मेरा नाम राहुल है और मैं कटनी का रहने वाला हूँ। आज मैं तुम्हें अपनी माँ की चुदाई की वो कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जिसने मेरी रातों की नींद उड़ा दी और मेरे लण्ड को जगा दिया। ये बात तब की है जब मैं भोपाल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गया था। मेरे घर में बस मैं, मेरी माँ और पापा रहते हैं। पापा सरकारी अध्यापक हैं और गाँव में रहते हैं, जहाँ उनका स्कूल है। वो महीने में दो-तीन बार ही कटनी आते हैं, वो भी जल्दी-जल्दी। इस वजह से मेरी माँ की चूत हमेशा प्यासी रहती थी, जैसे कोई सूखा कुआँ जो बारिश का इंतज़ार करता हो। मेरी माँ की उम्र उस वक्त 37 साल थी, लेकिन उनका जिस्म किसी 28 साल की जवान लड़की से कम नहीं था। उनके बड़े-बड़े दूध, भारी गाण्ड, पतली कमर और गोरा रंग ऐसा था कि मोहल्ले के मर्द उनकी एक झलक के लिए तरसते थे। उनकी आँखों में एक चमक थी, जो मर्दों के दिल में आग लगा देती थी। मैं बचपन से देखता आया था कि मोहल्ले के कई मर्द मेरी माँ को चोदने के सपने देखते थे। कुछ तो उनके पीछे कुत्तों की तरह भटकते थे, और मुझे ये बात हमेशा से पता थी।
एक बार की बात है, मैं कॉलेज की छुट्टियों में घर आया था। गर्मियों की रात थी, और हवा में एक अजीब सी गर्मी थी, जैसे कुछ होने वाला हो। हमने खाना खाया और अपने-अपने कमरों में सोने चले गए। मेरा कमरा माँ के कमरे से सटा हुआ था, सिर्फ़ एक पतली दीवार के बीच। रात का करीब एक बजा होगा, मैं बिस्तर पर लेटा था, लेकिन नींद नहीं आ रही थी। मेरी आँखें खुली थीं, और मैं बस छत को घूर रहा था। तभी मुझे दरवाजे पर हल्की सी दस्तक सुनाई दी। मैंने कान लगाए, क्योंकि रात के इस वक्त कोई आता नहीं था। मेरे कमरे की खिड़की से हल्की सी रौशनी आ रही थी, और मैंने देखा कि माँ अपने बिस्तर से चुपके से उठीं। उनकी मैक्सी रात के सन्नाटे में चमक रही थी, और वो धीरे-धीरे दरवाजे की तरफ बढ़ीं। मैं चुपचाप देखता रहा, मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई।
माँ ने दरवाजा खोला, और बाहर से मोहल्ले का एक लड़का, महेश, अंदर घुस आया। महेश की उम्र कोई 32 साल होगी, लंबा-चौड़ा, मज़बूत जिस्म वाला, और उसकी आँखों में हमेशा एक भूख रहती थी। मैं उसे जानता था, वो मोहल्ले का वो शख्स था जो औरतों के पीछे लार टपकाता फिरता था। माँ ने जल्दी से दरवाजा बंद किया, जैसे कोई चोरी कर रही हो। दरवाजा बंद होते ही महेश ने माँ के बड़े-बड़े दूधों को अपनी हथेलियों में भर लिया और ज़ोर से दबाने लगा। माँ की साँसें तेज़ हो गईं, और वो हल्के से सिसकारी। लग रहा था कि दोनों पहले से एक-दूसरे को जानते थे, जैसे ये उनकी कोई पुरानी आदत हो। माँ ने महेश को जल्दी से अपने कमरे में खींच लिया। नाइट लैंप की मद्धम रौशनी में माँ की मैक्सी उनकी गोरी त्वचा पर चमक रही थी, और महेश, जो थोड़ा नशे में लग रहा था, अपनी उंगलियाँ माँ की गाण्ड पर फेरने लगा। माँ भी पीछे नहीं थी, उसने अपना हाथ महेश के पैंट के ऊपर रखा और उसके लण्ड को सहलाने लगी।
अचानक माँ मेरे कमरे की तरफ बढ़ी। शायद वो चेक करना चाहती थी कि मैं सो रहा हूँ या नहीं। मैं झट से बिस्तर पर लेट गया और आँखें बंद कर लीं। माँ ने मेरे कमरे में झाँका, मेरी साँसें थम सी गई थीं। वो कुछ सेकंड रुकी, फिर चुपके से वापस चली गई। मैंने राहत की साँस ली और फिर से उनकी तरफ देखने लगा। अब जो मैंने देखा, उसने मेरे जिस्म में आग लगा दी।
महेश ने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपना लण्ड बाहर निकाला। वो कोई 8 इंच का मोटा, काला लौड़ा था, जो पूरी तरह तना हुआ था। माँ ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गई और उस लण्ड को अपने मुँह में ले लिया। वो इसे लॉलीपॉप की तरह चूस रही थी, जैसे कोई भूखी शेरनी अपने शिकार पर टूट पड़ी हो। महेश माँ के दूधों को ज़ोर-ज़ोर से दबा रहा था, और माँ की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। माँ का एक हाथ अपनी चूत पर था, वो अपनी उंगलियों से उसे सहला रही थी, और उसकी गोरी गाण्ड हवा में हिल रही थी। मैं ये सब देखकर पागल हो रहा था। मेरा लण्ड मेरे पजामे में तन गया था, और मेरे दिमाग में बस एक ही ख्याल था—माँ को चोदना।
महेश ने माँ की मैक्सी उतार दी। अब माँ सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में थी। उसकी गोरी चूत पर हल्के-हल्के बाल थे, जो नाइट लैंप की रौशनी में चमक रहे थे। महेश ने माँ को बिस्तर पर लिटाया और उसकी ब्रा को फाड़कर अलग कर दिया। माँ के बड़े-बड़े दूध आज़ाद हो गए, और महेश उन पर टूट पड़ा। वो एक दूध को मुँह में लेकर चूस रहा था, और दूसरे को अपनी हथेली से मसल रहा था। माँ की सिसकारियाँ और तेज़ हो गईं—आह्ह… महेश… और ज़ोर से… चूस ले इन्हें! महेश ने माँ की पैंटी भी उतार फेंकी और उसकी चूत पर अपनी जीभ रख दी। वो माँ की चूत को चाटने लगा, जैसे कोई भूखा कुत्ता हड्डी चाटता है। माँ की टाँगें हवा में थीं, और वो अपनी गाण्ड उछाल-उछाल कर महेश का मुँह अपनी चूत में दबा रही थी। माँ की चूत से पानी रिस रहा था, और महेश उसे चाट-चाटकर साफ कर रहा था।
अब महेश खड़ा हुआ और उसने माँ को बिस्तर पर घोड़ी बना दिया। माँ की गाण्ड हवा में थी, और उसकी चूत पूरी तरह खुली हुई थी। महेश ने अपना लण्ड माँ की चूत पर रगड़ा, और फिर एक ज़ोरदार धक्के के साथ पूरा लौड़ा अंदर पेल दिया। माँ की चीख निकल गई—आह्ह… मर गई… धीरे कर ना, हरामी! लेकिन महेश रुका नहीं। वो ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगा, और माँ की गाण्ड हर धक्के के साथ हिल रही थी। माँ ने अपनी कमर को महेश की कमर से जकड़ लिया, और दोनों एक रिदम में चुदाई करने लगे। कमरे में सिर्फ़ थप-थप की आवाज़ और माँ की सिसकारियाँ गूँज रही थीं—आह्ह… महेश… फाड़ दे मेरी चूत… और ज़ोर से… चोद मुझे! कुछ देर बाद माँ का शरीर अकड़ गया, और उसकी चूत से पानी की धार निकल पड़ी। लेकिन महेश अब भी रुका नहीं। वो माँ को और तेज़ी से चोद रहा था, जैसे कोई मशीन।
कुछ मिनट बाद महेश ने अपना लण्ड बाहर निकाला। वो झड़ने वाला था। उसने माँ का मुँह खोला और अपना लण्ड उसमें डाल दिया। माँ ने उसके लण्ड का सारा पानी अपने मुँह में ले लिया और उसे शरबत की तरह गटक लिया। दोनों निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़े। माँ की साँसें तेज़ थीं, और उसका जिस्म पसीने से भीगा हुआ था। महेश ने माँ को अपनी बाहों में लिया और उसकी चूचियों को सहलाने लगा। दोनों कुछ देर तक एक-दूसरे से लिपटे रहे, जैसे कोई प्रेमी जोड़।
मैं ये सब देखकर पागल हो चुका था। मेरा लण्ड मेरे पजामे में तड़प रहा था, और मेरे दिमाग में बस एक ही ख्याल था—माँ को चोदना। मैंने चुप रहने की कोशिश की, लेकिन मेरा जिस्म अब मेरे काबू में नहीं था। मैंने धीरे से अपने कमरे का दरवाजा खोला और माँ के कमरे में घुस गया। माँ और महेश मुझे देखकर एकदम घबरा गए। माँ की आँखों में डर था, और उसने जल्दी से चादर खींचकर अपने जिस्म को ढक लिया। महेश ने बिना कुछ बोले अपने कपड़े उठाए और चुपके से निकल गया। अब कमरे में सिर्फ़ मैं और मेरी नंगी माँ थी, जो बिस्तर पर बैठी थी, डर और शर्म से काँप रही थी।
मैंने उससे पूछा, “ये सब कब से चल रहा है, माँ?” मेरी आवाज़ में गुस्सा और जिज्ञासा दोनों थे। माँ की आँखें नीची थीं, और वो हकलाते हुए बोली, “राहुल… बेटा… अपने पापा को मत बताना… चाहे जो माँग ले, मैं सब दूँगी!” मैंने उसकी आँखों में देखा और कहा, “जो भी?” माँ ने डरते-डरते हामी भर दी।
आप यह Maa-beta sex kahani हमारी वेबसाइट फ्री सेक्स कहानी डॉट इन पर पढ़ रहे है।
मैंने धीरे से अपना हाथ माँ के दूधों पर रख दिया। वो एक पल के लिए चौंकी, फिर हल्के से मुस्कराई और बोली, “आजकल मेरा बेटा बड़ा हो गया है!” उसकी आवाज़ में एक अजीब सी मस्ती थी। फिर वो बोली, “आज तू भी चोद ले मुझे, लेकिन किसी को बताना मत!” ये कहते हुए उसने अपना हाथ मेरे पजामे के ऊपर रखा और मेरे लण्ड को सहलाने लगी। “अरे, तेरा लण्ड तो बहुत बड़ा है, राहुल!” उसकी आँखों में चमक थी, जैसे वो मेरे लण्ड को देखकर भूखी हो गई हो।
मैंने अपना पजामा उतारा और अपना 9 इंच का लण्ड माँ के सामने लहराया। माँ ने उसे अपने नरम हाथों में लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगी। फिर उसने अपना मुँह खोला और मेरे लण्ड को अंदर ले लिया। वो उसे ज़ोर-ज़ोर से चूस रही थी, जैसे कोई प्यासा पानी पीता है। उसकी जीभ मेरे लण्ड के सुपारे पर घूम रही थी, और वो मेरे टट्टों को भी हल्के से दबा रही थी। मैंने माँ के बाल पकड़े और उसके मुँह में अपना लण्ड और अंदर पेल दिया। माँ की सिसकारियाँ गूँज रही थीं—उम्म… उह्ह… कितना मोटा है तेरा लण्ड, राहुल! मैं पागल हो रहा था। माँ का मुँह गर्म था, और उसकी चूसने की रफ्तार मुझे जन्नत की सैर करा रही थी।
कुछ देर बाद माँ ने मेरा लण्ड अपने मुँह से निकाला और बिस्तर पर लेट गई। उसने अपनी टाँगें फैलाईं और बोली, “आ जा, राहुल… चोद दे अपनी माँ को… आज तू मेरी चूत की प्यास बुझा दे!” मैंने उसकी चूत पर अपना लण्ड रगड़ा। वो गीली और गर्म थी, जैसे कोई भट्टी। मैंने धीरे से अपना लण्ड उसकी चूत में डाला, और माँ की सिसकारी निकल गई—आह्ह… धीरे, बेटा… तेरा लण्ड बहुत बड़ा है! मैंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए, लेकिन माँ की चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लण्ड पूरा अंदर नहीं जा रहा था। मैंने ज़ोर से एक धक्का मारा, और मेरा पूरा लण्ड माँ की चूत में समा गया। माँ की चीख निकल गई—आह्ह… मर गई… राहुल… आराम से! लेकिन मैं रुका नहीं। मैंने ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने शुरू कर दिए, और माँ की गाण्ड हर धक्के के साथ हिल रही थी।
मैंने माँ के दूध पकड़े और उन्हें ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा। माँ की चूचियाँ इतनी नरम थीं कि मेरे हाथों में समा नहीं रही थीं। मैंने एक चूची को अपने मुँह में लिया और ज़ोर से चूसने लगा। माँ की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं—आह्ह… राहुल… चूस ले… मेरे दूध पी ले… चोद मुझे और ज़ोर से! मैंने माँ को बिस्तर पर उल्टा किया और उसे घोड़ी बना दिया। उसकी गाण्ड हवा में थी, और उसकी चूत मेरे लण्ड के लिए खुली थी। मैंने फिर से अपना लण्ड उसकी चूत में पेल दिया और तेज़ी से चोदने लगा। माँ की गाण्ड हर धक्के के साथ थप-थप की आवाज़ कर रही थी। मैंने उसकी गाण्ड पर एक ज़ोरदार चपत मारी, और माँ की चीख निकल गई—आह्ह… हरामी… मार डालेगा क्या! लेकिन उसकी आवाज़ में मस्ती थी।
कुछ देर बाद मैंने माँ को अपनी गोद में उठाया और उसे बिस्तर के किनारे पर बैठा दिया। मैंने उसकी टाँगें अपने कंधों पर रखीं और फिर से अपना लण्ड उसकी चूत में डाल दिया। इस बार मैंने पूरी ताकत से धक्के मारने शुरू किए। माँ का जिस्म हर धक्के के साथ काँप रहा था, और उसकी चूचियाँ हवा में उछल रही थीं। मैंने उसकी कमर पकड़ी और उसे और तेज़ी से चोदा। माँ की चूत से पानी रिस रहा था, और वो बार-बार झड़ रही थी। उसकी सिसकारियाँ अब चीखों में बदल चुकी थीं—आह्ह… राहुल… मेरी चूत फाड़ दी तूने… और ज़ोर से… चोद दे अपनी माँ को! मैं भी पागल हो चुका था। मेरा लण्ड माँ की चूत में बार-बार अंदर-बाहर हो रहा था, और हर धक्के के साथ मुझे जन्नत का मज़ा मिल रहा था।
कुछ देर बाद माँ ने कहा, “राहुल… मेरी गाण्ड भी मार ले… आज सब कुछ तेरा है!” मैंने उसकी गाण्ड पर थोड़ा तेल लगाया और अपनी उंगली से उसे ढीला किया। फिर मैंने अपना लण्ड उसकी गाण्ड के छेद पर रखा और धीरे-धीरे अंदर पेल दिया। माँ की चीख निकल गई—आह्ह… मर गई… धीरे, बेटा… फट जाएगी मेरी गाण्ड! लेकिन मैंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। माँ की गाण्ड इतनी टाइट थी कि मेरा लण्ड मुश्किल से अंदर-बाहर हो रहा था। कुछ देर बाद माँ को भी मज़ा आने लगा, और वो अपनी गाण्ड मेरे लण्ड पर उछालने लगी। मैंने उसकी कमर पकड़ी और ज़ोर-ज़ोर से उसकी गाण्ड मारने लगा। कमरे में सिर्फ़ थप-थप की आवाज़ और माँ की सिसकारियाँ गूँज रही थीं—आह्ह… राहुल… फाड़ दे मेरी गाण्ड… चोद मुझे जैसे तू चाहता है!
आधे घंटे की चुदाई के बाद मैं झड़ने वाला था। मैंने माँ से पूछा, “कहाँ निकालूँ, माँ?” उसने कहा, “मेरी चूत में डाल दे… भर दे अपनी माँ की चूत!” मैंने ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारे और अपना सारा पानी माँ की चूत में उड़ेल दिया। माँ भी उसी वक्त झड़ गई, और उसकी चूत से पानी की धार निकल पड़ी। हम दोनों निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़े। माँ की साँसें तेज़ थीं, और उसका जिस्म पसीने से भीगा हुआ था। मैंने उसे अपनी बाहों में लिया और उसके होंठों को चूम लिया। माँ ने मेरे सीने पर सर रखा और बोली, “राहुल… तू सचमुच बड़ा हो गया है… तूने अपनी माँ को जन्नत दिखा दी!”
सुबह हुई तो माँ मेरे सामने मुस्कराते हुए खड़ी थी। उसने मुझसे कहा, “कैसी कटी रात, बेटा?” मैंने उसकी कमर पकड़ी और उसे अपनी तरफ खींच लिया। “माँ, ये रात मेरी ज़िंदगी की सबसे हसीन रात थी!” उसने मेरे होंठों पर एक चुम्मा दिया और बोली, “अब जब भी मौका मिलेगा, तू अपनी माँ को ऐसे ही चोदना!” उस दिन के बाद, जब भी पापा गाँव में होते, मैं और माँ रात को चुदाई का खेल खेलते। माँ की चूत और गाण्ड अब मेरे लण्ड की गुलाम हो चुकी थी, और मैं उसकी हर प्यास बुझाता था।
कहानी कैसी लगी, दोस्तो?