चूत की चटनी बनाई देवर ने चोद चोद कर

Devar Bhabhi Sex Story – Bhabhi ki gand chudai sex story: मैं सामाजिक कार्य में बहुत रुचि लेती हूँ, सभी लोग मेरी तारीफ़ भी करते हैं। मेरे पति मुझसे बहुत खुश रहते हैं और मुझे बहुत प्यार करते हैं। चुदाई में भी कभी कमी नहीं रखते। पर हाँ, उनका लण्ड दूसरों की अपेक्षा छोटा ही है। फिर भी रात को वो मेरी चूत से लेकर गाण्ड तक चोद देते हैं, मुझे उनकी इस प्यार भरी चुदाई से बहुत आनन्द आता है।

पर कमबख्त ये शिवम्, क्या करूँ इसका? मेरा दिल हिला कर रख देता है। जी हाँ, ये शिवम् मेरे पति का छोटा भाई है, यानी मेरा देवर… जालिम बहुत कंटीला है… उसे देखकर मेरा मन डोल जाता है। मेरे पति लगभग आठ बजे ड्यूटी पर चले जाते हैं और शाम छः बजे तक लौटते हैं। इस बीच मैं उसके बहुत चक्कर लगा लेती हूँ, पर कभी ऐसा मौका नहीं आया कि शिवम् पर डोरे डाल सकूँ। न जाने क्यों लगता था कि वो जानबूझकर नखरे कर रहा है।

आज सुबह मेरा दिल काबू से बाहर हो गया। शिवम् बैडमिंटन खेलकर सुबह आठ बजे आया था और आते ही बाथरूम में चला गया। उसकी अंडरवियर शायद ठीक नहीं थी, सो उसने उतारकर पेशाब किया और सिर्फ़ अपनी सफ़ेद निकर ढीली करके बिस्तर पर लेट गया। मुझे उसका मोटा सा लण्ड का उभार साफ़ नज़र आ रहा था। मेरा दिल मचलने लगा।

“शिवम् को नाश्ता करा देना, मैं जा रहा हूँ! आज दिल्ली जाना है, दोपहर को घर आ जाऊँगा।” मेरे पति ने मुझे आवाज़ लगाई और कार स्टार्ट कर दी।

मैंने देखा कि शिवम् की अंडरवियर वॉशिंग मशीन में पड़ी थी। उसके कमरे में झाँककर देखा तो वो शायद सो गया था। उसे नाश्ते के लिए कहने मैं कमरे में आ गई। वो दूसरी तरफ़ मुँह करके खर्राटे भर रहा था। उसकी सफ़ेद निकर ढीली सी नीचे खिसकी हुई थी और उसके चूतड़ों के ऊपर की दरार नज़र आ रही थी। मैंने जैसे ही उसके पाँव हिलाया, मेरा दिल धक से रह गया। उसकी निकर की चेन पूरी खुल गई और उसका मोटा, लंबा, गोरा लण्ड बिस्तर से चिपका हुआ था। उसका लाल सुपारा ठीक से तो नहीं, पर बिस्तर के बीच दबा हुआ थोड़ा सा नज़र आ रहा था।

मेरे स्पर्श करने पर वो सीधा हो गया, पर नींद में ही था। उसके सीधे होते ही उसका लण्ड सीधा खड़ा हो गया—बिलकुल नंगा, मदमस्त, सुंदर, गुलाबी सा—जैसे मुझे चिढ़ा रहा हो। मुझे मज़ा आ गया। शर्म से मैंने हाथों से चेहरा छुपा लिया और जाने लगी।

कहते हैं ना, लालच बुरी बला है… मन किया कि बस एक बार और देख लूँ। मैंने चुपके से फिर देखा। मेरा मन डोल उठा। मैं मुड़ी और उसके बिस्तर के पास नीचे बैठ गई। शिवम् के खर्राटे पहले जैसे ही थे, वो गहरी नींद में था, शायद बहुत थका हुआ था। मैंने साहस बटोरा और उसके लण्ड को अँगुलियों से पकड़ लिया। वो शायद सपने में कुछ कर रहा था। मैं उसके लण्ड को सहलाने लगी, मुट्ठी में भरकर देखा, फिर लालच और बढ़ गया।

मैंने तिरछी निगाहों से शिवम् को देखा और मुँह खोल दिया। उसके सुंदर सुपारे को मुँह में धीरे से भर लिया और चूसने लगी। चूसने से उसे बेचैनी हुई। मैंने जल्दी से लण्ड मुँह से बाहर निकाल लिया और कमरे से चली आई।

मेरा नियंत्रण अपने आप पर नहीं था, साँसें उखड़ रही थीं। दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। आँखें बंद करके दिल पर हाथ रखकर खुद को संयत करने लगी। मैं बार-बार दरवाज़े की ओट से उसे देख रही थी।

शिवम् कमरे में नाश्ता कर रहा था और कह रहा था, “भाभी, जाने कैसे-कैसे सपने आते हैं… बस मज़ा आ जाता है!” मेरी नज़रें झुक गईं, कहीं वो सोने का बहाना तो नहीं कर रहा। पर शायद नहीं! वो खुद बोलकर शर्मा गया था। मैंने हिम्मत करके ब्लाउज़ का ऊपरी बटन खोल दिया, ताकि उसे अपना हुस्न दिखा सकूँ।

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चोरी-चोरी वो तिरछी निगाहों से मेरे उभरे स्तनों का आनन्द ले रहा था। उसकी हरकतों से मुझे भी आनन्द आने लगा। मैंने दिल कड़ा करके झुककर अपने पके आमों की गोलाइयाँ और लटका दीं। इस बीच मेरी धड़कन तेज़ हो गई, पसीना आने लगा।

ये कमबख्त जवानी जो करा दे, वो कम है। मुझे मालूम हो गया कि मैं उसकी जवानी का रस ले सकती हूँ। नाश्ता करके शिवम् कॉलेज चला गया। मैं दिन का भोजन बनाने के बाद बिस्तर पर लेटी शिवम् के बारे में सोच रही थी। उसका मदमस्त, गुलाबी, गोरा लण्ड आँखों के सामने घूमने लगा। मैंने चूत दबा ली, फिर बस नहीं चला तो पेटीकोट ऊँचा करके चूत नंगी कर ली और सहलाने लगी।

जितना सहलाती, उतना शिवम् का मोटा लण्ड चूत में घुसता सा लगता और मुँह से सिसकारी निकल जाती। मैं यौवनकलिका हिला-हिलाकर उत्तेजना बढ़ाती गई और फिर स्खलित हो गई। दोपहर दो बजे पति और शिवम् दोनों आ चुके थे, फिर पति दिन की गाड़ी से तीन दिनों के लिए दिल्ली चले गए। उनके दो-तीन दिन के टूर तो होते रहते थे। जब वो नहीं रहते, शिवम् शाम को खूब शराब पीता और मस्ती करता।

आज भी शाम को शराब लेकर आया और सात बजे से पीने बैठ गया। डिनर के लिए मुझसे पैसे लिए और मुर्गा-तंदूरी चपाती ले आया। वो बार-बार बुलाकर पीने को कहता, “भाभी, भैया तो हैं नहीं, चुपके से एक पैग मार लो!”

मस्ती में वो कहता रहा। “नहीं देवर जी, मैं नहीं पीती, आप शौक फ़रमाइए!”

“अरे कौन देखता है, घर में तो हम दोनों ही हैं… ले लो भाभी… मस्त हो जाओ!”

उसकी बातें मुझे घायल करने लगीं। बार-बार मनुहार से मैं रोक नहीं पाई। “अच्छा ठीक है, पर भैया को मत बताना…!” मैंने हिचकते कहा।

“ओये होये, क्या बात है भाभी… मज़ा आ गया! फिकर ना करो, ये देवर-भाभी की बात है…”

मैंने गिलास मुँह से लगाया तो कड़वी और अजीब लगी। मैंने एक सिप की और चुपके से नीचे गिरा दी। कुछ देर में शिवम् बहकने लगा और गालियाँ निकालने लगा, पर वो गालियाँ मुझे सेक्सी लग रही थीं।

“हिच, माँ की लौड़ी, तेरी चूत मारूँ… चिकनी है भाभी… तुम्हारे मुम्मे बहुत मस्त हैं!”

अब उसकी गालियाँ मुझे बहका रही थीं। “ऐ चुप रहो…” मैंने प्यार से सर पर हाथ फेरते कहा।

“यार तेरी चुदी चूत दिखा दे ना… साली को चोदना है! मोटा लंड तेरी प्यारी चूत में डाल दूँगा।” आँखों में वासना के डोरे साफ़ नज़र आने लगे।

“आप सो जाइए अब… बहुत हो गया!”

“अरे मेरी चिकनी भाभी, मेरा लण्ड देख… तेरे साथ तुझे नीचे दबाकर सो जाऊँ मेरी जान!”

वो बेशर्म होकर पजामा नीचे सरकाकर लण्ड हाथ में लेकर हिलाने लगा। मुझे शर्म आने लगी, पर उसकी हरकत दिल में बर्छियाँ चला रही थी। लगा वो टुन्न हो चुका था। अच्छा मौका था देवर की जवानी देखने का। दिल कर रहा था कि उसका मस्त लौड़ा चूत में भर लूँ। पजामा नीचे गिर चुका था। मैंने सहारा दिया तो उसने मुझे जकड़ लिया और चूमने की कोशिश करने लगा।

उसने बनियान उतार दी और मस्ती से सांड की तरह झूमने लगा। लंड घोड़े जैसे आगे-पीछे झूल रहा था। मुझे पीछे से पकड़कर कमर कुत्ते की तरह हिलाने लगा, जैसे चोद रहा हो। मैंने बिस्तर पर लेटा दिया, पर उसने मुझे कसकर दबा लिया और उभरे स्तनों को मसलने लगा।

पहले मैं नीचे दबी आनन्द लेने लगी, फिर दब चुकी तो देखा उसका वीर्य निकल चुका था। मेरा पेटीकोट गीला हो गया। मैंने उसे ऊपर से उतारा और बिस्तर से उतर गई। उसका गोरा लण्ड एक तरफ़ लटक गया। समय देखा तो नौ बज रहे थे। मैंने भोजन किया और कमरे में लेट गई। जो हुआ, सोचकर आनन्दित हो रही थी, मन बहक रहा था।

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जोश में पेटीकोट ऊपर कर चूत दबाने लगी। सोच रही थी, अगर देवर से चुदवा लूँ तो किसी को पता चलेगा? टुन्न होकर चोदेगा तो याद रहेगा? बात घर में रहेगी, जब चाहो मजे करो।

शादी से पहले स्वतंत्र थी, दोस्तों से खूब चुदवाया करती थी। शादी के बाद पुराने दोस्त याद बन गए। इसी उधेड़बुन में आँख लग गई।

अचानक नींद खुली, नीचे हलचल लगी। शिवम् कमरे में था, पेटीकोट ऊपर कर नंगी चूत देख रहा था। चेहरा वासना से लाल था। मैंने धीरे से टाँगें चौड़ी कर लीं। तभी चूत में मीठी टीस उठी। शिवम् की जीभ चूत की दरार में लपलपाती दौड़ गई। गीली चूत चाटकर साफ़ कर दी। जाँघें काँप गईं।

नज़रें उठाकर बोला, “चुदवा ले मेरी जान… लण्ड कड़क हो रहा है!”

शायद और पीकर आया था, मुँह से शराब की भभका आ रही थी। बात सुनकर शरीर में ठंडी लहर दौड़ गई। मुँह फिर चूत पर चिपक गया, वेक्यूम सा हो गया। लगा मदहोश है, पता नहीं क्या कर रहा। मौका है, चुदवा लूँ।

भरपूर चूत चूसी, मैं गुदगुदी से निहाल हो गई। बरबस मुँह से निकला, “शिवम् यूँ मत कर, मैं तेरी भाभी हूँ ना…”

बेकरारी बढ़ती जा रही थी। टाँगें चुदने को ऊपर उठ रही थीं। तभी अँगुली चूत में घुसाई और पास आकर स्तन उघाड़कर चूसने लगा।

मैं शर्म से धकेल रही थी, पर चुदना चाह रही थी। दोनों टाँगें पूरी उठ चुकी थीं। इसी दौरान मोटा लण्ड मुँह में घुसा दिया।

हाय राम! कब से चूसने को बेकरार थी। गड़प से ले लिया और आँखें बंद करके चूसने लगी। उसने चूतड़ हिलाकर लण्ड मुँह में हिलाया। लण्ड में रस सा था, मुँह चिकना कर रहा था।

“भाभी, देखो टाँगें चुदने को उठी हैं… अब चुदवा लो!”

“देवर जी ना करो! भाभी को चोदेगा… हाय नहीं, शर्म आएगी…!”

“पर भाभी, टाँगें तो उठ रही हैं।” लण्ड चूत की तरफ़ झुकाते कहा।

“देवर जी, बहुत खराब हो…” मैंने तिरछी नज़र का वार किया।

शिवम् घायल होकर ऊपर चढ़ा, खुद को सेट किया। मैंने मस्ती में आँखें मूंद लीं। अंततः टाँगों के मध्य फिट हो गया। भारी लण्ड चूत पर दबाव डालने लगा। चूत ने मुँह खोल लिया, सुपारे को पकड़ लिया। मीठी गुदगुदी उठी, लण्ड भीतर समाता गया। मन को ठंडक मिली। इतने दिनों की चाहत पूरी हो गई।

शराब की महक नहीं भा रही थी, पर चुदना था। नशे में जानवर की तरह चोद रहा था। मैं पूर्ण मन से साथ देने लगी। लण्ड पूरा अंदर उत्तेजना दे रहा था। चूत ऊपर-नीचे चलने लगी। अचानक सीने में दर्द, चूचियाँ ज़ोर से दबा दीं। यौवनकलिका घिसकर सुख दे रही थी।

उसे ज़ोर से जकड़कर जवानी भोगना चाहती थी। कमर चूत पर ज़ोर से पड़ रही थी। चूत पिटी जा रही थी। गुदगुदी उठने लगी। चूत लण्ड खा जाना चाहती थी। जिस्म अकड़ने लगा, नसें खिंचने लगीं… मैं ज़ोर से झड़ गई। चूत में लहरें उठीं।

“भोंसड़ी की, चूत ने पानी छोड़ दिया… झड़ गई साली… मेरा तो नहीं निकला…!” समझकर मैंने धकेला और उल्टी हो गई।

“साली छिनाल, गाण्ड मरवानी है?”

“भैया जी, बाकी हसरत गाण्ड में निकाल दो, मेरी तबीयत हरी हो जाएगी।”

“छीः मैं गाण्ड नहीं मारता… भोसड़ी की, गाण्ड फट के हाथ में आ जाएगी!”

“ओह्हो, डींगे मार रहे हो, गाण्ड नहीं चोदी जा रही?”

वो गुर्राकर उछला और पीठ पर सवार हो गया। “तेरी माँ की चूत… अब पानी निकाल के रहूँगा…”

लण्ड गाण्ड में दबाया। मैं दर्द से कराह उठी। लण्ड फाड़ता हुआ आधा अंदर बैठ गया। फिर धक्का मारा, चीख निकल गई। पर संतुष्ट थी, जमकर चुदाई हो रही थी। ईश्वर का धन्यवाद किया, मन की मुराद पूरी हो रही थी—थोड़ी दर्द भरी, थोड़ी मस्ती भरी!

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गाण्ड का छेद ढीला छोड़ दिया, लस्त सी बिस्तर पर पसर गई। वो गाण्ड चोदता रहा, फिर लण्ड बाहर निकालकर सारा वीर्य गाण्ड के गोलों पर छोड़ दिया। कितनी देर नोचता-खसोटता रहा, पता नहीं, मैं नींद में खो गई। मन में संतुष्टि थी।

सुबह आँख खुली तो शिवम् नंग-धड़ंग लिपटा पड़ा था। मैंने सोचा ऐसे ही पड़े रहूँ, याद रहे कि भाभी को चोदा है, आगे का रास्ता खुल जाए। मैं नंगी उसकी बाहों में पड़ी रही। वो उठा और आश्चर्य से आँखें फाड़कर देखने लगा। वीर्य के निशान और नंगी भाभी देखकर सब याद आया।

जल्दी उठकर खुद को ठीक किया। मुझे ध्यान से देखा, झुका। अंग-प्रत्यंग निहारने लगा। लण्ड फिर खड़ा होने लगा। चेहरे पर वासना उभरी। मैं धीरे उठी, चेहरा छिपा लिया। शर्म का अभिनय करने लगी।

“ऐसे मत देखो देवर जी! देखो ये क्या कर दिया?”

निर्वस्त्र शरीर को वासनामयी दृष्टि से निहारता बोला, “भाभी, आप इतनी सुंदर हैं, ये तो होना ही था!” नज़रें चूत पर टिकी थीं। मैं कुछ कहती, लण्ड कड़ा हो गया, तनकर खड़ा हो गया, दिल डोल उठा।

“इसे नीचे करो… वरना फिर जिस्म में घुस जाएगा।”

जानकर लण्ड पकड़ नीचे करने लगी। शिवम् मुस्कराया, धक्का देकर बिस्तर पर लेटा दिया। उछलकर पीठ पर सवार हो गया।

“भाभी, पहले गुड मॉर्निंग तो कर लें!” चूतड़ों के नीचे टाँगों पर बैठ गया। लंबा लण्ड चूतड़ों पर स्पर्श करने लगा।

“शिवम् चुप हो जा, बड़ा आया गुड मॉर्निंग करने वाला!”

“इतनी प्यारी गाण्ड का उद्घाटन करना पड़ेगा, भाभी, कर दूँ?”

मैं शरमा उठी। गाण्ड चुदने वाली थी, दिल खुशी से उछलने लगा। आँखें बंद करके इंतज़ार करने लगी कि कब लण्ड उद्धार कर दे। चूतड़ की दरार में खुजली मचने लगी।

तभी बीच में नर्म सुपारे का अनुभव हुआ। आह्ह… शुरुआत हो गई। लण्ड चूतड़ों के बीच घुसने लगा। मैंने पाँव और खोल दिए, सुपारा गाण्ड के छेद को छू गया। छेद लपलपाया, फिर ढीला कर दिया।

शिवम् का जोश देखते बनता था। झुककर उभार पकड़ दबाए, चूचियाँ मसल डालीं…

मोटा लण्ड गाण्ड फोड़ता अंदर घुसने लगा। गाण्ड मस्त हो उठी। मुँह से वासनामय सिसकारी फूटी। उसके मुँह से मोहक चीख निकली। लण्ड पूरा उतर गया। भार डालकर लिपट गया।

अब नशे में नहीं था, होश में चोद रहा था। वास्तविक अनुभव ले रहा था। जमकर गाण्ड चुदाई कर आनन्द के सागर में बहा रहा था। धीरे कान में कहा, “भाभी, चूत चोद दूँ… जी कर रहा है…!”

शिवम् गाण्ड के पीछे पड़ा था… भोसड़ा चोदने की बात पर बोली, “मुझे सीधी होने दे… ऐसे कैसे चूत चोदेगा?” वासना भरी आवाज़ में।

सीधी हो गई। शिवम् टाँगों के बीच आया, हाथों से चूत के कपाट खोल दिए। रस भरी गुफा नज़र आई। लौड़ा हिलाया और गुफा में घुसाता गया। बीच में एक-दो बार बाहर खींचा, फिर पेंदे तक फिट कर दिया।

खुशी से चीख उठी। वो धीरे ऊपर लेट गया, होंठ दबाकर रसपान करने लगा। हाथ सीने को गुदगुदाते रहे। मुझे होश कहाँ! चूतड़ दबा लिए, सिसकने लगी।

चूत लण्ड के साथ थाप देने लगी, थप-थप की आवाज़ आने लगी। चूत पिटने लगी। झाँटें काँटों की तरह चुभकर मज़ा दुगना कर रही थीं। लण्ड की गोलियाँ चूत के नीचे टकराकर मीठापन बढ़ा रही थीं।

कैसा सुहाना माहौल था। सुबह लौड़ा मिल जाए तो कामदेव की आराधना हो जाती, दिन मस्ती से गुजरता।

दिन भर शिवम् चिपका रहा। कॉलेज नहीं गया, कभी गाण्ड मारता, कभी चूत जमकर चोदता। पति लौटने तक चोद-चोदकर रंडी बना दिया, चूत को इंडिया गेट, गाण्ड को समंदर बना डाला।

पति लौटते ही चुदाई से राहत मिली। पर कितनी! जैसे ही काम जाते, शिवम् चोद देता।

हाय राम… चुदने की इच्छा मेरी थी, पर ऐसी नहीं कि चटनी बना दे…

बस फिर क्या, रात को पति को खुश करती, दिन में देवर के लौड़े से खुद खुश रहती।

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