Sanskari ladki sex story – shy wife sex story – Hslut sex story: नमस्ते, मेरा नाम निशिता है और आज मैं आपको अपनी वो कहानी सुनाने जा रही हूँ जो मैंने कभी किसी से नहीं कही, जो मेरे अंदर सालों से दबी हुई थी और अब बाहर आने को बेकरार है। मेरी उम्र चौबीस साल है, लेकिन जब मैं आईने में खुद को देखती हूँ तो लगता है कि मेरी आँखों में अभी भी वो मासूमियत है जो लोगों को धोखा देती है, जबकि अंदर एक आग सुलग रही है जो कभी बुझने का नाम नहीं लेती। मेरी त्वचा गोरी है, इतनी गोरी कि हल्की सी लाली भी दूर से चमकती है, लंबे काले बाल हमेशा चोटी में बंधे रहते हैं और जब हवा चलती है तो वे मेरी पीठ पर सरसराते हैं, मेरी बड़ी काली आँखें हैं जिनमें लोग हमेशा संस्कार देखते हैं लेकिन मुझे पता है कि उनमें एक छिपी हुई ललचाहट भी है जो कभी कभी खुद मुझे डराती है, और मेरे होंठ गुलाबी हैं, नरम हैं, जैसे किसी ने उन्हें चूमने के लिए ही बनाया हो। मेरी बॉडी भी वैसी ही है जो बाहर से संस्कारी लगती है लेकिन अंदर से हर वक्त कुछ मांगती रहती है—भरे हुए स्तन जो ब्लाउज में कैद रहते हैं और हर साँस के साथ हल्के से हिलते हैं, उनकी नरमी मुझे खुद महसूस होती है जब मैं अकेले में उन्हें छूती हूँ, पतली कमर जो साड़ी में लिपटकर और मोहक लगती है, और गोल गोल हिप्स जो चलते वक्त लय पैदा करती हैं, उनकी हल्की हलचल मेरे खुद के कदमों में भी एक अजीब सी गर्मी जगाती है। मैं सालों तक खुद को यही समझाती रही कि मैं सिर्फ एक संस्कारी लड़की हूँ, अच्छी बेटी, अच्छी बहू, अच्छी पत्नी, लेकिन अंदर की ये भूख मुझे चैन नहीं लेने देती थी।
कॉलेज के दिन वो थे जब मेरे अंदर की ये आग सबसे पहले भड़की थी, और आज भी जब मैं उन्हें याद करती हूँ तो मेरी चूत में एक पुरानी सिहरन दौड़ जाती है, जैसे कोई पुरानी खुशबू फिर नाक में घुस आई हो। छोटे शहर के लड़कियों के कॉलेज में मैं हमेशा किताबों में मुंह छिपाए रहती थी, लाइब्रेरी की आखिरी पंक्ति में बैठकर पढ़ाई करती थी, लेकिन मेरी नजरें बार बार खिड़की से बाहर चली जाती थीं जहाँ राहुल खड़ा होता था—वो सीनियर लड़का जिसका लंबा कद मुझे छोटा महसूस कराता था, चौड़े कंधे जो मजबूती की मिसाल लगते थे, मस्कुलर बाजूएँ जो टी-शर्ट से बाहर झांकती थीं और उनकी नसें उभरी हुई दिखती थीं, और उसकी दबंग मुस्कान जो मुझे अंदर तक कंपकंपा देती थी, जैसे वो मुस्कान सिर्फ मेरे लिए हो और कह रही हो कि वो मुझे कभी भी दबोच सकता है। उसकी जोरदार हँसी पूरी कैंटीन में गूंजती थी, और वो आवाज मेरे कानों में घंटों तक बजती रहती थी, मेरी छाती में एक अजीब सी धड़कन पैदा करती थी, मेरे निप्पल्स हल्के से सख्त हो जाते थे। उसके साथ हमेशा चार-पांच दबंग लड़के रहते थे, उनकी मर्दाना खुशबू हवा में फैलती थी, तेज और गर्म, जो मेरी नाक में घुसकर मुझे बेचैन कर देती थी, मेरी चूत में एक हल्की सी नमी पैदा कर देती थी। मैं दूर से देखती रहती थी कि कैसे वो किसी लड़की की कमर पर हाथ रखता था, हल्के से दबाता था, उँगलियाँ त्वचा पर फिसलती थीं, और लड़की शर्मा कर मुस्कुरा देती थी, उसकी साँसें तेज हो जाती थीं। मेरी अपनी साँसें तेज हो जाती थीं, छाती ऊपर नीचे होने लगती थी, निप्पल्स सख्त होकर ब्लाउज की कपड़े में चुभने लगते थे, जैसे वे किसी मजबूत स्पर्श की मांग कर रहे हों, और नीचे मेरी चूत में एक गर्म गीलापन फैल जाता था जो पैंटी को भिगो देता था, चिपचिपा और गर्म जो मेरी जाँघों पर फैलता था, मुझे कुर्सी पर हिलने डुलने पर मजबूर कर देता था। मैं किताब में मुंह छिपा लेती थी, लेकिन मन में बड़बड़ाती रहती थी, “ये क्या हो रहा है मुझे, इतनी भूख क्यों जाग रही है, मेरी चूत तो फट जाएगी इतनी गर्मी से, लेकिन मैं तो संस्कारी हूँ, ये सब गलत है।”
एक दिन लाइब्रेरी में राहुल ने अपनी जैकेट कुर्सी पर छोड़ दी थी, और मैं अकेली थी। मैंने चुपके से उस जैकेट को सूंघा, उसकी मर्दाना पसीने और इत्र की मिश्रित खुशबू मेरी नाक में घुसी, और मेरी चूत एकदम से सिकुड़ गई, रस टपकने लगा। मैं शर्मा गई, लेकिन उस दिन से मुझे मर्दों की खुशबू की लत लग गई।
रात को हॉस्टल में जब सब सो जाते थे, मैं बिस्तर पर लेटी रहती थी, लाइट बंद होती थी, सिर्फ मेरी तेज साँसें सुनाई देती थीं और बाहर की हवा की सरसराहट जो मेरे बालों को सहलाती थी, मेरी त्वचा को छूती थी, जैसे कोई अदृश्य हाथ हो। पहली बार तो मैं सिर्फ जाँघों पर हाथ फेरती रही, भीतर की गर्मी को महसूस करती रही, फिर धीरे धीरे सलवार की डोरी खोली, कपड़ा नीचे सरकाया ताकि ठंडी हवा मेरी गीली पैंटी पर लगे और सिहरन पैदा करे। मैं जानबूझकर चूत को नहीं छूती थी पहले, बस उसके ऊपर उँगलियाँ घुमाती, दाने को हल्के से दबाती, फिर पीछे हट जाती—जैसे राहुल मुझे तड़पा रहा हो, जैसे वो कह रहा हो “अभी नहीं, और इंतजार कर।” जब बर्दाश्त नहीं होता था तब एक उंगली अंदर डालती, चूत की दीवारें सिकुड़तीं, रस की चिपचिपी आवाज आती, फिर दूसरी उंगली, और मैं कल्पना करती कि राहुल का मोटा लौड़ा है जो मुझे भर रहा है। “आह… राहुल… और जोर से… फाड़ दो मेरी चूत को…” मैं मन में चीखती, कूल्हे ऊपर उठाती, लेकिन जानबूझकर रुक जाती, फिर शुरू करती—तीन चार बार ऐसा करती ताकि झड़ना देर से हो, और जब आखिर में लहर आती तो पूरे बदन में बिजली दौड़ती, मेरी पीठ बिस्तर पर दब जाती, “उईईई… आह्ह्ह… ह्ह्ह्ह… राहुल… भर दो मुझे…” सिसकारियाँ तकिए में दब जातीं, रस इतना बहता कि चादर गीली हो जाती, और मैं पसीने से तर बतर होकर लेटी रहती, अपराधबोध से रोने लगती, “भगवान जी माफ करना, मैं कितनी गंदी हूँ,” लेकिन मेरी चूत अभी भी फड़क रही होती थी, जैसे कह रही हो कि और चाहिए। लेकिन अगली रात फिर वही होता। एक रात मैंने इतना तड़पाया खुद को कि तीन बार झड़ी, हर बार और जोर से, और हर बार राहुल की कल्पना में वो मुझे अपनी गोद में भरकर कह रहा था “तेरी चूत मेरी है अब।”
एक बार तो मैंने डायरी में लिखा था—मैंने एक गुप्त डायरी रखनी शुरू कर दी थी जिसमें मैं अपनी सारी गंदी कल्पनाएँ लिखती थी—“राहुल ने मुझे लाइब्रेरी में दीवार से सटाया, मेरी साड़ी ऊपर की, मोटा लौड़ा मेरी चूत में घुसाया, और इतना जोर से ठोका कि मैं चीख पड़ी, उसका रस मेरे अंदर भर दिया, मेरी कोख गरम हो गई…” लिखते वक्त ही मेरी चूत फिर गीली हो जाती थी।
ग्रेजुएशन के बाद घरवालों ने शादी करवा दी, और मुझे लगा कि शायद अब ये सब खत्म हो जाएगा, कि एक पति मिलेगा जो मेरी भूख मिटा देगा। अजय से मिली, वो अच्छा लड़का था, शांत, सुरक्षित, अच्छी नौकरी, लेकिन उसमें वो दबंगपन नहीं था जो मुझे अंदर तक हिलाता, उसकी खुशबू भी साधारण थी, कोई मर्दाना तेजी नहीं। सुहागरात को मैं बहुत घबरा रही थी, लाल साड़ी में घूंघट निकाले बैठी थी, साँसें तेज चल रही थीं, हाथ पसीने से गीले हो गए थे, हथेलियाँ चिपचिपी लग रही थीं, चूत में एक अजीब सी उम्मीद थी। अजय ने लाइट बंद की, मुझे बाहों में लिया, लेकिन उसका स्पर्श हल्का था, चुंबन बस होंठों पर स्पर्श मात्र, कोई गहराई नहीं, कोई जीभ का खेल नहीं जो मेरी कल्पनाओं में था। मैंने कोशिश की, उसकी जीभ चाटी, लेकिन वो हट गया। ब्लाउज खोला, ब्रा के ऊपर से स्तनों को छुआ, लेकिन कोई जोर नहीं, कोई भूख नहीं। मेरी निप्पल्स सख्त हो रही थीं, चूत में गर्मी फैल रही थी जो जाँघों तक पहुँच रही थी, मैंने उसका हाथ नीचे ले जाने की कोशिश की, लेकिन वो जल्दी में था, साड़ी ऊपर की, पैंटी साइड की और घुस गया, उसका लौड़ा गर्म था लेकिन पतला, कोई भराव नहीं। दर्द हुआ, “आह… धीरे… थोड़ा और…” मैंने कहा, मैंने उसके कूल्हों को पकड़ा, जोर से दबाने को कहा, लेकिन वो चार-पांच मिनट में ही झड़ गया, उसका रस मेरी चूत में गिरा, और मैं अधूरी रह गई, चूत अभी भी फड़क रही थी, गीली और भूखी, जैसे कह रही हो “और चाहिए, मोटा चाहिए, जोरदार चाहिए।” मैंने खुद को समझाया कि यही सामान्य है, अच्छी पत्नियाँ ज्यादा नहीं मांगतीं, लेकिन मेरी त्वचा अभी भी गर्म थी, साँसें तेज थीं, और मैं बाथरूम में जाकर उँगलियाँ डालकर खुद को तड़पाती रही।
शादी को दो साल हो गए, और हर शनिवार रात वही रूटीन—लाइट बंद, हल्का किस, जल्दी घुसना, जल्दी खत्म, जो मुझे और भूखा छोड़ देता था। एक रात मैंने ज्यादा कोशिश की, उसकी कमीज उतारी, छाती पर हाथ फेरे, निप्पल्स चाटे, जीभ से किस किया, उसका नमकीन स्वाद महसूस किया, नीचे हाथ ले गई, लेकिन वो असहज हो गया, “अरे ये क्या कर रही हो, अच्छी बहुएँ ऐसा नहीं करतीं, बस लेट जाओ।” मेरी भूख फिर दब गई, वो झड़ गया, और मैं बाथरूम में जाकर खुद को छूने लगी, तीन उँगलियाँ अंदर डालकर, दाने को रगड़कर, “आह्ह… कोई तो जोर से ठोके… मेरी चूत फाड़ दे…” सिसकारियाँ निकलती रहीं, पसीना बहता रहा, लेकिन पूरा मजा नहीं आया, मैं रोने लगी, और फिर मंदिर में जाकर प्रार्थना की, “भगवान जी माफ करना,” लेकिन प्रार्थना करते वक्त भी मन में एक दबंग मर्द की कल्पना आ गई जो मुझे दबोच रहा था।
फिर मैंने नौकरी ढूंढी, बोरियत और अकेलापन दूर करने के लिए, जैसे कुछ नया चाहिए था जो मेरी इस भूख को शांत करे या और भड़काए। यूसुफ की कंपनी में साक्षात्कार मिला, वहाँ जाकर पहली बार किसी मर्द की नजरों से सिहर उठी। यूसुफ—लंबा, चौड़े कंधे, ट्रिम्ड दाढ़ी, गहरी आँखें जो मेरे अंदर तक देख रही थीं, और वो मर्दाना इत्र की खुशबू जो मुझे मदहोश कर गई, तेज और गर्म जो मेरी नाक में घुसकर सीधे चूत तक पहुँचती थी, मेरी पैंटी एकदम गीली हो गई। साक्षात्कार में उसकी नजरें मेरे पल्लू पर रुकीं, स्तनों के उभार पर, और मुझे लगा जैसे नजरों से ही चूत में उंगली घुसेड़ रहा हो, तेज सिहरन दौड़ गई, गीलापन फैल गया। “आपकी आँखें बहुत ईमानदार हैं निशिता जी, लेकिन उनमें कुछ और भी छिपा है ना… थोड़ा खुल के बताओ ना क्या चाहती हो,” उसने कहा, आवाज में छेड़ने वाली लय थी। हाथ मिलाते वक्त उसकी उंगली मेरी हथेली पर जानबूझकर ब्रश हुई, गर्म और मजबूत, मेरी त्वचा में बिजली सी दौड़ गई, साँसें रुक सी गईं।
घर लौटकर रात को अजय के साथ फिर वही हुआ, लेकिन मेरा दिमाग यूसुफ में था, उसकी खुशबू अभी भी नाक में बसी थी, उसकी उंगली का स्पर्श हाथ पर महसूस हो रहा था। मैं ज्यादा उत्साह दिखा रही थी, उससे जोर से ठुकवाने की कोशिश की, लेकिन वो जल्दी खत्म हो गया। मैं बिस्तर पर लेटी यूसुफ की खुशबू और स्पर्श याद करती रही, चुपके से उँगलियाँ चूत में डालकर रगड़ती रही, “यूसुफ सर… आपका लौड़ा… अंदर…” मन में बड़बड़ाती रही।
अगले दिन ऑफिस का पहला दिन था। मैंने हल्की लिपस्टिक लगाई जो होंठों को और गुलाबी बना रही थी, पल्लू थोड़ा ढीला रखा जो स्तनों के उभार को हल्का दिखाता था। लिफ्ट में सलीम के पीछे खड़ी थी, उसकी मर्दाना खुशबू फिर नाक में घुसी, उसकी पीठ मेरी छाती से हल्की छू गई, मेरे निप्पल्स सख्त हो गए। ऑफिस में सबकी नजरें मेरी कमर और स्तनों पर रुकती थीं, और मुझे एक अजीब रोमांच होता था जो पूरे बदन में फैल जाता था। यूसुफ ने मुझे पास बुलाया, काम समझाने लगा, उसकी खुशबू फिर नाक में घुसी, उसका हाथ मेरे हाथ को छूता रहा, गर्म और मजबूत, कभी फाइल देते वक्त उँगलियाँ मेरी उँगलियों पर रुक जातीं। मेरी साँसें तेज हो गईं, चूत फिर गीली होने लगी, जैसे अब ये आग बुझने के बजाय और भड़क रही हो, और मुझे पता था कि अब इसे रोकना मुश्किल है।
शाम को घर लौटकर आईने में खुद को देखा, आँखों में एक नई चमक थी, त्वचा पर हल्का पसीना, चूत अभी भी फड़क रही थी। मैंने खुद से कहा, “मैं तो संस्कारी हूँ ना?” लेकिन अंदर की आग अब तेजी से सुलगने लगी थी, और मुझे पता था कि इसे बुझाना आसान नहीं होगा, बल्कि अब ये भड़कने वाली है।
कहानी का अगला भाग: संस्कारी से रंडी बनने की यात्रा – 2