मेरा नाम हिमेश (बदला हुआ नाम) है, और मैं हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गाँव का रहने वाला हूँ। मेरी उम्र अब 35 साल है, लेकिन जो कहानी मैं बताने जा रहा हूँ, वो तब की है जब मैं 19 साल का था। मैं एक साधारण सा लड़का था, 5 फीट 10 इंच लंबा, गोरा रंग, और पढ़ाई में ठीक-ठाक। मेरे सपने बड़े थे, लेकिन गाँव की जिंदगी में ज्यादा मौके नहीं मिलते थे। मेरे पापा, रमेश (बदला हुआ नाम), 45 साल के थे, एक मजबूत कद-काठी के आदमी, गाँव में छोटा-मोटा व्यापार करते थे। उनका स्वभाव सख्त था, लेकिन परिवार के लिए वो सब कुछ करते थे। मेरी माँ, रेखा (बदला हुआ नाम), 40 साल की थीं, एक सुंदर और मेहनती औरत, जिनका गोरा रंग और भरा हुआ बदन गाँव की औरतों में उन्हें अलग बनाता था। वो घर संभालती थीं और हमेशा हँसी-खुशी का माहौल रखती थीं। मेरी बहन, डिंपी (बदला हुआ नाम), 18 साल की थी, 10वीं में पढ़ती थी। वो पतली, नाजुक सी लड़की थी, छोटे-छोटे कदमों से चलती थी, और उसकी आँखों में एक मासूमियत थी, जो शायद उसकी उम्र की वजह से थी। मेरी दादी, 70 साल की थीं, जो अब ज्यादातर अपने कमरे में समय बिताती थीं, और परिवार की हर बात में उनकी राय मायने रखती थी।
हमारा परिवार एक छोटे से घर में रहता था, जहाँ दो कमरे थे। एक कमरे में माँ-पापा सोते थे, दूसरे में मैं, और तीसरे में दादी और डिंपी। गाँव का जीवन सादा था, लेकिन हमारे घर में हमेशा हँसी-खुशी का माहौल रहता था। फिर भी, उस दिन की घटना ने मेरी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया।
उस दिन शाम के 8 बजे थे। मैं अपने कमरे में किताब पढ़ रहा था, जब भूख लगी तो किचन की तरफ चला गया। किचन में माँ सब्जी बना रही थीं, उनकी साड़ी का पल्लू कमर में खोंसा हुआ था, और पसीने से उनकी पीठ चमक रही थी। डिंपी पास में आटा गूँथ रही थी, और उसकी सलवार-कमीज में वो और भी मासूम लग रही थी। मैं किचन में कुर्सी पर बैठ गया, खाना बनने का इंतजार करने लगा। तभी पापा किचन में आए। वो थोड़े गंभीर लग रहे थे, शायद दिनभर के काम की थकान थी। उन्होंने डिंपी को देखा और बोले, “डिंपी, तेरी माँ खाना बना लेगी, तू मेरे साथ चल, थोड़ा पढ़ाई करवा देता हूँ।”
डिंपी ने कोई जवाब नहीं दिया, बस चुपचाप रोटी बेलती रही। पापा ने दो-तीन बार और कहा, लेकिन डिंपी नहीं हिली। माँ ने भी कहा, “डिंपी, जा ना, जब तेरे पापा बुला रहे हैं।” डिंपी फिर भी नहीं मानी। मैं ये सब देख रहा था, लेकिन मेरे दिमाग में कोई शक नहीं था। मुझे लगा शायद डिंपी को पढ़ाई का मूड नहीं था। आखिरकार, माँ ने डिंपी का हाथ पकड़कर उसे उठाया और बोलीं, “जब तेरे पापा बुला रहे हैं, तो चली जा।” डिंपी चुपचाप पापा के साथ चली गई।
माँ ने खाना बनाया, और मैंने जल्दी से खा लिया। फिर मैं पापा के कमरे की तरफ गया, सोचा शायद डिंपी की पढ़ाई देख लूँ। मैंने दरवाजे को धक्का दिया, लेकिन वो अंदर से बंद था। मुझे थोड़ा अजीब लगा, लेकिन फिर भी कुछ खास नहीं सोचा। हमारे गाँव के घर में उस समय टॉयलेट नहीं था, तो बाहर ही जाना पड़ता था। मैं मूतने के लिए पापा के कमरे की पिछली तरफ गया, जहाँ एक छोटा सा दरवाजा था। उस दरवाजे में एक बड़ा सा छेद था, जिससे अंदर का कुछ-कुछ दिखता था।
मैं मूतने लगा, तभी डिंपी की चीख सुनाई दी, “उई माँ, मर गई!” मैं चौंक गया। मैंने जल्दी से दरवाजे के छेद से अंदर झाँका। जो देखा, उसने मेरे होश उड़ा दिए। डिंपी पूरी नंगी खड़ी थी, और पापा भी नंगे थे। पापा का लंड, जो शायद 7-8 इंच लंबा था, तना हुआ था। डिंपी के छोटे-छोटे मम्मे, जो अभी पूरी तरह विकसित भी नहीं हुए थे, साफ दिख रहे थे। मैंने कान दरवाजे से लगाया। डिंपी कह रही थी, “पापा, प्लीज, मत चोदो, बहुत दर्द होता है।”
पापा ने धीरे से कहा, “अरे, धीरे-धीरे करूँगा, डर मत।” डिंपी बोली, “अभी तो 9 बजे हैं, सब जाग रहे हैं, अगर किसी को पता चल गया तो?” पापा ने डिंपी के मम्मों को मुँह में लिया और चूसने लगे। फिर बोले, “डर मत, मेरी रानी, कोई नहीं देखेगा।” डिंपी की चूत साफ दिख रही थी, उस पर हल्के-हल्के बाल थे। पापा ने एक उंगली उसकी चूत में डाली, तो डिंपी उछल पड़ी। पापा ने उसके मम्मों को चूसते-चूसते उसकी चूत में उंगली चलानी शुरू की। डिंपी जैसे धीरे-धीरे नशे में आ रही थी। उसने पापा का लंड मुँह में लिया और चूसने लगी। पापा का लंड अब और सख्त हो गया, शायद 8 इंच तक पहुँच गया।
पापा ने डिंपी को बेड पर लिटाया। बेड उस दरवाजे के पास ही था, जहाँ मैं खड़ा था। मुझे अब सब कुछ साफ दिख रहा था। पापा ने अपना लंड डिंपी की छोटी सी चूत पर रखा और एक हल्का सा झटका दिया। डिंपी चिल्लाई, “उई माँ!” पापा ने बिना रुके एक जोरदार झटका मारा। डिंपी जोर से चीखी, “माँ, मुझे बचा लो, मेरी चूत फट गई!” लेकिन पापा नहीं रुके। वो डिंपी को चोदते रहे। डिंपी की सिसकियाँ धीरे-धीरे कराहों में बदल गईं। उसका दर्द अब मजे में बदल रहा था। पापा ने कंडोम पहना हुआ था, और कुछ देर बाद दोनों झड़ गए। पापा ने लंड बाहर निकाला, तो कंडोम उनके माल से भरा हुआ था।
दोनों ने कपड़े पहने, और मैं जल्दी से किचन में वापस आ गया। माँ किचन में थीं, और मुझे लगा कि उन्हें कुछ नहीं पता कि डिंपी की “पढ़ाई” कैसे हुई। थोड़ी देर बाद पापा और डिंपी भी किचन में आए। डिंपी चुप थी, और पापा सामान्य दिख रहे थे। हम सबने खाना खाया और अपने-अपने कमरे में सोने चले गए।
अगली सुबह, पापा काम पर चले गए। किचन में मैं, डिंपी और माँ थे। मैंने सोचा कि माँ को सब बता देना चाहिए। मैंने माँ से कहा, “माँ, डिंपी से पूछो, रात को उसने क्या पढ़ाई की?” फिर मैंने माँ को बताया कि मैंने दरवाजे के छेद से पापा और डिंपी को गलत काम करते देखा। माँ ने गंभीर चेहरा बनाया और बोलीं, “हिमेश, ये बात किसी को मत बताना, नहीं तो बहुत बेइज्जती होगी। मैं कुछ करती हूँ।”
उसके बाद माँ ने डिंपी का बेड अपने कमरे में शिफ्ट करवा दिया। पापा और माँ के कमरे में पहले से डबल बेड था, और अब डिंपी के लिए एक सिंगल बेड भी लग गया। मैंने सोचा कि अब माँ के सामने कुछ नहीं होगा। माँ ने डिंपी को सारा दिन अपने पास रखने का फैसला किया।
करीब 3-4 दिन बाद, रात के 11 बजे, मैं मूतने के लिए उठा। मैंने सोचा कि एक बार फिर दरवाजे के छेद से देख लूँ। पापा के कमरे में टीवी चल रहा था, जिसकी रोशनी से सब कुछ साफ दिख रहा था। मैंने जो देखा, उसने मुझे हक्का-बक्का कर दिया। डिंपी पापा और माँ के साथ डबल बेड पर थी। वो पापा की गोद में बैठी थी, और माँ पास में बैठी थीं। मैंने जो देखा, उसने मेरे होश उड़ा दिए। डिंपी पूरी नंगी थी, और पापा भी नंगे थे। माँ भी बिना कपड़ों के थीं, और तीनों एक-दूसरे के साथ उलझे हुए थे। पापा डिंपी के छोटे-छोटे मम्मों को चूस रहे थे, और माँ अपनी चूत में उंगली डाल रही थीं।
माँ ने पापा से कहा, “पिछले एक हफ्ते से तुम डिंपी को चोद रहे हो, मेरी तरफ भी ध्यान दो।” पापा ने हँसते हुए कहा, “डिंपी की टाइट चूत का मजा ही कुछ और है, रेखा।” माँ ने गुस्से में कहा, “जिसने डिंपी को तैयार किया, उसका भी ख्याल करो। मेरा भी मन कर रहा है आज।”
पापा ने डिंपी को बेड पर लिटाया और उसकी चूत पर अपना लंड रगड़ने लगे। डिंपी बोली, “पापा, प्लीज, पूरा मत डालो, मेरी चूत फट जाएगी।” लेकिन पापा ने धीरे-धीरे अपना लंड उसकी चूत में डालना शुरू किया। डिंपी की सिसकियाँ कमरे में गूँज रही थीं। माँ पास में बैठकर अपनी चूत सहला रही थीं और कह रही थीं, “रमेश, अब देर रात को ही ऐसा करना, हिमेश को सब पता चल गया है।”
पापा ने कहा, “ठीक है, अब रात को ही करेंगे।” मैं समझ गया कि ये सब माँ की मर्जी से हो रहा था। पापा ने डिंपी को चोदना शुरू किया, और माँ अपनी उंगलियों से खुद को संतुष्ट करने लगी। डिंपी बार-बार कह रही थी, “पापा, धीरे करो, दर्द हो रहा है।” लेकिन पापा रुके नहीं। कुछ देर बाद दोनों झड़ गए।
माँ ने पापा से कहा, “अब मेरी बारी है, मुझे भी चोदो।” पापा ने हँसकर कहा, “जा, अपने बॉयफ्रेंड से चुदवा ले।” मैं हैरान रह गया। ये क्या हो रहा था हमारे घर में? माँ ने गुस्से में कहा, “ठीक है, मैं विजय के पास जा रही हूँ।”
माँ ने कपड़े पहने और उस दरवाजे की तरफ आईं, जहाँ मैं खड़ा था। मैं जल्दी से छिप गया। माँ गाँव के पटवारी विजय के कमरे की तरफ गईं। विजय 30 साल का एक जवान आदमी था, गोरा, लंबा, और गाँव की लड़कियों में मशहूर। मैं खिड़की के पास छिपकर देखने लगा।
विजय सिर्फ अंडरवेयर में था। माँ ने उसका लंड बाहर निकाला और चूसने लगीं। विजय का लंड 8 इंच का हो गया। विजय ने माँ के बड़े-बड़े मम्मों को चूसना शुरू किया और कहा, “रेखा, डिंपी को भी चुदवाओ, मेरा बहुत मन करता है उसे चोदने का।” माँ ने कहा, “वो अभी छोटी है।” विजय ने कहा, “मैंने बहुत कोशिश की, पर वो नहीं पटी।”
माँ पूरी नंगी हो गईं और बोलीं, “पहले मुझे जमकर चोदो, फिर देखती हूँ।” विजय ने माँ की चूत पर अपना लंड रखा और एक ही झटके में पूरा अंदर डाल दिया। माँ सिसकियाँ लेने लगीं, “हाय, विजय, जोर से चोदो, और जोर से!” विजय ने माँ की चूत को जमकर चोदा, फिर उनकी गांड भी मारी। माँ की सिसकियाँ पूरे कमरे में गूँज रही थीं। आखिरकार, दोनों झड़ गए, और माँ कपड़े पहनकर घर लौट आईं।
कुछ साल बाद, जब डिंपी 18 साल की हुई, उसकी शादी हो गई। आज वो 33 साल की है। मैंने कई बार सोचा कि डिंपी से पूछूँ कि ये सब कैसे शुरू हुआ, लेकिन हिम्मत नहीं हुई। आखिरकार, एक दिन मैंने हिम्मत करके डिंपी से बात की। उसने बताया कि माँ विजय के साथ पहले से चुदाई करवाती थीं। जब पापा को पता चला, तो उन्होंने माँ को भला-बुरा कहा। माँ-पापा की लड़ाई होने लगी। फिर पापा ने शर्त रखी कि अगर माँ डिंपी को उनके साथ चुदवाने देंगी, तो वो माँ के विजय के साथ संबंध पर कुछ नहीं कहेंगे।
माँ ने डिंपी को सब बता दिया और कहा, “घबराने की जरूरत नहीं, थोड़ा दर्द होगा, फिर मजा आएगा।” डिंपी डर रही थी, लेकिन माँ के कहने पर मान गई। उसने बताया कि शादी के बाद भी उसने पापा के साथ कई बार चुदाई की। मैंने पूछा, “और किन-किन से चुदवाया?” डिंपी ने कहा, “पापा से तो तुम्हें पता है। माँ के कहने पर विजय से भी चुदवाया। शादी के बाद मेरे पति के दोस्त ने भी मुझे कई बार चोदा।”
मैंने मजाक में कहा, “तूने इतनों को मौका दिया, मुझे क्यों नहीं?” डिंपी हँसी और बोली, “तूने कभी इशारा ही नहीं किया। मैं तो तैयार थी। सोचा था, सबको दे रही हूँ, तो अपने भाई को भी दे दूँ।” उसने कहा, “अब कर ले।” मैंने मना कर दिया, “अब नहीं करना।”
ये थी मेरे जीवन की एक सच्ची घटना, जिसने मुझे हमेशा के लिए बदल दिया।