Group sex story निशा की शादी को पांच साल से ज्यादा हो चुके थे। अब वह पच्चीस साल की थी, एक खूबसूरत, गोरी-चिट्टी औरत, जिसके गोल-मटोल चेहरे पर हमेशा एक हल्की सी मुस्कान रहती थी। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी थीं, जिनमें एक अजीब सी चमक थी, और उसके लंबे, घने बाल कमर तक लहराते थे। उसका फिगर 34-28-36 का था, जो किसी को भी दीवाना बना दे। पति राजेश्वर, जो अब सत्ताईस साल के थे, एक सरकारी नौकरी में थे। मध्यम कद, साधारण चेहरा, और गंभीर स्वभाव के राजेश्वर के साथ निशा की जिंदगी सामान्य सी चल रही थी। महीने में दो-तीन बार जब मूड बनता, तो दोनों बिस्तर पर एक-दूसरे के करीब आ जाते थे। लेकिन एक साल पहले एक सरकारी टूर के दौरान हुई दुर्घटना ने सब कुछ बदल दिया। राजेश्वर ने अपनी एक टांग गंवा दी थी, और साथ ही उनकी यौन-क्षमता भी चली गई। अब उनका लंड खड़ा ही नहीं होता था। निशा, जो अपनी जवानी के जोश में थी, अब अंदर ही अंदर तड़प रही थी।
इन सालों में निशा की जिंदगी एक रूटीन में बंध गई थी। राजेश्वर सुबह ऑफिस चले जाते, और निशा घर में अकेली रह जाती। न चुदाई की रंगीन रातें, न कोई रोमांच। बस टीवी का रिमोट थामे घंटों सीरियल देखना या फिर पड़ोस की औरतों के साथ इधर-उधर की बातें करना। “हाय राम, ये तो वैसी ही गॉसिप थी,” निशा सोचती, “जैसे सास-बहू के सीरियल में होता है।” लेकिन निशा ऐसी औरत नहीं थी, जो इस बोरियत में डूब जाए। उसके अंदर अभी भी एक चुलबुलापन था, एक चाहत थी कुछ नया करने की। तभी उसके दिमाग में ख्याल आया कि क्यों न एम.ए. कर लिया जाए? उसने सुना था कि प्राइवेट पढ़ाई के लिए एडमिशन चल रहे हैं। ज्यादा जानकारी न होने की वजह से उसने पास के एक स्कूल में जाने का फैसला किया, सोचकर कि वहां की टीचर से कुछ गाइडेंस मिल जाएगी।
स्कूल में उसे अपनी पुरानी जान-पहचान वाली टीचर, रीता, मिल गई। रीता उस समय क्लास में थी, लेकिन उसने निशा को एक टीचर, विक्रम, से मिलवा दिया। विक्रम, तीस साल का एक स्मार्ट, लंबा-चौड़ा मर्द, जिसके चेहरे पर हमेशा एक चालाक मुस्कान रहती थी। उसकी गहरी आवाज और आत्मविश्वास भरा अंदाज किसी को भी इम्प्रेस कर देता। विक्रम ने निशा को सारी प्रक्रिया समझाई—कौन सा फॉर्म भरना है, कितनी फीस है, और किन-किन डॉक्यूमेंट्स की जरूरत है। तभी वहां विवेक आ गया, विक्रम का दोस्त, जो उसी स्कूल में पढ़ाता था। विवेक, अट्ठाईस साल का, थोड़ा सांवला लेकिन आकर्षक, अपनी हाजिरजवाबी के लिए मशहूर था। उसकी आँखों में एक शरारत थी, जो निशा को तुरंत भा गई। निशा को सारी जानकारी समझने में उलझन हो रही थी, और विवेक ने उसके चेहरे की परेशानी भांप ली।
“अच्छा, निशा जी! आप हमारे साथ चलो, हमें भी तो फॉर्म भरना है,” विवेक ने हल्के मस्ती भरे लहजे में कहा।
“कब चलें?” निशा ने उत्सुकता से पूछा।
“बस, दो बजे छुट्टी हो जाएगी। मैं अपनी कार ले आऊंगा, फिर चलते हैं!” विवेक ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
“जी, बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं आपका इंतजार करूंगी,” निशा ने शर्माते हुए कहा, लेकिन उसकी आँखों में एक हल्की सी चमक थी।
दोपहर तीन बजे विवेक अपनी पुरानी मारुति कार लेकर निशा के घर पहुंचा। निशा ने आज साड़ी छोड़कर टाइट जीन्स और एक फिटिंग टॉप पहना था, जिसमें उसका फिगर पूरी तरह उभर रहा था। उसकी कमर पतली और चूचियां भारी थीं, जो टॉप में से साफ झलक रही थीं। बाहर निकलते ही विवेक की नजर उस पर पड़ी, और वह एकदम से रुक गया।
“सुनिए, निशा जी हैं क्या?” विवेक ने कार की खिड़की से गर्दन निकालकर पूछा, जैसे उसे यकीन ही न हो।
“हां, हैं!” निशा ने हंसते हुए जवाब दिया, अपनी चूड़ियों को ठीक करते हुए।
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“कहना कि विवेक और विक्रम आए हैं,” विवेक ने मस्ती भरे अंदाज में कहा।
“अरे, दरवाजा तो खोलो!” निशा ने हल्का सा नखरा दिखाया।
“पर वो निशा जी को आना था…” विवेक ने फिर छेड़ा।
“क्या है? पहचानते ही नहीं! मैं ही तो निशा हूँ!” निशा ने हंसते हुए कहा, और अपनी एक जुल्फ को कान के पीछे ठीक किया।
विक्रम और विवेक दोनों उसे देखकर हक्के-बक्के रह गए। साड़ी में लिपटी साधारण सी निशा कहां, और ये मॉडर्न, हॉट लड़की कहां! दोनों हंस पड़े।
“कैसे पहचानें, निशा जी? वो साड़ी वाली बहनजी और ये…?” विवेक ने आंख मारते हुए कहा।
“बस-बस, अब चलो तो!” निशा ने हंसते हुए कार की तरफ बढ़ते हुए कहा।
तीनों ऑफिस गए, फॉर्म ले आए, और अब उसे भरना बाकी था। फोटो लगाने थे, फीस का हिसाब करना था। निशा ने औपचारिकता निभाते हुए कहा, “आप दोनों शाम को खाना हमारे साथ खाइए, फिर ये फॉर्म भी भर लेंगे।”
विक्रम और विवेक को तो जैसे निशा के साथ और वक्त बिताने का मौका मिल गया। वे दोनों खुशी-खुशी मान गए, लेकिन मन ही मन निशा की खूबसूरती के कायल हो चुके थे। “कितने सभ्य और अच्छे लोग हैं,” निशा ने सोचा, और मुस्कुराते हुए घर के अंदर चली गई। उधर, विक्रम और विवेक रास्ते भर निशा की बातें करते रहे। “यार, क्या माल है!” विवेक ने कहा, और दोनों हंस पड़े। उनकी बातों में एक-दूसरे के मन की हवस साफ झलक रही थी।
शाम को दोनों निशा के घर पहुंचे। सादे कपड़ों में, सभ्य और शालीन अंदाज में। निशा ने अपने पति से उनका परिचय करवाया, “ये राजेश्वर, मेरे पति। और ये विक्रम और विवेक हैं। इन्होंने आज मेरी बहुत मदद की, इसलिए इन्हें डिनर पर बुलाया है।”
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राजेश्वर, अपनी व्हीलचेयर पर बैठे, मुस्कुराए। “अरे, दोनों अकेले आए हो? भाभियां साथ होतीं तो और मजा आता,” उन्होंने मजाक में कहा।
“जी, अगली बार जरूर लाएंगे,” विवेक ने हंसते हुए जवाब दिया।
“हां, बुलाइएगा न?” विक्रम ने भी हंसकर साथ दिया।
खाने के बाद तीनों फॉर्म भरने बैठ गए। राजेश्वर अपनी व्हीलचेयर पर लुढ़कते हुए अंदर चले गए। निशा का सब्जेक्ट ज्योग्राफी था, और संयोग से विक्रम और विवेक ने भी बी.ए. में ज्योग्राफी पढ़ा था, सो उन्होंने भी वही सब्जेक्ट चुन लिया। उस दिन के बाद तीनों की दोस्ती गहरी होने लगी। साल भर में वे अक्सर मिलते, नोट्स शेयर करते, और एक-दूसरे के साथ वक्त बिताते। राजेश्वर को भी उनकी दोस्ती अच्छी लगती थी। लेकिन निशा के मन में अब कुछ और ही चल रहा था। वह विक्रम और विवेक के बारे में सोचकर अजीब सी बेचैनी महसूस करने लगी थी। रात को अकेले में वह अपनी चूत को सहलाते हुए उनके साथ गंदे-गंदे ख्यालों में खो जाती। “हाय, अगर ये दोनों मुझे…” वह सोचकर सिहर उठती।
उधर, विक्रम और विवेक भी निशा को लेकर पागल हो रहे थे। “यार, रात को सपने में निशा की चुदाई की थी,” विवेक ने एक दिन बेशर्मी से कहा, अपना लंड दबाते हुए। “हाय, क्या मस्त चूत होगी उसकी!” विक्रम भी हंसते हुए बोला, “मेरे सपने में तो मैं उसकी गांड मार रहा था!” दोनों की बातें सुनकर साफ था कि निशा भी उनके दिमाग में चढ़ चुकी थी।
परीक्षा का वक्त नजदीक आ गया। उनका सेंटर भोपाल में था, जो उनके शहर से दो घंटे की दूरी पर था। विवेक ने प्लान बनाया कि तीनों एक साथ कार से जाएंगे और किसी होटल में रुकेंगे। राजेश्वर ने भी उनकी दोस्ती पर भरोसा करते हुए इजाजत दे दी। निशा पढ़ाई में तेज थी, उसने सारा कोर्स अच्छे से कवर कर लिया था, लेकिन एग्जाम का टेंशन उसे सताने लगा। रवाना होने से एक दिन पहले उसे हल्का बुखार सा चढ़ गया। ऊपर से उसकी माहवारी भी असमय शुरू हो गई। “हाय राम, ये क्या मुसीबत है!” निशा ने खीजते हुए सोचा। उसे बहुत असहज लग रहा था, लेकिन उसने हिम्मत जुटाई।
तीनों भोपाल पहुंचे और कई होटलों में पूछने के बाद एक होटल में सिर्फ एक कमरा मिला। कमरा बड़ा था, साफ-सुथरा, और बाथरूम भी शानदार था। एक एक्स्ट्रा बेड लगवाया गया। निशा ने तुरंत बाथरूम में जाकर नहाया और अपना पैड बदला। नौ पेपर थे, और मार्च का महीना होने की वजह से मौसम सुहाना था। पहले तीन दिन तो परीक्षा की टेंशन में निकल गए, लेकिन चौथे दिन तक निशा का सब्र टूटने लगा। उसकी चूत में खुजली होने लगी थी। “हाय, कितने दिन हो गए लंड लिए बिना,” वह मन ही मन सोच रही थी। सामने दो-दो जवान मर्द थे, और उसकी जवानी उसे बेकाबू कर रही थी। “बस, इन्हें इशारा दे दूं, फिर तो ये मेरी चूत की आग बुझा ही देंगे,” निशा ने सोचा, और उसकी आँखें वासना से चमक उठीं।
शाम को होटल के कमरे में निशा मेज पर किताब खोलकर पढ़ने का नाटक कर रही थी। उसने एक ढीला-ढाला, गहरे गले का ब्लाउज पहना था, जिसमें से उसकी चूचियां आधी बाहर झांक रही थीं। उसने जानबूझकर अपनी भारी चूचियों को मेज पर टिका दिया, जिससे उनकी गहरी दरार साफ दिखे। विक्रम और विवेक सामने बैठे थे, और उनकी नजरें निशा की चूचियों पर अटक गईं। दोनों ने एक-दूसरे को देखा, जैसे कोई मूक सहमति हो गई। निशा की आँखें गुलाबी हो रही थीं, उसका शरीर वासना की गर्मी से सुलग रहा था। वह शर्म से अपनी नजरें झुका रही थी, लेकिन बीच-बीच में उसकी नशीली निगाहें दोनों की ओर उठतीं, जैसे उन्हें बुला रही हों।
अचानक विक्रम का हाथ निशा की चूची पर आ गया। उसने धीरे-धीरे उसे सहलाना शुरू किया। निशा के शरीर में बिजलियां दौड़ने लगीं। “हाय, ये क्या हो रहा है,” उसने मन ही मन सोचा, लेकिन उसका शरीर जवाब दे रहा था। विवेक भी पीछे नहीं रहा। उसका हाथ भी निशा की दूसरी चूची पर आ गया, और दोनों अब उसके निप्पलों को धीरे-धीरे मसलने लगे। निशा की सांसें तेज हो गईं। “उउउह्ह,” उसने हल्की सी सिसकारी भरी। दोनों मर्द अब उसके स्टूल के पीछे आ गए। विक्रम ने जानबूझकर अपना कड़क लंड निशा की पीठ पर दबाया। “हाय, ये कितना सख्त है,” निशा ने सोचा, और उसकी चूत गीली होने लगी।
विवेक ने निशा का ब्लाउज सामने से खोल दिया। उसकी चिकनी, गोरी चूचियां बाहर आ गईं। विवेक का हाथ अब उसके पेट पर रेंगने लगा, धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ता हुआ। निशा उत्तेजना से निढाल हो रही थी। उसने अपनी पीठ उनके शरीर से टिका दी, जैसे खुद को उनके हवाले कर दिया हो। विवेक का हाथ अब निशा की सलवार के अंदर गया, और उसकी चिकनी चूत को सहलाने लगा। तभी उसे निशा की चूत पर पैड का अहसास हुआ।
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“उफ्फ, विवेक… बस, आज नहीं… आज माहवारी का आखिरी दिन है… प्लीज,” निशा ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा।
दोनों की उत्तेजना एकदम से ठंडी पड़ गई। निशा ने जल्दी से पास पड़ा तौलिया अपनी चूचियों पर डाल लिया और शर्मिंदगी से सर झुकाकर अपने बेड की ओर चली गई। उसने अपने कपड़े ठीक किए और लेट गई। “कमबख्त माहवारी,” उसने मन में सोचा, “बस, कल से तो मैं फ्री हूँ।” उसका मन उद्वेलित था, लेकिन वह जानती थी कि उसका रास्ता अब साफ है।
रात को निशा की नींद अचानक खुल गई। कमरे में हल्की रोशनी थी, जो बाहर से आ रही थी। उसकी नजर विक्रम और विवेक पर पड़ी। दोनों नंगे थे, और उनके लंड तने हुए थे। विवेक फुसफुसा रहा था, “रुक जा, यार… मुझे आने दे…” विक्रम नीचे बैठा था, और उसका लंड इतना सख्त था कि निशा की आँखें फट गईं। विवेक विक्रम के पास गया, उसकी गांड से चिपक गया, और उसका लंड अपने हाथ में ले लिया। फिर वह विक्रम की गांड पर अपना लंड रगड़ने लगा और साथ ही उसका लंड मुठ्ठ मारने लगा। “हाय, ये क्या हो रहा है!” निशा ने अपनी चूत को दबाते हुए सोचा। उसकी सांसें तेज हो गईं। कुछ ही देर में विक्रम ने पिचकारी छोड़ दी। फिर विवेक की बारी आई। विक्रम ने उसकी मुठ्ठ मारी, और विवेक ने भी ढेर सारा वीर्य त्याग दिया। दोनों ने एक-दूसरे की गांड थपथपाई और अपने-अपने बेड पर सो गए। निशा की चूत अब आग की तरह सुलग रही थी।
अगले दिन दोपहर दो से पांच बजे तक पेपर था। पेपर देने के बाद तीनों का मन हल्का हो गया। अब पांच दिन की छुट्टी थी। होटल पहुंचकर तीनों ने नहाया। निशा ने कहा, “चलो, कहीं घूमने चलते हैं। आज मस्ती का दिन है। बहुत पढ़ाई हो गई।”
“पर आज तो हमें वापस लौटना था,” विक्रम ने कहा।
“अरे, टाल दो ना। फोन कर दो कि कल सुबह निकलेंगे,” निशा ने नखरे से कहा।
तीनों ने फोन करके बहाना बना दिया कि वे सुबह निकलकर दोपहर तक पहुंच जाएंगे। फिर निशा ने हंसते हुए कहा, “अब बोलो, आज आइसक्रीम कौन खिलाएगा? फिर गोलगप्पे और…”
“अरे, निशा जी, बस करो! चलो तो!” विवेक ने हंसते हुए कहा।
तीनों भोपाल ताल के लिए निकल पड़े। शाम के सात बज रहे थे, और धुंधलका छा गया था। सबसे पहले उन्होंने भेलपुरी खाई, फिर आइसक्रीम। निशा ने बताया कि ताल के उस पार एक ऊंचा गार्डन है। “चलो, वहां चलते हैं,” उसने कहा। किसी को क्या आपत्ति हो सकती थी? तीनों वहां पहुंच गए। गार्डन में सन्नाटा था, और जो इक्का-दुक्का लोग थे, वे भी जा रहे थे। उन्होंने कार पार्क की और पैदल सीढ़ियों से गार्डन में चढ़ गए। भोपाल ताल दूर से लाइटों में जगमगाता हुआ बेहद खूबसूरत लग रहा था। रात के नौ बज चुके थे, और गार्डन बंद होने का वक्त था।
तभी नीचे से माली की आवाज आई, “बाबू जी, अब आ जाओ। गार्डन बंद कर रहा हूँ। नहीं तो साइड से रास्ता है, वहां से आ जाना।”
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“ठीक है, बाबा!” विवेक ने जवाब दिया।
हवा ठंडी हो चुकी थी, और तीनों के मन में हवस का तूफान उठ रहा था। विक्रम और विवेक के हाथ कभी-कभी निशा के चूतड़ों पर टकरा जाते, और निशा के बदन में सिहरन दौड़ जाती। तीनों एक बालकनी जैसी रेलिंग पर पहुंचे। निशा रेलिंग के सहारे खड़ी थी, ताल का नजारा देख रही थी। तभी विवेक का हाथ उसकी पीठ पर आ गया। निशा की सांसें जैसे रुक गईं। “हाय, अब शुरू होने वाला है,” उसने सोचा। विक्रम का हाथ उसके चूतड़ के एक गोले पर आ गया। निशा का शरीर झुरझुरी से कांप उठा। उसकी चुन्नी सरककर उसकी चूचियों से नीचे गिर गई। उसकी भारी चूचियां तेज सांसों के साथ ऊपर-नीचे हो रही थीं।
विवेक का चेहरा निशा के चेहरे से चिपक गया, और उसने एक गहरा, गीला चुम्बन ले लिया। “उम्म्म,” निशा की सिसकारी निकली। दोनों मर्द अब उससे बेल की तरह चिपक रहे थे। विवेक ने अपना हाथ उसकी चूचियों पर रखा और उन्हें जोर से दबाया। “उह्ह्ह, तुम दोनों क्या कर रहे हो?” निशा ने धीमी आवाज में कहा, लेकिन उसकी आवाज में विरोध नहीं, बल्कि हवस थी।
विक्रम ने निशा का कुर्ता ऊपर उठा दिया और सलवार के ऊपर से उसके चिकने चूतड़ों को मसलने लगा। “हाय, निशा, तेरे ये चूतड़ कितने रसीले हैं,” उसने फुसफुसाते हुए कहा। विवेक ने भी अपना हाथ निशा की सलवार के अंदर डाल दिया और उसकी चिकनी, गीली चूत को सहलाने लगा। “उफ्फ, कितनी गीली है तेरी बुर,” विवेक ने कहा, और उसकी उंगलियां निशा की चूत की फांकों में घूमने लगीं। निशा अब पूरी तरह आनंद में डूब चुकी थी। उसने भी हिम्मत जुटाई और अपने दोनों हाथों से उनके लंड टटोल लिए। दोनों ने पहले ही अपनी जिप खोलकर लंड बाहर निकाल लिए थे। निशा के हाथों में उनके कठोर, गर्म लंड आ गए। “हाय, कितने बड़े और सख्त हैं,” उसने सोचा, और दोनों लंडों को जोर से दबा दिया।
“आह्ह,” विक्रम और विवेक ने एक साथ सिसकारी भरी। विवेक ने अपना लंड छुड़ाया और निशा के सामने नीचे बैठ गया। उसने निशा की सलवार का नाड़ा खोला और उसे नीचे सरका दिया। फिर उसने अपने होंठ निशा की चूत पर रख दिए और उसे चूसने लगा। “उउउह्ह्ह, विवेक… हाय…” निशा आनंद से आगे झुक गई। तभी विक्रम ने मौका देखकर अपना लंड निशा की नंगी चूतड़ की दरार में रगड़ना शुरू किया। “हाय, ये कितना गर्म है,” निशा ने सोचा। उसने जल्दी से अपना बैग खोला और क्रीम की डिब्बी निकालकर विक्रम को दी।
विक्रम ने इशारा समझा। उसने क्रीम अपनी उंगलियों पर लगाई और निशा की गांड के छेद पर मल दी। “उफ्फ, ठंडी-ठंडी क्रीम,” निशा ने सिहरते हुए सोचा। विक्रम ने अपने लंड का सुपाड़ा उसकी चिकनी गांड पर रखा और धीरे से अंदर सरकाया। “आआह्ह,” निशा की चीख निकली, लेकिन आनंद से भरी हुई। विक्रम का सात इंच का मोटा लंड उसकी गांड में धीरे-धीरे पूरा घुस गया। “हाय, कितना टाइट है,” विक्रम ने सिसकारी भरी।
“रुक, विक्रम… जरा अपने दोस्त का भी ख्याल कर,” निशा ने हांफते हुए कहा। वह सीधी हुई, और विक्रम का लंड उसकी गांड में फंसा रहा। उसने सामने से विवेक के लंड को पकड़ा और उसे अपने से चिपका लिया। निशा ने अपनी एक टांग रेलिंग की रॉड पर रख दी, जिससे उसकी चूत और गांड पूरी तरह खुल गईं। विवेक ने अपना आठ इंच का लंड निशा की चूत में फंसाया और उसे जोर से जकड़ लिया। “उफ्फ, कितनी टाइट चूत है,” विवेक ने कहा, और अपना लंड अंदर-बाहर करने लगा।
“आआह्ह… हाय… कितना मोटा है,” निशा सिसकार रही थी। दोनों मर्द अब उसे दोनों तरफ से चोद रहे थे। विक्रम पीछे से उसकी चूचियों को मसल रहा था, उनके निप्पलों को पिंच कर रहा था। “हाय, निशा, तेरी चूचियां कितनी रसीली हैं,” वह कह रहा था। सामने से विवेक निशा का चेहरा चूम रहा था, उसकी जीभ उसके मुंह में डाल रहा था। “उम्म्म… तेरे होंठ कितने मीठे हैं,” विवेक ने कहा। निशा का चेहरा थूक से गीला हो गया था।
“पच-पच… थप-थप,” चुदाई की आवाजें गार्डन में गूंज रही थीं। निशा की चूत और गांड में दोनों लंड एक लय में अंदर-बाहर हो रहे थे। “आआह्ह… उउउह्ह… हाय… चोदो मुझे… और जोर से,” निशा सिसकार रही थी। उसका शरीर अब पूरी तरह आनंद में डूब चुका था। “हाय, कितना मजा आ रहा है… मैं तो पागल हो जाऊंगी,” उसने सोचा।
“उफ्फ, निशा… तेरी चूत कितनी गीली है,” विवेक ने कहा, और अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी। विक्रम भी पीछे से जोर-जोर से उसकी गांड मार रहा था। “तेरी गांड तो जन्नत है,” उसने कहा। निशा की चूत से पानी निकलने लगा। “आआह्ह… मैं झड़ रही हूँ… उउउह्ह,” उसने चीखते हुए कहा। लेकिन दोनों रुके नहीं। उनकी चुदाई की रफ्तार और तेज हो गई। “पच-पच… थप-थप,” आवाजें और तेज हो गईं।
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“बस करो, विवेक… मैं फिर झड़ने वाली हूँ,” निशा ने गिड़गिड़ाते हुए कहा। लेकिन दोनों को अब पूरी कसर निकालनी थी। वे रुके नहीं। कुछ देर बाद दोनों के लंड चरम पर पहुंच गए। “आआह्ह… मैं झड़ रहा हूँ,” विवेक ने कहा, और उसका गर्म वीर्य निशा की चूत में भर गया। विक्रम ने भी एक जोरदार धक्का मारा, और उसका वीर्य निशा की गांड में भर गया। “उफ्फ… हाय,” निशा के पांव थरथराने लगे। तीनों एक साथ झड़ चुके थे। निशा का शरीर अब पूरी तरह निढाल हो चुका था।
“हाय, ये क्या हो गया,” निशा ने हांफते हुए सोचा, लेकिन उसके चेहरे पर एक तृप्ति की मुस्कान थी। तीनों ने अपने कपड़े ठीक किए और गार्डन से नीचे उतर आए। “कल सुबह निकलेंगे,” विवेक ने कहा, और तीनों कार में बैठकर होटल की ओर चल पड़े।