बेटे की लुल्ली को लौड़ा बनाया माँ ने 2

नमस्कार दोस्तों, आप सभी का फिर से स्वागत है, आपने पिछले भाग(कहानी का पिछला भाग: बेटे की लुल्ली को लौड़ा बनाया माँ ने 1) में पढ़ा कि प्रतिमा अपने बेटे रिशु के साथ घर में अकेली रहती है क्योंकि उसका पति अतुल दूसरे शहर में काम पर हैं, और एक सुबह की छोटी सी घटना से प्रतिमा के मन में अपने बेटे से ही चुदने की तीव्र वासना जाग उठी थी, जिसमें उसने उसके लंड को चूसकर उसके वीर्य तक को पी लिया था, अब आगे की कहानी में देखिए कैसे यह वासना और गहराती जाती है, हर स्पर्श में गर्माहट बढ़ती है, हर नजर में तड़प छिपी होती है, और माँ-बेटे के बीच की हवा कामुक सुगंध से भर जाती है।

प्रतिमा ड्राइंग रूम में दाखिल हुई तो रिशु सोफे पर आराम से बैठा हुआ टीवी के चैनल बदल रहा था, उसकी उंगलियां रिमोट पर तेजी से दौड़ रही थीं मानो वह किसी खोज में लगा हो, वह उसके बिलकुल पास धम्म से बैठ गई जिससे सोफा थोड़ा हिल गया और रिशु के शरीर में एक हल्की सी कंपकंपी दौड़ गई, “सभी चैनलों पर पुरानी घिसी-पिटी फिल्में ही आ रही हैं, कुछ नया नहीं मिल रहा,” रिशु ने चैनल बदलते हुए अपनी माँ की ओर देखे बिना ही कहा, लेकिन उसकी आवाज में एक हल्की सी बैचेनी थी जो प्रतिमा की मौजूदगी से उपजी थी, उसके नथुनों में माँ की देह से निकलती हल्की सुगंध भर रही थी, जैसे कोई फूलों की महक जो उसके मन को और अशांत कर रही थी।

“कोई कॉमेडी लगी है क्या, आज मेरा मूड कॉमेडी देखने का है, जिसमें हंसी-मजाक हो और दिल हल्का हो जाए, प्लीज कोई एक्शन वाली या रोमांटिक मूवी मत लगाना जो और ज्यादा उलझन पैदा करे,” प्रतिमा ने बेटे से और करीब सटते हुए कहा, उसकी सांसों की गर्माहट रिशु के कंधे पर महसूस हो रही थी और उसके शरीर से निकलती हल्की सुगंध, जैसे ताजा फूलों की महक, रिशु के नथुनों में घुस रही थी जिससे उसका मन और अशांत हो रहा था, उसकी त्वचा पर माँ के जिस्म का स्पर्श एक मीठी सी सनसनी पैदा कर रहा था।

“जी सिनेमा पर गोलमाल लगी है, वो ठीक रहेगी,” रिशु ने कहा और फिल्म लगा दी, लेकिन अब उसकी बगल में माँ के जिस्म से निकलती वह गर्म तपिश उसे महसूस हो रही थी, जैसे कोई नरम आग उसके पास सुलग रही हो, और उसकी पेंट में थोड़ा सा नर्म हुआ लंड एक ही झटके में फिर से कड़क होकर फड़फड़ाने लगा, जैसे वह जाग उठा हो और अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहा हो, उसकी नसें फूलकर गर्म हो गईं और हल्की सी चुभन पैदा कर रही थीं।

रिशु ने फिल्म लगाकर सोफे की पीठ से सिर टिका लिया और अपनी टांगें उठाकर सामने रखी टेबल पर फैला दीं, इस हरकत से उसका कड़क लंड पेंट में और ज्यादा उभर आया, एक तंबू की तरह जो हल्के-हल्के हिल रहा था और प्रतिमा की नजरों के ठीक सामने था, उसकी सांसें तेज हो गईं और वह महसूस कर रही थी कि उसका दिल धड़क रहा है, जैसे कोई गर्म लहर उसके शरीर में दौड़ रही हो, लंड की गर्मी हवा में फैलकर उसके चेहरे तक पहुंच रही थी। प्रतिमा ने थोड़ा सा घूमकर रिशु के कंधे पर अपना सिर टिका दिया, जिससे उसका नरम बालों वाला सिर रिशु की गर्दन को छू रहा था और उसकी खुशबू और ज्यादा तेज हो गई, फिर उसने अपनी टांगें मोड़कर अपना पूरा वजन रिशु के ऊपर डाल दिया, जैसे वह पूरी तरह उसके आगोश में समा जाना चाहती हो, उसके जिस्म की गर्मी रिशु के शरीर में उतर रही थी।

वह अपना एक हाथ पीछे घुमाकर रिशु के कंधे पर रख देती है, जहां उसकी उंगलियां हल्के से उसके कंधे की गर्म त्वचा को सहला रही थीं, और दूसरा हाथ सामने उसकी गोद में रख देती है, बिलकुल उसके खड़े लंड से हल्की सी दूरी पर, जहां से वह महसूस कर सकती थी कि लंड की गर्मी हवा में फैल रही है और उसकी उंगलियां खुद-ब-खुद उसकी ओर खिंच रही हैं, लंड की फड़फड़ाहट की हल्की आवाज उसके कानों में पहुंच रही थी। रिशु का लंड अपनी मम्मी के हाथ को इतने करीब पाकर सांप की तरह फन उठाकर फुफकारने लगा, जैसे वह किसी को डसने के लिए पूरी तरह तैयार हो और उसकी नसें फड़क रही हों, गर्मी से भरी हुईं, और हल्की सी महक फैल रही थी।

यहाँ रिशु का लंड डसने के लिए बिलकुल तैयार था, उसकी हर धड़कन में एक तड़प महसूस हो रही थी जैसे वह नरम मांस की तलाश में हो, और दूसरी तरफ उसकी माँ डसवाने के लिए पूरी तरह तैयार थी, उसके शरीर में एक मीठी सी सनसनी दौड़ रही थी जो चूत से शुरू होकर पूरे बदन में फैल रही थी, उसके निप्पल कड़े होकर चुभ रहे थे। दोनों माँ-बेटे टीवी स्क्रीन की ओर देख रहे थे, लेकिन उनकी आंखें असल में कुछ और ही देख रही थीं, जैसे टीवी सिर्फ एक बहाना हो और असली खेल उनके बीच की गर्माहट और स्पर्शों में चल रहा हो, कमरे की हवा में उनकी सांसों की गर्मी मिलकर एक कामुक वातावरण बना रही थी। रिशु का चेहरा सीधा टीवी की ओर था, लेकिन उसका ध्यान अपनी माँ के भारी मुम्मों पर था जो उसके कंधे में गड़ रहे थे, उनकी नरमी और गर्मी उसे महसूस हो रही थी जैसे वे उसे पुकार रहे हों, मुम्मों की हल्की हलचल से एक कंपन उसके कंधे से पूरे शरीर में फैल रही थी।

प्रतिमा का चेहरा रिशु की ओर मुड़ा हुआ था, वह उसके कंधे पर सिर टिकाए मुंह घुमाकर टीवी देख रही थी, लेकिन उसकी नजरें असल में रिशु के चेहरे पर थीं, उसके होंठों की हल्की कंपकंपी और आंखों की चमक को महसूस करते हुए, उसके चेहरे की गर्मी उसे छू रही थी। दोनों टीवी देख रहे थे या फिर देखने का नाटक कर रहे थे, क्योंकि अगर वे देख भी रहे थे तो उनका ध्यान टीवी से ज्यादा एक-दूसरे पर था, जैसे उनके बीच की हवा में कोई अदृश्य चुंबकीय शक्ति काम कर रही हो जो उन्हें और करीब खींच रही हो, और कमरे में हल्की सी गर्म महक फैल रही थी। रिशु अपने कंधे में अपनी मम्मी के भारी मुम्मों को गड़ता हुआ महसूस कर रहा था, उनकी मुलायम गोलाई और गर्म स्पर्श से उसका बदन सुलग रहा था, और वह मन ही मन में ख्वाहिश कर रहा था कि उसकी माँ उसका लंड पकड़ ले, उसकी उंगलियां उसकी कड़क नसों को सहलाएं और उसकी गर्मी को शांत करें, लेकिन वह इंतजार की मीठी पीड़ा में डूबा हुआ था।

प्रतिमा ने उसका लंड तो नहीं पकड़ा, लेकिन उसका हाथ धीरे से थोड़ा नीचे सरक गया और अब खतरनाक हद तक उसके करीब आ गया था, जहां से लंड की गर्म सांसें उसकी हथेली पर महसूस हो रही थीं, जैसे वह उसे छूने की गुहार लगा रहा हो, और उसकी हथेली में हल्की सी गुदगुदी हो रही थी। रिशु को लगा जैसे उसकी माँ उसे जानबूझकर तड़पा रही है, उसकी हर सांस में एक मीठी पीड़ा घुल रही थी, और उसका लंड और भी अकड़ रहा था जैसे वह प्रतिमा के हाथों में जाने के लिए तड़प रहा हो, उसकी नसें फूलकर कड़ी हो गईं और गर्मी से लाल हो रही थीं, हर फड़कन में एक झटका लगता। प्रतिमा धीरे-धीरे से रिशु का पेट सहला रही थी, उसकी उंगलियां उसकी त्वचा पर हल्के-हल्के फिसल रही थीं जैसे कोई नरम रेशम का स्पर्श, और रिशु की सांसें और तेज हो गईं, उसका दिल धड़क रहा था जैसे कोई ड्रम बज रहा हो, पेट की त्वचा पर उंगलियों की गर्म रगड़ से सनसनी दौड़ रही थी।

रिशु बैचेनी में धीरे-धीरे जानबूझकर अपना कंधा हिलाता तो वह प्रतिमा की छाती को दबाता और सहलाता, मुम्मों की नरमी उसके कंधे पर दबाव डालती और एक गर्म लहर उसके शरीर में दौड़ जाती, जैसे कोई电流 का झटका, और मुम्मों की हल्की खुशबू उसके नथुनों में भर जाती। उसका दिल कर रहा था कि वह उसकी छाती को अपने हाथ में पकड़ ले, उन्हें खूब सहलाए, दबाए, चूमे, उन्हें मसल-मसलकर लाल कर दे, लेकिन वह सीधे-सीधे अपनी माँ पर हाथ डालने से डरता था, उसके मन में एक हल्की सी झिझक थी जो उसे रोक रही थी, लेकिन बैचेनी बढ़ती जा रही थी। कुछ देर यूँ ही बैठे रहने के बाद रिशु ने अपना हाथ अपनी माँ के पेट पर रख दिया और टीशर्ट के छोटे होने के कारण उसका जो पेट नंगा था उसे धीरे से सहलाया, उसकी त्वचा इतनी नरम और गर्म थी जैसे दूध की मलाई, और प्रतिमा के बदन में हल्का सा कंपन हुआ जिसे रिशु ने भी महसूस किया, जैसे कोई बिजली की लहर दौड़ी हो, पेट की मुलायम त्वचा पर उंगलियों की रगड़ से एक मीठी सिहरन फैल रही थी।

लेकिन उसने हाथ नहीं हटाया, वह अपनी माँ की नर्म मुलायम त्वचा को महसूस करता पहले की तरह सहलाता रहा, उसकी उंगलियां हल्के दबाव से फिसल रही थीं और एक हल्की सी खुशबू उसकी त्वचा से निकल रही थी जो रिशु को और मदहोश कर रही थी, जैसे कोई जादू चल रहा हो। उधर रिशु की शुरुआत से प्रतिमा ने भी आगे बढ़ने का फैसला किया, उसका हाथ धीरे-धीरे नीचे जाने लगा, जैसे कोई नरम सांप रेंग रहा हो, और रिशु की धड़कनें बढ़ने लगीं, उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था जैसे कोई हथौड़ा मार रहा हो, और कमरे की हवा में उनकी सांसों की गर्मी मिलकर और भारी हो रही थी।

कुछ ही पलों में प्रतिमा की हथेली का पिछला भाग रिशु के लंड के सुपाड़े को छू रहा था, स्पर्श इतना नरम और गर्म था कि रिशु के पूरे शरीर में एक झुरझुरी दौड़ गई, जैसे कोई मीठी आग लग गई हो, सुपाड़े की संवेदनशील त्वचा पर हथेली की गर्मी सोखते हुए। जैसे ही प्रतिमा की हथेली से रिशु का लंड टच हुआ, रिशु अपनी उंगली से अपनी माँ की नाभि कुरेदने लगा, उसकी गहराई में उंगली घुमाते हुए, नाभि की गर्म गहराई में उंगली की नोक फिसलती हुई, और दोनों की सांसें गहरी हो गईं, हवा में उनकी सांसों की आवाजें गूंज रही थीं जैसे कोई संगीत बज रहा हो। यहाँ रिशु का लंड बुरी तरह से झटके खा रहा था, हर झटके में एक गर्म लहर फैल रही थी, वहीं प्रतिमा की चूत रस से सराबोर हो चुकी थी और उसकी कच्छी और जांघें भीगती जा रही थीं, रस की मीठी महक हवा में फैल रही थी, जांघों पर रस की चिपचिपाहट महसूस हो रही थी।

उसके निप्पल अकड़ चुके थे और रिशु के कंधे पर चुभ रहे थे, जैसे छोटे-छोटे नुकीले पत्थर, चुभन की हल्की पीड़ा मीठी लग रही थी, और प्रतिमा थोड़ा सा ऊपर को उठती है तो रिशु को उसकी गर्म सांस अपनी गर्दन पर महसूस होती है, जैसे कोई गर्म हवा का झोंका, सांस की गर्मी गर्दन की त्वचा पर फैलकर सिहरन पैदा कर रही थी। दोनों माँ-बेटे बुरी तरह से उत्तेजित थे, उनके शरीरों से निकलती गर्मी कमरे में फैल रही थी और हवा भारी हो गई थी, पसीने की हल्की महक मिलकर कामुक वातावरण बना रही थी। माँ अपने होंठ रिशु की गर्दन से सटा देती है, नरम और गर्म होंठों का स्पर्श रिशु को सिसका देता है, “उंह्ह्ह मम्मी,” गर्दन की त्वचा पर होंठों की नमी और गर्मी सोखते हुए, और उसकी एक उंगली माँ के पायजामे की इलास्टिक में कमर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पैंटी को टच करती घूमती है, पैंटी की नरम कपड़े की रगड़ महसूस करते हुए, इलास्टिक की कसावट उंगली पर दबाव डाल रही थी।

इस बार माँ कराह उठती है, “आह्ह मम्मी,” अपनी टांग मोड़ कर बेटे के लंड को अपने घुटने से रगड़ने लगती है, घुटने की हड्डी लंड की कड़क नसों पर दबाव डालती हुई, हर रगड़ में एक चरम सुख की लहर दौड़ती। बेटा कच्छी के ऊपर से अपनी माँ की चूत से थोड़ा ऊपर उंगली से गोल गोल घेरे बनाता है, उंगली की नोक गर्म त्वचा पर फिसलती हुई, कच्छी की गर्मी और रस की चिपचिपाहट उंगली पर लग रही थी, और अपनी बाजू माँ की गर्दन के पीछे से घुमाकर उसके कंधे से उसके मुम्मे के बेहद करीब रख देता है, जहां से मुम्मे की गर्मी उसकी बाजू पर महसूस हो रही थी, जैसे कोई गर्म लावा बह रहा हो।

माँ अपने मुम्मों और चूत के इतने करीब बेटे की उंगलियां पाकर मदहोश होने लगती है, उसके बदन में एक मीठी सी लहर दौड़ रही थी जो चूत से शुरू होकर मुम्मों तक पहुंच रही थी, और उसके निप्पल और कड़े होकर चुभने लगे। वह एक तरफ घुटना आगे बढ़ाती है और दूसरी तरफ से अपनी हथेली को और बेटे के लंड को दोनों के बीच दबा देती है, हथेली की गर्मी लंड की नसों में उतर रही थी, लंड की फड़फड़ाहट हथेली पर महसूस हो रही थी। बेटा कराह उठता है, “उफ्फ्फ मम्मी,” माँ बेटे की गर्दन को चूमती हुई उस पर अपनी जीभ रगड़ती है, जीभ की खुरदरापन और गीलापन रिशु की त्वचा पर सनसनी पैदा कर रहा था, गर्दन की त्वचा पर जीभ की नमी फैल रही थी।

बेटे का हाथ सीने पर नीचे होता है और मुम्मों की घाटी में उसकी उंगलियां दस्तक देने लगती हैं, उंगलियों की नरम टिप्स घाटी की गर्म गहराई में स्पर्श करती हुईं, घाटी की मुलायम त्वचा पर उंगलियां फिसल रही थीं। माँ हथेली का दबाव देकर घुटना धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करने लगती है, हर मूवमेंट में लंड पर दबाव बढ़ता-घटता, और लंड की गर्मी घुटने पर महसूस हो रही थी। बेटा लगातार कराहने लगता है, “आह्ह उफ्फ्फ,” वह पायजामे की इलास्टिक को हटाता है, उसकी उंगलियां अंदर तक घुसती जाती हैं और वह अपनी माँ की जांघ को सहलाता है, जांघ की नरम मांसलता और गर्मी उसके हाथों में समा रही थी, जांघ की त्वचा पर उंगलियां फिसलती हुईं।

दूसरे हाथ से मुम्मे के ऊपरी हिस्से पर उंगलियों से लकीरें खींचता है, उंगलियां त्वचा पर फिसलती हुईं, हल्की सी खरोंच पैदा करतीं, मुम्मे की गर्मी उंगलियों में सोखती हुई। माँ अपने होश गंवाने लगती है, ऊंचे-ऊंचे सिसकते हुए अपने घुटने को तेज और तेज बेटे के लंड पर रगड़ती है, हर रगड़ में एक चरम सुख की लहर दौड़ती, और उसके बदन में पसीना छूटने लगा। बेटा माँ के सीने पर उंगलियां और नीचे लाता है, अब उसकी उंगलियां मुम्मों के गिर्द गुलाबी घेरे के पास तक पहुंच चुकी थीं, गुलाबी घेरे की संवेदनशील त्वचा पर उंगलियों की नोक स्पर्श करती हुई।

कामोत्तेजना में डूबी माँ के निप्पल बेटे की उंगलियों को अपने इतने नजदीक पाकर और भी अकड़ जाते हैं, इससे वो उसके हाथ में पहुंचने को बेताब हो बेटे का हाथ पायजामे के अंदर जांघ के जोड़ से होता हुआ जांघ के मध्य तक जा रहा था और जब भी वो ऊपर आता तो हर बार उसका हाथ रस से भीगी कच्छी पर चूत के करीब और करीब होता जाता, रस की चिपचिपाहट उंगलियों पर लगकर एक मीठी सनसनी पैदा कर रही थी।

माँ बेटे की गर्दन को हलके से दांतों से काटती है, दांतों की हल्की चुभन रिशु को और उत्तेजित करती, गर्दन की त्वचा पर दांतों के निशान हल्के से उभर रहे थे। बेटा होशो-हवास खोकर माँ के मुम्मे को अपनी हथेली से ढक देता है लेकिन उसे दबाता नहीं है, हथेली की गर्मी मुम्मे की नरमी से मिल रही थी, मुम्मे की मुलायमियत हथेली में सोखती हुई। माँ अपना सीना उभार अपने बेटे के हाथ में अपना मुम्मा धकेलती है जैसे उसे दबाने के लिए आमंत्रित कर रही हो, सीने की गर्मी बढ़ती जा रही थी, और उसके निप्पल चुभने लगे। बेटा हथेली को कस कर दबा देता है, मुम्मे की मांसलता उंगलियों के बीच दबती हुई, एक मीठी पीड़ा पैदा करती।

माँ उछल पड़ती है और हथेली को सीधा करके लंड को पकड़ लेती है और अपने हाथ को तेजी से आगे-पीछे करने लगती है, लंड की कड़क नसें हथेली में फड़क रही थीं, हर मूवमेंट में गर्मी बढ़ती। बेटा मुम्मे को मसलता हुआ माँ के पायजामे के अंदर अपने हाथ को माँ की चूत की तरफ लाता है जैसे ही बेटे का हाथ बुरी तरह भीगी हुई कच्छी के ऊपर से अपनी माँ की चूत को छूता है तो माँ को लगा जैसे नंगी चूत छू रहा हो, रस की गर्म चिपचिपाहट हाथ पर लग रही थी, चूत की गर्मी और नरमी हथेली में सोखती हुई।

“आह्ह्ह्ह्ह्ह,” माँ के मुख से चीख निकलती है और उसका बदन जोर-जोर से हिलने लगता है, जैसे कोई भूकंप आ गया हो, उसके शरीर से पसीने की बूंदें टपकने लगीं। माँ सखलित हो रही थी वो चीखती हुई बेटे के लंड को जोर से पकड़ कर खींचती है, मसलती है, तो बेटा भी माँ के मुम्मे को मुट्ठी में भींच पूरी चूत को कच्छी के ऊपर से हथेली में समेट लेता है, चूत की गर्मी और रस हथेली में सोखते हुए, मुम्मे की मांसलता मुट्ठी में दबकर फूलती हुई। माँ का बदन ऐंठने लगता है वो ऊपर को उठती है और अपने नम होंठ अपने बेटे के होंठों पर रख देती है, होंठों की नरमी और गर्मी मिलकर एक मीठा स्वाद पैदा कर रही थी, होंठों से निकलती नमी एक-दूसरे पर फैल रही थी।

“मम्मी,” बेटा इस प्रहार को सहन नहीं कर पाता और पायजामे में उसका लंड वीर्य की प्रचंड फुहारें छोड़ने लगता है, वीर्य की गर्म धारें पायजामे को भिगोती हुईं, हर धार में एक सुख की लहर दौड़ती। “बेटा,” माँ होंठ दबाती सिसकती है, उसकी सांसें रिशु के चेहरे पर गर्म हवा की तरह टकरा रही थीं, उसके होंठों पर नमी छोड़ती हुईं। माँ-बेटा दोनों एक-दूसरे को आलिंगन में भर लेते हैं, उनके शरीरों की गर्मी और पसीने की महक कमरे में फैल जाती है, जैसे कोई कामुक सुगंध भर गई हो। दोनों ने आज उस चरम सुख को प्राप्त किया था जिसके बारे में लोग सिर्फ सुनते हैं मगर उसे हासिल नहीं कर पाते, वह सुख जो माँ-बेटे के प्यार की गहराई से निकलता है और उनके स्पर्शों में घुल जाता है, उनके शरीरों से निकलती गर्मी और रस की महक मिलकर एक अनोखा एहसास पैदा कर रही थी। सच में जैसा प्यार एक माँ अपने बेटे को दे सकती है वैसा प्यार एक बेटे को कोई और नहीं दे सकता, वह प्यार जो नरम स्पर्शों, गर्म सांसों और मीठी सिसकियों में छिपा होता है, और उनके आलिंगन में वह प्यार पूरी तरह घुल जाता है।

सखलन के बाद दोनों थकान और संतुष्टि से शांत पड़े रहे, उनके शरीरों से निकलती गर्मी धीरे-धीरे ठंडी हो रही थी और कमरे में एक मीठी सी थकावट की महक फैल गई थी, दोनों में से कोई हिलडुल नहीं रहा था जैसे वे उस पल को जी भरकर महसूस कर रहे हों, उनकी सांसें धीमी हो गईं और बदन की गर्मी कमरे की हवा में घुल गई। सखलन के पश्चात थकान और संतुष्टि से दोनों कुछ ही देर में ऊंघने लगे, उनकी सांसें धीमी और नियमित हो गईं जैसे कोई लोरी गा रही हो, कमरे में शांति छा गई थी। कोई एक घंटा बीत जाने के बाद प्रतिमा की आंख खुली, वह धीरे से पलकें उठाती है और चारों ओर देखती है, कमरे की हल्की रोशनी में सब कुछ शांत लग रहा था, हवा में अभी भी रस और पसीने की हल्की महक बाकी थी। रिशु कुछ देर पहले ही जागा था, वह चुपचाप लेटा हुआ था और उसकी सांसों की आवाज कमरे में गूंज रही थी, उसके चेहरे पर संतुष्टि की चमक थी। प्रतिमा अधमुंदी आंखें ऊपर उठाती है और रिशु की आंखों में देखती है, उसकी आंखों में अभी भी वह प्यार और संतुष्टि की चमक थी जो उनके स्पर्श से उपजी थी, जैसे वह उस पल को फिर से जीना चाहता हो।

प्रतिमा उठने की कोशिश करती है तो उसे एहसास होता है उसके बेटे का हाथ अभी भी वहीँ हैं जहां वो उसके सखलन के समय थे, हाथ की गर्मी अभी भी मुम्मे और चूत पर महसूस हो रही थी जैसे वह उन्हें छोड़ना नहीं चाहता, हाथ की उंगलियां अभी भी त्वचा पर दबाव डाल रही थीं। प्रतिमा बेटे की आंखों में देखकर मुस्कराती है और धीमे से उसका हाथ जो उसके मुम्मे पर था उसको हटाती है, हल्के स्पर्श से एक सिहरन दौड़ जाती है, मुम्मे की त्वचा पर हाथ की रगड़ से एक मीठी सनसनी पैदा होती, और फिर अपने पायजामे में हाथ डाल रिशु के हाथ को जो उसकी चूत को भीगी कच्छी के ऊपर से दबाए हुए था, बाहर निकालती है, हाथ पर रस की चिपचिपाहट अभी भी लगी हुई थी, और उसकी महक हल्के से फैल रही थी।

“सॉरी मम्मी,” रिशु को लगा शायद उसे अपना हाथ वहां से पहले हटा लेना चाहिए था, लेकिन प्रतिमा उसकी बात की ओर कोई ध्यान नहीं देती, वह रिशु की उंगलियों को देखती है जो उसकी चूत के रस से भीगी हुई थीं, रस की मीठी महक अभी भी उंगलियों से आ रही थी, जैसे कोई फूल की खुशबू। उसकी चूत ने कितना रस बहाया होगा उसका अंदाजा उसे अपने बेटे की उंगलियों देखकर हो रहा था जो कच्छी के ऊपर से इतनी बुरी तरह भीगी हुई थी जैसे उसकी चूत के भीतर समाई हुई हों, और वह महक कमरे में हल्के से फैल रही थी, उंगलियों पर रस की चमक चांदनी की तरह चमक रही थी।

वो रिशु की ओर देखती है, रिशु उसे ही देख रहा था, उसकी आंखों में अभी भी वह तड़प थी, जैसे वह और स्पर्श की उम्मीद कर रहा हो। प्रतिमा रिशु के हाथ पर अपने चेहरे को झुकाती है और गहरी सांस लेती है जैसे उसकी खुशबू को सूंघ रही हो, रस की मीठी-नमकीन महक उसके नथुनों में भर जाती है, फिर वो रिशु की ओर देखती है तो उसके होंठों पर मुस्कान फैल जाती है। वो रिशु की आंखों में देखते हुए अपनी जीभ बाहर निकालती है और उसकी उंगलियों को चाटने लगती है, जीभ की खुरदरी नोक उंगलियों पर फिसलती हुई रस का स्वाद सोख रही थी, हर चाट में एक मीठा स्वाद मुंह में घुल रहा था।

रिशु अपनी माँ को हैरत से देख रहा था और उधर उसके पायजामे में फिर से हलचल होने लगी थी, जैसे लंड जाग रहा हो, फड़फड़ाहट शुरू हो गई। प्रतिमा की जीभ एक-एक उंगली को चाटती जा रही थी, हर चाट में एक मीठा स्वाद मुंह में घुल रहा था, वो तभी रुकती है जब रिशु का पूरा हाथ साफ हो चुका था मगर अब उसका लंड खड़ा हो चुका था, फड़फड़ा रहा था, और उसकी गर्मी पायजामे से बाहर निकल रही थी।

प्रतिमा की नजर बेटे के तने लंड पर पड़ती है तो एक शरारती सी मुस्कान उसके होंठों पर फैल जाती है, जैसे वह कोई राज जान गई हो, और उसके होंठ हल्के से कांपते हैं। वो अपना एक हाथ लंड पर रखकर उस पर अपना वजन डालती ऊपर को उठती है और गहरी सांसें लेते रिशु के होंठों को चूमती है, होंठों की नरमी और गर्मी मिलकर एक मीठा एहसास पैदा करती, होंठों से निकलती नमी एक-दूसरे पर फैल रही थी। रिशु भी अपने होंठ प्रतिमा के होंठों पर दबाकर उसके चुम्बन का जवाब देता है, उनके होंठों से निकलती गर्म सांसें एक-दूसरे के चेहरे पर टकरा रही थीं, और एक मीठा स्वाद मुंह में घुल रहा था।

प्रतिमा हल्के से चुम्बन के बाद अपने होंठ हटा लेती है और हंसते हुए रिशु की ओर देखती है जो अपने होंठों पर जीभ घुमाते हुए अपनी माँ की चूत के रस को चाटता है जो प्रतिमा के होंठों ने उसके होंठों पर छोड़ा था, रस का मीठा-नमकीन स्वाद उसकी जीभ पर फैल रहा था, और उसकी जीभ की हलचल से एक हल्की आवाज निकल रही थी। रिशु प्रतिमा की हंसी की आवाज सुनता है तो आंखें खोल देता है, प्रतिमा का चेहरा उसके चेहरे के सामने था, वो शर्मा जाता है, उसके गाल लाल हो गए, और उसकी सांसें तेज हो गईं।

“ओए होए, देखो तो साहब को अभी शर्म आ रही है,” रिशु के गाल और लाल होने लगते हैं, उसकी त्वचा पर गर्मी फैल जाती है। प्रतिमा और भी जोर से हंसती है, “अभी उठो और जाकर थोड़ा समय पढ़ाई कर लो, बाद में रात के खाने की तैयारी करनी है, मैं अभी कपड़े धोने जा रही हूं, तुम भी अपना अंडरवियर और पेंट उतार कर दे देना और कुछ नया पहन लेना,” इतना कह कर प्रतिमा उठती है और उठने के साथ रिशु के लंड को अपनी मुट्ठी में भर लेती है और कस कर मसल देती है, लंड की कड़क नसें मुट्ठी में दबकर फड़क उठतीं, और एक गर्म लहर रिशु के शरीर में दौड़ जाती।

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“आह्ह्ह्ह,” रिशु सिसक उठता है। उसका लंड इस समय पूरे जोश में था, जंग लड़ने के लिए बिलकुल तैयार मगर अभी उसे इंतजार करना पड़ेगा, उसकी गर्मी अभी और बढ़नी थी, और फड़फड़ाहट से एक हल्की आवाज निकल रही थी। अपनी माँ को जाते हुए रिशु देखता है तो अपने लंड को बड़े प्यार से सहलाता है, “बस थोड़ा सा सब्र कर जल्द ही तेरी मन की मुराद पूरी होने वाली है,” लंड ने एक जोर का झटका मारा जैसे रिशु की बात से उसे अत्यंत खुशी मिली हो, और उसकी नसें फूलकर और गर्म हो गईं, झटके की लहर पूरे शरीर में फैल गई।

रिशु अपनी पेंट और अंडरवियर उतारता है और एक इलास्टिक का पायजामा पहन लेता है, लेकिन उसे बहुत शर्म आ रही थी अपनी माँ को अपने वीर्य से खराब कपड़े देने में, वीर्य की महक अभी भी उनमें बसी हुई थी और चिपचिपाहट महसूस हो रही थी, इसलिए वो उन्हें गोल करके इकट्ठा कर देता है और अपनी माँ के कमरे में जाता है जहां प्रतिमा अपने कमरे से अटैच्ड बाथरूम में कपड़े धो रही थी, कमरे में साबुन की महक फैली हुई थी और पानी की धारा की आवाज गूंज रही थी।

रिशु जैसे ही बाथरूम में पैर रखता है सामने का नजारा देखकर उसके होश गुम हो जाते हैं, जैसे कोई सपना साकार हो गया हो, कमरे में हल्की भाप फैली हुई थी। सामने प्रतिमा रिशु की तरफ पीठ करके खड़ी थी, उसके बदन पर कपड़ों के नाम पर एक काली कच्छी थी जो रस से भीगी हुई चमक रही थी, उसकी पायजामा और टीशर्ट उसके पैरों के पास फर्श पर पड़े हुए थे जहां से हल्की गर्मी की भाप उठ रही थी, वो नल चलाकर बाल्टी में पानी भर रही थी, पानी की धारा की आवाज कमरे में गूंज रही थी और बाल्टी में पानी गिरने की छप-छप सुनाई दे रही थी।

रिशु का ध्यान अपनी माँ की गर्दन से होता हुआ नीचे की ओर आता है, गर्दन की नरम त्वचा जहां से बाल लहरा रहे थे, बालों की हल्की हलचल से एक मीठी खुशबू फैल रही थी। उसने अभी भी अपने बालों में रबर डाली हुई थी, बाल आसमान में बादल की तरह मंडरा रहे थे, उनकी हल्की लहराहट से हवा में खुशबू फैल रही थी। ‘उफ्फ्फ,’ कितनी गोरी थी, एकदम दूध के जैसे, कहीं पर एक निशान तक नहीं था, त्वचा इतनी चिकनी कि लगता जैसे रेशम हो, और हल्की चमकती हुई।

रिशु पहली बार अपनी माँ को इस हालत में देख रहा था, उसके बाल उसकी कमर पर उसके नितंबों से थोड़ा सा ऊपर तक आ रहे थे, बालों की हल्की लहराहट कमर की वक्रता को छू रही थी, और बालों की खुशबू रिशु के नथुनों में भर रही थी। कंधों से नीचे को आते हुए उसकी कमर अंदर को बल खाकर पतली हो रही थी और फिर थोड़ा नीचे जाकर बाहर को बल खाते हुए उसके नितंबों के रूप में फैल जाती थी, जैसे कोई परफेक्ट आकार की मूर्ति हो, कमर की गर्मी और वक्रता रिशु को खींच रही थी।

कच्छी के अंदर से झांकती उसकी उभरी गोल मटोल गांड रिशु को पुकार रही थी, गांड की गोलाई इतनी कसी हुई कि लगता जैसे छूने पर उछल आएगी, और हल्की हलचल से कंपन पैदा हो रही थी। उसके नितंबों को चूमते हुए उसकी कच्छी नितंबों पर खूब कसी हुई थी और नितंबों की घाटी में थोड़ा सा अंदर की ओर समाई हुई थी, जहां से रस की महक हल्के से आ रही थी, घाटी की गहराई में कच्छी की कपड़े की रगड़ महसूस हो रही थी। रिशु का गला सूख गया, उसके गले से आवाज नहीं निकल रही थी, उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, और सांसें तेज हो गईं। उधर बाल्टी आधी पानी से भर जाती है, प्रतिमा नीचे झुक जाती है, टांगों के बीच में से उसे कच्छी पर एक बहुत बड़ा गीला धब्बा दिखाई देता है, धब्बा इतना बड़ा कि चूत की पूरी आकृति उभर आई थी, और रस की चमक से वह दृश्य और कामुक लग रहा था।

यहाँ उसकी कच्छी भीगी होने के कारण इस तरह चूत से चिपकी हुई थी कि रिशु चूत के होंठों को और उनके बीच हल्की सी दरार तक को देख सकता था, होंठों की गुलाबी रंगत और रस की चमक से वह दृश्य और कामुक लग रहा था, और रस की मीठी महक हवा में फैल रही थी। मगर जिस चीज ने सबसे ज्यादा उसका ध्यान अपनी ओर खींचा वो था प्रतिमा का मुम्मा जो कि झुकने और एक तरफ को मुड़ने के कारण नीचे को झूलता हुआ रिशु की आंखों के सामने था, पूरा तरह से बेपर्दा, मुम्मे की गोलाई हिल रही थी और निप्पल हवा में कांप रहे थे, उनकी गर्मी और नरमी रिशु को बुला रही थी।

“उंह्ह्ह्ह्ग्ग्ग,” ना चाहते हुए भी रिशु के होंठों से तेज सिसकी निकल जाती है, जैसे कोई दबी हुई आह बाहर आई हो, उसके मुंह से लार टपकने लगी।

“ओह बेटा तुम, मुझे पता ही नहीं चला, इधर अपने कपड़े डाल दो, मैं धो देती हूं,” प्रतिमा अनजान बनते हुए बोली जैसे रिशु के आने का पता ही न चला हो, लेकिन उसकी आवाज में एक हल्की सी शरारत थी, और उसके होंठ हल्के से मुस्करा रहे थे। वो उठकर खड़ी हो जाती है, उसके मुम्मे हल्के से हिलते हैं, और हवा में उनकी गर्मी फैलती है।

रिशु अपनी माँ के करीब जाता है, इतना करीब कि उसकी गांड उसके अकड़े लंड से मात्र एक हाथ की दूरी पर थी, लंड की गर्मी हवा में फैल रही थी, और गांड की मुलायमियत उसे खींच रही थी। उस समय उसकी एक ही ख्वाहिश थी अपनी माँ की कच्छी उतार कर उसको उसी तरह घोड़ी बनाने का जैसा वो अभी-अभी बनी हुई थी और फिर उसकी चूत में अपना लंड डालकर उसको चोदने का, लेकिन अभी इंतजार करना था, उसकी सांसें तेज थीं, और दिल की धड़कन कानों में गूंज रही थी। लेकिन अभी नहीं, कम से कम अभी तो हरगिज नहीं, उसे अभी इंतजार करना होगा मगर वो अपनी माँ की नंगी गांड को एक बार छूना जरूर चाहता था, उसकी नंगी पीठ को सहलाना चाहता था, पीठ की चिकनी त्वचा उसे बुला रही थी, और उसकी गर्मी महसूस हो रही थी।

वो अपना हाथ अपनी माँ के गोल मटोल उभरे हुए दुधिया नितंब की ओर बढ़ाता है, उत्तेजना के मारे वो बुरी तरह से कांप रहा था, उसकी उंगलियां लगभग अपनी माँ के नितंब को छू रही थीं, नितंब की गर्मी उंगलियों पर महसूस हो रही थी, और एक हल्की सी कंपकंपी दौड़ रही थी।

“बेटा कहाँ खो गए, इधर डाल दो कपड़े,” प्रतिमा की आवाज से रिशु जैसे नींद से उठता है और अपना हाथ तुरंत वापस खींच लेता है मगर घबराहट में उसकी उंगलियां धीरे से प्रतिमा के नितंबों को सहला देती हैं, नरम मांस की मुलायमियत उंगलियों में समा जाती है, और एक मीठी सनसनी दौड़ जाती।

“हां मम्मी,” रिशु अपने कपड़े फर्श पर फेंक देता है, प्रतिमा थोड़ा सा घूमती है और रिशु को देखती है जो उसके घूमने के कारण नजर आ रहे मुम्मे को देखते हुए अपने होंठों पर जीभ फेर रहा था, मुम्मों की गोलाई और निप्पलों की कड़कता उसे मदहोश कर रही थी, और उसके मुंह में पानी भर रहा था। डार्क गुलाबी रंग का निप्पल अकड़ कर कठोर हो चुका था, रिशु उसे होंठों में भरकर चूसना चाहता था, काटना चाहता था, उसका स्वाद कल्पना में मीठा लग रहा था।

इसी बीच प्रतिमा फर्श पर पड़े रिशु के कपड़े उठाने के लिए फिर से झुकती है तो रिशु का लंड उसकी गांड में धंसता चला जाता है, लंड की कड़क गर्मी गांड की नरम घाटी में घुसती हुई, गांड की मुलायमियत लंड की नसों में सोखती हुई। “अरे यह क्या,” प्रतिमा चौंकने का नाटक करती है, “नितंबों में क्या चुभ रहा है,” कहकर प्रतिमा सीधी हो जाती है और रिशु की तरफ घूम जाती है, उसके मुम्मे हल्के से हिलते हैं, और हवा में उनकी गर्मी फैलती है, मुम्मों की हलचल से एक हल्की आवाज निकलती।

अब माँ-बेटा आमने-सामने थे, माँ अपने बेटे के सामने केवल एक भीगी कच्छी में थी जो रस से चिपचिपी होकर चूत के होंठों को स्पष्ट दिखा रही थी, रस की महक हल्के से फैल रही थी, और चूत की गर्मी हवा में महसूस हो रही थी। रिशु की नजर पहली बार अपनी माँ के नंगे मुम्मों पर पड़ती है, ‘उफ्फ्फ,’ क्या गोल मटोल भरे मुम्मे थे, सीधे तने और उन पर गुलाबी रंग के कड़क तीखे निप्पल, रिशु सांस लेना भूल गया था, उसके सीने में धड़कनें तेज हो गईं, और मुंह सूख गया।

“फिर खड़ा कर दिया, पढ़ने को कहा था, पीछे चुभो रहा है,” प्रतिमा झूठ-मूठ का नाटक करती कहती है, जैसे बेटे का लंड खड़ा होना उसे पसंद नहीं आया हो, लेकिन उसकी आंखों में शरारत चमक रही थी, और होंठ हल्के से मुस्करा रहे थे।

“सॉरी मम्मी, पढ़ता हूं,” रिशु हड़बड़ाकर बाहर को भागता है, उसकी सांसें तेज और पैर कांप रहे थे।

“छेड़ना मत, सुबह से मेहनत की, रात को फिर मेहनत करनी है,” रिशु के पीछे उसकी माँ चिल्ला कर कहती है, बेटे की हालत देख प्रतिमा की हंसी रोके नहीं रुक रही थी, वो आज कुछ ज्यादा ही शरारती बन रही थी, उसे बेटे को छेड़ने में, उकसाने में एक अलग ही लुत्फ प्राप्त हो रहा था, जैसे कोई खेल खेल रही हो, और उसकी हंसी की आवाज कमरे में गूंज रही थी।

रिशु कमरे में जाते ही अपनी पेंट नीचे करता है और लंड मुट्ठी में भरकर मसलता है, लंड की गर्म नसें मुट्ठी में फड़कती हुईं, हर मसलने में एक सुख की लहर दौड़ती। “हाए मम्मी,” उसे प्रतिमा के तने हुए मुम्मे याद आते हैं, उसे गुलाबी रंग के तीखे निप्पल याद आते हैं, उनकी कड़कता और गर्मी की कल्पना से उसका बदन सुलग उठता है, जैसे आग लग गई हो। “उम्म्म मम्मी,” उसे प्रतिमा की उभरी हुई गोल मटोल कसी हुई गांड याद आती है, गांड की नरम मुलायमियत और गोलाई उसे पुकारती सी लगती है, और उसकी महक मन में बसी हुई।

“आआह्ह्ह ऊफ्फ्फ,” उसे अपनी माँ की भीगी पैंटी से झांकती चूत की याद आती है, रस की चमक और होंठों की गुलाबी रंगत, और रस की मीठी महक। उसे याद आता है कैसे पैंटी उसकी चूत के होंठों को चूम रही थी, कैसे वो उसके होंठों के बीच की लकीर के अंदर को घुसी हुई थी, महक अभी भी उसके मन में बसी हुई थी, और कल्पना में वह स्वाद मीठा लग रहा था। रिशु अपना हाथ लंड पर चलाता हुआ मुट्ठ मारने लगता है, हर मूवमेंट में एक सुख की लहर दौड़ती, लंड की गर्मी हाथ में फैलती।

मगर तभी उसे याद आता है कि उसकी मम्मी ने उसे क्या कहा था, उसे अपने लंड को आराम देना चाहिए था, लेकिन वो खुद पर काबू नहीं कर सकता था, प्रतिमा ने जो शो उसे दिखाया था उसे देखने के बाद उसकी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई थी, जैसे आग लगी हो, और हर कल्पना में वह आग और भड़क रही थी। वो फिर से मुट्ठ मारने लगता है, लंड की गर्मी हाथ में फैल रही थी, और सुपाड़े से प्रीकम की बूंदें निकल रही थीं।

उसके कानों में अपनी माँ के बोल फिर से गूंजते हैं, ‘रात को इसे फिर से बहुत मेहनत करनी है,’ रिशु ना चाहते हुए भी अपने लंड पर से अपना हाथ हटा लेता है, लेकिन लंड अभी भी झटके मार रहा था, हर झटके में एक पीड़ा की लहर दौड़ती, और गर्मी फैलती। वो सुबह का दो बार झड़ चुका था और अगर उसे अब मुट्ठ मारी तो हो सकता है उसका लंड इतना थकने के बाद रात को जवाब दे जाए, और अगर उसे रात को जैसा उसकी माँ ने कहा था कि बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और जो दिन भर की घटनाओं को देखते हुए लगभग तय भी लग रहा था तो कहीं वो अपनी मम्मी के सामने शर्मिंदा ही न हो जाए, उसकी सांसें तेज थीं, और मन में डर और उत्तेजना का मिश्रण था। रिशु अपने लंड से हाथ हटा लेता है, वो बुरी तरह से झटके मार रहा था, हर झटके में एक गर्म लहर फैल रही थी।

रिशु तकिए पर सिर रखकर अपने झटके मारते हुए लंड को देखता है, लंड का फूला हुआ सुपाड़ा देखते हुए वो कल्पना करता है कि उसका वो सुपाड़ा अपनी माँ की गुलाबी चूत में घुस रहा है और उसकी माँ अपने बेटे के लंड को अपनी चूत में लेते हुए सिसक रही है, सिसकियों की आवाज उसके कानों में गूंजती है, और चूत की गर्मी की कल्पना से उसका बदन सिहर उठता। वो पूरी नंगी है उसके मुम्मे उभरे हुए हैं, रिशु लंड को चूत में घुसाते उन्हें पकड़ लेता है और कस कर धक्का मारता है, धक्के की कल्पना से उसका बदन सिहर उठता, मुम्मों की नरमी हाथों में महसूस हो रही थी।

“आह्ह्ह उफ्फ्फ बेटा,” उसके कानों में अपनी माँ की सिसकी गूंजती है। वो कल्पना मात्र से इतना उत्तेजित हो उठा था कि उसके हाथ फिर से अपने लंड पर पहुंच जाते हैं और वो उसे मसलने लगता है, लेकिन अगले ही पल वो फिर से अपने लंड पर से हाथ हटा लेता है और झटके से उठ खड़ा होता है, उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, और सांसें तेज हो गईं।

“मुझे खुद पर काबू पाना है, मुझे खुद पर काबू पाना है, उफ्फ्फ मम्मी यह तुमने मुझे क्या कर दिया है,” रिशु खुद को समझा रहा था, उसकी सांसें अभी भी तेज थीं, और बदन में गर्मी फैली हुई थी। उधर प्रतिमा मस्ती चढ़ी हुई थी, उसे अपने अंदर आज इतनी ऊर्जा, इतना जोश महसूस हो रहा था कि उसके पैर धरती पर नहीं लग रहे थे, जैसे वह हवा में उड़ रही हो, उसके बदन में एक मीठी सी सनसनी दौड़ रही थी। वो बेटे के स्पर्श मात्र से झड़ गई थी और वो स्पर्श भी सीधा नहीं था, उसने उसकी चूत को कच्छी के ऊपर से सहलाया था, उसके मुम्मों को टीशर्ट के ऊपर से मसला था, हाए क्या होगा जब वो उसकी नंगी चूत को छुएगा, उसकी उंगलियां चूत की गर्म गहराई में घुसेंगी, उसे सहलाएंगी, “उंह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह,” जब वो अपने होंठ उसकी चूत पर रगड़ेगा, जब उसकी जीभ उसकी चूत को चाटेगी, जब उसकी जीभ उसके दाने को सहलाएगी, “आह्ह्ह उंह्ह्ह,” और फिर जब वो अपना लंड उसकी चूत के होंठों पर रखेगा, उसका लंड उसकी चूत की पंखुड़ियों को फैलाएगा और फिर उसका वो मोटा लंबा लौड़ा उसकी चूत में घुसता चला जाएगा, घुसता चला जाएगा, “बेटा आह्ह्ह आह्ह्ह,” वो अपने लंड से उसकी पूरी चूत भर देगा, उसका बेटा अपने मोटे लंबे लंड से अपनी माँ की चूत को भर देगा, उसे इतना फैला देगा जितना उसका बाप आज तक नहीं फैला पाया, फिर उसका बेटा उसे चोदेगा, “बेटा आह्ह्ह हाए ईईई,” उसका बेटा अपना लंड उसकी चूत में अंदर बाहर करते हुए उसे चोदेगा, उसका बेटा अपनी माँ को चोदेगा, और माँ बेटे से चुदवाएगी, उसका लंड अपनी चूत में लेकर उससे तब तक चुदवाएगी जब तक वो झड़ नहीं जाता, जब तक वो अपने गर्म वीर्य से अपनी माँ की चूत को भर नहीं देता, “मेरे लाल, मेरा बेटा, हे भगवान,” प्रतिमा झड़ रही थी, उसके हाथ उसके अंगों को मसल रहे थे और सखलित होते उसके दिल में तीव्र इच्छा उठती है कि उसका बेटा उस समय उसके अंगों को मसले, अगर रिशु उस समय बाथरूम में होता तो सही इस समय उसका लंड उसकी चूत में होता और प्रतिमा बेटे से चुद रही होती, चुदाई की कल्पना से उसका बदन ऐंठ रहा था, और रस की धारें जांघों पर बह रही थीं, महक कमरे में फैल गई।

रात तक इंतजार करना उसके लिए बहुत भारी था, उसका दिल कर रहा था वो उसी समय अपने बेटे के कमरे में जाए और उससे चुदवा ले, लेकिन वह जानती थी कि इंतजार से मजा दोगुना हो जाएगा, और उसकी चूत की सनसनी और बढ़ती। धीरे-धीरे सखलन के ठंडा पड़ने के बाद प्रतिमा खुद पर काबू पाने में सक्षम हुई, ठंडे पानी से नहाकर और सखलन के पश्चात उसकी गर्मी थोड़ी सी कम हो गई थी, पानी की ठंडक उसके बदन को शांत कर रही थी, और त्वचा पर ठंडी बूंदें टपक रही थीं।

उसे खुद को व्यस्त करना होगा, तभी वो चुदवाने की अपनी जबरदस्त इच्छा को दबा सकेगी, वैसे भी शाम तक छह बज चुके थे, रात का खाना बनाने का समय हो चुका था, और किचन से बर्तनों की आवाजें आने लगीं। वो शावर से बाहर निकलती है और तौलिए से बदन पोंछती है, तौलिए की नरम रगड़ से उसके निप्पल फिर कड़े हो जाते हैं, और एक सिहरन दौड़ जाती। गोरे जिस्म से पानी पोंछते हुए प्रतिमा यही सोच रही थी कि वो क्या पहने, वह कुछ ऐसा पहनने की फिराक में थी जिससे वो रिशु की उत्तेजना को बढ़ाए, उसकी भावनाओं को भड़काए, उसके मन में आग लगाए, और उसकी नजरें उस पर टिक जाएं।

उसके पास कुछ पारदर्शी कपड़े थे मगर नहीं वो कुछ और पहनना चाहती थी, कुछ जो बेटे को और तड़पाए, जैसे कोई जादू। अचानक उसका ध्यान बाल्टी में पड़े धोए कपड़ों पर जाता है तो उसके होंठों पर मुस्कान फैल जाती है, उसे अपनी समस्या का हल मिल गया था, और उसके मन में शरारत की चिंगारी जल उठी।

रिशु कंप्यूटर पर नजरें गड़ाए बैठा था जब उसे किचन से बर्तन खटकने की आवाजें आती सुनाई देने लगती हैं, बर्तनों की धातु की खनक और पानी की छप-छप उसके कानों में पहुंच रही थी, नाजाने रिशु क्या देख रहा था, या क्या पढ़ रहा था कि वो किचन में जाने की अपनी बलवती इच्छा को कुछ देर दबाने में सफल हो गया, स्क्रीन की नीली रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। स्क्रीन पर जो कुछ भी था शायद रिशु के खास काम का था, रिशु पूरा ध्यान देकर उसे समझने की कोशिश कर रहा था, उसकी आंखें स्क्रीन पर जम गईं थीं। सात बजे के करीब रिशु नीचे आता है और सीधे रसोई में जाता है, जहां से मसालों की तीखी खुशबू और सब्जियों की सिजलने की आवाज आ रही थी।

“आ गया मेरा राजा बेटा, क्या कर रहा था,” प्रतिमा खाना बनाते हुए बिना दरवाजे की तरफ देखते बोली, लेकिन उसकी आवाज में एक हल्की सी उत्सुकता थी, जब रिशु इतनी देर से नीचे नहीं आया था तो उसके मन में चिंता के बादल घिरने लगे थे, और वह बार-बार दरवाजे की ओर देख रही थी। “हां मम्मी, वो लैपटॉप पर पढ़,” रिशु से बात पूरी नहीं होती, सामने उसकी मम्मी उसके कपड़े पहने खड़ी थी, प्रतिमा ने वही अंडरवियर और शर्ट पहनी थी जो रिशु उसे धोने के लिए देकर आया था, शर्ट के बटन खुले होने से मुम्मों की घाटी दिख रही थी, और अंडरवियर की कसावट से गांड की गोलाई उभरी हुई थी।

“उम्म्म, तुम्हें देखकर लगता है तुम्हें मेरी ड्रेस खूब पसंद आई है,” प्रतिमा रिशु को मुंह खोले खुद को घूरते हुए देखती बोली, “तुम्हारे कपड़े धोकर और सुखाकर जब मैंने इन्हें सुंघा तो इनसे इतनी प्यारी खुशबू आई कि मैंने इन्हें ही पहनने का फैसला कर लिया, तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं है न,” प्रतिमा बेटे की हाफ पेंट में बना हुआ उभार देखते हुए कहती है, उभार अपनी माँ की शर्ट के खुले बटनों और उनके बीच का नजारा देख लगातार बढ़ रहा था, और पेंट की कपड़े से हल्की रगड़ की आवाज आ रही थी।

“मुझे कोई आपत्ति नहीं है और तुम इनमें बहुत सुंदर लग रही हो और, और,” रिशु अपनी बात पूरी करने से कतराता है, उसकी सांसें तेज हो गईं।

“और, और क्या, बोलो ना, चुप क्यों हो गए, और क्या,” प्रतिमा जैसे बेताब थी उसकी बात सुनने के लिए, उसकी आंखें चमक रही थीं।

“और और आप इनमें बहुत सेक्सी भी लगती हो,” रिशु ने दिल तगड़ा करके धीमी आवाज में कहा, उसकी आवाज में कंपन था।

“ओह्ह्ह, सच में मैं सेक्सी दीखती हूं या फिर मुझे बहलाने के लिए कह रहे हो,” प्रतिमा रिशु से भी धीमे स्वर में बोली जैसे वो कोई गुप्त राज साझा कर रहे हों, उसकी सांसें हल्के से रिशु के चेहरे पर टकरा रही थीं।

“सच मम्मी, आप सच में बहुत सेक्सी दिख रहे हो, बहुत बहुत सेक्सी दिख रहे हो,” रिशु जोश में आ जाता है, उसकी आंखें माँ के बदन पर घूम रही थीं।

प्रतिमा की हंसी छूट जाती है, उसकी हंसी की मधुर आवाज कमरे में गूंजती है। रिशु अपने जोशीलेपन पर थोड़ा शर्मिंदा हो जाता है, उसके गाल लाल हो गए। प्रतिमा फिर से मुड़कर खाने की ओर ध्यान देने लगती है, सब्जियों की सिजलने की आवाज और मसालों की महक बढ़ती जाती है। रिशु अपनी माँ की गांड को अपने अंडरवियर में चमकते देखता है, अंडरवियर की कसावट से गांड की हर हलचल महसूस हो रही थी। उसका अंडरवियर Y-शेप का था और वो प्रतिमा की गांड के उस तरह दर्शन नहीं कर सकता था जिस तरह कुछ देर पहले उसकी V-शेप कच्छी में किए थे, लेकिन फिर भी जो नजारा उसके सामने था वो भी कम नहीं था, गांड की गोलाई हल्के से हिल रही थी।

उसका अंडरवियर प्रतिमा के नितंबों को कस कर उनके आकार को खूब अच्छे से दर्शा रहा था, उनकी गोलाई, उनकी मोटाई और उनके बीच की घाटी, ‘उंह्ह्ह,’ बहुत जानलेवा गांड थी उसकी माँ की, नितंबों की मुलायमियत और गर्मी उसे बुला रही थी। नीचे उसकी मोटी गोरी जांघें कितनी लुभावनी थीं, जांघों की त्वचा चिकनी और चमकदार, और ऊपर से उस शरारती माँ ने शर्ट के दो बटन खुले रख छोड़े थे इससे उसके मुम्मों का ऊपरी भाग और उनके बीच की खाई काफी हद तक नंगी थी, खाई की गहराई में मंगलसूत्र की काली चमक दिख रही थी।

रिशु प्रतिमा के पास जाकर खड़ा हो जाता है, वो अपनी माँ के पीछे खड़ा उसकी गांड को देख रहा था, गांड की हर हलचल से एक हल्की आवाज निकल रही थी। प्रतिमा को रिशु की मौजूदगी का पूरा एहसास था, उसकी सांसें तेज हो गईं। रिशु की नजर माँ की उभरी हुई गांड पर जमी हुई थी और उसका हाथ स्वयं ही उठता हुआ प्रतिमा की गांड की तरफ बढ़ता है जैसे उसका अपने हाथ पर कोई कंट्रोल न हो, उंगलियां कांप रही थीं।

“उंह्ह्ह,” प्रतिमा गांड पर बेटे के हाथ को महसूस करते ही ‘आह’ सी भरती है, हाथ की गर्मी गांड की त्वचा में सोखती हुई। रिशु नितंब की गोलाई पर अपना हाथ फेरता है, उंगलियां नरम मांस पर फिसलती हुईं।

“तुम सच में सेक्सी हो माँ, इतनी सेक्सी कि मैं तुम्हें बता नहीं सकता,” माँ की मादक गांड ने रिशु के दिल पर वार किया था, वो फिर से होश खोने लगा था, गांड की मुलायमियत उंगलियों में समा रही थी।

“उम्म्म,” प्रतिमा फिर से थोड़ी आह भरती है, “मुझे इसका एहसास बहुत प्यारा लग रहा है, मेरी पैंटी से कहीं ज्यादा आरामदायक है, और, और,” प्रतिमा थोड़ा पीछे हटती है तो उसका बेटा उसकी गांड से हाथ हटा लेता है और उसकी कमर को थाम लेता है, कमर की गर्मी हाथों में फैलती। प्रतिमा तब तक पीछे होती है जब तक उसकी उभरी गांड अपने बेटे के लंड को चूम नहीं लेती, गांड की नरम मुलायमियत लंड की कड़कता से मिलती। प्रतिमा अपनी गांड को हलके से लंड पर दबाती है और उसका बेटा अपने लंड को माँ की गांड पर, लंड की गर्मी गांड में सोखती।

“उंह्ह्ह हाए,” प्रतिमा बेटे की तरफ मुंह घुमाती है, “और मैंने सच कहा था, तुम्हारे अंडरवियर में से सच में बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी, शायद तुमने इसमें कुछ गिराया था, मुझे लगता है दोपहर को कुछ गिराया होगा,” प्रतिमा की बात से रिशु के गाल लाल होने लगते हैं, उसके बदन में गर्मी फैल जाती।

“बता ना क्या गिराया था तूने अपने अंडरवियर में,” प्रतिमा बेहद कामुक आवाज में लौड़े पर गांड दबाती बोली, गांड की रगड़ से लंड फड़क उठता।

“तुम भी ना मम्मी,” रिशु और भी शर्मा जाता है, लेकिन वो अपनी कमर पीछे नहीं हटाता बल्कि उसे हल्का सा और दबाता है, उसका लंड कूल्हों की खाई के बीच धंसता जा रहा था, खाई की गर्मी लंड को घेर रही थी। प्रतिमा को एहसास होता है कि सिचुएशन फिर से पहले वाली होती जा रही है, चूत पूरी गीली हो चुकी थी, रस की चिपचिपाहट जांघों पर महसूस हो रही थी।

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खुद उसकी चूत पूरी गीली हो चुकी थी, लेकिन अभी सही समय नहीं था अभी उन्हें कुछ देर इंतजार करना था इसीलिए वो जिस तरह पीछे को हुई थी उसी तरह आगे को बढ़ गई, रिशु का लंड उसके नितंबों की घाटी में से निकला तो बुरी तरह से झटके मार रहा था, हर झटके में एक गर्म लहर फैलती। “सलाद काटो, सब्जी बन गई है, मैं रोटी पका लेती हूं,” प्रतिमा बेटे का उतरा हुआ चेहरा देखकर चहकती है, “खाली पेट मेहनत नहीं की जाएगी, पहले पेट पूजा फिर बाकी खाने के बाद।”

“जी मम्मी,” रिशु बुझे मन से बोला, “उफ्फ्फ कैसी जालिम औरत है मेरी मम्मी,” जितना उस समय रिशु को अपनी माँ पर प्यार आ रहा था उतना गुस्सा भी, लेकिन उसके मन में इंतजार की मीठी तड़प थी। प्रतिमा रिशु के उतरे चेहरे को देखती है तो वो मुंह घुमा कर होंठ काटती हंसती है “बेचारा,” अपने मन में दोहराती है, उसकी हंसी की मधुर आवाज हल्के से गूंजती है।

रिशु सलाद को काटने लगता है मगर वो कनखियों से बीच-बीच में अपनी माँ को देखता रहता है, जिसकी रोटी पकाते हुए कमर कुछ ज्यादा ही हिल रही थी, साथ ही हिल रहे थे उसके चूतड़, टाइट गोल मटोल चूतड़ जो बाहर को बेहद गोलाई में उभरे हुए थे, हर हिलने में एक हल्की आवाज निकलती और महक फैलती। किसी जवान लड़की जैसी अपनी माँ की कसी करारी गांड को देखते हुए उसके मुंह में, नहीं उसके लंड में पानी आ गया था, लंड की नसें फूल रही थीं। उसने कुछ देर पहले जब अपना लंड उसकी गांड में चुभोया था और खुद उसकी माँ ने भी अपनी गांड को वापस उसके लंड पर दबाया था तो वो ऐसा जबरदस्त एहसास था, गांड की नरम गर्मी लंड में सोखती हुई।

खुद उसने पेंट पहनी हुई थी और उसकी माँ ने उसका अंडरवियर पहना हुआ था मगर फिर भी वो प्रतिमा के नितंबों की तपिश अपने लंड पर दोनों कपड़ों के अवरोध के बावजूद बखूबी महसूस कर सकता था, कैसी मुलायम सी, नर्म सी, कोमल सी गांड महसूस हुई थी, जैसे रेशम का स्पर्श, ‘हाए घोड़ी बनाकर मम्मी की मारने में कितना मजा आएगा,’ रिशु अपनी सोच में गुम था, कल्पना में गांड की गर्मी महसूस कर रहा था।

“सलाद काटने की तरफ ध्यान दो बरखुरदार, अपनी नजरें और दिमाग को अपने सामने सलाद पर रखो वरना उंगली कट जाएगी,” प्रतिमा बेटे को चिताती है तो रिशु शर्मिंदा हो जाता है, उसके गाल लाल हो गए। मगर वो करे भी तो क्या, वो खुद ही उसकी ऐसी हालत के लिए जिम्मेदार थी, उसकी शरारतों से उसका मन भटक रहा था। खैर रिशु अपनी नजर कटाई बोर्ड पर जमाने का प्रयास कर सलाद काटता है और उधर प्रतिमा की रोटी पक चुकी थी, रोटियों की गर्म महक रसोई में फैल गई।

“देखो तुमसे सलाद भी नहीं काटा गया और मैंने रोटी भी बना दी है, अगर एक दिन तुम्हें खाना बनाना पड़े, तुम तो पूरा दिन निकाल दोगे,” प्रतिमा बेटे को छेड़ती है, उसकी आवाज में शरारत थी।

“मम्मी आप भी ना, मैं कौन सा खाना बनाने का काम करता हूं, थोड़े दिन करूंगा फिर आप देखना कितना फास्ट फास्ट करता हूं,” रिशु बोला, लेकिन उसकी नजरें माँ के बदन पर थीं।

“अरे अगर नजर सामने रखेगा तो ही काम करेगा ना, अगर मेरी कमर के बल गिनता रहेगा तो क्या काम करेगा,” प्रतिमा की छेड़छाड़ और भी तीखी हो जाती है, वह जानबूझकर कमर हिला रही थी।

“वैसे मुझे मालूम है, शुरू-शुरू में आदमी को सिखाने में समय लगता है, लेकिन मैं देखूंगी कुछ दिनों के या कुछ रातों के एक्सपीरियंस के बाद तू कितना फास्ट फास्ट काम कर सकता है,” प्रतिमा का असल मतलब क्या था, रिशु बखूबी समझता था शायद इसीलिए उसके गाल लाल हो रहे थे, और उसका दिल तेज धड़क रहा था। वो अपनी मम्मी को क्या जवाब दे क्या नहीं, उसकी समझ नहीं आ रहा था और उसकी ऐसी हालत देख प्रतिमा को जैसे बहुत खुशी मिल रही थी, वो उसे इस तरह परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती थी, उसकी आंखें चमक रही थीं।

“अभी क्या बोलती बंद हो गई, अभी से डर लगने लगा कि यहां पर परफॉरमेंस भी चेक होगी, हुंह टेंशन में आ गए लाट साहब, अब क्या करूंगा, कैसे करूंगा, यही सोच रहे हो न,” प्रतिमा इतनी बेरहम भी हो सकती थी, उसे खुद मालूम नहीं था, लेकिन छेड़ने में मजा आ रहा था।

“क्या मम्मी, अब बस भी करो, आप अच्छे से जानती हैं, मैं कभी पीछे नहीं हटता, कभी घबराता नहीं हूं, हमेशा अव्वल आता हूं,” रिशु अपने आत्मसम्मान की रक्षा करता है, उसकी आवाज में थोड़ी सी खीझ थी।

“ओह्ह्ह, देखो तो कभी पीछे नहीं हटता, कभी घबराता नहीं, फिर टांगें क्यों कांप रही हैं तुम्हारी, देखना कहीं गिर ना जाना,” प्रतिमा कमर पर हाथ रखे चेहरे पर खुसक भाव लिए रिशु को कहती है, मगर उसे ना जाने कितनी कोशिश करनी पड़ रही थी अपनी हंसी रोकने के लिए, उसके होंठ कांप रहे थे।

“किसकी टांगें कांप रही हैं, कहां टांगें कांप रही हैं,” रिशु खीझ उठता है, उसके चेहरे पर बल पड़ गए।

“किसकी टांगें कांप रही हैं, तुम्हारी और किसकी, देखो अब कहीं डर के मारे पेंट ना गीली कर देना, ओह यह क्या, मुझे तो लगता है तुमने वाकई में पेंट गीली कर दी है,” प्रतिमा हैरान होने का नाटक करती हुई रिशु की पेंट की ओर इशारा करती है, जहां जिपर की साइड में एक गीले धब्बे का निशान था हालां कि वो बखूबी जानती थी कि वो धब्बा उसकी गांड की करतूत का नतीजा था मगर रिशु को परेशान करने का मौका वो हाथ से कैसे जाने देती, और उसके मन में शरारत की हंसी दबी हुई थी।

“मम्मी,” रिशु खीझ कर लगभग चिल्ला ही पड़ता है, उसे यकीन नहीं हो रहा था उसकी माँ उसे इस हद तक परेशान कर सकती है, उसकी सांसें तेज हो गईं। प्रतिमा मुंह घुमा लेती है, उसका बदन हिल रहा था अब उससे हंसी रोकना बहुत मुश्किल काम जान पड़ता था, उसके कंधे कांप रहे थे।

“ठीक है, ठीक है, चिल्लाने की जरूरत नहीं है, मुझे तो चिंता हो रही थी कि कहीं दोपहर की तरह फिर से पेंट तो गीली नहीं कर दी क्योंकि अब मेरा दिल कपड़े धोने को बिलकुल भी नहीं कर रहा,” प्रतिमा मुंह घुमाए किचन काउंटर से सामान समेटती अपनी हंसी छुपाने का प्रयत्न कर रही थी, उसके होंठ काट रही थी।

“मम्मी भगवान के लिए बस भी करो,” रिशु हथियार डालता बोला, उसे मालूम था जुबानी जंग में माँ से जीतना उसके बस की बात नहीं थी, उसकी आवाज में थोड़ी सी मिन्नत थी।

“अरे भगवान को क्यों बीच में ला रहा है, तुम्हारी पेंट तुमने गीली की है, कोई भगवान ने थोड़े की है,” प्रतिमा प्लेट्स में सब्जी डालती बोली, सब्जी की गर्म महक फैल रही थी।

“ठीक है नहीं मानोगी तो ना सही, बोलो जो बोलना है, डैड आएंगे तो मैं उनसे आपकी शिकायत करूंगा कि आप मुझे किस तरह परेशान करती हो,” रिशु अपनी माँ पर दबाव डालने की कोशिश करता है, लेकिन उसकी आवाज में थोड़ी सी हार थी।

“ओह्ह्ह, डैड से शिकायत, सच में आने दो डैड को, मैं भी शिकायत करूंगी, तू मुझे किस किस तरह परेशान करता है, अपना वो मुझे कहां कहां चुभोता है, फिर बार-बार पेंट गीली करके मेरे धोने के लिए छोड़ देता है, मैं भी सब बताऊंगी, मगर तू खुद ही तो कहता था कि तू मुझे कंपनी देगा, तुझसे मेरा अकेलापन नहीं देखा जाता और अब इतनी जल्दी ऊब गया,” प्रतिमा प्रहार पर प्रहार किए जा रही थी, हंसी से उसकी बुरी हालत थी, उसके चेहरे पर शरारत चमक रही थी।

“मैं ऊबा नहीं हूं, आप ही मुझे मज,” रिशु बोला, लेकिन बात अधूरी रह गई।

“सलाद की प्लेट्स मेज पर रखो,” प्रतिमा अचानक से रिशु की बात बीच में काटकर बोली, “फ्रीजर से थोड़ा ठंडा पानी निकाल लो, मैं रोटी, सब्जी और रायता रखती हूं, जल्दी करो, बातों पर ध्यान कम दो और काम पर ज्यादा, कब से बातें किए जा रहे हो, रुकते ही नहीं,” रिशु आंखें गोल करके प्रतिमा को घूरता है और उसके माथे पर बल पड़ जाते हैं, उसकी सांसें तेज हो गईं।

“और मुझे ऐसे घूरना बंद करो, मुझे बहुत भूख लगी है, तुम्हारा पेट तो बातों से भर जाता होगा, मगर मेरा नहीं भरता, कब से सुन रही हूं, कानों में दर्द होने लगा, मगर तुम हो कि मानते ही नहीं,” प्रतिमा कमर पर हाथ रखे रिशु को चिड़ाती है, उसकी आंखें चमक रही थीं, और मन में हंसी दबी हुई थी। रिशु कुछ बोलने के लिए मुंह खोलता है मगर फिर से चुप हो जाता है और अविश्वास से सर हिला सलाद की प्लेट उठाता है और खाने के मेज की तरफ बढ़ जाता है, उसके कदम भारी थे।

खाने के टेबल पर प्रतिमा और रिशु दोनों चुपचाप खाना खा रहे थे, खाने के स्वाद में मसालों की तीखी महक और गर्माहट थी, जो इतनी मजेदार थी कि रिशु बहुत खीझा होने के बावजूद खाने को मजे से खा रहा था, हर कौर में स्वाद घुल रहा था। मगर फिर भी वो बीच-बीच में ‘आहत’ भरी नजर अपनी माँ पर जरूर डालता, जो उसकी तरफ खाना खाते हुए बिलकुल बेपरवाही से देख कंधे झटक देती है, उसके चेहरे पर शरारत की मुस्कान छिपी होती।

प्रतिमा पानी का गिलास उठा के घूंट भरती है, पानी की ठंडक उसके गले में उतरती हुई, तभी रिशु फिर से उसकी ओर गुस्से भरी निगाह से देखता है। प्रतिमा इस बार कंट्रोल नहीं कर पाती और खिलखिला कर हंस पड़ती है, उसकी हंसी की मधुर आवाज कमरे में गूंज उठती। वो जोरों से खुल कर हंसने लगती है, उसके कंधे हिल रहे थे और आंखों से हल्के आंसू निकल आए। वो ‘ओके, ओके’ बोलती खुद को रोकने की कोशिश करती है मगर वो चुप नहीं रह पाती, हर बार वो खिलखिला कर हंस पड़ती है, हंसी की लहरें कमरे में फैल रही थीं।

रिशु शुरू से जानता था उसकी माँ उसे जानबूझकर चिढ़ा रही है मगर वो उसके इस तरह जोर से हंसने से खीझ उठा और खाना बंद कर दिया, उसके चेहरे पर गुस्सा छा गया। उसका दिल किया वो वहां से उठ कर चला जाए, लेकिन वह बैठा रहा। ‘सॉरी, सॉरी, प्लीज’ प्रतिमा उसे हाथ से इशारा करके खाना खाने को कहती है, उसकी आंखें हंस रही थीं। रिशु जैसे ही चम्मच मुंह की तरफ लेकर जाता है, कमरा फिर से प्रतिमा की हंसी से गूंज उठता है, हंसी की ध्वनि दीवारों से टकराती। अब बस, और नहीं, वो उठने से पहले एक नजर अपनी माँ पर डालता है जो अपने मुंह पर हाथ रखे खुद को रोकने की कोशिश कर रही थी, अचानक रिशु भी जोरों से हंसने लगता है, उसकी हंसी माँ की हंसी से मिलकर कमरे को खुशी से भर देती। कमरे का माहौल बेहद खुशनुमा हो उठता है, दोनों माँ-बेटा खाना छोड़ काफी देर तक हंसते रहते हैं, हंसी की लहरें एक-दूसरे को छूती हुईं। अंत में दोनों थोड़े शांत पड़ जाते हैं, उनकी सांसें तेज लेकिन खुशी से भरी हुईं।

“उफ्फ्फ, हे भगवान,” प्रतिमा को खुद याद नहीं था वो इस तरह खुल कर पहले कभी हंसी थी, बल्कि उस घर में इस तरह पहले कभी ऐसी हंसी कब गूंजी थी, हंसी की गूंज अभी भी कानों में बसी हुई थी। प्रतिमा अपनी जगह से उठती है और मुस्कराते हुए रिशु के पास जाती है, उसके कदम हल्के और खुशी से भरे। रिशु उसे सवालिया नजरों से देखता है मगर प्रतिमा उसे कोई जवाब नहीं देती, उसकी आंखें चमक रही थीं।

प्रतिमा रिशु के पास जाकर उसके चेहरे को अपने हाथों में थाम लेती है और बिना कुछ कहे अपने होंठ उसके होंठों पर रख देती है, होंठों की नरमी और गर्मी मिलकर एक मीठा एहसास पैदा करती। प्रतिमा रिशु के होंठों पर एक जोरदार चुम्बन लेती है, अपनी जीभ से उसके होंठों को चाटती है और फिर से एक मीठा सा चुम्बन लेकर अपना चेहरा उसके चेहरे से दूर हटा लेती है, होंठों से निकलती नमी अभी भी बाकी थी।

“थैंक यू बेटा, थैंक यू सो मच,” प्रतिमा ने वो अलफाज सिर्फ अपने मुंह से नहीं बोले थे बल्कि रिशु अपनी माँ की आंखों में उन लफ्जों की भावना भी देख सकता था कि उसकी माँ कितनी खुश थी और इसके लिए वो उसकी कितनी शुक्रगुजार थी, उसकी आंखें नम हो गईं।

वो चुम्बन एक प्यासी नारी का अपने बेटे से कामोत्तेजना में लिया चुम्बन नहीं था, हालां कि वो एक माँ-बेटे का चुम्बन भी नहीं कहा जा सकता था मगर उस चुम्बन में रिशु ने सिर्फ और सिर्फ अपनी माँ का प्यार ही अनुभव किया था, इसके सिवा कुछ नहीं, इसके सिवा कुछ भी नहीं, प्यार की वह गर्मी और मीठापन जो उसके होंठों पर बाकी था। प्रतिमा वापस अपनी कुर्सी की ओर जाने लगती है और जैसे ही उसकी रिशु की ओर पीठ होती है तो रिशु उसके जाते-जाते पीछे से उसकी गांड पर हाथ फेर देता है, हाथ की रगड़ से गांड की मुलायमियत महसूस हो रही थी। “ईईई आह्ह्ह शैतान,” प्रतिमा मुस्कराती हुई वापस कुर्सी पर बैठ जाती है। दोनों फिर से खाना खाने लगते हैं, दोनों बहुत खुश थे और मुस्करा रहे थे, खाने का स्वाद और मीठा लग रहा था।

रिशु की नजर बार-बार अपनी माँ के चेहरे की ओर उठ जाती है, इतना हंसने के बाद प्रतिमा का चेहरा कुछ लाल गुलाबी सा पड़ गया था, उसके होंठों की मुस्कुराहट उसके चेहरे की मासूमियत और सबसे बढ़कर उसके नाक की बाली, ‘उफ्फ्फ कितनी प्यारी कितनी सुंदर है उसकी माँ,’ रिशु बस यही सोचे जा रहा था, उसके मन में माँ की सुंदरता की तारीफें घूम रही थीं। अपनी माँ की सुंदरता पर उसका मन मोहित होता जा रहा था, जैसे कोई जादू हो गया हो।

रिशु अपनी जगह से उठता है और अपनी माँ और जाता है, उसके कदम हल्के लेकिन उत्सुक। प्रतिमा उसे सवालिया नजरों से देखती है। वो प्रतिमा के चेहरे को हाथों में थाम लेता है और अपना चेहरा उसके चेहरे पर झुका देता है, उसके हाथों की गर्मी प्रतिमा के गालों पर फैलती। उसके माथे पर, उसकी आंखों पर, उसके गालों पर, उसकी नाक पर जी भरकर चुम्बन लेने के बाद रिशु अपना चेहरा ऊपर उठाता है तो देखता है कि उसकी माँ की आंखें बंद थीं, उसके चेहरे पर शांति थी।

उसके चेहरे की मासूमियत उसकी वो सुंदरता जो उसके मन को ठग रही थी, अब और भी बढ़ गई थी, जैसे कोई देवी हो। रिशु फिर से अपना चेहरा नीचे लाता है और फिर से अपनी माँ के चेहरे को चूमने लगता है, वो प्रतिमा को चूमता जाता है, चूमता जाता है जैसे उसका मन नहीं भर रहा था, खास कर वो उसकी नाक की बाली की जगह पर बार-बार चूम रहा था, चुम्बनों की मीठी आवाजें निकल रही थीं। आखिरकार जब वो अपना चेहरा ऊपर उठाता है तो प्रतिमा धीरे से आंख खोल देती है, उसकी आंखें बता रही थी कि वो अपने बेटे के इस प्यार प्रदर्शन से कितनी खुश थी, उसकी आंखों में नमी चमक रही थी। प्रतिमा अपने होंठ सिकोड़ कर चूमने के अंदाज में बाहर को निकालती है और रिशु को देखकर अपनी उंगली को होंठों से छूते हुए उसे इशारा करती है। रिशु फिर से अपना चेहरा नीचे लाता है और अपने होंठ अपनी माँ के होंठों से सटा देता है, होंठों की नरमी मिलकर घुल जाती।

“उम्म्म्ह्ह, उम्म्म्ह्ह्ह, उम्म्म्म्ह्ह,” एक के बाद एक प्रतिमा रिशु के होंठों पर चुम्बन लेती है या कहिए देती है, हर चुम्बन में एक मीठा स्वाद और गर्मी। जब रिशु और प्रतिमा अपना चेहरा वापस खींचते हैं तो दोनों के होंठ ही नहीं चेहरे भी मुस्करा रहे थे, मुस्कुराहट की चमक आंखों में फैल गई। प्रतिमा रिशु के हाथ अपने हाथों में ले लेती है, हाथों की गर्मी मिलकर एक एहसास पैदा करती।

“थैंक यू बेटा, थैंक यू सो मच, तुम्हें नहीं मालूम, तुमने मुझे आज कितनी खुशी दी है, आज कितने सालों बाद मुझे लग रहा है कि जिंदगी कितनी खूबसूरत हो सकती है,” प्रतिमा बेटे के हाथ को चूमती है तो रिशु उसके सिर पर हाथ फेरता है और फिर से उसके होंठों पर एक प्यारा सा चुम्बन लेता है, चुम्बन की नमी होंठों पर बाकी रह जाती। रिशु को उस समय ऐसा लग रहा था जैसे उसकी माँ से बढ़कर दुनिया में कुछ भी प्यारा नहीं हो सकता, उसके मन में प्यार की लहरें दौड़ रही थीं।

“चलो अब बहुत प्यार कर लिया अपनी माँ को, अब खाना फिनिश करो,” दोनों फिर से खाना शुरू करते हैं, दोनों के दिल में मीठी सी गुदगुदी हो रही थी, खाने का स्वाद और मीठा लग रहा था। अब रिशु को भी पहले के मुकाबले थोड़ी कम शर्म आ रही थी वो अपनी माँ के साथ सहजता महसूस कर रहा था, जैसे रिश्ता और गहरा हो गया हो।

खाने के बाद दोनों सिंक में अपने-अपने बर्तन डालते हैं, बर्तनों की खनक गूंजती है। प्रतिमा के मना करने के बावजूद रिशु उसके साथ बर्तन धुलवाने लगता है, साबुन की महक फैल जाती। जैसे ही एक प्लेट धुलती और रिशु उसे होल्डर में रख देता है, प्रतिमा उसे देखती है और अपना मुंह आगे करती है। रिशु भी तुरंत अपना मुंह आगे को बढ़ा देता है, दोनों के होंठ मिल जाते हैं, होंठों की गर्मी और नमी मिलकर घुलती।

“मुव्व्वाआह्ह्ह,” की आवाज के साथ दोनों के होंठ अलग होते हैं, और वे एक-दूसरे को देख हंसते हैं, हंसी की मधुरता कमरे में फैल जाती। उसके बाद अगली प्लेट धुलने के बाद फिर से रिशु प्रतिमा की ओर देखता है। प्रतिमा तुरंत अपना मुंह आगे बढ़ा देती है, “मुव्व्वाआह्ह्ह,” के साथ फिर से उनके होंठ अलग होते हैं और बच्चों की तरह खिलखिला कर हंस पड़ते हैं, हंसी की लहरें एक-दूसरे को छूती हुईं।

फिर तो माँ-बेटे के बीच चुम्बनों का सिलसिला सा शुरू हो गया, हर प्लेट, हर कप, हर बर्तन यहां तक कि एक छोटा सा चम्मच भी धोने के बाद वो एक-दूसरे को चूमते, चुम्बनों की मीठी आवाजें और होंठों की गर्मी कमरे में फैल रही थी। दोनों के मन शरारत से भरे हुए थे, दोनों से खुशी संभाली नहीं जा रही थी, जैसे कोई खेल चल रहा हो। जब तक बर्तन धुलते तब तक वो इतनी दफा एक-दूसरे को चूम चुके थे कि उनकी सांसें गहरी हो चुकी थीं, धड़कनें बढ़ चुकी थीं, और कमरे में गर्मी फैल गई थी।

रिशु का लंड झटके मार रहा था और प्रतिमा की चूत रस से सराबोर हो चुकी थी, रस की महक हल्के से फैल रही थी। बर्तन धोने के पश्चात दोनों ने एक लंबा सा चुम्बन लिया और तौलिए से हाथ पोंछते प्रतिमा रिशु को ड्राइंग रूम में भेजती है, खुद दूध गर्म करने लग जाती है, दूध की मीठी महक रसोई में फैल जाती। प्रतिमा हाथ में ट्रे पकड़े ड्राइंग रूम में दाखिल होती है, ट्रे में दूध के साथ एक पॉपकॉर्न का पैकेट भी था, पॉपकॉर्न की हल्की महक हवा में घुल रही थी। रिशु पहले की तरह टेबल पर पैर रख सोफे की पीठ से टेक लगाकर सोफे की एक साइड में बैठा था। प्रतिमा ट्रे को टेबल पर रखती है तो रिशु दूध देखकर नाक भौं सिकोड़ता है, उसे शुरू से दूध पसंद नहीं था मगर पीना उसे हर रोज पड़ता था, दूध की गर्म भाप उठ रही थी।

“क्या माँ, आज तो रहने देती, एक दिन नहीं पियूंगा तो कुछ हो नहीं जाएगा मुझे,” रिशु बोला।

“आज तो तुझे दूध की सख्त जरूरत है, कोई और दिन होता तो और बात थी, आज तो तुझे सख्त मेहनत करनी है,” प्रतिमा बोली, उसकी आंखों में शरारत थी।

“दूध पिए बिना कोई क्या सख्त मेहनत नहीं कर सकता,” रिशु बोला।

“कर सकता है अगर उसकी पेंट गीली न होती हो,” रिशु ने अपनी माँ की ओर आहत नजरों से देखा।

“वैसे भी दूध नहीं पिएगा तो ताकतवर कैसे बनेगा और ताकतवर नहीं बनेगा तो फिर फास्ट फास्ट कैसे करेगा,” प्रतिमा बोली।

“मुझमें बहुत ताकत है, सारा दिन तुमको उठाके घूम सकता हूं,” रिशु जैसे चैलेंज करता है।

“अच्छा चलो देखते हैं कितनी ताकत है तुममें, घूमाना बाद में, पहले बिठाकर तो दिखा,” कहकर प्रतिमा खड़ी होती है और आगे बढ़कर सीधा रिशु की गोद में बैठ जाती है और अपनी बांह उसकी गर्दन पर लपेट देती है, गोद की गर्मी और वजन रिशु के लंड पर पड़ता।

“आ, आऊच,” रिशु लंड पर प्रतिमा की गांड का वजन पड़ते ही कराह उठता है, वो इस अचानक हमले से हड़बड़ा गया था, गांड की नरम मुलायमियत लंड में सोखती।

“क्या हुआ, तकलीफ हो रही है तो उतरूं,” प्रतिमा रिशु की ओर आंख नचाकर कहती है। रिशु प्रतिमा की पीठ पीछे हाथ घुमाकर उसे अपनी गोद में अच्छे से थाम लेता है और दूसरे हाथ से उसकी पूर्णतया नंगी जांघों को सहलाता है, जांघों की नरम त्वचा पर उंगलियां फिसलती हुईं।

“तुम्हारा जब तक दिल चाहे तुम मेरी गोद में बैठ सकती हो, मैं तुम्हें उठने के लिए नहीं कहूंगा,” रिशु का हाथ प्रतिमा के घुटने से शुरू होकर उसके अंडरवियर के निचले सिरे तक घूम रहा था, उंगलियों की रगड़ से जांघों की गर्मी बढ़ती।

“चाहे मेरे वजन से तुम्हारी जान ही निकल जाए,” प्रतिमा रिशु की ओर देखती बोली।

“तुम्हारा कौन सा वजन है मम्मी, तुम तो फूलों से भी हलकी हो,” रिशु ने अपनी माँ के कान में कहा, उसकी सांस कान पर टकराती।

“अच्छा, जैसे मुझे नहीं मालूम मैं कितनी वजनी हूं,” प्रतिमा धीमे से स्वर में कहती है।

“अपनी तारीफ करवाना चाहती हो,” प्रतिमा कुछ नहीं बोलती तो रिशु जांघों को सहलाता अपना हाथ अंडरवियर के ऊपर तक लाने लगता है, उंगलियों की गर्म रगड़ जांघों पर सनसनी पैदा कर रही थी।

“मम्मी आपकी स्किन कितनी कोमल है, कितनी नरम और मुलायम, आप कितनी गोरी गोरी हो मम्मी,” प्रतिमा कुछ देर चुप रहती है, बेटे के हाथ के स्पर्श से उसके पूरे बदन में सिहरन दौड़ रही थी, चूत से रस बहकर बाहर आने लगा था, वो खुद अपने रस की सुगंध ले सकती थी, रस की चिपचिपाहट जांघों पर फैल रही थी।

“क्यों झूठी तारीफ कर रहा है, मुझे मालूम है, मैं कितनी सुंदर हूं,” प्रतिमा के कान तरस रहे थे बेटे के मुंह से अपने हुस्न की तारीफ सुनना, उसे बहुत अच्छा लग रहा था, तारीफ की मिठास उसके मन में घुल रही थी।

“झूठ नहीं मम्मी, सच में, आप जैसी सुंदर मैंने कभी कोई नहीं देखी, आपका चेहरा कितना प्यारा है,” रिशु से रहा नहीं जाता, वो फिर से अपनी माँ के गाल को चूम लेता है, “और मम्मी, और,” रिशु कुछ ज्यादा ही जोश में था, वो जो कुछ भी कह रहा था, कर रहा था, उसकी मम्मी उसका कोई बुरा नहीं मान रही थी बल्कि चेहरे से लग रहा था उसे अच्छा लग रहा था, उसकी आंखें चमक रही थीं।

“और, और क्या, बोल ना,” प्रतिमा बैचेनी से बोल उठती है।

“मम्मी आपकी नाक की बाली आप पर बहुत जंचती है, इससे आपका चेहरा और भी प्यारा लगता है, आप सच में बहुत सुंदर हो मम्मी, आपका मंगलसूत्र,” रिशु झिझक उठता है।

“मेरा मंगलसूत्र, वो क्या, बोलो ना मेरा मंगलसूत्र क्या,” प्रतिमा रिशु की गर्दन पर तेज सांसें छोड़ती उसे जीभ से चाट रही थी, जीभ की गर्मी और गीलापन गर्दन पर फैल रही थी।

“आपका काला मंगलसूत्र आपके गोरे रंग पर कितना फबता है, और, और,” रिशु बोला।

“अब बोल भी दो, क्यों सता रहे हो,” प्रतिमा अधीरता से बोल उठती है।

“आप बुरा मान जाओगी मम्मी,” रिशु मासूमियत से बोला।

“अब कैसे गुस्सा करूंगी, तेरी गोद में बैठी हूं, तेरे इसने गुस्सा करने लायक छोड़ा कहां है,” प्रतिमा भड़के हुए लंड पर गांड रगड़ती बोली, “तू कुछ भी बोल, कुछ भी,” प्रतिमा बुरी तरह अकड़े लंड को धीरे-धीरे नितंब हिलाकर रगड़ रही थी, रगड़ की हल्की आवाज निकल रही थी। रिशु का चेहरा वासना से लाल होता जा रहा था।

“माँ वो आपका मंगलसूत्र, वो जब दोपहर को, मैंने देखा था, बाथरूम में, जब आपने कपड़े नहीं पहने थे, आपका मंगलसूत्र, वो आपके सीने पर, आपके, आपके, उन दोनों के बीच, उफ्फ्फ मम्मी, काला मंगलसूत्र, उन दोनों के बीच बहुत प्यारा लग रहा था,” रिशु बोला।

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“सिर्फ प्यारा लग रहा था, तूने तो सब कुछ देख लिया था, मैं सोचती थी तुझे कुछ भी लगा होगा,” प्रतिमा रिशु के कान की लौ को दांतों से काटती बोली, दांतों की चुभन मीठी पीड़ा पैदा कर रही थी।

“हां मम्मी, वो, वो, बहुत, बहुत, सेक्सी भी, सेक्सी भी लग रहा था, आपकी नाक की बाली भी कितनी सेक्सी है, आप बहुत सेक्सी हो मम्मी, सच में मम्मी, आप बहुत, बहुत सेक्सी हो,” रिशु बोला।

“तूने तो मुझे लगभग निराश ही कर दिया था, मुझे लगा शायद मैं तुझे सेक्सी नहीं लगती,” प्रतिमा पहले की तरह रिशु के कान की लौ काटती बोली, कुछ देर दोनों में चुप्पी छा जाती है, लेकिन सांसों की आवाजें गूंज रही थीं।

“मम्मी, मम्मी,” रिशु बिलकुल धीमें से फुसफुसाकर बोला।

“अब क्या, बोल ना, जो भी बोलना है,” प्रतिमा लंड को अपनी गांड से सहलाती बोली।

“मम्मी आप मुझे कह रही थीं, मगर आप ने भी अंडरवियर को गीला कर दिया है,” रिशु बोला।

प्रतिमा की नजर नीचे जाती है तो उसे अंडरवियर के सामने एक गीला धब्बा दिखाई देता है, धब्बा रस की चिपचिपाहट से चमक रहा था।

“मैं तो सुबह से ही गीली हूं, मेरी तो गंगा यमुना की तरह रस बहा रही है,” प्रतिमा बोली।

“सुबह से मम्मी,” रिशु बोला।

“सुबह से, जब से तेरे इसको चूसा है, ऊपर से तू बार-बार इसे मुझे चुभो रहा था, अभी भी देख कैसे चुभ रहा है, बड़ा शैतान है यह तेरा, देख मेरी क्या हालत कर दी है,” प्रतिमा रिशु का हाथ अपने घुटने से हटाकर अपनी अंडरवियर पर अपनी चूत के ऊपर रख देती है, चूत की गर्मी हाथ पर फैलती।

रिशु तुरंत चूत पर हाथ रखकर दबा देता है, उसे चूत के होंठ महसूस हो रहे थे मगर मर्दों का अंडरवियर होने के कारण सामने से उसका डिजाइन ऐसा था कि वो अपनी माँ की चूत को वैसे नहीं महसूस कर सकता था जैसे उसने दोपहर को उसी सोफे पर की थी, जब उसने पायजामे के अंदर हाथ डालकर उसकी चूत को भीगी कच्छी के ऊपर से मसला था, तब तो उसे ऐसे लगा था जैसे उसकी माँ ने कच्छी पहनी ही नहीं थी, रस की चिपचिपाहट हाथ पर लग रही थी।

जब उसने दिल में सोचा काश उसकी माँ ने उसके अंडरवियर की जगह अपनी कच्छी पहनी होती, रिशु के सहलाने से प्रतिमा सिसकियां भरने लगी थी, उसे लगने लगा था कि शायद उसके चुदने का समय आ गया था, सिसकियों की आवाज कमरे में गूंज रही थी।

“रिशु, रिशु,” प्रतिमा अपने बेटे को पुकारती है जो अपनी दुनिया में खोया हुआ था, उसकी सांसें तेज हो गईं।

“बेटा मैं सोच रही थी क्योंकि अब तुम घर पर रहने वाले हो तो अगर हम सारा दिन घर पर खाली हाथ बैठेंगे तो सही नहीं होगा, हमें कुछ ना कुछ ऐसा काम करना चाहिए जैसे हमारी थोड़ी बहुत कसरत हो जाए, काम तो यहां कुछ है नहीं,” प्रतिमा सिसकियों के बीच बोली, उसकी आवाज में कंपन था।

“क्या मतलब मम्मी, मैं समझा नहीं,” रिशु अब बेहिचक चूत को अंडरवियर पर से मसले जा रहा था, मसलने की रगड़ से चूत की गर्मी बढ़ रही थी।

“मेरा मतलब सारा दिन खाली बैठने से हम आलसी होते जाएंगे, शारीरिक क्षमता कम होती जाएगी, इसलिए हमें कोई काम वगैरह करना चाहिए जैसे, हमारी सेहत ठीक रहे,” प्रतिमा की सिसकियां ऊंची होती जा रही थीं और वो रिशु की आग को और भड़का रही थी, सिसकियों की आवाज में एक मीठी तड़प थी।

“कोनसा, कोनसा काम मम्मी,” रिशु की उंगलियां अंडरवियर के होल से होती हुई चूत को स्पर्श करती हैं, उंगलियों की नोक चूत की नरम त्वचा पर फिसलती।

“आह्ह्ह हे भगवान,” प्रतिमा चीख पड़ती है “कोई भी ऐसा खेल, जिसमें उफ्फ्फ, हम दोनों खूब मजा करें, आह, खूब, खूब मस्ती करने को मिले, आह्ह्ह, उंह्ह्ह, ऊउफ्फ्फ, थोड़ा तुम्हारा जोर लगे, इइइआह, थोड़ा मेरा जोर लगे, कोई ऐसा खेल,” प्रतिमा दांतों से नीचे वाला होंठ काटते हुए ऐसे सिसक-सिसक कर बोली, होंठ की चुभन मीठी लग रही थी।

रिशु अपनी उंगलियों को चूत में धकेलना चाहता था मगर अंडरवियर के होल की बनावट उसकी उंगली को ज्यादा अंदर तक नहीं जाने दे रही थी, उंगली की नोक रस में भीग रही थी।

“आऊंह्ह्ह, कोई ना कोई, खेल, सोच लेंगे, अपना बना लेंगे, उफ्फ्फ, ऐसा खेल जो दिन और रात को हम दोनों मिलकर खेलेंगे, हाए बेटा, तू खेलेगा मेरे साथ वो खेल, अपनी मम्मी के साथ, आह्ह्ह, बोल ना मेरे लाल, मस्ती करेगा मेरे साथ,” प्रतिमा बोली।

“हां मम्मी, हां, मैं खेलूंगा, तुम्हारे साथ, वो मस्ती वाला खेल, हाए मम्मी मैं दिन रात तुम्हारे साथ मस्ती करूंगा, दिन रात,” रिशु अपनी उंगलियां अंडरवियर के होल से बाहर निकालता है और अपना हाथ अंडरवियर की इलास्टिक के अंदर डाल देता है, रिशु का हाथ सीधा अपनी माँ की चूत पर जाता है और उसकी चूत को कस कर मुट्ठी में दबोच लेता है, चूत की गर्म मुलायमियत और रस मुट्ठी में सोखता।

प्रतिमा एक झटके से उठ रिशु की गोद से निकल सोफे पर थोड़ी दूर खड़ी हो जाती है, उसकी सांसें तेज और बदन कांप रहा था। रिशु हक्का-बक्का रह जाता है, उसका हाथ अभी भी रस से भीगा हुआ था। प्रतिमा की अंडरवियर रिशु के हाथ अंदर डालने के कारण थोड़ी नीचे खिसक गई थी, उसकी चूत पर हलके-हलके, छोटे-छोटे बाल थे जिन्हें शायद उसने अपने पति के जाने के बाद शेव नहीं किया था, बाल हल्के से गीले होकर चमक रहे थे। प्रतिमा ट्रे से दूध के गिलास उठाती है और रिशु की ओर बढ़ती है। रिशु कुछ कहने के लिए मुंह खोलता है तो प्रतिमा उसके बोलने से पहले ही उसके होंठों पर अपनी उंगली रख देती है, उंगली की नरम टिप होंठों पर दबाव डालती।

“अभी नहीं, यहां नहीं, दूध पीकर मेरे कमरे में आ जाना, आज रात तुम्हें वही सोना है, मेरे साथ मेरे बेड पर,” प्रतिमा बोली।

प्रतिमा अपने कमरे में जाती है और सीधे बाथरूम में घुस जाती है, पानी की धारा चलती है। कुछ देर नहाने के बाद बदन पोंछती है, तौलिए की रगड़ से त्वचा लाल हो जाती। अपने वार्डरोब से एक पैंटी और एक सिल्क की नाईटी निकालती है। अपनी देह को शीशे में निहारती वो अपने चेहरे को देखती है, उसके चेहरे पर कैसे अजीब से भाव थे, शीशे में उसकी त्वचा की चमक दिख रही थी। वो एक तरफ को हट जाती है।

वो ड्रायर से कोई परफ्यूम निकालती है और उसे बदन पर लगाती है, परफ्यूम की मीठी महक फैल जाती। फिर वो अपनी पैंटी और नाईटी पहनती है, नाईटी की सिल्क बदन को सहलाती। अपने बालों का जुड़ा बनाती है। चेहरे पर हल्का सा मेकअप करती है, अंत में दोबारा शीशे में खुद पर एक निगाह डालती है। उसके सामने शीशे में प्रतिमा नहीं कयामत थी, नाईटी की सिल्क उसकी त्वचा पर चिपक रही थी।

उसकी सिल्क की नाईटी से हालां कि उसके अंग तो नहीं दिख रहे थे मगर सिल्क की वो नाईटी उसके बदन के कटावों और उभारों को इस तरह से चूमती, सहलाती थी और उन्हें इस प्रकार आलिंगनबद्ध करती थी कि वो किसी पारदर्शी नाईटी से बढ़कर उत्तेजनात्मक दृश्य पैदा करती थी, जैसे बदन की हर वक्रता को उभार रही हो। संतुष्ट होकर प्रतिमा बेडरूम में चली जाती है, कमरे में हल्की रोशनी थी।

रिशु बेड पर एक तरफ टांगें लटका कर बैठा हुआ था, उसकी सांसें अभी भी तेज थीं। प्रतिमा दूसरी तरफ से बेड के ऊपर चढ़ती है। “बेटा ऐसे क्यों बैठे हो, ऊपर आराम से बैठो ना,” प्रतिमा उसे प्यार से कहती है और कमरे की लाइट बुझा देती है और नाईट बल्ब को जला देती है। कमरे में काफी अंधेरा था, मगर कुछ समय बाद जब उनकी आंखें अंधेरे में एडजस्ट होती हैं तो दोनों एक-दूसरे को बखूबी देख सकते थे, एक-दूसरे के चेहरे को बखूबी पढ़ सकते थे, रोशनी की हल्की चमक उनके चेहरों पर पड़ रही थी।

“रिशु ऊपर आओ ना बेड पर, इस तरह क्यों बैठे हो,” रिशु पहले की तरह ही बेड के सिरहाने टांगें नीचे लटका कर बैठा रहता है और वो अपनी माँ की ओर देखता है तो प्रतिमा उसके चेहरे पर नाराजगी साफ देख सकती थी, उसके माथे पर बल थे।

“मुझसे नाराज हो,” प्रतिमा धीमे से पूछती है, उसकी आवाज में चिंता थी।

“नहीं मैं भला क्यों नाराज होने लगा आपसे,” आखिरकार रिशु मुंह से कुछ फूटता है और अपनी टांगें उठाकर बेड पर रख लेता है और तकिए पर सिर रखकर बेड पर लेट जाता है, उसकी सांसें हल्की तेज थीं।

“देखो बेटा अगर तुम इस बात के लिए नाराज हो कि,” प्रतिमा बोली।

“मैंने कहा ना मम्मी, मैं आपसे नाराज नहीं हूं, आप खामखाह परेशान हो रही हैं,” प्रतिमा जैसे ही अपनी बात की शुरुआत करती है, रिशु उसे एकदम से काट देता है। उसके खुसक स्वर से मालूम चलता था वो थोड़ा नहीं बहुत नाराज था, उसकी आवाज में खीझ थी। रिशु छत की ओर घूर रहा था जबकि प्रतिमा पिलो पर कोहनी के सहारे ऊपर उठी हुई थी और रिशु की ओर देख रही थी, उसकी नजरें रिशु के चेहरे पर जमी थीं।

कमरे में चुप्पी छा जाती है, सांसों की आवाजें हल्के से गूंज रही थीं। प्रतिमा को समझ नहीं आता वो उसे कैसे मनाए, उसका मन उदास हो रहा था। कमरे का माहौल कुछ ऐसा बन चुका था कि वो सीधे जाकर रिशु से लिपट नहीं सकती थी, वो बहुत ही अटपटा होता, जैसे हवा में तनाव फैल गया हो। प्रतिमा उसी तरह लेटे हुए कोहनी के बल अपना सिर उठाए रिशु को घूर रही थी जो अपने माथे पर अपनी बांह रखे छत को घूर रहा था, उसका लंड अब पूरी तरह से नर्म पड़ चुका था, और कमरे में हल्की ठंडक फैल रही थी।

बेटे को घूरती प्रतिमा अचानक महसूस करती है कि उनके रिश्ते ने एक दिन में क्या से क्या मोड़ ले लिया था, जैसे सब कुछ पलक झपकते बदल गया हो। कहां वो एक माँ थी, एक पवित्र माँ, जिसके लिए बेटे से बढ़कर कुछ भी नहीं था, शायद अब भी उसकी ममता में कुछ फर्क नहीं पड़ा था, बस अब उनके रिश्ते में वो पवित्रता नहीं रही थी, जैसे कोई दीवार टूट गई हो।

सुबह की उस छोटी सी घटना के बाद सब कुछ जैसे एकदम से बिखर गया था, वह उसके लंड को सहलाती किस तरह अपने पर काबू खो देती है और उसके लंड को चूसती है और उसके वीर्य को पी जाती है, ‘उफ्फ्फ,’ जबकि उसे वीर्य पीना कभी अच्छा नहीं लगता था, वो कभी-कभी अपने पति की खुशी के लिए उसके वीर्य को पीती थी, लेकिन उसे यह कतई पसंद नहीं था, मगर आज तो वो किस तरह अपने बेटे के लंड से वीर्य पी गई थी, उसने एक पल के लिए भी नहीं सोचा था कि इस सबका नतीजा क्या होगा, जैसे वासना ने सब सोचने की क्षमता छीन ली हो।

नहीं बाद में अपने कमरे की तन्हाई में उसने यह जरूर सोचा था बल्कि फैसला किया था कि वो फिर कभी भी इस तरह की वाहियात हरकत नहीं करेगी, लेकिन उसका फैसला ‘रेत का महल’ साबित हुआ था जो हवा का पहला झोंका आते ही ढह गया था, जैसे कोई कमजोर नींव हो। उसने खुद दोपहर को अपने बेटे के साथ ड्राइंग रूम में क्या किया था, किस तरह वो उसके लंड को अपनी मुट्ठी में भरकर सहलाने लगी थी और जब उसके बेटे ने उसके मुम्मे को टीशर्ट के ऊपर से मसलना शुरू किया था तो उसने खुद उसको बढ़ावा दिया था, मुम्मों की मसलाहट से सुख की लहरें दौड़ रही थीं।

किस तरह रिशु ने उसके पायजामे में हाथ डालकर उसकी चूत को कच्छी के ऊपर से सहलाया था और जब उसने उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में भरा था, वो खुद अपनी चूत उसके हाथ में उछाल रही थी और फिर उसका सखलन हो गया था, यह शायद जिंदगी में पहली बार हुआ था कि प्रतिमा ने बिना चुदवाए सखलन हासिल कर लिया था मात्र अपने बेटे के स्पर्श से और वो भी कच्छी के ऊपर से, स्पर्श की गर्मी अभी भी महसूस हो रही थी।

और फिर, और फिर बाथरूम में वो कैसी बेशर्म बन गई थी, प्रतिमा को बाथरूम की याद आती है जब उसका बेटा उसे कपड़े देने आया था तो उसे मात्र एक भीगी हुई कच्छी में देखकर उसकी क्या हालत हो गई थी, प्रतिमा के होंठों पर मुस्कराहट फैल जाती है, जैसे वह पल फिर से जी रही हो।

किस तरह वो उसकी गांड में अपना लंड ठोक देता है और जब प्रतिमा उसकी ओर घूमी थी तो किस तरह उसका मुंह खुला रह गया था, बेचारा पलक भी ना झपका रहा था अपनी माँ को अपने सामने एक कच्छी में देखकर उसकी क्या हालत हो गई थी, किस तरह वो उसके नंगे मुम्मों को घूर रहा था, जैसे अभी आगे बढ़कर उन्हें मुंह में भर लेगा, घूरने की गर्मी प्रतिमा को महसूस हो रही थी।

प्रतिमा दिन की घटनाओं को याद करती-करती गर्म हो रही थी, उसकी चूत से रस बहना शुरू हो गया था, रस की चिपचिपाहट जांघों पर फैल रही थी। और अब उसने क्या किया था, किस तरह तपाक से उसके लंड पर जाकर बैठ गई थी, किस तरह उसके लंड को अपनी गांड से मसल रही थी और जब रिशु की उंगलियां अंडरवियर के होल से उसकी चूत से टकराई थीं, हाए, और फिर उसने अपना हाथ ही उसके अंडरवियर में घुसाकर पहली बार उसकी नंगी चूत को अपनी हथेली में भर लिया था, ऊफ्फ्फ, वो फिर से सखलन के करीब पहुंच गई थी, वो महसूस कर सकती थी, उसके बेटे के स्पर्श में जादू था, या शायद उनके रिश्ते की पवित्रता उनके इस पाप से हासिल होने वाले आनंद को कई गुणा बढ़ा रही थी कि वो अपने बेटे के हल्के से स्पर्श से ही भड़क उठती थी, स्पर्श की सनसनी अभी भी बदन में दौड़ रही थी।

और यही हालत शायद रिशु की भी थी, वो भी शायद अपनी माँ के स्पर्श से बहुत ज्यादा उत्तेजित हो जाता था, शायद मेरे जैसे वो भी खुद पर काबू खो देता है, और इसीलिए मैंने उसे वहां रोक दिया था, जिस तरह उसका लंड मेरी गांड के नीचे झटके मार रहा था और वो जिस तरह सिसक रहा था वो ज्यादा देर टिकने वाला नहीं था, वो जल्द ही सखलित हो जाता, फिर मेरा क्या होता, अगर वो इतना उत्तेजित न होता तो मैं उसे ना रोकती, उससे वहीं चुदवा लेती, लेकिन अब क्या, अब वो उससे नाराज हो गया था, अब वो उसे मनाए कैसे, प्रतिमा सोचती है, उसे समझ नहीं आ रहा था वो अपनी बात की शुरुआत कहां से करे, जैसे मन में उलझन की गांठ बंध गई हो। अचानक बेड की पीठ पर रखे मोबाइल की घंटी बज उठी, प्रतिमा और रिशु दोनों एकदम से चौंक उठते हैं, घंटी की तेज आवाज कमरे में गूंजती।

रिशु अपना बाजू अपनी आंखों से हटाकर अपनी माँ की ओर मुख घुमाकर देखता है, उसकी आंखें अभी भी नाराजगी से भरी थीं। प्रतिमा बेड की पीठ से मोबाइल उठाती है और जैसी उसने उम्मीद की थी, फोन उसके घरवाले का ही था, स्क्रीन पर नाम चमक रहा था। प्रतिमा ओके का स्विच दबाकर मोबाइल को कान से लगाती है, वह अब भी पहले की तरह सिरहाने पर कोहनी के बल उचककर रिशु की ओर देख रही थी और अब रिशु भी उसकी ओर देख रहा था, उसकी नजरें प्रतिमा के चेहरे पर जमी थीं।

“हेलो, हां जान कैसे हो,” प्रतिमा रिशु की आंखों में झांकती मोबाइल के माइक्रोफोन में बोली, उसकी आवाज नरम और मीठी थी।

दूसरी तरफ से अतुल की आवाज आई, जो थकी हुई लग रही थी लेकिन प्यार से भरी, “हां, मैं ठीक हूं, तुम कैसी हो, रिशु कैसा है।”

“हां हम ठीक हैं, रिशु भी ठीक है, पूरी मस्ती कर रहा है, बहुत शरारती बन गया है आजकल, ऐसी ऐसी शरारतें करता है कि क्या बताऊं आपको, आप सुनाइए आप कैसे हैं, आपकी तबीयत तो ठीक है ना,” प्रतिमा बोली, उसकी नजर रिशु पर थी।

दूसरी तरफ से, “मैं ठीक हूं, बस काम का प्रेशर है, लेकिन सब मैनेज हो रहा है।”

“और काम काज कैसा चल रहा है,” प्रतिमा रिशु की ओर घूर रही थी, जिसने फिर से अपना चेहरा मोड़कर ऊपर की ओर कर लिया था और अपनी आंखों पर फिर से बांह रख ली थी, लेकिन उसकी सांसें तेज हो गईं थीं।

दूसरी तरफ से, “काम ठीक है, लेकिन तुम्हारी याद बहुत आ रही है।”

“मैं क्या करूंगी वही कर रही थी जो पूरा दिन करती हूं, बस आपको याद कर रही थी,” प्रतिमा बोली।

दूसरी तरफ से, “मुझे भी तुम्हारी याद आ रही है, रातें कटती नहीं हैं।”

“नींद किसे आती है जान, यहां तो पूरी पूरी रात करवटें बदलते बदलते निकल जाती है, ना दिन को चैन, ना रात को, बस किसी तरह दिन काट रहे हैं आपकी राह देखते,” प्रतिमा बोली।

दूसरी तरफ से, “मुझे माफ कर दो, लेकिन काम जरूरी था, जल्दी आऊंगा।”

“इतनी याद आती है तो फिर छोड़ कर क्यों गए थे, यह भी नहीं सोचा मैं किसके सहारे दिन काटूंगी, इतनी लंबी लंबी रातें बिना आपके कैसे काटूं,” प्रतिमा बोली, उसकी आवाज में एक कामुकता घुल गई थी।

दूसरी तरफ से, “जान, मैं भी तड़प रहा हूं, तुम्हारी याद में क्या हाल है मेरा।”

“रिशु, वो अपने कमरे में सोया हुआ है उसकी आप चिंता मत कीजिए, जो भी बात करनी है, खुल कर कीजिए,” प्रतिमा थोड़ा ऊंचे स्वर में बोली, उसकी नजर रिशु पर थी जो अब ध्यान से सुन रहा था।

दूसरी तरफ से, “तो बताओ ना जान, तुम्हारी हालत कैसी है, मुझे तो तुम्हारी याद में लंड खड़ा हो गया है।”

“उफ्फ्फ, मेरी कौन सी हालत आपसे कम बुरी है, आपको कैसे बताऊं, सारा दिन गीली रहती है बेचारी, हर पल आपके लंड के लिए तरसती है,” प्रतिमा का स्वर कामुक होता जा रहा था, उसकी सांसें गर्म हो गईं।

दूसरी तरफ से, “मुझे तो अभी तुम्हारी चूत की याद आ रही है, कितनी गर्म और रसीली है।”

“आपका खड़ा है तो मेरी चूत भी रस टपका रही है, मेरी कच्छी पूरी भीग गई है,” प्रतिमा सिसकती हुई बोली, उसकी नजर रिशु की पेंट पर थी जहां जिपर के स्थान पर एक तंबू बनना शुरू हो गया था, पेंट की कपड़े से हल्की रगड़ महसूस हो रही थी।

दूसरी तरफ से, “कितना रस बहाती है तुम्हारी चूत, मुझे उसका स्वाद याद आ रहा है।”

“हाए जानू, क्या बताऊं जितना मैं तुम्हें याद करती हूं, उससे बढ़कर मेरी चूत तुम्हारे लंड को याद करती है, इसीलिए सारा दिन मेरी कच्छी भीगी रहती है,” प्रतिमा बोली, उसकी सांसें तेज हो गईं।

दूसरी तरफ से, “मुझे तुम्हारी हर चीज याद आ रही है, तुम्हारे मुम्मे, तुम्हारी चूत, तुम्हारी गांड।”

“मुझे भी आपकी हर बात याद आती है, जब आप मेरे मुम्मे निचोड़-निचोड़ कर चूसते थे, जब आप मेरी चूत चाटते थे, उफ्फ्फ, जब भी आपकी जीभ की याद आती है तो चूत में सनसनी होने लगती है, किस तरह आप अपनी जीभ मेरी चूत में घुसा कर अंदर तक चाटते थे, और जब आप उसे मेरे दाने पर रगड़ते थे, आह्ह्ह, जब आप पूरी-पूरी रात मुझे चोदते थे, हाए, जब आप अपने मोटे लंबे मुसल से मेरी चूत को पेलते थे, आआह्ह्ह, कभी घोड़ी बनाकर, कभी डॉगी स्टाइल में, उफ्फ्फ,” प्रतिमा एक हाथ से मोबाइल पकड़े और दूसरे से अपनी चूत सहलाती बोली, उसकी सिसकियां कमरे में गूंज रही थीं।

दूसरी तरफ से, “मैं अभी भी कल्पना कर रहा हूं, तुम्हारी चूत में अपना लंड डालकर पेल रहा हूं, कितनी गर्म और टाइट है।”

“उफ्फ्फ, मैं भी चूत में उंगली कर रही हूं, जान, तुमने मेरी चूत में आग लगा दी है, हाए मेरी चूत, मेरा मुंह, मेरी गांड, आपके लंड के लिए तड़प रही है,” प्रतिमा सिसकियां भरकर बोली, उसकी उंगली चूत में फिसल रही थी।

दूसरी तरफ से, “मुझे तुम्हारी याद में दिन में एक बार मुट्ठ मारनी पड़ती है।”

“हाए आपको मेरी चूत की याद में दिन में एक बार मुट्ठ मारनी पड़ती है, मगर मैं नाजाने कितनी बार आपके लंड को याद करके चूत में उंगली करती हूं,” प्रतिमा बोली, उसकी सांसें और तेज हो गईं।

दूसरी तरफ से, “मुझे तुम्हारे जाने से पहले वाली रात याद आ रही है, पूरी रात चोदा था।”

“हाए मुझे भी आपके जाने से पहले वाली रात का एक-एक पल याद है, हाए पूरी रात आपने सोने नहीं दिया था, जैसे दो महीने की कसर एक ही रात में पूरी करनी हो, किस तरह आपने आधे घंटे तक मेरी चूत चाट-चाट कर झाड़ी थी, फिर आपने जब मेरे मुंह को चोदा था, उफ्फ्फ, मेरी तो सांस ही बंद हो गई थी, गले तक घुसा दिया था आपने, एक-एक पल याद है मुझे, उस रात का, आपने जब मुझे खड़े-खड़े अपनी गोद में उठा लिया था और फिर अपने लंड पर उछाल-उछाल कर पूरे कमरे में घूमते हुए मुझे चोदा था, इस कोने से उस कोने तक, और फिर सुबह जब आपने मुझे घोड़ी बनाकर मेरी गांड मारी थी, हाए आपने मेरी तंग गांड में अपना मुसल पेल-पेल कर मेरी गांड सूजा दी थी, मुझसे दो दिन ठीक से चला नहीं गया था,” प्रतिमा अब बोल नहीं रही थी केवल सिसकियां भर रही थी, उसकी उंगली चूत में तेज चल रही थी।

दूसरी तरफ से, “मैं अभी कल्पना कर रहा हूं, तुम्हें चोद रहा हूं, तुम्हारी चूत में धक्के मार रहा हूं।”

“आह्ह्ह हाए रे जालिम, एक ही झटके में पूरा घुसा दिया, उफ्फ्फ मेरी जान निकाल दी,” प्रतिमा सिसकती बोली।

दूसरी तरफ से, “अब जोर-जोर से पेल रहा हूं, तुम्हारी चूत फाड़ रहा हूं।”

“पेलते रहो जान, पेलते रहो, बस ऐसे ही, उफ्फ्फ, आह्ह्ह, जड़ तक पेलते रहो,” प्रतिमा की सिसकियां ऊंची हो गईं।

दूसरी तरफ से, “तुम्हारी टांगें उठाकर कंधे पर रख ली हैं, अब और गहराई से चोद रहा हूं।”

“हां, हां, ऐसे ही, ऐसे ही, चोदो अपनी जान को, उफ्फ्फ, एक मिनट, एक मिनट, रुकिए मेरी टांगें उठाकर अपने कंधे पर रखिए, हां अब चोदो मुझे, अब मेरी चूत में पेलो,” प्रतिमा बोली।

दूसरी तरफ से, “तुम्हारे मुम्मे पकड़ लिए हैं, मसलते हुए चोद रहा हूं।”

“आह्ह्ह, हाए, आह्ह्ह, चोद दीजिए, जोर से, पेलो, और जोर से, उफ्फ्फ मेरे मुम्मे पकड़ो, मेरे मुम्मे मसल-मसलकर अपना लंड पेलो मेरी चूत में,” प्रतिमा की उंगली तेज चल रही थी।

दूसरी तरफ से, “मैं झड़ने वाला हूं, तुम्हारी चूत में वीर्य डाल रहा हूं।”

“आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, मेरा भी निकल रहा है, मेरा भी निकल रहा है, हे भगवान, इसे मेरे मुंह में डाल दीजिए, मुझे आपकी मलाई खानी है,” प्रतिमा चीखती बोली।

दूसरी तरफ से, “मुंह में डाल दिया, चूसो।”

“लीजिए आपका लंड बिलकुल साफ कर दिया है, देखिए कैसे चमक रहा है,” प्रतिमा बोली।

दूसरी तरफ से, “मजा आ गया, तुम्हें कैसा लगा।”

“उफ्फ्फ, मैं आपको क्या बताऊं मुझे कितना मजा आया, आपने तो फोन पर ही मेरी ऐसी हालत कर दी, घर आकर क्या करेंगे,” प्रतिमा बोली।

दूसरी तरफ से, “जल्दी आऊंगा, इंतजार करो।”

“मैं इंतजार करूंगी बेसब्री से,” प्रतिमा बोली।

दूसरी तरफ से, “रिशु का ख्याल रखना।”

“रिशु की आप चिंता मत कीजिए, मैं उसका पूरा ख्याल रख रही हूं, बल्कि अब तो वो मेरा ख्याल रखने लगा है,” प्रतिमा बोली।

दूसरी तरफ से, “कैसे।”

“फिर बताऊंगी, अब मुझे नहाने जाना है, आपने मेरी हालत खराब कर दी है, पूरी पसीने से भीग गई हूं,” प्रतिमा बोली।

दूसरी तरफ से, “ओके, गुडनाइट, लव यू।”

“आप भी अपना ख्याल रखना घर की चिंता मत कीजिए, आपने काम और सेहत का ध्यान रखना, अच्छा रखती हूं, ओके बाय, स्वीट ड्रीम्स जान, मुवाआह्ह्ह,” कॉल खत्म।

दोस्तों अभी के लिए इतना ही आगे की कहानी आगे के भाग में। आगे की कहानी में जानिए बेटे के सामने ही बिस्तर में पति के साथ फोन सेक्स करने के बाद माँ और बेटे ने बिस्तर में क्या गदर काटा।

कहानी का अगला भाग: बेटे की लुल्ली को लौड़ा बनाया माँ ने 3

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