हाय दोस्तों, मेरा नाम मृदुल है, और मैं फर्रुखाबाद का रहने वाला हूँ। आज मैं तुम्हें अपनी बहन की ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जो सुनकर तुम्हारा दिल धक-धक करेगा और बदन में आग सी लग जाएगी। कुछ समय पहले मेरी बहन काव्या ने जिला सहकारी बैंक में डाटा एंट्री ऑपरेटर की परीक्षा दी थी। वो पास हो गई और उसे फर्रुखाबाद के उसी बैंक में नौकरी मिल गई। काव्या थी ही ऐसी—जैसे आसमान से उतरी कोई अप्सरा। 5 फुट 6 इंच का कद, 34-30-34 का फिगर, पतली कमर, चिकनी गोरी स्किन, और आंखें ऐसी कि किसी का भी दिल चुरा लें। मोहल्ले के सारे लड़के उसके पीछे पागल थे, सबके सपनों में बस एक ही ख्वाहिश—काश, काव्या की चूत का मजा ले लें। लेकिन काव्या कोई सस्ती माल नहीं थी। वो संस्कारी थी, शरीफ थी, और ऐसा कोई नहीं था जो उसे आसानी से पटा सके।
बैंक में उसकी मुलाकात अपने मैनेजर वीरेंद्र सिंह से हुई। दोनों एक ही कमरे में काम करते थे। वीरेंद्र उसका बॉस था, जो उसे टाइपिंग, प्रिंटआउट, या सरकारी फाइलें संभालने का काम देता। लखनऊ से कोई फाइल आती, तो काव्या उसे प्रिंट करती। उस कमरे में बस वो दो ही थे—काव्या और वीरेंद्र। काव्या तो जवान थी, उसका बदन गुलाब की तरह महकता था, जैसे कोई ताजा फूल। सालभर तक एक साथ काम करने के बाद वीरेंद्र का दिल उस पर फिसल गया। वो बस मौका ढूंढता था कि कब काव्या को अपनी बाहों में भर ले, उसकी चूत में अपना लंड डालकर उसे रगड़ दे। लेकिन काव्या इतनी आसानी से पिघलने वाली नहीं थी। वो कोई छिनाल नहीं थी जो ऑफिस में किसी के साथ लेट जाए।
फिर भी, वीरेंद्र का जादू धीरे-धीरे रंग लाने लगा। वो हर दिन काव्या से हंसी-मजाक करता, कभी उसकी तारीफ, कभी हल्की-फुल्की छेड़खानी। सुबह जब काव्या नहाकर, डियो की खुशबू बिखेरती बैंक पहुंचती, तो वीरेंद्र की आंखें उस पर टिक जातीं। “हाय राम, काश इस माल की चूत मेरे लंड के हवाले हो जाए, तो जिंदगी जन्नत बन जाए!” वो मन ही मन बड़बड़ाता। काव्या की डियो की खुशबू पूरे ऑफिस में फैल जाती, और वीरेंद्र का लंड पैंट में उछलने लगता। दोस्तों, तुम तो जानते हो, जिला सहकारी बैंक में काम तो बस नाम का होता है। ज्यादातर वक्त खाली ही रहता था। तो काव्या और वीरेंद्र बातों में, हंसी-ठिठोली में, और हल्की-फुल्की फ्लर्टिंग में टाइम पास करते।
“काव्या, मेरी जान, तुम ना होती तो इस बोरिंग ऑफिस में मेरा जीना मुहाल हो जाता। तुम हो, तभी तो ये दिन रंगीन हैं!” वीरेंद्र कहता, और काव्या शरमाकर मुस्कुरा देती। वीरेंद्र शादीशुदा था, लेकिन इतना हैंडसम कि लड़कियां उस पर जान छिड़कें। धीरे-धीरे काव्या भी उसके जाल में फंसने लगी। वीरेंद्र ने उसे लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी—कभी नए सलवार-सूट गिफ्ट किए, कभी स्वेटर, कभी गोल्ड की चेन, और एक दिन तो उसने काव्या को चुपके से लेटेस्ट स्मार्टफोन पकड़ा दिया। काव्या का दिल पिघल गया। उसे भी वीरेंद्र का साथ भाने लगा। एक दिन ऑफिस में मौका मिला, और वीरेंद्र ने काव्या को अचानक अपनी बाहों में खींच लिया। उसने काव्या के रसीले, गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रख दिए। काव्या ने कोई विरोध नहीं किया। शायद वो भी मन ही मन लंड की भूखी थी। दोनों एक-दूसरे के लिए दीवाने हो गए। ऑफिस में उस वक्त कोई नहीं था—बस काव्या और वीरेंद्र।
वीरेंद्र ने काव्या को अपनी मजबूत बाहों में कस लिया। “आह… काव्या, मेरी रानी, तुम्हें नहीं पता मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ। आज मेरे पास आ जा, मेरी जान!” उसकी आवाज में वासना भरी थी। काव्या भी पिघल गई और उसके सीने से चिपक गई। “उफ्फ… वीर… आह…” उसकी सांसें तेज हो रही थीं। दोनों एक-दूसरे में खो गए। वीरेंद्र को लगा जैसे उसका सालों पुराना सपना सच हो रहा हो। इतने महीनों से वो काव्या को चोदने की तमन्ना रखता था, और आज वो मौका हथियार की तरह चमक रहा था। काव्या की डियो की खुशबू ने उसे और पागल कर दिया। उसने काव्या के नरम, गुलाबी होंठों को चूमना शुरू किया, जैसे कोई भूखा शहद की मक्खी पर टूट पड़े। “आह… उम्म… वीर…” काव्या सिसकारियां ले रही थी, उसका बदन गर्म हो रहा था।
वीरेंद्र के हाथ काव्या की चिकनी पीठ पर नाचने लगे। उसका लंड पैंट में तनकर लोहे की रॉड बन गया। वो काव्या की चूत को चखना चाहता था, उसमें अपना लंड डालकर उसे रगड़-रगड़कर चोदना चाहता था। दोनों देर तक एक-दूसरे के होंठ चूसते रहे, जैसे दुनिया खत्म होने वाली हो। फिर वीरेंद्र ने काव्या का दुपट्टा खींचकर हटाया और उसकी सलवार की कुर्ती उतारने लगा। काव्या भी चुदवाने के पूरे मूड में थी। उसने अपने हाथ ऊपर उठा दिए ताकि वीरेंद्र आसानी से उसकी कुर्ती निकाल सके। जब काव्या की गोरी, चिकनी कमर नजर आई, तो वीरेंद्र की सांसें थम गईं। काव्या ने काली, टाइट ब्रा पहनी थी, जो उसके 34 इंच के रसीले मम्मों को और उभार रही थी। “उफ्फ… काव्या… तू तो माल है!” वीरेंद्र बड़बड़ाया। उसने काव्या को फिर से गले लगाया और उसके गाल, गर्दन, और होंठों को पागलों की तरह चूमने लगा। “आह… वीर… उफ्फ… और चूमो…” काव्या सिसकारियां ले रही थी, उसका बदन कांप रहा था।
“मेरी रानी, अपनी चूत दोगी ना मुझे?” वीरेंद्र ने कामुक आवाज में पूछा, उसकी आंखों में हवस चमक रही थी।
“आह… हाँ, वीर… बिल्कुल दूंगी… आज मुझे रगड़ डालो! मैं तो कब से लंड की प्यासी हूँ!” काव्या ने सिसकारते हुए जवाब दिया। ये सुनकर वीरेंद्र का जोश आसमान छूने लगा। उसने काव्या की ब्रा की हुक खोल दी। जैसे ही ब्रा हटी, काव्या के गोल, रसीले मम्मे बाहर उछल पड़े। “उफ्फ… क्या चूचियां हैं!” वीरेंद्र पागल हो गया। उसने काव्या को ऑफिस की टेबल पर झुका दिया और उसके मम्मों को दोनों हाथों से मसलने लगा, जैसे कोई खजाना लूट रहा हो। “आह… वीर… धीरे… उफ्फ…” काव्या की सिसकारियां कमरे में गूंज रही थीं। वीरेंद्र ने एक मम्मा अपने मुंह में लिया और जोर-जोर से चूसने लगा। “उम्म… कितने रसीले हैं… आह…” वो बड़बड़ा रहा था। काव्या की चूचियां नुकीली और सख्त थीं, जैसे ताजे आम। वीरेंद्र ने दूसरा मम्मा दबाया, चूसा, और काव्या को तड़पाने लगा।
काव्या अब पूरी गर्म हो चुकी थी। उसकी चूत गीली हो गई थी, और सलवार का हिस्सा भीग गया था। “आह… वीर… अब चोद दो ना… उफ्फ… और मत तड़पाओ!” वो वीरेंद्र की बाहों में तड़प रही थी। वीरेंद्र ने काव्या की सलवार का नाड़ा ढूंढा, लेकिन जल्दबाजी में उसे गाठ नहीं मिली। काव्या ने खुद नाड़ा खोला, और वीरेंद्र ने उसकी सलवार नीचे सरका दी। काव्या की पैंटी उसकी चूत के रस से चिपचिपी हो चुकी थी। “उफ्फ… कितनी गीली है तू, मेरी जान!” वीरेंद्र ने पैंटी में हाथ डाला और काव्या की चिकनी चूत को सहलाने लगा। उसकी उंगलियां काव्या के चूत के रस से भीग गईं। वो बार-बार अपनी उंगलियां चूस रहा था, जैसे कोई अमृत चख रहा हो। “आह… वीर… और करो… उफ्फ…” काव्या की सिसकारियां तेज हो रही थीं।
काव्या अभी तक कुंवारी थी। उसकी चूत ने कभी लंड का स्वाद नहीं चखा था। वीरेंद्र वो लकी मर्द था, जो उसकी सील तोड़ने जा रहा था। दोनों चुदाई के लिए पागल हो रहे थे। वीरेंद्र ने काव्या की पैंटी उतार दी और उसे टेबल पर लिटा दिया। जिस टेबल पर काव्या रोज फाइलें चेक करती थी, उसी पर आज उसकी चूत की चुदाई होने वाली थी। वीरेंद्र ने काव्या के पैर फैलाए और उसकी चूत को देखा। 5 इंच लंबी, गुलाबी फांक वाली चूत इतनी खूबसूरत थी कि वीरेंद्र का दिमाग हिल गया। “हाय… ये तो जन्नत है!” उसने अपना मुंह काव्या की चूत पर रख दिया और उसे चाटने लगा, जैसे कोई भूखा शहद की चट्टान चाट रहा हो। “आह… वीर… उफ्फ… और चाटो… उम्म…” काव्या का बदन कांप रहा था, उसकी सिसकारियां कमरे में गूंज रही थीं। वीरेंद्र ने पहले उसकी चूत की फांकों को जीभ से चाटा, फिर धीरे-धीरे अपनी जीभ अंदर डाली। “आह… माँ… वीर… क्या कर रहे हो… उफ्फ…” काव्या तड़प रही थी। उसने काव्या के क्लिट को चूसा, जिससे काव्या की सिसकारियां और तेज हो गईं। “आह… वीर… बस… अब डाल दो… उई…” वो चिल्ला रही थी। आधे घंटे तक वीरेंद्र ने काव्या की चूत को चाटा, चूसा, और उसका सारा रस पी लिया। काव्या दो बार झड़ चुकी थी, उसका बदन पसीने से तर-बतर था।
फिर वीरेंद्र ने काव्या को टेबल पर ही उल्टा कर दिया। “आह… मेरी रानी, अब तेरी चूत का असली मजा लूंगा!” उसने काव्या की चिकनी गांड पर हल्के से थप्पड़ मारा। “उफ्फ… वीर… क्या कर रहे हो… आह…” काव्या सिसकारी। उसने काव्या की कमर पकड़ी और उसे कुतिया की तरह झुका दिया। फिर उसने अपने कपड़े उतारे। उसका लंड 8 इंच लंबा और मोटा था, जैसे कोई जंगली हथियार। “देख, मेरी जान, ये लेगा अब तेरी चूत का मजा!” उसने अपने लंड का सुपाड़ा काव्या की चूत पर रगड़ा। “आह… वीर… डाल दो… उफ्फ… अब और मत तड़पाओ!” काव्या तड़प रही थी। वीरेंद्र ने पहले धीरे से अपना सुपाड़ा अंदर डाला। “आह… कितनी टाइट है… उफ्फ…” वो सिसकारा। फिर उसने एक जोरदार धक्का मारा। काव्या की सील टूट गई, और वो दर्द से चीख पड़ी, “आह… माँ… उई… धीरे वीर!” लेकिन वीरेंद्र रुका नहीं। वो धीरे-धीरे काव्या को चोदने लगा। “आह… ले मेरी जान… ले मेरा लंड… उफ्फ…” उसका लंड काव्या की टाइट चूत में गप्प-गप्प अंदर-बाहर हो रहा था।
काव्या को पहले दर्द हुआ, लेकिन जल्दी ही उसे मजा आने लगा। “आह… वीर… और जोर से… उफ्फ… चोदो मुझे…” वो चिल्ला रही थी। वीरेंद्र ने काव्या की कमर पकड़ी और जोर-जोर से धक्के मारने लगा। “आह… काव्या… तेरी चूत तो जन्नत है… उफ्फ… ले… और ले…” कमरे में उनकी सिसकारियां और टेबल की चरमराहट गूंज रही थी। वीरेंद्र ने काव्या को कुतिया स्टाइल में करीब 20 मिनट तक चोदा, फिर उसे टेबल पर सीधा लिटा दिया। “आह… मेरी रानी, अब तेरे मम्मों को चूसते हुए चोदूंगा!” उसने काव्या के पैर अपने कंधों पर रखे और उसकी चूत में फिर से लंड पेल दिया। “आह… वीर… उई… और गहरा… उफ्फ…” काव्या की सिसकारियां तेज हो रही थीं। वीरेंद्र एक हाथ से काव्या का मम्मा मसल रहा था, और दूसरा मम्मा चूस रहा था। “उम्म… कितने रसीले हैं… आह… ले मेरा लंड… उफ्फ…” वो धक्के मार रहा था।
काव्या अब पूरी तरह चुदाई के नशे में थी। “आह… वीर… और जोर से… उई… मेरी चूत फाड़ दो… उफ्फ…” वो चिल्ला रही थी। वीरेंद्र ने अपनी स्पीड बढ़ा दी। उसका लंड काव्या की चूत में तूफान मचा रहा था। “आह… ले… मेरी जान… तेरी चूत का मजा लो… उफ्फ…” वो सिसकार रहा था। करीब 30 मिनट तक उसने काव्या को इस पोजीशन में चोदा। फिर उसने काव्या को टेबल से उतारा और अपनी कुर्सी पर बैठ गया। “आह… मेरी रानी, अब तू मेरे लंड पर उछल!” उसने काव्या को अपनी गोद में बिठाया और उसकी चूत में लंड डाल दिया। “आह… वीर… उफ्फ… कितना बड़ा है… उई…” काव्या सिसकारी। वो धीरे-धीरे वीरेंद्र के लंड पर उछलने लगी। “आह… और तेज… मेरी जान… उफ्फ…” वीरेंद्र ने काव्या की कमर पकड़ी और उसे जोर-जोर से उछालने लगा।
काव्या के मम्मे उछल रहे थे, और वीरेंद्र उन्हें चूस रहा था। “आह… वीर… उफ्फ… और जोर से… उई… मैं झड़ने वाली हूँ…” काव्या चिल्ला रही थी। वीरेंद्र ने अपनी स्पीड और बढ़ा दी। “आह… ले… मेरी रानी… तेरी चूत में मेरा माल डालूंगा… उफ्फ…” वो सिसकार रहा था। दोनों एक साथ चरम पर पहुंचे। काव्या जोर से सिसकारी, “आह… वीर… उई… मैं गई…” और वो झड़ गई। उसी वक्त वीरेंद्र ने भी अपनी पिचकारी छोड़ दी। “आह… ले… मेरी जान… उफ्फ…” उसने काव्या की चूत में अपना सारा माल उड़ेल दिया। दोनों पसीने से तर-बतर एक-दूसरे से लिपट गए।
लेकिन वीरेंद्र का मन अभी भरा नहीं था। “आह… मेरी रानी, अभी तो तेरी गांड बाकी है!” उसने काव्या को फिर से टेबल पर झुका दिया। “उफ्फ… वीर… धीरे… मैं थक गई हूँ… आह…” काव्या सिसकारी। वीरेंद्र ने काव्या की चूत का रस अपनी उंगलियों पर लिया और उसकी गांड पर मला। “आह… मेरी जान, अब तेरी गांड का मजा लूंगा!” उसने धीरे-धीरे अपनी उंगली काव्या की गांड में डाली। “आह… माँ… वीर… उई… धीरे…” काव्या दर्द और मजा दोनों में तड़प रही थी। वीरेंद्र ने धीरे-धीरे अपनी दो उंगलियां अंदर-बाहर की, फिर अपने लंड का सुपाड़ा काव्या की गांड पर रखा। “आह… ले… मेरी रानी… उफ्फ…” उसने धीरे से धक्का मारा। काव्या चीख पड़ी, “आह… वीर… मर गई… उई… धीरे…” लेकिन वीरेंद्र ने धीरे-धीरे अपना लंड अंदर पेल दिया।
“आह… कितनी टाइट है तेरी गांड… उफ्फ…” वीरेंद्र सिसकार रहा था। वो धीरे-धीरे काव्या की गांड चोदने लगा। काव्या को पहले दर्द हुआ, लेकिन जल्दी ही उसे मजा आने लगा। “आह… वीर… और जोर से… उफ्फ… चोदो मेरी गांड…” वो सिसकार रही थी। वीरेंद्र ने काव्या की कमर पकड़ी और जोर-जोर से धक्के मारने लगा। “आह… ले… मेरी जान… तेरी गांड तो चूत से भी मजेदार है… उफ्फ…” कमरे में उनकी सिसकारियां और टेबल की चरमराहट गूंज रही थी। करीब 20 मिनट तक वीरेंद्र ने काव्या की गांड रगड़ी। फिर उसने काव्या को फिर से अपनी गोद में बिठाया और उसकी चूत में लंड डाल दिया। “आह… मेरी रानी, अब फिर से तेरी चूत मारूंगा!” उसने काव्या को उछालना शुरू किया। “आह… वीर… उफ्फ… और जोर से… उई…” काव्या सिसकार रही थी।
इस बार वीरेंद्र ने काव्या को अलग-अलग पोजीशन में चोदा। पहले उसने काव्या को टेबल के किनारे पर लिटाया और उसके पैर हवा में उठाकर चोदा। “आह… वीर… उफ्फ… कितना गहरा जा रहा है… उई…” काव्या चिल्ला रही थी। फिर उसने काव्या को दीवार के सहारे खड़ा किया और पीछे से उसकी चूत में लंड पेल दिया। “आह… ले… मेरी जान… तेरी चूत फाड़ दूंगा… उफ्फ…” वीरेंद्र सिसकार रहा था। काव्या की सिसकारियां कमरे में तूफान मचा रही थीं, “आह… वीर… और जोर से… उई… मेरी चूत को रगड़ डालो…” दोनों ने दो घंटे तक नॉन-स्टॉप चुदाई की। वीरेंद्र ने काव्या की चूत और गांड दोनों को बार-बार रगड़ा। आखिरकार उसने फिर से काव्या की चूत में अपना माल उड़ेल दिया। “आह… ले… मेरी रानी… उफ्फ…” उसकी पिचकारी इतनी तेज थी कि काव्या फिर से झड़ गई। “आह… वीर… उई… मैं गई…” दोनों थककर टेबल पर लेट गए, पसीने से तर-बतर।
वीरेंद्र अपनी कुर्सी पर बैठ गया और काव्या को अपनी गोद में खींच लिया। “क्यूं, मेरी बुलबुल, कैसा लगा मेरा लंड?” उसने प्यार से पूछा।
“आह… वीर… इतना मजा आया कि बस… तेरा लंड तो जन्नत का टिकट है!” काव्या ने सिसकारी भरे लहजे में कहा। दोनों कुर्सी पर बैठकर शाम 5 बजे तक एक-दूसरे को चूमते, सहलाते रहे। फिर बैंक बंद करके चले गए। अगले दिन काव्या जब ऑफिस पहुंची, तो वीरेंद्र ने नए कपड़े पहने थे। काव्या की चूत मारने के बाद वो उस पर पूरी तरह फिदा हो चुका था। उसने काव्या को ताजे फूलों का गुलदस्ता गिफ्ट किया। बैंक में ज्यादातर वक्त खाली ही रहता था। खाली समय में वीरेंद्र काव्या के साथ इश्क लड़ाता। उस दिन सुबह जैसे ही दोनों पहुंचे, एक-दूसरे से चिपक गए।
“जानू, कल रात तुझे चोदने के बाद मैं तुझे सपनों में भी देख रहा था!” वीरेंद्र ने कहा।
“आह… वीर, मैं भी बस तेरे बारे में सोच रही थी… तेरा लंड मेरी चूत में अभी भी महसूस हो रहा है!” काव्या ने शरारत से जवाब दिया।
“तो आज फिर से तेरी चूत मारूं, मेरी रानी?” वीरेंद्र ने हंसते हुए पूछा।
“हाँ, मेरे राजा, जी भरके चोद ले… अब तो मैं सिर्फ तेरी हूँ!” काव्या ने आंख मारते हुए कहा।
दोनों दोपहर तक अपनी फाइलें निपटाते रहे। लंच टाइम में साथ खाना खाया। काव्या वीरेंद्र के लिए घर से पनीर के पराठे और बैंगन का भर्ता लाई थी। वो बड़े प्यार से उसे अपने हाथ से खिला रही थी। “आह… मेरी जान, तू तो कमाल है!” वीरेंद्र ने पराठा खाते हुए कहा। खाने के बाद उसने काव्या को फिर बाहों में भर लिया और चूमने लगा। “आज फिर तेरी चूत का मजा लूंगा!” उसने कहा। काव्या की सलवार और पैंटी उतार दी गई, और दोनों चुदाई की तैयारी में थे कि तभी बैंक के बड़े मैनेजर और दो अफसर अचानक आ धमके।
वीरेंद्र ने फटाफट काव्या की सलवार और पैंटी टेबल की अलमारी में छुपा दी। काव्या ने अपनी कुर्ती तो पहनी थी, वो जल्दी से अपनी कुर्सी पर बैठ गई, इस तरह कि उसके नंगे पैर न दिखें। कोई नहीं जान सकता था कि वो नीचे से नंगी है। वीरेंद्र भी चालाक था। उसने अपने बाल और कपड़े ठीक किए और अपनी कुर्सी पर बैठ गया। जब अफसर अंदर आए, तो काव्या और वीरेंद्र ने बड़े अदब से उनका स्वागत किया। “नमस्ते सर!” काव्या ने मुस्कुराते हुए कहा। वीरेंद्र ने हाथ मिलाया। अफसरों ने 15-20 मिनट तक कामकाज की बातें कीं और चले गए। वीरेंद्र ने चपरासी को बाहर बिठा दिया और हिदायत दी कि कोई आए तो तुरंत खबर करे। फिर वो कमरे में लौटा और काव्या के साथ इश्क शुरू कर दिया।
उसने काव्या को टेबल पर कुतिया बनाया। “आह… मेरी रानी, अब तेरी चूत और गांड दोनों मारूंगा!” उसने कहा। काव्या सिसकारी, “आह… वीर… मार ले… जोर से मार!” वीरेंद्र ने पहले काव्या की चूत में अपना लंड पेला। “आह… उफ्फ… कितनी टाइट है… ले मेरी जान!” वो धक्के मार रहा था। काव्या की सिसकारियां गूंज रही थीं, “आह… वीर… और जोर से… उई… चोद डालो!” फिर वीरेंद्र ने काव्या की गांड में उंगली डाली और धीरे-धीरे अपना लंड पेल दिया। “आह… माँ… धीरे… उफ्फ…” काव्या दर्द और मजा दोनों में तड़प रही थी। दो घंटे तक वीरेंद्र ने काव्या की चूत और गांड रगड़ी। आज काव्या को उस बैंक में सात साल हो गए। वो रोज वीरेंद्र का लंड खाती है, उसकी रखेल बन चुकी है। शादी के लिए मना करती है और कहती है, “मुझे बस वीर से चुदना है, किसी और से नहीं!”