Jungle me gangbang sex story – 5 Lund se chudai sex story: दोस्तो, मेरा नाम रानी है और मैं एक शादीशुदा महिला हूँ। मेरी उम्र 27 साल की है, मैं गोरी चिट्टी हूँ, कसरती बदन वाली, बड़े भारी मम्मे और चौड़ी गाँठ वाली हूँ, साड़ी में भी मेरी कमर और नितंब साफ झलकते हैं। मेरी शादी को 3 बरस हो चुके हैं, मेरे पति एक पुलिस ऑफिसर हैं, बहुत हट्टे-कट्टे मर्द हैं, हैंडसम हैं और उनका लंड पूरे सात इंच का मोटा है। उस लम्बे मोटे लंड से मेरी चुत की खुजली शांत होती है, पर शादी के बाद मेरा मन और तन बहुत कामुक हो चुका है। मेरे पति और मैं हफ्ते में 5-6 बार सेक्स करते हैं, वो मुझे बिस्तर में हर तरह से खुश रखते हैं, कभी घोड़ी बनाकर पेलते हैं, कभी पैर उठाकर थोकते हैं, कभी मुँह में लेकर चूसने को कहते हैं।
मेरे घर में सास, ससुर, मेरे पति और मैं रहती हूँ। जहाँ मैं रहती हूँ, वहाँ से 7-8 किलोमीटर दूर एक घना जंगल है, पड़ोस के शहर जाने के लिए उसी जंगल के हाईवे वाले रोड से गुजरना पड़ता है।
एक बार मेरे पति ड्यूटी खत्म करके घर आये और बोले कि उनकी ड्यूटी 3 महीनों के लिए पड़ोस के शहर में लग गई है, उन्हें उधर रहना पड़ेगा। यह सुनकर मैं नाराज हो गई, क्योंकि मेरी चुत को रोजाना लंड की जरूरत थी। पति ने मेरी आँखों में देखकर कहा कि मेरी जान, सिर्फ 3 महीने की बात है, तुम सब्र रखो, सब्र का फल मीठा होता है। मैंने मन मार लिया और सोचा कि किसी तरह कंट्रोल कर लूँगी।
उस रात हमने खूब चुदाई की, पति ने मुझे पहले मिशनरी में पेला, फिर घोड़ी बनाकर गांड ऊपर करके थोका, फिर मैं उनके ऊपर चढ़कर उछली, लंड को चुत में लेकर निचोड़ा, रात भर 4 बार झड़े, सुबह हो गई और पति ड्यूटी पर चले गए। अब घर में सिर्फ मैं, सास और ससुर रह गए।
मेरी चुत की आग दिन पर दिन बढ़ने लगी, रात को जब सास-ससुर सो जाते थे, मैं रसोई में जाकर केला या मोटी ककड़ी चुत में डालकर हिलाती थी, थोड़ी देर सुकून मिलता था, पर मेरी चुत को सात इंच के मोटे लंड की आदत थी, छोटी चीज से जल्दी आग फिर भड़क जाती थी, फिर भी मैं कंट्रोल कर लेती थी।
एक महीना ऐसा ही चला, फिर सास-ससुर को रिश्तेदारों के साथ तीर्थ यात्रा पर जाना था, उन्होंने मुझे भी चलने को कहा, पर घर अकेला छोड़ने की वजह से मैं नहीं गई। सुबह होते ही वो निकल गए, अब मैं घर में बिल्कुल अकेली थी, मेरी चुत की जलन दिन-रात सताने लगी।
तभी मुझे ख्याल आया कि पड़ोस के शहर जाकर पति से चुदवा लूँ, चुत की आग बुझा लूँ। मैंने सोचा और तय किया कि यही सही रहेगा। उस दिन घर का सारा काम निपटाया, शाम सात बजे जाने की तैयारी की, साड़ी पहनी, अंदर ब्रा नहीं डाली ताकि मम्मे हिलते रहें, पति के लिए खाना पैक किया और कार में बैठ गई। कार चलाते हुए बस यही सोच रही थी कि कब पति से मिलूँगी, कब उनका मोटा लंड चुत में लेकर चुदाई करूँगी।
10-12 किलोमीटर चलते ही जंगल का हाईवे शुरू हो गया, थोड़ी देर बाद कार से अजीब आवाज आई और टायर पंचर हो गया। मैंने कार साइड में लगाई, सुनसान रोड पर अकेली थी, डर लग रहा था, मोबाइल डिस्चार्ज था, पति से बात नहीं हो पा रही थी। मैं कार में बैठी इंतजार करने लगी कि कोई ट्रक या बस आए, उसमें बैठकर चली जाऊँ, पर दो घंटे तक कुछ नहीं आया, ठंड बढ़ने लगी।
तभी जंगल की तरफ देखा तो दूर आग जल रही थी, सोचा वहाँ कोई होगा, मदद करेगा, पर डर भी लग रहा था। थोड़ी देर सोचा, फिर हिम्मत करके गई, पहले पेड़ के पीछे छिपी, देखा कि पाँच हट्टे-कट्टे काले आदमी आग के पास बैठे खाना खा रहे थे, लुंगी पहने थे, लुंगी में लंड का उभार साफ दिख रहा था, मोटे-मोटे लग रहे थे। उनके लंड देखते ही मेरी चुत में आग भड़क गई, मैंने सोचा कि इन्हीं से चुदवा लूँगी।
मैं उनके पास चली गई, सब मुझे घूरने लगे। एक ने पूछा कि मेमसाब, आप कौन हो, इस जंगल में क्या कर रही हो। मैंने बताया कि हाईवे से जा रही थी, कार खराब हो गई, पड़ोस के शहर जाना है, मदद करो। एक बोला कि रात में मिस्त्री नहीं मिलेगा, बस भी नहीं, आज यहीं रुक जाओ, सुबह चली जाना। मेरे पास और चारा नहीं था, मैंने हाँ कह दिया।
एक ने लकड़ी का बड़ा लट्ठा दिखाया, मैं उसपर बैठ गई, बातें शुरू हुईं। पता चला कि वो जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचते हैं, गुजारा चलता है। मैंने बताया कि पति पुलिस ऑफिसर हैं, उनसे मिलने जा रही थी। बातें चलती रहीं, दो आदमी झोपड़ी में चले गए, तीन रह गए।
मेरी नजर एक पर पड़ी, वो मेरे तने मम्मों को ललचाई नजर से देख रहा था। उसका लंड लुंगी में हिल रहा था, बड़ा लग रहा था। मैंने मम्मों को हाथ से सहलाते हुए खुजली का नाटक किया, वो पास आकर बैठ गया, मेरी जांघ पर हाथ रखा, मैं चुप रही। वो धीरे-धीरे सहलाने लगा, मैं गर्म हो गई, पैर फैला दिए। उसने चुत पर हाथ फेरा, फिर पैंट के अंदर हाथ डालकर उंगली करने लगा, चुत गीली हो चुकी थी।
बाकी दो भी पास आ गए, मेरे मम्मे दबाने लगे, एक होंठ चूसने लगा। मैं पूरी तरह गर्म थी। फिर सबने मुझे खड़ा किया, साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट, पैंटी सब उतार दिया, मैं नंगी खड़ी थी। एक झोपड़ी से बाकी दो को बुलाया, सब आ गए।
मैं खाट के किनारे बैठकर चुत सहला रही थी, सबने लुंगी खोली, मोटे काले लंड बाहर निकले, मुठ मारने लगे। मैंने एक-एक करके सबका लंड मुँह में लिया, चूसा, जीभ से चाटी, लार टपकाई।
एक ने मुझे गोद में उठाया, झोपड़ी में खाट पर लिटाया, मैंने टांगें चौड़ी कर दीं। एक ने मुँह चुत पर रखा, जीभ से चाटने लगा, चपचप आवाज आई, मैं सिहर गई। सब बारी-बारी चुत, मम्मे, गाल चाटते रहे, निप्पल काटे, मम्मे चूसे।
फिर एक ने लंड चुत पर रखा, जोर का धक्का मारा, मैं चीखी, “उम्म्ह… अहह… हय…” मुँह में दूसरा लंड ठूँस दिया। पहले 5 मिनट दर्द हुआ, फिर मजा आने लगा, वो हचककर पेल रहा था, चपचप चपचप की आवाज गूँज रही थी, मैंने कमर उछाली। वो बिना झड़े निकला, दूसरा घुसा, ऐसे सबने बारी-बारी चोदा।
एक ने मुझे उठाया, मैं उसके ऊपर चढ़ गई, लंड चुत में लिया, उछलने लगी, थपथप थपथप। पीछे से दूसरा आया, गांड में लंड घुसाया, मैं सैंडविच बन गई, दोनों तरफ से पेल रहे थे, मैं तड़प रही थी, “हाँ… और जोर से… फाड़ दो…” सबने बारी-बारी मुँह, चुत, गांड मारी।
ऐसी चुदाई 2 घंटे चली, मैं तीन बार झड़ी, थककर चूर हो गई, खाट पर लेटी रही। सबने मुँह में लंड देकर रस पिलाया, मैंने पाँचों का माल पी लिया। रात में तीन राउंड और चले, सबने बारी-बारी पेला। सुबह हो गई।
एक शहर गया, मैकेनिक लाया, कार ठीक हुई। मैं जाने लगी, एक बोला कि मेमसाब, कभी चुदाई का मन हो तो बुला लेना, हम सब तेरी चुत ठंडी कर देंगे, नंबर दिया। सब ट्रक में चले गए। मैं घर लौट आई, पति के पास जाने का मन ही नहीं रहा, मेरा काम तो पहले ही हो चुका था, और कहीं ज्यादा मजेदार तरीके से।
दोस्तो, मेरी सामूहिक चुदाई कहानी आपको कैसी लगी?