कुंवारी लड़की को राजधानी एक्सप्रेस बन चोदा

मेरा नाम मुकेश है। ये बात उस वक्त की है जब मैं इलाहाबाद में रहने चला गया था। वहाँ एक कॉलेज में एलएलबी की पढ़ाई कर रहा था। अपने दोस्तों से मिलने और कुछ काम के सिलसिले में मुझे कभी-कभी कुशीनगर जाना पड़ता था। वहाँ मैं अपनी मुंहबोली दीदी के घर रुकता था। उनकी दो छोटी बहनें थीं—रोज़ी और माया। माया रोज़ी से छोटी थी, लेकिन उसका जिस्म इतना कामुक था कि मोहल्ले के सारे लड़के उसके दीवाने थे। जब से मैं कुशीनगर में आता-जाता था, माया की खूबसूरती और अदाओं ने मुझे भी बेकरार कर रखा था।

एक बार दीदी ने मज़ाक में मेरी मम्मी से माया के साथ मेरी शादी की बात चलाई थी। बस, तभी से मेरे मन में माया को लेकर एक अजीब सा ख्याल घर कर गया। मैं उसे अपनी होने वाली बीवी की तरह देखने लगा। जब भी कोई दोस्त उसके बारे में कुछ गलत बोलता, मेरा खून खौल उठता और मैं झगड़ा करने को तैयार हो जाता। माया की हँसी, उसकी चाल, और वो चंचल आँखें मुझे रातों को सोने न देती थीं।

एक बार मैं कुशीनगर गया। जैसा कि हमेशा होता था, रुकना दीदी के घर पर ही हुआ। उस दिन दिनभर दोस्तों के साथ मस्ती करने के बाद मैं थक गया था। रात को खाना खाने के बाद दीदी और जीजाजी अपने कमरे में सोने चले गए। मैं, माया, और दीदी के दोनों छोटे लड़के एक ही कमरे में थे। मुझे नींद नहीं आ रही थी। मन बेकरार था, कुछ करने को जी चाह रहा था। मैंने सोचा, क्यों ना कोई फिल्म देख ली जाए। माया और बच्चे मेरे साथ लेटे थे। मैंने धीरे से टीवी ऑन किया। उस वक्त एक रोमांटिक फिल्म चल रही थी, जिसमें कुछ गर्मागर्म सीन भी थे।

हम सब लेटकर फिल्म देखने लगे। फिल्म का माहौल ऐसा था कि मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा। आधी फिल्म खत्म होते-होते दीदी के दोनों बच्चे सो गए। मैंने चुपके से माया की तरफ देखा। उसकी साँसें नियमित थीं, शायद वो भी सो चुकी थी। लेकिन उस रोमांटिक फिल्म ने मेरे जिस्म में आग सी लगा दी थी। मेरा लंड पजामे में तंबू बना रहा था। मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था। धीरे से मैं माया के पास खिसक गया और उसकी कमर पर हल्के से हाथ रख दिया।

माया एकदम से हड़बड़ा गई। उसने आँखें खोलीं और बोली, “ये क्या कर रहे हो? कब आए इधर?”
मैंने हँसते हुए कहा, “बस अभी तो आया, माया। तू तो सो रही थी ना?”
उसने फिर पूछा, “पर इधर क्यों आए?”
मैंने माहौल को हल्का करने के लिए मज़ाक में कहा, “ज़रा ध्यान से सुन, दीदी के कमरे से कुछ आवाज़ें आ रही हैं। लगता है जीजाजी दीदी को मार रहे हैं।”

माया चौंक गई। वो धीरे से उठी और पास वाले कमरे की खिड़की की तरफ गई। उसने झाँककर देखा और एकदम से मुँह पर हाथ रखकर मेरे पास लौट आई। उसका चेहरा लाल हो रहा था। वो बोली, “हाय राम, ये क्या गंदा काम हो रहा है!”
मैंने उत्सुकता दिखाते हुए कहा, “क्या हुआ? मैं भी तो देखूँ, बताना!”
वो मना करने लगी, लेकिन मेरी ज़िद के आगे हार गई। मैं खिड़की के पास गया और जो देखा, उसने मेरे होश उड़ा दिए। जीजाजी दीदी के ऊपर चढ़े थे, उनकी साड़ी कमर तक उठी हुई थी, और वो ज़ोर-ज़ोर से दीदी की चूत में अपने लंड को पेल रहे थे। दीदी की सिसकारियाँ और जीजाजी की हल्की-हल्की गुर्राहट कमरे में गूँज रही थी।

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मैं वापस माया के पास आया। उसका चेहरा अब भी शर्म से लाल था। मैंने उसका हाथ पकड़ा और धीरे से कहा, “माया, तूने देखा ना? वो मज़े ले रहे हैं। तू भी ऐसा मज़ा लेना चाहेगी क्या?”
माया ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। उसने हल्के से मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। बस, यही वो पल था जिसका मुझे इंतज़ार था। मैंने उसकी गर्दन को ज़ोर से पकड़ा और उसके रसीले, गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रख दिए। मेरी जीभ उसके मुँह में घुस गई, और मैं उसके होंठों को चूसने लगा, जैसे कोई भूखा शेर अपने शिकार पर टूट पड़ता है।

माया ने भी जवाब देना शुरू किया। उसकी जीभ मेरे मुँह में थी, और वो मेरे होंठों को उतनी ही शिद्दत से चूस रही थी। हम दोनों एक-दूसरे के मुँह का स्वाद ले रहे थे। मेरा लंड अब पजामे में फटने को तैयार था। मैंने धीरे से उसकी स्कर्ट का हुक खोला और उसे नीचे सरका दिया। माया ने कोई विरोध नहीं किया। मैंने अपने पैर से उसकी पैंटी को नीचे खींचा और अपने अंगूठे को उसकी चूत पर रगड़ने लगा। उसकी चूत पहले से ही गीली थी, जैसे कोई नदी उफान पर हो।

मैंने माया के कान में फुसफुसाया, “लाईट और टीवी बंद कर दे, माया।”
वो उठी और चुपके से दोनों बंद कर आई। कमरे में अब सिर्फ़ हमारी साँसों की आवाज़ थी। हम 69 की पोज़िशन में आ गए। मैंने उसकी चूत पर मुँह रखा और अपनी जीभ से उसे चोदने लगा। उसकी चूत का नमकीन स्वाद मेरे मुँह में घुल रहा था। माया मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चूस रही थी, जैसे कोई प्यासा इंसान पानी की बोतल को चूसता है। उसकी जीभ मेरे लंड के सुपारे पर गोल-गोल घूम रही थी, और मैं सातवें आसमान पर था।

कुछ ही देर में माया की साँसें तेज़ हो गईं। उसका जिस्म हल्के-हल्के झटके लेने लगा। मैंने अपनी जीभ की रफ़्तार बढ़ा दी, और उसकी चूत को और ज़ोर से चाटने लगा। अचानक उसने मेरे मुँह पर ढेर सारा पानी छोड़ दिया। उसका रस मेरे मुँह में बह रहा था, और मैंने उसे पूरा पी लिया। माया निढाल होकर लेट गई, लेकिन मेरा लंड अब भी तड़प रहा था।

मैंने उसे पलटा और उसकी चूत पर अपने लंड का सुपारा रखा। मैं इतना गरम था कि बिना सोचे एक ज़ोरदार धक्का मार दिया। मेरा 6 इंच का लंड उसकी टाइट चूत को चीरता हुआ अंदर घुस गया। माया के मुँह से ज़ोर की चीख निकली, लेकिन मैंने तुरंत उसके मुँह पर हाथ रख दिया। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड जैसे किसी गर्म भट्टी में घुस गया हो। मैंने देखा कि उसकी आँखों में आँसू थे। मुझे अहसास हुआ कि वो कुंवारी थी, और मैंने उसकी सील तोड़ दी थी।

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मैं कुछ देर रुका, ताकि उसका दर्द कम हो। फिर धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। माया की सिसकारियाँ अब दर्द से आनंद में बदल रही थीं। मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ाई, और मेरा लंड उसकी चूत की गहराइयों को छू रहा था। लेकिन मैं पहले से इतना उत्तेजित था कि जल्दी ही झड़ गया। मैंने लंड बाहर निकाला, और मेरा सारा वीर्य माया के पेट पर गिर गया। मुझे थोड़ा अफ़सोस हुआ कि मैं उसे पूरी तरह तृप्त नहीं कर पाया। हम दोनों एक-दूसरे से लिपट गए, हमारी साँसें अभी भी तेज़ थीं।

मैंने माया को फिर से गरम करने की ठानी। मैंने उसके गोल, मुलायम बूब्स को दबाना शुरू किया। उसकी चूचियाँ इतनी नरम थीं, जैसे ताज़ा मलाई। मैंने एक निप्पल को मुँह में लिया और उसे चूसने लगा। माया मना कर रही थी, लेकिन उसकी सिसकारियाँ बता रही थीं कि वो फिर से उत्तेजित हो रही थी। मैंने एक हाथ से उसकी चूत में उंगली डाल दी। उसकी चूत फिर से गीली हो चुकी थी। दस मिनट की चूसने और सहलाने की मेहनत के बाद माया पूरी तरह गरम थी। मेरा लंड भी अब फिर से खड़ा हो चुका था।

इस बार मैंने कोई देर नहीं की। मैंने माया के दोनों पैर फैलाए और अपने लंड को उसकी चूत पर रखा। मैंने एक धक्का मारा, लेकिन उसकी चूत अभी भी इतनी टाइट थी कि लंड आधा ही अंदर गया। माया फिर से चीख पड़ी। मैंने तुरंत उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसे चूमने लगा, ताकि उसकी आवाज़ दब जाए। मैंने धीरे-धीरे लंड को अंदर-बाहर करना शुरू किया। उसकी चूत की गर्मी और टाइटनेस मुझे पागल कर रही थी। मैंने एक और ज़ोर का झटका मारा, और इस बार मेरा पूरा लंड उसकी चूत में समा गया। माया की आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन वो अब धीरे-धीरे मेरे साथ ताल मिला रही थी।

मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ाई। मेरा लंड उसकी चूत को चीर रहा था, और हर धक्के के साथ माया की सिसकारियाँ तेज़ हो रही थीं। “आह… मुकेश… धीरे… आह्ह…” वो बार-बार कह रही थी, लेकिन उसकी कमर मेरे साथ लय में हिल रही थी। मैंने उसके बूब्स को ज़ोर से दबाया, और उसकी चूचियों को चूसते हुए धक्के मारने लगा। कमरे में सिर्फ़ हमारी साँसों और चूत-लंड की टकराहट की आवाज़ गूँज रही थी। माया की चूत से खून और रस का मिश्रण बह रहा था, जो मेरे लंड को और चिकना बना रहा था।

पाँच मिनट बाद मैंने माया को पलटा और उसे घोड़ी बनाया। उसकी गोल, मुलायम गांड मेरे सामने थी। मैंने उसके चूतड़ों को सहलाया और अपने लंड को फिर से उसकी चूत में डाल दिया। इस बार मैंने पूरी ताकत से धक्के मारने शुरू किए। मेरा लंड उसकी चूत की गहराइयों को छू रहा था, और माया की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं। “आह… मुकेश… और ज़ोर से… चोद दे मुझे…” वो बार-बार कह रही थी। मैंने उसके बूब्स को पीछे से पकड़ लिया और उन्हें ज़ोर-ज़ोर से दबाते हुए चोदने लगा।

मैंने अपनी रफ़्तार को और तेज़ किया। मेरा लंड अब राजधानी एक्सप्रेस की तरह चल रहा था—तेज़, बेकाबू, और बिना रुके। माया का जिस्म अकड़ने लगा। मैं समझ गया कि वो झड़ने वाली है। उसने ज़ोर से मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और एक लंबी सिसकारी के साथ झड़ गई। उसकी चूत का रस मेरे लंड को भिगो रहा था। लेकिन मैं अभी नहीं झड़ा था।

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मैंने माया को फिर से पलटा और उसे मेरे ऊपर बिठा लिया। वो मेरे लंड पर अपनी चूत रखकर उछलने लगी। उसकी चूचियाँ मेरे सामने हिल रही थीं, और मैंने उन्हें मुँह में लेकर चूसना शुरू किया। माया की रफ़्तार बढ़ती जा रही थी। वो मेरे लंड को अपनी चूत में गहरे तक ले रही थी। कुछ देर बाद वो फिर से झड़ गई, और उसका जिस्म काँपने लगा।

अब मैंने उसे फिर से नीचे लिटाया और डोगी स्टाइल में चोदना शुरू किया। मैंने उसके चूतड़ों को ज़ोर से थपथपाया, जिससे उसकी गांड लाल हो गई। मेरा लंड उसकी चूत को फाड़ रहा था, और हर धक्के के साथ माया की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। मैंने उसके बाल पकड़े और उसे और ज़ोर से चोदा। माया अब पूरी तरह मेरे कब्जे में थी।

करीब 15 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद मैं भी अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया। मैंने माया से पूछा, “कहाँ निकालूँ?”
वो हाँफते हुए बोली, “अंदर ही… मैं गोली खा लूँगी…”
मैंने अपनी रफ़्तार और तेज़ की और एक ज़ोरदार धक्के के साथ अपना सारा वीर्य उसकी चूत में उड़ेल दिया। हम दोनों हाँफते हुए एक-दूसरे से लिपट गए। मेरा लंड अभी भी उसकी चूत में था, और उसकी चूत का रस मेरे लंड को गीला कर रहा था।

जब मैंने लंड बाहर निकाला, तो उसकी चूत से खून और वीर्य का मिश्रण बह रहा था। माया रोते हुए बोली, “ये क्या कर दिया तूने?”
मैंने हँसकर कहा, “पगली, ये तो तेरी कुंवारी चूत का इनाम है। तूने मुझे ऐसा मज़ा दिया, जो मैं ज़िंदगी भर नहीं भूलूँगा।”

हम दोनों थककर बिस्तर पर लेट गए। मैं सो गया, लेकिन माया शायद सो नहीं पाई। सुबह जब मैं उठा, तो उसकी आँखें सूजी हुई थीं। मैंने उससे बात करने की कोशिश की, लेकिन वो मुझसे नज़रें चुरा रही थी। मैं समझ गया कि उसे शायद अपने किए पर पछतावा हो रहा था। मैं दोस्तों के घर चला गया और शाम को इलाहाबाद लौट आया।

माया की वो रात मेरे ज़हन में हमेशा के लिए बस गई। उसकी चूत की गर्मी, उसकी सिसकारियाँ, और वो रसीला जिस्म मुझे बार-बार बुलाता है। लेकिन उस दिन के बाद माया ने मुझसे दूरी बना ली। शायद वो उस रात को भूल जाना चाहती थी, लेकिन मेरे लिए वो रात राजधानी एक्सप्रेस की तरह थी—तेज़, मादक, और अविस्मरणीय।

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