मैं आरोही, आजमगढ़ की रहने वाली, आज तुम्हें अपनी जिंदगी की एक सच्ची कहानी सुनाने जा रही हूँ। ये बात तब की है जब मैंने बी.एस.सी. (मैथ्स) में गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज में एडमिशन लिया था। हमारे आजमगढ़ में ये इकलौता डिग्री कॉलेज था, तो मेरे पास कोई और चॉइस ही नहीं थी। रोज मैं कॉलेज पढ़ने जाती थी। शुरू-शुरू में सब कुछ नॉर्मल लगता था, पर धीरे-धीरे मुझे इस कॉलेज के काले राज खुलने लगे। यहाँ के प्रोफेसर लड़कियों को छेड़ते थे, उन्हें नंबर बढ़ाने के बहाने अपने घर या ऑफिस बुलाते थे, और फिर उनकी चुदाई कर लेते थे। बदले में वो लड़कियों की पूरी अटेंडेंस लगा देते थे और एग्जाम में अच्छे मार्क्स दे देते थे। ये सब सुनकर मैं डर गई थी। मेरे घर की हालत ऐसी थी कि पढ़ाई मेरे लिए सब कुछ थी। मैं किसी भी कीमत पर अपनी बी.एस.सी. पूरी करना चाहती थी।
जब मैंने फर्स्ट ईयर शुरू किया, तब मेरी मुलाकात अनिरुद्ध सर से हुई। वो हमारे क्लास टीचर थे और मैथ्स डिपार्टमेंट के HOD भी। इटावा के रहने वाले, 6 फुट लंबे, चौड़े कंधों वाले, गबरू जवान। उनकी आँखों के नीचे काले-काले गड्ढे थे, जो उनकी रातों की ठरक और प्यास बयां करते थे। वो अलजेब्रा और ट्रिगनोमेट्री पढ़ाते थे, और सचमुच इतना अच्छा पढ़ाते थे कि क्लास में सबका ध्यान उनकी बातों पर रहता था। लेकिन जल्दी ही मैंने नोटिस किया कि अनिरुद्ध सर का ध्यान मेरे 38 इंच के बड़े-बड़े मम्मों पर ज्यादा रहता था। मैं कॉलेज की ड्रेस—स्लेटी कुर्ती, सफेद सलवार, और दुपट्टा—पहनकर जाती थी। मेरे मम्मे इतने बड़े थे कि चाहकर भी मैं उन्हें छुपा नहीं पाती थी। ऊपर से कॉलेज का रूल था कि लड़कियों को सामने की बेंच पर बैठना है। मेरी गहरे गले की कुर्ती से मेरे मम्मों का क्लीवेज साफ दिखता था, और अनिरुद्ध सर की नजरें बस वहीं टिकी रहती थीं।
कई बार मैंने देखा कि क्लास में ही उनका लंड मेरे मम्मों को ताड़ते हुए खड़ा हो जाता था। उनकी आँखों में ठरक साफ झलकती थी, जैसे वो मुझे अभी के अभी चोद लेना चाहते हों। कॉलेज में 75% अटेंडेंस जरूरी थी, नहीं तो 200 रुपये रोज का फाइन लगता था। इसीलिए मैं रोज कॉलेज आती थी, ताकि मेरी अटेंडेंस पूरी रहे। लेकिन तभी मेरी जिंदगी में एक बड़ा तूफान आया। मेरे पापा को हार्ट अटैक हो गया। हमें उन्हें लेकर लखनऊ जाना पड़ा। उनकी बायपास सर्जरी हुई, और घर का सारा पैसा इलाज में खर्च हो गया। इस चक्कर में मैं पूरे दो महीने कॉलेज नहीं जा पाई। जब वापस आई, तो पता चला कि मेरा नाम कॉलेज से काट दिया गया है। अनिरुद्ध सर HOD थे, तो मुझे उनसे ही बात करनी थी।
मैं डरते-डरते उनके केबिन में गई। वहाँ वो अपनी मेज पर बैठे कुछ पेपर चेक कर रहे थे। मैंने अपनी सारी मजबूरी बताई—पापा की बीमारी, लखनऊ जाना, और हमारी पैसे की तंगी। “सर, प्लीज… मेरा नाम मत काटिए। मैं बहुत गरीब घर से हूँ। अगर कॉलेज से निकल गई, तो दोबारा बी.एस.सी. में एडमिशन नहीं कर पाऊँगी। मेरे लिए पढ़ाई सब कुछ है,” मैंने रोते हुए कहा।
अनिरुद्ध सर ने मुझे ऊपर से नीचे तक घूरा। उनकी आँखों में वही ठरकी चमक थी। “ठीक है, आरोही। तुम दो महीने गायब रही, यानी 60 दिन। 200 रुपये रोज के हिसाब से 12,000 रुपये दो, तो तुम्हारा नाम फिर से जुड़ जाएगा।”
“सर, मेरे पास इतने पैसे कहाँ से आएँगे? पापा की सर्जरी में सब कुछ खत्म हो गया। मैं 12,000 रुपये कहाँ से लाऊँगी?” मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
वो मुस्कुराए, और उनकी मुस्कान में छुपी ठरक साफ दिख रही थी। “आरोही, अगर पैसे नहीं हैं, तो और भी बहुत कुछ है तुम्हारे पास। तुम जवान हो, सेक्सी हो, हसीन हो। बस एक रात मेरे साथ… मेरे साथ चुदवा लो। मैं तुम्हारी पूरी अटेंडेंस लगा दूँगा, फाइन माफ कर दूँगा, और एग्जाम में अच्छे नंबर भी दूँगा।”
उनकी बात सुनकर मेरे शरीर में सिहरन दौड़ गई। मैं डर गई थी। “सोच लो, आरोही। आराम से सोच लो। जब मन करे, मेरे पास आ जाना,” उन्होंने कहा और मुझे जाने दिया।
मैं घर चली आई। कई रातें मैं सो नहीं पाई। मेरे दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी—अगर मैंने उनकी बात नहीं मानी, तो मेरी पढ़ाई खत्म। मेरे परिवार की हालत ऐसी थी कि मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था। आखिरकार, मैंने फैसला किया कि अपनी पढ़ाई बचाने के लिए मुझे अनिरुद्ध सर से चुदवाना होगा। अगले दिन मैं कॉलेज गई और सीधे उनके केबिन में पहुँची। वो अपनी मेज पर बैठे कुछ काम कर रहे थे। मुझे देखते ही उनकी आँखें चमक उठीं। वो समझ गए कि मैं उनकी बात मानने आई हूँ।
“नमस्ते सर। मैं… मैं चुदवाने को तैयार हूँ। बस आप मेरी अटेंडेंस पूरी कर दें और एग्जाम में अच्छे नंबर दे दें,” मैंने हिम्मत जुटाकर कहा।
“आओ, आरोही। पास आकर बैठो,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
मैं उनके पास वाली कुर्सी पर बैठ गई। मुझे ये सब अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन मेरी मजबूरी थी। अनिरुद्ध सर 6 फुट के लंबे-चौड़े मर्द थे, और मैं 5 फुट की छोटी-सी लड़की। उस दिन कॉलेज में भीड़ कम थी। सुबह के 11 बजे थे, और सर के केबिन का बड़ा-सा दरवाजा खुला था। कोई भी अंदर आ सकता था, लेकिन अनिरुद्ध सर को कोई फर्क नहीं पड़ता था। वो तो बस मेरी चूत और मम्मों के पीछे पागल थे।
अचानक, उन्होंने अपना बायाँ हाथ मेरी सलवार के ऊपर मेरी चूत पर रख दिया और सहलाने लगे। “अह्ह्ह… सर… ये क्या… दरवाजा खुला है,” मैंने डरते हुए कहा। लेकिन वो कहाँ मानने वाले थे। उनका बायाँ हाथ मेरी चूत को सलवार के ऊपर से रगड़ रहा था, और दायाँ हाथ पेपर चेक कर रहा था। वो एक ठरकी मास्टर थे, जो कॉलेज के केबिन में ही मेरी चूत सहलाने की हिम्मत रखते थे। “उह्ह्ह… सर… प्लीज…” मैं सिसक रही थी। मेरी चूत गीली होने लगी थी, और मेरे मम्मे टाइट हो रहे थे। आधे घंटे तक वो मेरी चूत को सलवार के ऊपर से रगड़ते रहे। मेरी साँसें तेज हो रही थीं, और मैं गर्म हो चुकी थी। तभी कुछ स्टूडेंट्स केबिन में आए, और सर ने झट से अपना हाथ हटा लिया।
जब स्टूडेंट्स चले गए, तो अनिरुद्ध सर ने फिर से मेरे दुपट्टे के अंदर हाथ डाला और मेरी कुर्ती के ऊपर से मेरे मम्मे दबाने लगे। “अह्ह्ह… उह्ह्ह… सर…” मैं सिसकने लगी। मेरी चूत अब पूरी तरह गीली थी, और मेरा मन भी चुदवाने को तैयार हो रहा था। वो मेरे मम्मों को मसलते रहे, और मैं बस सिसकियाँ लेती रही। “ओह्ह… सर… धीरे…” मैंने कहा, लेकिन मेरी आवाज में अब ठरक साफ सुनाई दे रही थी। चार बजे कॉलेज बंद हो गया। सारे स्टूडेंट्स और स्टाफ चले गए। अनिरुद्ध सर ने चपरासी को बोल दिया कि कोई उनके केबिन में न आए, क्योंकि वो “जरूरी काम” कर रहे हैं। फिर उन्होंने केबिन का दरवाजा बंद कर लिया और मुझसे चिपक गए।
“आरोही, मेरी जान। तुम जैसी हसीना मैंने आज तक नहीं देखी। तुम्हारी चुदाई में तो जन्नत का मजा आएगा,” उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा। उनकी गर्म साँसें मेरे गले पर पड़ रही थीं, और मैं भी अब पूरी तरह चुदास में थी। “अह्ह्ह… सर… प्लीज…” मैं सिसक रही थी।
उन्होंने मुझे कुर्सी से उठाया और अपनी बाहों में भर लिया। मैंने भी उनकी कमर को पकड़ लिया। वो मुझसे एक फुट लंबे थे, मेरे मम्मे उनकी छाती से दब रहे थे। वो मेरे गले को सूँघने लगे, मेरे बालों को सहलाने लगे। फिर उनका हाथ मेरे मम्मों पर चला गया। वो खड़े-खड़े मेरे 38 इंच के मम्मे दबाने लगे। “उह्ह… ऊँ… ऊँ… सर… और…” मैं सिसकियाँ लेने लगी। मुझे अब मजा आने लगा था। उनकी ठरक और मेरी मजबूरी ने मुझे पूरी तरह चुदास में डाल दिया था।
“आरोही, जल्दी से नंगी हो जा,” उन्होंने कहा।
मैंने धीरे-धीरे अपनी कुर्ती उतारी, फिर सलवार। ब्रा और पैंटी भी निकाल दी, क्योंकि मुझे पता था कि अब चुदाई तो होनी ही थी। अनिरुद्ध सर ने भी अपने कपड़े उतार दिए। उनका 8 इंच का मोटा लंड देखकर मेरी आँखें फटी रह गईं। वो लंड नहीं, कोई हथियार था—मोटा, लंबा, और नसों से भरा हुआ। उनके केबिन में बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ थीं, लेकिन दरवाजा बंद होने की वजह से बाहर से कोई नहीं देख सकता था। पंखे की ठंडी हवा मेरे नंगे बदन को और गर्म कर रही थी।
मैं उनकी लंबी मेज पर लेट गई। अनिरुद्ध सर मेरे ऊपर झुक गए और मेरे मम्मों को मुँह में ले लिया। मेरी 38 इंच की चिकनी, गोरी छातियों को वो भूखे शेर की तरह चूसने लगे। “अह्ह्ह… सर… ओह्ह… मम्मी…” मैं सिसक रही थी। उनकी जीभ मेरी काली निप्पल्स पर घूम रही थी, और वो दाँतों से उन्हें हल्के-हल्के काट रहे थे। उनकी 40 साल की उम्र और बिना शादी का तजुर्बा साफ बता रहा था कि वो कितने प्यासे थे। वो मेरे मम्मों को ऐसे चूस रहे थे जैसे मैं उनकी बीवी हूँ। “उह्ह्ह… सर… और चूसिए…” मैं सिसकियाँ ले रही थी।
उनका एक हाथ मेरे बाएँ मम्मे को दबा रहा था, और दूसरा मम्मा वो मुँह में लेकर चूस रहे थे। मेरी चूत अब पिघलने लगी थी। मेरा गीला माल चूत से बहने लगा, और उसकी खुशबू अनिरुद्ध सर तक पहुँच गई। वो मेरे मम्मों को छोड़कर मेरी चूत पर आ गए। उनकी जीभ मेरी चूत की फांकों को चाटने लगी। “ओह्ह… मम्मी… अई… अई… सी सी…” मैं चिल्ला रही थी। उनकी लंबी जीभ मेरी चूत के अंदर तक जा रही थी, और वो मेरे माल को प्यासे कुत्ते की तरह पी रहे थे।
फिर उन्होंने अपनी मोटी उंगली मेरी चूत में डाल दी। उनकी 6 इंच लंबी उंगली मेरी चूत को चोदने लगी। “उह्ह… सर… और… और… अह्ह्ह…” मैं तड़प रही थी। उनकी उंगली मेरी चूत में धकाधक अंदर-बाहर हो रही थी, और उनकी जीभ मेरे चूत के दाने को रगड़ रही थी। मैं अपनी गांड बार-बार उठा रही थी, मेरी चूत में आग लग चुकी थी। “चोदिए सर… मेरी चूत को और चोदिए… अपनी मोटी उंगली से रगड़िए! अह्ह्ह… ओह्ह…” मैंने चिल्लाकर कहा।
वो और जोश में आ गए। उन्होंने मेरी चूत की हल्की-हल्की झांटों को सहलाया और बार-बार अपनी उंगली अंदर-बाहर की। मेरी चूत का माल उनकी उंगली पर चिपक रहा था। फिर उन्होंने उंगली निकाली और उसे मुँह में डालकर मेरा माल चाट लिया। “आरोही, तुम्हारी चूत का स्वाद तो जन्नत है,” उन्होंने कहा।
फिर उन्होंने मुझे मेज पर सीधा लिटाया और अपना 8 इंच का मोटा लंड मेरी चूत के मुँह पर रख दिया। धीरे से लंड को मेरी चूत में डाला और एडजस्ट किया। “अह्ह्ह… सर… धीरे… उह्ह्ह…” मैं सिसक रही थी। उनका लंड इतना मोटा था कि मेरी चूत की दीवारें खिंच रही थीं। फिर शुरू हुई असली चुदाई। वो मेरी कमर पकड़कर खड़े-खड़े मेरी चूत में लंड पेलने लगे। “उह्ह… ओह्ह… सर… और… अह्ह्ह…” मैं सिसकियाँ ले रही थी। उनकी रफ्तार बढ़ती गई। मेरे मम्मे जोर-जोर से हिल रहे थे, जैसे कोई तूफान आ गया हो।
उन्होंने मेरी चूत के दाने को रगड़ना शुरू किया। “आआआ… ईई… और तेज, सर… चोदिए… मेरी चूत फाड़ दीजिए! अह्ह्ह… मम्मी…” मैं चिल्ला रही थी। अनिरुद्ध सर अब पूरी तरह ठरकी हो चुके थे। वो मुझे पटक-पटक कर चोद रहे थे। मैं बार-बार अपनी गांड उठा रही थी, लेकिन वो मेरी कमर पकड़कर मुझे फिर से मेज पर पटक देते थे। उनका लंड मेरी चूत से एक सेकंड के लिए भी बाहर नहीं निकला। “उह्ह… सर… और जोर से… अह्ह्ह… चोदिए… मेरी बुर फाड़ दीजिए…” मैं सिसक रही थी।
लगभग एक घंटे की नॉन-स्टॉप ठुकाई के बाद उन्होंने अपना गर्म माल मेरी चूत में छोड़ दिया। “आआआ… अह्ह्ह… ओह्ह…” मैंने एक लंबी साँस ली। मेरी चूत में उनका माल गर्म लावे की तरह महसूस हो रहा था। “सर, आप तो कमाल की चुदाई करते हैं!” मैंने हाँफते हुए कहा।
वो हँसे और बोले, “हाँ, आरोही। लेकिन नौकरी की वजह से मेरी शादी नहीं हुई। इस कॉलेज में मुझे बस 7 हजार रुपये मिलते हैं। न बीवी मिली, न उसकी चूत। इसलिए मैं लड़कियों को ब्लैकमेल करके अपनी प्यास बुझाता हूँ।”
“कोई बात नहीं, सर। जब तक आपकी शादी नहीं होती, आप मुझे चोद लिया करिए। मुझे भी आपसे चुदवाने में बहुत मजा आया,” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
ये सुनकर वो और खुश हो गए। उन्होंने मुझे फिर से अपनी बाहों में भर लिया और मेरे होंठ चूसने लगे। उनकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मैं भी उनके होंठों को चूस रही थी। “उह्ह… सर… और…” मैं सिसक रही थी। फिर उन्होंने मुझे मेज पर घोड़ी बनाया। मेरे बड़े-बड़े चिकने चूतड़ देखकर वो पागल हो गए। वो मेरे चूतड़ों को सहलाने लगे, चूमने लगे। “अह्ह्ह… सर… ओह्ह…” मैं सिसकियाँ ले रही थी। मैंने कोई विरोध नहीं किया। मुझे भी अब मजा आने लगा था।
उन्होंने मेरी चूत की गीली घाटी ढूंढी और अपनी जीभ से चाटने लगे। मेरी चिकनी जांघें बंद होने से मेरी चूत पीछे की तरफ उभर आई थी, जो उन्हें और सेक्सी लग रही थी। “ओह्ह… मम्मी… सर… और चाटिए… अह्ह्ह…” मैं चिल्ला रही थी। वो मेरी चूत को चाटते रहे, मेरे माल को पीते रहे। फिर उन्होंने अपना 8 इंच का लंड मेरी चूत में पीछे से डाला और डॉगी स्टाइल में चोदने लगे। “उह्ह… सर… और जोर से… अह्ह्ह… मेरी चूत फाड़ दीजिए!” मैं चिल्ला रही थी।
वो मेरी कमर पकड़कर जोर-जोर से धक्के मार रहे थे। मेरे चूतड़ उनके धक्कों से थप-थप की आवाज कर रहे थे। “आआआ… ईई… सर… और… अह्ह्ह…” मैं सिसक रही थी। 40 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद उन्होंने मेरे चिकने चूतड़ों पर अपना माल निकाल दिया। उनका गर्म माल मेरे चूतड़ों पर बह रहा था। “उह्ह… सर… क्या चुदाई करते हैं आप!” मैंने हाँफते हुए कहा।
“आरोही, तुम्हारी चूत और चूतड़ तो जन्नत हैं। मैं तुम्हें बार-बार चोदना चाहता हूँ,” अनिरुद्ध सर ने कहा।
“सर, जब तक मैं कॉलेज में हूँ, आपकी प्यास मैं बुझा दूँगी,” मैंने हँसते हुए कहा।
उसके बाद अनिरुद्ध सर ने मेरी अटेंडेंस पूरी कर दी और एग्जाम में मुझे अच्छे नंबर दिए। लेकिन ये सिर्फ शुरुआत थी। अनिरुद्ध सर और मेरे बीच ये सिलसिला चलता रहा। हर बार वो मुझे नए-नए तरीके से चोदते—कभी उनके केबिन में, कभी उनके घर पर। एक बार तो उन्होंने मुझे कॉलेज की लाइब्रेरी में चोदा, जहाँ किताबों की अलमारियों के बीच मेरी चूत को उनके मोटे लंड ने रगड़ा। “अह्ह्ह… सर… लाइब्रेरी में… कोई देख लेगा… उह्ह्ह…” मैं सिसक रही थी, लेकिन वो नहीं रुके। उनकी ठरक और मेरी चुदास का ये खेल मेरे कॉलेज के तीन साल तक चला। मैंने बी.एस.सी. पास कर लिया, लेकिन अनिरुद्ध सर की वो मोटी उंगली और 8 इंच का लंड मेरी चूत को हमेशा याद रहा। उनकी चुदाई ने मेरे शरीर को जन्नत का मजा दिया, और मैं भी उनकी प्यास का हिस्सा बन गई।