सास ने गर्म किया और ससुर ने मेरी गर्मी उतारी

मैं मंजू हूँ। हरियाणा के एक बड़े किसान के घर पैदा हुई। चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थी, सो सबकी लाड़ली थी। खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन गाँव के लोग कहते थे कि मैं मस्त माल हूँ। गोरा रंग, 32 इंच की चूचियाँ, 22 इंच की पतली कमर, और छोटे-मोटे चूतड़, जो मेरी 18 साल की जवानी को और निखारते थे। गाँव के कुछ मनचलों ने मुझे रगड़ा, चूचियाँ मसली, चुम्मा लिया, लेकिन चुदाई का मौका कभी नहीं मिला। 18वाँ जन्मदिन गुजरा, और मेरी शादी हिसार के एक बड़े दुकानदार के बेटे धीरज से हो गई।

धीरज गोरा, लंबा, और ठीक-ठाक दिखने वाला था। सुहागरात को उसने मुझे चोदा। उसका लौड़ा छोटा-मोटा था, और चुदाई में मजा तो क्या, बस दर्द ही हुआ। पहली बार बुर में लौड़ा घुसा, तो लगा जैसे कोई चाकू चला रहा हो। अगली सात रातें भी उसने मुझे पेला, लेकिन हर बार वही—10 मिनट में पानी छोड़कर सो गया। मेरी बुर की आग तो बुझी नहीं, उल्टा और भड़क गई। मेरी सहेलियों ने चुदाई के ऐसे किस्से सुनाए थे कि मेरा मन बार-बार चुदवाने को मचलता, लेकिन धीरज की चुदाई में वो बात कहाँ?

शादी के मेहमान चले गए। मेरी दो ननदें, जिनसे मेरी खूब पटती थी, वो भी अपने ससुराल चली गईं। अब घर में सिर्फ हम चार थे—मैं, धीरज, मेरी सास रेणु, और ससुर बाबू जी। एक नौकरानी थी, जो सुबह-शाम आकर घर का काम निपटा देती। घर बड़ा था, हिसार की गलियों में बनी दो मंजिल की हवेली। नीचे रसोई और आंगन, ऊपर बड़ा बेडरूम, जहाँ मैं और धीरज सोते थे। सास-ससुर का कमरा नीचे था, लेकिन उनकी बातें अक्सर मेरे कानों तक पहुँचती थीं।

सुहागरात के आठवें दिन धीरज ने कहा कि उसे 4-5 दिन के लिए मुम्बई जाना है। मैं क्या बोलती? उसकी दुकान का काम था, सो मैंने हामी भर दी। शाम की ट्रेन से वो चला गया। रात हुई। मैं अपने बेड पर अकेली थी, सलवार-कुर्ती में लेटी, चाँदनी की रोशनी में खिड़की से बाहर देख रही थी। तभी दरवाजा खुला, और मेरी सास रेणु अंदर आईं।

रेणु माँ 38-39 साल की थीं, लेकिन देखने में 30 की भी नहीं लगती थीं। लंबी, भरा हुआ बदन, 36 इंच की बड़ी-बड़ी चूचियाँ, मोटी कमर, और चिकनी, गोरी जाँघें। उनकी साड़ी हमेशा इतनी पतली होती कि ब्रा की स्ट्रिप और पेट की नाभि साफ दिखती। गाँव की औरतें उनके पीछे चुगली करती थीं कि रेणु माँ का किसी जवान लड़के से चक्कर है, लेकिन मुझे क्या? मैं तो उनकी खूबसूरती की कायल थी। उस रात वो लाल रेशमी नाइटी में थीं, जो उनके जिस्म से चिपकी थी। मैं फ़टाक से उठकर बैठ गई।

रेणु माँ: बेटी, शादी के बाद किसी औरत को अकेले सोना अच्छा नहीं लगता। तेरे बाबू जी ने कहा कि जब तक धीरज नहीं है, मैं तेरे साथ रात को सोया करूँ।

मुझे बात में कोई गड़बड़ नहीं लगी। फिर भी, मैंने शरमाते हुए कहा: माँ जी, आपके बिना बाबू जी को नींद नहीं आएगी।

रेणु माँ हँसीं, और बेड पर मेरे पास बैठ गईं। उनकी आँखों में शरारत थी।

रेणु माँ: अरे बहू, अब तुझसे क्या छुपाना? 23 साल हो गए शादी को। एक ही मरद के साथ हर रात वही चुदाई, थक गई हूँ मैं।

मैं समझ गई कि वो चुदाई की बात कर रही थीं। मेरे गाल लाल हो गए, लेकिन मैंने हँसते हुए पूछा: बाबू जी आपको रोज पेलते हैं क्या?

रेणु माँ मेरे करीब सरक आईं, और मेरे कंधे पर हाथ रखकर बोलीं: बहू, शरमा क्यों रही है? यहाँ कोई मरद नहीं, बस हम दो औरतें हैं। हाँ, चार-पाँच दिन छोड़कर तेरा हरामी ससुर रोज मेरी बुर में लौड़ा पेलता है। दिन हो या रात, मौका मिले तो चढ़ जाता है। सच बोल, धीरज जब तुझे चोदता है, तो मस्त मजा आता है ना? कभी किसी और से चुदवाया है?

मेरी सहेलियों ने शादी से पहले चुदाई के किस्से सुनाए थे। एक ने तो कहा था कि उसे चुदवाने में इतना मजा आता है कि घर में बाकी लोग हों, तब भी चुदवाती है। और अब मेरी सास, खुलकर अपनी बहू से चुदाई की बात कर रही थी। मैं शरमाई, लेकिन सच बोल दिया।

मैं: माँ जी, जैसा सहेलियों ने बताया था, वैसा ही धीरज करता है। सात रात लगातार चोदा, लेकिन ऐसा कभी नहीं लगा कि उसे फिर से चोदने बोलूँ। और माँ जी, माँ काली की कसम, धीरज के अलावा किसी ने मुझे नंगा नहीं देखा, ना ही चोदा।

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रेणु माँ की आँखें चमकीं, जैसे वो कोई प्लान बना रही हों। वो और करीब आईं, और बोलीं: कोई मानेगा नहीं, लेकिन मैंने शादी से पहले दो मरदों से कई बार चुदवाया। शादी के बाद भी तीन और मरदों से बुर मरवाई। लेकिन सच कहूँ, तेरे बाबू जी जैसा मजा कोई नहीं देता।

मैं हैरान थी। हमारे गाँव में किसी औरत के बारे में ऐसी बात नहीं सुनी थी। सास खुलकर बता रही थी कि उसने शादी से पहले और बाद में दूसरों से चुदवाया, लेकिन ससुर ही सबसे मस्त चोदता है।

रेणु माँ: तू सोच रही होगी कि जब पति इतना मस्त चोदता है, तो दूसरों से क्यों चुदवाया? बेटी, बस लौड़ा टाइट होना चाहिए। दूसरे मरद का लौड़ा बुर में लेने का मजा ही अलग है। हर बार नया स्वाद, नई गर्मी।

मैं चुप थी, लेकिन मेरी बुर में हल्की सी चुलबुली शुरू हो गई थी। रेणु माँ ने मेरी आँखों में देखा और बोली: दूसरों से चुदवाने के और भी फायदे हैं। चुदवाएगी? तेरी बुर के लिए मस्त-मस्त लौड़े मिल जाएँगे। लेकिन पहले मुझे देखने दे, तू कैसी माल है। मरदों को तेरी जवानी पसंद आएगी कि नहीं?

मैं मना करने लगी, लेकिन रेणु माँ मुझसे कहीं ज्यादा ताकतवर थीं। उन्होंने मेरी सलवार-कुर्ती उतार दी, और खुद भी नाइटी खोलकर नंगी हो गईं। कमरे में फुल लाइट थी। मैं पहली बार किसी औरत के सामने नंगी थी। मेरा 5 फुट 3 इंच का गोरा बदन, 32 इंच की चूचियाँ, पतली कमर, और घने झाँटों में छुपी बुर। मेरी जाँघें भरी नहीं थीं, लेकिन चिकनी थीं। रेणु माँ ने मेरी चूचियाँ दबाईं, और बोलीं: रानी, तू मस्त है, लेकिन अभी पूरी जवानी नहीं आई। देख, मेरी चूचियाँ, कैसे भरी-भरी हैं। मरदों को इतनी झाँटें पसंद नहीं। तेरे बाबू जी ने सुहागरात को मेरी झाँटें साफ की थीं। हर 8-10 दिन में वो मेरी बुर को चाटकर गर्म करते हैं, फिर लौड़ा पेलते हैं। कुछ और लोग भी मेरी बुर चूसते हैं, लेकिन बाबू जी का 8 इंच का मोटा लौड़ा जैसा मजा कोई नहीं देता।

रेणु माँ का बदन देखकर मेरी आँखें फटी रह गईं। 65 किलो का भरा हुआ जिस्म, 36 इंच की बड़ी चूचियाँ, जिनके निप्पल्स के चारों तरफ बड़ा-सा गहरा गोल घेरा था। उनका पेट सपाट था, और बुर बिल्कुल चिकनी, जैसे उस दिन ही झाँटें साफ की हों। उनकी जाँघें मोटी और चिकनी थीं। उन्हें नंगा देखकर मेरी बुर में ऐसी आग लगी, जैसी धीरज के छूने से भी नहीं लगी थी। बुर चूसने की बात मैंने कभी नहीं सुनी थी।

मैं: छी, बुर कितनी गंदी होती है। उसे कोई चूसता है क्या? आप झूठ बोल रही हैं।

रेणु माँ: अरे बेटी, झूठ नहीं। तेरे बाबू जी जैसा बुर चूसने वाला हो, तो चुदाई की जरूरत ही नहीं। कई बार उन्होंने बिना लौड़ा पेले मुझे थंडा किया। विश्वास नहीं, तो बाबू जी को बुलाऊँ? वो तेरी झाँटें साफ करेंगे, और बुर चूसकर तुझे मस्त कर देंगे।

मैं हँसी, लेकिन मेरी बुर गीली हो रही थी। रेणु माँ ने कहा: तेरी कसम, न धीरज को बताऊँगी, न किसी और को। तू कह रही है कि धीरज से मजा नहीं आया। एक बार बाबू जी से चुदवा ले, तुझे फर्क पता चल जाएगा।

एक औरत अपनी बहू को ससुर से चुदवाने को कह रही थी। मुझे लौड़ा नहीं, बुर चूसने का मजा चाहिए था। मैंने कहा: माँ जी, आप कहती हैं कि बाबू जी रोज आपकी बुर चूसते हैं। आपने तो सीख लिया होगा। मुझे विश्वास नहीं कि कोई मरद बुर में मुँह लगाता है। आप मेरी बुर चूसकर मुझे थंडा कीजिए।

रेणु माँ हैरान थीं। उन्होंने सोचा नहीं था कि मैं ऐसा बोलूँगी। फिर वो मुस्कुराईं और बोलीं: अगर मेरा बुर चूसना पसंद आएगा, तो बाबू जी और मेरे यारों से भी चुदवाएगी?

मैं: लेकिन धीरज को पता चला, तो वो मुझे मारेगा, घर से निकाल देगा।

रेणु माँ: अरे, न बाबू जी को पता चलेगा, न धीरज को। मैं 23 साल से बाहरवालों से चुदवा रही हूँ, किसी को क्या पता? हम दोनों मिलकर मस्ती करेंगी, मरदों को लूटेंगी, और कोई जानेगा भी नहीं।

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मेरी बुर में आग लग चुकी थी। धीरज की चुदाई से कुछ नहीं मिला था, सो मुझे बुर चूसने का मजा चाहिए था। मैंने कहा: माँ जी, पहले मेरी बुर चूसिए।

ये बोलकर मैं बेड पर लेट गई। रेणु माँ ने पहले ही दरवाजा बंद कर रखा था। वो बेड पर आईं, मेरी टाँगें फैलाईं, और अपनी चिकनी बुर से मेरी झाँटोंवाली बुर को रगड़ने लगीं। उनकी बड़ी चूचियाँ मेरी चूचियों से टकराईं, और उन्होंने मेरे होंठ चूसना शुरू किया। 20-25 सेकंड तक कई बार मेरे होंठ चूसे, लेकिन मुझे कुछ खास नहीं लगा। फिर चौथी बार जब वो होंठ चूस रही थीं, उनके दोनों हाथों ने मेरे निप्पल्स को मसलना शुरू किया। मेरे जिस्म में करंट सा दौड़ गया।

मेरा बदन ढीला पड़ गया। मैंने उनका सिर पकड़कर उन्हें चूमना शुरू किया। अचानक उन्होंने एक हाथ मेरी झाँटों पर फेरा, और मेरी चूत की फाँक को सहलाया। मुझे मस्ती चढ़ने लगी। फिर उन्होंने मेरी clit को उँगलियों से टटोला। मैं सिहर उठी।

मैं: आह, माँ जी, क्या मस्त लगा! फिर से करो ना!

इसके बाद उनके हाथ और होंठ मेरी बुर के आसपास कुछ न कुछ करते रहे। कभी clit को उँगलियों से रगड़तीं, कभी होंठों के बीच लेकर चूसतीं। कभी बुर की पंखुड़ियों को दाँतों से चबातीं, तो कभी जीभ की नोक के साथ दो-दो उँगलियाँ अंदर-बाहर करतीं। धीरज तो बस लौड़ा पेलता था, 10 मिनट में पानी छोड़कर खत्म। लेकिन सास की हर हरकत मेरे जिस्म में आग लगा रही थी।

मेरी बुर गीली हो चुकी थी, और पूरे बदन में बिजली दौड़ रही थी। मैं साँप की तरह फुंफकार रही थी। मेरी बुर के अंदर जैसे लाखों चींटियाँ रेंग रही थीं। मेरे अंग-अंग में ऐसी बेचैनी थी, जो पहले कभी नहीं हुई। मैं चिल्लाई: रंडी, कुतिया, हरामजादी! ये क्या कर दिया? तेरे नमर्द बेटे ने सात बार चोदा, लेकिन ऐसी गर्मी कभी नहीं लगी। कुछ कर, वरना मैं जलकर मर जाऊँगी, और ये घर भी राख हो जाएगा!

रेणु माँ: तुझे एक लंबे, मोटे लौड़े की जबरदस्त चुदाई चाहिए।

मैं: कुतिया, तुझे पता है तो जल्दी कोई लौड़ा ला, मेरी बुर की आग बुझा! जल्दी कर, हरामी!

उस पल मुझे चुदाई की भूख का असली मतलब समझ आया। मैं बेड पर तड़प रही थी। रेणु माँ नंगी ही बाहर गईं, और पलक झपकते बाबू जी को लेकर आईं। बाबू जी 45 के आसपास थे, लेकिन उनका जिस्म जवान मरदों जैसा था। चौड़ा सीना, मजबूत बाहें, और चेहरे पर शरारती मुस्कान। वो लुंगी में थे, और उनकी लुंगी में तंबू बना हुआ था।

बाबू जी: बहू, क्या हुआ? साँप की तरह क्यों फुंफकार रही है?

मुझे लौड़ा चाहिए था, और वो भी अभी। मैं चिल्लाई: हरामी, तुझे दिख नहीं रहा कि इस कुतिया को क्या चाहिए? तेरे लौड़े में दम नहीं, तो किसी कुत्ते या गधे को ले आ, वही मेरी बुर को चोदकर थंडा करेगा!

लेकिन किसी कुत्ते-गधे की जरूरत नहीं थी। बाबू जी ने लुंगी खोली, और मैंने देखा—8 इंच लंबा, मोटा, टाइट लौड़ा, जो धीरज के लौड़े से कहीं बड़ा था। वो मुझे सलामी दे रहा था। मैं टाँगें फैलाए लेटी थी। बाबू जी ने लौड़े को मेरी बुर पर सेट किया, लेकिन पेलने से पहले रेणु माँ ने उनका लौड़ा पकड़ लिया।

रेणु माँ: बिहारी बाबू, बहू को तुमसे चुदवा रही हूँ, हमें क्या इनाम मिलेगा?

बाबू जी मेरी चूचियाँ मसलते हुए बोले: इस मस्त माल की जवानी के बदले तुझे जो चाहिए, दूँगा। जब से इसकी कच्ची बुर देखी, मेरा लौड़ा इसमें घुसने को तड़प रहा है। बोल, रंडी, बहू को ससुर से चुदवाने का क्या चाहिए?

मैंने सोचा, सास कोई जेवर माँगेगी। लेकिन नहीं।

रेणु माँ: आज से तुम जब चाहो, दिन हो या रात, मेरे सामने, धीरज के सामने भी बहू को चोदो। लेकिन बदले में हम दोनों सास-बहू किसी और से चुदवाएँ, तो तुम या धीरज कभी मना नहीं करोगे।

मैंने सोचा, बाबू जी गुस्सा होंगे। लेकिन वो हँसे और बोले: आज से मंजू मेरी घरवाली है। धीरज को इसकी बुर में लौड़ा पेलना हो, तो मेरे सामने, मेरे बेड पर चोदे। बदले में तुम दोनों जब चाहो, किसी होटल में अपने यार से चुदवा सकती हो। लेकिन हर रात तुम दोनों मेरे साथ रहोगी।

और फिर बाबू जी ने ऐसी चुदाई शुरू की कि मेरी हड्डी-पसली टूट गई। उन्होंने पहले मेरी बुर को चाटा। उनकी जीभ मेरी बुर की पंखुड़ियों को चूस रही थी, जैसे कोई भूखा शहद चाटे। मेरी clit को वो दाँतों से हल्के-हल्के काटते, और जीभ अंदर तक डालकर चाटते। मेरी बुर से पानी की धार बह रही थी। मैं चिल्लाई: आह, बाबू जी, ये क्या जादू है? मेरी बुर जल रही है, जल्दी लौड़ा पेलो!

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बाबू जी ने अपना मोटा लौड़ा मेरी बुर पर रगड़ा। उसकी गर्मी से मेरी बुर और तड़प उठी। फिर एक जोरदार धक्का मारा, और आधा लौड़ा अंदर। मैं चीखी: उई, मर गई! धीरे, हरामी! लेकिन बाबू जी रुके नहीं। दूसरा धक्का मारा, और पूरा 8 इंच का लौड़ा मेरी बुर में समा गया। मेरी बुर फटने को थी, लेकिन दर्द के साथ मजा भी आ रहा था।

बाबू जी ने मेरी चूचियाँ मसलते हुए धक्के मारना शुरू किया। हर धक्के के साथ मेरी बुर में आग और ठंडक एक साथ लग रही थी। मैं कराह रही थी: आह… उह… बाबू जी, और जोर से… मेरी बुर फाड़ दो! रेणु माँ पास खड़ी थीं, अपनी बुर सहलाते हुए। वो बोलीं: देख, रंडी, ये है असली चुदाई। मेरे मरद का लौड़ा तुझे स्वर्ग दिखाएगा।

15 मिनट तक बाबू जी ने मुझे पेला। मैं दो बार झड़ चुकी थी, लेकिन उनका लौड़ा अभी भी टाइट था। फिर उन्होंने मुझे घोड़ी बनाया। मेरी गांड ऊपर, और बुर पूरी खुली। उन्होंने मेरी गांड पर थप्पड़ मारे, और लौड़ा फिर से बुर में पेल दिया। इस बार उनकी रफ्तार और तेज थी। मेरी चूचियाँ हिल रही थीं, और मैं चिल्ला रही थी: आह… मादरचोद, धीरे… मेरी बुर फट जाएगी! लेकिन मजा इतना था कि मैं रुकना नहीं चाहती थी।

आखिर में बाबू जी ने अपना माल मेरी बुर में छोड़ा। गर्म-गर्म रस मेरी बुर में बह रहा था। मैं थककर बेड पर गिर पड़ी। लेकिन बाबू जी का मन नहीं भरा। उन्होंने रेणु माँ को इशारा किया। वो मेरे पास आईं, और मेरी बुर को फिर से चाटने लगीं। बाबू जी का रस और मेरा पानी, सब मिलकर उनकी जीभ पर था। मैं फिर गर्म हो गई।

रेणु माँ: बहू, अभी तो शुरुआत है। तेरी बुर की असली गर्मी बाबू जी उतारेंगे।

बाबू जी ने दूसरा राउंड शुरू किया। इस बार उन्होंने मेरी झाँटें साफ कीं। रेजर से धीरे-धीरे मेरी बुर को चिकना किया, और हर बार बुर को चूमते। मेरी बुर अब बिल्कुल चिकनी थी। फिर उन्होंने जीभ से मेरी बुर को चाटा, इतनी देर तक कि मैं तीसरी बार झड़ गई। इसके बाद उन्होंने मुझे अपने ऊपर बिठाया। मैं उनके लौड़े पर उछल रही थी, जैसे कोई घुड़सवार। मेरी चूचियाँ उनके मुँह में थीं, और वो उन्हें चूस रहे थे। मैं चिल्लाई: बाबू जी, ये लौड़ा मेरी बुर का राजा है! और पेलो!

तीसरे राउंड में बाबू जी ने मुझे दीवार के सहारे खड़ा किया। मेरी एक टाँग ऊपर उठाई, और लौड़ा मेरी बुर में पेल दिया। हर धक्के के साथ मेरा जिस्म काँप रहा था। रेणु माँ मेरे पीछे थीं, मेरी गांड सहलाते हुए। मैं झड़ चुकी थी, लेकिन बाबू जी का माल फिर मेरी बुर में गिरा। मैं बेसुध होकर बेड पर गिरी।

चार दिन बाद धीरज आया। मैं उसे लेकर बाबू जी के बेड पर गई। पहले धीरज ने मुझे चोदा, लेकिन उसका लौड़ा अब मुझे कुछ नहीं लगा। फिर बाबू जी ने मुझे चोदा। उन्होंने मेरी बुर को चूस-चूसकर गीला किया, और धीरज को सिखाया: बेटा, औरत की बुर को पहले गर्म करो, फिर पेलो। बाबू जी ने मुझे इतना जोर से चोदा कि धीरज देखता रह गया।

अगले दस साल में बाबू जी ने मुझे तीन बेटे दिए। धीरज अभी भी अपने बाप से सीख रहा है कि चुदाई कैसे की जाती है। मैं बाबू जी की घरवाली हूँ, और उनकी हर रात की माल।

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