सब रिश्ते भूलकर अपनी माँ की चुदाई कर

मैं, रवि, दिल्ली के एक छोटे से दो कमरे के फ्लैट में अपनी माँ, शालिनी, के साथ रहता था। हमारा घर पुरानी दिल्ली की तंग गलियों में था, जहाँ दिन में धूप की किरणें मुश्किल से छत तक पहुँचती थीं, और रातें गर्मी और उमस से भरी होती थीं। माँ को पापा ने शादी के दो साल बाद ही तलाक दे दिया था। तब से माँ ने मुझे अकेले पाला, अपनी जवानी और इच्छाओं को दबाकर। मैं अब 22 साल का था, कॉलेज में पढ़ता था, और माँ 40 की थीं, पर उनकी गोरी चमड़ी, भरे हुए कूल्हे और कसी हुई चूचियाँ किसी 30 साल की औरत से कम न थीं। माँ का फिगर, शायद 36-30-38, अभी भी मर्दों की नजरें चुरा लेता था, पर वो हमेशा साड़ी या नाइटी में अपनी खूबसूरती छुपाने की कोशिश करती थीं।

माँ और मेरी बॉन्डिंग दोस्तों जैसी थी। मैं उनके साथ रसोई में सब्जी काटता, बाजार जाता, और कभी-कभी मजाक में उनकी कमर पर चिकोटी काट लेता। वो हँसकर मुझे डाँटतीं, “बदमाश, माँ के साथ ऐसी हरकतें!” पर उनकी आँखों में एक चमक होती थी, जो मुझे अजीब सा सुकून देती थी। फिर भी, मैंने कभी उन्हें गलत नजर से नहीं देखा था। वो मेरी माँ थीं, मेरा सहारा, मेरी दुनिया।

लेकिन कॉलेज में दोस्तों के साथ ब्लू फिल्में देखने की लत ने मेरी सोच बदल दी। मैं अपने दोस्त अजय से सीडी लाता और रात को चुपके से अपने पुराने लैपटॉप पर देखता। स्क्रीन पर नंगी औरतों को देखकर मेरा लौड़ा दर्द करने लगता। मैं उसे मसलता, मुठ मारता, पर मन की प्यास बुझती नहीं। धीरे-धीरे मेरी नजर माँ पर बदलने लगी। उनकी नाइटी में उभरी चूचियों की शेप, उनकी गोरी जाँघें जब वो सोते वक्त अनजाने में नाइटी ऊपर चढ़ा लेतीं, ये सब मुझे रातों को जगाने लगा। मैं माँ को सोचकर मुठ मारने लगा, और मन में एक गंदी इच्छा पनपने लगी—उन्हें चोदने की।

हर रात, जब माँ मेरे बगल में सोतीं, मैं उनकी साँसों की आवाज सुनता। नाइट लैंप की हल्की रोशनी में उनकी नाइटी कभी ऊपर सरक जाती, और उनकी गोरी, मखमली जाँघें चमक उठतीं। मैं घंटों उनकी चूचियों की उभारों को ताकता, सोचता कि बस एक बार छू लूँ, उनके निप्पलों को दबा दूँ। पर डर लगता था। अगर माँ को पता चला तो? वो मुझे घर से निकाल देंगी, या बदनाम हो जाएँगी। फिर भी, मेरी वासना बढ़ती गई। मैंने सेक्सी किताबें और ज्यादा सीडी लानी शुरू कीं, और जब माँ रसोई में होतीं, मैं उनके कपड़ों की अलमारी में उनकी ब्रा और पैंटी सूँघता, उनकी खुशबू से पागल हो जाता।

एक दिन, मैंने अजय से एक नई ब्लू फिल्म की सीडी ली। उसने कहा, “ये वाला तुझे रात भर जगा रखेगा, भाई!” मैंने उसे अपने बैग में छुपाया और घर लौटा। माँ ने मुझे देखते ही कहा, “कहाँ था, रवि? जल्दी कपड़े बदल, खाना तैयार है।” उनकी आवाज में वही प्यार था, पर मैं उनकी साड़ी में कसी कमर और उभरे कूल्हों को देखकर बेकाबू हो रहा था। खाना खाने के बाद, मैंने सोचा कि सीडी को लैपटॉप में डाल लूँ। मैं कमरे में गया, पर सीडी मेरे बैग में नहीं थी। मेरा दिल धक-धक करने लगा। कहीं माँ ने तो नहीं देख लिया?

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माँ रसोई से निकलीं और मुझे घूरते हुए बोलीं, “क्या ढूँढ रहा है, बेटा?” उनकी मुस्कान में कुछ अलग था, जैसे वो मेरी घबराहट का मजा ले रही हों। मैंने हकलाते हुए कहा, “कु…कुछ नहीं, माँ। बस एक मूवी की सीडी थी, दोस्त ने दी थी।” माँ ने भौंहें चढ़ाईं, “कौन सी मूवी? दिखा तो जरा!” मैंने बहाना बनाया, “पता नहीं, शायद कोई नई फिल्म। अब मिल नहीं रही।” माँ मेरे पास आईं, उनकी साड़ी का पल्लू हल्का सा सरका, और उनकी गहरी नाभि दिखी। वो बोलीं, “चिंता मत कर, मिल जाएगी। चल, सामान ठीक कर दे।” उनकी आवाज में एक शरारत थी, जो मुझे डर और उत्तेजना दोनों दे रही थी।

शाम को खाने की मेज पर माँ मुझे बार-बार घूर रही थीं। बीच-बीच में वो मुस्कुरा देतीं, जैसे कोई राज जानती हों। मैंने पूछा, “क्या बात है, माँ? ऐसे क्यों देख रही हो?” वो हँसीं, “देख रही हूँ, मेरा बेटा कब से इतना बड़ा हो गया।” उनकी बात सुनकर मैं शरमा गया, पर मेरे दिमाग में वही सीडी घूम रही थी। अचानक, माँ मेरे पास आईं और मेरे कंधे पर हाथ रखकर बोलीं, “बेटा, माँ से क्या शरम? बता, क्या छुपा रहा है?” इससे पहले कि मैं कुछ कह पाता, उनका हाथ मेरे पैंट के ऊपर से मेरे लौड़े पर चला गया। मैं चौंक पड़ा, “माँ, ये क्या कर रही हो?”

माँ ने एक सेक्सी मुस्कान दी और धीरे से कहा, “तेरी वो सीडी मैंने कल देख ली, रवि। मुझसे कुछ मत छुपा।” मेरे मुँह से आवाज नहीं निकली। मैं घबरा गया, पर माँ की आँखों में गुस्सा नहीं, बल्कि एक अजीब सी चमक थी। वो बोलीं, “डर मत, बेटा। मुझे सब पता है।” मैंने उनका हाथ हटाने की कोशिश की, “माँ, ये गलत है। आप मेरी माँ हो!” वो हँस पड़ीं, “एक रात के लिए भूल जा कि मैं तेरी माँ हूँ।” उनकी बात सुनकर मेरे जिस्म में आग लग गई। मेरी वासना ने डर को दबा दिया।

मैंने माँ को गोद में उठाया और अपने छोटे से कमरे में ले गया। कमरे में सिर्फ एक पलंग था, जिस पर माँ की नाइटी और साड़ियाँ बिखरी पड़ी थीं। मैंने माँ को बिस्तर पर लिटाया और उनके ऊपर चढ़ गया। मेरे हाथ उनके सख्त, भरे हुए वक्षों पर चले गए। मैंने उनकी नाइटी के ऊपर से उनकी चूचियों को मसला, और वो सिसकारी भरने लगीं, “आह… रवि… धीरे…” उनकी आवाज में एक मस्ती थी, जो मुझे और पागल कर रही थी। मैंने उनके गालों पर, गले पर, कानों पर चूमना शुरू किया। उनकी साँसें तेज हो रही थीं, और वो मेरे बालों में उंगलियाँ फिराने लगीं।

मैंने उनकी नाइटी के बटन खोले। हर बटन खुलने के साथ मेरी धड़कनें बढ़ रही थीं। नाइटी हटते ही उनकी गोरी चमड़ी चमक उठी। उन्होंने काली ब्रा और पैंटी पहनी थी, जो उनके गोरे बदन पर आग की तरह लग रही थी। मैंने उनकी ब्रा के हुक खोले, और उनकी बड़ी, कसी हुई चूचियाँ आजाद हो गईं। उनके गुलाबी निप्पल खड़े थे, जैसे मुझे बुला रहे हों। मैंने एक निप्पल मुँह में लिया और चूसने लगा, जबकि दूसरी चूची को जोर-जोर से मसल रहा था। माँ की सिसकारियाँ तेज हो गईं, “उफ्फ… रवि… आह… कितना जोर से दबा रहा है!” उनकी आवाज में दर्द और मस्ती दोनों थे।

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मैंने उनका पेट चूमा, उनकी गहरी नाभि में जीभ डाली, और धीरे-धीरे उनकी पैंटी की ओर बढ़ा। उनकी पैंटी पहले से गीली थी, और उसकी खुशबू ने मेरे होश उड़ा दिए। मैंने उनकी पैंटी उतारी, और उनकी साफ, मखमली चूत मेरे सामने थी। मैंने अपनी उंगली उनकी चूत के होंठों पर फिराई, और वो तड़प उठीं, “आह… रवि… मत तड़पा… कुछ कर!” उनकी चूत से गर्म रस टपक रहा था, जो मेरी उंगलियों को भिगो रहा था। मैंने अपनी जीभ उनकी चूत पर रखी और चाटना शुरू किया। उनकी चूत का नमकीन स्वाद मुझे जन्नत का अहसास दे रहा था। मैंने उनकी क्लिट को चूसा, और वो अपनी कमर उछालने लगीं, “उफ्फ… रवि… मर गई… और चूस… आह!”

माँ की सिसकारियाँ कमरे में गूंज रही थीं। मैंने उनकी चूत में दो उंगलियाँ डालीं और अंदर-बाहर करने लगा। उनकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरी उंगलियाँ जकड़ सी गईं। माँ ने मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाया और चिल्लाईं, “बस… अब और नहीं… मेरा पानी निकल जाएगा!” मैंने उनकी चूत चाटना जारी रखा, और कुछ ही पलों में उनका शरीर अकड़ गया। वो जोर-जोर से सिसकने लगीं, और उनकी चूत से गर्म रस की धार निकल पड़ी, जो मेरे मुँह को भिगो गई।

मैंने अपना पैंट उतारा, और मेरा 7 इंच का मूसल लंड बाहर आ गया। माँ ने उसे देखा और उनकी आँखें चमक उठीं। वो बोलीं, “ये तो तेरे पापा से भी बड़ा है!” मैंने उनका हाथ अपने लंड पर रखा, और वो उसे प्यार से सहलाने लगीं। फिर वो झुकीं और मेरे लंड का सुपारा मुँह में ले लिया। उनकी गर्म जीभ मेरे लंड पर घूम रही थी, और मैं सातवें आसमान पर था। वो मेरे लंड को चूस रही थीं, जैसे कोई भूखी शेरनी अपनी शिकार को चबा रही हो। मैंने उनके बाल पकड़े और उनका मुँह अपने लंड पर दबाया। मेरे लंड से प्री-कम निकलने लगा, और माँ उसे चाट गईं।

मैंने माँ को बिस्तर पर लिटाया और उनकी टाँगें फैलाईं। उनकी चूत गीली और लाल हो चुकी थी, जैसे कोई गुलाब की पंखुड़ी। मैंने अपना लंड उनकी चूत के मुँह पर रखा और धीरे-धीरे रगड़ने लगा। माँ तड़प रही थीं, “रवि… अब डाल दे… मेरी चूत फट रही है!” मैंने एक जोरदार धक्का मारा, और मेरा आधा लंड उनकी चूत में समा गया। माँ की चीख निकल पड़ी, “आह… मर गई… धीरे…!” उनकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड जकड़ सा गया। मैंने धीरे-धीरे धक्के मारना शुरू किया, और हर धक्के के साथ मेरा लंड उनकी चूत की गहराइयों में उतर रहा था।

मैंने उनकी चूचियों को मसला, उनके निप्पलों को काटा, और उनकी गर्दन पर चूमा। माँ की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं, “उफ्फ… रवि… चोद… और जोर से… मेरी चूत को फाड़ दे!” मैंने अपनी रफ्तार बढ़ा दी, और कमरे में सिर्फ हमारी साँसों और पलंग की चरमराहट की आवाज गूंज रही थी। मैंने माँ को घोड़ी बनाया और पीछे से उनकी चूत में लंड पेल दिया। उनकी बड़ी, गोल गाँड मेरे हर धक्के के साथ हिल रही थी। मैंने उनकी गाँड पर एक चपत मारी, और वो सिसकारी, “आह… बदमाश… और मार!” मैंने उनकी गाँड को दोनों हाथों से पकड़ा और जोर-जोर से चोदने लगा।

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कुछ देर बाद, मैंने माँ को अपनी गोद में उठाया और दीवार के सहारे खड़ा हो गया। मैंने उनका एक पैर अपने कंधे पर रखा और उनकी चूत में लंड डालकर चोदने लगा। माँ की चूचियाँ मेरे मुँह के सामने उछल रही थीं, और मैं उन्हें चूस रहा था। उनकी चूत से रस टपक रहा था, जो मेरे लंड को और चिकना कर रहा था। माँ चिल्ला रही थीं, “रवि… बस… मेरा फिर से निकलने वाला है…!” मैंने और जोर से धक्के मारे, और माँ का शरीर काँपने लगा। उनकी चूत ने मेरे लंड को जकड़ लिया, और वो जोर से झड़ गईं, उनकी सिसकारियाँ पूरे कमरे में गूंज रही थीं।

मैं अभी नहीं झड़ा था। मैंने माँ को बिस्तर पर लिटाया और उनकी टाँगें अपने कंधों पर रखीं। मैंने फिर से उनकी चूत में लंड डाला और पूरी ताकत से चोदने लगा। मेरा लंड उनकी चूत की गहराइयों को छू रहा था, और माँ की आँखें आनंद से बंद हो रही थीं। वो बोलीं, “रवि… मेरे अंदर ही झड़ जा… कुछ नहीं होगा!” मैंने अपनी रफ्तार और बढ़ा दी, और कुछ ही मिनटों में मेरा लंड फट पड़ा। मैंने अपना गर्म वीर्य उनकी चूत में छोड़ दिया और उनके ऊपर ढह गया। हम दोनों की साँसें तेज थीं, और हम एक-दूसरे से लिपटे पड़े थे।

उस रात, मैंने माँ को तीन बार चोदा। पहले चूत में, फिर उनकी गाँड में, और आखिर में उनके मुँह में। हर बार माँ ने मेरा साथ दिया, जैसे वो भी सालों की प्यास बुझा रही हों। उनकी गाँड इतनी टाइट थी कि पहली बार लंड डालते वक्त वो चिल्ला उठीं, “आह… रवि… फट गई… धीरे!” पर कुछ देर बाद वो खुद अपनी गाँड हिलाने लगीं, “और जोर से… मेरी गाँड को भी फाड़ दे!” मैंने उनकी गाँड में भी वीर्य छोड़ा, और वो मेरे सीने पर सिर रखकर लेट गईं।

उसके बाद, हमारा रिश्ता बदल गया। दिन में माँ मेरी माँ थीं, पर रात में मेरी रंडी। हम रोज रात को चुदाई का खेल खेलते। कभी रसोई में, जब वो खाना बनातीं, मैं पीछे से उनकी साड़ी उठाकर उनकी चूत चाटता। कभी बाथरूम में, जब वो नहातीं, मैं उनके साथ घुस जाता और उनकी चूचियों को साबुन से मसलता। माँ भी अब खुल गई थीं। वो मुझे चिढ़ातीं, “क्या रवि, आज लौड़ा शांत है क्या?” और मैं उन्हें पलंग पर पटककर उनकी चूत और गाँड दोनों की प्यास बुझाता।

हमारा ये रिश्ता गुप्त था, पर हर रात हम एक-दूसरे को तृप्त करते। माँ की चुदाई ने मुझे जिंदगी का असली मजा सिखाया, और मैंने सीख लिया कि प्यार और वासना में कोई रिश्ता आड़े नहीं आता।

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