पहले मम्मी को, फिर बहन को अपनी पत्नी बनाया

हाय, मेरा नाम राज है और आज मैं अपनी एक कहानी आपके सामने लेकर आया हूँ।
जब मैं जवान हुआ, तब से ही मेरे अंदर ना जाने कैसा जोश उमड़ आया। हमेशा मेरा मन करता था कि कोई सुंदर सी लड़की का साथ मिले, उसके साथ बातचीत हो, उसके संग रहने का मौका मिले। पर शायद ये मेरे नसीब में नहीं लिखा था। मैंने बहुत कोशिश की कि कोई लड़की पट जाए, किसी के साथ तो चक्कर चल जाए, पर ऐसा हो ना सका। जब भी किसी से बात करता था, तो वो किसी ना किसी कारण से मुझे नापसंद कर देती थी। मेरे अंदर शारीरिक तौर पर कुछ भी ऐसा नहीं था, जिस पर लड़कियाँ मरती हों। मैं एक बिल्कुल सीधा-सादा सा लड़का था। एकदम मामूली। ना तो मेरे पास बहुत सारे पैसे थे, ना ही कोई और प्रतिभा थी, जिस कारण कोई मुझ पर मर मिटती। ना ही मेरा भाग्य हमेशा मेरा साथ देता था।

पर कहते हैं ना कि हर किसी के दिन ज़रूर आते हैं। हर एक को मौका मिलता है, भले ही वो एक बार ही मिले। कुदरत कभी इतना निष्ठुर नहीं होता कि आपको कुछ भी ना दे, और वो चीज़ तो वो और नहीं छीन सकता, जिसकी चाहत आपको अपने जीवन में सबसे ज्यादा हो। किसी को पैसे की चाह होती है, किसी को खाने की, किसी को घूमने की, किसी को पावर की, तो किसी को प्रतिष्ठा की और किसी को काम की। मेरी भी एक ही चाहत थी, जिसका मैं भूखा-प्यासा था। उसकी चाहत ने मुझे पागल कर दिया था। और शायद यही पागलपन था, जिसने मेरे लिए एक करिश्मा कर दिया। मैं जो चाहता था, वो मुझे मिल गया। और वो मुझे इतना मिला कि मेरी वो चाहत इस तरह से पूरी हुई, जैसे कि मेरी पूरी जिंदगी ही धन्य हो गई। मैं अपनी जिंदगी में उसे पाकर सब कुछ जैसे पा लिया हो, ऐसा महसूस करने लगा। सुख, शांति, समृद्धि, सब कुछ का मैं स्वामी बन गया। क्या गज़ब का पलटा खाया था मेरे भाग्य ने, जिसने मुझे लकीर का फ़कीर से अपनी दुनिया का बादशाह बना दिया था।

मेरी आपबीती, जो आज आपके सामने मैं रख रहा हूँ, वो गज़ब की है। एकदम अकल्पनीय। और ये एकदम मेरी असल जिंदगी में घटने वाली दास्तान है। तो सुनिए मेरी जीवन गाथा। उस समय मैं ग्रेजुएशन ख़त्म कर चुका था। पढ़ाई में दिल ना लगने के कारण मुझे ना तो कोई नौकरी मिल पाई, ना ही कहीं मास्टर्स में एडमिशन हो पाया। मैं अब घर पर बैठ सा गया था। दिन भर बस समय काटने के उपाय खोजता रहता था। कभी-कभी मैगज़ीन या न्यूज़पेपर पढ़ लिया करता था।

दिवाली नज़दीक थी। बाज़ार में हर तरह की चीज़ें मिलने लगी थीं। बाज़ार बस चीज़ों से भर गया था। एक दिन मैं अपने एक दोस्त के साथ घूमने निकला। मुझे घर के लिए कुछ सामान भी लेना था। मैं और मेरा दोस्त सामान लेकर घर लौटने लगे, तो मेरे दोस्त का उसके घर से फोन आ गया। वो मुझे सामान देकर घर चला गया। मैं भी अपने घर को हो लिया। रास्ते में घूमते-फिरते मैं घर आ रहा था कि मेरी नज़र एक स्टॉल पर पड़ी। वो स्टॉल लॉटरी का था। धनतेरस का दिन था, शायद इसलिए ये स्टॉल भी लगा था। मैं ना चाहते हुए भी उस स्टॉल के पास चला गया। स्टॉल वाला चिल्ला-चिल्ला के कह रहा था कि किस्मत बदलने का मौका है ये लॉटरी, एक खरीदो और भर लो दौलत से अपनी कोठारी। राह चलते हुए लोग वहाँ आ रहे थे। लोग लॉटरी वाले की बातों को सुनते। कुछ उससे प्रभावित होकर एक-दो लॉटरी खरीद कर ले भी जा रहे थे। पर अधिकतर लोग देखकर ही वापस लौट जाते थे। मैं वहाँ दस-पाँच मिनट तक खड़ा रहा और सब कुछ सुनता रहा। लॉटरी वाला कहने लगा कि साहब, एक लॉटरी ले लो, दुनिया बदल जाएगी। एक बार अपने भाग्य को आज़मा लो। तो मैं मन ही मन सोचने लगा कि आज तक तो यही भाग्य आज़माता आया हूँ। 15 सालों में तो कभी भी मेरे भाग्य ने मेरे लिए कुछ भी नहीं किया। मैं चलने को हुआ, तो लॉटरी वाले ने एक लॉटरी मुझे देते हुए कहा कि रख लो, कौन जाने लग ही जाए। मैंने कहा कि मेरे पास इसके लिए पैसे नहीं हैं। तो वो कहने लगा कि जो चाहे वो दे दो, धंधा बहुत ही मंदा चल रहा है। तो मैंने उसे जेब से एक 20 का नोट थमा दिया। अब 20 के नोट की जगह वो लॉटरी थी मेरे जेब में।

घर पहुँचकर मैंने सारा सामान माँ को दे दिया। माँ सामान लेकर अपना काम करने लगीं। मेरी माँ का नाम रति है। वो एक आम भारतीय नारी की तरह ही थीं। उम्र लगभग 45 होगी उनकी। मेरे पिताजी लगभग 5 साल पहले ही एक बस एक्सीडेंट में गुज़र चुके थे। तब से माँ ही घर संभालती आ रही थीं। पापा की जगह पर माँ को नौकरी मिल गई। उसी सरकारी ऑफिस में, जहाँ पापा काम करते थे। सैलरी ज़्यादा नहीं थी, पर माँ बखूबी घर चला लेती थीं। सामान देकर मैं अपने भाई-बहन के पास चला गया और उनसे बातें करने लगा। मेरा भाई मुझसे 5 साल छोटा था और बहन 8 साल छोटी थी। मैं लगभग 23 का था उस वक्त।

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दिवाली हमने बहुत अच्छे से मनाई। ज़्यादा पैसे ना होने पर भी हमने सब कुछ खरीदा, भले ही थोड़ा सा ही खरीदा हो। दो-तीन तरह की मिठाई, भाई-बहन के लिए कपड़े और माँ के लिए एक अच्छी सी साड़ी खरीदी थी हमने। जीवन ठीक से बीत रहा था। दिवाली को बीते 10 दिन ही हुए थे कि एक दिन अखबार पढ़ते हुए एक विज्ञापन पर मेरी नज़र चली गई। वो किसी लॉटरी का ही विज्ञापन था। गौर से देखने पर मालूम हुआ कि ये तो मेरी लॉटरी का ही रिजल्ट था। मैं उत्सुकता वश लॉटरी ढूँढने लगा। कुछ वक्त बाद लौटा, तो लॉटरी का नंबर मिलाया मैंने। अखबार में जो नंबर था, वही नंबर मेरी लॉटरी का भी था। मेरी लॉटरी को बम्पर प्राइज़ मिला था, जो कि पूरे 5 करोड़ का था। मुझे लगा कि सच में मेरा भाग्य आज चमक गया है। लॉटरी वाले की बात सच साबित हो गई थी।

मैंने झट से लॉटरी वाले ऑफिस में फोन करके पता किया। लॉटरी वालों ने 5 दिन बाद अपने दफ्तर में ही इनाम देने की बात कही। शाम को घर में जब माँ आ गईं, तो मैंने उन्हें ये बात बता दी। सब लोग खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे। 5 दिन बाद मैं और मेरी माँ लॉटरी के ऑफिस इनाम की रकम लेने गए। उन्होंने हमें बहुत सम्मानित किया। मेरी तरह और भी विजेता लोग आए हुए थे। सभी को उनका इनाम दे दिया गया। मेरी माँ को इनाम का चेक दिया गया। वो बहुत खुश हुईं और मुझे गले लगा लिया। फिर कहने लगीं कि आज तुमने, राज, ये साबित कर दिया कि तुम असफल नहीं हुए हो मेरे बेटे, मेरे जिगर के टुकड़े। तूने अपनी माँ को इतनी खुशी दी है कि मत पूछ। बोल मेरे लाल, तेरे लिए मैं क्या करूँ, जिससे तुझे खुशी मिले। मैंने कहा, छोड़ो ना माँ इन नाटकों को। अगर तुम खुश हो, तो मुझे और कुछ नहीं चाहिए। तुम्हारी खुशी ही मेरी खुशी है। मेरी माँ की नज़रों में मेरी इज़्ज़त बढ़ गई थी। हम घर आ गए। मैंने चेक को माँ के बैंक अकाउंट में जमा करवा दिया। और फिर हमारी जिंदगी बदल गई।

मैंने माँ का काम बंद करवा दिया। मैंने उन्हें रिटायरमेंट दिलवा दी। अपने भाई को एक बहुत ही अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिट करवा दिया, जो कि चेन्नई में था। बहन को एक नामी बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया। अब घर पर मैं और माँ रह गए। मैंने अपने लिए एक बहुत ही बढ़िया सा डिपार्टमेंटल स्टोर खोल लिया और मन लगाकर काम करने लगा। मैं चाहता था कि माँ बस आराम करें। उन्हें किसी प्रकार की कोई तकलीफ ना हो। और अब माँ चाहती थीं कि मेरी शादी हो जाए। पर मैं अभी शादी करना नहीं चाहता था, क्योंकि मुझे अब अपना बिजनेस अच्छी तरह से स्थापित करने का भूत सवार हो गया था। ऐसा नहीं था कि मेरी काम भावना मर गई थी, पर मैं अब उस ओर कम ध्यान देने लगा था। मेरा पूरा फोकस अब बिजनेस पर आ गया था। इसलिए मैंने माँ से कह दिया कि मुझे अभी काम कर लेने दो, शादी तो हो ही जाएगी। माँ मेरी काफी पढ़ी-लिखी समझदार स्त्री थीं। उन्होंने मुझ पर अधिक दबाव डालना उचित नहीं समझा।

इसी तरह से एक साल बीत गया। भाई-बहन अच्छी तरह से पढ़ रहे थे। मैं भी अपने काम में तरक्की कर रहा था। मेरा काम बढ़ गया था, सो मैंने एक कंप्यूटर ले लिया, साथ में नेट कनेक्शन भी। और दो लोगों को भी काम पर रख लिया। अब मुझे कम काम करना पड़ता था। उन दिनों मैं इंटरनेट में मशगूल हो गया। एक दिन यूँ ही कुछ सर्च कर रहा था कि मुझे अश्लील वेबसाइटों के बारे में पता चला। मैंने एक साइट खोली। वहाँ पर हर तरह की सेक्सी कहानी थी। एक कहानी का टाइटल था “माँ और बेटा”। मैं उत्सुकता वश उस टाइटल पर क्लिक किया, तो कहानी का पेज खुल गया। मैंने पूरी कहानी ध्यान से पढ़ी। उसमें लिखा था कि कैसे एक 17-18 साल के लड़के ने अपनी माँ के साथ सेक्स किया। उस कहानी को पढ़कर मुझे बड़ा अजीब भी लगा और मज़ा भी आया। मैं सोचने लगा कि ये कैसे हो सकता है। एक माँ अपने बेटे को अपना सब कुछ कैसे सौंप सकती है। मैंने आज तक ना तो कहीं ऐसा पढ़ा था और ना ही इसके बारे में सुना था। फिर मैंने सोचा कि इस संसार में ही तो सब कुछ होता है। ये भी हो ही सकता है। उस कहानी को पढ़कर मेरे अंदर कुछ अजीब हलचल हुई, जैसे कोई अनोखी अनुभूति हुई हो मुझे। उस कहानी को पढ़कर रिश्तों के प्रति मेरा नज़रिया ही बदल गया। मैंने जिज्ञासा वश ऐसी और ढेरों कहानियाँ पढ़ीं, जिनमें रिश्तेदारों के बीच सेक्स संबंधों का वर्णन था। अब मैं पूरी तरह से उत्तेजना से भर चुका था। उन कहानियों को पढ़कर, उनके बारे में कल्पना करके मेरा लिंग भी खड़ा हो गया।

शाम को जब मैं घर लौटा, तो भी मेरा मूड सेक्स से भरा हुआ था। उस पर मैं हमेशा सेक्स के बारे में ही सोचा करता था, जिसका स्वाद मैंने आज तक नहीं लिया था। मैं पूरी तरह से उत्तेजना में डूबा हुआ था। घर में मैंने किसी तरह अपनी उत्तेजना को काबू में किया। फ्रेश होकर कुछ देर आराम किया। तब चाय लेकर माँ कमरे में आ गईं। मैंने माँ को देखा, तो मेरा नज़रिया बदल गया उन्हें देखने का। मैंने आज माँ को माँ की तरह नहीं, बल्कि एक औरत की तरह देखा था। देखने में वो बुरी नहीं लगती थीं। बस उनके कुछ बाल सफेद हो गए थे और चेहरे पर थोड़ी झुर्रियाँ आ गई थीं। वो चाय देकर सामने कुर्सी पर बैठ गईं। मैं शांत रहा और चाय पीने लगा। चाय की चुस्की लेकर मैं माँ के शरीर का निरीक्षण करने लगा। मैंने देखा कि वो अभी भी अपनी उम्र से कम ही लगती थीं। जब मैंने गौर से देखा, तो पाया कि उनके वक्ष बहुत छोटे से, सूखे से और लटके हुए थे। मैं उन्हें देखकर सोचने लगा कि अगर मेरी माँ जवान होतीं, तो मैं उन्हें पटा सकता था, फिर उनके साथ सुख पा सकता था। पर मुझे लगा कि ऐसा संभव नहीं हो पाएगा। मेरी आशाओं पर पानी फिर रहा था। मैंने सोचना बंद कर दिया।

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अगले दिन मैं जल्दी स्टोर पर चला गया। आज भी मैं उन सेक्सी कहानियों को पढ़ने लगा। कुछ देर एक-आध कहानी पढ़ने के बाद मुझे एक ऐसी कहानी मिली, जिसने मेरी आशाओं को फिर से ज़िंदा कर दिया। ये कहानी भी एक माँ-बेटे की ही थी। इस कहानी में माँ-बेटे की परिस्थिति भी हम माँ-बेटे जैसी ही थी। पर बेटे ने बड़ी बुद्धिमानी से रास्ता निकाला था और अपनी माँ के साथ संबंध स्थापित किया था। उस लड़के की माँ भी मेरी माँ जैसी ही थी। उस औरत के स्तन भी मेरी माँ की तरह ही छोटे और लटके से थे। वो भी पूरी प्रौढ़ थी। पर उसके बेटे ने अपनी माँ का इलाज किसी नामी सेक्सोलॉजिस्ट से कराकर अपनी माँ को यौवन प्राप्त करवाया था, फिर माँ को पटाकर, उनके अंदर कामुक भावनाएँ पैदा करके उनके साथ विषय सुख प्राप्त किया था। इस कहानी को पढ़कर मुझे भी रास्ता दिखने लगा था। मैंने भी नेट पर पता किया कि दुनिया का सबसे अच्छा सेक्सोलॉजिस्ट कौन है और क्या वो दोबारा किसी औरत को फिर से जवानी दिलवा सकता है। गूगल पर खोजने पर पता चला कि यूएसए में ऐसे बहुत से डॉक्टर हैं, जो बूढ़े लोगों को नई जवानी, नया जीवन और नई सेक्स लाइफ प्रदान करवाते हैं। ऐसे ही एक डॉक्टर के क्लिनिक पर फोन करके मैंने पता किया। उन्होंने आश्वासन दिया कि ऐसा हो सकता है और वो भी 100 फीसदी। मैंने सोच लिया कि मैं माँ को यूएसए ले जाऊँगा और उन्हें नया यौवन ज़रूर दिलवाऊँगा।

काम ख़त्म करके मैं घर आ गया और मैंने माँ से बात की कि हमें अमेरिका चलना है उनके इलाज के लिए। तो माँ कहने लगीं कि उन्हें क्या बीमारी है? भली-चंगी तो हैं वो। फिर क्यों जाना अमेरिका बिना बात के। मैंने माँ को समझाया कि उनकी उम्र बहुत हो गई है और स्वस्थ रहने के लिए उनका ऑपरेशन या फिर डॉक्टरी सलाह बहुत ज़रूरी है। मैंने ये भी कहा कि मैं उन्हें बूढ़ी होते हुए नहीं देखना चाहता, तो वो मान गईं। हमें अमेरिका में डेढ़-दो महीने रहना था, जैसा कि डॉक्टर ने बताया था। मैंने भाई-बहन को फोन करके ये बता दिया कि माँ के इलाज के लिए हमें अमेरिका जाना है और हम डेढ़-दो महीने वहाँ पर ही रहेंगे। तो भाई-बहन ने कहा कि ठीक ही तो है। वैसे भी माँ के हेल्थ के लिए ये ज़रूरी है। स्टोर की जिम्मेदारी मैंने अपने विश्वसनीय नौकर को सौंप दी और वीज़ा-पासपोर्ट बनाकर मैं और माँ अमेरिका आ गए।

अमेरिका पहुँचते ही हम डॉ. स्मिथ से मिले। उन्होंने माँ का एग्ज़ामिनेशन किया। उनके कई टेस्ट लिए। फिर डीप एनालिसिस के बाद उन्होंने कहा कि माँ को 3 दिन के लिए हॉस्पिटल में एडमिट करना होगा। मैंने माँ को हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया। पैसे वगैरह भी जमा करवा दिए। फिर अकेले में मेरी बात डॉ. स्मिथ से हुई। उन्होंने कहा कि आपकी माँ की हल्की प्लास्टिक सर्जरी करनी पड़ेगी, जिससे उनका चेहरा फिर से 20-25 साल में जैसा रहा होगा, वैसा हो जाए। उनका ब्रेस्ट ट्रीटमेंट भी होगा, ताकि वो फिर से सुडौल, मांसल व गठीले हो सकें। साथ ही साथ माँ के शरीर के पूर्ण परिवर्तन के लिए 2 महीने तक बहुत सी दवाएँ व इंजेक्शन देनी होंगी, जिससे उनके अंदर चमत्कारिक परिवर्तन हो सके। माँ के ऑपरेशन होने के तीन दिन बाद मैं माँ से मिला। उन्हें कम्पलीट बेड रेस्ट दिया गया था। मैं जब माँ से मिला, तो उनकी हालत ठीक नहीं थी, फिर मैं पूरे मन से उनकी देखभाल में जुट गया। पूरी तरह से मैं उनकी सेवा करने लगा। डॉक्टर और नर्स भी समय-समय पर हालत में हो रहे सुधार को देखने के लिए आते रहते थे। धीरे-धीरे माँ ठीक होने लगीं। 1 महीना होते-होते माँ पूरी तरह से ठीक हो गईं। फिर मैं माँ को होटल में ले आया। लेकिन हमें 10-15 दिन वहाँ और रुकना था। इन 10-15 दिन में इलाज का आखिरी दौर चल रहा था। जब ये 15 दिन गुज़र गए, तो डॉ. स्मिथ के पास हम गए। उन्होंने माँ का फिर से एग्ज़ामिनेशन किया। एग्ज़ामिनेशन के बाद उन्होंने मुझसे बात की। उन्होंने बताया कि अब आपकी माँ पूरी तरह से ठीक हो गई हैं। और अब वो अपने यौवन को बस कुछ दिनों में प्राप्त कर लेंगी। मैं बहुत खुश हुआ। मैं माँ को वापस हमारे घर ले आया।

अब तक माँ में काफी परिवर्तन भी आ गए थे। उनके सफेद बाल काले हो गए थे, चेहरे की झुर्रियाँ गायब हो चुकी थीं। वो एकदम से किसी 21 साल की लड़की की तरह लगने लगी थीं। उनके स्तन और नितंब भी लगभग 36” के आकार के हो गए थे। माँ फिर से एक बार पूर्ण विकसित युवती बन चुकी थीं। और तो और, उनकी सोच और चाहत में भी परिवर्तन आने लगा था। शायद डॉक्टर ने उन्हें बाहरी तौर पर ही नहीं, बल्कि आंतरिक तौर पर भी पूरी तरह से परिवर्तित कर दिया था। मैं इन सब परिवर्तनों से बहुत खुश था।

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अब इस बात का समय आ चुका था कि कैसे मैं अपनी माँ को, जो एक नवयौवना बन चुकी थी, उसे अपने साथ संसर्ग करने के लिए उत्साहित कर सकूँ, उसे उत्तेजित कर सकूँ, ताकि वो सब कुछ भूलकर मेरे साथ, मेरी शय्या पर, मेरी अर्धांगिनी बन सके। इस समय मेरे भाई-बहन हम दोनों से मिलने के लिए घर आ चुके थे। मैं अपनी कामना को भूलकर उनके साथ वक्त बिताना चाहता था। ये मेरी मजबूरी भी थी, ताकि उन्हें मेरी मंशा के बारे में पता ना चल सके। जब वो आए और माँ को देखा, तो बस देखते ही रह गए। माँ भी बहुत दिनों से अपने अंदर और बाहर हुए बदलावों पर ताज्जुब कर रही थीं। मेरे भाई-बहन माँ को देखकर बड़े खुश हुए और मुझे धन्यवाद देने लगे कि मैंने उनकी और अपनी माँ को कितना अच्छा कर दिया है। वो सच में बहुत खुश थे। कुछ दिन हमारे साथ रहने के बाद वो फिर अपने कॉलेज व स्कूल वापस चले गए। और मुझे फिर से अपने ध्येय को पूरा करने का समय मिल गया।

हमें आए हुए लगभग दो महीने हो गए थे। और मैं लगातार अपनी काम पूर्ति के बारे में सोचे जा रहा था। मुझे एक ख्याल आया कि क्यों ना मैं माँ को हिमाचल की वादियों में घुमा लाऊँ। शायद वहाँ कुछ चमत्कार हो जाए। वैसे भी हमारे शहर में बहुत गर्मी पड़ रही थी। मैंने कुल्लू में एक रिसॉर्ट में 10 दिनों के लिए एक जबरदस्त सा कॉटेज बुक किया, जिसका किराया 10 दिनों के लिए 20,000 रुपये था। मैंने माँ को कुल्लू जाने के बारे में बताया, तो वो बड़ी खुश हुईं। वो कहने लगीं कि अरसा हो गया कहीं घूमे हुए। (अमेरिका हम काम से गए थे, सो उसे घूमना नहीं कहेंगे।) तूने ठीक ही किया। चल, कुछ दिन आराम से पहाड़ों पर रहेंगे। हम कुल्लू चले आए। रिसॉर्ट में पहुँचकर मैंने कॉटेज की चाबी ली और हम कॉटेज में आ गए। कॉल बॉय हमारा सामान लेके आ गया। सामान कुछ ज्यादा नहीं था। माँ तो बहुत से कपड़े ला रही थीं, पर मैंने मना कर दिया कि चलो, मैं वहाँ पर खरीद दूँगा। कॉटेज में थोड़ी देर आराम करने के बाद माँ नहाने चली गईं।

कुछ देर में माँ नहाने के बाद काली नाइटी में बाहर आईं। नाइटी में माँ बहुत खूबसूरत लग रही थीं। मैंने देखा, तो बस देखता ही रह गया। पर माँ की नज़रों से अपनी नज़र को छुपा गया। फिर मैं भी नहा लिया और हमने वेटर को ऑर्डर देकर लज़ीज़ खाना मँगवाया। खाना खाकर माँ ने कहा, जुग-जुग जिए मेरा लाल। कितना कर रहा है तू अपनी माँ के लिए। मैंने कहा, अरे माँ, मैं तेरी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूँ। और तुम मेरी माँ ही तो हो, जो तुम्हारे लिए कर रहा हूँ, वो मेरे ही लिए तो है ना माँ। फिर हम सोने के लिए चले गए। चूँकि हम कॉटेज में रुके थे, तो उसमें एक ही रूम था, बड़ा सा, और एक ही बेड था, बड़ा सा। हम दोनों उसी पर सो गए।

शाम को जब हम जागे, तो मैंने माँ से कहा कि माँ, चलो हम कहीं घूमकर आते हैं। और हम तैयार होकर निकल पड़े। मैंने शर्ट और पैंट पहना था और माँ ने एक लाल साड़ी, उसी के मैचिंग का ब्लाउज़ और चूड़ियाँ पहनी थीं। माँ लग रही थीं कि जैसे कोई नव ब्याहता हो। हमें देखकर कोई नहीं कह सकता था कि हम माँ-बेटे हैं। पहले दिन तो हम बस कुछ कस्बा ही देखने गए। रात में हम 9 बजे तक लौट आए। लौटने के बाद हम दोनों ने बारी-बारी से गर्म पानी का स्नान लिया। तब तक खाना आ चुका था। माँ मेरे पास ही कुर्सी लगाकर बैठ गईं। उन्होंने कहा कि चल, मैं आज तुझे अपने हाथों से खिलाती हूँ। मैंने कहा, ठीक है। वो अपने हाथों से खिलाने लगीं। उनका हाथ मेरे होठों से जब लगता था, तो एक सिहरन सी होती थी। उनका दूसरा हाथ मेरे सिर पर था, जो केहर ढा रहा था। खाना खाने के बाद मैंने उनके हाथ की उंगलियों को चूसा, ये बहाना बनाकर कि खाना इतना अच्छा है कि उंगलियाँ भी चाटने का मन कर रहा है। मैंने भी अपनी माँ को अपने हाथों से खिलाया। मेरा एक हाथ उनके गालों पर था। क्या मखमली गाल थे उनके। फिर माँ ने भी मेरी सारी उंगलियाँ चाटीं। लग रहा था जैसे वो लंड चूस रही हों। फिर कुछ देर के बाद हम सो गए। अगले दिन हम देर तक सोते रहे।

दोपहर दो बजे हमारी नींद खुली। हम सब काम करके घूमने जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तभी माँ ने मुझे पुकारा। मैं उनके पास गया, तो कहने लगीं कि मैं उनके ब्लाउज़ का हुक लगा दूँ, जो उनसे लग नहीं रहा था। ये माँ का पहले का ब्लाउज़ था, जो अब छोटा हो चुका था, पर माँ के पास यही एक काला ब्लाउज़ था, जो वो आज काली साड़ी के साथ पहनने वाली थीं। जब मैं ब्लाउज़ का हुक लगा रहा था, तो मैं माँ से लगभग सट सा गया था और उनके बालों और बदन की खुशबू मेरे नाक में भरने लगी। मेरे ऊपर अजीब सा नशा सवार होने लगा। अगर मैंने संयम ना रखा होता उस वक्त, तो मैं माँ को पटक कर उनके साथ कुछ भी करने लग गया होता, पर ऐसा नहीं हुआ। मेरा खेल बिगड़ते-बिगड़ते बचा। मैं हुक लगाते-लगाते कुछ पल के लिए माँ की पीठ को भी सहलाता रहा। फिर मैं माँ से अलग हट गया। माँ पीछे घूमकर कहने लगीं कि देखो तो, ये ब्लाउज़ छोटा हो गया है। मैंने माँ के स्तनों की तरफ देखते हुए कहा कि एकदम ठीक तो हैं। तो वो कहने लगीं, सच में! मैंने कहा, हाँ बाबा। सच में माँ के स्तन ब्लाउज़ को फाड़कर बाहर आना चाहते थे। आज मुझे वो स्तन नहीं, आम लग रहे थे, जिनमें ना जाने कितना रस, काम रस भरा था।

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(आप पाठकों के लिए एक खास बात। अब मैं माँ को माँ नहीं, बल्कि रति ही कहूँगा, क्योंकि अब मुझे माँ कहना अच्छा नहीं लगता और एक ग्लानि होती है कि इस 21 साल की मद रस से भरी युवती को मैं माँ कहूँ। मेरी माँ तो 45 साल की प्रौढ़ स्त्री थी। ये तो कोई और है।)

आज हम कुल्लू की एक ऐसी जगह जाने वाले थे, जहाँ सिर्फ और सिर्फ प्रेमी युगल ही जाते थे। मैंने इस जगह के बारे में पहले ही पता कर लिया था। हम जब वहाँ पहुँचे, तो देखा कि लड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे की बाहों में बाहें डाले हुए हैं। कुछ स्मूच कर रहे थे, तो कुछ झाड़ियों के पीछे रास लीला चालू किए हुए थे। रति ने जब देखा, तो वो देखती रही। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। फिर खुद को संभालते हुए मुझसे कहने लगी कि कहाँ ले आए हो, चलो यहाँ से। मैंने कहा, आई एम सॉरी माँ। चलिए यहाँ से। जब हम कॉटेज लौट रहे थे, तो वर्षा होने लगी। रास्ते में ठहरने की कोई जगह ना थी। और हम पूरी तरह से भीग गए। रति को बहुत सर्दी होने लगी। जब वो सर्दी से काँपने लगी, तो मुझसे रहा ना गया और मैं उसे अपनी बाहों में भरकर कॉटेज ले आया। वो जब मेरी बाहों में आई, तो मुझसे जोर से चिपक गई। उसके बदन की खुशबू और गर्मी की वजह से मेरा लंड खड़ा हो गया। और मैं माँ की तरह पिघलने लगा। कॉटेज लौटने के बाद मैंने उससे कहा कि आप कपड़े चेंज कर लो, मैं आग का इंतज़ाम करता हूँ। वो बाथरूम में गई, तो मैंने कॉल करके वेटर से लकड़ियाँ मँगवा लीं और उसे जला दिया। कॉटेज में गर्मी होने लगी। रति नाइटी में आई। उसकी नाइटी कहीं-कहीं भीग गई थी। जिसकी वजह से वो उसके बदन से चिपक रही थी। वो चिपकी हुई नाइटी में खजुराहो की किसी मूरत की तरह लग रही थी। मैं और गर्म हो रहा था। वो आकर मेरे पास बैठ गई और अपने जिस्म को आग से सेंकती रही। फिर खाना खाने के बाद कहने लगी कि बेटा, मुझे बड़ी ठंड लग रही है। तो मैंने कहा कि कोई बात नहीं, चलिए मैं आपकी गर्म तेल से मालिश कर देता हूँ। तो उसने मना कर दिया। मैं कहने लगा कि आपको अगर कुछ हो गया, तो मैं भाई-बहन को क्या मुँह दिखाऊँगा, तो वो मान गई। मैंने आग में तेल गर्म किया और उसे बेड पर लेटने को कहा। वो लेट गई। पहले मैंने उसके तलवों की बड़े प्यार से मालिश की। उसे बड़ा अच्छा लगा। जैसे ही मैंने उसकी पिंडलियों को छुआ, वो उठ बैठी और कहने लगी कि अब रहने दे। मैंने कहा कि कैसे रहने दूँ। चलो, आप लेट जाओ, तो वो लेट गई। मैंने उसकी नाइटी घुटनों तक उठाने को कहा। तो वो कहने लगी कि अच्छा नहीं लग रहा, शर्म आती है बेटे के सामने ये सब नहीं करती औरतें। तो मैंने कहा कि आपको ठंड लग रही है और इस गर्म तेल की मालिश बहुत ज़रूरी है। शरमाने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं आपका ही तो बेटा हूँ। फिर वो मान गई। मैंने तब जाकर बड़ी ही कामुकता के साथ उसकी पिंडलियों की मालिश की। जब वो अपनी नाइटी उठा रही थी, तो मुझे उसकी पैंटी नज़र आ गई थी, जो कि काले रंग की थी। मुझे लगा कि मेरी जन्नत इसी ब्लैक पैंटी में कैद है। उसे आज़ाद करना ही होगा, तब ही मुझे मुक्ति मिल पाएगी। फिर मैंने उसे नाइटी और उठाने के लिए कहा, तो इस बार उसने कुछ नहीं कहा। नाइटी इस बार पैंटी तक पहुँच गई। मैंने वो दृश्य देखा, जो अकल्पनीय था। क्या नज़ारा था, हज़ार जन्नतों के बराबर थी मेरे लिए ये जन्नत। उसकी जाँघें एकदम चिकनी थीं, बिल्कुल साफ। किसी तरह का कोई दाग ना था वहाँ पर। ना ही कोई रेशा। मैं उन केले के थम जैसी जाँघों की बड़े मुलायम हाथों से मालिश करने लगा। मालिश करते-करते मैं उसकी पैंटी के पास पहुँच गया। और कभी-कभी उसकी पैंटी के पास की जगह को भी उंगलियों से छेड़ दे रहा था। जब उंगलियाँ उसकी पैंटी से सटती थीं, तो एक हल्की सी झुरझुरी होती थी मेरे बदन में। साथ में मुझे घबराहट भी होने लगी। उसे भी ना जाने क्या-क्या हो रहा था। खुमार छा रहा था उसके ऊपर। अब तो वो एकदम कुँवारी लौंडिया थी। इससे आगे मैं नहीं बढ़ा। सोचा सब्र में ज्यादा मज़ा है। उसके बाद उसके हाथों की मालिश करके फिर उसे सोने को कहकर मैं भी सो गया।

आज मुझे कुछ अजीब सी महक महसूस हो रही थी। मैं इस महक को बड़ी देर तक अपनी नासिकाओं में भरता रहा। फिर सोचा, एक बार रति के जिस्म को सूँघ के देखूँ, कहीं उसी की महक तो नहीं है ये। जब वो सो गई, तो मैंने अपनी नाक उसकी जाँघों के ठीक बीच में लगाकर सूँघने लगा। एकदम वही महक थी, जो पहले मेरे नाक में पहुँच रही थी। मेरी नाक उसके शरीर से नहीं सटी। मैं ये चाहता भी नहीं था। फिर थोड़ी देर बाद जब मुझसे ना रहा गया, तो मैं अपना मुँह रति के मुँह के पास ले गया और हल्के से उसके होंठों को चूम लिया। अपनी जीभ निकालकर उसके होंठों को चाटा भी। वो नींद में ही मुस्काई। मैंने सोचा, कहीं ये उठ ना जाए, इसलिए मैं सो गया।

अगले दिन हम सुबह जल्दी ही उठ गए। आज मैं रति को शिमला ले जाना चाहता था, ताकि वहाँ से कुछ खरीद लिया जाए, जैसे कि उसके लिए कुछ सेक्सी कपड़े और कुछ दवाइयाँ, जो उसे अंदर से उत्तेजित कर सकें। मैंने उसे बताया कि हम आज शिमला चल रहे हैं। तो उसने कहा, ठीक है, मैं रेडी हो जाती हूँ। वो नहा चुकी थी और अपने बाल सुखा रही थी। फिर मैं नहाने गया। नहाकर जब मैं बाहर निकला, तो देखा कि वो अपने बाल संवार रही थी। वो आईने के सामने थी और मैं उसकी पीठ पीछे। वो पीछे से एकदम जबरदस्त लग रही थी और उसने साड़ी इतनी टाइट बाँधी थी कि उसके चूतड़ बाहर को उभरे हुए दिखने लगे थे। वो इतनी कामुक स्थिति थी कि मैं खुद को रोक नहीं पाया उसे स्पर्श करने से। मैं धीरे से उससे सट गया और मैंने अपना तौलिया गिरा दिया, जिसे मैंने बाँधा हुआ था। और मैं उससे एकदम से चिपक गया। मैंने उसे हिलने नहीं दिया, ताकि वो मुझे नंगा ना देख ले। मैं जब उससे चिपका, तो उसके चूतड़ मेरे पेड़ू के नीचे मेरी जाँघों के बीच में थे और मेरा लंड उसके चूतड़ों के बीच में, और मेरे हाथ उसके पेट पर थे। ये गज़ब की कामुक पोजीशन थी हम दोनों माँ-बेटे की, एकदम किसी खजुराहो की कोई पत्थर वाले जोड़े की तरह। वो खुद को ऐसी पोजीशन में पाकर मुस्काए बिना ना रह सकी। मैं उसके पेट को सहलाने लगा और उसकी गरदन के पीछे अपने लब सटा दिए। जैसे ही मैंने अपने होंठ उसकी गरदन पर रखे, उसके मुँह से आह! निकल गई। वो भी काफी उत्तेजित हो चुकी थी। फिर मैंने कहा कि आज आप बहुत ही खूबसूरत लग रही हैं। तो वो खुश हो गई और कहने लगी कि चलो, जल्दी से तुम तैयार हो जाओ। मैंने कहा, लीजिए, अभी आया, और उसके पेट से हाथ हटाकर तौलिया लपेटा और चला गया कपड़े पहनने।

थोड़ी देर में मैं भी तैयार हो गया। फिर हम एक टैक्सी बुक करके शिमला चल दिए। टैक्सी में मैंने उसे अपने एकदम पास बिठाया, बिल्कुल खुद से चिपकाकर। मैंने ऐसी टैक्सी ली थी, जिसमें बैक सीट का सीन दिखाने वाला आइना नहीं था। ऐसा इसलिए, क्योंकि मैं चाहता था कि जो भी हम करें, वो ड्राइवर ना देख सके। गाड़ी चलने लगी। मैंने अपना एक हाथ रति की कमर के पीछे से ले जाते हुए कसकर अपने से उसे सटा लिया, तो वो मेरे और भी पास आ गई। जब मैंने ऐसा किया, तो उसने कुछ नहीं कहा। मैंने सोचा, लगता है रति भी कुछ-कुछ महसूस कर रही है। उसने किसी प्रकार की कोई तंत्रम्स नहीं दिखाए, अपने चेहरे पर बस वो एकटक मेरी आँखों में देखती रही और हल्के से मुस्कुरा दी। फिर जब हमें चलते हुए आधा घंटा हो गया, तो उसकी पलकें झुकने लगीं। मैंने कहा कि मेरे कंधे पर अपना सिर रख दे, तो उसने रख दिया और वो निश्चिंत होकर सो गई। थोड़ी देर बाद मैंने उसे अपनी जाँघों पर लिटा लिया और उसके पैर को भी सीट पर सीधे करके रख दिया। अब उसके वक्ष एकदम मेरी नज़रों के नीचे थे। जब गाड़ी हिलती या फिर वो साँस लेती-छोड़ती, तो उसके वक्ष गज़ब के लगने लगते। मन तो कर रहा था कि उसके ब्लाउज़ के हुक खोलकर बस उसके वक्षों का रसपान कर लूँ, पर मैंने ऐसा नहीं किया। मैं उसके सिर को सहला रहा था, साथ ही उसके पेट और नाभि के साथ खेल भी रहा था। थोड़ी देर में ही हम अब शिमला पहुँचने वाले थे। मैं झट से अपना सिर उसके चेहरे तक ले आया और उसकी साँसें अपनी साँसों में भरने लगा। फिर धीरे से उसके लब चूम लिए।

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शहर पहुँचकर मैंने रति को जगाया। मैंने उसके गालों को थपकी दी, तो वो उठी। अपने आप को मेरी गोद में लेटा हुआ देखकर मुझे सवालिया नज़रों से घूरने लगी। मैंने कहा कि आप सो रही थीं, तो मैंने सोचा क्यों ना मैं आपको अच्छे से सुला दूँ, तो वो कहने लगीं, बेटा, मेरा कितना ख्याल है तुम्हें। मैंने कुछ नहीं कहा। कुछ अच्छी जगह घूमने के बाद मैंने उससे कहा, चलिए, हम कुछ खा लेते हैं। उन्होंने कहा, चलो, मुझे भी भूख लगी है। मैंने एक अच्छा सा रेस्तरां देखकर उसे वहाँ ले गया। मैंने एक प्राइवेट केबिन लिया। ऑर्डर देकर मैं उससे बातें करने लगा। मैंने उनसे पूछा कि ये सब अच्छा तो लग रहा है ना? वो कहने लगीं कि वो आज तक ऐसे हॉलिडे पर नहीं आई थीं। पिताजी, यानी कि उनके पति भी कभी कहीं नहीं लेकर गए उन्हें। अपनी शादी के बाद से उम्र के 45 साल तक वो हमारे घर के अलावा कहीं और नहीं गई थीं घूमने के लिए। यहाँ तक कि पापा उन्हें कहीं भी हनीमून तक के लिए नहीं लेकर गए थे। उनकी आँखों में आँसू आ गए। मैंने उनके आँसू पोंछे और कहा कि कोई बात नहीं मम्मा, पापा ने जो नहीं किया, वो मैं आपके लिए करूँगा, वो सब जो पापा आपको कभी भी नहीं दे पाए। फिर उनका हाथ अपने हाथों में लेकर मैं सहलाने लगा। वो मेरी आँखों में देख रही थीं। तब तक खाना आ गया। मैंने कुछ कैंडल्स भी मँगवा ली। बल्ब को बुझाकर कैंडल जला दी और रति को देखने लगा। वो भी मुझे देख रही थी। फिर हम खाना खाने लगे। खाना खाकर हम निकले, तो मैंने उससे कहा कि क्या आप कोई फिल्म देखना पसंद करेंगी, तो उसने कहा कि बहुत अरसा हो चुका है उन्हें थिएटर गए हुए। सो वो देखना चाहती थीं। मैं उसे शिमला के सबसे अच्छे थिएटर में ले गया, तो पता चला कि वहाँ पर कोई एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स पर बनी हॉलीवुड फिल्म हिंदी में डब की हुई लगी थी। मैंने फिल्म के बारे में सुनी थी, पर देखी नहीं थी। उसमें कुछ सेक्सी स्मूच और सेमी फकिंग सीन थे। मैंने सोचा कि ये अच्छा मौका है अपनी माँ को मेहबूबा बनाने के लिए उकसाने को। फिल्म पुरानी थी, सो क्राउड भी काफी कम था। मैंने दो बालकनी की टिकटें ले लीं। फिर रति को लेकर अंदर पहुँचा। मैंने देखा, बहुत कम लोग थे, शायद यही कोई 2-3 जोड़े और कुछ सिंगल मेन, जो बहुत दूर पर बैठे थे। बाकी सारे लोग जनरल क्लास में बैठे हुए थे। मैं एक किनारे में, जहाँ कोई नहीं था और जहाँ बहुत अंधेरा था, वहाँ पर रति के साथ बैठ गया। वो फिर मुझे सवालिया नज़रों से घूरने लगी, पर मैंने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया।

फिल्म चलने लगी। थोड़ी देर मैं और रति देखते रहे, फिर मैंने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया और सहलाने लगा। इंटरवल से पहले एक सीन ऐसा आया, जब हीरोइन के साथ हीरो, जो कि उसका पति नहीं था, स्मूच करता है। इस सीन को रति बड़ी गौर से देखने लगी। और मैं उसे देखता रहा। इस समय मैं रति को स्मूच तो नहीं कर सका, पर मैंने उसकी हथेलियों को, जो अब भी मेरे हाथों में थीं, को ज़रूर किस करने लगा। वो कुछ ना बोली, बस सीन को देखती रही या देखने का बहाना करती रही। थोड़ी दूर पर दूसरी जोड़ियाँ अपनी काम क्रिया में संलिप्त हो चुकी थीं। अंत में मैंने रति की एक उंगली को अपने मुँह में डाल लिया और कसके अंदर चूसने लगा, तो अचानक रति के मुँह से एक सेक्सुअल सिसकारी निकल गई। और उसने झट से अपना हाथ खींचकर कहा, ये क्या किया तूने? मुझे कुछ ना सूझा, तो मैंने कह दिया कि मुझे आइसक्रीम खाने का मन कर रहा था, तो आपकी उंगली मेरे हाथ में थी। मैं ख्यालों में खो गया था और मुझे लगा ये आपकी उंगली नहीं, आइसक्रीम है, सो मैंने उसे चूस लिया… आई एम सॉरी माँ। वो हँस दी और कहने लगी कि अभी भी बचपना नहीं गया तुम्हारा। इंटरवल के समय मैं उसके लिए कुछ खाने को लेने गया। दो कोक, दो रोल और पॉपकॉर्न ले आया। हमने पहले कोक पिया। हमारा आधा कोक खत्म हुआ था कि मैंने कहा कि माँ, आप अपना मुझे दे दो और मेरा कोक आप पी के देखो। उसने वैसा ही किया। आज जब हम रोल खा रहे थे, तो इस बार उसने एक्सचेंज करने को कहा। मैंने उसे अपना रोल दे दिया, जिसे वो बड़े ही प्यार से चाट-चाट के खाने लगी। फिर खा-पी लेने के बाद हम फिल्म देखने लगे। इस बार हीरो हीरोइन को बेड पर पटक कर उसकी नाभि के साथ खेलने लगा। रति ध्यान लगाकर देख रही थी सब। उसके लिए ये सब अटपटा सा था, क्योंकि वो आज की नहीं, पुराने ज़माने की थी और आज ट्रेंड बदल चुके थे। पहले की तरह सिर्फ फकिंग नहीं होती थी, अब तो सकिंग का ज़माना था और स्टिमुलेशन का। तब तक मैंने अपना हाथ रति की पीठ के पीछे ले जाकर उसकी पीठ को सहलाने लगा, तो वो मेरे और करीब आ गई। उसने मेरे कंधे पर अपना सिर रख दिया। मुझे लग रहा था कि अब उसकी हालत खराब हो रही थी। फिल्म खत्म होने में अभी 30 मिनट और थे कि वो कहने लगी कि चलो यहाँ से। हम अब बाहर आ गए।

फिर हम एक वॉटर पार्क में गए। वो बड़ा एक्साइटिंग था। मैंने टिकट लिया और रति को अंदर लेकर चला गया। जब हम अंदर पहुँचे, तो देखा कि वहाँ पर मर्द लोग कच्छे में पानी में नहा रहे थे और लड़कियाँ बिकनी में भी घूम रही थीं और कुछ नहा भी रही थीं। हम टहलते-टहलते एक ऐसी जगह पहुँच गए, जहाँ पर पहाड़ जैसा बना हुआ था, और कुछ झाड़ियाँ भी थीं, जिससे दूर बैठे लोगों को पता ना चल सके कि कोई वहाँ पर है। वहाँ एक-दो युगल प्रेम-प्रणय में मशगूल थे। रति ने देखा, तो कहने लगी कि कहाँ ले आए, जल्दी से चलो बेटा यहाँ से। ये कोई माँ-बेटे के लिए जगह नहीं लग रही है। मैंने कहा, ओके माँ। पर जब तक हम वहाँ थे, वो गौर से उन युगलों की क्रिया-कलापों को नोटिस कर रही थी।

अब हम वॉटर पार्क से निकलकर मार्केट की तरफ चल दिए। मार्केट पहुँचने पर हम एक फीमेल अंडरगारमेंट्स के इंटरनेशनल ब्रांड के आउटलेट में गए। किसी को शक नहीं हुआ कि मैं रति का बेटा हूँ। सेल्स गर्ल को लगा कि मैं उसका प्रेमी हूँ। उसने हमसे पूछा कि आपको क्या चाहिए? रति को ये समझ नहीं आ रहा था कि हम वहाँ पर क्यों थे, वो मुझे देखने लगी, जैसे पूछ रही हो कि क्या राज, हम यहाँ क्यों आए हैं? मैंने कहा कि हमें कुछ लेटेस्ट फॉरेन डिज़ाइन की नाइटीज़ और फीमेल अंडर गारमेंट्स चाहिए, तो वो हमें लेकर स्टोर के ऊपरी फ्लोर पर चली गई। तब तक रति मेरे कानों में फुसफुसाकर कहने लगी कि ये सब किसके लिए चाहिए तुम्हें? हमारे साथ तो और कोई नहीं है, क्या तुमने कोई लड़की देखी है अपने लिए? मैंने कहा, हाँ माँ, मैंने एक लड़की देखी है, जिसे मैं पसंद करता हूँ और जिसे मैं ये सब दूँगा, तो वो कहने लगी कि बड़ा छुपा रुस्तम है तू, अपनी माँ को मेरी होने वाली बहू से नहीं मिलवाएगा, तो मैंने कहा, ज़रूर मिलवाऊँगा माँ, पर पहले ये खरीद तो लें, तो उसने कहा कि ओके, खरीद लो। सेल्सगर्ल ने हमें एक से एक लेटेस्ट डिज़ाइन की चीज़ें दिखाईं। मैंने उसे कहा कि इनके (मेरी माँ की तरफ इशारा करते हुए) साइज़ की ही देना। माँ ने ताज्जुब से मुझे देखा। लेकिन मैंने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया। मैंने रति से कहा कि आप पसंद कर लो चार-पाँच नाइटीज़ और 4-5 पेयर अंडरगारमेंट्स के। मैंने सेल्स गर्ल को पास बुलाकर कहा कि वो रति को सेक्सी और रिवीलिंग कपड़े ही दिखाए और इंसिस्ट करे कि वही ज्यादा अच्छे रहेंगे। इसके लिए मैंने उस लड़की को सौ रुपये अलग से दिए। उसने ठीक मेरे कहे अनुसार ही किया। रति ने वही सब लिया, जो मैं चाहता था, एकदम हॉट और रिवीलिंग नाइटीज़, डार्क और फ्लैशी कलर्स की और अंडरगारमेंट्स की तो पूछ मत। सेल्सगर्ल ने उसे थॉन्ग्स के लिए इंसिस्ट किया और कहा कि ये ज्यादा फ्री होंगे और गर्मी के लिए अच्छी रहेंगी। रति ने वो सारे आइटम्स ले लिए। फिर हम वहाँ से सामान पैक करवाकर निकल गए और एक जनरल स्टोर पर पहुँचे। मैंने उस स्टोर से एक बहुत ही इरोटिक परफ्यूम खरीदा, जो एम्बियンス को बहुत ही हॉट बनाता था। उसे सूँघने के बाद चाहे मेल हो या फीमेल, अपने आप को नहीं रोक सकता था सेक्स से। फिर एक मेडिकल स्टोर से मैंने एक लिक्विड खरीदा रति के लिए, जो उसमें तन की आग को ज्वालामुखी बना सके। फिर हम वापस आए। टैक्सी में मैंने इस बार कुछ नहीं किया। मैं खुद पर कंट्रोल करना चाहता था, क्योंकि आज की रात हम माँ-बेटे अथवा दो नव यौवनों के मिलन का था। और मैं उस घड़ी से पहले ही मज़ा किरकिरा नहीं करना चाहता था। अगर आपको प्यास लगी है, तो उसे और बढ़ाओ, इस हद तक कि मरने की नौबत आ जाए, तब जब मरने लगो, तब जाकर अपने गले को तर करो, देखना इतना मज़ा आएगा कि पूछ मत। तब ही आप जान पाओगे कि प्यास किसे कहते हैं और प्यास बुझना किसे कहते हैं। मैं भी इसी तरह की प्यास चाहता था, ताकि मैं चरम को पा सकूँ। टैक्सी में मैंने बस रति की जाँघों को सहलाना ही मुनासिब समझा, वो भी चुपके से। मैं तब ही अपना हाथ रति की जाँघों पर ले जाता था, जब टैक्सी हिलती थी। उसकी जाँघों का स्पर्श पाकर तो जैसे मुझे असीम आनंद प्राप्त हुआ।

रात 8 बजे हम कॉटेज पहुँचे। फ्रेश होने के बाद मैंने रति से कहा कि वो आज लाए कपड़ों में से कोई एक ट्राई कर ले, नाइटी के साथ एक पेयर अंडरगारमेंट्स भी। वो तुरंत कहने लगी कि ये तो तेरी होने वाली बीवी के लिए है, भला मैं क्यों ट्राई करूँ और तूने ये कपड़े मेरी साइज़ के क्यों लिए हैं? मैंने उसे समझाते हुए कहा कि जिस लड़की को मुझे ये देना है, वो हूबहू आपके जैसी है। उसकी बॉडी एकदम आपके जैसी है और उसका माप भी। तो वो कहने लगीं, ओके, लेकिन तू ये कपड़े मुझे क्यों पहनाना चाहता है? मैंने कहा कि मैं देखना चाहता हूँ कि ये उस पर फिट आएँगे कि नहीं। अगर आप पर फिट आए, तो उस पर भी आ जाएँगी, इसलिए। माँ ने कहा, अब मैं समझी, राज, तू तो बहुत होशियार है। मैंने कहा, बेटा किसका हूँ, तो वो हँसने लगी और कपड़े चेंज करने चली गई। तब तक हमारा खाना आ चुका था। मैंने वेटर को जल्दी से जाने के लिए कहा और उसके जाते ही अंदर से रूम लॉक कर लिया। फिर साथ लाई हुई परफ्यूम को मैंने पूरे कॉटेज में छिड़क दिया और एक ग्लास में पानी के साथ वो इरोटिक लिक्विड भी मिक्स कर दिया, जो कि रति के लिए मैंने बनाया था। रति अभी तक नहीं आई थी। मैं मार्केट से एक चीज़ लाना भूल गया था। वो थी चॉकलेट। मैंने सुना था कि चॉकलेट भी बड़े काम की चीज़ होती है सेक्स के दौरान और लड़कियों की कमज़ोरी। मैंने एक अच्छे किस्म का चॉकलेट के लिए वेटर को फोन कर दिया। वो जल्द ही एक पैक चॉकलेट दे गया रूम में। वेटर के जाने के बाद रति रूम में आ गई। वो जब मेरे सामने आई, तो मैं उसे मुँह फाड़े बस देखता ही रह गया। रति उस ट्रांसपेरेंट नाइटी और उसके अंदर की बिकनी में कोई प्लेबॉय की मॉडल लग रही थी। वो एकदम मॉडर्न ज़माने की स्वर्गीय अप्सरा लग रही थी। उसने डार्क रेड कलर की नाइटी पहनी थी, जो पीछे से आधी पीठ तक खुली थी। नीचे में थोड़ी दूर तक झालर जैसी प्लेटें थीं। बहुत छोटी थी उस नाइटी की लंबाई, बस कुल्हों को ही मुश्किल से ढक पा रही थी और ऊपर में रति के नए बने बूब्स को मुश्किल से कवर दे रही थी। कंधों पर बस दो पतले से स्ट्रैप लगे हुए थे, जिसके कारण वो रति के जिस्म पर बमुश्किल टिकी हुई थी। पेट के पास बहुत ही पारदर्शी कपड़ा लगा हुआ था, जिससे रति की नाभि और उसका उदर स्थल साफ-साफ मैं देख पा रहा था।

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वो आकर बिल्कुल मेरे सामने खड़ी हो गई और कहने लगी, कैसी है ये ड्रेस और क्या तुम्हारी उस होने वाली पत्नी पर फिट बैठेगी? क्या ये कपड़े उसपर फबेंगे? मैंने कहा, आप कितनी खूबसूरत लग रही हैं। ये तो मेरी होने वाली पत्नी पर एकदम खूब जंचेगी। वो इसमें और भी खूबसूरत लगने लगेगी। माँ, आपने क्या गज़ब के कपड़े सिलेक्ट किए हैं। मेरी माँ की हाइट लगभग 5”8” थी और उनका वज़न भी कोई 45 के पास ही था। सो वो उस नाइटी में गज़ब ढा रही थीं। उसके बूब्स, जो इस नाइटी में किसी पर्वत शिखर के समान लग रहे थे, मेरे नज़रों के सामने एकदम स्ट्रेट खड़े थे, बिल्कुल किसी कांटे की तरह। मेरा लंड तो बस हार्ड रॉक बन गया था। फिर उन्होंने कहा कि देख लिया ना, कैसी लगेगी ये बहू पर! क्या मैं अब जाकर इसे चेंज कर लूँ, कहीं खराब ना हो जाए ये कीमती ड्रेस। मैंने कहा कि आप इसे अभी मत उतारो, पहनी रहो। (ये ड्रेस तो मैं उतारने वाला था आज की रात उसके जिस्म से, सो उसे मना करना ही था मुझे, लेकिन उसे क्या मालूम कि उसका बेटा क्या चाहता है उससे।) मुझे आप इस ड्रेस में बहुत अच्छी लग रही हैं। मैं लगातार बस उसे देखे जा रहा था। फिर मैंने उसे टेबल पर अपने सामने ऑपोजिट बिठा दिया। फिर हम खाना खाने लगे। खाना खाने के बाद जैसे ही उसने पानी पिया, दवा ने अपना काम चालू कर दिया। और कुछ ही देर में उसकी आँखें चमकने लगीं। मैं उस वक्त सिर्फ बॉक्सर में था। फिर हम सोफे पर पासर कर टी.वी. देखने लगे।

टी.वी. पर बहुत सारी फिल्में आ रही थीं। हम एक फिल्म देखने लगे। रति मेरे ही बगल में बैठी हुई थी। उस पर दवा और उस इरोटिक परफ्यूम का ज़बरदस्त असर होने लगा था। वो नशीली आँखों से मुझे देखे जा रही थी या मुझे अपनी आँखों से ही पिए जा रही थी। फिल्म कुछ देर चली, फिर एक एड ब्रेक हो गया। मैं चैनल चेंज करने लगा। उस वक्त ज़्यादा चैनल नहीं हुआ करते थे। एक-दो चैनल के बाद मैंने वीडियो लगा दी, उस पर एक ब्लू फिल्म आ रही थी। ये कॉटेज वालों की करामात थी। वो कॉटेज सिर्फ हनीमून स्पेशल था। मैंने यही जानकर ये कॉटेज बुक किया था। और हो सकता है कि जोड़ियों को हनीमून का असली मज़ा देने के लिए ही वो लोग रात में ब्लू फिल्म की वीडियो भी चलाते हों। रति देख रही थी उस वीडियो को। जब मैंने वीडियो चैनल लगाई थी, तो वो बिल्कुल साफ फिल्म लग रही थी, एक मैरिज का सीन था। लेकिन फिर एक हनीमून का सीन आ गया। रति गौर से देख रही थी। उसके सेंसेज़ काम करना बंद कर रहे थे। मैं तब जाकर चॉकलेट ले आया और उसे छुपाकर सोफे के नीचे रख दिया। तभी हमने देखा कि उस फिल्म में एक दुल्हन कमरे में अकेली थी। उसका हसबैंड कहीं चला गया था उसे रात में छोड़ते-छोड़ते। वो लड़की तड़पने लगी और अपनी वेजाइना में खुद ही उंगली करने लगी। मैं चैनल चेंज करने को हुआ, तो रति ने रोक दिया। वो कहने लगी, रहने दो ना। मुझे ये मूवी देखनी है, मैंने आज तक ऐसी मूवी नहीं देखी है, और बड़े ही कामुक अंदाज़ में मुझे देखने लगी। टीवी वाली लड़की अपनी चूत में उंगली कर ही रही थी कि एक चोर उसके कमरे में घुस आया और वो तड़पती लड़की को देखने लगा। फिर वो चोर अपने सारे कपड़े उतारकर पूरा नंगा हो जाता है और अपना लंड अपने हाथों में लिए हुए उस लड़की के पास आ जाता है। पहले लड़की तो डर जाती है, पर खड़ा मोटा लंबा लंड देखकर उसे प्यार से सहलाने लगती है। मैंने नोटिस किया कि रति उस आदमी के लंड को कुछ ज़्यादा ही घूर-घूर के देख रही थी। टीवी वाली लड़की चोर के लंड को फिर चूसने लगती है। इस वक्त तक हमारे कॉटेज के कमरे में बस काम ही काम छा जाता है। कुछ देर बाद वो चोर उस लड़की को चोदने लगता है। धीरे-धीरे आदमी अपनी स्पीड बढ़ाता जाता है और फिर एकदम तीव्र गति से उस लड़की की चूत मथने लगता है। लड़की को दर्द होता है और वो रो पड़ती है, फिर कुछ देर के बाद उसकी कामुक आहें चालू हो जाती हैं। हमारे कमरे में यही कामुक आहें बवाल मचाने लगती हैं और हम दोनों कामोत्तेजित होने लगते हैं। लड़की फिर कमर हिला-हिलाकर मरवाती है और कुछ देर बाद दोनों झड़ के सो जाते हैं।

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ये फिल्म देखकर मैं तो बहुत ही गर्म हो गया था, क्योंकि चोदने के लिए साधन भी मौज़ूद था मेरे पास। रति का भी यही हाल था। उसकी नज़रों में अब बस काम ही काम था। वो मुझे अपना बेटा समझने के बजाय मुझे अपना यार समझने लगी थी। मैंने हालात ही ऐसे पैदा कर दिए थे कि माँ भी बेटे के लंड की दीवानी हो जाए। रति के पास उसकी आग शांत करने का बस मैं ही साधन था। इस वक्त तक सारे रिश्ते-नाते अपनी अहमियत खो चुके थे। कमरे में गर्म वातावरण उफान पर था। मैंने तब टी.वी. बंद करके उससे पूछा कि क्या वो चॉकलेट खाना पसंद करेगी? उसने हाँ में सिर हिला दिया, तो मैं एक बड़ी सी चॉकलेट बेड के नीचे से पैकेट में से निकालकर उसके मुँह से लगा दी, साथ में मैंने भी उसका एक किनारा अपने मुँह से लगा लिया। मैंने रति को उठने के लिए कहा, तो वो बड़ी हैरत से मुझे देखने लगी, पर वो तो काम विभोर हो चुकी थी, सो मेरी बात बड़ी आसानी से मान गई। वो उठी, पर चॉकलेट हम दोनों के मुँह से नहीं छूटी। वो उठकर झुकी हुई चॉकलेट खा रही थी। अब मैंने उसे मेरी गोद में आने के लिए कहा। मैंने कहा कि बचपन में आप मुझे गोद में बिठाकर चॉकलेट खिलाती थीं, अब मैं भी आपको अपनी गोद में बिठाकर चॉकलेट खिलाना चाहता हूँ, तो वो कहने लगी, वाह बेटा, तू तो बहुत सयाना हो गया है। मैं थोड़ा सोफे के किनारे हो गया, जिससे रति को अपने पाँव मेरे पीछे फँसाने में बन सके। वो मेरी गोद में आ गई,

और उसने अपने दोनों पैर मेरी कमर के पीछे ले जाकर एक-दूसरे में जकड़ लिया, जैसे हम नींद में तकिए को अपनी जांघों के बीच जकड़ लेते हैं। उसके हाथ मेरे कंधों पर टिक गए, और मैंने उसे अपनी ओर खींचकर और सटा लिया। फिर उसे अपने से चिपकाकर मैंने अपने हाथ उसके गुदाज़ चूतड़ों पर जमा दिए और उनके नरम, रसीले आनंद को महसूस करने लगा। जब वो मुझसे सटी, तो उसका पेट मेरे पेट से रगड़ खाने लगा, और उसकी चंचल चूचियाँ, जो पर्वत शिखरों की तरह मेरी ओर तनी थीं, मेरे सीने में धंस गईं, बिल्कुल किसी तीर की तरह। उसकी चूचियाँ मेरे सीने में पैवस्त होने लगीं। क्या अद्भुत था वो दृश्य और कितनी अलौकिक थी वो अनुभूति! लग रहा था जैसे आग किसी अति ज्वलनशील पदार्थ से मिल रही हो, या बिजली किसी दूसरी बिजली से टकरा रही हो।

फिर हमारी चॉकलेट की लड़ाई शुरू हो गई। वो भी बड़े-बड़े कौर ले रही थी, और मैं भी। कुछ ही सेकंड में वो चॉकलेट हमारे मुँह के अंदर थी, और चॉकलेट के गायब होते ही हमारे होंठ एक-दूसरे से टकराने, छूने, और चूमने को बेकरार हो उठे। रति ऐसी स्थिति को पाकर थोड़ा सकुचाई, लेकिन मैं इस मौके को खोना नहीं चाहता था। मैं अपने होंठ उसके लबों पर रखने ही वाला था कि उसने अपना मुँह फेर लिया। मैं उसे देखता रह गया। कुछ सेकंड तक मैं उसकी आँखों में देखता रहा। इसके बाद रति ने खुद ही अपने हाथों से मेरा सिर पकड़ा और जोर से अपने लब मेरे होंठों से सटा दिए। मैंने उसके चूतड़ों से हाथ हटाकर उसके बालों को कसकर पकड़ लिया, और हम गज़ब के स्मूच करने लगे। मैंने थोड़ा सा पिघला हुआ चॉकलेट ही गले में जाने दिया था, बाकी मेरे मुँह में ही बचा था। अब रति मेरे मुँह के भीतर अपनी जीभ चला रही थी और मेरे मुँह के अंदर के चॉकलेट का स्वाद ले रही थी। हमारे मुँह आपस में सील हो चुके थे। मैंने अपने मुँह का चॉकलेट उसके मुँह में उड़ेल दिया। फिर उसने मेरे मुँह में वही चॉकलेट वापस दे दिया, और हमने उस चॉकलेट को पी लिया। इस दौरान थोड़ा सा चॉकलेट उसकी नाइटी पर और मेरे बॉक्सर पर भी गिर गया।

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अब मैं सोफे से उठ गया। वो वैसे ही मेरी कमर में अपने पैर फंसाए हुए थी। इसलिए जब मैं खड़ा हुआ, तो वो भी मेरी गोद में थी, मुझसे चिपकी हुई, अपने हाथों से मुझ पर टंगी हुई। उठकर मैंने अपना बॉक्सर नीचे खींच दिया और उसे गोद में ही उठाए हुए मैं बेड तक जा पहुँचा। मैंने उसे बेड पर चित लिटा दिया और मैं उसके ऊपर हो गया। फिर मैं रति को चूमने लगा। उसके पूरे मुँह को चूमने के बाद उसके पूरे चेहरे को चाटा। इसके बाद उसकी गर्दन पर मैंने अपने लब सटा दिए। फिर उसने कहा कि उसे नाइटी में तकलीफ हो रही है, तो मैं उठा और उसे भी उठाया। मैं बेड पर बैठ गया, और वो मेरी जांघों पर बैठ गई। फिर मैंने उसकी मदद की उसकी नाइटी उतारने में। उसने अपने हाथ ऊपर कर लिए, और मैंने झट से नाइटी को उसके बदन से उतार फेंका। सामने मैंने देखा कि उसके बूब्स हवा में मेरी ओर तीर की तरह खड़े थे, जो सफेद रंग की ब्रा में आधे-अधूरे कैद थे। मैंने ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूचियों को छुआ, उन्हें चूमा। ब्रा के ऊपर से ही उसके दोनों निप्पल्स को मुँह में ले लिया। वो सिसकने लगी, एकदम ऐसे: “आह… ऊह… ऊई… माँ… ये क्या हो रहा है मुझे, राज!!!!”

इस दौरान मेरा लंड काफी तन चुका था और वो जांघिए के बाहर आना चाहता था, उसे फाड़कर। रति भी कुछ ऐसे बैठी थी कि उसकी भग (वेजाइना, जो पैंटी में कैद थी) और चूतड़ों के बीच की जगह के ठीक नीचे मेरा 7.6 इंच लंबा लंड अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गया। थोड़ी देर बाद मेरे लंड पर कुछ गीला-गीला सा महसूस हुआ। मैंने अपना हाथ ले जाकर देखा, तो पता चला कि रति की पैंटी भीग चुकी थी, और वहाँ से इतना रस निकल रहा था कि वो मेरे जांघिए को भी भिगो रहा था। मैंने रति को चूमना फिर भी बंद नहीं किया। रति भी मुझे बेतहाशा चाटे जा रही थी। वो अपने बड़े-बड़े नाखूनों से मेरे सीने पर खुरच रही थी और मेरे निप्पल्स के साथ खेल रही थी। यही करते-करते रात के 12 बज चुके थे। मेरे निप्पल्स एकदम उसके निप्पल्स की तरह खड़े हो गए। तब वो झुकी और मेरे एक निप्पल को अपने मुँह में भर लिया। ये इतना भयंकर अनुभव था कि मैं खुद को स्कलित होने से रोक नहीं पाया। मेरा ढेर सारा वीर्य रति की जांघों से चिपक गया, क्योंकि वो मेरी जांघों पर ही थी। जब उसे पता चला, तो उसने अपनी एक उंगली लगाकर थोड़ा सा वीर्य उठा लिया और उसे अपने अंगूठे से मिसलकर देखने लगी, वो लस्सलस था। फिर वो उसे सूँघने लगी, शायद उसे उसकी महक अच्छी लगी। उसने झट से अपनी उंगली में फिर से थोड़ा सा वीर्य लिया और उसे अपने मुँह में लेकर चाट गई और चटकारे लेने लगी। मुझे ये अजीब लगा, पर पता नहीं क्यों मुझे अच्छा लगा। वो बोली, “ये बड़ा स्वीट और सॉल्टी टेस्ट कर रहा है।” उसने कहा कि उसे ये और चाहिए, तो मैंने कहा, “बाद में चख लीजिएगा, अभी नहीं।” फिर वो मेरे दूसरे निप्पल को चूसने लगी। थोड़ी देर बाद हम सारा खेल खेलकर सो गए (अभी हमारा हनीमून बाकी था)। ठंड बढ़ गई थी, सो मैंने हमारे ऊपर रजाई डाल दी और एक-दूसरे से चिपककर सो गए। मैं बिल्कुल उसकी गांड से अपना लंड सटाकर और आगे हाथ ले जाकर उसकी चूचियों को कसकर अपने हाथों में भींचकर सो गया।

अगले दिन जब मैं उठा, तो देखा कि रति बिस्तर से गायब थी। रात की बात याद करके मैं कुछ सोचने लगा। मैंने सोचा कि कहीं रति को मेरे ऊपर शक न हो जाए कि जो कल रात हुआ, वो मेरी ही साजिश थी। इसलिए मैं थोड़ा रुआँसा हो गया। मैं थोड़ा डर सा भी गया कि कहीं रति मुझसे गुस्सा न हो जाए कि मैंने अपनी माँ के साथ, उसके साथ ये क्या अनर्थ कर दिया। बिस्तर से उठकर मैंने अपने कपड़े पहने और बाहर जाने लगा, तो देखा कि बिस्तर पर बहुत बड़ा दाग लगा हुआ था। उसे छूकर देखा, तो वो बहुत कड़क लग रहा था। मैं मुस्कुराने लगा। मन ही मन सोचने लगा कि मेरे और रति के अमृत में क्या कठोरता, क्या कड़कपन है! इसका मतलब तो यही है कि हम दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं, टोटली मेड फॉर इच अदर। फिर मैं रुआँसा और पाप बोध से ग्रस्त भूमिका अपने चेहरे पर लाकर रति को खोजने बाहर निकल गया (सिर्फ दिखावे के लिए)। वो मुझे गार्डन में मिल गई। उसने एक आकर्षक सी साड़ी पहनी थी। एकदम मेरी नई बीवी की तरह लग रही थी वो। जब मैं उसके पास पहुँचा, तो देखा कि वो कुछ परेशान है। मुझे देखकर वो मेरे गले से चिपककर रोने लगी। जब तक मैं पूछता कि क्या बात है, वो खुद ही कहने लगी, “आई एम सॉरी बेटा, मुझे कल रात वो सब नहीं होने देना चाहिए था। मेरा खुद पर कंट्रोल नहीं रहा कल रात।”

मैंने कहा, “आप कौन सी बात कर रही हो माँ? कल क्या कुछ बुरा हुआ?” उसने कहा, “हाँ बेटा, बहुत बुरा हुआ। जो तुम्हारे और तुम्हारी बीवी के साथ या फिर तेरे पापा और मेरे साथ होना चाहिए, वो हो गया, जो एक माँ-बेटे के साथ कभी नहीं होना चाहिए। आई एम सॉरी बेटा, मुझे माफ कर दे, मैंने अपनी बहू का हक छीनने की कोशिश की।” मैंने कहा, “ऐसी कोई बात नहीं है माँ। मैंने भी तो कंट्रोल नहीं किया, मैं भी तो उन सब के लिए जिम्मेदार हूँ। आप प्लीज दुखी मत हो, प्लीज डोन्ट क्राय माँ। मुझे आपका रोना देखा नहीं जाता।” वो अब भी मेरी बाहों में ही थी, और मैं उसकी पीठ और उसके बम्स को सहला रहा था। फिर मैं उसे पास पड़े बेंच पर बिठाकर उससे कहने लगा, “माँ, मुझे आपसे एक बात कहनी थी, बहुत जरूरी बात।” उसने कहा, “कौन सी बात बेटा?” मैंने कहा, “यहाँ नहीं माँ, आप मेरे साथ हमारे कमरे में चलिए।” उसने कहा, “ठीक है, चलो।”

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हम कमरे में आ गए, और मैं उसे वही दाग दिखाने लगा, तो वो शरमा गई। उसने कहा, “ये क्या है?” मैंने कहा, “ये हमारे बंधन की निशानी है।” वो तब तक उसे छूकर देखने लगी। फिर मैंने कहा, “जो रात को हमारे बीच हुआ, उसी का ये गवाह है।” माँ ने कहा, “ये क्या कह रहा है बेटा तू?” मैंने कहा, “जो सच है, वही कह रहा हूँ माँ।” मैंने कहा, “क्या आप मिलना चाहेंगी अपनी बहू से?” तो वो कहने लगी, “क्या वो यहीं रहती है?” मैंने कहा, “हाँ, वो यहीं पर है।” तो वो कहने लगी, “जल्दी से मिला मुझे उससे, देखूँ तो वो कैसी है।” मैंने कहा, “पहले आप एक प्रॉमिस करो।” उसने कहा, “कौन सा प्रॉमिस?” मैंने कहा, “मैं आपको जिससे भी मिलवाऊँगा अपनी बीवी बनाने के लिए, आप उसे सहर्ष स्वीकार करेंगी अपनी बहू के रूप में।” उसने कहा, “बेटा, तेरी खुशी में मेरी खुशी है। तू जिसे भी पसंद करेगा, मैं उसे अपनी बहू मान लूँगी, पर अब उसके पास ले के तो चल।”

मैं उसका हाथ खींचकर उसे आईने के सामने ले आया और ठीक उसके पीछे उससे सटकर खड़ा हो गया। मैंने उसके पेट को सहलाना शुरू किया, साथ ही उसकी गर्दन पर चूमने लगा। वो चिहुँक उठी और सिसकारी मारने लगी। साथ ही कहने लगी, “बेटाaaaaa, कहाँaaaaa है मेरीiiii बहूuuuu?” मैंने उसके कान में दाँत गड़ाते हुए कहा, “आप सामने आईने में देख लो, वो आपको दिख जाएगी।” उसने देखा, तो लजा गई। और गुस्से से कहने लगी, “इसमें कहाँ है वो? अपनी माँ से मजाक करता है, शैतान।” मैंने कहा, “गौर से देखो, उसमें एक सुंदर सी स्त्री, साड़ी में दिखेगी, मेरी होने वाली बीवी, मेरी रति, उसी में है।” रति नाम सुनते ही वो फिर शरमाई और कहने लगी, “बेटा, मैं कैसे तेरी बीवी बन सकती हूँ, मैं तो तेरी माँ हूँ।” मैंने कहा, “जो बूढ़ी रति थी, वो मेरी माँ थी। और जो अब है, एक जवान रति, एकदम एक पटाखा, वही मेरी बीवी है।” वो अचरज से मुझे देखने लगी और मुस्कुराने भी लगी। मैंने कहा, “आपको आपकी होने वाली बहू मंजूर है या नहीं?” तो वो कुछ न बोली और शरमाकर वहाँ से भाग गई गार्डन में। मैं फिर उसके पीछे नहीं गया। मैं चाहता था कि वो खुद मुझसे कहे, “बेटा, मैं तेरी बनना चाहती हूँ, मुझे अपने आगोश में भर ले।” इसके लिए सब्र बहुत जरूरी था। वही मैं कर रहा था।

लगभग एक घंटे बाद हमारा खाना आया। मैंने वेटर से कहा, “जा कर मैडम से कह दो कि खाना आ गया है, वो आकर खा लें।” मैंने उसे बता दिया कि वो गार्डन में ही होंगी। फिर वेटर चला गया। उसके जाने के 10 मिनट बाद रति कमरे में आई। मैंने दरवाजा खुला ही छोड़ा था। मैंने कुछ नहीं कहा, तो वो खाने की टेबल तैयार करने लगी। फिर मुझसे कहा, “सुनिए, आकर खाना खा लीजिए जी!” मुझे कुछ अजीब सा लगा। मैं सोचने लगा कि वो तो ऐसे मेरे पिताजी को बुलाती थी। लगता है उसने मेरी बात मान ली। मैं टेबल पर गया और खाना खाने लगा, तो उसने कहा, “आज मैं आपको खिलाऊँगी, आप खुद से एक निवाला भी नहीं खाएँगे।” मैंने कहा, “माँ, मुझे आप-आप कहके बात क्यों कर रही हो?” तो वो कहने लगी, “अभी तूने ही तो कहा था कि मैं तेरी होने वाली बीवी हूँ, इसलिए।”

मैंने बाहर जाकर बहुत सोचा कि क्या ये सब ठीक रहेगा। तो मुझे लगा कि क्यों नहीं ठीक होगा ये सब। मेरा बेटा जो मुझे इतना प्यार करता है, उसे उसका वाजिब हक देने में हरज ही क्या है। और उनके (मेरे पिताजी) गुजरने के बाद वही तो मालिक है हम सब का (पूरी फैमिली का)। उसे अपना स्वामी मानने में क्या बुराई है। पर राज, एक बात बता, हम दुनिया की नजरों में कैसे रहेंगे? यहाँ तो हमें कोई नहीं जानता, तो ठीक है, चाहे जैसे भी रहें, लेकिन घर जाकर क्या होगा? और तेरे भाई-बहन क्या इस रिश्ते को स्वीकार करेंगे?” मैंने कहा, “आप चिंता मत करो, वो सब मैं देख लूँगा।” तो वह कहने लगी, “क्या देख लेगा? क्या हम माँ-बेटा बनके ही रहेंगे और रात में मियाँ-बीवी, या फिर तू मुझसे शादी करके मुझे तेरी बीवी बनाएगा? बोल, क्या सोचा है तूने? पहले मैं सारी बात जानना चाहती हूँ, फिर कोई फैसला लूँगी हमारे बारे में।”

मैंने कहा, “क्या तुम मुझे प्यार करती हो?” तो उसने कहा, “तेरे पिता से भी ज्यादा मैं तुझे चाहती हूँ।” तो मैंने कहा, “फिर कोई बात नहीं। जब मियाँ-बीवी राजी, तो क्या करेगा काजी!” उसने कहा, “अच्छा जी, हम मियाँ-बीवी।” मैंने कहा, “और नहीं तो क्या। आज से हम माँ-बेटा नहीं, मियाँ-बीवी ही हैं, और ये बात आप मन से मान लो। आज आपका नया जन्म हुआ है, और मेरे सिवा इस दुनिया में अब आपका कोई नहीं है। मैं आपसे शादी करूँगा और आपको अपनी पत्नी बनाऊँगा।” तो वह कहने लगी, “तो क्या हम वो सब भी करेंगे जो एक पति-पत्नी करते हैं?” और वह शरारत भरी मुस्कान भरने लगी। मैंने कहा, “क्यों नहीं, आखिर वही तो है सब कुछ। उसे नहीं किया, तो फिर क्या जिया पति-पत्नी बनकर!”

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फिर वो मेरे गले से लिपटती हुई कहने लगी, “पता है राज, मैंने जब से ऑपरेशन करवाया है, तब से ही मैं तेरे पापा की बड़ी कमी महसूस करने लगी थी। मुझे पता नहीं क्या हुआ। जब मैंने तेरे पापा से शादी की थी, उस वक्त मैं जैसा फील करती थी, वैसा ही मैं इधर ऑपरेशन के बाद करने लगी थी। लगता है बाहर के साथ मैं अंदर से भी जवान होने लगी थी।” तो मैंने उसे सारी बात बताना ही उचित समझा।

मैंने उसे सारी बात बता दी कि कैसे मुझमें उसके लिए रुचि जगी, और कैसे मैंने सब कुछ प्लान किया कि कैसे उसे एक नया यौवन दिलवाना है और कैसे उसे पाना है। मैंने ये भी बता दिया कि मैं उसे शिमला क्यों लेकर आया था। वो मुझे गज़ब तरीके से देखने लगी। फिर कुछ सोचकर कहने लगी, “वाह रे कलयुग के बेटे, तूने तो अपनी माँ को ही अपनी बनाने का पूरा इंतजाम कर लिया! और विडंबना ये है कि तेरी माँ भी तुझे अपना बनाना चाहती है। कैसी है ये प्रकृति!” वो अब भी मेरे गले से लिपटी हुई थी। मैंने कहा, “तो बोलो न माँ, क्या तुम अपने इस बेटे की बीवी बनना पसंद करोगी?” उसने कहा, “मेरे प्यारे बेटे, जितना कुछ तूने मुझे, अपनी माँ को पाने के लिए किया है, उतना करने पर कोई भी माँ अपने बेटे की बन जाएगी। ऐसी कौन सी माँ होगी जो ये न चाहेगी कि उसे ताउम्र उसके बेटे का प्यार मिले। मैं तो बड़ी भाग्यशाली हूँ जो मुझे तुझ जैसा बेटा मिला और एक पति भी मिलने जा रहा है।” और वो लरजते हुए कहने लगी, “आई लव यू माय सन, माय हब्बी, माय स्वीटहार्ट,” और उसने मुझे कसकर चूम लिया।

इस तरह से हम एक-दूसरे में गुँथ गए, और एक बेटे ने अपनी माँ को पा लिया, और एक माँ ने अपने बेटे को। जो मुश्किल से कभी-कभी हुआ था इस संसार में, वो आज फिर हो रहा था। एक अध्याय आज फिर से मानवीय रिश्तों के इतिहास में लिखा जा रहा था, मेरे और मेरी माँ के मिलन के रूप में।

कुछ देर उसी तरह एक-दूसरे से गुँथे होने के बाद हम अलग हुए। मैं चेयर पर बैठ गया। और मेरी होने वाली बीवी रति मेरी गोद में आ गई और मुझे खाना खिलाने लगी। उसने बड़ी मादकता के साथ हर एक निवाला खिलाया। मैंने भी उसे खिलाया। और इसी वक्त से हम हमेशा के लिए पति-पत्नी बन गए, दो जिस्म एक जान। फिर खाना खाने के बाद मैंने उसे खड़ा किया और उसके सामने झुककर उसका हाथ पकड़ लिया और रस्म निभाने के लिए कहा, “विल यू मैरी मी?” वो लजा गई, और फिर मैंने उसे एक बार और अपनी आगोश में भर लिया। बेड पर आकर हम 10 मिनट तक स्मूच करते रहे। इसके बाद मैं नहाने चला गया। वो तो पहले से ही तैयार थी। मैं नहाकर वापस आया और तैयार होकर हम मार्केट चले गए।

मार्केट में मैंने उसके लिए एक बहुत ही कीमती शादी की साड़ी और दो-तीन साड़ियाँ खरीदीं, साथ में ब्लाउज़ और पेटीकोट का पीस भी। अपने लिए एक शेरवानी भी खरीदी। जेवर की दुकान से एक बहुत ही कीमती नेकलेस का सेट, सोने के कंगन, झुमके और एक आकर्षक मंगलसूत्र लिया। उसके लिए मेकअप का सामान भी लिया। फिर हम एक फेमस लेडीज़ टेलर के पास गए। वहाँ पर उसके ब्लाउज़ और पेटीकोट का नाप दिलवाया और फिर हम कॉटेज वापस आ गए। रति के कपड़े सिलकर आने में दो दिन लगने वाले थे। सो मैंने सोचा क्यों न मैं अपने भाई-बहन को भी वहाँ बुला लूँ। मेरे भाई-बहन उसी रात को कुल्लू पहुँच गए।

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मैंने राहुल और रिया (मेरे भाई-बहन) को सारी बात बताई। सारी परिस्थिति समझाई। वो लोग मान ही नहीं रहे थे कि ऐसा भी कहीं पॉसिबल हो सकता है। वो लोग मुझे बुरा-भला कहने लगे और माँ को बदचलन बोलने लगे। फिर भी मैंने उन्हें मनाने की कोशिश की। जब मैंने उनके सामने ये बात रखी कि माँ राजी हैं, वो मेरे साथ रहना चाहती हैं और मैं माँ को हमेशा खुश रखूँगा, तो मेरी छोटी बहन मान गई, पर मेरा भाई न माना। मैंने उससे साफ कह दिया कि ये शादी हम करके ही रहेंगे, तो वो बोला, “ठीक है, जो करना है करो, पर आज से हमारे सारे रिश्ते-नाते खत्म समझो।” मैंने सोचा, “हाँ बेटा, तेरी माँ मेरी बीवी बनेगी और मैं उसे चोदूँगा, तो तुझे बुरा तो जरूर लगेगा, चाहे मैं तेरा भाई ही क्यों न हूँ।” मैं मन ही मन खुश हो गया कि चलो, रास्ते का काँटा निकल गया।

मैंने लॉटरी के पैसे हम तीनों भाई-बहन में बराबर बाँट दिए। मैंने हमारा घर भी अपने भाई को देने का वादा कर दिया। अगले दिन जब मेरा भाई जाने लगा, तो मैंने उससे कहा, “मैं माँ को हमेशा खुश रखूँगा, और रिया की भी देखभाल अच्छे से करूँगा।” रति रोने लगी और राहुल से कहने लगी, “बेटा, मुझे छोड़कर मत जा।” तो वो कहने लगा, “आपको तो नया पति मिल ही गया है, मेरी क्या जरूरत। मैं जा रहा हूँ।” वो मुझसे गले मिलकर हमेशा के लिए हमसे अलग हो गया। वो वापस अपने कॉलेज आ गया।

अब हम तीन लोग रह गए थे वहाँ पर। मैंने अपनी बहन को प्यार से बुलाया और कहा, “अब तो तुझे कोई शिकायत नहीं है ना?” रति ने भी उससे पूछा, “कोई परेशानी तो नहीं है ना तुझे? राज हम दोनों को प्यार से रखेगा।” रिया थोड़ी देर सोचती रही। फिर वो रति से कहने लगी, “मम्मा, मैं अब राज भैया को क्या बुलाऊँगी?” तो माँ ने कहा, “अब तेरे राज भैया तेरे पापा हैं, उन्हें पापा ही कहना।” मैंने कहा, “तुझें जो अच्छा लगे, वही कहकर मुझे बुला लेना।” तो वो बोली कि वो मुझे डैड ही कहेगी। उसे अपने डैड की बहुत याद आती थी, इसलिए उसने मुझे भैया की जगह पापा कहना ही उचित समझा। उसका एक भाई तो अब भी था, पर पापा नहीं थे। कॉलेज पहुँचकर राहुल ने रिया को फोन करके बता दिया कि वो कॉलेज पहुँच गया है।

आज वो दिन था जब रति के कपड़े सिलकर आने वाले थे। मैं ही कपड़े लाने गया था। साथ में रिया को भी ले गया था। उसे भी तो नए कपड़े चाहिए थे। मैंने उसके लिए एक बेहद खूबसूरत जींस-टॉप दिलवाया, साथ में महंगे सैंडल भी। वो बहुत खुश हो गई। जब हम वापस आए, तो रति हमारा इंतज़ार कर रही थी। हमें देखकर बोली, “कितना लेट कर दिया तुम लोगों ने!” रात को हमने डिसाइड किया कि हम शादी वैष्णो देवी में ही करेंगे। सो, हमने रात को ही एक टैक्सी बुक की और वैष्णो देवी के लिए निकल गए। अगले दिन दोपहर में हम वैष्णो देवी पहुँच गए। शाम को शादी थी। मैंने एक पुजारी का पता किया जो शादियाँ करवाता था। उसने सारे काम के लिए 5000 रुपये लिए।

शाम को हम मंदिर पहुँच गए, जहाँ शादी होनी थी। शादी में मैं दूल्हा, रति दुल्हन, और बाराती-साराती के नाम पर बस एक रिया थी। मंदिर के प्रांगण में ही एक वस्त्र बदलने के लिए कुटिया थी। रिया रति को लेकर वहाँ उसे सजाने के लिए चली गई। मैं और रिया धर्मशाला में ही कपड़े बदल चुके थे। जब रिया रति को लेकर मंडप में आई, तो मुझे तो चक्कर आने लगा। वो इसलिए क्योंकि वो इस कायनात की सबसे अप्रतिम युक्ति लग रही थी। क्या नयन-नक्श थे उसके! कानों में सोने के झुमके क्या लग रहे थे! गले में सोने का हार, माँग में माँगटिका, और सबसे खास तो उसकी नथ लग रही थी, जो मेरे दिल पर बस छुरियाँ चला रही थी। वो साड़ी का आँचल सिर पर रखकर आई थी, और उसे सहारा रिया दे रही थी। उस साड़ी में क्या लग रही थी वो! मैं तो ये सोचने लगा कि शायद मुझे सचमुच स्वर्ग वाली रति, कामदेव की पत्नी रति ही मिल गई हो। वो ओरिजिनल रति से रत्ती भर भी कम नहीं लग रही थी। लग रहा था कि रति ही उसमें समा गई हो।

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मैंने पंडित से कहा कि वो जल्द से जल्द विवाह संपन्न करवा दे। उसने वैसा ही किया। अब अंत की कुछ रस्में बाकी थीं, जैसे सिंदूर भराई और मंगलसूत्र पहनाना। जब मैंने रति की माँग में सिंदूर डाला, तो उसने आँखें बंद कर लीं, जैसे उसके लिए यही पल सबसे कीमती हो और वो इस तरह से फिर से सुहागन बन गई। अब फिर से उसकी सारी कामनाएँ और सारी मुरादें पूरी होने वाली थीं। रोने की बजाय वो अंतरमन से खुश थी। फिर मैंने उसे मंगलसूत्र पहनाया और सात फेरे लिए उसके साथ। विवाह संपन्न हुआ—एक माँ का बेटे से, रति का काम से, और अतृप्ति का तृप्ति से।

हम रात में 9:30 बजे वापस धर्मशाला में आ गए, जहाँ हमें आज की रात रुकना था। पहुँचते ही रिया ने हमें कहा, “हैप्पी मैरिड लाइफ टु यू, माय मॉम एंड डैड!” और हमने उसे गोद में उठा लिया और दोनों ने मिलकर उसके गालों को चूमा। रात में हमने कुछ नहीं किया। अगले दिन ये डिसाइड हुआ कि रिया को अब स्कूल चले जाना चाहिए और हमें घर। अपने शहर में मुझे कुछ काम जल्द ही खत्म करने थे। हम वैष्णो देवी से सीधे चंडीगढ़ आए, फिर रिया को मसूरी में उसके स्कूल में छोड़ा। अब वो वहाँ चार महीने तक बिना ब्रेक के रहने वाली थी, और हम दोनों मियाँ-बीवी बिना किसी व्यवधान के काम साधना की पूर्ति के लिए।

अब अगस्त का महीना चल रहा था। हम अगले दिन अपने शहर बरेली वापस आ गए। मैंने जल्द ही अपने स्टोर के लिए एक खरीददार खोजा और उसे स्टोर 25 लाख में बेच दिया। हमारे पास पहले से ही अच्छी-खासी रकम थी। स्टोर के पैसे भी मैंने अकाउंट में जमा कर दिए। फिर घर पर हमने अपनी कुछ यादगार वस्तुओं को पैक किया, जिनसे मेरी रति और रिया की यादें जुड़ी थीं। पापा और राहुल की किसी चीज़ को मैंने छुआ तक नहीं। सामान पैक करके हमने रख दिया। अब मैं और रति बरेली छोड़ने ही वाले थे, क्योंकि वहाँ पर हम मियाँ-बीवी बनकर कभी भी नहीं रह सकते थे। मैं चाहता था कि किसी शांत शहर में जाकर रति के साथ बस जाऊँ, ताकि रति सुख आसानी से पा सके। रति ने ही हमारे लिए एक नए शहर को चुना, जो ऊटी था। वो इतना दूर था कि हमें कोई पहचान भी नहीं सकता था वहाँ पर।

हमने एक रियल एस्टेट वाले से ऊटी में कॉन्टैक्ट किया और उसे बताया कि हमें एक छोटा सा मकान किसी सुनसान इलाके में चाहिए। उसने अगले दिन ही हमें बताया कि एक मकान है। मैंने कीमत और उस मकान की फोटोज़ देखीं। रति और मुझे वो मकान बहुत पसंद आया। उस एजेंट ने डील फाइनल करवा दी, और हमने मकान खरीद लिया। अपना सामान हमने पैकर-मूवर वालों को दे दिया ऊटी ले जाने के लिए। और हम चल पड़े एक नई दुनिया बसाने के लिए ऊटी में।

ऊटी पहुँचकर हम एक-दो दिन रिलैक्स हुए। और अपनी आग को भड़काते रहे। इस दौरान रति को मैंने छुआ तक नहीं, ना ही उसे नोटिस ही किया। वो परेशान हो गई थी कि मैं कुछ कर क्यों नहीं रहा हूँ। तब तक हमारा सामान भी आ गया। घर पहले से ही सजा हुआ था, बस आए हुए सामान को ठिकाने लगाना था। वो मैंने और रति ने मिलकर एक दिन में ही कर दिया। उसके अगले दिन 5 सितंबर की तारीख थी। सबकुछ हो गया था। अब हमारे पास बस हमारे लिए समय ही समय था। मैंने रति से कहा, “रति, तुम वो शादी वाला जोड़ा आज रात को पहन लेना।” तो वो खुश हो गई। उसे लगा उसके भाग्य आज खुलने वाले हैं। आज ही हमारी वास्तविक और पहली सुहागरात होने वाली थी। उसने कहा, “हाँ राज, अब तक तो हम सब कुछ सेटल करने में ही बिजी थे। शादी तो हो गई, पर अब तक अपने प्यार को जी भर देखा भी नहीं। आज सारी दिल की इच्छाएँ पूरी करूँगी मैं, आपके राज।” मैंने कहा, “जो अरमान तुमने कभी पाले होंगे, चाहे वो तुम्हारी शादी से पहले के हों या पापा से शादी के बाद के, आज वो सारे अरमान मैं तुम्हारे जरूर पूरे कर दूँगा। आज मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगा, मेरी जान!”

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शाम को मैं मार्केट चला गया कुछ सामान लाने। रति के लिए थोड़ी सी मुलेठी और इलायची युक्त एक स्वीट डिश ले आया। मैंने सुना था कि ये दोनों चीज़ें औरत में वासना का तूफान मचा देती हैं। बहुत ही प्यारे और स्वादिष्ट पकवान बनाए थे उसने। हमने थोड़ा सा ही खाया, ताकि पेट भारी न हो जाए और कहीं नींद न आने लगे। फिर मैंने रति को वो मुलेठी और इलायची वाली डिश दे दी खाने के लिए। मैंने भी अलग से कुछ इलायची खा ली। वो कुछ देर के बाद नहाने चली गई। फिर नहाकर वो सीधे बेडरूम में चली गई। फिर मैं भी नहाने चला गया। बाथरूम में पहुँचा, तो देखा कि रति के पहने हुए अंडरगारमेंट्स फर्श पर पड़े थे। मैंने उसकी पैंटी को उठाया, तो देखा कि उसमें एक-दो बड़े-बड़े बाल थे। मैंने वो बाल अपनी उंगली में लपेट लिए और उसकी पैंटी को अपने नाक से लगा लिया। क्या गज़ब की गंध थी! मेरे तो होश ही गुम हो रहे थे। फिर उसकी ब्रा को, जो नीले रंग की थी, उसे चूमा और बाहर आ गया। बाहर आया, तो देखा कि वही टेबल पर मेरे आज के पहनने के लिए कपड़े रखे हुए थे। मैंने कपड़े पहन लिए और अपने आप को आईने में देखने लगा। मैं उन कपड़ों में कोई अच्छा सा दूल्हा ही लग रहा था।

फिर मैं बेडरूम के पास गया, तो देखा कि दरवाजा बंद है। मैंने दरवाजा खटखटाया, तो उसने कहा, “ज़रा रुको बाबा।” 5 मिनट बाद उसने दरवाजा खोल दिया। मैं अंदर गया, तो वहाँ अंधेरा था। मैंने दरवाजा बंद किया और बत्ती जला दी। सामने जो नज़ारा था, उसे देखकर मैं हैरान रह गया। बेड पूरी तरह पर्पल ऑर्किड के फूलों से सजा हुआ था और सेज पर गुलाब की बस पंखुड़ियाँ पसरी हुई थीं। उसी के बीच में घूँघट ताने मेरी दुल्हन लजाई सी, सकुचाई सी बैठी हुई थी।

जब मैं उसके पास गया, तो उसने कहा, “बत्ती बुझा दीजिए प्लीज़, राज।” मैंने कहा, “अब तुम मेरी माँ नहीं, सिर्फ मेरी बीवी हो। मैं कोई तुम्हारा बेटा नहीं हूँ, तुम्हारा पति हूँ। जो मैं चाहूँगा, वही होगा, रति। बत्ती नहीं बुझेगी।” तो वो कहने लगी, “मुझे शर्म आती है, बेटा।” मैंने उसे टोका और कहा, “अब कभी मुझे बेटा मत कहना, मेरी रांड। मैं तो अब तेरा चोदू पति हूँ। अगर बत्ती बंद कर दी, तो जिसके लिए मैंने तुझे जवान करवाया है और जिस चीज़ को मैं देखने के लिए तरसता था, तड़पता था, वो मैं अंधेरे में कैसे देख पाऊँगा, मेरी चुदासी रखैल!” तो उसने कुछ नहीं कहा। मैं सेज पर उसके पास गया, तो कहा, “क्या अब ये घूँघट उठा दूँ, मेरी जान?” तो उसने कहा, “मुझसे क्या पूछते हैं आप!” तो मैं घूँघट उठाने लगा। उस वक्त बस यही गाना मुझे याद आ रहा था कि “सुहागरात है और घूँघट उठा रहा हूँ मैं, कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है।”

मैंने उसका घूँघट बड़े ही आराम से उठाया और देखा, तो उसमें एक परी थी, मेरे सपनों की ड्रीम गर्ल, एक हूर परी जैसे जन्नत की सबसे हसीन नूर थी। मैं देखते ही कहने लगा, “क्या बनाया है तुझे डॉ. स्मिथ ने!” उसने कहा, “जो आप चाहते थे, वही तो हुआ है।” मैंने कहा, “हाँ रांड, मैं जो चाहता था, वही हुआ है, और उससे कहीं ज्यादा ही बनाया है तुझे उस डॉक्टर ने। आज मैं तुझे चोदकर दुनिया का सबसे बड़ा और अजूबा मादरचोद बन जाऊँगा। मुझे यही बनना था।” रति सब सुनती रही, कुछ नहीं कहा उसने। मैं उसे अब स्मूच करने लगा। वो भी करने लगी। फिर आधे घंटे बाद मैं उसके कपड़े उतारने लगा। मैंने उसकी ब्रा और पैंटी रहने दी और बाकी सब कुछ तार दिया। उसने कहा, “अब अपने भी तो उतारो। मैं भी देखना चाहती हूँ कि मेरे पति कैसे हैं।” मैंने कहा, “ये क्यों नहीं बोलती कि तुझें मेरे लंड का दर्शन करना है!” मैंने उसे कहा, “मुझे जो देखना था, वो मैंने खुद मेहनत करके देख लिया। अब अगर तुझें देखना है, तो तू खुद ही मेरे कपड़े उतार।” पहले तो उसने मना कर दिया, पर मनाने पर वो मेरे कपड़े उतारने लगी। उसने भी मेरे शरीर पर बस अंडरवियर ही छोड़ा। अब उसकी साँसें तेज़ चलने लगी थीं।

मैंने उसे बेड पर चित लिटा दिया और उसे लगातार चूमने लगा। आज मैं उसका दूध पीना चाहता था। बचपन में भी पिया था, पर उस वक्त मुझे कुछ ज्ञान नहीं होगा ना। असली मज़ा तो जवानी में अपनी माँ का दूध पीने में है। मैंने उसकी ब्रा को नोंच फेंका और उसकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ बिल्कुल अल्फांसो आम की तरह उछलकर मेरे सामने आ गईं। क्या चूचियाँ थीं रति की, असली मायनों में वही रति थी। उसके अनार अब इलाज के बाद 750 ग्राम के हो गए थे, जो बिल्कुल पूरी तरह से दूध के अलसी भंडार थे। पहले तो बारी-बारी से मैंने उन्हें खूब दबाया और मसला। फिर उसके निप्पल को, जो एकदम खड़े हो चुके थे, को उंगलियों से मिंजने लगा। वो “आह… ऊऊह… स्स्स्स… मर गई माँ…” करने लगी। मैं हल्के-हल्के उसके निप्पल्स को मिंज रहा था, ताकि उसे लहर न हो, न जलन। धीरे-धीरे उसकी सिसकारी तेज़ हो गई। और उसके निप्पल लाल। मैंने ऐसा मादक संगीत आज तक नहीं सुना था।

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फिर जब मुझसे न रहा गया, तो मैंने उसके बूब्स को मुँह में ले लिया और उसका रस निचोड़ने लगा। उसका एक बूब आधा ही मेरे मुँह में आ सका। चूसने के बाद मैं उसके निप्पल को जीभ से छेड़ने लगा। वो तो व्याकुलता से मरे जा रही थी। कहने लगी, “ये क्या किया रे तूने, कौन सी आग लगा दी है ये!” मैंने कहा, “क्या नहीं पता तुझें ये कौन सा खेल है, ये कैसी अगन है? क्या रांड, तूने ऐसे ही क्या हम तीनों भाई-बहनों को जना है? क्या मेरे बाप ने तुझें नहीं चोदा, साली?” मैं उसके बूब्स को बारी-बारी से चूसते रहा। जब उससे न रहा गया, तो वो रति-आनंद में बह गई। उसका रजोत्पात होने लगा और वो आहें भरने लगी। जब उसकी चूत रो रही थी, तो उसने कसकर दोनों हाथों से चादर पकड़ ली और मिसने लगी, साथ-साथ अपने होठों को दाँतों से काटने लगी। उसकी चूत से टप-टप करके रस चादर पर गिर रहा था। वो शांत हो चुकी थी। कई साल हो गए थे उसे चुदवाए हुए, इसलिए उसकी ऐसी हालत हुई थी। उसकी काले रंग की पैंटी पूरी तरह से भीग गई थी।

अब तक मेरा भी लंड खड़ा हो चुका था। फिर भी मैंने खुद पर कंट्रोल किया, क्योंकि मैं पूरा मज़ा लेना चाहता था। अब मैं उसकी चूची के नीचे चूम रहा था, उसके बदन को। चूमते-चूमते मैं उसकी नाभि तक पहुँचा। पहले तो मैंने उसकी नाभि के आसपास सिर्फ हाथ ही लगाया, जिसके कारण उसका पेट काँपने लगा। फिर मैं उसकी नाभि में जीभ से गड्ढा करने लगा। मैंने उसके पूरे पेट को अपनी लार से नहा दिया, फिर साफ कर दिया। रति कहने लगी, “बस करो राज, अब सहन नहीं होता। अब जल्दी से मुझे संतुष्ट कर दो।” मैंने कहा, “वो कैसे करूँ?” तो वो कहने लगी, “अपना वो डाल के जल्दी से मुझे शांत करो, वरना मैं पागल हो जाऊँगी।” मैंने कहा, “ये वो क्या है?” तो उसने कहा, “वही, जिससे तुम पिशाब करते हो।” मैंने कहा, “उसे क्या कहते हैं?” वो कुछ न बोली। मैंने कहा, “अगर नहीं बोलोगी, तो मैं कुछ भी नहीं करूँगा।” तो उसने अपनी शर्म पर काबू करके कह ही दिया, “अपने लंड को मेरी चूत में जल्दी से डाल के मुझे चोद दो।” ये सुनकर मुझे बड़ा मज़ा आया कि ये सब एक माँ अपने बेटे से कह रही है। मैंने कहा, “थोड़ा सा सब्र करो, मेरी रांड। मैं वही करूँगा जो तू चाहती है, लेकिन कुछ और अभी बाकी है।”

अब मैं उसके पेट से हटकर उसके पेड़ू तक आ गया था, जहाँ से झाँट प्रदेश शुरू होता था। रति की झाँटें बहुत बड़ी थीं। शायद इतनी बड़ी तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी। उसकी झाँटें पैंटी से बाहर भी दिख रही थीं, इसी से मुझे उसकी झाँटों के बारे में मालूम हुआ। मैं उठ गया और जाकर शहद की एक बोतल ले आया। और मैंने उसकी पैंटी को निकाल फेंका। अब वो बिल्कुल मादरजात अवस्था में थी। मैंने वो शहद उसकी चूत पर उड़ेल दिया, जो उसकी चूत से बहकर उसकी गांड तक जाने लगा। मैंने आहिस्ता-आहिस्ता उसकी झाँटों में से शहद चाटना शुरू किया। उसके बाल इतने बड़े थे कि कभी-कभी मेरी जीभ उनमें फँस जाती थी।।

अब मैं उसकी चूत तक आया। मैंने तो पहले उसके भग-द्वार के चारों ओर उंगली फिराई। वो कह रही थी, “राज, ऐसे ही करो, मुझे आराम मिल रहा है।” फिर मैंने एक उंगली उसकी चूत के अंदर घुसानी चाही, तो उसे दर्द होने का। मैं सोचने लगा कि शायद डॉ. स्मिथ ने उसकी चूत को भी संकुचित कर दिया है। वाह रे, डॉ. स्मिथ! पर ये अविश्वसनीय था, क्योंकि मैं जिस चूत से निकला था, वो इतनी संकरी कैसे हो गई? लेकिन वो थी ही इतनी टाइट उस समय। तीन जवान बच्चों की माँ वो, जो अब एक कुंवारी युक्ति थी। ये तो 8वाँ अजूबा था। उस छोटे से बिल को देखने के बाद मैं 100% कह सकता था कि डॉ. स्मिथ ने मेरी 50 साल की माँ को एक 20-21 साल की लौंडिया बना दिया था रियलिटी में। मैं डॉ का बहुत एहसानमंद था।

अब मैंने उंगली न घुसाकर उसकी चूत के दोनों फांकों को अपनी उंगलियों से अलग किया और अपनी जीभ उसकी चूत में पेल दी। वो ज़ोर-ज़ से सिसकाने, कसमसाने लगी और उठ बैठी। उसने मेरे सिर को बहुत ज़ोर से पकड़ा और मुझे अपनी चूत में घुसाने की नाकाम कोशिश करने लगी। मैं धीरे-धीरे उसकी चूत में अपनी जीभ को कड़ा करके ठेल रहा था और निकाल रहा था। इसी तरह जीभ अंदर-बाहर करते हुए मेरी जीभ किसी छोटे दाने से रगड़ खा गई। जैसे ही ये रगड़न हुई, रति जोर से चिल्लाई, “ओह माय गॉड! ओह माय गॉड!” मुझे समझ नहीं आया ये क्या हुआ। फिर मैंने गौर से देखा, तो पता चला कि एक छोटा सा दाना था उसकी चूत की ऊपरी हिस्से में। ये मुझे बाद में पता चला कि इसे क्लिटोरिस कहते हैं या भगशेफ। मैंने फिर उसे रगड़ा नहीं, क्योंकि उसकी वजह से मेरा काम खराब हो सकता था। बस, हल्के-हल्के उसके किनारे पर जीभ चलाता रहा। ऐसा करने से रति बड़बड़ाने लगी कि “वो गई, वाओ गई!” थोड़ी देर में ही उसने अपना रस मेरे मुँह में छोड़ दिया।

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मैं तो इस रस को कब से पीना चाहता था। मैंने थोड़ा सा भी इस रस को बर्बाद नहीं होने दिया और पूरा का पूरा किसी अमृत की धारा की तरह गटकता चला गया। उसे पीने के बाद एक अजीब सी शांति, एक अजीब सा सुकून मिला मुझे। लगा जैसे मैंने रति के अंदर की कस्तूरी को पा लिया हो। इसकी ठीक वैसी ही गंध थी जैसी रति के शरीर से आती थी। इस रस में किसी तरह का स्वाद नहीं था, पर वो रस मुझे सबसे अमूल्य अमृत लगा, जिसे ग्रहण करके मेरी जवानी धन्य हो गई। और ये रस किसी आम औरत का नहीं था, बल्कि मेरी जननी, मेरी माँ का था, जिसे बस मेरे जैसे कुछ एकाध लोग ही ग्रहण कर पाते हैं। आज मैं एक अपवाद बन गया था बेटों के लिए। इस रज को पाकर एक तरह से मैं अपने को अमरत्व का स्वामी मानने लगा था। मुझे लगने लगा कि अपनी माँ का रस हर एक बेटे के लिए एक बहुत ही ज़रूरी जायज़ हक़ है, जो बेटों को मिलना चाहिए। जिस प्रकार अपनी छाती से लगाकर बचपन में हर माँ अपने बेटे को 6 महीने तक दूध पिलाती है, ठीक उसी प्रकार हर माँ को अपने बेटे के जवान होने पर कम से कम एक वर्ष तो अवश्य ही अपना रज चखाना चाहिए, ताकि वो अपने मातृऋण से मुक्त हो सके और वो भी अपने बेटे के मुख पर बैठकर। पर बाप, साले सारे मादरचोद लोग हैं, उन्होंने ऐसा करना अपराध और अप्राकृतिक घोषित कर दिया इतिहास में। पर कोई बात नहीं, मैंने वो हासिल किया जो मुझे मिलना चाहिए। अपनी माँ के गर्भ-योनि से निकला मोती—उसका अमृत मेरे लिए—उसका रज।

अब तक वो बिना चुदे ही दो बार झड़ चुकी थी, जबकि मेरा लंड बस सुपड़े पर ही गीला हुआ था।।

अब तक मेरा लंड बस सुपड़े पर ही गीला हुआ था, और मेरी अंडरवियर पर एक सिक्के जैसा गीला निशान पड़ चुका था। मैंने रति को बेड पर सामान्य होने के लिए पड़े रहने दिया। उसने अपनी आँखें बंद कर ली थीं। मैं उसे छोड़कर बाहर आ गया और लाइट बंद कर दी। लगभग 15-20 मिनट बाद जब मैं वापस गया, तो देखा कि लाइट अब भी बंद है और वो बिस्तर पर ही पड़ी हुई है।। मैंने लाइट जलाई और रति के पास चला गया।। मैंने उसे उठाया, तो वो मुझसे चिपक गई और अपनी लंबी जुल्फों में मुझे छुपाकर मेरा चुम्बन लेने लगी। फिर कहने लगी, “आज मुझे आपने धन्य कर दिया है, राज। आज आपने मुझे जीत लिया है।। मुझे आज तक इतना आनंद नहीं आया जितना आपने आज दिया है। मेरे भविष्य के मसीहा, आज से आप ही हो! आज से मैं आपके पैरों की धूल बनकर रहूँगी, ऐ मेरे मालिक, ऐ मेरे सरताज। जो आप कहेंगे, वही मैं करूँगी।”

मैंने उसे अपने पास बिठाया और उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “कुछ वक्त पहले तक तुम मेरी माँ थी और अब मेरी बीवी हो। बस मेरी बीवी बनके रहना हमेशा-हमेशा के लिए। मुझे बस इतना ही चाहिए। अब से अगले छहों जन्मों तक मैं तेरा पति बनना चाहता हूँ। इस जन्म में तो बेटा बन लिया, लेकिन अब आगे से नहीं बनूँगा। आगे से तो मैं तेरा यार रहूँगा।” इस दौरान मैं उसे प्यार से पुचकार रहा था।

कुछ देर बाद मैंने उसे खड़ा किया, फिर मैं भी खड़ा हो गया। उसने अपने आप ही मेरी अंडरवियर उतार दी और मेरे लंड को स्वतः ही अपने हाथों में लेकर उसके साथ खेलने लगी, जैसे कोई बच्चा अपने सबसे प्रिय खिलौने के साथ खेलता हो। मैं भी उसके स्तनों के साथ खेलने लगा। फिर मैं बेड के एकदम किनारे पर बैठ गया और उसे मैंने उसके घुटनों पर ठीक मेरे सामने बैठने को कहा। वो बैठी, तो मेरा लंड ठीक उसके मुँह के सामने था और उसे छेड़ रहा था। उसने अनायास ही समझ लिया कि अब उसे क्या करना है, पर जानबूझकर मुझसे पूछने लगी, “मुझे ऐसे क्यों बैठाया है आपने?”

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मैंने कहा, “क्या तुमने पापा का लंड कभी मुँह में लिया नहीं था?” उसने कहा, “छी, ये भी कोई मुँह में लेने की चीज़ है!” मैंने कहा, “और जो मैंने किया तुम्हारी चूत के साथ?” तो वो कहने लगी, “उसे कुछ नहीं पता, उसने कभी भी अपने पहले मर्द के साथ ऐसा नहीं किया।” मैंने कहा, “कोई बात नहीं, जिंदगी में बहुत कुछ पहली बार होता है। जैसे कि तेरा बेटा तेरा पति बन गया पहली बार, जैसे कि तेरा बेटा अब कुछ ही देर बाद तुझे चोदने भी जा रहा है पहली बार, वैसे ही इस खिलौने को अपने मुँह में लेकर इसका स्वाद लेके देख ले पहली बार। शायद तुझें अच्छा लगे पहली बार।”

वो सकुचाते हुए लंड को बस देखे जा रही थी। फिर उसने उसे अपने मुँह में ले ही लिया। पहले बस उसने मेरे सुपड़े को ही मुँह में लिया और उस पर जीभ चलाने लगी। फिर कुछ पल बाद उसे अच्छा लगने लगा, तो वो जितना हो सके उतना ला लंड अपने मुँह में लेकर अंदर-बाहर करने लगी, जैसे वो लॉलीपॉप या फिर आइसक्रीम चूस रही हो। मैं सिसकारी भरने लगा। सिसकारी भरते हुए मैं बके जा रहा था, ” रांड, कहती हो कि कभी लंड मुँह में नहीं लिया, फिर इतनी सफाई और एक्सपर्ट की तरह कैसे चूस रही हो, साली? मुझे पता है तू एक नंबर की छिनाल है।” मैं माँ को गाली नहीं देना चाहता था, लेकिन मुझे उसे गाली देने में बहुत मज़ा आ रहा था और कामोत्तेजक भी लग रहा था, इसलिए उसे खूब गंदी-गंदी गालियाँ दे रहा था।

उसने मेरे सुपड़े को ही अंदर लिया और उस पर अपने दाँतों और अपनी जीभ से प्रहार करने लगी। मुझे भयंकर आनंद आ रहा था। वो जोर-जोर से सुपड़े को चूसे जा रही थी। उसकी जीभ की रगड़न से अब मेरा सुपड़ा लहरा रहा था। मैंने देखा कि सुपड़ा कुछ ज्यादा ही फूल गया है। पहले तो मेरे लंड का साइज़ थी, लेकिन अब वो अपनी पूरी औकात पर आ गया था, सो अब वो उसके मुँह में पूरा नहीं घुस पा रहा था। 10-15 मिनट की चुसाई के बाद मैं अपने चरम पर आ गया था और मैं कभी भी अपना लावा उगल सकता था। मैंने उसे बता दिया, “मैं आ रहा हूँ, तुझे इसका स्वाद करना है या नहीं?” तो उसने कहा, “मुझे तो कब से करना था। कोई बात नहीं, आप मेरे मुँह में ही आ जाओ।”

उसने जैसे कहा, मैं पिचकारी पर पिचकारी उसके मुँह में छोड़ता चला गया और वो उसे गटकती चली गई। रति भी नीचे से बह रही थी। एक तरफ मेरा वीर्य उसके मुँह में भर रहा था, और दूसरी तरफ उसका रस फर्श पर फैल रहा था। मैंने लगातार पहली बार सात पिचकारी छारी थी उस वक्त, जिससे इतना सारा वीर्य निकला था कि रति के मुँह से होते हुए मेरा रस उसकी चूचियों, पेट, और फिर वहाँ से होते हुए उसके रस से उसकी चूत के पास मिल रहा था। रति रज और वीर्य से नहा चुकी थी।

इतना सबकुछ रात के 12 बजे तक चला। चूंकि आज रात हमारी सुहागरात थी, सो मेरा उससे मिलन तो अनिवार्य था ही। पर मैंने इसमें और थोड़ा विलंब करना उचित समझा। मैं रति को उठाकर बाहर डाइनिंग टेबल पर ले गया। खाना एक थाली में परोसकर एक चेयर पर मैं बैठ गया, और वो मेरी गोद में बैठी हुई थी। वो इस तरह से बैठी कि मेरा लंड उसकी चूत और गांड की दरार में फिक्स हो जाए। फिर मैं उसे अपने हाथों से खाने की चीज़ें खिलाने लगा। मैं उसकी पीठ से सटा था और मेरा एक हाथ उसकी चूत में हलचल मचा रहा था। वो खा भी रही थी और मुझसे उंगली भी करवा रही थी। इतना रस उसकी चूत से बाहा था कि उसकी चूत दो दरारों में बँट गई थी। हो भी क्यों न, उसकी चूत ने कई सालों से पानी नहीं छोड़ा था। इतने सालों का पानी उसकी चूत में इकट्ठा पड़ा हुआ था, जो आज सूद समेत निकल रहा था। उसका छेद थोड़ा फैल गया था, जिससे मेरी एक उंगली उसकी चूत में आसानी से आ जा रही थी।

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फिर जब मुझे खाना था, तो वो मेरी ओर पलटी और अपने पैर मेरी कमर से बाँध लिए। अब वो मेरी गोद में बैठी थी। अब मेरा लंड एकदम से उसकी चूत के मुँह पर टच कर रहा था। जब भी वो मुझे खिलाती, तो मैं थोड़ा झुककर उसकी तरफ हो जाता, जिससे लंड उसकी चूत पर वार करता। इसमें हमें दोनों को बड़ा मज़ा आ रहा था। थोड़ी देर में हमने खाना ख़त्म किया, फिर उठकर बेड पर वापस गए।

बेड पर मैंने उसे लाकर पटक दिया। दो तकिए मैंने उसकी पीठ और सिर के नीचे रख दिए, जिससे वो थोड़ा ऊपर की ओर उठ गई और उसके चूतड़ नीचे की तरफ ढलान पर आ गए। मैं उसकी दोनों जाँघों के बीच में आ गया। फिर उसके पैर को मैंने अपनी जाँघ पर लपेट लिया। उसकी एक जाँघ मेरी एक जाँघ पर थी। और उसकी दूसरी जाँघ को मैंने अपने हाथों से मोड़कर ऊपर उठा दिया। अब उसकी चूत थोड़ा ऊपर उठ गई। मैंने अपने लंड को, जो एकदम तना हुआ था, उसकी छेद से सटाया और एक ज़ोरदार कोशिश की। उसकी चूत पर आघात हुआ, जिससे उसे चोट लगी और उसे थोड़ा दर्द महसूस हुआ। अगली बार मैंने फिर से कोशिश की। इस बार मैं कोई चांस नहीं लेना चाहता था। मैंने उसे कहा कि वो मेरे लंड को उसकी चूत पर फिट बैठा दे। उसने आगे बढ़कर वैसा ही किया। और मैंने तुरंत ही एक झटका आगे मारा। मेरा लंड सुपड़े तक उसकी भग में प्रवेश कर गया और वो कराहने लगी। मैंने एक मिनट तक रुका, ताकि वो मेरे लंड को फिर से सहन करने के लिए तैयार हो जाए।

इस बार मैंने और करारा झटका मारा, तो मेरा आधा लंड उसकी चूत में चला गया। वो चिल्लाकर रोने को हुई। मुझे गुस्से के साथ खीज भी होने लगी कि क्यों नहीं मेरा लंड जल्दी से उसमें समा रहा है। मैंने उसकी परवाह न करते हुए एक और झटका मारा और मेरा लंड सारी बाधार्आऑं को पार करता हुआ उसमें जड़ तक घुस गया। रति बयान से चिल्ला रही थी, एकदम कुतिया की तरह। मैं एकदम शांत हो गया। मैंने उसे समझाया, “इतना दर्द तो होता ही है। पहले भी तो तूने इतना दर्द सहा होगा।” वो रुआँसी होकर कहने लगी, “जब तेरे पापा ने पहली बार किया था, तब भी इतना दर्द नहीं हुआ था जितना आज हो रहा है। एक तो ये छेद कुछ ज्यादा ही टाइट है और दूसरा तेरा लंड भी तेरे पापा से ज्यादा मोटा और बड़ा है। मैं इसे नहीं सह पा रही हूँ।” मैंने कहा, “आज तू एक असली मर्द से चुद रही है, इसलिए इतनी पीड़ा हो रही है।”

जब दर्द कम हुआ, तो उसने अपनी चूत को देखा। तो हमें दोनों को पता चला कि वहाँ से ढेर सारा खून निकल रहा था। मैंने कहा, “घबरा मत, अब मेरे पानी से तेरी चूत ठीक हो जाएगी।” फिर मैंने उसके साथ मज़ाक किया और उसके चूचे भी मसले, तब जाकर उसका मन तरोताज़ा हुआ। अब उसका दर्द बिल्कुल खत्म हो चुका था। उसकी मनःस्थिति को शांत हुआ जानकर मैंने सोचा कि अब अपनी रेलगाड़ी को पूरी स्पीड से चलाना चाहिए। मेरा लंड अब बस चीते की रफ्तार से उसकी चूत के अंदर-बाहर होने लगा। 10 मिनट लगातार चुदाई के बाद रति का रति-रस निकलने लगा। वो अजीब सी आवाज़ें निकालने लगी। अब फच-फच की मधुर स्वरलहरी पूरे घर में गूँज रही थी। वो निढाल सी हो गई, पर मैं अभी तक झड़ा नहीं था, सो मैं उसे चोदता रहा। कुछ देर बाद रति फिर जोश में आ गई और अब वो अपने चूतड़ हिला-हिलाकर और चूत को आगे-पीछे बड़ी तीव्र गति से करके मेरा साथ देने लगी। शायद इस बार उसे चुदाई का असली मज़ा मिल रहा था। मैं बस आने ही वाला था कि रति फिर एक बार झड़ गई। मैं भी दो-चार धक्के लगाकर उसकी चूत में ही झड़ने लगा और उसकी चूत को अपना पानी पिलाने लगा। उसका सूखा हुआ कुआँ मेरे पानी से भर गया और मैं उससे लिपटकर उसी की छाती पर सुस्ताने लगा। हमारे मिलन का अमृत रति की चूत से लगातार बिस्तर पर टपक रहा था। उसकी चूत इतना रस संभाल ही नहीं सकती थी। सो, फालतू का पानी बेड पर ही गिरने लगा। फिर हम दोनों उसी अवस्था में सो गए। मेरा लंड भी उसी की चूत में सो गया। और इस तरह से रस, अमृत, दर्द, लहू और मिलन जल से सींची हुई हमारी ये प्रथम सुहागरात या चुदाई रात संपन्न हुई।

अगले दिन मैं दोपहर में एक बजे के आसपास उठा, तो देखा कि रति किचन में कुछ पका रही थी। मैं उठा और तौलिया लपेटकर नहाने चला गया। जब मैं नहाकर आया, तो देखा कि वो अभी भी किचन में ही थी और बर्तन धो रही थी। अभी हमें ऊटी आए हुए बस कुछ दिन ही हुए थे, सो हमने अभी तक मेड नहीं रखा था और ना ही रखना चाहते थे, क्योंकि इससे हमारी प्राइवेट लाइफ में दखल पड़ता। उसने पिंक कलर की एक ट्रांसपेरेंट नाइटी, जो मैंने शिमला में उसके लिए खरीदी थी, वही पहनी हुई थी। उससे उसके पीछे ब्रा की स्ट्रैप व पैंटी का पिछला हिस्सा दिख रहा था। मैं एकदम धीमे से किचन में गया और ठीक उसके पीछे जाकर उससे सटकर खड़ा हो गया। मैंने अपना तौलिया गिरा दिया था। और अपना हाथ उसकी बगल से ले जाकर उसके बड़े-बड़े संतरों को पकड़ लिया। वो बड़े प्यार से बोली, “उठ गए आप, मेरे नए पतिदेव?” और अपने चूतड़ों का भार मेरे लंड पर ज़ोर से दे दिया, जिससे उसकी गांड की दरार में मेरा लंड चला गया। वो बड़ी खुश लग रही थी। मैं हल्के-हल्के से उसके मौसम्मियों का रस निचोड़ता हुआ उससे पूछने लगा, “कैसा लगा तेरा दूसरा सुहागरात?” तो वो थोड़ा नाटक करते हुए बोली, “एट तो इतना दर्द दिया, फिर मेरी उसको फाड़ दिया और पूछते हो कि कैसा लगा सुहागरात?” मैंने कहा, “और जो तुम्हारी वो बरसात कर रही थी, उसका क्या?” तो वो कुछ न बोलकर बस मुस्कुरा दी। मैं अपनी उंगली उसकी चूत में डालते हुए अंदर-बाहर करने लगा। चूत अब भी पूरी गीली थी। मैंने उंगली को मुँह में लेते हुए चटकारा लगाया और कहा, “क्या मसालेदार शराब बनती है तुम्हारी चूत की फैक्ट्री में!” तो उसने कहा, “ये आपकी ही है, जितना चाहो उतनी बोतल पी लो और चाट लो।”

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फिर मैंने उसे घुमाकर एक जबरदस्त स्मूच किया उसके साथ। मैंने सोचा, क्यों न काम यहीं शुरू किया जाए। वो भी समझ चुकी थी। अंदर से वो भी तो तप रही थी। और उसे ठंडे पानी की सख्त ज़रूरत थी, जिससे उसके तपते बदन को कुछ राहत मिलती। मैंने उसे किचन की दीवार से सटाकर खड़ा कर दिया। अब उसकी बायीं टाँग उठाकर मैंने अपने लंड को उसकी चूत के दरवाज़े पर रखा और एक झटका पावर से भरा दिया। लंड अंदर प्रवेश कर गया। फिर मैंने उसे थोड़ा दीवार से हटाकर उसकी पीठ की तरफ उसे झुका दिया और उसके चूतड़ पकड़कर उसके अंदर इस बार अपना पूरा लंड डाल दिया। फिर कभी उसे अपनी तरफ खींचकर, तो कभी उसकी तरफ खुद झुककर उसे चोदने लगा। मैं कभी उसके दायें तरफ मुड़ जाता, तो कभी बायें की तरफ। इसी तरह मैं उसे चोदने लगा। पर उसे मज़े के साथ दर्द भी हो रहा था। उसकी योनि से फिर खून बहने लगा। फिर भी 20-25 धक्के मारकर हम दोनों झड़ गए। तब जाकर मैंने उसकी योनि को ध्यान से देखा, तो पता चला कि उसका तो कचूमर बन चुका है। जितनी बड़ी उसकी छेद थी, उससे ज्यादा मोटा मेरा लंड था। भले ही वो मेरी माँ थी, पर ट्रीटमेंट के बाद वो मेरी बच्ची सी लगने लगी थी योनि से। 46-47 की प्रौढ़ औरत से वो 20-21 साल की युक्ति हो गई थी, तो ये ज़ाहिर सी बात थी कि उसकी योनि फटेगी ही। पर इस तरह से फटेगी, मैंने ऐसा नहीं सोचा था। उसकी योनि की हालत गंभीर हो गई थी।

मुझे लगा कुछ करना होगा, वरना कहीं उसे कोई घाव न हो जाए। मैं उसकी योनि को साफ करके उसे रेडी करके एक फीमेल सेक्सोलॉजिस्ट के पास ले गया। वो सेक्सोलॉजिस्ट कहने लगी, “जी, शादी के बाद योनि से रक्तस्राव होना तो आम बात है, आप चिंता न करें।” फिर उसने दवाइयाँ लिखकर दीं और कहा, “आप पास वाले मेडिकल स्टोर से ले लीजिएगा।” मैं रति और दवाइयों को लेकर घर आ गया। घर पहुँचते ही मैंने रति को बेड पर लिटाया और उसे कुछ खिलाया अपने हाथों से। फिर सारी दवाइयाँ दीं। उन दवाइयों में एक क्रीम भी थी, जिसे उसकी चूत पर लगाकर मालिश करनी थी। मैंने कहा कि मैं कर देता हूँ, तो वो कहने लगी कि वो खुद कर लेगी, लेकिन मुझे तो मालिश करनी ही थी, सो मैं ज़िद पर अड़ गया कि मैं ही करूँगा उसकी मालिश। मैंने उसके नीचे के कपड़े खोले और हाथ में क्रीम लेकर उसकी चूत की मालिश मुलायम हाथों से करने लगा। मेरे हाथ लगने से फिर उसकी चूत विव्रत होने लगी और कुछ-कुछ गीली भी हो गई। लेकिन मैं कंट्रोल में रहा। वो बार-बार “आह… ऊह…” किए जा रही थी। कुछ देर बाद वाकई उसे आराम मिला, लेकिन उसकी प्यास भड़क चुकी थी।

फिर मैंने उसे खिलाया और खुद भी खाया। और रति के साथ ही सो गया। शाम को जब हम उठे, तो मुझे रति बिल्कुल ठीक लग रही थी। मैंने उससे पूछा, “अब दर्द कैसा है?” उसने कहा, “अब तो दर्द है ही नहीं।” लेकिन मैं कोई कोताही नहीं करना चाहता था। मैंने पाँच दिन उसकी चूत को रिकवर होने दिया। मैंने उसे पाँच दिन आराम करने को कहा, तो वो कहने लगी, “मैं और तुम कैसे रह पाएँगे?” मैंने कहा कि मुझे उसकी बड़ी फिक्र है। इन पाँच दिनों में मैंने उसकी बड़ी सेवा की। फिर वो एकदम ठीक हो गई। अब वो चुदाई के लिए पागल हो चुकी थी। 5 दिन बिना किसी काम-क्रिया के उसके अंदर कामोत्तेजना कुछ अधिक ही बढ़ गई थी। जब वो ठीक हो गई, तो मेरे पास आकर मुझसे लिपट गई। मेरी पीठ में अपनी चूचियाँ गड़ा कर कहने लगी, “अब मेरी चूत कभी नहीं फटेगी।” और तो और, कहने लगी, “मुझे चोदो, राज जी, भर के चोदो। अब अगर मेरी बूर फट भी गई, तो मैं कुछ नहीं कहूँगी।” वो सेक्स के लिए तड़प रही थी। मेरा भी बड़ा मन कर रहा था कि कब रति ठीक हो और कब मैं उसके साथ रत हो जाऊँ। अब जब वो खुद कह रही थी, तो मैं क्यों न उसे प्यार करता।

मैंने कहा, “चलो, पहले बाथरूम चलके नहा लो। उसके बाद हम कुछ करेंगे।” मैं उसे बाथरूम तक छोड़कर आ रहा था, तो वो बाथरूम में घुसते ही मुझे भी अंदर खींचने लगी। मैं भी अब बाथरूम में उसके साथ था। फिर उसने मुझे कहा कि मैं उसे नंगी करूँ। और वो हँसने लगी। मैं उसके कपड़े एक-एक करके उतारने लगा। वो “आह… शी… शी…” करके अंगड़ाई लेने लगी। जब उसके सारे कपड़े उतर गए, तो वो मुझसे झूठ-मूठ लजाने लगी। फिर मैंने कहा, “अब मेरे भी तो कपड़े उतार दो।” उसने मेरे भी कपड़े बड़े प्यार से उतारे। फिर मैंने उसे गोद में उठाकर एक बच्ची की तरह उससे प्यार करने लगा। फिर मैं उसे शॉवर के नीचे ले गया और शॉवर चला दिया। पानी की छींटें हम दोनों पर बड़े ज़ोर-ज़ोर से गिरने लगीं। रति का बदन पानी में और दूधिया लग रहा था। जब उसके मुँह से पानी की धार नीचे आ रही थी, तो वो उसकी चूचियों से ढुलकती हुई सीधे उसके पेट से होते हुए उसकी चूत के छेद तक आ रही थी। ये दृश्य अत्यधिक उत्तेजक था। फिर मैंने शॉवर बंद कर दिया। मैंने उसे कहा, “चलो, आज मैं तुम्हें दूसरे तरीके से नहाता हूँ, जैसे आज तक तुम न नहाई होगी।”

मैंने उसके सिर में शैम्पू लगाया और उसके बालों की मालिश करने लगा। फिर शॉवर चलाकर उसके बाल धोए। मैंने देखा था कि उसके आर्मपिट के बाल भी काफी बड़े थे। मैंने उससे कहा, “रुको, मैं हेयर रिमूवर क्रीम और शेविंग किट लेकर आता हूँ।” मैं नंगा ही, पानी से भीगा हुआ सामान लाने चला गया। थोड़ी देर बाद लौटा, तो वो वैसे ही खड़ी थी। मैंने उसे फर्श पर बैठने के लिए कहा। वो बैठी, तो उसके दोनों हाथ ऊपर करवाए और हेयर रिमूवर क्रीम उसकी बगलों में अच्छे से मिलाकर लगा दी। 3 मिनट बाद फिर गले हुए बालों को मैंने स्क्रबर से पोंछ दिया। अब उसकी बगल एकदम साफ हो गई। फिर मैंने शॉवर चलाकर उसकी आर्मपिट्स धो दीं। उसकी बगल एकदम चमकदार लगने लगी।

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इस बार मैंने उसके पेड़ू और झाँटों के बाल हटाने के लिए हेयर रिमूवर का इस्तेमाल नहीं किया। मैंने उसके बालों पर शेविंग क्रीम लगाई और ब्रश से बहुत फोम किया। पूरा फोम होने पर मैंने रेज़र लगाकर उसके बालों को साफ करने लगा। पूरी तरह से उसके झाँट के बाल हटने के बाद उसकी चूत एकदम कुंवारी लगने लगी। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वो चूत कभी फटी भी होगी। मैंने फिर से उसकी चूत को शेव किया। अब उसकी चूत बिना बालों के बहुत ही प्यारी लग रही थी। झाँटों की सफाई के बाद नंबर था उसकी गांड के छेद की सफाई का। यहाँ पर मैंने फिर से हेयर रिमूवर क्रीम लगा दी। थोड़ी देर में उसकी गुदा द्वार को मैंने साफ कर दिया। जब मैं उसकी गांड पर क्रीम लगा रहा था, तो वो बहुत सिसकियाँ ले रही थी। क्रीम लगाते-लगाते ही मैंने एक उंगली उसकी गुदा के अंदर घुसाने का प्रयत्न करने लगा, तो उसने कहा, “ऐसा न करो, प्लीज़।” मैंने कहा, “मत रोक मुझे, रति। मैं पहली बार ऐसा कर रहा हूँ और मुझे ये अच्छा लग रहा है।” तो वो फिर कुछ नहीं बोली। फिर मैंने उसकी गुदा में अपनी उंगली को प्रवेश करवा दिया। वो चिहुँक उठी। फिर धीरे-धीरे मैं उंगली अंदर-बाहर करने लगा। थोड़ी देर में ही उसकी गुदा फोम से भर गई। और उसकी चूत से भी थोड़ा-थोड़ा पानी निकलने लगा। वो बड़ी कामुक और गर्म हो गई थी।

बालों के बाद अब मौका था उसके बदन को घींस-घसकर साफ करने का। मैंने नहाने का साबुन लिया, जो कि बहुत ही सेंटेड था, और रति के पीछे चला गया। उसकी पीठ को अपने पेट और छाती से सटाया। मेरा लंड उसकी गुदा को चूम रहा था। फिर उसकी बगल से अपना हाथ ले जाते हुए मेरे हाथ उसके दोनों हॉर्न पर पहुँच गए। वो कुछ नहीं बोल रही थी, बस अपनी आँखें बंद कर थी। मैंने धीरे-धीरे साबुन उसके दोनों आमों पर लगाया और हल्की-हल्की मालिश करने लगा। दबा-दबाकर भी मालिश की। और उसके निप्पल के पास के भूरे-लाल घेरे पर उंगलियाँ चलाने लगा। उसे अच्छा लग रहा था। उसके निपल्स इस क्रिया से एकदम खड़े हो गए थे। ये इतनी गर्म स्थिति थी कि मेरे लंड से और उसकी चूत से एक साथ थोड़ा पानी निकल गया। फिर मैंने उसके निपल को अपने दोनों अंगूठों और दूसरी उंगली से मिंजने लगा। वो एकदम चरम आनंद में डूब गई। और बेबस होकर अपनी गांड को मेरे लंड और अपनी पीठ को मेरे पेट-छाती से बेतहाशा रगड़ने लगी। इस एक-दूसरे के जिस्म की रगड़न से हम दोनों के पसीने छूटने लगे।

मैंने तब उसकी गर्दन के पीछे अपने होठें, सटाए और उसकी गर्दन को दाँ से धीरे-धीरे काटने लगा। इतना हल्के से काट रहा था कि उसे दर्द न हो। उसने अपने बाल मेरे सिर पर फैला दिए, जिससे मैं पूरी तरह से ढक गया। मुझे कुछ दिख नहीं रहा था, पर मैं सब कुछ महसूस कर रहा था। इस दौरान रति ने अपने हाथ पीछे ले जाकर मेरी गुदा और मेरे अंडों से खेलना शुरू कर दिया। फिर कुछ देर हम ऐसे ही रहे। और फिर हमारा एक साथ निकल गया। गर्मी कम नहीं थी, बल्कि और भड़क गई थी। वो कहने लगी, “राज, जल्दी से अब मुझे छोड़ दो, मैं मरी जा रही हूँ।” मैंने कहा, “रुको ना थोड़ा देर।” वो बोली, “नहीं, राज।” तो मैंने कहा, “ओके जी, अभी लीजिए, शांत करता हूँ आपकी गर्मी।”

मैं अब उससे अलग हो गया और उसे लेकर मैं वॉट र टब के पास गया। वहाँ ले जाकर मैं टब के किनारे पर बैठ गया और उससे कहा, “अपने पति को, जो मेरी टाँगों के बीच में मुरझाया हुआ पड़ा है, उसे प्यार करने को।” तो वो नीचे झुककर मेरे लंड को सलाम किया। फिर झट से उसे हाथों में लेकर उसके साथ खेलने लगी और कुछ पल बाद उसे अपनी जीभ से लगाते हुए बोली, “मेरे पतिदेव, कितने प्यारे और हट्टे-कट्टे हैं।” मैंने कहा, “जो रति का पति होगा, उसे तो मोटा और लंबा होना ही पड़ेगा, ताकि वो रति को खुश रख सके।” अपने होठों और दाँव को न के प्रयोग से वो उसे उत्तेजित करने लगी। इस बार वो लंड को चूस रही थी, तो पता नहीं उसे क्या सूझा कि वो मेरे अंडों के साथ भी खेलने लगी। फिर उसने लंड को मुँह से निकाला और मेरे अंडों को मुँह में लेकर चूसने लगी, बिल्कुल किसी कैंडी की तरह। मेरा लंड और अंडे उसकी लार से नहा चुके थे। लंड अब अपने पूर्ण साइज़ में आ चुका था।

सो मैंने उसे उठने के लिए कहा। जब वो उठ गई, तो मैं खड़ा हो गया और उसका मुँह टब की तरफ करके उसे अपने दोनों हाथ टब पर रखने को कहा और उसे किसी चौपाए जानवर की तरह खड़ा कर दिया। उसने अपने घुटने मोड़ लिए और उन पर खड़ी हो गई। अब मैं उसके पीछे आ गया। अब मौका पेनेट्रेशन का था। मैंने अपने लंड को उसकी चूत पर टिका दिया और उसे एक हाथ से पकड़े रहा। मेरा दूसरा हाथ उसकी कमर पर था। फिर मैंने उसकी योनि पर अपने लंड से प्रहार किया। लंड को आज चूत में जाने में दिक्कत नहीं हुई और क्रीम के असर से वो थोड़ी फैल भी गई थी, जिससे अब वो मेरा लंड थोड़ा आसानी से ले सकती थी। फिर दो-चार धक्कों में मेरा पूरा लंड रति की चूत में चला गया। वो आज भी चिल्ला रही थी, लेकिन आज उसने थोड़ा सा कंट्रोल किया और उसकी चीख में आज दर्द नहीं, बल्कि कामुकता थी। वो कह रही थी, “फक मी डीपर, हार्डर एंड फास्टर!” उसे दर्द हो रहा था, पर वो सह रही थी और उसने अपने आँसू नहीं निकलने दिए। मुझे इस इम्प्रूव्ड सिचुएशन पर खुशी हुई।

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अब मैं पूरी तरह से रति की पीठ पर झुक गया और उससे चिपक गया। मैंने अपने दोनों हाथों को उसकी लटक रही चूचियों पर लगा दिया। फिर चूचियों को बड़ी ज़ोर से पकड़ लेने के बाद मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए। वो एकदम किसी घोड़ी की तरह लग रही थी, जिसकी चूचियों की लगाम मेरे हाथों में थी और मैं उसे फुल स्पीड से चोदे जा रहा था। उस घोड़ी पर चढ़कर मैं कहीं और नहीं, बल्कि स्वर्ग लोक में जा रहा था, क्योंकि मैं अपनी माँ की सवारी कर रहा था और उसके साथ खुद को भी काम-वासना की तृप्ति करवा रहा था। वो भी रति-क्रिया में मेरा भरपूर सहयोग दे रही थी, मुझे और खुद को अपने लक्ष्य की तरफ जल्दी से जल्दी और रफ्तार के साथ ले जाकर, जिसमें वो तन और मन से डूब चुकी थी।

फिर मैं रुका नहीं और ज़ोर-ज़ से उसे लगभग आधे घंटे तक चोदता रहा। वो 10 मिनट बाद पहली बार झड़ी और फिर मेरे झड़ने तक 3 बार और झड़ी। हर बार उसे ऑर्गज़म मिला। मेरा लंड उसके रस से ना जाने कितना नहाया। वो झड़के कहने लगी कि अब वो और नहीं सह सकती मेरे लंड को। मैं सोचने लगा कि मैं अब क्या करूँ? तब तक कि मैं कुछ सोच पाता, उसने अपनी चूत से मेरा लंड निकाल दिया, पर वो उसी पोज़िशन में रही। मुझे उसकी गांड मुस्कुराते हुए नज़र आई। मैंने उससे पूछा, “क्या मैं इसका स्वाद ले सकता हूँ?” तो उसने मना कर दिया। मेरा तो दिल डूबने लगा। मैं उदास हो गया कि अब क्या करूँ, यार। मैंने सोचा कि अब तो जबरदस्ती करनी ही पड़ेगी।

मैंने रति को और ज़ोर से अपने से चिपका लिया और उसकी चूचियों को बहुत कसके पकड़ लिया। वो मेरी पकड़ से छूट नहीं सकती थी। फिर मैंने अपने लंड को उसकी गांड पर भिड़ाया और एक झटका दिया। लंड तो अंदर नहीं गया, लेकिन वो घोड़ी की तरह हिनहिनाने लगी। मुझे गालियाँ देने लगी, “मादरहोद, मुझे छोड़ दे! क्या मार ही डालेगा आज? मेरी गांड तेरे इस भयंकर लंड को नहीं झेल सकती। अरे, माँ के लोडे, मुझे छोड़ दे!” मैंने रति को समझाया कि हो सकता है इसमें भी मज़ा आए। लेकिन वो समझने को तैयार ही नहीं थी। वो रोने लगी। मैंने उसे चुप कराया। दर्द न होने का आश्वासन दिया। तब जाकर वो मानी।

फिर मैंने देर करना मुनासिब नहीं समझा। नीचे जो रति की चूत का पानी गिरा पड़ा था, उसे मैंने रति की गुदा पर लगाया और थोड़ी उंगली उसकी गांड के अंदर-बाहर भी की, जिससे उसकी छेद थोड़ा मुँह खोल गई। मैंने लंड को भिड़ाया और बहुत तेज़ एक झटका दिया उसकी गांड पर। लंड उसकी गांड को चीरता हुआ उसमें समा गया और वो चीखकर रोने लगी। मैंने उसकी रुलाई पर कोई ध्यान नहीं दिया। मेरे लंड का कुछ हिस्सा अभी बाकी था, सो मैंने एक और ज़ोर का धक्का दिया। इस बार लंड पूरा का पूरा समा गया और मैं उसकी गुदा मंथन करने लगा। उसकी गुदा अंदर से बहुत ही मुलायम और नाज़ुक थी। मैं इतना पागल हो गया कि लंड को अंदर घुसाने के समय खुद को भी अंदर घुसाने की नाकामयाब कोशिश करने लगा। मुझे लगने लगा कि काश ऐसा होता कि मैं रति में ही हमेशा के लिए समा जाता, तो कितना अच्छा होता।

थोड़ी देर बाद रति भी साथ देने लगी। वो गाँड हिलाकर मेरे लंड का मज़ा ले रही थी। उसका सहयोग मिलने से मुझे और मज़ा आने लगा। फिर कुछ 5-6 मिनट बाद मैं झड़ने लगा। झड़ने के बाद मैंने अपना लंड रति की गाँड से निकाला और उसे वैसे ही खड़े होने के लिए कहा। मैं नीचे बैठकर उसकी गुदा और योनि दोनों को अपनी जीभ से साफ करने लगा। उसकी गुदा को खूब चूसा और चाटा मैंने। उसने भी मेरे लंड को चूस-चूसकर साफ किया। मेरी भी थोड़ी-थोड़ी झाँटें निकल आई थीं। मैंने रति से कहा कि वो अपने प्यारे हाथों से इनकी सफाई कर दे, तो उसने मेरी झाँटों को भी शेव कर दिया। फिर उसने मेरे गाँड के बाल भी साफ किए। अब मेरा झाँट क्षेत्र और गुदा, दोनों ही रति की तरह चमक रहे थे।

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मैंने रति के पेट, पीठ और उसकी गुदा में साबुन लगाकर उसे नहलाया। फिर उसने भी मुझे साबुन लगाकर नहलाया। नहाने के बाद मैं उसे नंगे ही अपनी बाहों में उठाकर बेडरूम में ले आया। वहाँ मैंने उसके बदन को तौलिए से बड़े लाड के साथ पोंछा और उसने मेरे बदन को। 12 बजने वाले थे। मैंने उससे कहा, “आज से घर के अंदर तुम कोई कपड़ा नहीं पहनोगी।” मैंने भी अपने लिए यही डिसाइड किया। उसने कहा, “ठीक है।” फिर हम नंगे ही खाना खाने टेबल तक आए। खाना खाकर हम सोने गए गए। रात और सुबह की चुदाई के बाद हम काफी थक चुके थे।

इसी तरह मैं दिन-रात रति के साथ रत रहा। हमारे पास बहुत पैसे थे। मैंने उन्हें बैंक में डाल रखा था। उससे हमें हर महीने इतना इंटरे मिल जा रहा था कि कोई काम करने की ज़रूरत नहीं थी। मैं रति को कहीं भी लेकर नहीं जाता था। बस दिन-रात उसे कुतिया की तरह चोदता था। वो भी खुश थी। जिंदगी में इतनी चुदाई न कभी हुई थी, न होने के आसार थे। मेरे बेटे ने वो कर दिखाया था, जो लगब था असंभव सा था।

कभी-कभी वो मुझसे कहती थी, “क्या राज, आप मुझे कितना प्यार करोगे? दिन-रात करके भी मन नहीं भरता क्या?” मैं कहता, “मेरा मन तुमसे कभी नहीं भर सकता। अगर कोई और मेरी पत्नी होती, तो शायद कुछ दिन में मेरा मन भर जाता। लेकिन तुम तो मेरी माँ भी हो, मेरी पत्नी भी, मेरी रांड भी, मेरी घोड़ी भी, मेरी रखखी भी और मेरी कुतिया भी। अब भला, इतने लोगों को चोदने से मन कैसे भर सकता है? जब माँ और पत्नी कोई एक ही औरत हो, तो उसे चोदने का मज़ा ही कुछ और होता है।” वो कहती थी, “अगर उसे इतनी चुदाई का पता होता, जो मेरे साथ होने वाली थी, तो वो कभी मेरे पापा से शादी ही नहीं करती।” मैंने कहा, “ऐसा मत कहो, माँ। पिताजी ने ही तो मुझे तुमसे पैदा किया है। अगर पापा न होते, तो मैं न होता। फिर तुम्हें लौंडिया बनाकर कौन चोदता करता।” माँ कहने लगी, “आप ठीक कहते हो। आपके पापा ने सही पति धर्म निभाया, जो एक नंबर का मादरहोद बेटा मेरे पास छोड़ गए हैं, जिसकी मैं छिनाल बीवी बन चुकी हूँ।” आज माँ खुलकर बोल रही थी और ये बात मुझे बहुत अच्छी लगी कि चलो, माँ पर मेरा रंग जबरदस्त चढ़ रहा है।

एक बात यहाँ बता दूँ कि रति अब और भी खूबसूरत हो गई थी। वो इतनी हसीन और कामुक हो गई थी कि बस पूछो मत। कोई भी उसे पाने के लिए बेताब हो सकता था और उसका साथ पाने के लिए कोई भी कीमत चुकाने से नहीं चूक सकता था। उसे देखने के बाद कोई भी सबकुछ भूलकर बस उसे पाने के लिए जतन करने लगता, इतनी खूबसूरत और मस्तमौला हो चुकी थी मेरी रति। पर ये खजाना मैं किसी को न दिखाना चाहता था और ना ही बाँटना चाहता था। इसलिए मैं रति को हमेशा घर में ही सारी दुनिया से छुपाकर रखता था। बाहर का सारा काम मैं खुद ही कर लिया करता था। वो मेरी दुनिया में ज़माने से महफ़ूज़ थी। मैं उसका प्रेमी ही नहीं, बेटा भी था। मैं नहीं चाहता था कि उस पर किसी की भी गलत नज़र पड़े, क्योंकि मैं जानता था कि दुनिया कितनी खराब है।

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मैं कह रहा था कि वो पहले से ज्यादा खूबसूरत थी। ये इसलिए, क्योंकि उसके स्तन अब 38 इंच के हो गए थे और उसकी चूतड़ 40 इंच की। उसमें गजब के बदलाव और बहुत तेज़ी से हो रहे थे। अब वो बिल्कुल मिस वर्ल्ड या मिस यूनिवर्स में जाने के लायक हो गई थी। और वो दुनिया की सबसे ज्यादा कामुक योवना बन गई थी, जो सोने पे सुहागा था। अगर औरत में ज्यादा कुछ न हो और वो एकदम कामाकार हो, तो भी वो परिपूर्ण होती है। हर जवान इंसान में कामुकता वाला गुण सबसे ज़रूरी है, क्योंकि कामुकता से ही जवानी की पहचान होती है। सबसे बड़ी छुदखी औरत के जितना रति में चुदाई की कामना का सृजन हो चुका था।

मैं कम से कम उसे 5 बार अवश्य चोदता था 24 घंटे में। मैंने अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए विदेशों से शक्तिवर्धक दवाएँ मँगवाए, जो 6 से 8 महीने के लिए पर्याप्त थीं। वो काम की थीं। वो काम की देवी थी और मैं काम का राजा। 24ों घंटे बस काम ही चलता रहता था हमारे घर में और बस वीर्य-রজ की नदियाँ बहती रहती थीं।

हम हमेशा जवान रहें, इसके लिए भी मैं चिंतित हो गया था, क्योंकि जवानी में ही तो प्यास थी और उसे बुझाने की आस थी। रति तो फिर से जवान हो रही थी, सो मुझे उसकी चिंता नहीं थी, लेकिन मुझे अपने बारे में सोचना ज़रूर था। फिर भी मैंने उसके लिए एक डायटिशियन से कंसल्ट कर लिया था और अपने लिए घर में ही एक जिम खोल लिया था, जिससे मैं हमेशा फिट रह सकँ। विदेशों से ढेरों सप्लिमेंट मँगवाए। मैंने खूब व्यायाम करने लगा, जिससे मैं काफी हेल्दी और मस्कुलर हो गया था और साथ ही मेरी स्टैमिना भी बढ़ रही थी, जिससे मैं रति को एकदम उसके मन मुताबिक संतुष्ट करवा पा रहा था। डायटिशियन को मैंने सख्त हिदायत दी थी कि वो खाने में सिर्फ वही चीज़ें बताए, जिससे रति के जवान होते हुए बदन को मदद मिले, न कि वो मोटी हो जाए। उसे ना थोड़ा भी मोटापा हो, ना ही उसका वज़न बढ़े, मैं इसका पूरा ध्यान रखने के लिए उस डायटिशियन से कह दिया था। मैं चाहता था कि जैसा उसका फिगर था, वैसा ही रहे।

उसके चेहरे पर किसी तरह के कोई दाग-धब्बे न हों, इसलिए मैं हर हफ्ते एक ब्यूटिशियन को घर पर बुला लेता था, जो उसके चश्मे की सुंदरता और बाकी दूसरे अंगों के मेंटेनेंस में मदद कर सके। इतने जतन कर लेने के बाद हम कम से कम 10-15 सालों के लिए बेफिक्र थे।

मैंने सुना था कि औरतों का पिशाब भी मर्दों की जवानी के लिए काफी लाभदायक होता है। मैंने सोचा, क्यों न इसे आज़माया जाए। एक दिन जब मैं रति की चाट को चटक रहा था, तब उसे पिशाब लगने लगी। वो कह रही थी कि उसे टॉयल जाना है। मैंने कहा, “रुको ना, अभी बाद में चली जाना।” वो रुक गई। मैं फिर से उसकी चूत चाटने लगा। थोड़ाी देर बाद फिर कहने लगी, “मुझे जाने दो, वरना मैं यहीं पर टॉइल कर दूँगी।” मैंने उसे फिर रोक लिया और उसकी चाट ता रात।। कुछ 2-3 मिनट बाद जब उससे रहा नहीं गया, तो उठकर भागने लगी टॉइलट की तरफ, तो मैंने उससे उसके चटक पकड़कर अपने मुँह पर बटा दिया और उसे कसके पकड़े रहा। वो मुझे गुस्से से देखने लगी। और मैंने अपने लबों को उसकी चूत पर कस दिया। जैसे ही मेरे होठें उसकी चट चुके, उसने एक मादक अंगड़ाई ली और “आह” करके बड़ाी जोर का पिशाब का फव्वारा मेरे मुँह में छोड़ दिया। फिर एकदम किसी बाढ़ की तरह अनकंट्रोल रिलीज़ से मेरे मुँह में पिशाब करने लगी और उसने अपनी आँखें बंद और होठों को अपने दाँतों से काटने लगी।

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मैं गट-गट करके उसका पिशाब पीने लगा। कुछ देर बाद उसने अपना पिशाब करना बंद किया। मैंने उसकी चट से पिशाब का एक-एक बूँद पी लिया। वो उसी तरह मेरे मुँह पर अपनी चट रगड़-रगदकर आहें भरने लगी। फिर कुछ देर बाद जब वो कुछ सामान्य हुई, तो मुझसे पूछने लगी, “ये मैंने क्या किया?” मैंने उसे कहा, “ये मर्दों के स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक तरल पेय है।” वो कहने लगी, “छी, इतनी गंदी चीज़ और अति आवश्यक? मैं मान ही नहीं सकती!” मैंने कहा, “ऐसे मत कहो, ये तो मेरे लिए एकदम स्वादिष्ट ड्रिंक थी।” वो हैरत से मुझे देखने लगी। फिर कुछ देर बाद पूछने लगी, “कैसा लगता है इसका टेस्ट?” मैंने कहा, “नमकीन और एकदम मसालेदार।” वो कह रही थी कि इसके बारे में मुझे कैसे पता चला। मैंने कहा, “मैंने कहीं पढ़ा था इसके बारे में।” फिर हम यों ही कुछ देर बातें करते रहे।

मैंने उसे बताया कि औरत के पिशाब से लंड की मालिश करने पर लंड और भी मज़बूत हो जाता है, तो वो कहने लगी, “क्या, सच में?” मैंने कहा, “एकदम सच।” तो वो कहने लगी, “तब तो तुम अब रोज़ ही ऐसा करोगे?” मैंने कहा, “हाँ, कोई शक है तुम्हें?” फिर वो कुछ नहीं बोली। मैंने उसे कह दिया कि जब भी उसे पिस्स लगे, वो मेरे पास आ जाए, मैं उसका पिस्स पी लूँगा। मुझे इसमें खुशी होगी। तो उसने कहा, “मैं भी आपका ट्राय करना चाहूँगी।” मैंने कहा, “क्यों नहीं, ज़रूर।” फिर हम चुदाई करने लगे।

रात को जब मुझे पिशाब लगी, तो रति कहने लगी, “अब मेरी टर्न है। मुझे भी टेस्ट करना है कि ये होती कैसी है।” मैंने कहा, “ठीके है।” वो बेड के नीचे बैठ गई और मैं किनारे आ गया। फिर उसने मेरा लंड हाथ में लिया, थोड़ा सहलाने के बाद उसे मुँह में ले लिया। मैं कुछ ही पलों में उसके मुँह में पिस्स करने लगा। उसने सारा पिशा लिया। फिर ये हमारी नित्य की आदत बन गई और और तो और हम एक-दूसरे के पिशाब से एक-दूसरे की चूत-लंड को भी धोने लगे। इससे हुआ ये कि मेरा लंड अब और भी सख्त हो गया और रति की चूत और भी प्यारी और चमकदार हो गई।

अब तक हमें खूटी आए हुए 3½ महीने हो गए थे। इस दौरान मैंने रति को हर आसन में भोगा था। पर अभी एक आसन बाकी था। उससी आसन में मैं आज उसे चोदने वाला था। आज मैंने उसे बहुत ज्यादा उत्तेजित कर दिया था। वो भी चाहती थी कि आज की रात कुछ ज्यादा ही धमाकेदार हो। मैंने उसे अपने हाथों से नंगा किया, फिर उसने मुझे। और मैं उसे अपनी बाहों में उठाकर हॉल में लाने लगा।

हॉल में लाकर मैंने उसे डाइनिंग टेबल पर बठाया। टेबल की हाइट लगीभग मेरी कमर तक ही थी थी। मैंने उसे टेबल के किनारे पर पैर लटकाकर बैठने के लिए कहा। वो आगे की ओर खिस्क आई। मैंने उसके पास जाकर उसके लटकते हुए पैरों को अपने पीछे करके उसे मेरी कमर पर लपेटने कहा। उसने वैसा ही किया। अभी उसके पैरों की पकड़ थो थी ढीली थी थी। फिर मैंने अपने लंड की पोज़िशन ठीक की और निशाना उसकी चूत पर किया। और बड़ी ही सावधानी के साथ उसकी चूत के मुँह पर अपने लंड का सुपारा लगाया। फिर उसकी चूत पर अपने लंड से धक्का दिया। उसकी चूत फोरप्ले के कारण गीली हो चुकी थी, सो लुब्रिकेंट की कोई ज़रूरत नहीं थी और मेरा लंड बिना किसी रुकावट के अंदर उसकी चूत में चला गया। और मैं धीरे-धीरे बड़ी मस्ती के साथ उसकी चूत चोदने लगा।

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एकदम हल्के-हल्के, जिससे हम काफी देर तक न झड़ें। फिर मैंने उसके चूतड़ों को कसके पकड़ा और अपनी स्पीड ज़रा सी बढ़ा दी। अब रति से रहा नहीं जा रहा था। वो भी आगे-पीछे होने लगी। फिर वो मुझसे चिपक गई। उसने अपने हाथ मेरी पीठ पर कस दिए और अपनी ठुड्डी को मेरे कंधे पर रख दिया। अब हम पूरी तरह से चिपके हुए थे। वो बैठी हुई थी और मैं खड़ा। उसकी चूचियाँ मेरे सीने में रगड़ खा रही थीं। और हमारे जाँट प्रदेश एक-दूसरे से घिस रहे थे। फिर इस तरह मैं उसे लगभग 1 घंटे तक सुस्ता-सुस्ताकर चोदता रहा। आज ना वो झड़ रही थी, ना ही मैं। फिर जब उसकी एक्साइटमेंट एकदम बढ़ गई, तो वो अपने नाखून मेरी पीठ में गड़ाने लगी। मुझे दर्द होने लगा और मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी। मैं उसे गालियाँ देने लगा, तो उसने मेरे होठों पर अपनी उंगली रख दी और कहने लगी, “प्लीज़, कुछ मत बोलो।” फिर हम एक साथ झड़ गए।

मैंने उसे टेबल पर ही लिटा दिया और उसी पर जाकर मैं रति के बदन के ऊपर लेट गया और हम एक-दूसरे की साँसें संभालने लगे। अब हम एक-दूसरे के शरीर को सहला रहे थे। फिर हम बेडरूम में आ गए और बातें करने लगे। लगभग आधे घंटे बाद मैंने उसे एक बार और चोदा। और फिर चादर तानकर हम सो गए।

कुछ दिन बाद उसने मुझे बताया कि वो प्रेगनेंट हो गई है। मुझे बड़ी खुशी हुई। मेरी खुशी इस बात से और बढ़ गई क्योंकि एक रिश्ते से तो आने वाला मेरी संतान होगा और दूसर रे रिश्ते से वो मेरा भाई या बहन। मुझे दो-दो खुशियाँ एक साथ मिल रही थीं—एक माँ के प्रेगनेंट होने की और दूसरी बीवी के प्रेगनेंट होने की। और दोनों की वजह मैं ही था। जिस दिन रति ने मुझे ये खुशखबरी दी, हम उस दिन शाम को मंदिर गए और मैंने मंदिर में ढेर सारा दान दिया। रति भी खुश थी कि 47 साल की हो जाने के बाद उसे फिर से एक बार और माँ बनना नसीब हो रहा था, जो आखिरी बार उसकी 30-31 में हुआ था, जब मेरी बहन पैदा हुई थी। वो माँ के साथ दादी भी बनने वाली थी, इसलिए डबल खुशी थी हमारे लिए।

ये खबर मैंने रिया को भी दी। वो भी बहुत खुश हुई कि उसका भी कोई और भाई या बहन आने वाला है, या फिर वो बुआ बनने वाली थी। कुछ दिनों के बाद रिया घर आ गई। हम तीनों बहुत खुश थे। इस बीच मैं रति को खूब चोदता रहा, क्योंकि कुछ दिन बाद ये सब बंद होने वाला था। एक दिन की बात है…

एक दिन की बात है। हम अपनी चुदाई की मस्ती में डूबे हुए थे। रति मेरे नीचे थी, और मैं उसकी चूत में अपने लंड की सैर करा रहा था। हमारी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। तभी अचानक रिया कमरे में दाखिल हो गई। हमने जल्दबाजी में या आदत न होने की वजह से दरवाज़ा बंद नहीं किया था। रिया बेधड़क अंदर चली आई और हमें नंगे, चुदाई के आलम में देख लिया। रिया अब सब समझने लगी थी। हमें उस हालत में देखकर वो हल्के से मुस्कुराई और बोली, “आप लोग जो कर रहे हो, वो करते रहो। मैं बाद में आ जाऊँगी।” इतना कहकर वो अपने कमरे की ओर चली गई।

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हमने जल्दी-जल्दी अपनी चुदाई पूरी की। रति की चूत से मेरा रस टपक रहा था, और मैंने उसकी चूचियों को एक बार और चूसकर उसे शांत किया। फिर हमने कपड़े पहने और रिया के कमरे में गए। रति ने शर्मिंदगी भरे लहजे में कहा, “सॉरी बेटा, हमने ध्यान ही नहीं दिया। पहले जब तू यहाँ नहीं थी, तो हम बिना किसी रोक-टोक के रहते थे। हमें आज़ादी की आदत थी, इसीलिए ये गलती हो गई। तुझे बुरा तो नहीं लगा ना?”

रिया ने हल्के से हँसते हुए जवाब दिया, “माँ, आप कैसी बात करती हो? आप लोग जो कर रहे थे, उसमें गलत क्या है? माफी माँगने की क्या ज़रूरत? आप मेरी माँ भी हो और भाभी माँ भी। भैया का काम है आपको खुश रखना, और आपका धर्म है उनका साथ देना। भैया को भी आपकी खुशी का ख्याल रखना है, और पत्नी के रूप में आपके हर काम में शरीक होना है। आप दोनों अपने कर्तव्य और धर्म को बखूबी निभा रहे हो। मुझे तो इस बात की बहुत खुशी है।”

रति ने गर्व से कहा, “मेरी बेटी और मेरी ननद रिया, तू तो बहुत समझदार हो गई है। वाह, रिया!” रिया ने चहकते हुए जवाब दिया, “आपकी ही तो बेटी हूँ, आपका ही गुण मुझमें है।” रति ने उसे गले से लगा लिया। अब हमें कोई डर नहीं था। हम जब चाहते, चुदाई कर लेते। वैसे भी सर्दियों के दिन थे। रति मेरे बिना कैसे रह पाती? कभी-कभी रिया हमें देख लेती, तो चुपके से वापस चली जाती।

जनवरी में दस दिन रहकर रिया अपने हॉस्टल वापस चली गई। वो हमारे पास एक महीने रही थी। फिर मई में रिया के दसवीं के बोर्ड एग्जाम थे। उसने जी-जान से पढ़ाई की और अच्छे नंबरों से पास हो गई। छुट्टियों में वो जुलाई में फिर हमारे पास आ गई। रति की डिलीवरी में अब बस कुछ ही दिन बाकी थे। रिया ने उसकी पूरी देखभाल की। ठीक 15 अगस्त को रति को दर्द शुरू हुआ। मैंने उसे तुरंत हॉस्पिटल में भर्ती करवाया। अगले दिन सुबह उसने एक बहुत ही प्यारे से लड़के को जन्म दिया। दस दिन बाद हम घर वापस आ गए। 15-20 दिन तक रिया ने हमारी खूब मदद की, फिर वो अपने हॉस्टल चली गई। उसने 11वीं में बायोलॉजी लिया था, क्योंकि वो डॉक्टर बनना चाहती थी। अब घर में हम तीन लोग रह गए थे।

हमने अपने बेटे का नाम रतिराज रखा, जो मेरे और रति के नाम से मिलकर बना था। रति अपने बेटे को अपना ही दूध पिलाती थी। एक दिन जब वो उसे दूध पिला रही थी, तो मुझे वो दृश्य बहुत कामुक लगा। उसकी चूचियाँ, जो दूध से भरी थीं, और रतिराज का मुँह उनसे चिपका हुआ—ये सब देखकर मेरे मन में न जाने कहाँ से दूध पीने की इच्छा जाग उठी। मैंने बचपन में रति का दूध पिया था, लेकिन अब वो एहसास मुझे याद नहीं था। मैं उस अनुभव को फिर से जीना चाहता था। मैंने रति से कहा, “मुझे भी तेरा दूध पीना है।”

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वो हँसते हुए बोली, “अगर तू दूध पिएगा, तो जूनियर राज को मैं क्या पिलाऊँगी?” मैंने कहा, “उसे हमेशा पिलाना, लेकिन मुझे भी थोड़ा सा चखने दे। मैं अपने बचपन के दिन फिर से जीना चाहता हूँ।” वो मान गई। मैं उसके पास बैठ गया। उसने अपनी नाइटी से अपनी भारी-भरकम चूची निकाली और मेरे मुँह में ठूँस दी। मैं बड़े चाव से उसका दूध पीने लगा। उसका दूध गर्म और मीठा था, जैसे अमृत। मेरी माँ का और मेरी बीवी का दूध मुझे फिर से पीने का सौभाग्य मिला। मैं सचमुच खुशकिस्मत था। बचपन में तो हर कोई अपनी माँ का दूध पीता है, लेकिन जवानी में अपनी माँ का दूध पीना—ये नसीब सिर्फ़ मुझे ही था। मैं दुनिया का इकलौता इंसान था, जिसे ये सुख मिला। अब मैं हर दिन कम से कम एक बार उसकी चूची का दूध ज़रूर पीता था। ये सिलसिला छह महीने तक चला।

इस दौरान मैं रति की चुदाई पहले से भी ज़्यादा करने लगा। उसकी चूत अब और रसीली हो गई थी, और मैं हर बार उसे नए-नए तरीकों से चोदता। इस तरह करीब दो साल बीत गए। रिया ने 12वीं पास की, और मैंने उसका दाखिला मुंबई के एक नामी मेडिकल कॉलेज में करवा दिया। अब हमारा बेटा रतिराज भी थोड़ा बड़ा हो गया था। वो चलने लगा था। हम फिर से अपनी ज़िंदगी में मशगूल हो गए। रति और मैं रोज़ ज़्यादा से ज़्यादा चुदाई करना चाहते थे, लेकिन हमारी फ्रीक्वेंसी थोड़ी कम हो गई थी, क्योंकि अब रति को जूनियर राज की भी देखभाल करनी थी। वो उसका पालन-पोषण बहुत अच्छे ढंग से कर रही थी। रति ने मुझे बताया कि जब मैं पैदा हुआ था, तब भी वो मेरी इतनी ही फिक्र करती थी, जितनी आज हमारे बेटे के लिए कर रही है। हम तीनों भाई-बहनों में मैं ही रति की सबसे प्यारी औलाद था।

दो साल और बीतने के बाद मैंने रतिराज को एक हॉस्टल में डाल दिया। रति उसे नहीं भेजना चाहती थी, लेकिन मैंने समझाया, “अगर ऐसा नहीं किया, तो हम चुदाई कैसे करेंगे? मैं 24 घंटे तेरी चूत में कैसे समाया रहूँगा?” तब जाकर वो मानी। हमने रतिराज को एक अच्छे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया।

इसी दौरान हमें पता चला कि मेरे भाई ने हमारा बरेली वाला मकान बेच दिया और वो अमेरिका जाकर सेटल हो गया। उसे वहाँ अच्छी नौकरी मिल गई थी। मैंने सोचा, चलो, उसकी ज़िंदगी भी सेट हो गई। हम अभी तक ऊटी में ही थे। इस समय तक मेरी बहन रिया 20 साल की हो चुकी थी और एमबीबीएस के तीसरे साल में पढ़ रही थी। मेरी उम्र 29 और रति की 51 हो चुकी थी। फिर भी रति पर बढ़ती उम्र का असर न के बराबर था। मुझे इस बात की सबसे ज़्यादा तसल्ली थी।

इसी बीच मैंने सोचा कि ऊटी में रहते हुए हमें बहुत दिन हो गए। कहीं घूमकर आना चाहिए। रति ने कहा, “चलो, क्यों न हम अपनी बेटी से मिलने मुंबई चलें?” उसे अपनी बेटी और ननद से मिलने की बड़ी तमन्ना थी, क्योंकि पिछले चार साल से रिया ऊटी नहीं आई थी। जब भी ज़रूरत पड़ती, मैं ही उसके पास चला जाता था। लेकिन मैं रति को खजुराहो ले जाना चाहता था, ताकि वो उस सेक्सी जगह को देखकर और कामुक हो जाए। खजुराहो में तो पग-पग पर सेक्स ही बस्ता था। वो मुंबई जाने की ज़िद कर रही थी। मैंने कहा, “हम पहले खजुराहो जाएँगे, फिर मुंबई चलेंगे।” उसने कहा, “ये तो और भी बढ़िया है।”

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हम खजुराहो पहुँच गए। वहाँ चारों ओर बस सेक्स ही सेक्स था। खिलौने, गिफ्ट्स—सब कुछ सेक्स से जुड़ा हुआ। हमें कुछ गुप्त यौन आसनों के बारे में पता चला। रति वहाँ पहुँचते ही काम-भावना में डूब गई। वो और कामुक और गर्म हो गई। हम वहाँ दस दिन के लिए गए थे। पहले दो दिन हम खूब घूमे-फिरे। फिर अगले आठ दिन हम होटल के कमरे से बाहर ही नहीं निकले। उन आठ दिनों में मैंने रति को हर आसन में कम से कम 50 बार चोदा। मैं उसे दिन-रात चोदता रहा। उसका मुँह, चूत और गांड—सबको मैं अपने पानी से नहलाता रहा, और वो अपनी चूत के रस से मेरे लंड को भिगोती रही। इस महा-चुदाई से हम पूरी तरह थक गए। पिछले चार साल में जो भी चुदाई छूटी थी, उसका हिसाब-किताब हमने खजुराहो में बराबर कर दिया। रति और खिल गई। लगता था जैसे वो अब तीस की होने जा रही हो। फिर हम वहाँ से मुंबई पहुँचे।

मुंबई पहुँचने के बाद हमने पहले दो दिन सिर्फ़ आराम किया। मैंने समंदर के किनारे एक शांत जगह पर रिज़ॉर्ट में कॉटेज बुक किया था। लगातार चुदाई और सफ़र की वजह से हम थक गए थे। वहाँ हमने रिज़ॉर्ट की सारी सुविधाओं का लुत्फ़ उठाया—स्टीम बाथ, मसाज, सब कुछ। तीसरे दिन हम तरोताज़ा हो गए। मैंने रिया को फोन करके रिज़ॉर्ट में ही बुला लिया। वो शाम को आ गई।

पिछले चार साल में मैं उससे सिर्फ़ दो बार मिला था—एक बार 11वीं के एडमिशन के वक़्त और दूसरी बार कॉलेज के एडमिशन के वक़्त। रति तो उससे बिल्कुल नहीं मिली थी। जब रिया हमारे कॉटेज में आई, तो मैं उसे देखता रह गया। वो रति की तरह ही खूबसूरत हो गई थी। पहले वो रति से गले मिली, उनके चरण छुए। फिर मेरे पास आई। वो मुझसे लंबी लग रही थी। इन दो सालों में उसका शरीर तेज़ी से विकसित हुआ था। उसकी हाइट लगभग 5 फीट 9 इंच थी। उसके नैन-नक्श तेज़ और आकर्षक हो गए थे। वो अब बच्ची नहीं, बल्कि एक जवान, कामुक यौवना लग रही थी।

रिया ने जींस और टी-शर्ट पहनी थी। जींस उसकी चूतड़ों और जाँघों से चिपकी हुई थी, जिससे उसके निचले हिस्से की बनावट और कटाव साफ़ झलक रहे थे। ऊपर की टी-शर्ट भी उसके बदन से सटी थी। उसके वक्ष उस टी-शर्ट को फाड़कर बाहर आने को बेताब थे। उसके निप्पल्स साफ़ दिख रहे थे, क्योंकि टाइट टी-शर्ट में वो उभरे हुए थे। उसका पेट एकदम सपाट था, कहीं ज़रा सी भी चर्बी नहीं। उसके बाल रति की तरह लंबे और घने थे। उसकी त्वचा दूध-सी गोरी थी। वो किसी हॉलीवुड मॉडल या एक्ट्रेस मेगन फॉक्स की तरह लग रही थी। उसकी गुलाबी लिपस्टिक लगे होंठ रति की चूत की फांकों जैसे कामुक थे। उसे देखकर मैं मादकता से भर गया।

जब वो मेरे पास आई, तो वो मेरे पैर छूने लगी। मैंने झुककर उसे उठाया और कहा, “रिया, तू मेरी बेटी ही नहीं, मेरी छोटी बहन भी है। मेरे पैर मत छू, मुझसे गले मिल।” इतना कहकर मैंने उसे अपने सीने से लगा लिया। ओह, क्या गर्मी थी! जैसे ही वो मुझसे सटी, मेरा लंड उछलने को बेताब हो गया और पानी छोड़ने लगा। मेरी अंडरवियर गीली हो गई। उसकी चूचियाँ, जो पत्थर की तरह सख्त थीं, मेरे सीने में गड़ रही थीं। उसके निप्पल्स, जो कांटों की तरह चुभ रहे थे, मेरे सीने को चीर रहे थे। मैं कामुकता के चरम पर था।

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मैंने रिया को और कसकर गले लगाया और अपने हाथ उसके चूतड़ों पर रखकर दबाने लगा। रति बोली, “तुम दोनों भाई-बहन बातें करो, मैं अंदर से अभी आती हूँ।” वो अंदर चली गई। मैं निश्चिंत हो गया। मैंने रिया के वक्षों को अपनी छाती से रगड़ना शुरू किया। वो और करीब आ गई। मैंने उसके चूतड़ों को सहलाया, फिर अपने हाथ उसकी पीठ पर ले गया। वो भी मेरी पीठ सहला रही थी। मैं धीरे-धीरे उसकी ब्रा की स्ट्रैप को छेड़ने लगा। थोड़ी देर बाद मैं उससे अलग हुआ और उसके गाल पर एक चुम्बन दिया। फिर एक हल्की-सी चपत लगाकर नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा, “क्यों रे, हमसे मिलने एक बार भी नहीं आ सकती थी तू?”

वो बोली, “भैया, सॉरी पापा! मैं हमेशा आना चाहती थी, लेकिन हर बार कोई न कोई प्रॉब्लम आ जाती थी।” फिर उसने अपने कान पकड़कर माफी माँगी। तभी रति वापस आ गई। उसने रिया को कान पकड़े देखा और बोली, “छोड़ दे अपना नाटक, चल जल्दी से कुछ खा ले। मैंने ऊटी से तेरे लिए बनाकर लाया है।” हम सबने मिलकर रति के बनाए स्वीट स्नैक्स खाए।

रति मेरे बगल में बैठी थी, और रिया मेरे सामने। रिया बोली, “आप दोनों की जोड़ी कितनी प्यारी लगती है। माँ, आप 50 की हो गई हो, लेकिन मेरी बड़ी बहन से ज़्यादा नहीं लगती। बताओ ना, भैया ने अमेरिका में आपके साथ क्या करवाया?” रति ने हँसते हुए कहा, “सुन, तेरा भाई मुझे पति बनाना चाहता था। लेकिन मैं तो बूढ़ी हो रही थी। भाई किसी बूढ़ी औरत से शादी करेगा? सो, उसने मुझे फिर से जवानी दिलाई। इलाज़ करवाया, ताकि वो तेरा पिता बने और मेरे साथ पति-पत्नी का रिश्ता निभाए।”

रिया ने कहा, “भैया ने बिलकूल ठीक किया। काश, राहुल भैया भी ये बात समझ पाते। आपने माँ का ऑपरेशन करवाकर उन्हें जीने की नई चाह दी। आप कितने अच्छे हैं, भाई। मेरा मतलब है, मेरे पापा।” फिर हम एक घंटे बाद घूमने गए। घूमते वक्त ही हमने खाना खा लिया। रिज़ॉट्स में लौटकर मेरा मन रति के साथ मस्ती करने का हुआ। रिया अपने कमरे में चली गई। मैंने रति को अपने कमरे में लाकर दरवाज़ा लॉक कर दिया।

मैं रति से कामुक बातें करने लगा। उसकी आँखों में वासना चमकने लगी। वो मेरे पैंट के ऊपर से मेरे लंड को सहलाने लगी। मैं समझ गया कि उसकी चुदास जाग चुकी है। मैंने उसकी चूत फड़क रही है। मैंने उसके कपड़े उतारने शुरू किए। अभी मैंने उसे मेरे कपड़े उतारने को कहा ही था कि दरवाज़े पर खट-खट हुई। हमारे अलावा कॉटेज में सिर्फ़ रिया थी। मैंने पूछा, “क्या हुआ, रिया?”

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वो बोली, “पापा, दरवाज़ा खोलो।” मैंने मैंा, “जा सो जा, रिया। हम कुछ ज़रूरी बात कर रहे हैं।” उसने जवाब दिया, “मुझे सब पता है, आप लोग कैसी ज़रूरी बात कर रहे हैं। मुझे भी वो बात सुननी है।” मैंने कहा, “हम सुबह तुहें सब बता देंगे।”।” लेकिन वो ज़िद करने लगी, “आप अभी दरवाज़ा खोलो, मुझे कुछ नहीं सुनना।”।” मैंने रति को चादर से ढकने को कहा और दरवाज़ा खोला।

सामने रिया एक बेहद सेक्सी नाइटी में खड़ी थी। मैंने पूछा, “क्या बात है?” वो सीधी अंदर चली आई और बोली, “अब करो वो ज़रूरी बात, जो आप लोग कर रहे थे।” मैंने कहा, “ज़हा बकवास मत कर। तुझे नहीं पता हम क्या करने वाले थे?” उसने जवाब दिया, “मैं वो ही देखना चाहती हूँ कि आप दोनों क्या करने वाले थे।” मैंने कहा, “ये नहीं हो सकता।” वो बोली, “मैं बिना देखे यहाँ से हिलने वाली नहीं हूँ।”

रति ने भी गुस्से में कहा, “क्या मज़ाक कर रही है तू, रिया? जा ना, हमें हमारा काम करने दे।” लेकिन रिया नहीं मानी। वो बोली, “मैं इस वक़्त आपकी बेटी नहीं। मैं, आपकी ननद बनकर आई हूँ। मुझे अपने भैया और भाभी की रासलीला देखनी है।” रति और गुस्सा हो गई। “तू अपने भैया-भाभी को नंगा देखना चाहती है? अपनी माँ और पापा को सेक्स करते देखना चाहती है? बोल! देख, राज, ये कितनी बेशर्म हो चुकी है।”

मैंने बात संभाली, “देख रति, ये आज मानने वाली नहीं। हम क्यों अपना मज़ा और रात खराब करें? अगर इसे देखना है, तो दूर से देख ले। बोल, रिया, मंज़ूर है?” रिया ने कहा, “ठीक है, मैं सोफे पर बैठकर देखूँगी। अब तो कुछ करो ना, मुझे बड़ी बेसब्री है।”

रिया सोफे पर बैठ गई और हमें देखने लगी। मैं अपनी बेटी के सामने उसकी माँ को चोदना नहीं चाहता था, लेकिन क्या करता? और रिया उस क्रीम रंग की नाइटी में इतनी सेक्सी लग रही थी कि मैं उसे जाने भी नहीं देना चाहता था। उसकी नाइटी ज़रा-सी ट्रांसपेरेंट थी, जिसमें उसकी सफ़ेद ब्रा और पैंटी साफ़ दिख रही थी। उसकी चूचियाँ रति से थोड़ी छोटी थीं, शायद 34 इंच की, लेकिन वो रति से कम नहीं थी।

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जब वो बैठ गई, मैंने रति से कहा कि चादर हटाए। वो शरमा रही थी। अपनी जवान बेटी के सामने नंगी होने में उसे संकोच हो रहा था। रिया बोली, “कोई बात नहीं, भाभी, चादर हटाओ। मैं आपकी ननद ही तो हूँ, कोई गैर थोड़ी।” फिर भी रति ने चादर नहीं हटाई। मैंने उसके पास जाकर चटाक से चादर खींच दी।

अब रति का ख़ज़ाना रिया की आँखों के सामने था। रिया आश्चर्य से उसे देखने लगी। बोली, “मॉम, आप तो मुझसे भी ज़्यादा सेक्सी हो, इतनी खूबसूरत! कोई भी आप पर मर मिटे। आप तो किसी पॉर्न मॉडल जैसी लग रही हो। तभी तो भैया आपके दीवाने हैं।” रति ने शर्म से आँखें बंद कर लीं। रिया बोली, “सच में, मॉम?” रति ने धीरे से आँखें खोलीं और शरमाते हुए कहा, “सच में, रिया?” रति अंदर ही अंदर खुश थी और हल्के से मुस्कुराई।

मैंने रति से मेरे कपड़े उतारने को कहा। वो शर्म के मारे पास ही नहीं आ रही थी। रिया बोली, “क्या मैं भैया के कपड़े उतार दूँ?” रति ने तपाक से कहा, “चुप कर, मैं अभी ज़िंदा हूँ। मैं खुद खोलूँगी।” रति मेरे पास आई और मेरे कपड़े उतारने लगी। अब मैं सिर्फ़ अंडरवीयर में था। रति ने उसे भी उतार दिया। मेरे लंड को देखकर रिया ने आँखें बंद कर लीं। मैंने कहा, “क्या शरमा रही है, मेरी बेटी? अपने पापा को देखकर? तुझे तो सब देखना था, अब शरमाने से काम नहीं चलेगा।”

उसने आँखें खोलीं और मेरे लंड को गौर से देखते हुए बोली, “कितना बड़ा है, पापा!?” मैंने हँसते हुए कहा, “तभी तो मैं तेरे लिए एक और बहन पैदा कर सकूँगा।” फिर मैंने रति को स्मूच करना शुरू किया। रति भी मुझे चूमने-चाटने लगी। हम दोनों आमने-सामने खड़े थे। मेरा लंड रिया को देखते ही जोश में खड़ा हो गया था।। हम चूमाचाटी करते हुए बेड पर गए।

मैंने रति को चित लिटाया और उसकी टाँगों के बीच में आ गया। रिया को कुछ दिख नहीं रहा था, क्योंकि वो मेरे पीछे थी। वो खुद ही रति के सिर के पास आकर बैठ गई और उसके बालों को सहलाने लगी। मैंने रति की दोनों टाँगें अपने कंधों पर रखीं और उसकी पीठ के नीचे दो तकिए रखे। फिर मैंने रिया से ड्रेसिंग टेबल से क्रीम लाने को कहा। वो ले आई। मैंने क्रीम लेकर थोड़ा अपने लंड पर लगाया और थोड़ा रति की चूत पर। फिर पोज़िशन बनाकर मैंने रति की चूत में एक ज़ोरदार धक्का मारा।

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रति को बहुत तेज़ दर्द हुआ। मैंने बहुत कम बार ऐसा किया था कि एक ही बार में पूरा लंड उसकी चूत में पेल दूँ। आज रिया को देखकर मैं ज़्यादा जोश में था। मेरा लंड और फूल गया था, जिससे वो और बड़ा हो गया था। रति चीखने-चिल्लाने लगी। रिया को उसकी हालत पर मज़ा आ रहा था। उसके होठों पर हल्की-सी मुस्कान थी, जिसे मैंने देख लिया। वो रति को पुचकारने लगी और अपनी एक उंगली रति के मुँह में चूसने के लिए दे दी।

मैं रुका नहीं। मैं तेज़-तेज़ झटके मारने लगा। रति की चूत से फच-फच की आवाज़ें आ रही थीं, जो रिया को और उत्तेजित कर रही थी। थो में रति झड़ने लगी। मैंने धक्के और तेज़ कर दिए। रिया तक पूरी तरह मस्त हो चुकी थी। फिर मैं और रति एक साथ डिस्चार्ज हो गए। मैं रति पर गिर पड़ा। रति ने अपने मेरी मेरी पीठ सहलाए। पता नहीं रिया को क्या हुआ, वो भी मेरी पीठ सहलाने लगी और नाखूनों से खुरचने लगी, जिससे मेरी पीठ पर खरोंचें पड़ गईं। रति ने अपनी जाँघों से मेरी कमर जकड़ थी थी।

थोरी देर बाद, मैंने रति की चूत चाटकर साफ की। रति ने मेरे लंड को अपने मुँह से साफ किया। उसके चूसने से मेरा लंड फिर खड़ा हो गया। रति बोली, “मैं बहुत थक गई हूँ, मुझे नींद आ रही है।” मैंने कहा, “ठीक है, तू सो जा। मैं रिया को उसके कमरे तक छोड़कर आता हूँ।” उसने कहा, “जल्दी आना।” मैं नंगा ही रिया को लेकर बाहर निकला।

बाहर आते ही रिया मुझसे चिपक गई। मुझे अच्छा लगा, लेकिन मैंने नाटक करते हुए डाँटा, “ये सब क्या है?” वो बोली, “पता नहीं, मुझे क्या हो गया है। मैं बहुत अलग महसूस कर रही हूँ।” मैंने कहा, “ऐसा होता है, ये सब देखकर. जो तूने देखा, उससे किसी की भी हालत तेरी जैसी हो जाएगी।” जब मैं उसे उसके कमरे में छोड़कर जाने लगा, वो बोली, “पापा, प्लीज़, मुझे ऐसे छोड़कर मत जाओ।” मैंने कहा, “रिया, कंट्रोल कर। मैं अब रिश्ते में तेरा बाप हूँ।” फिर मैं उसे छोड़कर रति के पास वापस आ गया।

रति सो चुकी थी। मैं उससे चिपककर लेटा और मेरा लंड उसके हाथ में थमा दिया। रात तीन बजे वो ती। मेरे लंड को अपने हाथ में देखकर वो सनसनाई। वो मेरे लंड से खेलने लगी, फिर उसे मुँह में लेकर चूसने लगी। मैं जाग गया। मैंने कहा, “क्या कर रही है?” वो बोली, “मुझे प्यास लगी है, थोड़ा पानी पीना चाहती हूँ।” मैं जोश में आ गया। मैंने कहा, “रुक, कुतिया, मैं तुझे अभी पानी पिलाता हूँ!”

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मैंने उसे बेड पर पटका और उस पर चढ़ गया। उसके दोनों पैर मैंने अपनी बगल में फैलाए और उसकी चूचियों पर झुक गया। उसकी चूचियों को पकड़कर एक-दूसरे से सटाया, जिससे उनके बीच एक छोटी-सी जगह बन गई। रति के हाथ मेरे चूतड़ों को थामे हुए थे। मैंने अपने लंड को उस जगह में पेला और शुरू हो गया। धीरे-धीरे लंड को अंदर-बाहर करने लगा। थो में मैं तेज़ हो गया। रति की चूत गीली हो गई। मैं रात में नहीं झड़ा था, सो अब झड़ने को था। कुछ ही झटकों में मैंने सारा वीर्य रति चूचियों पर उड़ेल दिया। एक-दो पिचकारी उसके मुँह में भी गई। मैंने लंड को उसकी निप्पल्स और नाभि पर रगड़ा। वो मेरे वीर्य का चटखारा लेने लगी। मैंने अपने हाथों से सारा वीर्य उसके रे पर मला और उसकी मालिश की। उसकी चूचियों को वीर्य से दूहा।

फिर मैं नीचे आया और उसकी चूत में चार उंगलियाँ डालकर तेज़ी से अंदर-बाहर करने लगा। मेरा मुँह उसकी चूत पर था, मैं उसे जीभ से चोद रहा था। थो में वो मेरे मुँह में झड़ने लगी। मैंने सारा रस पी लिया और उसकी चूत को चाटकर सुखा दिया। फिर उससे लिपटकर सो गया। मैंने दरवाज़ा बंद नहीं किया, ताकि रिया हमें सोये हुए देखे और रति से जलन महसूस करे। मैं चाहता था कि मेरे लिए उसकी तड़प बढ़े।

अगले दिन दो बजे हम उठे। रिया हमारे लिए चाय लाई। हमें चिपके देखकर वो जल-भुन गई। उसे और जोश आया। उसने फिर एक सेक्सी नाइटी थी थी। हमें जगाकर चाय देते दे बोली, “कितनी देर तक सोते हो आप लोग? क्या मेरे जाने के बाद भी बी सब करते रहे?” हम दोनों हँसने लगे। मैंने रति को अपनी गोद में खींच लिया और रिया के सामने उसकी चूचियाँ मसली। रति बोली, “क्या करते हो, जी? तुम्हारी बेटी देख रही है।” मैंने कहा, “तो क्या हुआ? उसने तुझे मुझसे चुदते। देख लिया है, जानम!”

नहा-धोकर हम घूमने निकले। मैंने रति के लिए शॉपिंग की। उसे ढेर सारे लेटेस्ट फैशन के सेक्सी कपड़े दिलाए। 5-10 साड़ियाँ भी खरीदीं। फिर मैंने रिया से पूछा कि उसे कुछ चाहिए? उसने कहा, “आपका जो मन करे, ले लो।” मैंने उसके लिए एक वन-पीस लिया, जो छोटी-सी नाइटी जैसा था, मुलायम और स्ट्रेचेबल। एक मस्त बिकिनी भी उसके साइज़ की खरीदी। फिर हम वापस आ गए।

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ऊटी पहुँचकर हमने कुछ दिनों तक आराम किया। फिर हमें याद आया कि हम अपने बेटे से बहुत दिनों से नहीं मिले। अगले ही रत रज्ज के स्कूल गए।। रति उसे देखकर बहुत खुश हुई। वो भी रति को देखकर उछल पड़ा। सारा दिन घूमने के बाद हमने उसके लिए ढेर सारे कपड़े और खिलौने खरीदे। शाम को उसे स्कूल छोड़कर हम अगले दिन ऊटी आ गए। फिर हमारी चुदाई लीला शुरू हो गई। मज़े में दिन कट रहे थे। रति मुझसे पूरी तरह संतुष्ट थी।

इस तरह दो साल और बीत गए। करवाचौथ का दिन था। मैं रति के लिए कुछ गिफ्ट खरीदना चाहता था। इंटरनेट पर देखा कि लोग अपनी पत्नी या गर्लफ्रेंड को क्या देते हैं। पता चला कि सेक्स टॉयज़ भी बाज़ार में उपलब्ध हैं, जिन्हें पाकर औरतें बहुत खुश होती हैं। मैंने एक वाइब्रेटर का ऑर्डर दे दिया और उसे लेने के लिए सेक्स टॉयज़ की दुकान पर गया। मैं 7 इंच का ऑटोमैटिक वाइब्रेटर ले आया।

शाम को मैं छत पर गया। रति पहले से थी। उसने मरून साड़ी और सब कुछ मैचिंग पहना था। उसने छलनी से चाँद को देखा, फिर मुझे देख। मेरी आरती उतारी। मैंने उसे पानी पिलाया तो उसका उपवास टूटा। फिर मैंने उसे गोद में उठाया और सब छोड़कर उसे नीचे बेडरूम में ले आया। बेड को मैंने फूलों से सजाया था। मैंने उसे अपने हाथों से खाना खिलाया। फिर हमने पुराने ढंग से चॉकलेट खाई। वो चुदास से भर गई थी। मैं भी बहुत सेक्सी मूड में था। मैंने उसके सारे कपड़े उतारे। खुद भी नंगा हो गया।

हम चूमाचाटी करने लगे। मैंने उससे कहा, “मैं तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ।” वो उत्सुक हो गई। मैंने वाइब्रेटर दिखाया। उसने पूछा, “ये क्या है?” मैंने कहा, “ये एक ऑटमैटिक लंड है, जो मेरे न होने पर तेरी की प्यास बुझाएगा। तुझे किसी और लंड की ज़रूरत न पड़े। आज यही तेरी चूत की पूजा करेगा।”

मैंने उसे लेटने को कहा और उसकी चूत के साथ छेड़खानी शुरू कर दी। जब वो लंड खाने को तैयार हो गई, मैंने वाइब्रेटर चालू किया और उसकी चूत पर लगाया। उसे गुदगुदी हुई। धीरे से मैंने वाइब्रेटर को उसकी चूत में उतारा। वो आनंद में सिसकने लगी। मैं रुका और वाइब्रेटर को उसकी चूत में अंदर-बाहर करने लगा। 15-20 मिनट तक वो तीन बार झड़ी। मैंने उसका सारा पानी पी लिया।

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फिर मैंने उसकी गांड फाड़ने की सोची। मैंने उसे पेट के बल लिटाया। पहले उसकी गांड को उत्तेजित किया। वो डरने लगी, “ये क्या कर रहे हो?” मैंने कहा, “कुछ नहीं, आज तुझे अलग मज़ा दूँगा।” धीरे-धीरे उसकी गुदा ने मुँह खोला। जैसे ही वो तैयार हुई, मैंने वाइब्रेटर को उसकी गांड में फिट किया और उसे सहलाने दिया। रति ने खुद डिल्डो को अपनी गांड में अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। उसे दर्द और मज़ा दोनों हो रहा था। वो दर्द भूलकर तेज़ी से डिल्डो चलाने लगी। थो में वो फिर झड़ी। पाँच मिनट तक उसका फव्वारा छटता रहा। उसका रस चादर पर गिर रहा था।

मैं उसकी पीठ चाटने लगा। वो पलटी और वाइब्रेटर को गांड से निकालकर मुँह में ले लिया। उसे मुँह में चोदते हुए फिर झड़ी। मैंने पूछा, “कैसा लगा?” वो बोली, “तेरे लंड से ज़्यादा मज़ा देता है।” मैं थोड़ा मायूस हुआ। वो मेरी पीठ से अपनी चूचियाँ रगड़ते हुए बोली, “मज़ाक कर रही थी। तेरा लंड मेरी चूत का भगवान है। उससे ज़्यादा मज़ा कौन दे सकता है?”

मैंने उसे गोद में लिया और कहा, “ये तेरे लिए लाया था, ताकि तेरा टेस्ट चेंज हो। मैं बस तुझे खुश देखना चाहता हूँ।” उसने कहा कि वो अपने पति से बहुत खुश है। फिर वो वाइब्रेटर की तारीफ करने लगी, “ऐसा अनुभव तो हमारी सुहागरात में हुआ था।” मैंने कहा, “इसीलिए लाया, ताकि हर बार तुझे सुहागरात का मज़ा मिले।” मैंने कहा, “तू चार बार झड़ चुकी, अब मेरा क्या?” वो बोली, “मैं हूँ ना। आज मैं तुझे चोदूँगी।”

मैंने पूछा, “वो कैसे?” वो बोली, “बस देखते जाओ।” उसने मुझे धक्का देकर बेड पर गिराया। फिर मुझे चूमने-चाटने लगी। मेरे पूरे बदन को चाटकर मुझे उत्तेजित कर दिया। फिर मेरे लंड को चूसने लगी। मेरा लंड छत की ओर खड़ा हो गया। वो मेरी कमर के ऊपर खड़ी हो गई। अपने मेरे मेरे किनारों पर रख रख, मेरे लंड पर फटाक से बैठ गई। मेरा लंड उसकी चूत की दीवारों को चीरता हुआ अंदर समा गया।

वो बड़बड़ाने लगी, “हाय दैया, मैं तो मर गई! मेरी जान निकल गई! इस कमबख्त लंड ने क्या किया!” फिर संभलकर अपने चूतड़ ऊपर-नीचे, आगे-पीछे करने लगी। कभी तेज़ी से, कभी धीरे-धीरे मुझे चोदने लगी। वो मेरी ओर झुकी और मेरे होंठ चूसने लगी। उसकी चूचियाँ मेरे निप्पल्स से रगड़ खा रही थीं। मुझे लगा जैसे कोई मुझे लड़की बनाकर चोद रहा है।

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ज़िंदगी में पहली बार ऐसा अनुभव हुआ। मैं सोच रहा था, माँ कसम, अगर हर माँ मेरी माँ जैसी हो, तो हर बेटा यही चाहेगा कि उसकी पत्नी कोई और नहीं, उसकी माँ हो। जो उसे जन्म दे, उसे पाले-पोसकर बड़ा करे, ताकि उसका लंड उसकी बूढ़ी हो चली चूत को चोदकर फिर से जवान कर दे। मेरी माँ ने मुझे आज जो सुख दिया, मैं काम-वासना का देवता बन गया। स्वर्गीय अनुभव था ये, इतना कि मैं बयान नहीं कर सकता। बस यही कहूँगा कि मेरी माँ मुझे यों कियामत तक चोदते रहे! आह… आह… ऊह!

मैं झड़ने वाला था। मैंने उसे कसकर पकड़ा। वो तेज़-तेज़ झटके मारने लगी। पहले मैं झड़ा, फिर दस धक्कों बाद वो। उसकी चूत में हमारा अमृत टपकने लगा। वो मेरे सीने पर लुढ़क आई। हम वैसे ही सुस्ताने लगे। फिर पता नहीं कब नींद आ गई। सुबाह आँख खुली, तो वो मेरे ऊपर सोई थी, मुझे जकड़े हुए। मेरा लंड उसकी चूत में ही सोया था। मेरी माँ की पनाह मिली थी। मेरे लंड को उसकी चूत का घर मिला, जो भगवान ने मुझे सौंपा था।

मैंने उसे और कसकर जकड़ा और उसी हाल में बाथरूम ले आया। वहाँ उसकी नींद टूटी। मैंने शावर चालू कर दिया। हम नहाने लगे। थोड़ी देर बाद उसने कहा कि उसे टट्टी आ रही है। मैंने कहा, “कोई बात नहीं, खड़े-खड़े कर दे।” मैंने शावर की स्पी़ ड बढ़ा दी। उसने टट्ट शुरू कर दी। टट्टा जब उसकी गांड से निकलता था, वो बेहद सेक्सी लग रही थी। वो “आह” की कामुक आवाज़ें निकाल रही थी। मैं नीचे झुका और उसकी गुदा देखने लगा। पीला-गीला मल उसकी गांड से निकल रहा था। फिर मैं उसके पास सट गया। वो आनंद में डूबी थी। मैंने उसकी चूचियों पर हाथ फेरना शुरू किया। उसकी गांड की खुशबू से बाथरूम महक रहा था। हम दोनों उत्तेजित थे। सारा मल नाली में चला गया।

मैंने उसे नहलाया, फिर खुद नहाया। हम बेडरूम में आए। मैंने उसका शारीर पोंछा और उसे नंगा ही किचन में खाना बनाने भेज दिया। तभी रिया का फोन आया। उसने बताया कि उसका प्लेसमेंट ब्राज़ील के एक हॉस्पिटल में हो गया है। उसे साल में एक करोड़ रुपये, एक अच्छा घर और सारी सुविधाएँ मिलेंगी। मैंने कहा, “जल्दी यहाँ आ जा।” वो 2-3 दिनों में ऊटी आ गई।

वो रात को पहुँची। मैंने रति को नहीं बताया था कि रिया आने वाली है।। उसे रिया को देखकर आश्चर्य हुआ और खुशी भी। उसने पूछा, “अचानक कैसे आना हुआ?” रिया ने कहा, “मेरी पढ़ाई पूरी हो गई है, और मुझे ब्राज़ील में अच्छी जॉब मिल गई है।” हमने खाना खाया। रात दस बजे हम बातें करने बैठे। रिया बोली, “मम्मी, तुम भी मेरे साथ ब्राज़ील चलो। वहाँ बहुत मज़ा आएगा।”

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रति ने कहा, “वो तो ठीक है, लेकिन तेरे पापा का क्या होगा?” रिया बोली, “उन्हें भी ले चलते हैं, और मुनना को भी। तुम सब चलो, हमेशा के लिए।”। मुझे इतने पैसे मिलेंगे कि कोई दिक्कत नहीं होगी।” मुनना का दाखला वहाँ के अच्छे स्कूल में करवा देंगे।”

हमारे पास पासपोर्ट थे, बस मके का बनवाना था। हमने ऊटी वाला घर बेचकर पैसे बैंक में जमा किए और रते को लेने स्कूल गए। मेरा बटा छह साल का हो गया था। हम दिल्ली आ गए। वहाँ हमें एक महीना रहना था, क्योंकि वीज़ा मिलने में समय लगता है। एक महीने बाद वीज़ा और मके का पासपोर्ट बन गया। फिर हम ब्राज़ील के लिए रवाना हो गए।। अगले दिन हम साओ पाउलो में थे, जो ब्राज़ील का बड़ा और खूबसूरत शहर था।

ब्राज़ील में सेटल होने में ज़्यादा समय नहीं लगा। मैंने रज को कुछ देरों तक हमें रिया साथ रखा, ताकि उसे माँ और बुआ का ढ़ेर सारा प्यारर मिले। फिर उसे एक बोर्ड में डाल दिया। अब हम तीन लोग घर में रह गए। रिया ने अपनी जॉब शुरू कर दी। मैंने बैंक से अपने करीब 8.4 करोड़ रुपये ब्रजील ट्रक करवाए।।

रति को अब रिया की शादी की चिता साने लगी थी। वो चाहती थी कि रिया भी सेटल हो जाए। लेकिन मैं ऐसा नहीं चाहता था। मैं तो अपनी बहन को चाना चाहता था और उसे अपनी रखल बनाकर रखना चाहता था। वो इतनी खूबसूरत और से थी थी कि मैं उसे किसी और के हवाले नहीं कर सकता था। अगर वो शादी कर लेती, तो मेरे मंसूबों पर पानी फिर जाता।

रति ने एक दिन रिया से इस बारे में बात की, तो रिया ने साफ़ मना कर दिया। मैंने मुंबई में इसलिए उसके साथ संभोग नहीं किया, क्योंकि मैं उसकी प्यास और बढ़ाना चाहता था और उसे चुदाई के लिए तैयार करना चाहता था। लेकिन अब समय आ गया था कि मैं उसे चखूँ और उसकी सवारी करूँ। इन दो सालों में वो और खुल गई थी, और विकसित।। उसका यौवन चरम पर था।

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इस समय उसके रिया के 38 इंच और नितंब 36 इंच के हो गए थे। वो पूरी तरह परिपक्व थी। रति और मेरी चुदाई को वो दर्शक की तरह देखने आती थी। मुझे लगने लगा कि मेरे लिए उसकी प्यास अब हद से ज़्यादा बढ़ चुकी है। लेकिन मैं उसे अकेले में चोना चाहता था।। मैं मौके का इंतज़ार करने लगा।

ऐसा मौखा गया। एक बार रति का एक्सीट हो गया। वो सीढ़ियों से गिर गई। उसे गंभीर चोटें थी।। हम उसे तुरंत रिया के हल में में लेते गए। वो बच हकी थी, थी, थीकी उसे एक महीना हॉस्पिटल में रहना था। जिस दिन ये दुर्घटना हुई, मैं और रिया पूरे दिन और रात हॉस्पिटल में रहे। अगले दिन डॉक्टर ने हमें घर जाने को कहा, क्योंकि रति की हालत कंट्रोल में थी।

हम घर आ गए। रिया मुझे छूना चाहती थी। मैं उस पल का इंतज़ार कर रहा था। रिया ने मुझे फँसाना शुरू किया। मैं सोच रहा था कि मेरा काम आसान हो रहा है। मुंबई में जब मैंने उसे डाँटा था, उसके बाद उसने मेरे साथ कोई ऐसी-वैसी हरकत नहीं की थी। लेकिन अब वो शायद रति की ग़ैरमौजूगी में हिम्मत कर रही थी।

जब हम घर आए, वो फ्रेश होने बाथरूम गई। नहाते वक़्त उसकी आवाज़ आई। मैं बवाल के दरवाजे पर गया। उसने कहा कि मैं उसके कमरे से उसकी अंडरगारमेंट्स ले आऊँ, वो जल्दी में भूल गई थी। मैं उसके कमरे में गया और एक काली ब्रा और नेट वाली पैंटी लाया। मैंने दरवाज़े पर आवाज़ दी। उसने रा खोला, रा खोलकर ब्रैंटी ली।

जब वो बाहर आई, वो उसी टू-पीस में थी। उसके गीले बालों से पानी टपक रहा था। वो मेरे सामने खड़ी होकर मुझे दिखाने लगी, जैसे रैम्प पर फैशन शो कर रही हो। मैं उसे वहीं पकड़ लेता, लेकिन मैंने सोचा, उसे और तड़पाना चाहिए। वो मुस्कुराते हुए अपने बेडरूम में चली गई।

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जब मैं नहाने गया, मैंने देखा कि उसकी ब्रैंटी, जो उसने नहाने से पहले पहनी थी, बाथरूम में पड़ी थी। मैंने उसकी ब्रा को उठाकर उसके निप्पल वाले हिस्से को चूमा। फिर पैंटी उठाई। वो पूरी तरह गीली थी। उसमें कुछ चिपचिपा-सा था। मुझे लगा, ये उसका डिस्चार्ज है। मैंने उसे छूकर यकीन हो गया कि ये उसका रस है, जो उसने मेरे साथ चुदवाने की कल्पना में छोड़ा होगा।

मैंने उसकी पैंटी को देर तक सँघा। उसमें से रिया के रस और पेशाब की तीखी खुशबू आ रही थी। मैंने पैंटी के उस हिस्से को चाटा, जो उसकी चूत के छेद पर लगता होगा। मैंने उसके रस को चूसने की कोशिश की। फिर मैंने अपनी पैंटी से अपने लंड को रगड़ा। मेरा लंड फटने को था। मैंने मुठ मारकर अपना वीर्य उसी पैंटी में छोड़ दिया। उसे वैसे ही खूँ पर टाँग दिया और नहाकर बाहर आ गया।

जब मैं अपने कमरे की ओर जा रहा था, तभी देखा कि रिया के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था। वो मुझे खुला न्योता दे रही थी, अपनी चुदाई के लिए। विश्वास ही नहीं होता कि इतनी खूबसूरत लड़की, कामुकता की देवी, अपने भाई से चुदने को इतनी बेताब थी। मैंने चुपके से उसके कमरे में झाँका। देखा तो वो अपनी चूत में उंगली डाले सिसक रही थी। मेरी प्यारी बहन, मेरी रंडी बेटी, कितनी चुदास से भरी थी! वो उंगली करते हुए आहें भर रही थी, “प्लीज़ पापा, आकर मुझे चोद दो!” उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन मेरे कानों तक साफ़ पहुँची।

मैं चुपचाप देखता रहा। वो उंगली करके अपनी आग बुझाना चाहती थी, लेकिन ये तो वही हुआ जैसे कोई आग में केरोसिन डालकर उसे बुझाए। आग तो और भड़क उठी। उसने उंगली से अपना रस निकाला और बेड पर लेट गई, सिसकियाँ भरते हुए। कसम से, उसकी हालत पर मुझे तरस आ रहा था। मैं वापस लौटा और सोचने लगा कि ऐसी कौन-सी सिचुएशन बनाई जाए कि वो मेरे सामने गिड़गिड़ाए, “प्लीज़, मुझे चोद दो!”

दो घंटे बाद मैंने उसे खाना खाने बुलाया। वो चुपचाप डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गई। खाते वक्त वो कुछ नहीं बोली। मैं सोच रहा था, हाय रे भारतीय नारी! लंड गजभर का खाएगी, लेकिन शर्माएगी इतना कि पूछो मत। मैं नाटक करते हुए रुआँसा हो गया और बोला, “रिया, मैं क्या करूँ? तेरी माँ को ये क्या हो गया। वो जल्दी ठीक होकर कैसे आएगी? उसके बिना मेरा क्या होगा?” मैंने आँखों में दो नकली आँसू ला लिए।

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वो तुरंत मेरे पास आई, मेरे आँसू पोंछते हुए बोली, “पापा, आप रो मत। मम्मी जल्दी ठीक हो जाएगी। मैं हूँ ना तब तक आपके लिए। मैं आपका पूरा ख्याल रखूँगी, आपकी हर ज़रूरत का भी। चिंता मत करो, आपकी बेटी आपके लिए कुछ भी करेगी, लेकिन आपको दुखी नहीं होने देगी।” मैं चुप हो गया और अपने कमरे में चला गया। वो भी अपने कमरे में चली गई।

शाम को मैंने हॉस्पिटल फोन किया, पूछने के लिए कि रति को होश आया या नहीं। नर्स ने कहा, “आप कल आइए, शायद तब तक मैडम को होश आ जाए।” ये बात अंग्रेजी में थी, लेकिन मैंने हिंदी में लिख दी, ताकि कहानी का फ्लो न टूटे।

रात को खाना खाकर हम टीवी देखने बैठे। रिया मेरे पास सटकर बैठी थी। मुझे झुरझुरी-सी होने लगी। उसे तो पता नहीं क्या-क्या हो रहा था। मैं ज़्यादा बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, सो कमरे में सोने चला आया। मैं खुद पर कंट्रोल कर रहा था, क्योंकि मैं रिया के सामने ये ज़ाहिर नहीं करना चाहता था कि मुझे उसे चोदने की बहुत जल्दी है। मैं सोच रहा था कि उसे मेरे कमरे में आने के लिए कैसे उकसाऊँ।

मैंने कपड़े उतारे और बेड पर लेट गया। मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, सिवाय इसके कि मैं सीधे उसके पास चला जाऊँ। मुझे लगने लगा कि आज की रात बेकार जाने वाली है। मैं पहल इसलिए भी नहीं करना चाहता था, क्योंकि मैं जानता था कि रति की गैरमौजूदगी में वो मेरी दूरी ज़्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर सकती। लेकिन अभी तक वो मेरे पास नहीं आई थी। कमरे में आए मुझे कोई डेढ़ घंटा हो चुका था। नींद तो कंबख्त आ नहीं रही थी, यारों। मैं पछता रहा था कि टीवी देखते वक्त ही क्यों न मैंने उसे अपनी बाँहों में ले लिया। वो तो मुझसे चिपक भी रही थी। मैं खुद को कोसने लगा। खिसियानी बिल्ली खंभा नहीं नोचेगी तो क्या करेगी? मैं इस मौके का फायदा नहीं उठा सका, इसका मुझे बहुत अफसोस था।

एक घंटा और बीत गया, इसी सोच में कि आखिर उसे कैसे चोदूँ। ऊपरवाले, तू ही कोई करिश्मा कर! रात के 12 बज रहे थे। मैं करवटें बदल रहा था, पसीने से तरबतर। तभी अचानक बाहर तूफान आया। ज़ोरदार बिजली कड़की, और मेरी किस्मत चमक उठी। मौसम के अचानक बदलने से बिजली गुल हो गई। थंडरस्टॉर्म था, भाई। हमारा शहर समुद्र के पास जो था। बिजली दहाड़ रही थी, जैसे आज ब्राज़ील को, या कम से कम साओ पाउलो को, निगल लेगी।

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तभी दरवाज़े पर खटखट हुई। बाहर से रिया की काँपती आवाज़ आई, “पापा, प्लीज़ दरवाज़ा खोलो!” मैंने पूछा, “क्या हुआ?” वो डर से काँपते हुए बोली, “बिजली कड़कने से, बादल गरजने से, और बिजली गुल होने से मुझे बहुत डर लग रहा है। मैं आपके पास रहना चाहती हूँ। जब बिजली आएगी, मैं वापस चली जाऊँगी।”

मन ही मन मैंने कहा, “क्या बात है! क्या गज़ब तरीके से मुराद पूरी होने वाली है!” डरती हुई, छुई-मुई-सी मेरी दिलरुबा अपने यार से चुदने चली आई, मेरा लंड अपनी चूत में भरवाने। जब दिल से चाहो, तो देखो कैसे प्रकृति साथ देती है, वो ऊपर बैठा भाग्यविधाता। कमरे में घुप्प अंधेरा था। मैंने कपड़े पहनने की ज़रूरत नहीं समझी। समझता भी क्यों? उसने मुझे कई बार नंगा देखा था, और मेरे यार को भी।

पता नहीं बिजली कब आने वाली थी। मैंने दरवाज़ा खोला। तभी एक भयंकर गड़गड़ाहट के साथ बिजली कड़ी। रिया डर के मारे भागी और मुझसे लिपट गई। वो मुझे कसकर पकड़े थी, जैसे हम दो जिस्म, एक जान हों। वो बोली, “मुझे बहुत डर लग रहा है।” वो मुझसे आगे की तरफ चिपकी थी। मेरा लंड उसकी चूत वाली जगह पर टकरा रहा था, और उसकी चूँचियाँ मेरे सीने में धँस गई थीं।

मैंने भी उसे कसकर बाँहों में जकड़ा, जैसे उसे खुद में छिपाना चाहता हूँ। जैसे ही हमने एक-दूसरे को पकड़ा, बिजली वापस आ गई। कमरे का अंधेरा छट गया। उसने मुझे देखा और शरमा गई। वो जाने लगी, लेकिन मैंने उसे कसकर पकड़ा और बोला, “अब नहीं जाना यहाँ से।” मैं मुस्कुराया, तो वो फिर लजा गई। उसने नकली गुस्से में कहा, “जाने दीजिए ना, पापा। लाइट आ गई है।”

मैंने कहा, “अ अगर लट फिर चली गई, तो फिर डर के मारे वापस आएगी और कहेगी कि डर लग रहा है। इससे अच्छा, तू यहीं रह। मौसम का भरोसा नहीं।” वो चुप रही, बस मुझसे चिपकी खड़ी थी। मेरा लंड उसकी नज़दीकी और उसके जिस्म की गर्मी से अकड़ने लगा। वो ऊपर उठ रहा था, उसकी चूत से टकरा रहा था। बार-बार नीचे गिरता और उसकी चूत पर फिर चोट करता। वो हर बार “आह, आह” कर रही थी।

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जब वो आई थी, तो अंधेरा था। न मुझे पता था कि उसने क्या पहना है, न उसे कि मैंने क्या। अब मैंने उसे ऊपर से नीचे देखा। वो तो सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में थी! मुझे नंगा देखकर वो फिर शरमाई, धीरे से मुस्कुराई, आँखें बंद की, और अपना माथा मेरे कंधे पर टिका दिया। मैंने सोचा, लौंडिया पूरी तैयार है।

मैंने उसे कुछ देर वैसे ही कंधे पर सिर टिकाए रखने दिया। मेरा लंड उसकी चूत को चूम रहा था। मैं उसकी पीठ सहलाने लगा। सहलाते-सहलाते मैंने उसकी ब्रा के हुक खोल दिए। उसे पता नहीं चला। फिर मैंने हाथ नीचे ले जाकर उसके चूतड़ों का जायजा लिया। वो बेसुध-सी मुझसे चिपकी थी। मैंने धीरे से उसकी पैंटी नीचे खींच दी। उसे कुछ नहीं पता, वो तो किसी और ही दुनिया में थी।

अब मेरा लंड उसकी चूत को बिना किसी परदे के चूम सकता था। जैसे ही इस बार मेरा लंड उसकी चूत से टकराया, वो हड़बड़ा उठी। उसने नीचे देखा, तो पैंटी अपने पैरों में पड़ी थी। फिर वो मेरी पीठ सहलाने लगी। उसकी चूत अब उसके रस से पूरी गीली हो चुकी थी। जैसे ही मैंने उसे अपनी पकड़ से आज़ाद किया, उसकी ब्रा भी नीचे गिर पड़ी। उसकी ब्रा में कंधे वाले स्ट्रैप नहीं थे।

वो मेरे सामने पूरी नंगी थी, जैसे मैं उसके सामने था। उसने शरमाते हुए कहा, “पापा, ये आपने क्या किया? अपनी बेटी को नंगा कर दिया!” मैंने कहा, “क्यों नहीं? जब बेटी तुम जैसी कामुक हो, तो हर बाप यही करेगा।” मैंने उसके पैरों से पैंटी निकाली और उसे सूँघने लगा। उसकी गीली पैंटी को चूमा। वो देखती रही। फिर पैंटी को एक तरफ फेंककर मैं उसके पास गया।

वो नंगी किसी एटम बम जैसी लग रही थी। मेरा लंड तेज़ हिलोरे ले रहा था। मैंने उसके कान में कहा, “चलो, आज मैं तुम्हें जन्नत की सैर कराता हूँ।” मैंने उसे बताया कि मैं मुंबई से ही उसके साथ प्यार करने के बारे में सोचने लगा था। वो बोली, “फिर उस रात वो सब क्यों नहीं किया, जब मैं कह रही थी? आपने मुझे कितना तड़पाया है तब से!”

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मैंने कहा, “अगर उस वक्त मैंने कुछ किया होता, तो जल्दबाजी हो जाती। मैं तुम्हें और मेच्योर होने का वक्त देना चाहता था, ताकि तुम इसे और ज़्यादा एंजॉय कर सको, वो भी आसानी से।” वो बोली, “मुंबई में आपसे मिलने के बाद से मैं आपके लिए तड़प रही थी। आपके प्यार की प्यासी हो गई थी। तभी मैंने आपको और माँ को यहाँ बुलाया, ताकि आपके साथ प्यार कर सकूँ।”

मैंने कहा, “मुझे सब पता है, जान। मैं तो तुम्हें तड़पाना चाहता था, ताकि जब तुम ये सब करो, तो पूरा मज़ा लो और खूब एंजॉय कर सको। आज वैसा ही होगा।” उसने कहा, “पापा, बस मेरी बेचैनी, मेरी प्यास शांत कर दो। अब और नहीं सह सकती।”

बस इतना कहना था कि मैंने उसे अपनी ओर खींचा और अपने होंठ उसके होंठों से सटा दिए। मैंने उसके मुँह को पूरी तरह सील कर दिया। उसे स्मूच करने लगा। वो मुझसे ज़्यादा उतावली थी। उसकी स्मूच में गज़ब की कशिश थी। वो ऐसे चूम रही थी कि मेरी आत्मा तृप्त हो गई। उसने आवेश में मेरे बाल पकड़े और मुझे अपने से चिपका लिया। हमारा स्मूच भयंकर था। मुझे रति के साथ किया पहला चॉकलेट स्मूच याद आ गया।

रिया अपनी जीभ मेरे मुँह में डालकर छानबीन करने लगी। मैं भी वैसा ही कर रहा था। वो मेरी जीभ को ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगी, अपनी जीभ मेरी जीभ से लड़ाने लगी। 15 मिनट तक चले इस महा-गर्म स्मूच से कमरा गर्माहट से भर गया। मैंने ये सब रति के साथ कई बार किया था, लेकिन रिया के लिए ये एकदम नया अनुभव था। वो मधोश हो गई थी। फिर हम बेड पर आ गए। वो पूरी तरह कामुक हो चुकी थी।

बेड पे उसने मुझे पटक दिया और वो मेरे उपर आ गई। मेरे बालों से खेलने के बाद वो मेरे चेहरे को चूमने लगी। उसने मेरी आँखें, कान और नाक को चूमा। कान में तो उसने अपने दाँत भी गड़ा दिये जिस से पता चल रहा था कि वो कितनी कामुक हो चुकी है। नीचे बढ़ते हुए वो मेरी गर्दन को अपनी जीभ से सहलाने लगी। लग रहा था कि मैं अब गया कि कब गया। पर मैं नहीं झड़ा। और वो नीचे आ कर के मेरी छाती पे अपनी उंगलियाँ चलाने लगी। और फिर अपने बड़े बड़े नाखूनों से मेरे निप्पल खुरचने लगी। मैंने कहा धीरे धीरे करना बाबा।

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और फिर मैं सिसकने लगा। वो मेरी दोनों छातियों को अपने हाथों से मिंजने लगी। मेरी छातियाँ उसके हाथ की मालिश से फूल गईं और लाल भी हो गईं। तब उसने मेरे निप्पल को मुँह में ले लिया और दाँत से हल्के हल्के काटने लगी। जीभ को गोल गोल घुमा के उसे चूस रही थी।

फिर वो मेरे पेट पे आ गई और मेरी नाभि में जीभ गुसाने लगी। लग रहा था कि वो उसे ही चोद रही है। और फिर थोड़ी ही देर में वो मेरे लंड के पास आ गई। और लंड के गाल बगल हाथ से टच कर के सहलाने लगी। फिर लंड को हाथ में लेकर मैथुन करने लगी। मेरा लंड फूल के फटने को हो आया। उसने मेरे बॉल्स को भी छेड़ा। और अंडों को अपने मुँह में लेकर कैंडी की तरह कभी इस गाल में तो कभी उस गाल में चूसने लगी। फिर अंडों को मुँह से निकाल कर उसने अपना ध्यान मेरी गुदा पे लगाई। वो उसे उंगली से उकसाने लगी।

एक उंगली मेरी गुदा के अंदर डाल कर अंदर बाहर करने लगी। जब वो ये सब कर चुकी थी तो मैंने उसके बाल पकड़े और अपने लंड पे उसका मुँह लगा दिया। मुझ से कंट्रोल नहीं हो रहा था। वो लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी। फिर अपनी जीभ को सुपाड़े पे घुमाने लगी। अब मैं आने वाला था ये मैंने उसे नहीं बताया और मैं उसके मुँह में ही झड़ गया। उसने उस जहर को अपने गले के नीचे उतारा और कहने लगी कि इसका स्वाद तो अजीब सा है। क्या मुझे एक बार और टेस्ट करने के लिए मिल सकता है? मैंने कहा हाँ पर अगली बार, अभी उसे कोई और माँग रहा है। तो वो मुझे सवालिया नज़रों से देखने लगी। मैंने उसकी चूत पे हाथ रख दिया।

अब मेरी बारी थी। मैंने उसे बेड पे बिठा दिया और उसके स्तनों को प्यार से देखने लगा। लग रहा था जैसे वो किसी पेड़ पर लटके बड़े बड़े पपीते हों। ठीक पपीतों की तरह ही वो नीचे से चौड़े और ऊपर से पतले थे। और नीचे बीच में निप्पल चिपके हुए थे उनपर जो हल्की चाय के रंग के थे। मैंने उन पपीतों को हाथ में थामा और लगा आटे की तरह गूँदने। गूँदते गूँदते उसके पपीते लाल हो गए। वो अपने मुँह से सी सी सी….. कर रही थी। फिर मैंने बारी बारी से उन पपीतों का दूध पिया। बड़े कामुक पपीते थे उसके। अब उसके समतल पेट पे मेरी जीभ नाच रही थी। उसका पेट तो एकदम किसी एलसीडी स्क्रीन की तरह फ्लैट था बिल्कुल। नाभि को जब मैं चाट रहा था तो मेरे नथुनों में उसकी मधुर सुवास भरने लगी जैसे वो उसके जिस्म की कस्तूरी हो। मैं पागल हो गया। वो तो जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी। उसके पेट में तेज़ कंपन होने लगी। और वो आनंद की नदी में डूब गई। मैं नीचे बढ़ा तो देखा कि उसकी योनि तो एकदम साफ है। लग रहा था जैसे उसने आज ही साफ की हो अपनी योनि के बालों को। मैंने अपने अधरों को उसके चूतद्वार से चिपका दिया। और उसकी चूत को मुँह में खींचने लगा। फिर जीभ से उसकी योनि को चोदना भी शुरू किया। एक उंगली को उसकी संकरी योनि में पेल भी दिया। उसे दर्द हुआ पर उतना ज्यादा नहीं कि वो वैसा करने से मना ही कर दे। उसकी चूत अब बहने लगी। पानी उसकी चूत से टघर कर नीचे उसकी गुदा तक जाने लगी। मैं वो पानी पीने लगा। उसे इस झड़न से ठंड मिली ज़रा सी। वो थोड़ा शांत हो गई। उसकी व्यग्रता कुछ कम हुई। वो बेड पे पड़ी-पड़ी अपने साँसों को सँयत करने लगी।

इस दौरान मेरा लंड फिर से खड़ा और कड़क हो चुका था। वो उसे देख कर कहने लगी कि ये कैसे जाएगा इसमें। मैंने कहा कि फिकर नॉट सब हो जाएगा। मैं सरसों का तेल ले आया। पहले मैंने उसे उसकी चूत पे लगाया। और कुछ देर तक उसकी चूत में उंगली करता रहा। चूत थोड़ी देर में अपना छोटा सा मुँह खोल गई। मुझे लगा रिया अब तन्मयता के साथ लंड लीलने के लिए तैयार है। मैंने अपने लंड को तेल से पूरा चुभोर दिया। इतना तेल लंड पे लगाया कि लंड से तेल टपकने लगा।

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अब मैं बेड पे लेट गया और उसे अपने ऊपर आने के लिए कहा। वो मेरी जाँघों पर अपने पैर फैला कर लंड से थोड़ा पीछे बैठी। मैं उठ गया और उसने अपने पैर मेरी कमर से बांध दिये। मैंने उसे आगे आने के लिए कहा। जैसे ही जो आगे आई मेरा लंड जो उसकी चूत के निशाने पे था वो सीधा जा के उसकी चूत में प्रवेश हो गया। लंड अभी आधा ही गया था। वो दर्द से कराहने लगी। उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे और वो कहने लगी भगवान मुझे बचा लो प्लीज़। मैं उसका दर्द कम करने के लिए उसे स्मूच करने लगा। और अपने सीने से उसके सीने को रगड़ने लगा। फिर लगभग हम 10 मिनट तक उसी अवस्था में रहे। मैं उसके नितंब और पीठ को सहला रहा था ताकि उसे कुछ राहत मिले। जब उसका दर्द कम हो गया तो मैं अपनी पीठ के बल झूक गया और अपने हाथ को पीछे इड़ी दिया।

फिर से मैं रिया की तरफ झूका और इस बार लंड लगभग समा ही गया उसकी चूत में। इस झटके से उसकी चूत से खून बहने लगा शायद उसकी हाइमन फट चुकी थी। बहुत खून बाहा। वो मेरे हाथ छुड़ा कर भागना चाहती थी। पर मैंने उसे जकड़ कर बैठे रहने को मजबूर कर दिया। वो रोते रोते गालियाँ देने लगी। वो बके जा रही थी कि……… मादरचोद, बहनचोद, कमीने तुने अपनी बेटी की ये हालत कर दी, उसकी चूत ही फाड़ डाली, अरे इस कमीने ने मुझे मार डाला, कोई बचाओ मुझे इस जल्लाद से! बेटीचोद तेरे लंड को कीड़े पड़ें, कुत्ते कमीने ये तुने क्या किया अपनी बेटी ही चोद डाली! मैं मर जाऊँगी, प्लीज़ भगवान के लिए मुझे छोड़ दो। मैं चुप रहा। फिर रोती रोती वो शांत होने लगी तो मैं अपने पीछे झुका और अपने हाथों पर थम गया।

लंड थोड़ा उसकी चूत से निकल गया तो उसे कुछ आराम मिला। 2 मिनट के बाद मैं बड़ी तेजी से झुका और रही सही कसर निकाल दी। इस बार पूरा लंड अंदर समा गया। उसकी चूत से फक़्क़ की आवाज़ आई। वो दर्द से बिलखने लगी। होता भी क्यूँ ना, मैं ऐसे ही मर्द थोड़ी था, उसकी माँ को चोदा था मैंने भाई भले ही उसे न पैदा किया हो मैंने पर उसका मैं बाप जो था। ये तो होना ही था। मैं उसको वैसे ही लेकर ज़मीन पे खड़ा हो गया।

वो मेरे लंड पे टिकी थी जो उसकी चूत में पूरा समा गया था। उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन में डालें और पीछे से लॉक कर दिया। उसका वज़न लगभग 47 किलो ही था। इसलिए मैं उसे इतनी आसानी से उठा पाया था। मुझे उसे तांगे कुछ ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। उसने अपने पैरों को और ज्यादा ज़ोर से मेरी कमर में कस दिया। और मुझ से लता की तरह चिपक गई। मेरे हाथ उसके चूतड़ों को सहारा दिये हुए थे। इस तरह वो मेरे लंड पे हवा में टंगी हुई थी। फिर 3-4 मिनट बाद वो अपने चूतड़ों को हिलाने लगी। मैं समझ गया कि अब इसे तबियत से चुदना है। तो मैंने उसे थोड़ा ऊपर की ओर किया और फिर उसके चूतड़ों को नीचे खींच दिया। वो भी सहयोग करने लगी। वो अब खुद ऊपर नीचे हो कर मेरे लंड पे बैठ रही थी। ऐसे हमने कुछ देर किया फिर जब मेरे हाथ दुखने लगे तो मैं पुनः उसे बेड पे ले आया और उसे चित लिटा दिया। उसके पाँव अब भी मेरी कमर पे बंधे थे। अब मैं उसे जोर जोर से हुमच हुमच के चोदने लगा। मेरे अंडे उसकी गुदा से टकरा रहे थे। मैं पिस्टन की भाँति लंड उसकी चूत में पेलने लगा। वो भी कमर उछालने लगी। उसने कहा कि वो झड़ने ही वाली है। मैं भी झड़ने वाला था। 5-10 धक्के खा कर वो झड़ गई। अंत में मैंने एक जबरदस्त धक्का दिया और मेरा लंड उसके गर्भाशय से टकरा गया।

वहीं पहुँच कर मैंने अपना लिक्विड छोड़ दिया। थोड़ी देर तक वो शांत बिना किसी हलचल के पड़ी रही। फिर मुझे पुचकारने लगी और मेरे निप्पल्स के साथ खेलने लगी। कहने लगी कि पापा आपने तो मुझे जिंदगी का सबसे प्यारा अनुभव दिया है, एक बेटी अपने पापा का लंड ले पायी ये कितनी आश्चर्य चकित करने वाली बात है और जो मैंने कर दिया। आई लव यू माय डैड वेरी मच। अब मैं हमेशा आपके साथ रहूँगी। मुझे यही सुख चाहिए था तभी मैंने माँ को शादी के लिए मना कर दिया था क्यूँ कि मैंने तो आपको ही मन से अपना स्वामी, अपना पति अपना सब कुछ मान लिया था वहीं मुंबई में ही और सोच लिया था कि आप से ये सब कर के रहूँगी मैं किसी भी कीमत पे। पापा आपकी बेटी ने अपना सब कुछ अब आप को सौंप दिया है आप चाहे जैसे उसका उपयोग करें। मैंने भी कहा कि जब मैंने तुझे मुंबई में देखा था तभी मैंने भी सोच लिया था कि अपनी बेटी को मैं चोद के ही रहूँगा। वो कहने लगी कि सच में पापा? क्या आप मुझे पसंद करते हैं?

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मैंने कहा सच में बेटा मैं तुझे और तेरी चूँचियों और तेरी चूत को बहुत पसंद करता हूँ तो वो कहने लगी मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि आप भी मुझे उतना ही चाहते हैं जितना मैं आपको और वो अपना चेहरा शर्म से मेरी छाती में छुपाने लगी। मैंने सुबह होने तक उसे 5 बार चोदा और रात भर जी भर के उसके साथ खेलता रहा। उसे भी मुझ से चुदने की इतनी ही तड़प थी कि पूछ मत।

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