सेक्स को तड़पती बेटी की कहानी

शाम का धुंधलका धीरे-धीरे आसमान को लपेट रहा था। हवा में एक अजीब सी ठंडक थी, जैसे आंधी के बाद का मौसम, जब सब कुछ शांत हो जाता है, मगर मन के भीतर तूफान उमड़ने लगता है। आज का दिन कुछ अलग था। घर में सन्नाटा पसरा था, और मेरे मन में एक बेचैनी सी थी, जैसे कोई मेरे दिल को मुट्ठी में जकड़ रहा हो। छोटा भाई शायद बाहर दोस्तों के साथ मस्ती में डूबा होगा, माँ रसोई में खाने की तैयारी में व्यस्त होगी, और पापा अब बस दफ्तर से लौटने वाले होंगे। मैं, आरती, अपने कमरे में अकेली थी। मेरा मन, मेरा तन, सब कुछ अकेला था। और ये अकेलापन मुझे खाए जा रहा था। मेरे शरीर में एक आग सी जल रही थी, जो ना बुझ रही थी, ना ही मुझे चैन लेने दे रही थी।मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो रही थीं, जैसे कोई मेरे सीने में ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा खटखटा रहा हो। “आज, आज, आज!”—ये शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे। मैं अपने आप को रोक ना सकी। मेरी नज़र अपने बिस्तर की ओर गई, जहाँ मैंने कई बार अपनी तन्हाई को छुपाया था। मैंने धीरे से बिस्तर के नीचे से एक पुराना, लकड़ी का बक्सा निकाला, जिसके कोनों पर धूल जम चुकी थी। उसे अपनी मेज़ पर रखते हुए मैंने एक बार फिर दरवाज़े की ओर देखा। कोई नहीं था। सावधानी से मैंने दरवाज़ा बंद किया और कुंडी लगा दी। मेरे हाथ कांप रहे थे, मगर मेरे भीतर की आग मुझे रुकने नहीं दे रही थी।मैंने अपने शीशे में झांका। मेरी आँखों में एक भूख थी, मेरे होंठों पर प्यास। मेरे होंठ सूखे थे, और मैंने उन्हें अपनी जीभ से हल्के से गीला किया। मेरे बालों को मैंने कान के पीछे खोंसा और अपनी चुन्नी को धीरे से खींचकर फर्श पर गिरा दिया। शीशे में मेरा प्रतिबिंब मुझे नहीं, किसी और को दिखा रहा था—एक ऐसी लड़की, जो प्यासी थी, जो तड़प रही थी। मेरी सांसें तेज़ हो रही थीं, और मेरे दिल की धड़कनें मेरे कानों में गूंज रही थीं। मैंने अपने बैग को मेज़ पर टिकाया और कुर्सी पर बैठ गई। धीरे से मैंने उस बक्से को खोला। उसमें पड़ा था—वो काला अंडरवियर, जो मेरे पापा का था।वो कपड़ा अभी भी हल्का नम था। मैंने उसे उठाया और अपने चेहरे पर लगा लिया। उसकी गंध मेरे नथुनों में समा गई, और मेरे पूरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई। “पापा, पापा, पापा!”—मेरे मन में बस यही नाम गूंज रहा था। वो गंध, वो नमी, वो एहसास—मुझे पागल कर रहा था। मैंने अपनी आँखें बंद कीं और उस कपड़े को अपने होंठों पर रख लिया। मेरी जीभ ने उसे छुआ, और उसका स्वाद मेरे मुंह में घुल गया। नमकीन, हल्का तीखा, जैसे कोई फल छीलने की पहली महक। मैंने उसे और गहराई से सूंघा, और मेरे शरीर में एक तूफान सा उठने लगा।मैं कुर्सी से उठी और अपने पलंग पर लेट गई। मेरे हाथ बेकाबू हो रहे थे। मैंने अपने कुर्ते को ऊपर खींचा और सलवार का नाड़ा खोल दिया। मेरी उंगलियां मेरी पैंटी के इलास्टिक तक पहुंचीं, और मैंने उसे हल्के से नीचे सरका दिया। मेरे पैर कांप रहे थे, और मेरे कानों में एक अजीब सी गर्मी महसूस हो रही थी। मैंने उस अंडरवियर को फिर से अपने मुंह में लिया और उसे चूसने लगी, जैसे वो मेरे पापा का लंड हो। उसका स्वाद मेरे मुंह में घुल रहा था, और मेरी उंगलियां मेरे पैरों के बीच अपनी राह तलाश रही थीं। मेरी चूत गीली हो चुकी थी, और मेरी उंगलियां उस नमी में डूब रही थीं। मैंने अपनी आँखें खोलीं और शीशे में खुद को देखा। मेरी आँखों में एक बेशर्मी थी, एक ऐसी चाहत जो मुझे और गहराई में ले जा रही थी।मेरी कल्पना में मेरे पापा मेरे सामने थे। उनका गठीला शरीर मेरे ऊपर था, उनका वज़न मुझे अपने नीचे दबा रहा था। उनकी गहरी, भारी सांसें मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थीं। मैंने उनकी आँखों में देखा—वो आँखें, जो प्यार और वासना से भरी थीं। “आरती, मेरी जान,” उनकी गहरी आवाज़ मेरे कानों में गूंजी, और मैंने महसूस किया कि उनका गर्म हाथ मेरी कमर से होते हुए मेरे स्तनों की ओर बढ़ रहा था। उनकी उंगलियां मेरे निप्पल्स को छू रही थीं, और मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ रही थी। मैंने अपनी उंगलियों को और तेज़ी से अपनी चूत पर रगड़ा, और मेरी सांसें और तेज़ हो गईं।मेरी कल्पना में पापा ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। उनकी जीभ मेरे मुंह में थी, और मैं उसे चूस रही थी, जैसे कोई भूखा इंसान खाने पर टूट पड़ता है। उनकी खुरदरी दाढ़ी मेरे गालों को रगड़ रही थी, और वो एहसास मुझे और उत्तेजित कर रहा था। “आरती, तू मेरी है,” उन्होंने कहा, और उनके शब्द मेरे दिल को चीर गए। मैंने उस अंडरवियर को अपनी ब्रा में खोंस दिया, और उसकी नरमाहट मेरे निप्पल्स पर महसूस होने लगी। मैंने अपनी उंगलियों को अपनी चूत के और गहराई में धकेला, और मेरे पैर बेकाबू होकर बिस्तर पर मचलने लगे।मेरी कल्पना में पापा का लंड मेरे सामने था—मोटा, गर्म, और रस से भरा हुआ। मैंने उसे अपने हाथों में लिया और उसे अपने मुंह में भर लिया। उसका स्वाद, उसकी गर्मी, उसकी सख्ती—सब कुछ मेरे होंठों पर था। मैंने उसे चूसा, जैसे कोई भूखी औरत अपने मर्द को चूसती है। मेरी जीभ उसके सिरे पर घूम रही थी, और मैं उसका हर रस चखना चाहती थी। मेरी उंगलियां मेरी चूत में तेज़ी से अंदर-बाहर हो रही थीं, और मेरे मुंह से सिसकारियां निकल रही थीं। मैंने उस अंडरवियर को अपनी चूत पर रगड़ा, और उसकी गंध मेरे पूरे शरीर में समा गई।मेरी कल्पना में पापा ने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और मेरे पैरों को अपने कंधों पर रख लिया। उनका लंड मेरी चूत के मुहाने पर था, और मैं तड़प रही थी। “पापा, मुझे चाहिए,” मैंने चीखकर कहा, और उन्होंने एक ज़ोरदार धक्का मारा। मेरी चूत में उनका लंड गहराई तक समा गया, और मैं दर्द और सुख के बीच झूलने लगी। उनकी हर धक्के के साथ मेरे स्तन हिल रहे थे, और उनकी उंगलियां मेरे निप्पल्स को मसल रही थीं। मैंने अपनी उंगलियों को और तेज़ी से अपनी चूत में घुमाया, और मेरा शरीर सिहर उठा।मैंने उस अंडरवियर को फिर से अपने मुंह में लिया और उसे चूसने लगी। मेरी कल्पना में पापा का रस मेरे मुंह में था, और मैं उसे पी रही थी। मेरी चूत गीली होकर बह रही थी, और मेरी उंगलियां उस नमी में डूब रही थीं। मैंने अपने पैरों को और चौड़ा किया, और मेरी सिसकारियां कमरे में गूंजने लगीं। “पापा, और ज़ोर से,” मैंने अपने मन में कहा, और मेरी उंगलियां मेरी चूत को और तेज़ी से रगड़ने लगीं। मेरा शरीर कांप रहा था, और मैं उस चरम सुख की ओर बढ़ रही थी।अचानक मेरे पैर बिस्तर के पाए से टकराए, और मेरी मेज़ पर रखी चाय की प्याली नीचे गिर गई। एक तेज़ आवाज़ हुई, और मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, और मेरी सांसें रुक सी गई थीं। मैंने जल्दी से उस अंडरवियर को बक्से में वापस रखा और अपने कपड़े ठीक किए। दरवाज़े की ओर देखा—क्या कोई सुन रहा था? क्या माँ ऊपर आ रही थी? मेरे मन में डर और उत्तेजना का मिश्रण था। मैंने जल्दी से बिस्तर ठीक किया और मेज़ पर गिरी चाय को साफ किया।मगर मेरे मन में वो आग अभी भी जल रही थी। मैं जानती थी कि ये तड़प, ये प्यास, ये चाहत—ये सब मुझे बार-बार अपनी ओर खींचेगी। मैं अपने पापा की उस गंध में, उनकी उस मर्दानगी में, उनकी उस वासना में डूबना चाहती थी। मैंने अपने आप से वादा किया कि ये कहानी यहीं खत्म नहीं होगी। मेरे दिल में, मेरे तन में, मेरी रूह में—पापा का नाम बस्ता था, और मैं उस नाम को अपने अंदर समेटना चाहती थी।मैंने अपने कमरे की खिड़की खोली और बाहर देखा। शाम का धुंधलका अब और गहरा हो गया था। दूर कहीं से पापा की गाड़ी की आवाज़ आई। मेरा दिल फिर से धड़क उठा। वो आ रहे थे। और मेरे मन में एक नया तूफान उठने लगा था। मैं जानती थी कि ये तड़प मुझे और आगे ले जाएगी, और मैं उस राह पर चलने को तैयार थी।

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