ससुर जी का जवान लंड-1

कंचन की शादी को दो साल हो चुके थे. बचपन से ही कंचन बहुत

खूबसूरत थी. 12 साल की उम्र में ही जिस्म खिलने लग गया था.

सोलहवां साल लगते लगते तो कंचन की जवानी पूरी तरह निखार

आई थी. ऐसा लगता ही नहीं था की अभी 10थ क्लास में पढ़ती है.

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स्कूल की स्कर्ट में उसकी भारी भारी जांघें लड़कों पे कहर

धानेलागी थी. स्कूल के लड़के स्कर्ट के नीचे से झाँक कर कंचन

की पनटी की एक झलक पाने के लिए पागल रहते थे. कभी कभार

बास्केट बॉल खेलते हुए या कभी हवा के झोंके से कंचन की स्कर्ट

उठ जाती तो किस्मत वालों को उसकी पनटी के दर्शन हो जाते. लड़के तो

लड़के, स्कूल के टीचर भी कंचन की जवानी के असर से नहीं बचे

थे. कंचन के भारी नितूंब, पतली कमर और उभरती चूचियाँ

देखके उनके सीने पे च्छूरियँ चल जाती. कंचन को भी अपनी जवानी

पेनाज़ था. वो भी लोगों का दिल जलाने में कोई कसर नहीं छ्चोड़ती

थी.

उनीस साल की होते ही कंचन की शादी हो गयी. कंचन ने शादी तक

अपने कुंवारे बदन को संभाल के रखा था. उसने सोच रखा था की

उसका कुँवारा बदन ही उसके पति के लिए सुहाग रात को एक उनमोल

तोहफहोगा. सुहाग रात को पति का मोटा लूंबा लंड देख कर कंचन के

होश

उर गये थे. उस मोटे लंड ने कंचन की कुँवारी चूत लहू लुहान कर

दी थी. शादी के बाद कुच्छ दिन तो कंचन का पति उसे रोज़ चार

पाँच बार चोद्ता था. कंचन भी एक लूंबा मोटा लॉडा पा कर बहुत

खुश थी. लेकिन धीरे धीरे चुदाई काम होने लगी और शादी के

एक्साल बाद तो ये नौबत आ गयी थी की महीने में मुश्किल से एक दो

बार ही कंचन की चुदाई होती. हालाँकि कंचन ने सुहाग रात को

अपने पति को अपनी कुँवारी चूत का तोहफा दिया था, लेकिन वो बचपन

से ही बहुत कामुक लड़की थी. बस किसी तरह अपनी वासना को कंट्रोल

करके, अपने स्कूल ओर कॉलेज के लड़कों और टीचर्स से शादी तक

अपनी चूत को बचा के रखने में सफल हो गयी थी. महीने में एक

दो बार की चुदाई से कंचन की वासना की प्यास कैसे बुझती ? उसे तो

एक दिन में कूम से कूम तीन चार बार चुदाई की ज़रूरत थी.

आखिकार जुब कंचन का पति जुब तीन महीने के लिए टूर पे गया तो

कंचन के देवर ने उसके अकेलेपन का फ़ायदा उठा कर उसकी वासना को

तृप्त किया. अब तो कंचन का देवर रामू कंचन को रोज़ चोद कर उसकी

प्यास बुझाता था. ( कंचन को उसके देवर रामू ने कैसे चोदा ये

कहानी आप ” कंचन भाभी पार्ट 1,2,3 में पढ़ चुके हैं.) एक दिन

गाओं से टेलिग्रॅम आया की सास की तबीयत कुच्छ खराब हो गयी है.

कंचन के ससुर एक बड़े ज़मींदार थे. गाओं में उनकी काफ़ी खेती

थी. कंचन का पति राजेश काम के कारण नहीं जा सकता था और

देवर रामू का कॉलेज था. कंचन को ही गाओं जाना परा. वैसे भी

वहाँ कंचन की ही ज़रूरत थी, जो सास और सौर दोनो का ख्याल कर

सके और सास की जगह घर को संभाल सके. कंचन शादी के

फ़ौरन बाद अपने ससुराल गयी थी. सास सौर की खूब सेवा करके

कंचन ने उन्हें खुश कर दिया था. कंचन की खूबसूरती और

भोलेपन से दोनो ही बहुत प्रभावित थे. कंचन की सास माया देवी तो

उसकी प्रशंसा करते नहीं थकती थी. दोनो इतनी सुंदर, सुशील और

मेहनती बहू से बहुत खुश थे. बात बात पे शर्मा जाने की अदा पे

तो ससुर रामलाल फिदा थे. उन्होने ख़ास कर कंचन को कम से कम दो

महीने के लिए भेजने को कहा था. दो महीने सुन कर कंचन का

कलेजा धक रह गया था. दो महीने बिना चुदाई के रहना बहुत

मुश्किल था. यहाँ तो पति की कमी उसका देवर रामू पूरी कर देता था.

गाओं में दो महीने तक क्या होगा, ये सोच सोच कर कंचन परेशान

थी लेकिन कोई चारा भी तो नहीं था. जाना तो था ही. राजेश ने

कंचन को कानपुर में ट्रेन में बैठा दिया. अगले दिन सुबह ट्रेन

गोपालपुर गाओं पहुँच गयी जो की कंचन की ससुराल थी.

कंचन ने चूरिदार पाजामा पहन रखा था. कुर्ता कंचन के घुटनों से

करीब आठ इंच ऊपर था और कुर्ते के दोनो साइड का कटाव कमर तक

था. चूरिदार पाजामा कंचन के नितुंबों तक टाइट था. चलते वक़्त जब

कुर्ते का पल्ला आगे पीच्चे होता या हवा के झोंके से उठ जाता तो

टाइट चूरिदार में कसी कंचन की टाँगें, मदहोश कर देने वाली

मांसल जांघें और विशाल नितूंब बहुत ही सेक्सी लगते. ट्रेन में

सूब मर्दों की नज़रें कंचन की टाँगों पर लगी हुई थी. स्टेशन पर

कंचन को लेने सास और ससुर दोनो आए हुए थे. कंचन अपने ससुर से

परदा करती थी इसलिए उसने चुननी का घूँघट अपने सिर पे ले लिया.

अभी तक जो चुननी कंचन की छतियोन के उभार को च्छूपा रही थी,

अब उसके घूँघट का काम करने लगी. कंचन की बरी बरी छ्चातियां

स्टेशन पे सबका ध्यान खींच रही थी. कंचन ने झुक के सास के

पावं छ्छूए. जैसे ही कंचन पावं छ्छूने के लिए झुकी रामलाल को

उसकी चूरिदार में कसी मांसल जांघें और नितूंब नज़र आने लगे.

रामलाल का दिल एक बार तो धड़क उठा. शादी के बाद से बहू

किखूबसूरती को चार चाँद लग गये थे. बदन भर गया था

और जवानी पूरी तरह निखार आई थी. रामलाल को साफ दिख रहा था की

बहू का टाइट चूरिदार और कुर्ता बरी मुश्किल से उसकी जवानी को

समेटे हुए थे. सास से आशीर्वाद लेने के बाद कंचन ने ससुरजी के

भी पैर छ्छूए. रामलाल ने बहू को प्यार से गले लगा लिया. बहू के

जवान बदन का स्पर्श पाते ही रामलाल काँप गया. कंचन की सास

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माया देवी बहू के आने से बहुत खुश थी. स्टेशन के बाहर निकाल कर

उन्होने तांगा किया. पहले माया देवी टांगे पे चढ़ि. उसके बाद रामलाल

ने बहू को चढ़ने दिया. रामलाल को मालूम था की जुब बहू टांगे पे

चढ़ने के लिए टाँग ऊपर करेगी तो उसे कुर्ते के कटाव में से बहू

की पूरी टाँग और नितूंब भी देखने को मिल जाएँगे. वही हुआ. जैसे

ही कंचन ने टांगे पे बैठने के लिए टाँग ऊपर की रंमलल

को चूरिदार में कसी बहू की सेक्सी टाँगों और भारी चूतरो की

झलक मिल गयी. यहाँ तक की रामलाल को चूरिदार के सफेद महीन

कापरे में से बहू की ककच्ची (पनटी) की भी झलक मिल गयी. बहू ने

गुलाबी रंग की ककच्ची पहन रखी थी. अब तो रामलाल का लंड भी

हरकत करने लगा. उसने बरी मुश्किल से अपने को संभाला. रामलाल को

अपनी बहू के बारे में ऐसा सोचते हुए अपने ऊपर शरम आ रहै थी.

वो सोच रहा था की मैं कैसा इंसान हूँ जो अपनी ही बहू को ऐसी

नज़रों से देख रहा हूँ. बहू तो बेटी के समान होती है. लेकिन क्या

करता ? था तो मर्द ही. घर पहुँच कर सास ससुर ने बहू की खूब

खातिरदारी की.

गाओं में आ कर अब कंचन को 15 दिन हो चुके थे. सास की तबीयत

खराब होने के कारण कंचन ने सारा घरका काम संभाल लिया था.

उसने सास ससुर की खूब सेवा करके उन्हें खुश कर दिया था. गाओं

में औरतें लहंगा चोली पहनती थी, इसलिए कंचन ने भी कभी

कभी लहंगा चोली पहनना शुरू कर दिया. लहँगे चोली ने तो

कंचन की जवानी पे चार चाँद लगा दिए. गोरी पतली कमर और

उसके नीचे फैलते हुए भारी नितुंबों ने तो रामलाल का जीना हराम

कर रखा था.

कंचन का ससुर रामलाल एक लूंबा तगड़ा आदमी था. अब उसकी उम्र करीब

55 साल हो चली थी. जवानी में उसे पहलवानी का शौक था. आज

भी उसका जिस्म बिल्कुल गाथा हुआ था. रोज़ लंगोट बाँध के कसरत करता

था और पुर बदन की मालिश करवाता था. सबसे बरी चीज़ जिस पर

उसे बहुत नाज़ था, वो थी उसके मसल्स और उसका 11 इंच लूंबा

फौलादी लंड. लेकिन रामलाल की बदक़िस्मती ये थी की उसकी पत्नी माया

देवी उसकी वासना की भूख कभी शांत नहीं कर सकी. माया देवी

धार्मिक स्वाभाव की थी. उसे सेक्स का कोई शौक नहीं था. रामलाल के

मोटे लूंबे लॉड से डरती भी थी क्योंकि हेर बार चुदाई में बहुत

दर्द होता था. वो मज़ाक में रामलाल को गधा कहती थी. पत्नी की

बेरूख़ी के कारण रामलाल को अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए दूसरी

औरतों का सहारा लेना परा. राम लाल के खेतों में कई औरतें काम

करती थी. इन मज़दूर औरतों में से सुंदर और जवान औरतों को पैसे

का लालच दे कर अपने खेत के पंप हाउस में छोड़ता था. जिन औरतों

को रामलाल ने एक बार चोद दिया वो तो मानो उसकी गुलाम बुन जाती थी.

आख़िर ऐसा लूंबा मोटा लंड बहुत किस्मत वाली औरतों को ही नसीब

होता है. तीन चार औरतें तो पहली चुदाई में बेहोश भी हो गयी.

दो औरतें तो ऐसी थी जिनकी चूत रामलाल के फौलादी लॉड ने

सुचमुच ही फार दी थी. अब तक रामलाल कम से कम बीस औरतों को चोद

चुका था. लेकिन रामलाल जानता था की पैसा दे कर छोड़ने में वो

मज़ा नहीं जो लड़की को पता के चोद्ने में है. आज तक चुदाई का

सबसे ज़्यादा मज़ा उसे अपनी साली को चोदने में आया था. माया देवी की

बेहन सीता, माया देवी से 10 साल छ्होटी थी. रामलाल ने जुब उसे पहली

बार चोदा उस वक़्त उसकी उम्र 17 साल की थी. कॉलेज में पर्हती थी.

गर्मिों की च्छुतटी बिताने अपने जीजू के पास आई थी. बिल्कुल कुँवारी

चूत थी. रामलाल ने उसे भी खेत के पंप हाउस में ही चोदा था.

रामलाल के मूसल ने सीता की कुँवारी नाज़ुक सी चूत को फाड़ ही दिया

था. सीता बहुत चिल्लई थी और फिर बेहोश हो गयी थी. उसकी चूत से

बहुत खून निकला था. रामलाल ने सीता के होश में आने से पहले ही

उसकी चूत का सारा खून साफ कर दिया था ताकि वो डर ना जाए.

रामलाल से चूड़ने के बाद सीता सात दिन ठीक से चल भी नहीं पाई

और जुब ठीक से चलने लायक हुई तो शहर चली गयी. लेकिन ज़्यादा

दिन शहर में नहीं रह सकी. रामलाल के फौलादी लॉड की याद उसे

फिर से अपने जीजू के पास खींच लाई. इस बार तो सीता सिर्फ़ जीजू से

चुड़वानवे ही आई थी. रामलाल ने तो समझा था की साली जी नाराज़ हो

कर चली गयी. आते ही सीता ने रामलाल को कहा ” जीजू मैं सिर्फ़ आपके

लिए ही आई हूँ.” उसके बाद तो करीब रोज़ ही रामलाल सीता को खेत के

पंप हाउस में चोदता था. सीता भी पूरा मज़ा ले कर चुदवाति थी.

रामलाल के खेत में काम करने वाली सभी औरतों को पता था की जीजा

जी साली की खूब चुदाई कर रहे हैं. ये सिलसिला करीब चार साल

चला. सीता की शादी के बाद रामलाल फिर खेत में काम करने वालीओं

को चोदने लगा. लेकिन वो मज़ा कहाँ जो सीता को चोदने में आता था.

बारे नाज़ नखरों के साथ चुड़वाती थी. शादी के बाद एक बार सीता

गाओं आई थी. मोका देख कर रामलाल ने फिर उसे चोडा. सीता ने रामलाल

को बताया था की रामलाल के लूंबे मोटे लॉड के बाद उसे पति के लंड

से तृप्ति नहीं होती थी. सीता भी राम लाल को कहती ” जीजू आपका लंड

तो सुचमुच गधे के लंड जैसा है.” गाओं में गधे कुच्छ ज़्यादा ही

थे. जहाँ नज़र डालो वहीं चार पाँच गधे नज़र

आ जाते. कुच्छ दिन बाद सीता के पति और सीता दुबई चले गये. उसके

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बाद से रामलाल को कभी भी चुदाई से तृप्ति नहीं मिली. अब तो सीता को

दुबई जेया कर 20 साल हो चुके थे. रामलाल के लिए अब वो सिर्फ़ याद बुन

कर रह गयी थी. माया देवी तो अब पूजा पाठ में ही ध्यान लगती

थी. इस उम्र में खेत में काम करने वाली औरतों को भी चोदना

मुश्किल हो गया था. अब तो जुब कभी माया देवी की कृपा होती तो साल

में एक दो बार उनको चोद कर ही काम चलाना परता था. लेकिन माया

देवी को चोदने में बिल्कुल भी मज़ा नहीं आता था. धीरे धीरे

रामलाल को विश्वास होने लगा था की अब उसकी चोदने की उम्र निकाल गयी

है. लेकिन जब से बहू घर आई थी रामलाल की जवानी की यादें फिर

से ताज़ा हो गयी थी. बहू की जवानी तो सुचमुच ही जान लेवा थी.

सीता

तो बहू के सामने कुच्छ भी नहीं थी. शादी के बाद से तो बहू की

जवानी मानो बहू के ही काबू में नहीं थी. बहू के कापरे बहू की

जवानी को च्छूपा नहीं पाते थे. जुब से बहू आई थी रामलाल की

रातों की नींद उर गयी थी. बहू रामलाल से परदा करती थी. मुँह तो

धक लेती थी लेकिन उसकी बरी बरी चूचियाँ खुली रहती थी. गोरा

बदन, लूंबे काले घने बॉल, बरी बरी च्चातियाँ, पतली कमर और

उसके नीचे फैलते हुए चूतेर बहुत जान लेवा थे. टाइट चूरिदार

में तो बहू की मांसल टाँगें रामलाल की वासना भड़का देती थी.

कंचन जी जान से अपने सास ससुर की सेवा करने में लगी हुई

थी. कंचन को महसूस होने लगा था की सौरझी उसे कुच्छ अजीब सी

नज़रोंसे देखते हैं. वैसे भी औरतों को मारद के इरादों का बहुत

जल्दीपता लग जाता है. फिर वो अक्सर सोचती की शायद ये उसका वहाँ

है.शौर जी तो उसके पिता के समान थे.एक दिन की बात है. कंचन ने

अपने कापरे धो कर छत पर सूखने डाल रखे थे. इतने में घने

बादल छ्छा गये. बारिश होने कोठी. रामलाल कंचन से बोले,” बहू

बेरिश होने वाली है मैं ऊपर से कपड़े ले आता हूँ.”” नहीं. नहीं

पिताजी आप क्यों तकलीफ़ करते हैं मैं अभी जेया के ले आती हूँ.”

कंचन बोली. उसे मालूम था की आज सिर्फ़ उसी के कपड़े सूख रहे

थे.” अरे बहू तुम सारा दिन इतना काम करती हो. इसमे तकलीफ़ कैसी?

हमें भी तो कुच्छ काम करने दो.” ये कह के रामलाल छत पे चल परा.

च्चत पे पहुँच के रामलाल को पता लगा की क्यों बहू खुद ही कापरे

लाने की

ज़िद कर रही थी. डोरी पर सिर्फ़ दो ही कापरे सूख रहे थे. एक बहू की

कच्ची और एक उसकी ब्रा. रामलाल का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लग.खित्नि

छ्होटी सी कच्ची थी, बहू के विशाल नितुंबों को कैसे धकति होगी.

रामलाल से नहीं रहा गया और उसने कंचन की पनटी को डोरी सेउतार

लिया और हाथों में पनटी के मुलायम कापरे को फील करने लगा. फिर

उसने पनटी को उस जगह से सूंघ लिया जहाँ कंचन किचूत पनटी से

टच करती थी. हालाँकि पनटी धूलि हुई थी फिर भी रामलाल औरत के

बदन की खुश्बू पहचान गया. रामलाल मून ही मुँही सोचने लगा की

अगर धूलि हुई कच्ची में से इतनी मादक खुश्बू आती है तो पहनी

हुई कच्ची की गंध तो उसे पागल बना देगी. रामलालका लॉडा हरकत

करने लगा. वो बहू की पनटी और ब्रा ले कर नीचे आया,

” बहू ऊपर तो ये दो ही कपड़े थे.” ससुर के हाथ में अपनी पंत्यऔर

ब्रा देख कर कंचन शरम से लाल हो गयी. उसने घूघाट टॉनिकाल ही

रखा था इसलिए रामलाल उसका चेहरा नहीं देख सकता थ.खन्चन

शरमाते हुए बोली,” पिताजी इसीलिए तो मैं कह रही थी की मैं ले

आती हूँ. आपञेबेकार तकलीफ़ की.”

” नहीं बहू तकलीफ़ किस बात की? लेकिन ये इतनी छ्होटी सी

कच्चितूम्हारी है?” अब तो कंचन का चेहरा टमाटर की तरह सुर्ख

लाल होगआया.

” ज्ज्ज…जी पिताजी.” कंचन सिर नीचे किए हुए बोली.” लेकिन बहू ये तो

तुम्हारे लिए बहुत छ्होटी है. इससे तुम्हारा कामचल तो जाता है

ना?”” जी पिताजी.” कंचन सोच रही थी की किसी तरह ये धरती

फाट्जाए और मैं उसमे समा जौन.” बेटी इसमे शरमाने की क्या बात

है ?. तुम्हारी उम्र में लड़कीों किकच्ची अक्सर बहुत जल्दी छ्होटी हो

जाती है. गाओं में तो औरतेंककच्ची पहनती नहीं हैं. अगर छ्होटी

हो गयी है तो सासू मया सेकः देना शहर जेया कर और खरीद एँगी.

हम गये तो हम ले आएन्गे.ळो ये सूख गयी है, रख लो.” ये कह कर

रामलाल ने कंचन को उस्कीपंती और ब्रा दे डी. इस घटना के बाद रामलाल

ने कंचन के साथ औरखुल कर बातें करना शुरू कर दिया था एक दिन

माया देवी को शहर सत्संग में जाना था. रामलाल उनको ले कर

शहर जाने वाला था. दोनो घर से सुबह स्टेशन की ओर चल

पदे.ऱास्ते में रामलाल के जान पहचान का लड़का कार से शहर जाता

हुआंिल गया. रामलाल ने कहा की आंटी को भी साथ ले जाओ. लड़का

माँगया और माया देवी उसके साथ कार में शहर चली गयी. रामलाल

घरवापस आ गया. दरवाज़ा अंडर से बूँद था. बातरूम से पानी गिरने

कियवाज़ आ रही थी. शायद बहू नहा रही थी. कंचन तो साँझ

रहिति की सास ससुर शाम तक ही वापस लौटेंगे. रामलाल के कमरे का

एकड़रवाज़ा गली में भी खुलता था. रामलाल कमरे का टला खोल के

अपनेकंरे में आ गया. उधर कंचन बेख़बर थी. वो तो समझ रही

टिकी घर में कोई नहीं है. नहा कर कंचन सिर्फ़ पेटिकोट और

ब्लाउस

में ही बाथरूम से बाहर निकाल आई. उसका बदन अब भी गीला था.

बॉल भीगे हुए थे. कंचन अपनी पनटी और ब्रा जो अभी उसने ढोई थी

सुखाने के लिए आँगन में आ गयी. रामलाल अपने कमरे के पर्दे के

पीच्चे से सारा नज़ारा देख रहा था. बहू को पेटिकोट और ब्लाउस

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में देख कर रामलाल को पसीना आ गया. क्या बाला की खूबसूरत थी.

बहुत कसा हुआ पेटिकोट पहनती थी. बदन गीला होने के कारण

पेटिकोट उसके छूटरों से चिपका जेया रहा था. बहू के फैले हुए

छूटेर पेटिकोट में बरी मुश्किल से समा रहे थे. बहू का मादक

रूप मानो उसके ब्लाउस और पेटिकोट में से बाहर निकालने की कोशिश

कर रहा था. ऊफ़ क्या गड्राया हुआ बदन था. बहू ने अपनी धूलि हुई

कच्ची और ब्रा डोरी पर सूखने डाल दी. अचानक वो कुच्छ उठाने के

लिए झुकी तो पेटिकोट उसके विशाल छूटरों पर कस गया. पेटिकोट

के सफेद कापरे में से रामलाल को साफ दिख रहा था की आज बहू ने

काले रंग की कच्ची पहन रखी है. ऊफ़ बहू के सिर्फ़ बीस प्रतिशत

छूटेर ही कच्ची में थे बाकी तो बाहर गिर रहे थे. जुब बहू

सीधी हुई तो उसकी कच्ची और पेटिकोट उसके विशाल छूटरों के

बीच में फँस गये. अब तो रामलाल का लॉडा फंफनाने लगा. उसका

मून कर रहा था की वो जेया कर बहू के छूटरों की दरार में फाँसी

पेटिकोट और कच्ची को खींच के निकाल ले. बहू ने मानो रामलाल के

दिल की आवाज़ सुन ली. उसने अपनी छूटरों की दरार में फँसे

पेटिकोट को कींच के बाहर निकाला लिया. बहू आँगन में खरी थी

इसलिए पेटिकोट में से उसकी मांसल टाँगें भी नज़र आ रही थी.

रामलाल के लंड में इतना तनाव सीता को चोद्ते वक़्त भी नहीं हुआ था.

बहू के सेक्सी छूटरों को देख के रामलाल सोचने लगा की इसकी गेंड मार

के तो आदमी धान्या हो जाए. रामलाल ने आज तक किसी औरत की गेंड नहीं

मारी थी. असलियत तो ये थी की रामलाल का गढ़े जैसा लॉडा देख कर

कोई औरत गांद मरवाने के लिए राज़ी ही नहीं थी. माया देवी तो

चूत ही बरी मुश्किल से देती थी गांद देना तो बहुत डोर की बात

थी. एक दिन कंचन ने खेतों में जाने की इक्च्छा प्रकट की. उसने

सासू मया से कहा, ” मम्मी जी मैं खेतों में जाना चाहती हूँ,

अगर आप इज़ाज़त दें तो आपके खेत और फसल देख अओन. शहर में

तो ये देखने को मिलता नहीं है.”

” अरे बेटी इसमें इज़ाज़त की क्या बात है? तुम्हारे ही खेत हैं जुब

चाहो चली जाओ. मैं अभी तुम्हारे ससुर जी से कहती हूँ तुम्हें

खेत दिखाने ले जाएँ.”

” नहीं नहीं मम्मी जी आप पिताजी को क्यों परेशान करती हैं मैं

अकेली ही चली जवँगी.”

” इसमे परेशान करने की क्या बात है? काई दिन से ये भी खेत नहीं

गये हैं तुझे भी साथ ले जाएँगे. जाओ तुम तयार हो जाओ. और हन

लहंगा चोली पहन लेना, खेतों में जाने के लिए वही ठीक रहता

है.” कंचन तयार होने गयी. माया देवी ने रामलाल को कहा,

” अजी सुनते हो, आज बहू को खेत दिखा लाओ. कह रही थी मैं अकेली

ही चली जाती हूँ. मैने ही उसको रोका और कहा ससुरजी तुझे ले

जाएँगे.”

” ठीक है मैं ले जवँगा, लेकिन अकेली भी चली जाती तो क्या हो

जाता ? गाओं में किस बात कॅया डर?””

” कैसी बातें करते हो जी? जवान बहू को अकेले भेजना चाहते हो.

अभी नादान है. अपनी जवानी तो उससे संभाली नहीं जाती, अपने

आप को क्या संभालेगी? ” इतने में कंचन आ गयी. लहंगा चोली

में बाला की खूबसूरत लग रही थी.

” चलिए पिताजी मैं टायर हूँ.”

” चलो बहू हम भी टायर हैं.” ससुर और बहू दोनों खेत की ओर

निकाल परे. कंचन आगे आगे चल रही थी और रामलाल उसके पीच्चे.

कंचन ने घूँघट निकाल रखा था. रामलाल बहू की मस्तानी चाल

देख कर पागल हुआ जेया रहा था. बहू की पतली गोरी कमर बाल खा

रही थी. उसके नीचे फैले हुए मोटे मोटे चूतेर चलते वक़्त ऊपेर

नीचे हो रहे थे. लहंगा घुटनों से तोरा ही नीचे था. बहू की

गोरी गोरी टाँगें और चूटरों तक लटकते लूंबे घने काले बॉल

रामलाल की दिल की धड़कन बरहा रहे थे. ऐसा नज़ारा तो रामलाल को

ज़िंदगी में पहले कभी नसीब नहीं हुआ. रामलाल की नज़रें बहू के

मटकते हुए मोटे मोटे छूटरों और पतली बाल खाती कमर पर ही टिकी

हुई थी. उन जान लेवा छूटरों को मटकते देख कर रामलाल की आँखों

के सामने उस दिन का ंज़ारा घूम गया जिस दिन उसने बहू के छूटरों के

बीच उसके पेटिकोट और कच्ची को फँसे हुए देखा था. रामलाल का

लॉडा खड़ा होने लगा. कंचन घूँघट निकाले आगे आगे चली जेया

रही थी. वो अक्च्ची तरह जानती थी की ससुर जी की आँखें उसके

मटकते हुए नितुंबों पे लगी हुई हैं. रास्ता सांकरा हो गया था और

अब वो दोनो एक पग दांडी पे चल रहे थे. अचानक साइड की पग दांडी

से दो गधे कंचन के सामने आ गये. रास्ता इतना कूम शॉरा था की

साइड से आगे निकलना भी मुश्किल था. मजबूरन कंचन को गधों के

पीच्चे पीच्चे चलना परा. अचानक कंचन का ध्यान पीच्चे वाले

गधे पे गया.

” अरे पिताजी देखिए ये कैसा गधा है ? इसकी तो पाँच टाँगें

हैं.” कंचन आगे चल रहे गधे की ओर इशारा करते हुए बोली.

अगला भाग: ससुर जी का जवान लंड-2

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