Beti ki chudai sex story – Maa beti papa threesome sex story: शहर के एक छोटे से घर में रहते थे राकेश, उनकी पत्नी सुनीता और उनकी 18 साल की बेटी प्रिया। प्रिया एक खूबसूरत जवान लड़की थी, लंबे काले बालों वाली, गोरी चमड़ी और आकर्षक फिगर वाली, जो हर किसी को मोहित कर देती। लेकिन पिछले कुछ महीनों से प्रिया की एक बुरी आदत ने पूरे परिवार को परेशान कर रखा था। वो रात-दिन अपनी उंगलियों से खुद को खुश करने की आदी हो गई थी, कॉलेज से लौटते ही कमरे में बंद होकर, पढ़ाई के बहाने किताबों के बीच, यहां तक कि रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे अपनी चूत में उंगली डालकर घंटों मस्ती करती। उसकी सिसकारियां कभी-कभी दीवारों से पार हो जातीं, और सुनीता ने कई बार उसे पकड़ा था। प्रिया आंसुओं से कहती, “मम्मी, मैं रोक नहीं पाती, ये खुजली अंदर से मारती है।”
राकेश और सुनीता बहुत प्रोटेक्टिव पेरेंट्स थे, बाहर की दुनिया से अपनी बेटी को बचाने वाले। वो नहीं चाहते थे कि प्रिया किसी अनजान लड़के की बाहों में पड़े, या कोई गलत हाथ उसे छुए। एक दिन, सुनीता प्रिया को डॉक्टर के पास ले गई, जहां जांच के बाद डॉक्टर ने गंभीरता से कहा, “ये एक तरह की एडिक्शन है, हॉर्मोनल इम्बैलेंस से। उंगली से तो सिर्फ सतही राहत मिलती है, लेकिन असली सेक्स, पेनिट्रेशन की जरूरत है। इससे वो संतुष्टि मिलेगी जो आदत छुड़ाएगी। लेकिन सुरक्षित तरीके से, कंडोम के साथ, और किसी भरोसेमंद से।”
सुनीता घर लौटी, दिल की धड़कन तेज, और राकेश को सब कुछ बता दिया। राकेश चौंक गया, उसका चेहरा लाल हो गया। “क्या? हमारी प्रिया को सेक्स? बाहर किसी अनजान के साथ? नहीं, ये कभी नहीं होगा। हम उसे इतना प्रोटेक्ट करते हैं, बाहर की गंदगी से दूर रखते हैं।”
सुनीता ने कुछ पल सोचा, और फिर उसके मन में एक अजीब सी उत्तेजना जागी, वो जानती थी कि वो एक तरह की ककक्वीन है, अपने पति को किसी और औरत के साथ देखकर उसकी चूत गीली हो जाती थी। पहले वो सिर्फ कल्पनाओं में जीती थी, लेकिन अब हकीकत का मौका था, वो भी घर में सुरक्षित। वो मुस्कुराई और बोली, “राकेश, क्यों न तुम ही चोदो इसे? घर में ही, कोई खतरा नहीं। मैं सामने रहूंगी, देखूंगी कि सब ठीक से हो। प्रिया हमारी बेटी है, हम उसे बाहर नहीं जाने देंगे। ये उसकी मदद के लिए है, डॉक्टर ने कहा है।”
राकेश पहले हिचकिचाया, उसका मन द्वंद्व में था: बेटी की रक्षा, लेकिन ये तरीका? फिर सुनीता ने उसे मनाया, अपनी उंगलियां उसके लंड पर घुमाते हुए फुसफुसाई, “देखो, मैं तुम्हें देखकर खुश होऊंगी, आह, तेरे उस मोटे, नसों वाले लंड को हमारी बेटी की टाइट कुंवारी चूत में घुसते हुए, फाड़ते हुए। सोचो, कितना मजा आएगा। ये हमारा परिवारिक राज रहेगा, और प्रिया की आदत छूट जाएगी।”
अगली रात, सब तय हो गया। कमरे की हल्की रोशनी में मोमबत्तियां जल रही थीं, जो दीवारों पर छायाएं डाल रही थीं, जैसे कोई गुप्त रस्म हो, वो छायाएं उनके शरीरों पर नाच रही थीं, जैसे उनके निषिद्ध खेल को उकसा रही हों। प्रिया को बुलाया गया। सुनीता ने उसे बिस्तर पर बिठाया और समझाया, “बेटी, तेरी ये उंगली वाली हरकत बंद करनी है। डॉक्टर ने कहा है, असली लंड की चुदाई से ही ये प्यास बुझेगी। लेकिन बाहर किसी गैर से नहीं, तेरे पापा ही तेरी कुंवारी चूत फाड़ेंगे। मैं यहीं बैठी देखूंगी, तेरी सिसकारियां सुनकर अपनी चूत सहलाऊंगी। डर मत, मजा आएगा, तेरी तरह।”
प्रिया शर्मा गई, लेकिन उसकी चूत में पहले से ही गीलापन छा गया था। वो उंगली की आदी थी, लेकिन असली लंड की कल्पना से उसकी सांसें तेज हो गईं। “ठीक है मम्मी, अगर आप कह रही हो, लेकिन पापा?”
कमरा अब गर्म हो चला था, हवा में पसीने और उत्तेजना की मिली-जुली महक। राकेश बेड पर बैठा था, उसका लंड पैंट में तनकर उभरा हुआ। प्रिया ने धीरे से अपनी नाइटी उतारी, उसके छोटे-छोटे स्तन हल्के से कांप रहे थे, निप्पल्स गुलाबी और सख्त। उसकी गुलाबी चूत नंगी हो गई, जहां से पहले से रस टपक रहा था। सुनीता कुर्सी पर बैठी थी, अपनी स्कर्ट ऊपर करके अपनी चूत को हल्के से सहला रही थी, उसकी महक कमरे में फैलने लगी, मिट्टी जैसी, उत्तेजक, जो प्रिया ने सूंघी और और गर्म हो गई, जैसे मां की प्यास उसकी अपनी बन गई हो।
राकेश ने प्रिया को धीरे से बाहों में खींचा, उसकी नाइटी की पतली सिल्की फैब्रिक उसके पसीने से चिपक रही थी, जो रोज की उंगली वाली मस्ती से निकली गर्मी की वजह से थी, उसकी त्वचा से उठती वो मादक, नमकीनी महक राकेश के नथुनों में घुस रही थी, जैसे कोई निषिद्ध फल। उसके मन में तूफान था: “ये मेरी बेटी है, लेकिन उसकी ये प्यास, अगर मैं न बुझाऊं तो कोई बाहर वाला चोर ले जाएगा। ये मेरी जिम्मेदारी है, उसे चोदकर बचाना।” उसने पहले उसके गाल पर किस किया, होंठ नरम, गर्म, फिर होंठों पर चिपक गया, मीठे, नमकीन स्वाद वाले, जैसे पके आम का रस, जीभ से जीभ मिलाते हुए, प्रिया की सांसें उखड़ने लगीं, उसकी छाती ऊपर-नीचे हो रही थी, निप्पल्स नाइटी के नीचे से सख्त होकर उभर आए, जैसे पुकार रहे हों। प्रिया की जांघें आपस में रगड़ रही थीं, अनजाने में, उसकी चूत से गर्माहट फैल रही थी। “पापा, आह्ह, मेरी चूत इतनी गर्म हो रही है, जैसे जल रही हो,” वो फुसफुसाई, उसकी आवाज कांपती, सांसों के बीच टूटती। राकेश की उंगलियां उसके पेट पर घूमीं, धीरे-धीरे नीचे सरकतीं, चूत के ठीक ऊपर रुककर हल्का सा दबाया, बस छूकर पीछे हट गईं, टीज करते हुए, प्रिया की कमर ऐंठी, जैसे电流 का झटका, “पापा, प्लीज, छुओ ना ठीक से,” उसने कराहा। उसकी चूत से गीलेपन की महक कमरे में फैलने लगी, मिट्टी जैसी, उत्तेजक, मिली हुई पसीने की, राकेश का लंड और कड़ा हो गया, सोचते हुए: “कितनी टाइट होगी ये कुंवारी चूत, मुझे निचोड़ेगी।” “बेटी, तेरी चूत मेरी अमानत है, मैं ही संभालूंगा, चोदकर,” वो फुसफुसाया, अपना हाथ उसकी चूत पर दबाते हुए, जहां से चपचप की आवाज आई।
“हां पापा, उंगली से तो बस खुजली मिटती है, अब तेरा मोटा लंड चाहिए, अंदर तक घुसा दो, मेरी चूत फाड़ दो,” प्रिया ने फुसफुसाते हुए कहा, अपनी टांगें फैलाते हुए, सांसें उखड़ती हुईं।
सुनीता देख रही थी, उसकी चूत से पानी टपक रहा था, वो अपनी उंगलियां अंदर-बाहर कर रही थी, सिंक में धक्कों के साथ, सोचते हुए: “मेरा पति बेटी को चोद रहा, लेकिन मैं कंट्रोल में हूं, ये मेरी fantasy है।” “हां राकेश, अब डालो अंदर। हमारी बेटी की कुंवारी चूत को फाड़ दो। मैं देखना चाहती हूं तेरे लंड को उसमें डूबते हुए, ओह्ह, मेरी चूत गीली हो रही है बस देखकर।”
राकेश ने अपना मोटा, नसों से फूला लंड प्रिया की गुलाबी चूत पर रगड़ा, ऊपर-नीचे सरकाते हुए, जहां से गीलेपन की फिसलन महसूस हो रही थी। प्रिया की चूत कुंवारी थी, इतनी टाइट कि लंड का सिरा बस छूते ही वो कांप उठी, उसकी जांघें फैल गईं लेकिन अंदर की मांसपेशियां सिकुड़ रही थीं। “आह पापा, धीरे से, मेरी कुंवारी चूत फट जाएगी, लेकिन प्लीज घुसाओ पूरा, मैं सह नहीं पा रही ये खुजली, तेरे लंड से ही मिटेगी,” वो चिल्लाई, लेकिन उसकी आंखों में प्यास थी, उंगली की आदत से निकली वो हवस जो अब असली चीज मांग रही थी। राकेश ने धीरे से दबाया, लंड का मोटा सिरा प्रिया की गुलाबी, टाइट चूत में सरका, उसकी दीवारें सिकुड़ रही थीं, जैसे विरोध कर रही हों लेकिन पुकार भी रही हों, दर्द की लहर प्रिया के शरीर में दौड़ी, जलन जैसी लेकिन नीचे से मीठी खुजली मिटाती हुई। खून की कुछ बूंदें चादर पर टपकीं, गर्म, चिपचिपी, मिली हुई उसके रस से, कमरे में वो कच्ची, लोहे जैसी महक फैली। “ओह्ह, पापा, दर्द हो रहा है, जैसे फट रही हो, लेकिन अंदर की वो खुजली, आह्ह, मिट रही है, जोर से घुसाओ,” वो बोली, उसकी आवाज टूटती, आंसुओं से गीली लेकिन आंखों में हवस की चमक। प्रिया की चूत की मांसपेशियां लंड को निचोड़ रही थीं, अनजाने में, जैसे दूध रही हो, राकेश ने रुककर महसूस किया, उसका मन कह रहा: “कितनी भूखी है ये, उंगली की लत अब मेरे लंड पर उतरेगी।” फिर रिदम पकड़ा, धीरे-धीरे जोर बढ़ाया, हर धक्के के साथ गीली थप-थप, चप-चप की आवाजें, प्रिया की सिसकारियां गूंजीं, आह इह्ह ओह्ह ओह, आह ह ह ह ह्हीईई आअह्ह्ह्ह, जैसे हर थ्रस्ट पर उसकी रूह हिल रही हो, उसकी जांघें कांप रही थीं, नाखून चादर में गड़े, पसीना टपकता हुआ उसके स्तनों पर सरक रहा। सुनीता देख रही थी, अपनी चूत से पानी टपकता महसूस कर, जैसे वो खुद चुद रही हो।
राकेश ने प्रिया को डॉगी स्टाइल में घुमाया और पीछे से लंड डाला, उसकी गांड को थपथपाते हुए, जहां से लाल निशान उभर आए। प्रिया की गांड हिल रही थी, पसीने से चमकती हुई, हर धक्के पर आगे-पीछे झूलती। “पापा, गहराई में, हां, चोदो मुझे जोर से, जैसे मैं उंगली डालती हूं लेकिन बेहतर, आह्ह, मेरी चूत जल रही है मजा से!” वो चिल्लाई, अपनी उंगलियां चादर में गड़ा कर, शरीर कांपते हुए, आह्ह.. ह्ह.. आऊ.. ऊऊ.. ऊउइ ..ऊई ..उईईई, जैसे हर धक्का उसकी रूह को हिला रहा हो। राकेश का लंड फुल स्पीड में था, उसका मन कह रहा था, “ये सही है, बेटी की मदद, लेकिन कितना मजा आ रहा है, उसकी टाइट चूत मुझे निचोड़ रही है।” हर थ्रस्ट के साथ प्रिया की चूत से गीले रस की फुहारें छूट रही थीं, कमरे की हवा में मादक महक और थप-थप की तेज आवाजें गूंज रही थीं, जैसे कोई जंगली ताल।
अचानक ट्विस्ट आया जब सुनीता अब और रुक न सकी। वो पहले से ही ककक्वीन की तरह देख रही थी, लेकिन अब उसकी हवस ने एक नया मोड़ ले लिया, वो अपनी बेटी की तरफ खिंची चली आई, जैसे कोई छिपी हुई इच्छा जाग उठी हो। “बेटी, तेरी ये सिसकारियां, मुझे भी तेरी तरह महसूस हो रहा है,” सुनीता फुसफुसाई, और प्रिया के चेहरे के पास आकर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। प्रिया चौंक गई, लेकिन दर्द और मजा की लहर में वो रुक न सकी, वो अपनी मां के होंठ चूसने लगी, जीभ से जीभ मिलाते हुए, जैसे उंगली की आदत अब मां की नरम जीभ पर उतर आई हो। सुनीता ने प्रिया के स्तनों को चूसना शुरू किया, निप्पल्स को काटते हुए, लेकिन अब और आगे बढ़ गई, अपनी उंगली प्रिया की गांड के छेद पर रगड़ने लगी, हल्के से अंदर डालकर। “मम्मी, आह्ह, ये क्या, लेकिन अच्छा लग रहा है,” प्रिया सिसकारी, उसकी चूत पापा के लंड से चुद रही थी और गांड मां की उंगली से, आह इह्ह ओह्ह ओह, आह ह ह ह ह्हीईई आअह्ह्ह्ह, जैसे दो तरफ से आग लगी हो। सुनीता बोली, “बेटी, मैं तेरी मां हूं ना, तेरी ये भूखी प्यास मैं भी बुझाऊंगी, देख, तेरी चूत पापा चोद रहे, लेकिन तेरी रसीली जीभ और टाइट गांड मेरी, मैं चाटूंगी, उंगली डालूंगी, तुझे पूरा संतुष्ट करूंगी।” राकेश देखकर और उत्तेजित हो गया, “सुनीता, ये, ये ट्विस्ट, चोदो दोनों मिलकर हमारी बेटी को!”
क्लाइमेक्स नजदीक आ रहा था, राकेश के धक्के अब बेकाबू हो चुके थे, प्रिया की चूत हर बार लंड को अंदर खींच रही थी, जैसे चूस रही हो। सुनीता अब प्रिया की चूत के ऊपर झुकी, अपनी गर्म जीभ क्लिट पर लगाई, चूसने लगी, चाटते हुए, तेज-तेज, जबकि राकेश का लंड अंदर-बाहर हो रहा था, वो गीला रस उसकी जीभ पर छलक रहा, नमकीन-मीठा, मिला हुआ पसीने से। प्रिया का शरीर ऐंठा, दो तरफ से आग लगी हुई, “पापा, मम्मी, आह्ह, मैं आ रही हूं, मेरी चूत फटने वाली है, जोर से घुसाओ, चूसो, आह्ह.. ह्ह.. आऊ.. ऊऊ.. ऊउइ ..ऊई ..उईईई!” उसकी चीख निकली, शरीर कांपने लगा, चूत की दीवारें सिकुड़-फैल रही थीं, जैसे लंड और जीभ दोनों को निगल रही हो, एक जोरदार ऑर्गेज्म की लहर ने उसे हिला दिया, बिजली सा झटका, पसीना चूता, आंखें बंद, मुंह से लार टपकी, उसकी गांड ऊपर उठी, अनजाने में। राकेश ने महसूस किया वो निचोड़, “बेटी, तेरी चूत मुझे दूध रही है, इतनी टाइट, आह्ह, मैं भी झड़ रहा,” और वो फूट पड़ा, गर्म, गाढ़ा वीर्य उंडेल दिया, इतना कि बाहर छलक आया, मिश्रित खून, रस, सुनीता की लार से चिपचिपा, वो महक कमरे में भारी हो गई, जैसे सेक्स की जंग जीत ली हो। सुनीता ने वो छलका रस चाट लिया, अपनी जीभ प्रिया की चूत पर लगाकर, फिर अपनी उंगलियां उस मिश्रण में डुबोकर प्रिया के मुंह में डाली, “बेटी, तेरी चूत का स्वाद, मैं भी अब आदी हो गई, चाट ये, पापा का वीर्य, तेरा खून, मेरी लार, ये हमारा राज, अब तू इसकी आदी हो जा।” प्रिया का शरीर अभी भी कांप रहा था, दूसरा ऑर्गेज्म आया, “पापा, मम्मी, भर दो मुझे, ये स्वाद अंदर, उंगली कभी नहीं दे सकती!” वो बोली, और मां की उंगलियां चूस ली, “पापा, ये स्वाद, उंगली से बेहतर, मीठा-नमकीन, गर्म।”
सुनीता मुस्कुराई, अपनी चूत से उंगली निकालकर, खुद भी झड़ चुकी थी बस देखकर और छूकर, “अब तेरी आदत छूट जाएगी बेटी। और मैं रोज देखूंगी, नहीं, शामिल होऊंगी, तुम दोनों में। ये हमारा परिवारिक इलाज है, अब मां-बेटी का ट्विस्ट के साथ।”
उस रात से प्रिया की उंगली की लत हमेशा के लिए छूट गई, लेकिन घर में एक नया, गुप्त सुख जाग उठा, पिता की ज़िम्मेदारी जो अब रोज की रस्म बन गई, मां की भूखी नजरों और हाथों तले, मां-बेटी की छिपी हवस के साथ। सब अपनी-अपनी हवस में डूबे, खुश और संतुष्ट।