ज़िंदगी कभी एक सी नहीं रहती। कभी हंसी-खुशी, कभी ग़म, और कभी ऐसा मोड़ आता है जो दिल में आग सी लगा देता है। मेरी उमर अब 46 के करीब है, और मैं अपना एक छोटा सा बिज़नेस चलाता हूँ। मेरी ज़िंदगी का हर रंग देखा है, पर जो रंग अब देखने को मिला, वो कुछ ऐसा था कि मन में हलचल मच गई।
20 साल की उमर में मेरी शादी हुई थी पल्लवी से। वो थी एकदम मस्त माल, गोरी, भरे हुए चूचे, और गाण्ड ऐसी कि देखते ही लण्ड खड़ा हो जाए। शुरुआती दिन तो जैसे स्वर्ग थे। दिन-रात बस चुदाई का खेल चलता था। पल्लवी की चूत इतनी रसीली थी कि हर बार उसमें लण्ड डालने का मज़ा ही अलग था। उसकी सिसकारियाँ, वो “हाय… और ज़ोर से…” की पुकार, सब कुछ जैसे सपना था। फिर हमारा बेटा आलोक पैदा हुआ, और ज़िंदगी में थोड़ा बदलाव आया।
आलोक के जन्म के एक साल बाद पल्लवी ने कॉलेज जॉइन करने का फैसला किया। वो ग्रेजुएट होना चाहती थी। जुलाई से उसने नया सेशन शुरू किया, और बस, यहीं से हमारी ज़िंदगी में खालीपन आ गया। वो दिनभर कॉलेज, फिर बच्चे में खोई रहती। मेरी चुदाई की भूख को वो टालने लगी। कभी थकान का बहाना, कभी बच्चे की बात। एक बार तो मैंने वासना में आकर उसे बाहों में खींच लिया, पर नतीजा? गालियाँ और चिड़चिड़ापन। “छूना भी मत!” उसका ये तेवर मुझे समझ नहीं आया। क्या हो गया था हमें? वो प्यार, वो चुदाई का जोश, सब जैसे गायब हो गया।
साल बीतते गए। आलोक 21 का हो गया। उसने रिया नाम की एक लड़की से शादी कर ली। रिया थी एकदम पटाखा। भरे हुए चूचे, पतली कमर, और गाण्ड ऐसी कि देखकर लण्ड कुलांचे मारने लगे। पर मेरी ज़िंदगी में अब भी वही खालीपन था। पल्लवी और मैं अब अलग-अलग कमरों में सोते थे। वो एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी करने लगी थी। उसकी अपनी दुनिया थी, नई सहेलियाँ, नए दोस्त। फिर अफवाहें उड़ने लगीं कि उसका एक स्कूल टीचर, महेंद्र, के साथ चक्कर चल रहा है। मैंने उन्हें कई बार होटल, सिनेमा, गार्डन में साथ देखा। पर क्या करता? मजबूर था। कुछ कह नहीं सकता था।
इस बीच रिया मेरे लिए एकमात्र औरत थी जो घर में थी। वो अक्सर मुझसे बात करने आती। उसकी बातें, उसकी हंसी, और वो टाइट कपड़ों में उभरती हुई चूचियाँ और गाण्ड मेरे मन को भटकाने लगी। मैं दिनभर या तो सेक्सी कहानियाँ पढ़ता, या पोर्न वीडियो देखकर मुठ मारता। पर रिया को देखकर मन में आग सी लगती थी। काश, मैं उसे चोद पाता। पर फिर सोचता, ये पाप है। वो मेरी बहू है। लेकिन मर्द का मन कहाँ मानता है?
एक दिन रिया ने मुझे कुछ ऐसा बताया कि मेरे होश उड़ गए। उसने कहा, “पापा, मम्मी का महेंद्र के साथ चक्कर है। रात को वो अक्सर घर आता है।” मैंने उसकी बात पर यकीन नहीं किया, पर उसने मुझे रात एक बजे पल्लवी के कमरे की खिड़की से झाँकने को कहा। मैंने वैसा ही किया। और जो देखा, वो मेरे लिए झटका था। पल्लवी नंगी होकर घोड़ी बनी थी, और महेंद्र उसकी चूत में अपना लण्ड पेल रहा था। पल्लवी की सिसकारियाँ, उसकी गाण्ड का हिलना, और वो “हाय… चोदो… और ज़ोर से…” की आवाज़ें। सब साफ था। महेंद्र उसका कॉलेज का दोस्त था, और अब उसी स्कूल में टीचर।
मैंने ये बात रिया को बताई। उसने कहा, “मैंने कहा था ना, पापा। मम्मी की चुदाई रात को होती है।” मैंने उसे रात को घर पर रुकने को कहा। “हाँ, रिया, आज रात तू यहीं रह, और देख, तेरी सासू माँ क्या करती है।”
शाम को रिया घर आ गई। उसका नाइट सूट देखकर तो मेरा लण्ड तन गया। टाइट टॉप में उसके चूचे आधे बाहर झाँक रहे थे, और पजामा इतना नीचे था कि उसकी गाण्ड की दरार साफ दिख रही थी। उसे देखकर मेरा लण्ड कुलांचे मारने लगा। मैं उसे छुपाने की कोशिश करता, पर रिया की नज़रें मेरे लण्ड पर टिक गईं। वो मुस्कुराई और बोली, “पापा, मम्मी से दूर रहते हुए कितना टाइम हो गया?”
“बेटी, यही कोई 16-17 साल,” मैंने उदास होकर कहा।
“क्या? इतना टाइम? साथ भी नहीं सोए?” वो हैरान थी।
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“साथ सोना तो दूर, हाथ भी नहीं लगाया। पल्लवी को छूने पर गालियाँ देती है।”
“तभी…” रिया ने कुछ सोचते हुए कहा।
“तभी क्या?” मैंने पूछा।
“पापा, कभी इच्छा नहीं होती?” उसकी आँखों में चमक थी।
“होती तो है, पर क्या करूँ? पल्लवी तो गुस्सा हो जाती है।”
“पापा, प्यार की भूखी औरतें तो बहुत हैं…” रिया ने मेरी तरफ देखकर कहा।
“छोड़, अब आराम कर ले। अभी पल्लवी को आने में टाइम है,” मैंने बात टाल दी।
तभी रिया ने उदास होकर कहा, “पापा, आपका बेटा भी मुझे घास नहीं डालता। वो भी मेरे साथ वैसा ही करता है।”
“क्या? तू भी…?” मैं हैरान था।
“हाँ, पापा। मेरे मन में भी तो आग है। चुदाई की भूख मुझे भी सताती है।”
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मैं समझ गया। रिया भी चुदाई के लिए तड़प रही थी। पर किससे चुदवाती? बदनामी का डर था। मन में एक ख्याल आया, कहीं वो मुझसे…? नहीं, ये गलत है। वो मेरी बहू है। पर मन का एक कोना चीख रहा था कि उसे चुदना है, और मैं ही वो मर्द हूँ जो उसकी आग बुझा सकता है।
रिया ने लाइट बंद कर दी। अंधेरे में मैंने उसकी तरफ देखा। उसकी प्यासी आँखें मुझे घूर रही थीं। मैंने भी उसकी आँखों में आँखें डालीं। वो मुझे प्यार से देख रही थी, और हर बार आह भरती। मेरे मुँह से भी सिसकारी निकल गई। हमारी आँखें जैसे एक-दूसरे को चोद रही थीं। पर जरूरत तो लण्ड और चूत की थी।
आधे घंटे बाद पल्लवी के कमरे में रोशनी हुई। रिया उठी और बोली, “पापा, वो लाइट देखो। चलो, देखते हैं।”
हम दोनों खिड़की के पास गए। खिड़की का पर्दा थोड़ा खुला था। अंदर का नज़ारा देखकर मेरा लण्ड और तन गया। महेंद्र नंगा था, और पल्लवी के कपड़े उतार रहा था। दोनों एक-दूसरे के अंगों को सहला रहे थे। पल्लवी ने महेंद्र का लण्ड पकड़ लिया और उसे अपनी चूत में घुसाने की कोशिश करने लगी।
तभी रिया ने अपनी गाण्ड हिलाकर मेरे से चिपक लिया। उसकी गाण्ड की दरार में मेरा लण्ड रगड़ने लगा। मैंने अनायास ही उसके चूचों को पकड़ लिया और ज़ोर से दबा दिया। रिया के मुँह से “आह…” निकल गई। मैं समझ गया, उसकी चूत भी गीली हो रही थी। मैंने अपना लण्ड और ज़ोर से उसकी गाण्ड की दरार में घिसा। उसने अपनी टाँगें और खोल दीं, ताकि लण्ड अच्छे से फिट हो जाए।
रिया ने फुसफुसाते हुए कहा, “पापा… प्लीज़… अपने कमरे में चलो।”
मैं पीछे हटा। उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने कमरे में ले गई।
“पापा, अब शर्म छोड़ दो। अपनी प्यास बुझा लो, और मेरी चूत की खुजली भी मिटा दो,” उसकी आवाज़ में वासना थी।
“पर तू मेरी बहू है… बेटी समान…” मैंने धर्म की बात की, पर मेरा लण्ड तो बेकाबू हो चुका था।
“नहीं, पापा। मैं अब एक औरत हूँ, और आप एक मर्द। जो मर्द और औरत के बीच होता है, वही करेंगे।”
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रिया ने मेरा लण्ड पकड़ लिया और मसलने लगी। मेरे मुँह से सिसकारी निकल गई। “देखा, पापा, आपका लण्ड कैसे तन्ना रहा है।”
“हाँ, रिया… बहू घुस गई गाण्ड में। अब रसीली चूत का मज़ा ले ले,” मैं भी वासना में डूब चुका था।
रिया ने मेरा पजामा खींचकर उतार दिया। मेरा लण्ड फुफकारता हुआ बाहर आया। “सच, रिया… आजा, जी भर के चुदाई कर ले। ऐसा मौका फिर मिले ना मिले।”
“पापा, मेरा पजामा उतार दो। ये टॉप भी खींच दो। मुझे नंगी करके चोद दो,” रिया की आँखों में आग थी।
मैंने उसका टॉप उतारा। उसके चूचे बाहर उछल पड़े। गोल, भरे हुए, और निप्पल ऐसे कि मुँह में लेने को मन करे। मैंने उसका पजामा नीचे खींचा। उसकी चूत साफ थी, और गीली चमक रही थी। मैंने उसे बिस्तर पर लिटाया और उसकी गाण्ड पर एक चपत लगाई।
“हाय, पापा… गाण्ड मार दो। ज़ोर से मारो। मेरी गाण्ड भी प्यासी है,” रिया सिसकारी।
मैंने अपना लण्ड उसकी गाण्ड के छेद पर रखा। थोड़ा थूक लगाया और धीरे से अंदर घुसाया। रिया की चीख निकल गई, “हाय राम… मर गई… धीरे, पापा!”
“अब ये जोश में है, रिया। इसे मत रोको। गाण्ड मरवा ले,” मैंने कहा और एक ज़ोर का धक्का मारा। मेरा लण्ड उसकी गाण्ड की दीवारों से रगड़ खाने लगा। रिया की सिसकारियाँ दर्द और मज़े का मिश्रण थीं। मैंने कुछ देर गाण्ड चोदी, पर फिर उसकी चूत की तरफ ध्यान गया।
“रिया, टाँगें खोल। अब चूत का मज़ा लें,” मैंने कहा।
रिया ने आँसुओं भरी आँखों से मुझे देखा और हँस पड़ी। “पापा, बहुत रुलाया। अब चूत में मस्ती दे दो।”
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मैंने उसकी चूत के होंठ खोले। गुलाबी चूत रस से तर थी। मैंने लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत के दाने पर रगड़ा। रिया किलकारियाँ मारने लगी। “हाय, पापा… ये क्या… हाय…” वो हँस रही थी, सिसकार रही थी। मैंने लण्ड को धीरे-धीरे उसकी चूत में घुसाया। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि लण्ड को जन्नत का मज़ा मिल रहा था।
मैंने धक्के मारने शुरू किए। कभी धीरे, कभी ज़ोर से। रिया की चूत से पानी टपक रहा था। उसने मेरा लण्ड पकड़ा और अपने दाने पर रगड़ा। “पापा, और ज़ोर से… चोद दो… मेरी चूत फाड़ दो…” वो चिल्ला रही थी।
मैंने उसके चूचों को मसला। उसके निप्पल कड़े हो चुके थे। मैंने उन्हें चूसा, काटा, और रिया की सिसकारियाँ और तेज़ हो गईं। “हाय, पापा… चोदो… मेरी चूत को भोसड़ा बना दो…”
चुदाई का खेल जोरों पर था। रिया घोड़ी की तरह हिनहिना रही थी। मेरी सिसकारियाँ भी कम नहीं थीं। “रिया, तेरी चूत है या भोसड़ी… साली, क्या मज़ा दे रही है…”
“पापा, ज़ोर से… लण्ड दे दो… फाड़ दो मेरी चूत को…” रिया तड़प रही थी।
मैंने उसके चूचों को और ज़ोर से मसला। वो दाँत भींचकर कमर हिला रही थी। तभी उसने चीख मारी, “पापा… मैं गई… हाय… चुद गई…” उसकी चूत ने रस छोड़ दिया। वो झड़ रही थी। मैंने लण्ड को और ज़ोर से घुसाया।
“रिया, मेरा भी निकलने वाला है…” मैंने कहा।
“पापा, बस… मेरी चूत फट जाएगी…”
“चुप, रे… ले मेरा रस…” मैंने लण्ड बाहर निकाला और रिया के मुँह की तरफ किया। उसने फट से मेरा लण्ड मुँह में ले लिया। मेरा रस पिचकारी की तरह निकला, और रिया उसे गटागट पी गई। आखिर में उसने लण्ड को दुहकर बाकी का रस भी चाट लिया।
“पापा, आपके रस से तो पेट भर गया,” उसने हँसकर कहा।
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मैंने उसे नंगी ही बाहों में भर लिया। “रिया, तूने मेरी आग बुझा दी। शुक्रिया।”
“पापा, मैं तो कब से आपकी इच्छा जानती थी। आपके पीसी में नंगी तस्वीरें, सेक्सी कहानियाँ… सब देखा है,” उसने शरारत से कहा।
“सच? तो पहले क्यों नहीं बताया?”
“शर्म और धरम के मारे, पापा। पर आज सब कुछ अपने आप हो गया।”
हम दोनों के होंठ मिल गए। उमर का तकाज़ा था। थकान चढ़ी, और मैं सो गया। सुबह रिया ने चाय बनाई। मैंने उसे समझाया, “रिया, ये चोदा-चोदी घर की बात है। किसी से ज़िक्र मत करना। ऐसे रिश्ते गुप्त ही मस्त होते हैं।”
“पापा, मेरी एक आंटी को चोदोगे? बेचारी का मर्द कब का शांत हो गया,” रिया ने मज़ाक में कहा।
“ठीक है, तू माल ला, मैं मस्त कर दूँगा,” मैंने हँसकर जवाब दिया।
अब हम दोनों एक-दूसरे का राज़ लिए मुस्कुराते हैं। मैं उसे अपने दोस्तों से चुदवाता हूँ, और वो मेरे लिए नई-नई औरतें लाती है। दुखिया की गति दुखिया ही जानता है।
Har aurat chahti hai ki uski chut ik anubhavi mard chodey kyonki ik asli mard hi jaanta hai kab tez chodna hai kab dheerey kab chuchi masalni hai kab chut ka daana aur kab kaan ki nechey waley hissey ko chusna hai aur kab galey main daanton se kaatna hai … chuchi ke nipple ko chusne se lekar nabhi ko jeebh ki noke se kuredne tak ka safar lund ki thokar ke sath chut se fuhara marwane ki kala ik anubhavi mard hi ik pyasi aurat ko de sakta hai …
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