मम्मी को चोदने के लिए पंडित की मदद ली 1

मेरे परिवार में चार लोग हैं। मैं, 22 साल का, मेरी बड़ी बहन परिधि, जो 26 साल की है, मेरी मम्मी शकुंतला, जिनकी उम्र 48 साल है, और मेरे पापा अभिमन्यु, जो 51 साल के हैं। हम एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं, लेकिन पैसे की कोई कमी नहीं थी। पापा सरकारी नौकरी करते थे, उनकी तनख्वाह अच्छी थी। हमारा घर खुशहाल था, लेकिन एक परेशानी थी जो मम्मी-पापा को हमेशा सताती थी—परिधि की शादी।

परिधि ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी। वो बहुत सुंदर, सुशील और घर के कामों में निपुण थी। लेकिन उसकी शादी नहीं हो पा रही थी क्योंकि वो मांगलिक थी और उसकी जन्मपत्री में कुछ दोष थे। मुझे इन बातों का ज्यादा ज्ञान नहीं था, लेकिन मम्मी-पापा इस वजह से बहुत चिंतित रहते थे। पापा को अपनी नौकरी के सिलसिले में अक्सर बाहर जाना पड़ता था, कभी-कभी एक-दो दिन के लिए। एक दिन जब मैं घर लौटा, तो देखा कि मम्मी-पापा हमेशा की तरह परिधि की शादी की बात कर रहे थे। तभी हमारा पंडित आ गया, जो परिधि के लिए रिश्ता ढूंढने में मदद कर रहा था।

पंडित ने बताया कि परिधि की जन्मपत्री का दोष मिटाने के लिए हरिद्वार में गंगा किनारे सात दिन की विशेष पूजा करनी होगी। इस पूजा से परिधि की शुद्धि होगी, और फिर कोई मांगलिक लड़का ढूंढकर उसकी शादी कराई जा सकती है। मुझे ये सब बातें अंधविश्वास लगती थीं, और उस पंडित पर मुझे भरोसा भी नहीं था। लेकिन मम्मी-पापा उस पर आंख मूंदकर यकीन करते थे। वो परिधि की शादी के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। पंडित की बात सुनकर वो तुरंत पूजा के लिए राजी हो गए।

पंडित ने बताया कि इस सात दिन की पूजा में यजमान, यानी पापा, का मौजूद रहना जरूरी है। लेकिन पापा को दो-तीन दिन से ज्यादा की छुट्टी मिलना मुश्किल था। आखिरकार तय हुआ कि मैं, मम्मी, परिधि और पंडित हरिद्वार जाएंगे। पापा ने हमारा ट्रेन का रिजर्वेशन करा दिया। हमने सारी तैयारियां पूरी कीं और शाम सात बजे की ट्रेन पकड़ने स्टेशन पहुंच गए। पंडित भी वहां मौजूद था। पापा ने हमें डिब्बे में बिठाया, मुझे कुछ पैसे दिए और मम्मी व परिधि का ख्याल रखने को कहा। फिर वो चले गए।

ट्रेन चलते ही हम अपनी-अपनी सीट पर बैठ गए। हमारे डिब्बे में एक कपल भी था, जो खिड़की वाली सीट पर आमने-सामने बैठे अपनी बातों में मगन थे। मम्मी, परिधि और वो औरत एक तरफ थे, जबकि मैं, पंडित और वो दूसरा आदमी दूसरी तरफ। मैं मम्मी के सामने बैठा था। बातों-बातों में मैंने गौर किया कि पंडित मम्मी को कुछ ज्यादा ही घूर रहा था। मुझे ये देखकर बहुत असहज लगा, और शायद मम्मी को भी। वो कमीना पंडित कभी मम्मी के बड़े-बड़े बूब्स की तरफ देखता, तो कभी उनकी जांघों की ओर। जब भी मम्मी किसी काम से खड़ी होतीं, वो उनकी कमर और गोल-मटोल कूल्हों को ताकता रहता।

मुझे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन मैंने खुद को संभाला। फिर मैंने सोचा कि जब वो मम्मी को घूरता है, तो मैं भी देखूं कि वो कहां-कहां देख रहा है। इस चक्कर में जाने कब मैं भी मम्मी के खूबसूरत जिस्म को ताकने लगा। मम्मी के स्तन विशाल और सख्त दिख रहे थे, उनके ब्लाउज में कसकर बंधे हुए। उनके कूल्हे भी बड़े और गोल थे, पेट हल्का-सा उभरा हुआ था। उनकी गोरी त्वचा और अच्छे से संभाला हुआ जिस्म उन्हें और आकर्षक बनाता था। मम्मी के चेहरे पर लाल बिंदी उनकी खूबसूरती को और निखार रही थी। अब तो मुझे भी मम्मी बहुत सेक्सी लगने लगी थीं। उस कमीने पंडित ने मेरी मम्मी को देखने का नजरिया ही बदल दिया था।

रात को हमने खाना खाया और सोने की तैयारी की। मैं और पंडित ऊपर की बर्थ पर सोए, मम्मी और परिधि बीच की बर्थ पर, और वो कपल नीचे की बर्थ पर। सुबह जब मैं उठा, तो देखा कि मम्मी और परिधि जाग चुकी थीं। पंडित भी जागा हुआ था, और वो कपल शायद रास्ते में कहीं उतर गया था, क्योंकि मम्मी और परिधि खिड़की वाली सीट पर बैठे थे। पंडित फिर से मम्मी को घूर रहा था, जैसे मन ही मन उनके जिस्म को पाने की तमन्ना कर रहा हो।

मम्मी ने हरे रंग की साड़ी और उसी रंग का ब्लाउज पहना था। शायद उन्हें ध्यान नहीं था, लेकिन उनकी दाहिनी चुची ब्लाउज के साइड से साफ दिख रही थी। उनका पल्लू कुछ ज्यादा ही ऊपर चढ़ गया था। पंडित तो बस उसे घूरता जा रहा था। मम्मी का स्तन बहुत बड़ा और उनकी उम्र के हिसाब से बिल्कुल ढीला नहीं लग रहा था। ब्लाउज का कपड़ा पतला होने की वजह से उनकी ब्रा हल्की-सी दिख रही थी, और उनके वक्ष का उभार जैसे कपड़े को फाड़कर बाहर आने को बेताब था। मम्मी की बगल में पसीने की वजह से ये सब और साफ हो रहा था। मेरा लंड मेरी पैंट में फड़फड़ाने लगा।

कुछ देर बाद हम हरिद्वार पहुंच गए। हमने वहां एक आश्रम में पहले से बुकिंग करा रखी थी। आश्रम बड़ा और अच्छी तरह व्यवस्थित था। हमने दो कमरे लिए—एक में पंडित और दूसरे में हम तीनों। पंडित ने कहा कि अभी आराम कर लो, शाम साढ़े पांच बजे गंगा घाट पर पूजा शुरू करेंगे। हमने दोपहर का खाना खाया और सो गए। पांच बजे मम्मी ने हमें जगाया और जल्दी तैयार होने को कहा। मैं नहाकर बाहर निकल गया, क्योंकि मम्मी और परिधि को भी तैयार होना था।

जब वो दोनों बाहर आईं, तो दोनों ने एक जैसी क्रीम रंग की साड़ी पहनी थी, जिसमें गोल्डन बॉर्डर था। ये वो साड़ी थी जो हम पूजा के लिए अक्सर पहनते थे। दोनों बहुत सुंदर लग रही थीं। लेकिन वो कमीना पंडित फिर से मम्मी को घूर रहा था। मम्मी भी उसके इस व्यवहार से परेशान दिख रही थीं। खैर, हम घाट पर पहुंचे। वहां आश्रम का निजी घाट था, जहां रहने वाले लोग सुकून से स्नान और पूजा कर सकते थे।

पंडित ने सारी तैयारियां कर रखी थीं। हम पहुंचते ही उसने मम्मी और परिधि को पूजा के स्थान पर बिठाया और मंत्र जाप शुरू किया। मैं वहां बैठा सब देख रहा था। मम्मी मेरे ठीक सामने थीं। मैंने गौर किया कि मम्मी वाकई बहुत खूबसूरत और सेक्सी थीं। उनकी उम्र की कोई और औरत इतनी आकर्षक मैंने नहीं देखी थी। इस साड़ी में तो वो इतनी हसीन लग रही थीं कि परिधि भी, जो उनसे जवान थी, उनके सामने फीकी पड़ रही थी।

कुछ देर पूजा के बाद पंडित ने कहा कि अब मम्मी और परिधि की शुद्धि मंत्रों से हो गई है। अब उन्हें गंगा में तीन डुबकियां लगानी होंगी। मम्मी हैरान हो गईं। उन्होंने कहा कि उनके पास बदलने के कपड़े नहीं हैं। लेकिन पंडित ने कहा कि पूजा अभी पूरी नहीं हुई है, उन्हें स्नान करके फिर से यहीं आकर बैठना होगा। मम्मी चुपचाप पानी में उतर गईं और डुबकियां लगाने लगीं।

जब वो बाहर आईं, तो मुझे पंडित की चाल समझ आ गई। मम्मी की साड़ी पूरी तरह भीग गई थी, जिससे उनका और परिधि का शरीर साफ दिख रहा था। परिधि ने काले रंग की ब्रा पहनी थी, और मम्मी ने सफेद। मम्मी के बूब्स साड़ी से उभरकर बाहर आ रहे थे। गीली साड़ी उनके जिस्म से चिपक गई थी, जिससे उनका पूरा शेप साफ दिख रहा था। मम्मी का हल्का-सा उभरा पेट, उनकी बड़ी गोल गांड, और मोटी-मोटी जांघें मन मोह लेने वाली थीं। मैं तो बस मम्मी को ही देख रहा था, परिधि की तरफ ध्यान नहीं गया। पंडित का हाल तो और बुरा था। वो मम्मी को देखकर इतना उत्तेजित हो चुका था कि बार-बार अपनी धोती में लंड एडजस्ट कर रहा था। मुझे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन मैं चुप रहा।

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रात साढ़े सात बजे हम वहां से लौटे। पंडित ने कहा कि खाना खाकर जल्दी सो जाओ, सुबह छह बजे फिर पूजा शुरू होगी। वो चला गया। मैंने मम्मी से कहा कि मैं जरा बाहर घूमकर आता हूं। आश्रम से बाहर निकला, तो देखा कि पंडित शर्ट-पैंट पहनकर कहीं जा रहा था। मुझे शक हुआ कि ये रात को कहां जा रहा है। मैंने उसका पीछा करने का फैसला किया।

थोड़ी देर बाद पंडित एक गंदी-सी दुकान में घुसा। मैं हैरान रह गया—वो देसी दारू की दुकान थी। मैं भीड़ में छुपकर उसे देखने लगा। उसने एक क्वार्टर मंगाया और आधा गटक गया। मुझे इस कमीने से और नफरत हो गई। दिन में पूजा-पाठ करता था, और रात होते ही शराब और रंडीखाने की सैर। पंडित ने बाकी बोतल जेब में रखी और वहां से निकल पड़ा। मैं उसके पीछे-पीछे चलता रहा।

वो एक पुराने-से घर में घुसा। मैं अंदर तो नहीं जा सकता था, लेकिन पीछे जाकर देखा तो एक खिड़की का शीशा टूटा हुआ था। मैंने एक डिब्बे का सहारा लेकर खिड़की से झांकना शुरू किया। कमरा खाली था, सिर्फ एक टेबल और बिस्तर था। मुझे लगा शायद गलत कमरे में देख रहा हूं। लेकिन तभी पंडित एक अधेड़ उम्र की औरत को लेकर आया। वो साधारण-सी थी, लेकिन मेकअप में कोई कसर नहीं छोड़ी थी—चेहरे पर पाउडर, होठों पर लिपस्टिक। मैं हैरान था कि ये पंडित ऐसी औरत के साथ क्या कर रहा है।

देखते ही देखते पंडित ने उसे बाहों में भरा और चूमने लगा। उसने औरत की चोली के ऊपर से उसके मम्मे दबाने शुरू किए। कुछ ही पलों में चोली उतार दी। औरत के बूब्स बड़े थे, लेकिन ढीले-ढाले लग रहे थे। थोड़ी देर चूमाचाटी के बाद औरत बिस्तर पर लेट गई और अपना घाघरा कमर तक उठा लिया। उसने नीचे कुछ नहीं पहना था, जिससे उसकी काली झांटों वाली चूत साफ दिख रही थी। पंडित ने अपनी पैंट और अंडरवियर उतारा, अपना लंड निकाला और उसकी चूत में घुसा दिया।

ये सब देखकर मैं भी उत्तेजित हो गया। मेरा लंड पैंट में सख्त हो चुका था। उनकी चुदाई धीरे-धीरे तेज हुई। पंडित जोर-जोर से धक्के मारने लगा। “उह्ह… आह्ह…” औरत के मूंह से सिसकारियां निकल रही थीं। पंडित ने और तेजी से चोदा, और कुछ देर बाद उसका शरीर अकड़ गया। मैं समझ गया कि वो झड़ने वाला है। कुछ पलों में पंडित हांफते हुए औरत पर ढेर हो गया। औरत चुप थी। फिर पंडित ने कपड़े पहने और औरत को कुछ रुपये देकर चला गया। तब मुझे समझ आया कि वो एक वेश्या थी।

मैं आश्रम लौटा। हमने खाना खाया। मम्मी और परिधि अपने कमरे में चली गईं। मैं बाहर टहल रहा था, ये देखने के लिए कि कहीं वो कमीना हमारे कमरे के आसपास तो नहीं आता। लेकिन वो एक बड़े कमरे में सोने चला गया, जहां और लोग भी थे। मैं अपने कमरे में गया। वहां बेड नहीं था, सिर्फ फर्श पर बिस्तर बिछा था। परिधि दीवार की तरफ सो रही थी, और मम्मी उसके पास। मेरा बिस्तर भी मम्मी के पास था।

मैं चुपचाप लेट गया। लेकिन मम्मी के लिए मेरे मन में अब अजीब-से विचार आने लगे थे। मैं सो नहीं पा रहा था। एक पल को मन किया कि मम्मी को छू लूं, लेकिन डर के मारे हिम्मत नहीं हुई। फिर हिम्मत जुटाकर मैंने धीरे से मम्मी के हाथ पर अपना हाथ रखा। मेरी धड़कन जैसे रुक गई। जब कोई हरकत नहीं हुई, तो मैं उनका हाथ सहलाने लगा। बहुत अच्छा लग रहा था। मम्मी नहीं जागीं, तो मेरा साहस और बढ़ा। मैंने उनका पेट छुआ। ओह… कितना मुलायम था, जैसे मख्खन। मैंने उंगली उनकी गहरी नाभि में घुमाई। ऐसा लग रहा था जैसे मैं स्वर्ग में हूं। इसी में मुझे नींद आ गई।

सुबह मम्मी ने मुझे जगाया और तैयार होने को कहा। मैं दांत मांजने लगा। परिधि नहाने चली गई। मैंने देखा कि मम्मी मुझे कुछ अजीब नजरों से देख रही थीं। जब मैंने उनकी तरफ देखा, तो वो मुस्कुराकर नजर फेरकर चली गईं। मुझे शर्मिंदगी हुई कि कहीं उन्हें रात की बात तो नहीं पता चल गई। खैर, हम तैयार होकर बाहर निकले। पंडित बाहर खड़ा था। हम पूजा के स्थान पर गए। वहां कुछ सफेद कपड़े पड़े थे। पंडित ने कहा कि ये शुद्ध किए हुए वस्त्र हैं, जो मम्मी और परिधि को पहनने हैं, लेकिन अभी वो अपनी साड़ी में रहें।

पंडित ने मंत्र पढ़े और मम्मी-परिधि से गंगा में डुबकी लगाने को कहा। जब वो कपड़े पहनकर लौटीं, तो मेरी आंखें फटी रह गईं। वो कपड़े तो बस एक छोटा-सा ब्लाउज, पेटीकोट और चुन्नी थे। मम्मी के बूब्स ब्लाउज में आधे भी नहीं समा रहे थे। पेटीकोट उनकी नाभि के नीचे था, और शायद उन्होंने अंदर पैंटी नहीं पहनी थी, जिससे उनकी गांड साफ झलक रही थी। परिधि का भी यही हाल था, लेकिन मेरी नजरें मम्मी पर टिकी थीं। उन्होंने चुन्नी से किसी तरह अपने जिस्म को ढकने की कोशिश की।

पंडित ने हवन शुरू किया। जब मम्मी आहुति देने के लिए झुकतीं, उनके बूब्स ब्लाउज से बाहर आने को बेताब हो जाते। मेरा लंड खड़ा हो गया। पंडित का भी यही हाल था। एक-दो बार मम्मी ने मुझे लंड एडजस्ट करते देख लिया। मैं घबरा गया, लेकिन कुछ बोला नहीं। हवन खत्म हुआ, तो नारियल की आहुति के लिए सब खड़े हुए। पंडित सामने था, मम्मी और परिधि पास-पास, और मैं मम्मी के पीछे।

पंडित ने कहा कि नारियल की आहुति के वक्त परिवार के सभी लोग लकड़ी को छूएं। मैं मम्मी के पीछे लकड़ी पकड़कर खड़ा था। मम्मी थोड़ा पीछे आईं, और मेरा तना हुआ लंड उनकी गदराई गांड से सट गया। पंडित मंत्र पढ़ रहा था, लेकिन मैं तो मम्मी की मांसल गांड पर अपने लंड के स्पर्श का मजा ले रहा था। जब मम्मी नारियल डालने झुकीं, तो उनका गोल-मटोल चूतड़ मेरे लंड से और सट गया। मैंने खुद को और आगे किया, जिससे मेरा लंड उनकी गांड की दरार में जैसे धंस-सा गया। “आह्ह…” मेरे मुंह से हल्की-सी सिसकारी निकली।

आहुति के बाद मम्मी खड़ी हुईं। मुझे डर था कि वो कुछ कहेंगी, लेकिन उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। पंडित ने कहा कि अब हम तीनों को गंगा में नहाना है, और मम्मी-परिधि को अपने पुराने कपड़े पहन लेने हैं। हम पानी में गए। मम्मी की पीठ मेरे सामने थी। जब उन्होंने डुबकी लगाई, तो गीली साड़ी में उनकी गांड का शेप साफ दिखने लगा। मेरा लंड फिर तन गया। मम्मी आराम से नहा रही थीं। उनकी नंगी पीठ, कमर और गांड का नजारा मेरे लिए जन्नत था।

जब मम्मी मुड़ीं, तो उन्होंने चुन्नी हटा दी थी। उनके बड़े-बड़े बूब्स मेरी आंखों के सामने थे। सिर्फ 30-40% हिस्सा ही कपड़े में था, बाकी बाहर उभरा हुआ। मेरा मन कर रहा था कि उनके मम्मों को वहीं भींच दूं। लेकिन मम्मी ने मुझे एक ठंडा-सा लुक दिया और वहां से चली गईं। मैं भी पानी से निकला और बाहर खड़ा हो गया। मम्मी और परिधि कपड़े बदलकर आईं, तो हम आश्रम लौटे।

पंडित ने कहा कि शाम पांच बजे फिर पूजा होगी। हम अपने कमरे में सोने चले गए। साढ़े चार बजे मम्मी ने मुझे जगाया। हम तैयार होकर घाट पहुंचे। पंडित ने मम्मी से कहा कि अब पूजा थोड़ी कठिन होगी। मम्मी ने कहा कि परिधि की जन्मपत्री का दोष हटाने के लिए वो कुछ भी करेंगी। मैं मन ही मन हंस पड़ा। मम्मी कितनी भोली थीं। अगर वो पंडित का असली चेहरा देख लेतीं, तो…

पंडित ने फिर वही बात दोहराई—गंगा में नहाओ और सफेद वस्त्र पहनो। उसने मम्मी को एक धागा दिया, जिसमें तीन इंच की एक मोटी लकड़ी बंधी थी। पंडित ने कहा कि स्नान के बाद मम्मी और परिधि इसे अपनी नाभि पर बांध लें, और पूजा पूरी होने तक न उतारें। स्नान के बाद मम्मी का रूप देखकर मैं दंग रह गया। उनके ब्लाउज का ऊपरी हुक टूटा हुआ था। मुझे समझ आया कि ये पंडित की चाल है। मम्मी के 70% बूब्स बाहर थे, और चुन्नी भी उन्हें ढक नहीं पा रही थी।

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पंडित ने कहा कि लकड़ी को पेटीकोट के अंदर रखो। मम्मी ने वैसा ही किया। जब वो बैठीं, तो लकड़ी उनकी चूत पर रगड़ने लगी। उनके चेहरे पर आनंद और शर्म का मिश्रित भाव था। पूजा के दौरान वो बार-बार उस लकड़ी से जूझ रही थीं। “उह्ह…” मम्मी के मुंह से हल्की-सी सिसकारी निकली। जब पूजा खत्म हुई, तो मम्मी और परिधि खड़ी हुईं। उनकी गांड के नीचे का हिस्सा गीला था। शायद लकड़ी की रगड़ से उनकी चूत से पानी निकल रहा था। दोनों कामुक हो चुकी थीं।

पंडित उनकी हालत देखकर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। मम्मी और परिधि ने फिर स्नान किया और कपड़े बदले। वो थकी हुई और शांत दिख रही थीं। पंडित ने उन्हें आराम करने को कहा। हम आश्रम लौटे। मैंने देखा कि पंडित फिर शर्ट-पैंट पहनकर कहीं निकल गया। मैं जानता था कि वो शराब पीने और रंडीखाने जाएगा। इस बार मैंने उसका वीडियो बनाने का फैसला किया।

वो पहले दारू की दुकान गया, फिर उस पुराने घर में। इस बार एक जवान औरत थी, जो उससे छोड़ने की मिन्नत कर रही थी। लेकिन नशे में धुत पंडित ने उसे बिस्तर पर पटक दिया और उसके कपड़े उतारने लगा। औरत चीख रही थी। तभी वो अधेड़ औरत आई और चिल्लाई कि पुलिस की रेड पड़ रही है। जवान औरत कपड़े लेकर भाग गई। पंडित ने अधेड़ औरत को पकड़ लिया और चूमने लगा। लेकिन उसने पंडित को जोरदार तमाचा मारा और पीछे के दरवाजे की तरफ ढकेल दिया।

अचानक पंडित और वो औरत मेरे सामने आ गए। मैंने झट से अपने फोन से उनकी तस्वीरें खींच लीं। औरत ने खुद को छुड़ाया और भाग गई। पंडित आधा नंगा जमीन पर पड़ा था। भीड़ जमा हो गई। पुलिस आई और पंडित को पकड़ लिया। उसे पीटने की बारी थी, तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी। उसने पुलिस को बताया कि वो आश्रम में मेरे साथ है। मैंने मौके का फायदा उठाया और पुलिस से कहा कि ये सचमुच हमारे साथ है। पुलिस ने उसे छोड़ दिया।

आश्रम लौटकर पंडित बार-बार मेरा शुक्रिया अदा करने लगा। खाने के वक्त मम्मी ने उसकी लाल चेहरा देखकर चिंता जताई, लेकिन उसने बात टाल दी। खाना खाकर मम्मी और परिधि कमरे में चली गईं। मैं बाहर बैठा रहा। पंडित मेरे पास आया और मम्मी की तारीफ करने लगा। मुझे गुस्सा आया, और मैंने उसे जोरदार तमाचा मारा। मैंने उसे मेरे फोन की तस्वीरें दिखाईं और धमकाया कि अगर ये शहर में फैलीं, तो उसका धंधा चौपट हो जाएगा।

पंडित डर गया और माफी मांगने लगा। मैंने उससे कहा कि वो मम्मी को फंसाने की साजिश रच रहा था। उसने कबूल किया कि उसने ये पूजा मम्मी को अपने जाल में फंसाने के लिए रची थी। लेकिन मेरे आने से उसका प्लान बिगड़ गया। उसने ये भी बताया कि परिधि के लिए उसने सचमुच एक रिश्ता ढूंढ लिया था। ये सुनकर मुझे और गुस्सा आया। मैंने उसे कोने में ले जाकर अच्छे से पीटा और फिर धमकी दी।

फिर मैंने उससे कहा कि मैं मम्मी को पाना चाहता हूं, लेकिन प्यार से, न कि जबरदस्ती। और वो मेरी मदद करेगा, वरना मैं उसकी पोल खोल दूंगा। पंडित हंसने लगा कि मैं अपनी मां के साथ ऐसा सोचता हूं। मैंने उसे एक और थप्पड़ मारा और कहा कि उसकी वजह से ही मेरी नियत बिगड़ी है। अब वो मेरी हर बात मानने को तैयार था।

मैंने उसे धमकाया कि अगली सुबह से मेरा काम शुरू हो जाना चाहिए। मैं कमरे में लौटा। मम्मी और परिधि सो चुकी थीं। खिड़की से चांदनी आ रही थी। मम्मी की साड़ी घुटनों तक ऊंची थी, और उनके गोरे पैर चांदनी में चमक रहे थे। मेरा मन मचल गया। मैं उनके पैरों के पास बैठ गया और उन्हें देखने लगा। मन कर रहा था कि उनके पैर छू लूं, लेकिन डर भी लग रहा था।

आखिरकार हिम्मत करके मैंने उनके पैर छुए। मेरा शरीर ठंडा पड़ गया। मैंने कुछ देर बिना हिलाए हाथ रखा, फिर धीरे-धीरे उनके पैर सहलाने लगा। उनकी टांगों पर एक भी बाल नहीं था, शायद उन्होंने वैक्स कर रखा था। ये सोचकर मैं और उत्तेजित हो गया। मेरा लंड तन गया और पैंट में चिपचिपा होने लगा। मैं उनके पैरों को नाखूनों से घुटनों तक सहला रहा था। तभी मम्मी जाग गईं और मेरा हाथ पकड़ लिया। मेरी सांस रुक गई।

मम्मी ने शांत स्वर में पूछा, “बेटा, ये क्या कर रहा है?” मैं हड़बड़ाते हुए बोला, “मम्मी, मैं आपके पैर दबा रहा था।” उन्होंने थोड़े गुस्से से पूछा, “क्यों?” मैंने कहा, “मुझे लगा आप पूजा में बैठकर थक गई होंगी, तो पैर दबाने से आराम मिलेगा। लेकिन आपकी नींद कैसे खुल गई?” मम्मी बोलीं, “बेटा, वो पंडित जी ने जो लकड़ी बंधवाई है, उससे सोने में तकलीफ होती है।” मैंने कहा, “आप सो जाइए, मैं पैर दबा देता हूं।”

मम्मी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव आए। उन्होंने प्यार से मेरे बालों में हाथ फेरा और बोलीं, “मेरा राजा बेटा मेरा कितना ख्याल रखता है।” मैंने कहा, “मम्मी, ये तो मेरा फर्ज है।” फिर वो बोलीं, “बेटा, तू भी तो पूजा में थक गया होगा। अब बस कर, सो जा।” वो लेट गईं। मैं उनके पास लेट गया। मम्मी ने मुझे प्यार से अपनी बाहों में खींच लिया और मेरे कंधे पर हाथ रखकर सो गईं। उनकी साड़ी का पल्लू खिसक गया था। उनके बड़े-बड़े मम्मे और उनकी गहरी दरार चांदनी में गजब ढा रही थी। लेकिन मैंने चुपचाप सो जाना बेहतर समझा।

सुबह पांच बजे मम्मी ने मुझे जगाया। मैं खुशी-खुशी तैयार हो गया। मम्मी का रवैया आज बदला हुआ था। वो मेरा बहुत ख्याल रख रही थीं और बार-बार मेरी तारीफ कर रही थीं। रात के पैर दबाने वाले ड्रामे से वो पिघल गई थीं। वो नहीं जानती थीं कि मैं उन्हें किस नजर से देख रहा था। जब हम नीचे आए, तो पंडित हमारा इंतजार कर रहा था। मुझे देखते ही उसने नजरें झुका लीं। हम घाट पर पहुंचे। मम्मी और परिधि पूजा के स्थान पर बैठ गईं।

पंडित ने पूजा शुरू की। आज वो पूरा ध्यान मंत्रों पर दे रहा था। कुछ देर बाद उसने कहा कि अब परिधि की जरूरत नहीं है, वो आश्रम जा सकती है। अब आगे की विधि में मम्मी और मेरा काम था। मैं समझ गया कि पंडित मेरे लिए मौका बना रहा है। मैंने उसे इशारे से कहा कि परिधि की नाभि की लकड़ी खुलवा दे। उसने वैसा ही किया। मम्मी को थोड़ा अचरज हुआ, लेकिन पंडित ने कहा कि बाकी विधि वो मम्मी के साथ पूरी कर लेगा। परिधि ने धागा पंडित को दिया और आश्रम चली गई।

पंडित ने मम्मी से कहा कि अब उनकी विधिपूर्वक शुद्धि और स्नान होगा। मम्मी बोलीं, “इसमें नया क्या है? हम तो रोज कर रहे हैं।” पंडित ने कहा, “अब पूजा और कठिन होगी। सिर्फ डुबकी से शुद्धि नहीं होगी। आपको पहले दिव्य जड़ी-बूटी वाला तेल लगाना होगा, फिर गंगा स्नान करना होगा। ये काम आप खुद नहीं कर सकतीं, और मेरे लिए ये करना उचित नहीं। इसलिए आपका बेटा ये करेगा।”

मम्मी हैरान और परेशान हो गईं। वो बोलीं, “पंडित जी, वो मेरा बेटा है। मैं उसके सामने कैसे स्नान करूं? परिधि ये कर सकती है।” लेकिन पंडित ने कहा, “परिधि का दोष है, वो नहीं कर सकती। अगर आप अपनी बेटी का दोष हटाना चाहती हैं, तो ऐसा ही करना होगा।” मम्मी घबरा गईं और माफी मांगने लगीं। पंडित ने कहा कि वो कुछ देर के लिए चला जाएगा, और मुझे सारी विधि समझा देगा। एक भी गलती हुई, तो पूजा व्यर्थ हो जाएगी।

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पंडित ने एक सुनसान जगह बताई, जहां ज्यादा लोग नहीं आते थे। मम्मी ने हामी भर दी। पंडित मुझे कोने में ले गया और बोला, “देख, मैंने शुरुआत कर दी। अब तुझे भी कोशिश करनी होगी। मैं ऐसे मौके देता रहूंगा, लेकिन कल वाली बात किसी से मत कहना।” मैंने उसे निश्चिंत रहने को कहा। वो मुझे तेल की बोतल देकर चला गया।

मैं मम्मी के पास पहुंचा। वो घबराई हुई थीं। मैं समझ सकता था कि उनके मन में क्या चल रहा है। लेकिन मैं मन ही मन बहुत खुश था। मैंने परेशान होने का नाटक किया। मम्मी ने क्रीम रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज पहना था। उनकी सफेद ब्रा साफ दिख रही थी। मैंने हिचकिचाते हुए कहा, “मम्मी, विधि शुरू करें, वरना सूरज निकल आएगा और लोग आ जाएंगे।”

मम्मी बोलीं, “ठीक है।” वो एक पत्थर पर बैठ गईं। मैं उनके पैरों के पास जमीन पर बैठ गया और उनका एक पैर अपने घुटने पर रखा। मैंने उनके तलवों पर तेल लगाना शुरू किया। “आह्ह…” मम्मी के मुंह से हल्की सिसकारी निकली। फिर मैंने उनकी उंगलियों और पैर के ऊपरी हिस्से पर तेल रगड़ा। मम्मी बहुत असहज थीं, लेकिन मुझे बड़ा मजा आ रहा था। उनकी आंखें बंद थीं, जिससे मुझे और मौका मिल रहा था।

मैंने उनकी साड़ी घुटनों तक उठाई। मम्मी ने आंखें खोलीं और बोलीं, “ये क्या कर रहा है?” मैंने कहा, “पंडित जी ने ऐसा करने को कहा है। रुक जाऊं?” मम्मी बोलीं, “नहीं, अगर पंडित जी ने कहा है, तो कर। परिधि के भविष्य का सवाल है।” अब मुझे खुला लाइसेंस मिल गया। मैंने उनके घुटनों तक तेल लगाया। मम्मी ने फिर आंखें बंद कर लीं। उनके चेहरे का रंग लाल होने लगा था। शायद उन्हें भी मजा आ रहा था।

मैंने हिम्मत करके उनकी साड़ी जांघों तक उठानी चाही। मम्मी शरमा गईं और बोलीं, “ऐसा मत कर।” मैंने कहा, “मम्मी, तेल कैसे लगाऊंगा?” उन्होंने पूछा, “पंडित जी ने वहां भी तेल लगाने को कहा है?” मैंने कहा, “हां।” मम्मी बोलीं, “साड़ी ऊपर मत कर, तेल के दाग लग जाएंगे।” मैंने तेल अपने हाथों में लिया और साड़ी के अंदर हाथ डालकर उनकी जांघों पर मालिश शुरू की।

उफ्फ… मम्मी की जांघें इतनी मुलायम थीं, जैसे फूलों को छू रहा हूं। मैं धीरे-धीरे उनकी जांघों के ऊपरी हिस्से पर तेल रगड़ने लगा। “उह्ह… आह्ह…” मम्मी के मुंह से सिसकारियां निकलने लगीं। जब मेरा हाथ उस लकड़ी को छूता, जो पंडित ने दी थी, तो मैं उसे उनकी चूत की तरफ हल्के-से धकेलता। मम्मी मस्ती में आ चुकी थीं। वो अपने होठों को दांतों तले दबा रही थीं।

मैंने उनसे खड़े होने को कहा। वो बोलीं, “क्यों?” मैंने कहा, “पैरों के पीछे के हिस्से में भी तेल लगाना है।” वो खड़ी हो गईं। मैं घुटनों पर बैठ गया और साड़ी में हाथ डालकर उनके पैरों के पीछे तेल रगड़ने लगा। कई बार मेरा हाथ उनकी पैंटी की लाइन को छूता। जब मेरा हाथ उनकी गांड के करीब जाता, वो सहम जातीं। “आह्ह…” उनकी सिसकारी निकल पड़ती।

मैं खड़ा हुआ और उनका हाथ पकड़कर तेल लगाने लगा। ब्लाउज की वजह से पूरे हाथ में तेल लगाना मुश्किल था। मैंने कहा, “मम्मी, इन कपड़ों में तेल नहीं लगा पाऊंगा। और नीचे का हिस्सा भी बाकी है।” मम्मी चौंक गईं। उनकी आंखों में सवाल थे, लेकिन वो कुछ बोल नहीं पाईं। मैंने कहा, “मम्मी, जल्दी रोशनी हो जाएगी। लोग आ जाएंगे। बेहतर है आप साड़ी-ब्लाउज उतारकर पेटीकोट पहन लें। पंडित जी ने ऐसा ही कहा है।”

मम्मी चुप थीं। वो पंडित पर भरोसा करती थीं। वो साइड में गईं और साड़ी-ब्लाउज उतारकर सफेद पेटीकोट में आ गईं। उनके खुले बाल और शर्म से लाल चेहरा उन्हें अप्सरा जैसा बना रहा था। मैं उनके पीछे खड़ा हुआ और उनके बालों में तेल लगाया। उनकी गर्दन और कंधों पर तेल रगड़ते हुए मैंने उनके बूब्स के ऊपरी हिस्से को छुआ। उनके बूब्स पेटीकोट में समा नहीं रहे थे। “उह्ह…” मम्मी की सिसकारी फिर निकली।

मैंने उनकी पीठ पर तेल लगाया। उनकी मखमली त्वचा का स्पर्श सुखद था। मम्मी भी अब मेरे हाथों का मजा ले रही थीं। उनका चेहरा लाल हो चुका था। अब बारी थी उनके प्राइवेट हिस्सों की। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे आगे बढ़ूं। मैंने कहा, “मम्मी, बाकी जगहों पर तेल लग गया है।” उन्होंने पूछा, “कुछ बाकी है?” मैंने नजर नीचे करके कहा, “पंडित जी ने पूरे बदन पर तेल लगाने को कहा था, लेकिन मुझे लगता है अब रुक जाना चाहिए।”

मम्मी सोच में पड़ गईं। एक तरफ पंडित के प्रति उनकी श्रद्धा थी, दूसरी तरफ अपने बेटे के सामने नंगी होने का डर। उन्होंने पूछा, “पंडित जी ने सचमुच सब जगह तेल लगाने को कहा है?” मैंने कहा, “हां।” मैंने निकलने का नाटक किया कि पंडित को बुलाकर तसल्ली कर दूं। मम्मी घबरा गईं। वो नहीं चाहती थीं कि पंडित उन्हें इस हाल में देखे।

मम्मी ने कहा, “मैं तेरे सामने कपड़े नहीं उतार सकती। एक काम कर, अपनी आंखों पर पट्टी बांध ले।” मैं थोड़ा नाराज हुआ, क्योंकि मैं इसका मजा लेना चाहता था। लेकिन मैंने पट्टी बांध ली। मैंने तेल लिया और पेटीकोट में हाथ डाला। जैसे ही मेरा हाथ मम्मी के बूब्स को छुआ, हम दोनों के शरीर में जैसे करंट दौड़ गया। “आह्ह…” मम्मी की सिसकारी निकली। मैं उनके निपल्स पर तेल रगड़ने लगा। उनके निपल्स सख्त हो रहे थे। मैं उनके बड़े-बड़े बूब्स को हल्के-हल्के सहला रहा था। “उह्ह… आह्ह…” मम्मी की सिसकारियां तेज हो रही थीं।

मैंने उनके बूब्स से हाथ हटाया और पेटीकोट में हाथ डालकर उनकी गांड पर रखा। उनकी गांड टाइट और सुडौल थी। “ओह्ह…” मम्मी का बैलेंस बिगड़ा। मैंने उनकी गांड की दरार में तेल रगड़ा। फिर मैंने हिम्मत करके उनकी चूत के करीब हाथ ले गया। जैसे ही मेरा हाथ उनकी चूत को छुआ, मुझे गर्मी महसूस हुई। उनकी चूत गीली और भट्टी की तरह गर्म थी। “आह्ह… उह्ह…” मम्मी ने अपनी टांगों से मेरा हाथ दबा लिया। उनकी चूत चिकनी थी, एक भी बाल नहीं।

मैं उनकी चूत को सहलाने लगा। “उह्ह… बेटा… आह्ह…” मम्मी की सिसकारियां तेज हो गईं। वो उस लकड़ी और मेरे स्पर्श से पूरी तरह उत्तेजित थीं। उनकी चूत के होठ फूले हुए थे। मैंने धीरे-धीरे उनकी चूत की दरार में उंगली घुमाई। “आह्ह… ओह्ह…” मम्मी के मुंह से लंबी सिसकारी निकली। मैं चाहता था कि ये पल यहीं रुक जाए। लेकिन मैंने धीरे से हाथ हटा लिया। मम्मी को होश आया। उन्होंने मेरी पट्टी खोली और घाट की तरफ चली गईं।

मैं भी बाहर आ गया। दोस्तो, अभी के लिए इतना ही। मम्मी की चुदाई मैंने कैसे की, ये जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें।

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कहानी का अगला भाग: मम्मी को चोदने के लिए पंडित का सहारा लिया 2

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