

“उफ्फ… बापूजी… आप तो जेठिया से भी अच्छा चोदते हैं… आह!” दया ने सिसकारी भरी।

“चुप, रंडी! बस ले मेरा लंड!” बापूजी ने कहा और दया के बूब्स को जोर से दबाया।

लगभग एक घंटे तक चुदाई चली। दया दो बार झड़ चुकी थी, और बापूजी का भी पानी निकलने वाला था।

“बहू, मैं झड़ने वाला हूं!” बापूजी ने कहा।

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“आह… बापूजी… मेरे अंदर ही निकाल दो!” दया ने सिसकारी भरी।

बापूजी ने कंडोम उतारा और दया की चूत में अपना माल छोड़ दिया। दोनों हांफते हुए बेड पर लेट गए।

“बापूजी, आपने मेरी प्यास बुझा दी। इतने दिन बाद ऐसा मजा मिला,” दया ने कहा।

“बेटा, अब तुझे चोद लिया तो क्या छिपाना। मैं तो गोकुलधाम की हर औरत को चोदना चाहता हूं। तू तो बस शुरुआत है,” बापूजी ने हंसते हुए कहा।

दया ने मुस्कुराकर कहा, “बापूजी, मैं हमेशा आपके लिए हूं। अब मैं जेठिया और आपकी दोनों की बीवी हूं।”

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बापूजी की लॉटरी लग गई थी। जेठालाल के लौटने तक उनके दिन रंगीन होने वाले थे।

अंजली तारक से परेशान है। उसकी चूत की आग कौन बुझाएगा? आप क्या सोचते हैं? अपनी राय जरूर बताएं।

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