खेत के मचान में चचेरे भाई ने मेरी पहली चुदाई की

हाय, मेरा नाम दीपश्री है। जब मैं जवान हुई थी, तब मेरी उम्र अठारह साल की थी। उस वक्त मेरे मन में सेक्स की आग भड़कने लगी थी। रात को सोते वक्त मेरी चूत में एक अजीब-सी गुदगुदी होती थी, और मैं अपनी उंगलियों से उसे सहलाती थी। पर गाँव में, जैसा कि आपको पता है, ज्यादा दोस्ती, गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड का चलन नहीं था। अगर चुदाई की इच्छा हो, तो अपने परिवार के किसी इंसान से ही रिश्ता बनाना पड़ता था। Gaon me Bahen ki chudai

उस जमाने में, भले ही आजकल सब कुछ बदल गया हो, लोग अपनी वासना की आग को घर के लोगों से ही बुझाया करते थे। मैंने भी अपनी चूत की गर्मी को अपने चचेरे भाई संदीप से बुझाया। हम लोग किसान परिवार से हैं, लेकिन रईस किस्म के। हमारे घर का सारा काम नौकर करते थे, और हमारा बड़ा-सा खेत था, जहाँ गन्ने, गेहूं और सरसों की फसलें लहलहाती थीं। जब खेती का मौसम आता, तो हम शौक से खेतों में चले जाते। फसल पकने पर खलिहान और मचान का माहौल मुझे हमेशा लुभाता था। मचान का वो छोटा-सा झोपड़ा, जहाँ रात को अनाज की रखवाली होती थी, मुझे किसी जादुई दुनिया जैसा लगता था। वहाँ की खामोशी और खेतों की महक मेरे जिस्म में और आग भड़का देती थी।

एक दिन की बात है, गर्मी का मौसम था, और दोपहर का समय। मैं और संदीप खलिहान गए थे। खलिहान में मचान बना था, चारों तरफ गन्ने के लंबे-लंबे पौधे और अनाज के ढेर। आसपास दूर-दूर तक कोई नहीं था। गर्मी इतनी थी कि सारे मजदूर और गाँव वाले अपने घरों में थे। मेरे मम्मी-पापा नानी के घर गए थे, और संदीप के मम्मी-पापा मार्केट। हम दोनों बिल्कुल अकेले थे। मन में कुछ शरारत थी, इसीलिए हम खलिहान घूमने चले आए।

जवान लड़का और लड़की जब अकेले मिलते हैं, तो बातें तो बढ़ती ही हैं। मैं और संदीप पहले से ही एक-दूसरे को पसंद करते थे। उसकी चौड़ी छाती, मजबूत बाजू और वो शरारती मुस्कान मुझे हमेशा बेचैन कर देती थी। लेकिन भाई-बहन का रिश्ता बीच में आड़े आता था। उस दिन मौका ऐसा था कि मन की सारी हिचक टूट गई। मैंने ही बात शुरू की। मैंने उसकी आँखों में देखकर पूछा, “संदीप, क्या तूने कभी मुझे ऐसी-वैसी नजरों से देखा है?”

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वो थोड़ा हड़बड़ा गया और बोला, “ऐसी-वैसी नजरों का मतलब?” मैंने हँसते हुए कहा, “मतलब, क्या तूने कभी मेरे बदन को, मेरी चूचियों को, मेरी गाँड को देखकर सोचा कि काश एक दिन के लिए मुझे चोदने का मौका मिल जाए?” संदीप की आँखें चमक उठीं। वो बोला, “दीपश्री, सच कहूँ तो हर रात तेरा ख्याल आता है। तेरी चूचियों का उभार, तेरी कमर की लचक, सब मेरे दिमाग में घूमता रहता है।”

मैंने शरमाते हुए कहा, “सचमुच? मुझे भी यही लगता है। मेरी चूत में हर रात आग सी लगती है। सोचती हूँ कि काश तू मुझे एक रात के लिए मिल जाए, तो मैं अपनी सारी वासना बुझा लूँ।” हम दोनों को पहले से ही लगता था कि एक ना एक दिन हम अपनी बातें खुलकर कह देंगे, और वो दिन आज आ गया था।

संदीप ने थोड़ा डरते हुए कहा, “अगर ये बात घर में किसी को पता चल गई तो?” मैंने उसका हाथ पकड़कर कहा, “अरे, कैसे पता चलेगा? इस दोपहर में देख, दूर-दूर तक कोई नहीं है। हमारे घरवाले भी कहीं गए हैं। इससे अच्छा मौका हमें फिर कभी नहीं मिलेगा। आज तू मेरी चूत की आग बुझा दे, और मैं तेरे लंड की।” मेरे इतना कहते ही उसकी आँखों में चमक आ गई।

हम दोनों मचान के झोपड़े में चले गए। गर्मी का दिन था, हवा में गन्ने की मिठास और मिट्टी की सोंधी खुशबू। हमारे जिस्म की गर्मी उससे भी ज्यादा थी। संदीप ने मुझे अपनी बाहों में खींच लिया और मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया। मैं भी पीछे नहीं रही। मैंने उसके होंठों को चूसना शुरू किया, जैसे बरसों की प्यास बुझ रही हो। उसकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मेरी जीभ उसके मुँह में। हम दोनों के जिस्म एक-दूसरे से चिपक गए।

उसने मेरी कमीज़ उतारी, और मेरी ब्रा के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने लगा। मैंने भी उसकी शर्ट के बटन खोले और उसकी चौड़ी छाती पर हाथ फेरने लगी। फिर उसने मेरी ब्रा उतार दी। मेरी बड़ी-बड़ी चूचियाँ, जिनके निप्पल कथई रंग के थे, उसके सामने आ गईं। वो पागल हो गया। उसने मेरी चूचियों को दोनों हाथों से पकड़ा, जोर-जोर से दबाया, और फिर मेरे निप्पल्स को मुँह में लेकर चूसने लगा। वो कभी चूसता, कभी हल्के से काटता। मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं, “आह… संदीप… और चूस… मेरी चूचियाँ तेरे लिए ही हैं।”

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मैंने भी उसकी पैंट खोली और उसकी जांघिया में हाथ डाला। उसका लंड पहले से ही टनटना रहा था। मैंने उसे कसकर पकड़ा और हिलाने लगी। वो सिसकारी भरने लगा, “दीपश्री, तू तो मेरे लंड को पागल कर देगी।” उसने मेरी पैंटी उतारी और मेरी चूत पर हाथ फेरा। मेरी चूत पहले से ही गीली थी। उसने अपनी छोटी उंगली मेरी चूत में डाली, और मैं सिहर उठी। थोड़ा दर्द हुआ, क्योंकि मैं पहले कभी चुदी नहीं थी, लेकिन चुदाई का नशा इतना था कि दर्द की परवाह नहीं थी।

मैंने कहा, “संदीप, अब और मत तड़पा। मुझे तेरा मोटा लंड चाहिए।” मैं मचान के फट्टे पर लेट गई और अपनी चूचियों को खुद दबाने लगी। संदीप मेरे निप्पल्स को उंगलियों से मसलने लगा, फिर मेरी चूचियों को चूसने लगा। वो हल्के से दांतों से काटता, तो मेरे जिस्म में करंट सा दौड़ जाता। मैंने उससे कहा, “संदीप, मेरी चूत चाट, प्लीज। मुझे तड़प मत।”

वो मेरे दोनों पैरों के बीच बैठ गया और मेरी चूत को चाटने लगा। उसकी जीभ मेरी चूत के दाने को छू रही थी, और मैं बार-बार गरम पानी छोड़ रही थी। वो मेरी चूत को चूस रहा था, जैसे कोई भूखा शहद चाट रहा हो। मैं चिल्ला रही थी, “आह… संदीप… और चाट… मेरी चूत को खा जा।” गर्मी के दिन में पसीने से मेरे जिस्म चमक रहे थे, और मैं और भी सेक्सी लग रही थी।

उसने अपना लंड निकाला। वो मोटा और लंबा था, जैसे मेरे सपनों में देखा था। उसने मेरी चूत पर लंड रगड़ा और बोला, “दीपश्री, अब तुझे चोदने का मजा दूंगा।” उसने लंड मेरी चूत में डालने की कोशिश की, लेकिन पहली बार होने की वजह से बहुत दर्द हुआ। मैं कराह उठी, “आह… धीरे… दर्द हो रहा है।” पर वो रुकने वाला नहीं था। उसने बोला, “बस थोड़ा सा दर्द, फिर तुझे जन्नत मिलेगी।” दो-तीन झटकों में उसने अपना लंड मेरी चूत में पूरा डाल दिया।

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पहले पांच मिनट तक तो दर्द ही होता रहा। मेरी चूत में जलन सी थी, और थोड़ा खून भी निकला। लेकिन धीरे-धीरे दर्द कम हुआ, और मजा आने लगा। मैंने अपनी गाँड को गोल-गोल घुमाना शुरू किया। संदीप मेरी चूचियों को मसल रहा था, और मेरे पैरों को अपने कंधों पर रखकर जोर-जोर से चोदने लगा। मैं चिल्ला रही थी, “आह… संदीप… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दे… आआआ… ओह्ह्ह…” दूर-दूर तक कोई नहीं था, तो मुझे डर भी नहीं था।

वो बोला, “दीपश्री, तेरी चूत इतनी टाइट है, मजा आ रहा है।” मैंने कहा, “हाँ, चोद मुझे… अपनी रंडी बना ले… आह…” वो मेरी चूचियों को दबाता, मेरे निप्पल्स को चूसता, और मेरी चूत में लंड पेलता रहा। करीब आधे घंटे तक उसने मुझे चोदा। मैं बार-बार झड़ रही थी, और आखिर में उसका लंड भी मेरी चूत में झड़ गया। हम दोनों पसीने से तर-बतर थे, लेकिन मन की आग शांत हो गई थी।

मैं लंगड़ाते हुए घर पहुंची, क्योंकि मेरी चूत में अभी भी दर्द था। मेरी पहली चुदाई इतनी यादगार थी कि मैं आज तक उसे भूल नहीं पाई। आज भी मैं संदीप से चुदवाती हूँ। हमारा रिश्ता वैसा ही चालू है। जब मेरे पति से मन भर जाता है, मैं संदीप को फोन कर लेती हूँ। मेरी ससुराल और मायका ज्यादा दूर नहीं हैं, तो जब पति काम पर जाता है, मैं संदीप को चोदने के लिए बुला लेती हूँ। या फिर मायके जाने पर आराम से उससे चुदवाती हूँ।

ये गाँव चुदाई की कहानी आपको कैसी लगी? अपने विचार कमेंट में जरूर बताएं।

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