चालू लड़की ने पास होने के लिए टीचर से चुदवाया

मैंने अपने कैरियर की शुरुआत एक कम्प्यूटर अध्यापक के रूप में की थी। जिस संस्था में मैं पढ़ाता था, वहाँ एक बैच था जिसमें ज्यादातर विद्यार्थी कॉलेज के थे, मुझसे बस २-३ साल छोटे। उस बैच में कुछ लड़कों के साथ दो खूबसूरत हसीन लड़कियाँ थीं, एक का नाम दीक्षा और दूसरी तृप्ति। दोनों की उम्र 19 थी, जवान और रसीली। दीक्षा का फिगर 34-28-36 था, गोरी-चिट्टी, लंबे बाल, और आँखें ऐसी कि किसी का भी दिल चुरा लें। तृप्ति 32-26-34 की थी, हल्की साँवली, लेकिन गदराया बदन और चाल ऐसी कि मर्दों का लंड खड़ा हो जाए।

दीक्षा पढ़ने में तृप्ति से तेज़ थी, उसके मार्क्स हमेशा टॉप आते। लेकिन तृप्ति की बात ही अलग थी, उसकी अदा में एक चालाकी थी, जैसे वो जानती हो कि मर्दों को कैसे फँसाना है। सेमेस्टर एग्जाम से एक हफ्ता पहले मैंने उनकी क्लास खत्म की। सब स्टूडेंट्स बाहर चले गए, और मैं क्लास में अकेला बैठा उनकी टाइम-शीट भर रहा था। तभी तृप्ति वापस क्लास में आई, उसकी सलवार-कमीज़ बदन से चिपकी थी, और बाल खुले हुए।

मैंने पूछा- क्या हुआ? अभी घर नहीं गई?

वो बोली- सर! मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है। – उसकी आवाज़ में एक नशीली मिठास थी।

मैंने कहा- बोलो!

वो मेरे पास आकर कुर्सी पर बैठ गई, उसकी जाँघें मेरी कुर्सी को छू रही थीं। बोली- नहीं! यहाँ नहीं, शाम को जब आप घर जाएँगे तो मैं नीचे आपसे मिलूँगी।

मैंने पूछा- बात क्या है, अभी बता दो।

वो मुस्कुराई, आँख मारी और बोली- नहीं सर, शाम को ही बताऊँगी।

मेरा दिल धक-धक करने लगा। मैंने कहा- ठीक है।

वो चली गई, उसकी गाँड मटकती हुई बाहर निकली। मैं अपना काम खत्म करके लैब में चला गया। शाम को जब घर जाने के लिए निकला, एक कार मेरे पास आकर रुकी। तृप्ति ड्राइवर सीट पर थी, लाल टॉप और टाइट जीन्स में। मैं उसकी बात भूल ही गया था, उसे देखकर याद आया। मैं कार में बैठ गया, उसकी परफ्यूम की खुशबू से मेरा सर चकराने लगा।

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मैंने पूछा- अब बता, क्या बात है?

वो बोली- सर, पहले कॉफ़ी शॉप चलते हैं, वहाँ बताऊँगी।

हम एक पास की कॉफ़ी शॉप में गए, कॉफ़ी ऑर्डर की। वो मेरे सामने बैठी, उसका टॉप इतना टाइट था कि उसकी चूचियाँ बाहर निकलने को बेताब थीं। वो बोली- सर, आप तो जानते हैं, मैं और दीक्षा बचपन की दोस्त हैं। वो मुझसे तेज़ है, उसके नंबर हमेशा मुझसे ज्यादा आते हैं। मैं उससे जलती हूँ।

मैंने कहा- तो मेहनत कर, तुम भी टॉप कर सकती हो।

उसने मेरा हाथ पकड़ा, अपने दोनों हाथों में लिया, उसकी उंगलियाँ मेरी हथेली पर नाच रही थीं। बोली- सर, अगर आप चाहें तो मेरे मार्क्स दीक्षा से ज्यादा हो सकते हैं। मैं इसके लिए कुछ भी करूँगी। – उसकी आँखों में शरारत थी, और होंठों पर एक गंदी मुस्कान। मेरे बदन में सिहरन दौड़ गई।

मैंने उसका खेल समझ लिया। पूछा- अगर मैं तुम्हारी मदद करूँ, तो मुझे क्या मिलेगा?

वो मेरी कुर्सी के और करीब आई, उसकी साँसें मेरे चेहरे पर टकरा रही थीं। बोली- सर, आप जो माँगेंगे, मैं वही दूँगी।

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मैंने कहा- सोच लो, कहीं मैंने कुछ ऐसा माँग लिया जो तुम न दे सको?

वो मेरे बगल में आकर बैठ गई, उसकी जाँघ मेरी जाँघ से सट गई। उसने अपनी हथेलियाँ मेरी जाँघों पर रख दीं और बोली- सर, आप जो कहेंगे, मैं वो करूँगी। बस मेरे मार्क्स दीक्षा से ज्यादा होने चाहिए। – उसकी आवाज़ में एक गर्मी थी, जैसे वो मुझे ललचा रही हो।

मेरा लंड पैंट में तन गया। मैंने कहा- ठीक है, देखता हूँ।

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हमने कॉफ़ी पी और अपने-अपने घर चले गए। एग्जाम हुए, मैंने कॉपियाँ चेक कीं। दीक्षा के 82 मार्क्स थे, तृप्ति के 75। मैंने तृप्ति के कुछ सवालों में नंबर बढ़ाए और उसके मार्क्स 84 कर दिए। रिजल्ट निकला तो तृप्ति की खुशी का ठिकाना न था। उसने क्लास के बाद मुझे थैंक्स कहा, उसकी आँखें चमक रही थीं।

मैंने मज़ाक में कहा- अब पार्टी कब दे रही हो?

वो बोली- सर, कल मेरे साथ मेरे घर चलो, वहीं पार्टी दूँगी।

अगले दिन क्लास खत्म हुई, वो मुझे अपनी कार में ले गई। उसका घर नहीं, एक शानदार बंगला था। मैंने पूछा- घर में कौन-कौन है?

वो बोली- पापा-मम्मी हैं, लेकिन दोनों किसी पार्टी में गए हैं। बस 9-10 नौकर होंगे।

वो मुझे अपने बेडरूम में ले गई। कमरा लग्जरी था, बड़ा सा बेड, मखमली चादरें। मैं सोफ़े पर बैठ गया। तृप्ति ने पीले रंग की सलवार-कमीज़ पहनी थी, बाल खुले थे, और वो इतनी सेक्सी लग रही थी कि मेरा लंड पैंट में तंबू बनाने लगा। वो मेरे सामने झुकी, उसके घुटनों पर हाथ रखे, और बोली- सर, आपने मेरी सालों की तमन्ना पूरी की। बताइए, क्या लेंगे, चाय या ठंडा?

मैंने उसकी कमर पर हाथ रखा, उसे सहलाने लगा। बोला- प्यास तो बहुत है, लेकिन चाय-ठंडे का मूड नहीं। कुछ और पिलाओ, कुछ गर्म।

वो हँसी, उसकी आँखों में शरारत थी। हम एक-दूसरे की आँखों में देखने लगे। धीरे-धीरे हमारे होंठ करीब आए, और हम किस करने लगे। मैंने उसे अपनी तरफ खींचा, वो मेरी जाँघों पर बैठ गई, उसके चूतड़ मेरी एक जाँघ पर और जाँघें दूसरी पर। हम पागलों की तरह चूम रहे थे, उसके रसीले होंठों का स्वाद मेरे मुँह में घुल रहा था। मैंने उसकी जीभ चूसी, वो भी मेरी जीभ से खेलने लगी।

मेरा एक हाथ उसकी चूचियों पर गया। उफ़्फ़, क्या टाइट चूचियाँ थीं। मैंने उन्हें दबाया, वो सिसकारी- आह्ह… ऊह्ह…। उसके हाथ मेरे बालों में थे, वो मेरे सर को और करीब खींच रही थी। मैंने उसका दुपट्टा उतारा, फिर उसकी कमीज़ ऊपर की। उसने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया, मैंने कमीज़ उतार दी। अब वो सिर्फ ब्रा और सलवार में थी। मैंने उसकी पीठ सहलाते हुए ब्रा के हुक खोल दिए। उसकी चूचियाँ आज़ाद हो गईं, गोल, टाइट, और निप्पल काले और सख्त।

मैंने उसकी चूचियों को मसला, निप्पल को उंगलियों से रगड़ा। वो बोली- सर, आह्ह… ज़ोर से दबाओ, मज़ा आ रहा है। मैंने उसकी एक चूची मुँह में ली, चूसा, दूसरी को दबाता रहा। वो सिसकारियाँ ले रही थी- ऊह्ह… सर, और चूसो…। उसने मेरी टी-शर्ट उतारी, मेरी बनियान भी। अब हम दोनों आधे नंगे थे, एक-दूसरे को चूमते-चाटते।

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मैंने उसका नाड़ा खोला, सलवार और पैंटी एक साथ नीचे सरका दी। उसकी चूत चिकनी थी, पूरी शेव्ड। वो मेरे गले में बाहें डालकर मेरे कंधों को चूमने लगी। मेरा लंड पैंट में तड़प रहा था। मैंने उसे थोड़ा ऊपर किया, अपनी पैंट और अंडरवियर उतार फेंका। मेरा 7 इंच का लंड बाहर आया, सख्त और लाल। तृप्ति ने उसे देखा, बोली- सर, कितना मोटा लंड है आपका, आज तो मेरी चूत फट जाएगी।

मैंने उसकी गाँड पकड़ी, उसे अपनी तरफ खींचा। अब मैं घुटनों पर था, उसकी गाँड सोफ़े पर। मैंने अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ा, वो मचलने लगी- आह्ह… सर, डाल दो, बर्दाश्त नहीं हो रहा। मैंने एक हथेली उसकी चूत पर फिराई, वो गीली थी, रस टपक रहा था। मैंने उसकी चूत को चूमा, जीभ से चाटा। उसकी चूत की खुशबू मुझे पागल कर रही थी। मैंने जीभ अंदर डाली, वो मेरे सर को पकड़कर अपनी गाँड हिलाने लगी- ऊह्ह… सर, चाटो, और चाटो…।

थोड़ी देर में वो झड़ गई, उसका रस मेरे मुँह में था। मैंने उसे चाटकर साफ़ किया। वो बोली- सर, थोड़ा रुक जाओ, मैं थक गई।

मैंने कहा- मेरा लंड तड़प रहा है, इसका तो ख़याल कर।

वो हँसी- लाओ, मैं इसे प्यार करती हूँ।

वो झुकी, मेरे लंड को सहलाया, फिर मुँह में लिया। वो धीरे-धीरे चूसने लगी, बीच-बीच में हल्के से काटती। बोली- सर, आपका लंड कितना टेस्टी है। उसकी चूसने की आवाज़- चप-चप- मेरे कानों में गूँज रही थी। मेरा लंड और सख्त हो गया। उसकी चूत फिर से गीली हो गई।

मैंने उसे उठाया, हम दोनों घुटनों पर थे। मैंने अपना लंड उसकी चूत के मुँह पर रखा, एक हल्का धक्का मारा। उसकी चूत के होंठ खुल गए, लेकिन लंड सिर्फ आधा इंच अंदर गया। वो बोली- सर, धीरे, दर्द हो रहा है। मैंने उसकी गाँड पकड़ी, एक ज़ोरदार धक्का मारा, मेरा लंड आधा उसकी चूत में घुस गया। वो चीखी- आह्ह… माँ… दर्द हो रहा है।

मैं रुका, उसे चूमा। फिर एक और धक्का मारा, मेरा पूरा लंड उसकी चूत में समा गया। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड जलने लगा। वो बोली- सर, आपका लंड मेरी चूत फाड़ रहा है, थोड़ा रुको। मैं थोड़ी देर रुका, फिर धीरे-धीरे धक्के मारने लगा। हर धक्के के साथ उसकी चूचियाँ उछल रही थीं। वो सिसकारियाँ ले रही थी- आह्ह… ऊह्ह… चोदो सर, और ज़ोर से…।

मैंने उसके पैर उठाए, अपनी कमर पर रखे। अब मैं ज़ोर-ज़ोर से उसकी चूत चोद रहा था। धक्कों की आवाज़- थप-थप- कमरे में गूँज रही थी। वो दो बार झड़ चुकी थी, उसकी चूत का रस मेरे लंड को और चिकना कर रहा था। मैंने उसे साइड में किया, उसके पैर मेरे कंधे पर रखे, और चुदाई जारी रखी। वो चिल्ला रही थी- सर, फाड़ दो मेरी चूत, मज़ा आ रहा है… आह्ह…।

आखिर मैं भी झड़ने वाला था। मैंने 4-5 ज़ोरदार धक्के मारे, मेरा लंड उसकी चूत में झड़ गया। मेरा गर्म माल उसकी चूत में भर गया। मैंने लंड निकाला, उसने उसे चाटकर साफ़ किया। वो मेरी गोद में लेट गई, मैं उसकी चूचियाँ मसल रहा था। मेरे हाथ उसकी गाँड तक गए, वो बोली- सर, अभी नहीं, गाँड आखिरी सेमेस्टर में।

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मैंने कहा- तुमने कहा था, जो माँगूँगा, वो दोगी।

वो हँसी- इतना तो दे दिया, और क्या चाहिए?

मैंने कहा- ये तो तुमने अपनी मर्ज़ी से दिया, मैंने माँगा कब था?

वो बोली- आप बड़े शरारती हो।

मैंने कहा- तुम जैसी हसीना हो तो मन डोलना लाज़मी है।

वो बोली- मुझमें ऐसा क्या है?

मैंने कहा- तेरा चेहरा, नशीली आँखें, गुलाबी होंठ, रसीली चूचियाँ, गदराई गाँड, चिकनी टाँगें- और क्या चाहिए?

वो ख़ुश हो गई, मेरे लंड को फिर से सहलाने लगी। मेरा लंड फिर खड़ा हो गया। मैंने उसे कुतिया स्टाइल में किया, उसकी गाँड चाटने लगा। उसकी गाँड इतनी मुलायम थी कि मेरा लंड और तड़पने लगा। मैंने थूक लगाकर उसकी गाँड गीली की, फिर लंड उसकी गाँड पर रखा। एक ज़ोरदार धक्का मारा, मेरा लंड आधा उसकी गाँड में घुस गया। वो चीखी- आह्ह… सर, फट गई, निकालो…।

मैं रुका, उसे सहलाया। फिर एक और धक्का मारा, मेरा पूरा लंड उसकी गाँड में था। उसकी गाँड इतनी टाइट थी कि मेरा लंड जल रहा था। वो रो रही थी- सर, बहुत दर्द हो रहा है। मैंने धीरे-धीरे धक्के शुरू किए। थोड़ी देर बाद उसे मज़ा आने लगा, वो बोली- आह्ह… सर, अब मज़ा आ रहा है, चोदो मेरी गाँड। मैंने धक्के तेज़ किए, थप-थप की आवाज़ गूँज रही थी। आखिर मैं उसकी गाँड में झड़ गया, मेरा माल उसकी गाँड में भर गया।

हम दोनों थककर लेट गए। उसने मुझे चूमा, बोली- सर, आपने तो मेरी चूत और गाँड दोनों फाड़ दी। मैंने उसे गले लगाया, और हम अपने घर चले गए।

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रिजल्ट वाले दिन मैं तृप्ति की खुशी देखकर पागल था, बस उसे चोदने की सोच रहा था। दीक्षा की तरफ मेरा ध्यान ही नहीं गया। वो मेरे इस बर्ताव से दुखी थी। अगले सेमेस्टर की क्लास में उसकी नज़रें मुझसे मिलीं, मुझे शर्मिंदगी हुई। क्लास खत्म हुई, सब स्टूडेंट्स चले गए। दीक्षा रूम में आई, बोली- सर, मुझे आपसे बात करनी है!

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