Army wale ki behen ke sath chudai sex story: मैं अपने बारे में शुरू से बताती हूँ। मेरा नाम गुड़िया है, उम्र 20 साल, और मैं बनारस यूनिवर्सिटी में पढ़ती हूँ। मैं हॉस्टल में रहती हूँ, और मेरा घर बनारस से थोड़ा दूर एक कस्बे में है, जहाँ मेरे मम्मी-पापा और छोटा भाई रहते हैं। हमारे घर में हम तीन भाई-बहन हैं। सबसे बड़े भैया, विक्रम, 28 साल के हैं और आर्मी में हैं। उनकी शादी अभी नहीं हुई, और उनकी मस्कुलर बॉडी और आर्मी की वर्दी में वो इतने हैंडसम लगते हैं कि कोई भी देखता रह जाए। मुझसे छोटा भाई, राहुल, 18 साल का है और स्कूल में पढ़ता है। मेरा फिगर 34-28-36 है, गोरी-चिट्टी हूँ, और कॉलेज में मेरी स्माइल की वजह से कई लड़के मेरी तरफ खींचे चले आते हैं। लेकिन मैंने आज तक किसी को भाव नहीं दिया।
एक दिन भैया अचानक हॉस्टल मुझसे मिलने आए। वो सीधे ड्यूटी से लौट रहे थे, आर्मी की वर्दी में, और उनकी आँखों में थकान के साथ-साथ एक अजीब सी चमक थी। मैं उन्हें देखकर इतनी खुश हुई कि तुरंत गले लग गई। उनकी वर्दी की खुरदरी महक और उनकी मज़बूत बाँहों ने मुझे अजीब सा सुकून दिया। भैया ने बताया कि वो अब घर जा रहे हैं, और मैंने फटाक से फैसला किया कि मैं भी उनके साथ चलूँगी। मैंने कॉलेज से 8 दिन की छुट्टी ली, और हम दोनों ट्रेन से घर के लिए निकल पड़े।
ट्रेन में सिर्फ भैया का ही रिजर्वेशन था, मेरा नहीं। इस वजह से हमें एक ही बर्थ शेयर करनी थी। ट्रेन में बहुत भीड़ थी। बर्थ के आसपास कुछ बूढ़ी दादी-नानी टाइप सवारियाँ थीं, जो खर्राटे मारकर सो रही थीं। कुछ स्कूल के बच्चे भी थे, शायद 15-16 साल के, जो अपनी सीटों पर सोए हुए थे, कुछ के फोन उनके हाथों में लटक रहे थे। रात के 11 बज रहे थे, और सर्दियों की ठंड हल्की-हल्की बढ़ रही थी। ट्रेन अपनी रफ्तार से चल रही थी, और उसकी लयबद्ध आवाज़ मुझे नींद की ओर ले जा रही थी।
हम दोनों उस तंग सी बर्थ पर किसी तरह बैठे थे। भैया ने अपने बैग से एक मोटा सा कम्बल निकाला, आधा मुझे ओढ़ाया और आधा खुद ओढ़ लिया। मैं उनकी तरफ थोड़ा सटकर बैठ गई, उनकी गर्माहट मेरे बदन को छू रही थी। “गुड़िया, तुझे ठंड तो नहीं लग रही?” भैया ने धीरे से पूछा, उनकी आवाज़ में प्यार और फिक्र थी। “नहीं, भैया, आप हैं ना,” मैंने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा और उनके और करीब सरक गई।
ट्रेन में सन्नाटा था, बस दादी-नानी टाइप सवारियों के खर्राटे और बच्चों की नींद में बुदबुदाहट सुनाई दे रही थी। भैया ने कहा, “तू मेरी गोद में सिर रखकर सो जा, जगह तो है ही नहीं।” मैंने उनकी बात मान ली और उनकी गोद में सिर टिकाकर लेट गई। मेरे पैर बर्थ पर फैले थे, और भैया ने कम्बल को अच्छे से लपेट लिया ताकि हम पूरी तरह ढक जाएँ। उनकी मोटी, मस्कुलर जाँघों पर मेरा गाल टिका था, और उनकी ताकत का अहसास मेरे बदन में गुदगुदी सी पैदा कर रहा था। मैंने अपने हाथ उनकी जाँघों पर रख दिए, जैसे कोई तकिया थाम रही हो।
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कम्बल की गर्माहट और भैया की गोद में मैं सुकून महसूस कर रही थी, लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ कि मेरी नींद उड़ गई। मेरे गाल के नीचे, उनकी जाँघों के बीच, कुछ सख्त होने लगा। पहले तो मैं समझ नहीं पाई, लेकिन जब वो और उभरने लगा, तो मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। मैं समझ गई कि ये भैया का लंड था, जो मेरे गाल के स्पर्श से तन रहा था। मेरी साँसें भारी हो गईं, और मेरी चूत में एक हल्की सी गीलापन की लहर दौड़ गई। मैंने हल्के से अपना गाल और दबाया, और वो उभार और सख्त हो गया। भैया की साँसें भी तेज़ हो रही थीं, और वो बार-बार अपनी जाँघों को समेट रहे थे, जैसे मुझे और करीब लाना चाहते हों।
मैंने धीरे से करवट बदली, अब मेरा मुँह उनके पेट की तरफ था। इस बहाने मैंने अपना एक हाथ उनकी गोद में रख दिया और धीरे-धीरे उसे उनकी पैंट के उभरे हुए हिस्से तक ले गई। मेरी उंगलियाँ उनके लंड के ऊपर रुकीं, और मैंने हल्का सा दबाव डाला। वो इतना सख्त था कि मेरे बदन में करेंट सा दौड़ गया। भैया ने मेरी कमर पर हाथ रखा और मुझे अपनी तरफ और खींच लिया। उनकी उंगलियाँ मेरी पीठ पर हल्के-हल्के फिरने लगीं, और मैं समझ गई कि वो भी अब गर्म हो रहे हैं।
“गुड़िया, ये क्या कर रही है?” भैया ने फुसफुसाकर पूछा, लेकिन उनकी आवाज़ में कोई रोक-टोक नहीं थी। “बस, भैया… थोड़ा मज़ा ले रही हूँ,” मैंने शरमाते हुए कहा और उनकी ज़िप को धीरे-धीरे खोल दिया। भैया ने कुछ नहीं कहा, बस मेरी कमर को और कसकर पकड़ लिया। मैंने सारी शरम छोड़ दी और उनकी पैंट के अंदर हाथ डाला। उनके अंडरवियर के ऊपर से उनके लंड को टटोला, फिर बिना रुके अंडरवियर के अंदर हाथ डालकर उनके भारी, गर्म लंड को बाहर निकाल लिया।
अंधेरे में मैं उसे देख तो नहीं पाई, लेकिन मेरी उंगलियों ने उसकी लंबाई और मोटाई को अच्छे से नाप लिया। करीब 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा, वो लंड मेरे हाथ में किसी लोहे की रॉड की तरह लग रहा था। मेरी चूत में गीलापन बढ़ने लगा, और मैंने बिना सोचे उनके लंड को हल्के-हल्के सहलाना शुरू कर दिया। “आह्ह… गुड़िया, तू तो कमाल है,” भैया की सिसकी निकली, और उनकी आवाज़ ने मेरे बदन में और आग लगा दी।
भैया ने अब मेरी टी-शर्ट को जींस से बाहर निकाला और मेरी नंगी कमर पर हाथ फेरना शुरू किया। उनकी उंगलियाँ मेरी त्वचा पर इस तरह चल रही थीं जैसे कोई आग बिछा रहा हो। मैंने उनके लंड को और ज़ोर से पकड़ा और उसे ऊपर-नीचे करने लगी। भैया ने मेरी चूचियों की तरफ हाथ बढ़ाया और मेरी टी-शर्ट को ऊपर सरकाकर मेरी ब्रा के ऊपर से उन्हें सहलाने लगे। “उफ्फ… भैया, ये क्या कर रहे हो?” मैंने सिसकते हुए पूछा, लेकिन मेरे लहजे में शिकायत कम, मज़ा ज़्यादा था।
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“जो तू कर रही है, वही,” भैया ने शरारत से कहा और मेरी ब्रा को ऊपर खींचकर मेरी चूचियों को आज़ाद कर दिया। उनकी हथेलियाँ मेरी नरम, गोल चूचियों पर रगड़ने लगीं, और मेरे निप्पल सख्त हो गए। मैंने उनके लंड को गाल से सटाया और जीभ निकालकर उसे चाटने लगी। उसका नमकीन स्वाद मेरे मुँह में घुल गया, और मैंने उनके सुपाड़े को हल्के से चूमा। “आह्ह… गुड़िया, तू तो पागल कर देगी,” भैया ने सिसकते हुए कहा।
उनके इस तरह सिसकने से मेरी चूत पूरी तरह गीली हो गई थी। भैया ने अब मेरी जींस की ज़िप खोली और अपना हाथ मेरी पैंटी के अंदर डाल दिया। उनकी उंगलियाँ मेरी चूत के होंठों पर फिसलने लगीं, और मैं बेकाबू हो गई। “उह्ह… भैया, धीरे…” मैंने सिसकी भरी, लेकिन वो मेरी चूत को और ज़ोर से टटोलने लगे। उनकी एक उंगली मेरी चूत के अंदर चली गई, और मैं सिहर उठी। “कितनी टाइट है तेरी चूत, गुड़िया,” भैया ने फुसफुसाते हुए कहा, और उनकी आवाज़ में एक अजीब सा जोश था।
मैंने उनके लंड को और ज़ोर से चाटना शुरू किया, मेरी जीभ उनके सुपाड़े से लेकर नीचे तक फिसल रही थी। भैया ने मेरी चूत में अब दो उंगलियाँ डाल दीं और उन्हें अंदर-बाहर करने लगे। “आह्ह… भैया, उफ्फ…” मेरी सिसकियाँ तेज़ हो गईं, लेकिन मैंने खुद को संभाला ताकि दादी-नानी और बच्चे न जाग जाएँ। कम्बल की आड़ और ट्रेन की आवाज़ ने हमें थोड़ा बिंदास कर दिया था, लेकिन हम दोनों बहुत सावधानी बरत रहे थे।
“गुड़िया, तुझे चाहिए?” भैया ने धीरे से पूछा, और मैं समझ गई कि वो क्या कह रहे हैं। “हाँ, भैया… दे दो,” मैंने शर्माते हुए कहा, और मेरी आवाज़ में चाहत साफ झलक रही थी। भैया ने मुझे अपनी गोद से उठाया और कम्बल के अंदर ही मेरी जींस और पैंटी को खींचकर नीचे कर दिया। मैं अब नीचे से पूरी नंगी थी। मैंने भी उनकी पैंट और अंडरवियर को नीचे सरका दिया। अब हम दोनों कम्बल की आड़ में नीचे से नंगे थे, और हमारी साँसें एक-दूसरे से टकरा रही थीं।
भैया ने मेरी टाँगों को अपनी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया और मुझे अपनी गोद में बिठा लिया। उनका लंड मेरी चूत के पास रगड़ रहा था, और उसकी गर्माहट मेरे बदन में आग लगा रही थी। “भैया, धीरे से… कोई जाग न जाए,” मैंने फुसफुसाया, लेकिन मेरे दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी। भैया ने अपने लंड को मेरी चूत के मुँह पर टिकाया और हल्का सा धक्का दिया। लेकिन उनका लंड अंदर नहीं गया, बल्कि ऊपर की ओर फिसल गया।
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“अरे, ये तो फिसल रहा है,” भैया ने हँसते हुए कहा, और उनकी आवाज़ में हल्की सी खीज थी। “कोशिश करो ना, भैया,” मैंने शरारत से कहा और अपनी चूत को उनके लंड पर रगड़ने लगी। भैया ने फिर से कोशिश की, लेकिन हर बार उनका लंड फिसल रहा था। आसपास की सवारियों की वजह से वो ज़्यादा ज़ोर नहीं लगा पा रहे थे।
“गुड़िया, थोड़ा ज़ोर लगाना पड़ेगा,” भैया ने फुसफुसाते हुए कहा। “तो लगाओ ना, भैया… मैं संभाल लूँगी,” मैंने हिम्मत जुटाकर कहा। “पक्का? दर्द होगा,” भैया ने चेतावनी दी। “हाँ, भैया… तुम बस डाल दो,” मैंने बेकरारी से कहा।
भैया ने इस बार मुझे अपनी गोद में अच्छे से बिठाया, मेरी टाँगों को अपनी कमर पर लपेटा, और अपने लंड को मेरी चूत के मुँह पर सही से टिकाया। “तैयार है?” उन्होंने पूछा। “हाँ,” मैंने सिर हिलाया। भैया ने मेरे कूल्हों को कसकर पकड़ा और एक ज़ोरदार धक्का मारा। मैंने भी अपने बदन को नीचे की ओर दबाया। अचानक उनके लंड ने मेरी चूत के दरवाज़े को तोड़ दिया और अंदर समा गया। “आह्ह्ह… उफ्फ…” मैं दर्द से सिसक उठी, मेरी आँखों में आँसू आ गए। उनका लंड इतना मोटा और लंबा था कि मुझे लगा जैसे मेरी चूत फट जाएगी।
“गुड़िया, ठीक है?” भैया ने चिंता से पूछा, लेकिन उनकी पकड़ ढीली नहीं हुई। “हाँ… बस… धीरे,” मैंने टूटी-फूटी आवाज़ में कहा। भैया ने मुझे अपनी बाँहों में कस लिया और मेरी चूचियों को सहलाने लगे ताकि मेरा ध्यान दर्द से हटे। करीब 10 मिनट तक मैं दर्द से तड़पती रही, लेकिन धीरे-धीरे वो दर्द कम होने लगा। भैया ने हल्के-हल्के धक्के शुरू किए, और अब दर्द की जगह एक अजीब सा सुख मेरे बदन में फैलने लगा।
“आह्ह… भैया, अब अच्छा लग रहा है,” मैंने सिसकते हुए कहा। “हाँ, मेरी गुड़िया… अब मज़ा आएगा,” भैया ने कहा और अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी। उनकी हर धक्के के साथ मेरी चूत से “चपक-चपक” की आवाज़ें आने लगीं। मैंने अपनी कोहनियों को बर्थ पर टेक लिया और अपने कूल्हों को उनके लंड पर ढकेलना शुरू कर दिया। “उह्ह… भैया, और ज़ोर से…” मैं बेकाबू होकर बोल पड़ी।
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भैया ने मेरी बात मान ली और अपने धक्कों में और ताकत डाल दी। उनका लंड मेरी चूत की गहराइयों तक जा रहा था, और हर धक्के के साथ मेरी सिसकियाँ तेज़ हो रही थीं। “आह्ह… भैया, कितना मोटा है तुम्हारा…” मैंने सिसकते हुए कहा। “तुझे पसंद है ना, गुड़िया?” भैया ने शरारत से पूछा और मेरी चूचियों को ज़ोर से दबा दिया।
हमने अब पोजीशन बदली। भैया ने मुझे तंग बर्थ पर लिटाया और मेरी टाँगों को अपने कंधों पर रख लिया। इस बार उनका लंड और गहराई तक गया, और मैं सुख से पागल होने लगी। “आह्ह… भैया, ऐसे ही… हाँ…” मैं सिसक रही थी। भैया ने मेरी चूत को चोदते हुए मेरी चूचियों को चूसना शुरू कर दिया। उनकी जीभ मेरे निप्पलों पर घूम रही थी, और मैं अपने होंठ काट रही थी ताकि चीख न निकल जाए।
“गुड़िया, तेरी चूत कितनी रसीली है,” भैया ने फुसफुसाते हुए कहा और अपने धक्कों को और तेज़ कर दिया। मेरी चूत से रस बह रहा था, और हर धक्के के साथ “फच-फच” की आवाज़ें ट्रेन की आवाज़ में दब रही थीं। मैंने अपने कूल्हों को और ऊपर उठाया ताकि उनका लंड मेरी चूत की आखिरी गहराई तक जाए।
हम दोनों बहुत सावधानी बरत रहे थे। कम्बल ने हमें पूरी तरह ढक रखा था, और आसपास की सवारियाँ गहरी नींद में थीं। फिर भी, मैं बार-बार कम्बल के किनारे से झाँक लेती थी कि कहीं कोई जाग तो नहीं गया। लेकिन दादी-नानी और बच्चे अपनी दुनिया में खोए हुए थे। भैया ने अब मुझे फिर से अपनी गोद में बिठाया और मेरी चूत को अपने लंड पर रगड़ने लगे। “उफ्फ… भैया, ये तो बहुत मज़ा दे रहा है,” मैंने सिसकते हुए कहा।
“रुक, और मज़ा आएगा,” भैया ने कहा और मुझे थोड़ा ऊपर उठाकर अपने लंड को मेरी चूत में फिर से डाल दिया। इस बार वो धीरे-धीरे अंदर-बाहर करने लगे, और मैं उनके कंधों पर हाथ रखकर उनकी रफ्तार के साथ ताल मिलाने लगी। “आह्ह… भैया, और गहरा…” मैं बेकरारी में बोल पड़ी।
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करीब 45 मिनट तक ये चुदाई का खेल चलता रहा। भैया ने मुझे अलग-अलग तरीके से चोदा—कभी गोद में बिठाकर, कभी लिटाकर, और कभी मेरी टाँगों को हवा में उठाकर। हर बार वो मेरी चूत को नए तरीके से रगड़ते, और मैं सुख के समंदर में डूबती चली गई। आखिर में भैया ने एक ज़ोरदार धक्का मारा, और मैंने महसूस किया कि उनका गर्म रस मेरी चूत में भर गया। “आह्ह… भैया…” मैं सिसकते हुए उनके गले लग गई।
चुदाई के बाद हम दोनों हाँफ रहे थे। भैया ने अपने बैग से एक तौलिया निकाला और पहले मेरी चूत को साफ किया, जो खून और हमारे रस से सनी थी। फिर मैंने उनके लंड को प्यार से पोंछा। हम दोनों बारी-बारी से बाथरूम गए, फ्रेश हुए, और कपड़े पहन लिए। मेरे पूरे बदन में मीठा-मीठा दर्द था, लेकिन मन में एक अजीब सा सुकून भी था।
उस रात के बाद हम भाई-बहन कम, प्रेमी-प्रेमिका ज़्यादा बन गए। अब जब भी भैया घर आते हैं, मुझे बिना चोदे नहीं रहते। मैं भी उनके आने का इंतज़ार करती हूँ। लेकिन मैंने आज तक किसी और को अपना बदन नहीं सौंपा, और ना ही ऐसा कोई इरादा है।
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भाई बहन का प्यार बहुत अनोखा होता है
मजा आ गया,
Love to love Hi hota hai sister brother me bhi ho sakta hai
kisi ke sath ho sakta hai kisi bhi sambandh me
Ji aapka asli naam ?
Mujhe
Mujhe bhi aapki Leni h