मेरा नाम आकांक्षा है, उम्र 19 साल, और मैं वो लड़की हूँ जो अभी तक बस कहानियों में ही चुदाई का मज़ा लेती थी। मेरी मम्मी, जिनकी उम्र 38 साल है, देखने में इतनी हॉट और सेक्सी हैं कि कोई भी मर्द उनकी एक झलक देखकर पागल हो जाए। उनकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ, चौड़ी गाण्ड, और वो कमर का लचकना—हर चीज़ में आग भरी है। पापा, जो ऑफिस में डूबे रहते हैं, शायद मम्मी की इस आग को ठंडा नहीं कर पाते। और यही बात मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा राज खोलने वाली थी।
उस रात पापा ऑफिस के काम से दो दिन के लिए शहर से बाहर गए थे। शाम के 7 बजे थे, मम्मी और मैंने खाना खाया। मम्मी उस दिन कुछ ज़्यादा ही सजी-धजी थीं—लाल साड़ी, गहरे कट का ब्लाउज़, और होंठों पर चटक लिपस्टिक, जो उनकी गोरी चमड़ी पर आग लगा दे। मैंने पूछा, “मम्मी, आज इतना सजना-धजना किसके लिए?” वो हँसकर बोलीं, “बस यूँ ही, मन हुआ।” मैंने ज़्यादा नहीं सोचा और अपने कमरे में चली गई। कॉलेज का प्रोजेक्ट पूरा करना था, तो रात भर जागने की वजह से 9:30 बजे ही नींद आ गई और मैं सो गई।
रात को करीब 1 बजे मेरी नींद खुली। प्यास लगी थी और बाथरूम भी जाना था। मैं बिस्तर से उठी, पानी पिया, और बाथरूम की तरफ बढ़ी। मम्मी का कमरा रास्ते में था, और उनकी खिड़की थोड़ी खुली थी। अचानक मुझे अजीब-सी आवाज़ें सुनाई दीं—आह… उह… और फिर मम्मी की सिसकारियाँ। पहले मुझे लगा शायद मम्मी की तबीयत खराब है। मैं डर गई। दिल धक-धक करने लगा। मैंने धीरे से खिड़की की तरफ कदम बढ़ाए, और जो देखा, वो मेरी ज़िंदगी का सबसे हॉट और शॉकिंग मंज़र था।
मम्मी बिस्तर पर पूरी नंगी थीं। उनके दोनों पैर हवा में फैले थे, और उनके बीच में मनोज अंकल—पापा के दोस्त और ऑफिस के सीनियर—अपना मोटा, लंबा पेल्हर मम्मी की बुर में अंदर-बाहर कर रहे थे। मनोज अंकल, जो 45 साल के होंगे, इतने हॉट और मज़बूत थे कि उनकी नंगी छाती और पसीने से चमकता बदन किसी जवान लड़के जैसा लग रहा था। मम्मी की बड़ी-बड़ी चूचियाँ हवा में उछल रही थीं, और अंकल कभी उन्हें चूस रहे थे, कभी दबोच रहे थे, और कभी मम्मी की चौड़ी गाण्ड पर ज़ोर-ज़ोर से थप्पड़ मार रहे थे। हर थप्पड़ के साथ मम्मी की गाण्ड लाल हो रही थी, और वो सिसकारते हुए बोलीं, “हाँ… चूसो मेरी चूचियाँ… और ज़ोर से… आह… चोदो मुझे!”
मम्मी की आवाज़ में वो प्यास थी, वो आग थी, जो मैंने पहले कभी नहीं सुनी। वो अंकल को अपनी बाहों में जकड़े थीं, अपनी गाण्ड उठा-उठाकर उनका लंड और गहरे ले रही थीं। अंकल गालियाँ दे रहे थे, “ले रंडी, मोटा पेल्हर ले… तू तो बड़ी छिनार है… देख, कैसे गाण्ड हिलाकर चुदवाती है!” मम्मी हँसकर बोलीं, “हाँ, मैं छिनार हूँ… तेरा लंड इतना मस्त है… और ज़ोर से चोद… मेरी बुर फाड़ दे!” ये सुनकर मेरे पैर काँपने लगे। मेरी बुर में गुदगुदी होने लगी, और मैं महसूस कर रही थी कि मेरी पैंटी गीली हो रही है।
मैं समझ गई कि मम्मी ने ही अंकल को फोन करके बुलाया था। अंकल बार-बार कह रहे थे, “तूने मुझे फोन किया कि पति घर पर नहीं है, आकर मेरी बुर की आग बुझा दे… तू कितनी बड़ी रंडी है!” मम्मी बस मुस्कुरा रही थीं और अपनी चूचियाँ अंकल के मुँह में ठूँस रही थीं। मैंने पहले भी देखा था कि मम्मी और अंकल के बीच कुछ ज़्यादा नज़दीकी थी। मनोज अंकल अक्सर घर आते, पापा के साथ शराब पीते, और देर रात तक रुकते। मम्मी उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ती थीं—कितने स्मार्ट हैं, कितने पैसे कमाते हैं, कितने मज़बूत हैं। पापा को ये बिल्कुल पसंद नहीं था, और कई बार मैंने मम्मी-पापा को इस बात पर लड़ते देखा।
मनोज अंकल की अपनी कहानी भी मसालेदार थी। उनकी शादी हो चुकी थी, पर उनकी बीवी उनसे झगड़कर अपने पुराने आशिक के साथ लिव-इन में चली गई थी। अंकल अकेले रहते, शराब पीते, पैसे उड़ाते, और अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी जीते। उनकी हॉट पर्सनैलिटी और मर्दाना अंदाज़ मम्मी को हमेशा से पसंद था, और शायद अंकल भी मम्मी की जवानी के दीवाने थे। लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा कि बात यहाँ तक पहुँच जाएगी—पापा के बिस्तर पर मम्मी और अंकल की ये रंगरेलियाँ!
वापस उस रात की बात। अंकल और मम्मी का खेल पूरे जोश में था। अंकल ने मम्मी को पलटा और उनकी गाण्ड ऊपर कर दी। मम्मी घोड़ी बन गईं, और अंकल ने पीछे से अपना पेल्हर उनकी बुर में घुसा दिया। हर धक्के के साथ मम्मी की गाण्ड हिल रही थी, और वो चीख रही थीं, “आह… और ज़ोर से… मेरी बुर फाड़ दो… हाय… कितना मोटा लंड है तेरा!” अंकल उनकी गाण्ड पर थप्पड़ मारते हुए बोले, “रंडी, तेरी बुर तो इतनी गीली है, जैसे बरसात हो रही हो… ले, और ले!” मम्मी की सिसकारियाँ पूरे कमरे में गूँज रही थीं।
फिर अंकल ने मम्मी को उठाया और 69 की पोजीशन में ले आए। मम्मी अंकल के लंड को मुँह में लेकर चूसने लगीं, जैसे कोई टॉफी हो। उनकी जीभ अंकल के पेल्हर के सुपारे पर गोल-गोल घूम रही थी, और अंकल मम्मी की बुर को चाट रहे थे। अंकल बोले, “तेरी बुर का पानी तो नमकीन है… कितनी गर्म है तू!” मम्मी हँसकर बोलीं, “तेरे लंड का पानी भी तो मस्त है… और चूसूँ?” दोनों एक-दूसरे को चाटते हुए पागल हो रहे थे। मैं ये सब देखकर इतनी गर्म हो गई थी कि मेरे हाथ अपने आप मेरी बुर की तरफ चले गए।
मैंने अपना पजामा और पैंटी नीचे सरका दी। मेरी बुर पहले से ही गीली थी, और जैसे ही मैंने अपनी उंगली अंदर डाली, मुझे ऐसा मज़ा आया कि मेरी साँसें तेज हो गईं। मैं अपनी चूचियों को दूसरे हाथ से दबाने लगी, और मेरे मुँह से हल्की-हल्की सिसकारियाँ निकलने लगीं। मेरी बुर इतनी गर्म थी कि मुझे लग रहा था कि मैं अभी झड़ जाऊँगी। मैंने कभी किसी के साथ चुदाई नहीं की थी, लेकिन मैं अक्सर कहानियाँ पढ़कर अपनी बुर सहलाती थी। पर आज जो मैं देख रही थी, वो किसी कहानी से लाख गुना ज़्यादा हॉट था।
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अंकल ने अब मम्मी को नीचे लिटाया। उन्होंने मम्मी के दोनों पैर अपने कंधों पर रखे और अपना लंड मम्मी की गाण्ड में धीरे-धीरे घुसाने लगे। मम्मी को पहले थोड़ा दर्द हुआ, और वो कराहने लगीं, “आह… धीरे… बहुत मोटा है तेरा पेल्हर!” लेकिन दो-तीन धक्कों के बाद मम्मी को मज़ा आने लगा। वो चीखने लगीं, “हाँ… और ज़ोर से… मेरी गाण्ड मारो… फाड़ दो!” अंकल पूरी ताकत से धक्के मार रहे थे, और मम्मी की चूचियाँ हर धक्के के साथ हिल रही थीं। अंकल उनकी चूचियों को मसलते हुए बोले, “तेरी गाण्ड तो तेरी बुर से भी ज़्यादा टाइट है… रंडी, तू तो जन्नत है!”
ये सब देखकर मैं पागल हो रही थी। मेरी बुर इतनी गीली थी कि मेरी उंगलियाँ फिसल रही थीं। मैंने दो उंगलियाँ अंदर डालीं और ज़ोर-ज़ोर से अंदर-बाहर करने लगी। मेरी साँसें तेज थीं, और मेरे होंठ सूख रहे थे। मैं चाहकर भी अपनी नज़रें नहीं हटा पा रही थी। मम्मी और अंकल का ये खेल करीब डेढ़ घंटे तक चला। कभी अंकल मम्मी को घोड़ी बनाकर चोदते, कभी मम्मी अंकल के पेल्हर पर उछल-उछलकर चुदवातीं। हर बार मम्मी की सिसकारियाँ और अंकल की गालियाँ कमरे में गूँज रही थीं।
आखिरकार, अंकल ने मम्मी की बुर में इतने ज़ोरदार धक्के मारे कि मम्मी चीखते हुए झड़ गईं। उनकी बुर से पानी बह रहा था, और अंकल भी झड़ने वाले थे। उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला और मम्मी की चूचियों पर अपना गर्म-गर्म माल छोड़ दिया। मम्मी हँसते हुए बोलीं, “हाय… कितना गर्म है तेरा माल!” दोनों हाँफते हुए बिस्तर पर लेट गए, और मैं चुपके से बाथरूम की तरफ भागी।
बाथरूम में जाकर मैंने खुद को शांत करने की कोशिश की, लेकिन मेरी बुर की आग बुझ नहीं रही थी। मैं अपने कमरे में लौटी और बिस्तर पर लेट गई, लेकिन नींद कोसों दूर थी। बार-बार मम्मी और अंकल का वो मंज़र मेरी आँखों के सामने आ रहा था। मैंने फोन उठाया और कुछ गर्मागर्म कहानियाँ पढ़ने लगी, लेकिन वो भी मेरी प्यास नहीं बुझा पाईं। मैंने फिर से अपनी बुर में उंगली डाली और अपनी चूचियों को मसला, लेकिन मन में एक ही ख्याल था—अंकल का वो मोटा पेल्हर।
उस रात मैंने ठान लिया कि अगर मम्मी अंकल से चुदवा सकती हैं, तो मैं क्यों नहीं? अंकल की वो मर्दाना ताकत, वो हॉट बदन, और वो लंड—मैं भी उसका मज़ा लेना चाहती थी। और फिर, कुछ दिन बाद मौका मिल ही गया। मैंने अंकल को फोन किया और उन्हें घर बुलाया। उस रात क्या हुआ, मम्मी कहाँ थीं, पापा कहाँ थे, और अंकल ने मुझे कैसे चोदा—ये सब मैं अपनी अगली कहानी में बताऊँगी। बस इतना कहूँगी कि उस रात मेरी बुर की आग बुझी, और मैंने जाना कि असली चुदाई का मज़ा क्या होता है।