पापा जी का लौड़ा तो मेरे पति से लंबा है

Sasur bahu sex story – Bahu ko sasur ne choda sex story – Papa ji ka lund bada – Pregnant bahu sex story: मेरी उम्र सत्ताईस वर्ष है। मेरा रंग सांवला जरूर है, लेकिन लोगों का कहना है कि मेरे नयन-नक्श बहुत आकर्षक हैं। मैं इकहरे बदन की दुबली-पतली और लंबी युवती हूं। मेरी पतली कमर ने मुझे सिर से पांव तक इतना सुंदर बना रखा है कि देखने वाले ठहर जाते हैं। मेरे पति ने सुहागरात को बताया था कि जब वे शादी से पहले मुझे देखने गए थे, तो मेरी सूरत देखे बिना ही मेरी कद-काठी पर मोहित हो गए थे। और जब सूरत देखी, तो उनका हाल बेहाल हो गया था। उनकी आंखों में उस दिन जो चमक थी, वह आज भी मुझे याद आती है – एक गर्माहट जो मेरे बदन को छूकर गुजरती थी।

मेरी शादी बीस वर्ष की उम्र में हुई थी। मैं छह वर्षीय एक बेटे की मां भी हूं। उसके बाद मैं गर्भवती नहीं हुई। किसमें क्या खामी आ गई है, यह जानने की हमने कभी कोशिश नहीं की और ना ही कभी विचार-विमर्श किया। मैं कभी अपने पति से और बच्चे के लिए कहती हूं, तो वे यह कहकर टाल जाते हैं कि एक लाड़ला है तो वही बहुत है। और बच्चे नहीं होते तो न हों, क्या करना है? उनकी आवाज में एक ठंडी उदासीनता होती है, जो मेरे दिल को चुभती है।

लेकिन बच्चों के मामले में मैं तृप्त या संतुष्ट नहीं हूं। कम से कम दो-तीन बच्चे तो होने ही चाहिए। इसलिए मैं पति के विचारों से सहमत नहीं हूं। मेरे मन में एक या दो बच्चों की मां बनने की लालसा बनी रहती है – एक गहरी, जलती हुई इच्छा जो रातों को मुझे जगाए रखती है, जब मैं अपने खालीपन को महसूस करती हूं।

मेरी एक पड़ोसन ने मुझे सलाह दी, “तुम अपने पति के साथ अस्पताल जाकर चेक करवाओ। इलाज असंभव नहीं है। पहले एक बच्चा पैदा कर चुकी हो, तो स्पष्ट है कोई छोटी-मोटी खराबी आ गई है। इलाज हो जाएगा, तो फिर गर्भवती हो सकोगी।” उसकी आवाज में उम्मीद थी, जो मेरे अंदर भी एक चिंगारी सी जगा गई।

मैंने पति को बताया, तो उन्होंने डांट पिला दी। “डॉक्टरों के पास चक्कर लगाना मुझे पसंद नहीं है और ना ही मुझे और बच्चों की जरूरत है। तुम्हें क्यों इतनी जरूरत महसूस हो रही है कि पड़ोस में रोना रोती फिर रही हो? भगवान ने एक लड़का दिया है, उसी का अच्छी तरह पालन-पोषण करो और खुश रहो।” उनकी आंखों में गुस्सा था, और मैं चुप हो गई, लेकिन अंदर से एक तूफान सा उठ रहा था।

यह एक साल पहले की बात है। मेरे पति एक अस्पताल में ही नौकरी करते हैं। कभी दिन की तो कभी रात की ड्यूटी लगती है। मेरे कोई देवर-जेठ नहीं हैं, दो ननदें और ससुर जी हैं। एक ननद की शादी मुझसे भी पहले हो चुकी थी, दूसरी की शादी पिछले साल ही हुई है। अपने लड़के को हमने स्कूल में डाल दिया है। शुरू में ही पता लगने लगा कि वह पढ़ने में तेज निकलेगा। उसे मैं बहुत प्यार करती हूं। उसके खान-पान और पहनावे का भी ध्यान रखती हूं। फिर भी जी नहीं भरता। हर समय सोचती रहती हूं कि एक बच्चा और हो जाता तो अच्छा होता, बेशक चाहे बेटी ही हो जाए। और बच्चा पाने की लालसा लुप्त नहीं हो पा रही थी – वह मेरे बदन में एक गर्माहट की तरह फैलती रहती थी, हर रात मुझे बेचैन करती।

इस लालसा के चलते मेरा मन बहकने लगा। मेरी नीयत खराब होने लगी कि मैं अपने पति के किसी मित्र से शारीरिक संबंध बना कर एकाध बच्चा और पैदा कर लूं। मन बहकने के दौरान मेरी मति भ्रष्ट हो जाती। मैं एक बार भी नहीं सोच पाई कि पति के वीर्य में खराबी है या मेरी बच्चेदानी खराब हो गई है। नहीं सोचा कि अगर मुझमें खराबी आ गई होगी, तो गैर मर्द से संबंध बनाने से भी गर्भवती कैसे हो जाऊंगी? बस लगातार यही सोचती रही कि गैर मर्द से सहवास करूंगी तो मेरी लालसा पूरी हो जाएगी। वह विचार मेरे बदन में एक मीठी सिहरन पैदा करता, जैसे कोई गर्म हवा मेरी त्वचा को छू रही हो।

मेरे पति के कई मित्र हैं। दो तो इतने गहरे मित्र हैं कि अक्सर मिलने घर तक चले आते हैं। जब पतिदेव ने एकदम निराश कर दिया, तो मेरा ध्यान उनके दोनों मित्रों की ओर स्वाभाविक रूप से चला गया। वे दोनों भी शादी-शुदा और दो-दो बच्चों के पिता हैं। उनसे मैं कभी पर्दा नहीं करती थी। पति के सामने भी हंसती-बोलती थी। उनकी नजरों में मेरे यौवन की लालसा सदैव झलकती थी – एक भूखी, गर्म नजर जो मेरे उरोजों पर ठहरती, मेरी कमर को नापती। लेकिन मैं नजरअंदाज कर जाती थी, क्योंकि मुझे उनकी जरूरत महसूस नहीं होती थी। मेरे पति भी हृष्ट-पुष्ट और मेरी पसंद के पुरुष थे। लेकिन चूंकि उन्होंने मुझे निराश किया, इसलिए वे मेरी नजरों में बुरे बन गए थे। और इसलिए मैं उनके मित्रों की ओर आकर्षित हो गई। पहले जब उनके मित्र आते और पति न होते तो लौट जाते थे, लेकिन अब पति नहीं होते तो उनके मित्रों से बैठने, चाय पीने का अनुरोध करती हूं। कभी एक आता, कभी दूसरा। मेरे अनुरोध को वे अपना सौभाग्य समझते, इसलिए बैठ जाते। चाय के बहाने उन्हें कुछ देर के लिए रोकती और मुस्कुरा-मुस्कुरा कर बातें करती। कभी उनकी बीवियों के बारे में पूछती, कभी उनकी प्रेमिकाओं की बातें करके छेड़ती। वे मेरी बातें रस लेकर सुनते और खुद भी मजाक करते। उनकी सांसें मेरे करीब आने पर तेज हो जातीं, उनकी खुशबू मेरे नथुनों में घुसती। वे दोनों ही मेरे रूप-सौंदर्य के आगे नतमस्तक थे। मैं भी उनके पौरुष के आगे झुकने का मन बना चुकी थी। लेकिन मेरी लज्जा हमारे बीच आड़े आ रही थी। इसलिए हम एक-दूसरे की ओर धीरे-धीरे झुक रहे थे, जैसे कोई गर्म लहर धीरे-धीरे बढ़ती हो।

हालांकि मैं दोनों से शारीरिक संबंध बनाने की जरूरत महसूस नहीं कर रही थी, क्योंकि मैं बदनाम होना नहीं चाहती थी। चारा मैं दोनों के आगे फेंक रही थी। जो भी पहले चुग जाए, यह भाग्य के ऊपर मैंने छोड़ दिया था। दोनों एक साथ कभी नहीं आए। एकाध बार ऐसा मौका आया, लेकिन न मैंने बैठने के लिए कहा और न वे बैठते थे। दोनों अपनी-अपनी गोटी सेट करने में लगे थे। इसलिए एक साथ बैठकर दोनों ही मुझसे हंसी-ठिठोली कैसे करते?

पापा जी यानी मेरे ससुर जी एक दुर्घटना में चार साल पहले अपने दाएं पांव का पंजा खो चुके हैं। इसलिए काम-धंधा उनके बस का रहा नहीं। जरूरत भी क्या है? अपना मकान है, इकलौता बेटा कमा ही रहा है। इसलिए वे घर में ही बेकार पड़े रहते हैं। उनकी उम्र लगभग सैंतालीस साल है। दिन भर घर में पड़े-पड़े ऊब जाते हैं, इसलिए शाम को चार बजे बाजार घूमने चले जाते हैं। चलने में दिक्कत होती है, इसलिए धीरे-धीरे चलते हैं। वापस लौटने में उन्हें दो-तीन घंटे लग जाते हैं। पति के मित्रों से हंसी-मजाक करने का मुझे यही समय मिलता था। वे हर रोज आकर बैठते भी नहीं थे।

एक शाम मैं उनके एक मित्र के साथ बैठी चाय पी रही थी। चाय पीने के दौरान एक-दूसरे को झुकने की चेष्टाएं जारी थीं – उनकी उंगलियां मेरे हाथ को छूतीं, उनकी सांसें मेरे चेहरे पर गर्म हवा की तरह लगतीं। आधा घंटा बीत चुका था। उस दिन जाने के लिए उठते समय उसने पहली बार अपनी चाहत प्रकट की। “जाने का मन ही नहीं होता, जी चाहता है आपके साथ बैठा रहूं।” उसकी आवाज में एक कांपती हुई गर्माहट थी। मैंने मुस्कुरा दिया, मेरे होंठों पर एक मीठी सिहरन दौड़ गई।

ठीक उसी समय पापा जी आ गए। उस रोज एक ही घंटे में वापस लौट आए थे। उन्हें देखकर मित्र तो चला गया। चाय की दो प्यालियों को देखकर पापा जी ने कुछ तो अर्थ लगाया ही होगा। विदाई के समय मेरी मुस्कान कुछ अलग ही तरह की थी – एक शरारती, ललचाती मुस्कान। इसे देखकर तो पापा जी का आशंकित हो जाना स्वाभाविक ही था। फिलहाल उस वक्त पापा जी ने कुछ नहीं कहा-पूछा।

मेरा छह वर्षीय बेटा पापा जी से बहुत घुला-मिला हुआ है। ज्यादा समय वह पापा जी के पास ही पढ़ता और खेलता है। वह खाना खा चुका होता है तो भी पापा जी के साथ एक-दो कौर जरूर खाता है। उसे नींद भी पापा जी के पास ही आती है। मेरे पति नाइट ड्यूटी में होते हैं तो मुन्ने को सो जाने के बाद अपने बिस्तर पर उठा लाती हूं। नाइट ड्यूटी नहीं होती तो पापा जी के पास ही सोने देती हूं।

उस दिन तो नहीं, अगले दिन जब मेरे पति की नाइट ड्यूटी लग गई, तब पापा जी बोले थे। खाना-पीना हो चुका था, मुन्ना तो सो चुका था। पापा जी भी सोने की तैयारी कर रहे थे। मैं मुन्ने को उठाने पहुंची तो पापा जी पूछने लगे, “कल वो कैसे बैठा था? क्या कह रहा था?” उनकी आवाज में एक गहरी जिज्ञासा थी, जैसे कोई गर्म सांस मेरे कानों में फूंक रही हो।

“मैं चाय का घूंट भरने ही जा रही थी कि वो आ गया। उसे यह बता कर कि ये अभी ड्यूटी से नहीं आए हैं, यों ही कह दिया चाय पी लो। वो रुक गया। मैं एक और प्याली ले आई, अपनी चाय देनी पड़ गई…” मैं क्षण भर के लिए रुक कर तुरंत ही बोल पड़ी, “वह किसी विशेषज्ञ के बारे में बता रहा था, कह रहा था उसे दिखा लो, कोई खराबी आ गई होगी, इलाज से खराबी दूर हो जाएगी।” तब तक आप आ गए और वो चला गया। मेरी आवाज कांप रही थी, जैसे कोई रहस्य छिपा हो।

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“मेरे आते ही वह चला गया, इसीलिए सोचने को मजबूर हो गया हूं,” पापा जी कहने लगे, “बहू तुम यहां बैठो, मैं तुम्हें समझाता हूं, आ जाओ।” उनकी आंखों में एक चमक थी, जो मुझे बेचैन कर रही थी।

मैं बैठने से हिचकी। वे मेरे पति के पिता थे। मैं उनके बराबर बैठने की हिम्मत नहीं कर पाई। वे मेरे संकोच को समझ गए। दोबारा बैठने के लिए नहीं कहा और अपनी बात बोलने लगे, “देखो… न तुममें खराबी है और न ही मेरे लड़के में कोई खराबी है। मेरा लड़का ही बेवकूफी कर रहा है, जिसके कारण हर कोई सोचने लगा कि अब तुम्हें बच्चे नहीं होंगे। उस मूर्ख को कितनी बार समझाया कि नाइट ड्यूटी मत लगवाया करो, लेकिन वह मानता ही नहीं। रात भर अस्पताल में ड्यूटी करेगा, यहां कुछ करेगा ही नहीं तो बच्चे कैसे होंगे?” उनकी बातें मेरे बदन में एक गर्म लहर दौड़ा गईं, जैसे कोई छिपी आग भड़क रही हो।

मैं पापा जी की बात समझ कर लज्जा से भर उठी। एक नजर उनकी ओर देखा और शांत खड़ी रही। वे सही बात कह रहे थे। मुझे ऐसा ही लगा, क्योंकि नाइट ड्यूटी करके वो सुबह आते थे और दिन भर खर्राटे मारकर सोते थे। शाम को फिर चले जाते थे। नाइट ड्यूटी नहीं होती तो वे मेरे साथ सोते थे, लेकिन महीने में दो या तीन बार ही संभोग करते थे। मेरे दिमाग में यह बात भी बैठ गई थी कि जब तक अंधाधुंध संभोग न किया जाए, गर्भ नहीं ठहरता। गर्भ की बात तो अलग, मैं जवानी के दौर से गुजर रही थी। मैं खुद को अतृप्त महसूस करती थी। मेरा यौवन संभोग के बिना प्यासा रहने लगा था – एक गहरी, जलती हुई प्यास जो मेरे गुप्तांगों में सिहरन पैदा करती रहती थी।

आगे पापा जी बोले, “आज वह सलाह दे रहा है डॉक्टर के पास जाने की, कल कहेगा मैं तुम्हें मां बना सकता हूं। मानता हूं कि भरपूर जवान और सुंदर युवती को पुरुष का भरपूर सहवास चाहिए। मां बनने की लालसा हर औरत में होती है। तुम्हें एक बच्चा हो चुका है, लेकिन एक ही काफी नहीं है। कम से कम तीन, नहीं तो दो तो होने ही चाहिए। लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि तुम उसके दोस्तों से मेल-जोल बढ़ाओ और उसके सहवास से मां बनो। ये आजकल के छोकरें बिन पैंदी के लोटे हैं, कभी इधर लुढ़कते हैं कभी उधर। इनमें गंभीरता नाम की चीज होती ही नहीं है। ये अपने दोस्तों तक बिना हिचके बात पहुंचा देते हैं, फिर बदनामी मिलती है। तुम उससे बातें करना बंद कर दो। कोई गंभीर आदमी होता तो मैं मना नहीं करता। मां बनने के और भी उपाय हैं।” उनकी आवाज में एक मखमली गर्माहट थी, जो मेरे दिल को छू रही थी।

“क्या…?” मैं अकस्मात ही पूछ बैठी, मेरी सांसें तेज हो गईं।

वे मुस्कुराए, उनकी मुस्कान में एक शरारत थी, फिर बोले, “तुम मुन्ने को ले जाकर बिस्तर पर लिटा आओ तो बताता हूं। ऐसा उपाय है कि सोने पर सुहागा। घर की इज्जत घर से बाहर नहीं जाएगी और तुम्हें दो-तीन बच्चे भी मिल जाएंगे। फिर अधूरी प्यास भी तुम्हें बेचैन करती होगी।” उनकी आंखें मेरे बदन पर ठहर गईं, जैसे कोई गर्म स्पर्श।

चूंकि मुझे मां बनने का रास्ता चाहिए था, इसलिए पापा जी के पास मैंने वापस आने का मन बना लिया। मैं झुकी, मुन्ने को उठाकर खड़ी होने लगी। तभी पापा जी ने मेरे वक्ष पर उभरी गोलाइयों को छूते हुए पूछा, “मुन्ने को लिटाकर आओगी ना?” उनका स्पर्श मेरे उरोजों पर एक बिजली की तरह दौड़ा, मेरी त्वचा सिहर उठी।

मैं हड़बड़ा गई। मुन्ना हाथ से छूटते-छूटते बचा। लेकिन जब मैं उनके कमरे से बाहर निकल आई तो सोचने लगी, पापा जी का सहवास आसानी से मिल रहा है। बुरा तो नहीं है। घर की इज्जत घर में ढकी रहेगी। वे खुद किसी से चर्चा करेंगे तो पहले उन पर ही थू-थू होगी। उनका स्पर्श अभी भी मेरे बदन पर महसूस हो रहा था, एक गर्म, ललचाती अनुभूति।

मन से तो मैं तैयार हो गई, लेकिन मुन्ने को लिटाने के बाद मैं बाहर की ओर कदम नहीं उठा पा रही थी। कुछ देर तक खड़ी रही, साहस जुटाती रही कि मेरे कदम दरवाजे की ओर बढ़ जाएं। लेकिन हमारे संबंध ने मेरे पांवों में बेड़ियां सी डाल दी थीं। मेरा मन और तन अजीब सी गुदगुदी से भर उठा था – एक मीठी, जलती हुई सिहरन जो मेरे गुप्तांगों तक फैल रही थी। केवल एक दरवाजा लांघते ही पापा जी के कमरे में दाखिल हो जाना था, लेकिन मुझे लग रहा था कि सफर बहुत लंबा तय करना पड़ेगा। बहुत देर बाद भी जब हिम्मत नहीं कर पाई तो स्विच ऑफ करके मुन्ने के पास बिस्तर पर बैठ गई।

जितना कठिन था पापा जी की ओर कदम उठाना, उतना ही कठिन लग रहा था हार कर मुन्ने के पास बिस्तर पर लेट जाना। बैठ जरूर गई, लेकिन लेटने का मन नहीं हो रहा था। दरवाजा खुला था। मेरे पति नाइट ड्यूटी पर नहीं होते तो बीच का दरवाजा बंद कर लेती थी।

पापा जी के कमरे में बत्ती जल रही थी। वे शायद मेरे आने की राह देख रहे थे। निराश होकर वे भी उठे और बत्ती बुझाकर लेट गए। मेरा निचला होंठ दांतों के नीचे दब गया। पापा जी ने जितनी लिफ्ट दे दी थी, उसके आगे बढ़ने में शायद वे भी संकोच कर रहे थे। हो सकता है मेरी असहमति समझकर पीछे हट गए हों। मैं पछताने लगी। मन अभी भी कशमकश में पड़ा हुआ था कि उनके पास चली जाऊं या नहीं?

एक लंबी सांस छोड़कर मैंने अपना माथा अपने घुटनों में झुका लिया। एक तरफ मेरी मां बनने की लालसा थी तो दूसरी तरफ हमारा पवित्र संबंध। स्थिति ने मुझे अधर में लटका कर छोड़ दिया था। मेरी सांसें भारी थीं, बदन में एक अजीब गर्मी फैल रही थी।

थोड़ी देर बाद पापा जी की आवाज मेरे कानों में पड़ी, “बहू आज पानी मेरे पास नहीं रखा क्या?” उनकी आवाज में एक आमंत्रण था, गर्म और ललचाता।

“अभी लाती हूं,” कहकर मैं झट उठ पड़ी। स्विच ऑन करके पानी लेने नल की ओर तेजी से बढ़ गई। मुझे अच्छी तरह याद था कि मुन्ने को उठाने गई थी तो रोज की तरह पानी लेकर गई थी। मालूम होते हुए भी पापा जी ने पानी मांगा था। इसे मैंने पापा जी का स्पष्ट आमंत्रण माना। मुझे भी उनके पास जाने का बहाना मिल गया था। इसलिए पानी रख आई हूं यह बात मैंने भी भुला दी। अब दोबारा पानी लेकर जाने पर फंसकर रह जाना लाजमी था। इसलिए मुन्ने के लिए मैंने बत्ती जला दी थी ताकि अंधेरे में आंख खोले तो डर न जाए।

पानी ले जाकर यथास्थान रखने के लिए झुकी तो मैंने कहा, “पानी तो रख ही गई थी, रखा तो है।” मेरी आवाज कांप रही थी, बदन में सिहरन दौड़ रही थी।

पापा जी ने मेरी बांह पकड़कर कहा, “हां पानी तो पहले ही रख गई थी। मैंने पानी के बहाने यह पूछने बुलाया है कि क्या तुम मेरी बात का बुरा मान गई?” उनका स्पर्श मेरी बांह पर गर्म था, जैसे आग की तरह।

मैंने कहा, “नहीं तो।”

“अगर बुरा नहीं मान है तो आओ, बैठ जाओ ना।”

कहते हुए उन्होंने मेरी बांह खींची। मैं संभल नहीं पाई या ऐसा भी समझ सकते हैं कि मैंने संभलना नहीं चाहा। लड़खड़ाकर बैठ सी गई। मेरी सांसें तेज हो गईं, दिल की धड़कनें कान में गूंज रही थीं।

“शर्माओ मत बहू, यह तो समस्या के समाधान की बात है। और बच्चे पाने के लिए तुमने जो कदम उठाना चाहा वह गलत नहीं था। गलत तो वह लड़का है जिसकी ओर मैंने तुम्हारा झुकाव देखा। तुम इतनी सुंदर हो कि तुम्हें किसी का भी सहवास मिल जाएगा। लेकिन बाहरी किसी एक आदमी की आगोश में जाओगी तो उसके अनेक दोस्त भी तुम्हें अपनी आगोश में बुलाएंगे। मजबूरी में तुम्हें औरों का भी दिल खुश करना पड़ेगा। तुम इनकार करोगी तो चिढ़कर वे तुम्हें बदनाम करेंगे। नहीं इनकार करोगी तो भी बात एक-दूसरे दोस्तों तक पहुंचेगी और तुम चालू औरत के रूप में बदनाम हो जाओगी। खानदान की नाक कटेगी सो अलग। मैं घर का सदस्य हूं, हमारे संबंध ऐसे हैं कि किसी को संदेह तक नहीं होगा। मैं तुम्हारी बदनामी की बात सोच भी नहीं सकता, क्योंकि खुद मेरा मुंह काला हो जाएगा। अब शर्म छोड़ो और आओ मेरी आगोश में समा जाओ।”

कहकर पापा जी ने मुझे अपनी ओर खींचा और बांहों में बांध लिया। मैंने जरा भी विरोध नहीं किया और उनके सीने में दुबक गई। समर्पण ही मेरे पास एक मात्र रास्ता था। उनका सीना गर्म और मजबूत था, उनकी खुशबू – एक मर्दाना, उत्तेजक खुशबू – मेरे नथुनों में भर गई। मेरी त्वचा उनके स्पर्श से सिहर उठी।

पापा जी यानी मेरे ससुर बूढ़े नहीं हुए हैं। अभी अधेड़ावस्था में पहुंचे हैं लेकिन युवा दिखने की चेष्टा में सफल हैं। हमसे एक पीढ़ी ऊपर जरूर हैं, लेकिन उनको सुंदरता की परख ही नहीं है बल्कि रूप-सौंदर्य को भोगने का आधुनिक ज्ञान भी है। यह मुझे उसी रात पता चल गया था।

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मैं उनके अगले कदम की प्रतीक्षा सांस रोककर कर रही थी। सहसा ही मेरी रुकी हुई लंबी सांस छूट गई, जैसे कोई बांध टूट गया हो।

“क्या हुआ? प्यास बहुत तड़पा रही है ना,” कहने के साथ ही उन्होंने मेरे जिस्म को कसकर भींच दिया। उनकी बांहें मेरी कमर पर लोहे की तरह कस गईं, मेरी सांसें रुक सी गईं।

“आह!” मैं कराह उठी, एक मीठी पीड़ा मेरे बदन में दौड़ गई। इसके साथ ही मैंने चेहरा भी उठा दिया। आंखें चार हुई तो लज्जावश मेरी पलकें बंद हो गई। मैं तैयार नहीं थी। सहसा ही पापा जी ने अपने तपते होंठों को मेरे होंठों से चिपका दिया। मेरी थरथराती सांस फिर छूट गई। उनके होंठ गर्म और नरम थे, एक मीठा दबाव जो मेरे होंठों को चूस रहा था।

“वाह!” होंठ उठाकर बोले, “बहुत हसीन हो तुम, तुम्हारी सांसों की खुशबू चमेली के फूल जैसी है।” उनकी सांस मेरे चेहरे पर गर्म हवा की तरह लग रही थी।

प्रशंसा सुनकर मेरा मन झूम उठा, लेकिन झेंपकर मैंने अपनी आंखें चुरा ली। तब पापा जी ने मेरी ठोड़ी पकड़कर चेहरा ऊपर उठा दिया। मेरी पलकें बंद ही थीं। मेरी सांसें भारी हो गई थीं, छाती ऊपर-नीचे हो रही थी। पापा जी ने मेरी दोनों आंखों को चूमते हुए कहा, “अब आंखें न चुराओ जानेमन, पलकें खोल दो जरा देखूं तो तुम्हारी झील जैसी आंखों की गहराई कितनी है।” उनके होंठ मेरी पलकों पर नरम स्पर्श थे, गर्म और नम।

उनके डायलॉग सुनकर मुझे हंसी आ गई। मेरी पलकें उठ गईं। आंखें मिलते ही मैंने उनके गले में बाहें डालकर अपनी ठोड़ी उनके कंधे पर टिका दी। तब पापा जी मेरी नंगी कमर को सहलाने लगे। उनकी उंगलियां मेरी त्वचा पर गर्म रेखाएं खींच रही थीं, मेरी सांसें तेज-तेज चलने लगी थीं, बदन में एक मीठी कंपकंपी दौड़ रही थी।

“तुम्हारी पतली कमर बड़ी कातिल है, जब-जब नजर पड़ती थी आह भरकर रह जाता था।” उनकी आवाज में एक गहरी लालसा थी।

मैंने धीरे से चुटकी ली, “यानी नीयत पहले से खोटी है?” मेरी उंगलियां उनकी त्वचा पर दब रही थीं।

वे एकदम से आवेश में आ गए। उन्होंने मुझे कंधे से अलग करके चीत गिरा दिया। मेरे दोनों पांव उनकी गोद में ही सिकुड़े पड़े थे। उन्होंने मेरे पांव के पंजों को दोनों हाथों में उठा लिया और पल भर तक घूर-घूरकर देखने के बाद जी जान से चूमने लगे। उनके होंठ मेरे पंजों पर गर्म और नम थे, एक सिहरन मेरे पैरों से ऊपर की ओर दौड़ गई।

“तुम्हारे पांव तो कमल के फूल जैसे हैं, ऐसे ही पांवों को चरणकमल की उपाधि दी गई है।”

मेरे पांवों को चूम-चूमकर पापा जी ने मुझे आसमान के सिंहासन पर बैठा दिया था। इतनी प्रशंसा पहले किसी के मुंह से नहीं सुनी थी, पति से भी नहीं। मुझे बहुत अच्छे पुरुष लगे पापा जी। उनका स्पर्श मेरे बदन में आग लगा रहा था।

पांवों को छोड़कर पापा जी ने दोनों हाथ मेरी कमर में डालकर पहले तो उसे नापा फिर उचकाकर उठा लिया। मेरा लंबा जिस्म पुल की भांति बीच से उठ गया। वे मुस्कुराते हुए मेरे पेट को कुछ क्षण देखते रहे फिर नाभि पर होंठ रखकर चूमने लगे। उनकी सांसें मेरे पेट पर गर्म हवा की तरह लग रही थीं, नाभि में उनकी जीभ की गर्मी एक बिजली की तरह उतर गई।

मेरा अंग-अंग सिहर उठा था। नाभि चूमने के बाद मेरी कमर वापस बिस्तर पर रख दी और थोड़ा झुककर मेरे उरोजों को टटोलने लगे। मेरे कमरे में रोशनी थी, उसकी रोशनी से पापा जी का कमरा भी हल्का-हल्का रोशन था। उनकी उंगलियां मेरे उरोजों पर नरम दबाव डाल रही थीं, मेरी चूचियां कठोर हो रही थीं।

“इन सबको थोड़ी देर के लिए उतार फेंको ना, ये मजा किरकिरा कर रहे हैं,” कहकर वे ब्लाउज का हुक खोलने लगे। मैं छिपी नजरों से उनका मुंह ताक लेती थी। धीरे-धीरे मेरी हिचक भी दूर होती जा रही थी, बदन में एक मीठी गर्मी फैल रही थी।

पापा जी ने ब्लाउज, ब्रेजियर उतारने के बाद साड़ी भी खींच दी। मेरे उन्मत्त उरोजों ने उन्हें इस कदर आकर्षित कर लिया कि साड़ी के बाद पेटीकोट को भूल ही बैठे। उन्होंने पहले तो अपने हाथों को उभारों पर हल्के से रखा और हल्के-हल्के सहलाते रहे, फिर धीरे-धीरे दबाने लगे। दबाव भी बढ़ता गया। आखिर में उन्होंने निर्दयता के साथ भींच दिया। उनकी हथेलियां मेरी चूचियों को मसल रही थीं, एक मीठी पीड़ा और उत्तेजना मेरे बदन में दौड़ गई।

“उई री मां!” मैं सीत्कार कर उठी, मेरी आवाज में कराहट और लालसा दोनों थे। साथ ही मैंने उनके हाथों पर हाथ रखकर राहत देने के लिए आंखों ही आंखों से अनुरोध किया। वे मान गए। खिसककर मेरी बगल में आ बैठे और उरोजों को सहलाने लगे। काम-क्रीड़ा से उन्होंने मुझे पर्याप्त आनंदित कर दिया था। मैंने फिर अपने निचले होंठ को दांतों तले दबाया तो वे मेरे चेहरे पर झुककर बोले, “तुम अपने होंठों को घायल मत करो, मेरे हवाले कर दो।”

मैंने होंठ को मुक्त कर दिया। उसी समय उन्होंने अपने होंठों के बीच दबाकर चूसना शुरू कर दिया। मेरी सांसें एकदम तेज हो गईं। पिंजरे में फंसी मैना की भांति मैं छटपटा रही थी और वे होंठों का स्वाद ले रहे थे – एक गर्म, नम चूषण जो मेरे होंठों को लाल कर रहा था। उन्होंने मेरी एक बांह उठाकर अपने गले पर लपेट दी और दूसरे हाथ की उंगलियां पकड़कर अपने गुप्तांग की ओर ले जाने लगे।

“तुम्हारा खिलौना यह है, तुम भी खेलो।”

अगले ही पल उनका लिंग मेरी मुट्ठी में था। उसका स्पर्श बहुत आनंददायक लगा – गर्म, कठोर, नब्ज की तरह धड़कता हुआ। भयभीत होने की उम्र मैं पार कर चुकी थी। पापा जी का कद मेरे पति से लंबा ही था, शायद इसीलिए उनके लिंग की लंबाई भी कुछ अधिक थी और कोई अंतर नहीं था। वह मेरी हथेली में भारी और गर्म लग रहा था।

मैं लिंग को धीरे-धीरे सहलाने लगी। होंठों पर दर्द महसूस होने लगा तो मैं उनकी गर्दन पीछे की ओर धकेलने लगी। वे समझ गए। मुंह उठाकर मेरी आंखों में आंखें डालकर पूछा, “मेरे साथ आनंद आ रहा है या नहीं?”

मैंने मुस्कुराकर उनके गाल पर हल्की सी चपत लगाई और नाक चढ़ाकर बोली, “बहुत आनंद आ रहा है।” मेरी आवाज में एक शरारती लालसा थी।

“तुम्हारी यही अदा तो कातिल है,” कहकर उन्होंने मेरी नाक पर एक चुम्बन अंकित कर दिया और मुस्कुराने लगे।

मैंने पूछा, “मेरे साथ आप कैसा महसूस कर रहे हैं?”

“तुम्हारे सहवास का जो आनंद मुझे मिल रहा है, वह पहले कभी नहीं मिला। तुम सुंदरता की एक मिसाल हो।”

कहकर उन्होंने मेरे उरोजों के अग्रभाग को बारी-बारी से चूमा फिर एक को मुंह में डाल लिया। मैं पापा जी से ऐसी उम्मीद नहीं रखती थी। मेरे पति भी उरोजों को पहले चूसा करते थे। पापा जी के मुंह में पड़े उरोज के अग्रभाग पर गर्मी महसूस हुई तो मेरा रोम-रोम उत्तेजना से खड़ा हो गया। मेरी सांसें रुकने सी लगीं। उत्तेजना के कारण मेरे होंठों पर सिसकारियां उभर आई थीं – एक मीठी, गर्म चूषण जो मेरी चूचियों को नम और संवेदनशील बना रही थी।

बारी-बारी से उन्होंने दोनों उरोजों को देर तक चूसा। होंठ दर्द करने लगे तो मुंह उठाकर मेरे चेहरे की ओर देखा। उनकी आंखें लालसा से चमक रही थीं।

“क्या हुआ,” मैंने मुस्कान बिखेरते हुए पूछा।

“तुम तो चुप पड़ी हो, कुछ ना कुछ तुम भी करती रहती तो मुझे विश्राम मिलता रहता, थक गया ना।”

मैं हंस दी, “आप मेरी बारी आने दें तब ना।”

इतना कहना था कि उन्होंने मेरे बगल में हाथ डालकर अपने जिस्म से चिपका लिया और चित्त हो गए। मेरा समूचा जिस्म उनके ऊपर फैल गया। मेरी चूचियां उनके सीने पर दब रही थीं, मेरी सांसें उनकी सांसों से मिल रही थीं।

मेरे होंठ उनके होंठों से जा लगे। मैंने धीरे-धीरे होंठों को हरकत दी और फिर सिसियाकर चूसने लगी। बीच-बीच में मैं होंठों को दांतों तले दबा लेती तो वे पीड़ा से कसमसा उठते। चुम्बन लेते हुए मैंने अपनी कमर से नीचे का भाग तिरछा करके उनके ऊपर से नीचे उतार लिया। उनका गुप्तांग कपड़ों के बीच से झांक रहा था। पहले तो मैंने उसे पकड़ा फिर छोड़कर उन्हें निःवस्त्र करने लगी। कुल एक ही वस्त्र था, उसे उतारते ही वे पूर्णतः निःवस्त्र हो गए। तब उनके होंठों पर से मुंह उठाकर मैंने लिंग का सम्पूर्ण दीदार किया और हाथ से सहलाते हुए जायजा लिया। मेरा अनुमान सही था, पापा जी के लिंग की लंबाई मेरे पति से ज्यादा थी, मोटा उतना ही था। वह गर्म, कठोर और नसों से भरा हुआ लग रहा था, मेरी उंगलियां उस पर फिसल रही थीं।

पापा जी ने पूछा, “इतने गौर से क्या देख रही हो?”

मैंने उनकी ओर देखे बिना ही जवाब दिया, “आपका बहुत बड़ा है।”

“इससे भी बड़ा होना चाहिए। लिंग जितना ही लंबा और मोटा होता है, स्त्रियों को संभोग का उतना ही ज्यादा आनंद और संतोष प्राप्त होता है। इसे देखकर घबराओ मत।”

कहकर उन्होंने मेरा मुखड़ा अपनी ओर खींच लिया, “तुम चेहरा इधर तो रखो, बहुत सुंदर हो, मुझे जी भरके देखने दो।”

उन्होंने मेरे चेहरे को हथेलियों में बांध सा लिया। मुझे भी अपना रूप उन्हें दिखाने में आनंद आ रहा था। उत्तेजना के कारण मेरी नासिकाएं फूल और पीचक रही थीं, चेहरा तमतमा गया था, जैसे सारे जिस्म का खून चेहरे पर ही जमा हो गया हो।

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यह सब सही था तभी तो पापा जी ने थोड़ा तिरछा करके मेरा चेहरा झुकाया और गाल अपने होंठों पर रख लिया। उन क्षणों में मैं वास्तविक संबंध को एकदम भूल बैठी। मैं इस गुमान में बहुत खुश हो उठी थी कि मेरा जिस्म और हुस्न मेरे एक मनपसंद पुरुष के आगोश में है। प्रभावित होकर मैंने अपना गाल उठाया और उनके गाल पर रखकर चूमने लगी। उनकी त्वचा पर मेरे होंठ गर्म और नम थे।

मेरी हिचक सहसा ही लुप्त हो गई। मैं उन्हें इस तरह प्यार करने लगी मानो वे मेरी पसंद के मनपसंद युवक हों। मैंने उनकी बाजुओं को चूमा, चौड़े सीने को बार-बार चूमा, उसके बाद उनके वक्ष पर सिर टिकाकर समर्पण कर दिया। उनकी मांसपेशियां मेरे स्पर्श से कठोर हो रही थीं।

उनके हाथ मेरे पेट की ओर तेजी से बढ़े। नाभि पर सहलाने के बाद पेटीकोट उतार दिया। मैं उनके सीने पर टिकी हुई थी। मेरी पीठ पर बाहों को कसा और अपने साथ-साथ मुझे भी उठाकर खड़ा कर दिया।

हम दोनों एकदम निःवस्त्र अवस्था में एक-दूसरे की बाहों में बंधे खड़े थे। उनका कठोर लिंग मेरी नाभि से एक इंच नीचे चुभ रहा था – गर्म और धड़कता हुआ। मेरे दोनों उरोज उनके जिस्म से दबे हुए थे, मेरी चूचियां उनकी छाती पर मसल रही थीं। उन्होंने मेरी ठोड़ी को छुआ तो मैंने अपना मुखड़ा ऊपर की ओर उठा दिया। उन्होंने मेरे होंठों पर गहरा चुम्बन अंकित करके मुझे अपने से अलग कर दिया। वे मेरा निःवस्त्र बदन देखना चाहते थे, इसलिए स्वयं ही दो फुट पीछे सरककर मेरे बदन का अवलोकन करने लगे। कुछ क्षण बाद वे बैठ गए फिर थोड़ा उठकर ऊपर से नीचे तक नजर दौड़ाने लगे। मेरे बदन ने उन्हें कितना प्रभावित किया यह उनके चेहरे पर स्पष्ट झलक रहा था – उनकी आंखें लालसा से चमक रही थीं, सांसें तेज।

मैंने मुस्कुराकर पूछा, “मुझे शर्म लग रही है, बैठ जाऊं?”

उन्होंने बाहें फैलाकर मेरा स्वागत किया। मैं झुककर उनकी बाहों में गिर पड़ी। ठुनककर बोली, “अब ज्यादा मत तड़पाइए, मेरा दम घुट रहा है।” मेरी योनि में एक गर्म, नम प्यास फैल रही थी।

लुढ़कते हुए वे मुझे नीचे करके मेरे ऊपर आ गए। मेरे गुप्तांग को टटोलते हुए दो-चार चुटकियां काटी, फिर कहने लगे, “तुम तो पहले से ही तैयार हो।” उनकी उंगलियां मेरी योनि पर फिसल रही थीं, नमी महसूस कर रही थीं।

“आप भी तो तैयार हैं।”

मेरे कहते ही उन्होंने फिर मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया। मुझे होंठों पर जलन महसूस होने लगी थी। पता नहीं मेरे होंठों का रस उन्हें कितना अच्छा लग रहा था, बार-बार चूसने लगते थे – एक गहरा, भूखा चूषण।

मैंने उनका लिंग पकड़कर पूरी ताकत से दबाया तो वे उठते हुए बोले, “तुम बताओ तुम्हें कौन सा आसन पसंद है।”

“पहले तो वे (मेरे पति) इसी तरह चित लिटाकर जांघों के बीच बैठते थे, लेकिन अब अक्सर वे चित लेटकर मुझे अपने ऊपर बैठाते हैं। उस तरह थकान जरूर मुझे परेशान करती है लेकिन आनंद बहुत आता है। फिलहाल आपको जो आसन पसंद हो उसी को आजमाइए! मम्मी जी को कौन सा आसन पसंद था, वही बताइए।”

उन्होंने मुझे पेट के बल लिटाकर घुटनों को मोड़ने का निर्देश दिया। घुटनों को मोड़ा तो मेरा पिछला हिस्सा ऊपर उठ गया, जबकि मेरा वक्ष और चेहरा तकिए से चिपका हुआ था। उन्होंने बताया, “इसे धेनु आसन कहते हैं। इस आसन से गर्भ आसानी से ठहर जाता है। तुम्हें पसंद न हो तो चित्त लेट जाओ।”

“नहीं यही आसन ठीक है, पता तो चले कि इस आसन से कितना आनंद आता है।”

वे मेरे पीछे घुटनों के पास ही बैठे थे। मेरी स्वीकृति मिलते ही वे भी अपने घुटनों पर खड़े हो गए। तब उनका लिंग मेरे गुदाद्वार से आ टकराया – गर्म और कठोर।

मैं डर गई। तभी उन्होंने हाथ लगाकर लिंग मुंड को योनिद्वार पर पहुंचा दिया, फिर मेरे गुदाद्वार पर अंगुली रखकर पूछा, “इसके मैथुन का आनंद कभी उठाया है?”

मैंने कहा, “बहुत दर्द होता है, एक बार इन्होंने प्रयास किया था, मेरी जान निकलने लगी तो छोड़ दिया।”

“ज्यादा जोश के कारण बेरहमी कर बैठा होगा, वरना गुदा-मैथुन में भी बहुत आनंद प्राप्त होता है। कभी मैं करके दिखाऊंगा, पीड़ा हो तो बताना,” कहकर वे अपना लिंग योनिद्वार में प्रवेश कराने लगे। लिंग मुंड का प्रवेश तो सामान्य ही लगा, लेकिन मुंड प्रवेश के बाद दो पल को वे रुके फिर एक ऐसा तेज झटका दिया कि संपूर्ण लिंग प्रवेश करके अंतड़ियों में चुभने लगा। मैं कराहकर थोड़ा आगे हो गई। तब उन्होंने मेरी कमर पकड़कर वापस ही नहीं बल्कि खुद भी आगे सरक आए, जिससे मुझे तकलीफ होने लगी। उनके लिंग की लंबाई ज्यादा जो थी, वह मेरी योनि की गहराई को छू रहा था, एक गर्म दबाव।

कराहते हुए मैं फिर आगे होने का प्रयास करने लगी, लेकिन उन्होंने सफल नहीं होने दिया। तब मैंने कहा, “थोड़ा रहम कीजिए, जितनी चादर है उतना ही पैर पसारिए, तकलीफ हो रही है।”

उन्होंने मेरी कमर थपथपाकर कहा, “एकाध बार ही तकलीफ होगी। मेरा संसर्ग पहली बार मिला है ना, धैर्य रखो। अभी इतना मजा आने लगेगा जितना तुम सोच भी नहीं सकती।” उनकी उंगलियां मेरी कमर पर गर्म सर्कल बना रही थीं।

इतना कहकर वे थोड़ा पीछे हटे और फिर पूरी तेजी से आ सटे।

“आह!” मैं कराह उठी, मेरी योनि में एक मीठी चुभन दौड़ गई।

पापा जी का जोश दोगुना हो गया। वे उसी रफ्तार से जल्दी-जल्दी घर्षण करने लगे। मैं लगातार कराहती रही। मुझे पेट में चुभन थोड़ा तकलीफ दे रही थी, अन्यथा उनके लंबे लिंग का घर्षण बड़ा आनंददायक लग रहा था – एक गहरा, भरपूर दबाव जो मेरी योनि की दीवारों को रगड़ रहा था। इसमें संदेह नहीं, घर्षण का आनंद ही उठाने के लिए मैं पीड़ा सहने के लिए मजबूर थी। मेरी योनि से नमी की आवाजें आ रही थीं, गर्म और चिपचिपी।

उन्होंने विश्राम के दौरान पूछा, “मेरे सहवास में मजा आ रहा है ना बहू?”

“मजा तो जरूर आता लेकिन दर्द के कारण मजा किरकिरा हो गया है। आज फंस गई हूं, आइंदा आपके पास कभी नहीं आऊंगी। आप मजा कम पीड़ा ज्यादा पहुंचा रहे हैं।”

वे रुक गए। लिंग को तुरंत थोड़ा सा पीछे खींचकर कहने लगे, “ऐसा क्यों कहती हो? लो अब खुश हो?”

“हां अब ठीक है।”

“ठीक है तो लो अब मजा ही मजा उठाओ,” कहकर सावधानी के साथ घर्षण करने लगे। मैंने कराहना बंद कर दिया था, लेकिन जब मैं मंजिल के करीब पहुंचने लगी तो सिसियाते हुए बोल पड़ी, “पूरी ताकत लगा दीजिए, पहले की तरह, प्लीज।” मेरी योनि में एक जलती हुई लहर उठ रही थी।

इतना कहना था कि वे पहले जैसी धुन में आ गए। मैं फिर कराहने लगी। अगले ही क्षण स्खलित हो गई तो उनकी जांघ को दबोचते हुए बोली, “बस… बस… प्लीज रुक जाइए।” मेरी योनि में स्पंदन हो रहे थे, गर्म तरल बह रहा था।

वे रुकने के मूड में नहीं थे, लेकिन जल्दी ही वे भी स्खलित हो गए। तब रुक जाना उनकी मजबूरी थी। झुककर उन्होंने अपना मुंह मेरी कमर पर रख दिया और हांफने लगे। उनकी गर्म सांसें मेरी त्वचा पर लग रही थीं।

इस तरह मेरा अवैध संबंध ससुर जी से स्थापित हो गया तो हम अक्सर काम-क्रीड़ा करने लगे। मेरे पति नाइट ड्यूटी में होते तो नाइट के समय और दिन की ड्यूटी पर होते तो दिन के समय पापा जी की आगोश में पहुंच जाती। मेरा मुन्ना नादान ही था, और कोई देखने वाला था नहीं। हम स्वछंद होकर वासना का खेल खेलने लगे थे – उनके लिंग की गर्माहट, मेरी योनि की नमी, सांसों की मिलन, कराहटें और सिसकारियां।

छह महीने तक मैं गर्भवती नहीं हुई तो अवैध संबंध पर पछतावा होने लगा। मुझे यकीन हो गया कि कुछ खराबी मेरे अंदर ही आ गई है, इसलिए गर्भ नहीं ठहर रहा है। निराश हो चली थी कि एकाएक पता चला, मेरी कामना पूरी हो गई। मैंने ससुर जी को और पतिदेव को भी गर्भवती होने की सूचना दी तो पतिदेव बहुत खुश हुए। मुझे शुभकामना दी, “लो तुम्हारी कामना पूरी हो गई, और बच्चों के लिए तरस रही थी। ईश्वर ने तुम्हारी इच्छा पूरी कर दी, अब जरा सावधानी बरतना।”

मेरे पति और मेरे ससुर दोनों ही बहुत खुश थे। मेरा पूरा ध्यान रखते। मैंने एक खूबसूरत बच्चे को जन्म दिया। मैंने अपने ससुर जी के सहयोग से बाद में एक और बच्चे को जन्म दिया। अभी भी ससुर जी पूरे जोश से मुझे संभोग का आनंद देते हैं – उनकी गर्म बांहें, लंबा लिंग, और वह गहरी संतुष्टि।

अब मैं गर्भ निरोधक गोलियों का प्रयोग करती हूं और शारीरिक सुख भोग रही हूं।

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