जवान बेटी ने चूत में सरसों का तेल लगवाया

मैं अपने माँ-बाप की इकलौती लाड़ली बेटी बब्बी, देखते-देखते 18 साल की हो गई। माँ मुझे हर छोटी-बड़ी बात पर डाँटती रहती थी, लेकिन बापू का प्यार मेरे लिए अनमोल था। वो मुझे हर वक्त “मेरी प्यारी बब्बी” कहकर पुकारते और उनका ये प्यार कभी कम नहीं हुआ। हम गाँव में रहते थे, जहाँ बापू खेती-बाड़ी करते थे। मैं उनकी इकलौती संतान थी, शायद इसलिए उनका प्यार मेरे लिए इतना गहरा था।

बापू मुझे अभी भी छोटी बच्ची ही समझते थे, लेकिन मेरा शरीर अब जवान हो चुका था। मेरी छाती के उभार अब बड़े और आकर्षक हो गए थे, और मेरी चूत के आसपास घने बाल उग आए थे। करीब एक साल पहले की बात है, एक रात अचानक मेरी चूत से खून निकला। मेरी पैंटी खून से लथपथ हो गई थी। मैं घबरा गई और रोते हुए माँ के पास भागी। शर्माते हुए जब मैंने माँ को सब बताया, तो उन्होंने मुझे समझाया कि ये माहवारी है और मुझे सैनिटरी नैपकिन दिया। साथ ही, कई सारी हिदायतें भी दीं। इसके बाद माँ मेरे हर काम पर नजर रखने लगीं। मेरे फुदकने, हँ्सने-खेलने पर भी डाँट पड़ने लगी।

जब मैं छोटी थी, बापू ने मुझे गाँव के स्कूल में दाखिल करवाया था। वो स्कूल दसवीं तक था। अभी एक महीने पहले ही मैंने दसवीं की परीक्षा दी थी, लेकिन रिजल्ट आने में अभी वक्त था। मैं आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन माँ ने शहर जाकर पढ़ने की बात को साफ नकार दिया। मैंने बापू के सामने बहुत रो-गिड़गिड़ाया, लेकिन माँ के सामने उनकी भी एक न चलती थी। बापू ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, इसलिए उन्होंने कहा, “बेटी, तू जो ठीक समझे, वो कर ले।” लेकिन माँ का फैसला अंतिम था।

इसी बीच मेरे चाचाजी, जो शहर में रहते थे, दो दिन के लिए गाँव आए। उनकी एक बेटी आँचल थी, जो मेरी हमउम्र थी, और एक बेटा, जो मुझसे पाँच साल छोटा था। घर में बातचीत के दौरान मेरी शहर में पढ़ाई का जिक्र छिड़ा। चाचाजी ने कहा कि मैं और आँचल साथ में कॉलेज जा सकते हैं, लेकिन माँ ने बात को टाल दिया। मैं बहुत निराश थी। बापू मेरे साथ थे, लेकिन माँ के सामने उनकी नहीं चलती थी। चाचाजी ने मेरी उदासी देखी और कहा, “कुछ दिन इसे मेरे साथ शहर भेज दो। आँचल के साथ इसका मन लग जाएगा।” बस, मैं चाचाजी के साथ शहर चली गई।

शहर पहुँचकर मैं हैरान रह गई। वहाँ की लड़कियों के कपड़े देखकर मुझे लगा कि मैं गाँव वापस चली जाऊँ। गाँव में लड़कियाँ ढीले-ढाले सलवार-सूट पहनती थीं, लेकिन शहर में सब कुछ टाइट था—जीन्स, टी-शर्ट, स्लीवलेस टॉप, स्कर्ट, और अगर सलवार-कमीज भी थी, तो वो भी इतनी टाइट कि शरीर से चिपकी हुई। आँचल बहुत मॉडर्न थी, लेकिन हमारी उम्र एक होने की वजह से हम जल्दी ही घुल-मिल गए। रात में हम एक साथ सोते थे और कुछ ही दिनों में पक्की सहेलियाँ बन गईं।

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शहर का माहौल, मेरी जवान उम्र, और आँचल की संगत ने मुझे जल्दी ही बदल दिया। आँचल के पास कंप्यूटर था, और वो रात में मुझे अडल्ट वेबसाइट्स दिखाने लगी। कुछ अडल्ट क्लिप्स देखकर मेरी हालत खराब हो गई। ऐसी फिल्में रोज आती थीं, और मैं रोज देखने लगी। इन सबको देखकर मुझे मजा आने लगा। मैं सोचने लगी कि अगर देखने में इतना मजा है, तो असल में सेक्स करने में कितना मजा होगा। मुझे समझ आया कि शहर की लड़कियाँ टाइट और उत्तेजक कपड़े क्यों पहनती हैं। उन्हें सेक्स में मजा आता है, और वो इसे बुरा नहीं मानतीं।

आँचल के साथ मैंने बाजार जाकर कुछ नए कपड़े सिलवाए। मैंने टाइट कमीज और सलवार सिलवाई, जिसमें डीप-कट डिजाइन और सामने बटन रखवाए। फिर एक दुकान से मैंने एक छोटी स्कर्ट, टाइट टॉप और एक मैक्सी (पूरी तरह ढकने वाली नाइटी) खरीदी। आँचल की संगत ने मुझे सेक्स के रंग में रंग दिया। वासनात्मक कहानियाँ पढ़कर मैंने सेक्स के बारे में बहुत कुछ सीख लिया। रात में मैं और आँचल एक-दूसरे के जवान अंगों के साथ खेलने लगे। लेकिन फिर एक दिन मुझे गाँव वापस आना पड़ा। आँचल को छोड़ते वक्त मेरी आँखों में आँसू आ गए।

गाँव लौटने पर माँ और बापू मुझे देखकर बहुत खुश हुए। बापू ने शहर का हालचाल पूछा और फिर खेत में काम करने चले गए। माँ कुछ देर बाद रसोई में चली गईं। मैं भी उनके साथ रसोई में गई और शहर की बातें बताने लगी। दो घंटे बाद माँ ने बापू का खाना एक पोटली में बाँधा और बोलीं कि वो खेत जा रही हैं।

मैंने कहा, “लाओ मम्मी, मैं दे आती हूँ। बहुत दिनों से अपने खेत भी नहीं देखे। खेतों की बहुत याद आती है।”

मम्मी बोलीं, “ठीक है, तू ही दे आ। पहले भी तो तू ही जाती थी।”

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मैं बापू का टिफिन लेकर खेत पहुँची। बापू सिर्फ लूँगी पहने हुए थे। मैंने उन्हें पहले भी ऐसे देखा था, लेकिन आज न जाने क्यों मेरे अंदर कुछ और ही उथल-पुथल मच रही थी। बापू की चौड़ी छाती, मजबूत मसल्स, और पसीने से भरा बदन देखकर मेरे दिल में अजीब सी हलचल होने लगी। उनकी लूँगी नाभि के नीचे बँधी थी, और उनका मासूम चेहरा मुझे और आकर्षित कर रहा था। बापू फावड़ा चला रहे थे। मुझे देखते ही बोले, “अरे बब्बी, तू? अपनी मम्मी को ही आने देती। तू सफर करके आई है, थक गई होगी।”

मैंने कहा, “नहीं बापू, मैं ठीक हूँ।”

बापू रोटी खाने लगे। मैं उनकी बॉडी को देख रही थी। पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मेरे बापू कितने मस्कुलर हैं। उनकी चौड़ी छाती, उस पर घने बाल, और उनकी नाभि कितनी आकर्षक थी। मैं सोचने लगी, “ये मुझे क्या हो गया? कोई बेटी अपने बाप को इस नजर से देखती है?” लेकिन मैं खुद को रोक नहीं पा रही थी। मेरा दिल कुछ करना चाहता था, पर क्या, ये मैं समझ नहीं पाई।

रोटी खाने के बाद मैं खेत से वापस लौट आई। रास्ते में यही सोचती रही कि मेरे साथ क्या हो रहा है। रात को हम लोग जमीन पर चादर बिछाकर सोए। मेरी आँखों के सामने बार-बार बापू की बॉडी घूम रही थी। मैं, मम्मी और बापू के बीच में सोती थी। रात को मुझे लगा कि कोई मेरे स्तनों पर हाथ फेर रहा है। धीरे-धीरे वो हाथ मेरे स्तनों को दबाने लगा। मुझे मजा आने लगा। फिर वो हाथ मेरी टाँगों के बीच रगड़ने लगा। मुझे लगा कि ये बापू ही हैं। मैंने उनकी छाती पर हाथ फेरा और उनकी लूँगी उतारने लगी। उन्होंने मेरी सलवार खींच दी। फिर जैसे ही उन्होंने मेरी चूत को चूमा, मेरी आँख खुल गई। ये सब एक सपना था। बापू तो बगल में सो रहे थे। लेकिन मेरी टाँगों के बीच सचमुच आग सी लगी थी।

मैं सोचने लगी, “क्या एक बेटी अपने बाप के साथ सेक्स का सपना देख सकती है?” एक तरफ मुझे गिल्ट हो रहा था, दूसरी तरफ मजा भी आ रहा था। आँचल की संगत छूट गई थी, और गाँव का माहौल मुझे अब फीका लग रहा था। लेकिन इंसान निराशा में भी उम्मीद की किरण ढूँढ लेता है। मुझे वो किरण बापू में दिखने लगी। न जाने क्यों मम्मी मुझे सौतन सी लगने लगीं।

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अगले दिन मैं फिर बापू का खाना लेकर खेत पहुँची। बापू बोले, “ले आई खाना?”

मैंने कहा, “हाँ बापू, पहले खा लो।”

बापू खाने लगे। मैंने कहा, “बापू, आप मुझे शहर में कितना याद आए। और आप हैं कि पहले की तरह प्यार ही नहीं करते।”

बापू बोले, “बेटी, मुझे भी तुम्हारी बहुत याद आई। तुम शहर चली गईं, तो मेरा मन ही नहीं लग रहा था।”

बापू ने खाना खा लिया और खड़े हुए। मैं उनके गले से लिपट गई और बोली, “बापू, आपके बिना शहर में कुछ भी अच्छा नहीं लगता था।” ये कहते हुए मैंने अपनी चूचियों को उनकी छाती से रगड़ना शुरू किया।

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बापू बोले, “बेटी, मेरे पसीने से तेरे कपड़े खराब हो जाएँगे।”

मैं और कसकर उनसे लिपट गई और धीरे-धीरे अपनी चूचियाँ उनकी छाती पर रगड़ने लगी। मैंने कहा, “बापू, अगर मुझे आपकी बहुत याद आए, तो मैं क्या करूँ?”

बापू बोले, “जब भी याद आए, खेत में आ जाया कर।”

मैंने उनके सीने पर हाथ फेरा और फिर घर लौट आई। मेरे बापू मुझे सचमुच बहुत प्यार करते थे, लेकिन मैं उस प्यार से ज्यादा चाहती थी। मैंने ठान लिया कि मेरी प्यास मेरे बापू ही बुझाएँगे। उस रात मैं सो नहीं पाई। आँचल के साथ देखी गई वीडियो की सारी सीन मेरी आँखों के सामने घूम रही थीं। बापू मुझे सपनों का राजकुमार लगने लगे।

अगले दिन बापू खेत चले गए। मेरे लिए हर पल भारी था। मैं बस उस पल का इंतजार कर रही थी, जब मैं खाना लेकर बापू के पास खेत जाऊँ। खेत की फसल अब मेरी हाइट से ऊँची हो गई थी, जिससे कोई आसानी से दिखाई नहीं देता था। मैंने सोचा, ये तो मेरे लिए फायदेमंद है।

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मैं खाना लेकर खेत पहुँची और बापू से लिपट गई। बापू सिर्फ लूँगी में थे। मैंने कहा, “बापू, मैं आ गई।”

बापू बोले, “अरे बेटी, तू कब आई?”

मैंने कहा, “अभी-अभी।” मैं अपनी चूचियों को उनकी छाती से रगड़ने लगी। मुझे बहुत मजा आ रहा था।

बापू बोले, “बब्बी, तू कुछ ज्यादा ही उदास रहने लगी है।”

मैंने सोचा, अगर मैं अभी सब कुछ कर लूँगी, तो बात बिगड़ सकती है। आखिर कोई बाप अपनी बेटी को इतनी आसानी से नहीं चोदेगा। मुझे बापू को धीरे-धीरे अपनी चूत की तरफ आकर्षित करना होगा। मैंने फैसला किया कि असली खेल कल से शुरू करूँगी। उस रात मैं और बापू साथ सोए, लेकिन मैंने कुछ नहीं किया। बापू के लिए मैं सिर्फ उनकी बेटी थी। मैं अपने पुराने सलवार-कमीज में सोई।

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अगला दिन मेरे लिए नई उम्मीद लेकर आया। सुबह मेरे मामा के गाँव से एक आदमी आया और बताया कि मेरे नाना की तबीयत अचानक बिगड़ गई है। माँ तुरंत उनके साथ नाना के गाँव चली गईं। मैंने सुबह सबके लिए नाश्ता बनाया। माँ के जाने के बाद मैंने बापू से कहा, “बापू, मैं दोपहर को खेत पर खाना लाऊँगी।”

बापू बोले, “अच्छा।”

बापू के जाने के बाद मैं नहाई और शहर में सिलवाया हुआ टाइट, डीप-कट सूट पहना। मैंने जानबूझकर ब्रा नहीं पहनी। मेरी चूचियाँ सूट में साफ उभर रही थीं। दोपहर हुई, तो मैं खाना लेकर खेत पहुँची। मैं तो उत्साह से भरी थी। मेरा सूट फ्लोरोसेंट ग्रीन था, और मेरे उभार साफ दिख रहे थे। बापू ने मुझे देखा, तो थोड़े हैरान हुए। आखिर उनकी बेटी के उभारों की झलक उन्हें पहली बार मिली थी।

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मैंने कहा, “बापू, खाना लाई हूँ।”

बापू बोले, “तूने खा लिया?”

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मैंने कहा, “मुझे अभी भूख नहीं है।”

बापू खाना खाने लगे। मैंने कहा, “बापू, आपने मेरा सूट नहीं देखा।”

बापू बोले, “हाँ, रंग अच्छा है। पर क्या ये थोड़ा टाइट और छोटा नहीं है?”

मैंने कहा, “छोटा? कहाँ से?”

बापू बोले, “सामने से। मेरा मतलब छाती से।”

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मैंने कहा, “ओह, छाती से? नहीं तो, शहर में तो ये आम है।”

बापू बोले, “क्या शहर में तुम्हारी उम्र की लड़कियाँ ऐसे ही सूट पहनती हैं?”

मैंने कहा, “हाँ, बल्कि ये तो कुछ भी नहीं।”

बापू बोले, “कोई बता रहा था कि शहर का माहौल ऐसा ही है।”

मैंने कहा, “हाँ, लेकिन मुझे तो अपने पर कंट्रोल है।”

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बापू बोले, “अच्छी बात है, बेटी। तुझे ऐसे माहौल से बचकर रहना चाहिए।”

बापू ने खाना खा लिया। मैं घर जाने लगी, तभी मैंने पैर मुड़ने का बहाना किया और गिर पड़ी। मैंने कहा, “ओह, बापू!”

बापू भागते हुए आए और बोले, “क्या हुआ, बेटी?”

मैंने कहा, “बापू, पैर मुड़ गया। बहुत दर्द हो रहा है।”

बापू ने मेरा सैंडल निकाला और देखने लगे। बोले, “कहाँ मुड़ा है? कहाँ दर्द हो रहा है?”

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मैंने कहा, “ऊह, बापू, बहुत दर्द हो रहा है।”

बापू बोले, “चल, घर चल। कोई दवा लगा ले।”

मैं खड़ी हुई, लेकिन थोड़ा चलकर फिर गिर पड़ी। मैंने कहा, “नहीं बापू, मुझसे नहीं चला जा रहा।”

बापू बोले, “फिर तो तुझे उठाकर ले जाना पड़ेगा।”

यही तो मैं चाहती थी। बापू ने मुझे गोद में उठाया। उनका एक हाथ मेरी टाँगों के नीचे और दूसरा मेरी पीठ के नीचे था। मैं उनके नंगे बदन से चिपक गई। उठाते वक्त मैंने जल्दी से अपने सूट के बटन खोल दिए, जिससे मेरी चूचियाँ आधे से ज्यादा बाहर आ गईं। बापू मुझे गोद में लिए थे, और मेरी छाती खुला दरबार बन गई थी।

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मैंने कहा, “बापू, बहुत दर्द हो रहा है।”

बापू ने मेरी तरफ देखा, तो उनकी नजर मेरी चूचियों पर गई। वो बोले, “बस बेटी, घर पहुँचकर सब ठीक हो जाएगा।”

मैंने झूठ-मूठ में आँखें बंद कर लीं। मुझे पता था कि बापू रुक-रुककर मेरी चूचियाँ देख रहे थे। घर पहुँचते ही बापू ने मुझे लिटा दिया। मेरी आँखें बंद थीं, लेकिन छाती खुली थी।

बापू बोले, “बेटी, घर आ गया है।”

मैंने कहा, “बापू, कुछ करो ना। दर्द हो रहा है।”

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बापू बोले, “अलमारी में दवा रखी है। मैं लाता हूँ।”

बापू डिस्प्रिन और पानी लाए। पानी पीते वक्त मैंने जानबूझकर पानी अपनी चूचियों पर गिरा दिया। मेरे उभार अब गीले हो गए। मैंने गोली ली और फिर आँखें बंद करके लेट गई। बापू बार-बार मेरी गीली चूचियों को देख रहे थे। मैंने सोचा, अभी के लिए इतना काफी है।

मैंने कहा, “बापू, आपको जाना है तो जाओ। खेत में काम पूरा कर आओ। अब दर्द में पहले से फर्क है।”

बापू बोले, “ठीक है। मैं जल्दी काम करके आता हूँ।”

रात को बापू लौटे, तो मैं थोड़ा चलने लगी थी। बापू ने पूछा, “बेटी, फर्क पड़ा?”

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मैंने कहा, “हाँ बापू, थोड़ा-थोड़ा।”

हमने रोटी खाई। अब मेरा जलवा दिखाने का समय था। मैंने शहर से लाई मैक्सी पहनी। ये मैक्सी बिना कुछ दिखाए भी सब कुछ दिखा सकती थी। मैंने लिपस्टिक और रूज भी लगाया। मैक्सी पहनकर मैं बापू के सामने आई। बापू मुझे देखकर थोड़े हैरान और थोड़े खुश हुए।

मैंने कहा, “बापू, मैंने शहर से ये कपड़े लिए हैं। कैसे हैं?”

बापू बोले, “अच्छे हैं, पर इसमें नींद आएगी?”

मैंने कहा, “और क्या, शहर में तो लड़कियाँ और औरतें रात को यही पहनकर सोती हैं।”

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बिस्तर जमीन पर बिछ चुका था। मैं बापू के पास बैठ गई। मैंने कहा, “बापू, जो दवाइयाँ आपने दी थीं, वो बहुत पुरानी थीं। उनका असर नहीं होगा।”

बापू बोले, “अच्छा, मुझे तो पता ही नहीं था।”

मैंने कहा, “धीरे-धीरे दर्द बढ़ रहा है।”

हमारे गाँव में दर्द के लिए सरसों का गर्म तेल लगाया जाता था। मुझे पता था कि बापू मुझे तेल लगाने को कहेंगे। बापू बोले, “एक काम कर, सरसों का गर्म तेल लगा ले।”

मैंने मन में कहा, “ओह यस!”

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बापू बोले, “तू मत उठ, मैं तेल गर्म करके लाता हूँ।”

बापू तेल ले आए। मैंने मैक्सी थोड़ी ऊपर की और तेल लगाने लगी। मैंने कहा, “ऊह… आह…”

बापू बोले, “क्या हुआ?”

मैंने कहा, “तेल लगाने से और दर्द हो रहा है। मैं नहीं लगाती।”

बापू बोले, “दर्द होना मतलब असर हो रहा है। लगा ले, तभी ठीक होगा।”

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मैंने थोड़ा और तेल लगाया और फिर कहा, “ऊह… मुझसे नहीं लगेगा।”

बापू बोले, “इस वक्त तेरी मम्मी को यहाँ होना चाहिए था। ला, मैं लगाता हूँ।”

मैंने मैक्सी थोड़ी और ऊपर कर ली। बापू मेरे पैरों पर तेल लगाने लगे। मैंने कहा, “ऊह… आ… मर गई।”

बापू बोले, “तेल से तो सबसे अच्छा दर्द ठीक होता है।”

मैंने कहा, “बापू, दर्द पूरी टाँग में फैल रहा है।”

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मैं लेट गई और मैक्सी और ऊपर कर ली। मैंने एक टाँग थोड़ी उठाई, ताकि बापू को मेरी सफेद कच्छी दिखे। बापू की नजर मेरी टाँगों के बीच मेरी कच्छी पर थी। मैंने कहा, “ओह, बापू, दर्द तो और ऊपर बढ़ रहा है।”

बापू बोले, “बेटी, हिम्मत रख। तेल खत्म हो गया। मैं और गर्म करके लाता हूँ।”

तेल ठंडा हो रहा था, लेकिन बाप-बेटी तो गर्म हो रहे थे। बापू बोले, “मैं और तेल ले आया। बब्बी, ये काम तेरी मम्मी को करना चाहिए।”

मैंने कहा, “ठीक है, तो आप छोड़ दो। दर्द अपने आप ठीक हो जाएगा।”

बापू बोले, “नहीं, कभी-कभी बाप को माँ का धर्म निभाना पड़ता है। बता, कहाँ लगाना है?”

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मैंने कहा, “बापू, दर्द दूसरी टाँग में भी है। दोनों टाँगों पर लगा दो।”

बापू मेरी टाँगों के बीच बैठ गए और तेल लगाने लगे। मैंने कहा, “बापू, घुटनों पर भी लगा दो।”

बापू बोले, “बेटी, तेल से तेरे नए कपड़े खराब नहीं होंगे?”

मैंने कहा, “हो सकता है। मैं मैक्सी थोड़ी और ऊपर कर लेती हूँ।”

मैंने मैक्सी जाँघों तक उठा ली। मेरी टाँगें खुली थीं, और मेरी चूत बापू के चेहरे के ठीक सामने थी। मैंने कहा, “बापू, आप तेल बहुत अच्छा लगाते हो। कुछ-कुछ आराम मिल रहा है।”

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बापू बोले, “तेरी मम्मी को भी दर्द होता है, तो मैं ही लगाता हूँ। इसलिए तजुर्बा हो गया है।”

मैंने कहा, “अच्छा। बापू, अब मैं पेट के बल लेटती हूँ। आप टाँगों के पीछे के हिस्से पर भी तेल लगा दो।”

मैं पेट के बल लेट गई। मैक्सी मेरी हिप्स तक चढ़ गई थी। मेरा मकसद बापू को अपनी मोटी हिप्स दिखाना था। मैंने हल्का सा मुड़कर देखा, तो बापू मेरी हिप्स को घूर रहे थे। मैंने कहा, “बापू, आप इस वक्त मेरी मम्मी हो ना?”

बापू बोले, “हाँ।”

मैंने कहा, “पहले मम्मी मेरी सरसों के तेल से मालिश करती थीं, इसलिए मेरी हड्डियाँ मजबूत थीं। अब नहीं करतीं, तो नाजुक हो गई हैं।”

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बापू बोले, “हो सकता है। मालिश तो करनी चाहिए।”

मैंने कहा, “तो अगर आपको दिक्कत न हो, तो आप मेरी मालिश कर दो। आप तो मेरी मम्मी बन ही चुके हो। लेकिन मम्मी की तरह खूब मसल-मसलकर करना।”

बापू बोले, “ठीक है, बेटी। लेकिन ये बात किसी को बताना नहीं। अपनी मम्मी को भी नहीं।”

मैंने कहा, “कभी नहीं बताऊँगी।”

बापू बोले, “मैं और तेल ले आता हूँ।”

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मैं फिर सीधी लेट गई। मैक्सी कच्छी तक चढ़ी हुई थी। मैंने कहा, “बापू, मालिश थोड़ा कसकर करना। जैसे मम्मी करती हैं।”

बापू मेरी टाँगों की मालिश करने लगे। मैंने कहा, “बापू, मैंने शहर में टीवी और कंप्यूटर देखा।”

बापू बोले, “अच्छा, कौन-सी फिल्में देखीं?”

मैंने कहा, “उसमें क्या-क्या दिखाते हैं, मैं बता नहीं सकती।”

बापू बोले, “ऐसा क्या दिखाते हैं?”

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मैंने कहा, “टाँगें बाद में कर लेना। पहले ऊपर का हिस्सा करो।”

बापू बोले, “ठीक है।”

मैंने कहा, “मैं कपड़े ऊपर करूँ, तो आपको दिक्कत तो नहीं?”

बापू बोले, “हाँ, मैं आँखें बंद कर लेता हूँ। तू कपड़े ऊपर कर ले।”

मैंने मैक्सी गले तक चढ़ा ली। अब मैं सिर्फ ब्रा और कच्छी में थी। मैंने कहा, “बापू, तेल की कटोरी मेरे साइड में रख दो और मेरे पेट पर मालिश करो।”

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बापू डॉगी स्टाइल में मेरे ऊपर आए। एक हाथ जमीन पर रखा और दूसरे से मेरे पेट पर तेल लगाने लगे। मैंने कहा, “बापू, टीवी पर जो चीजें दिखाते हैं, वो आपने कभी नहीं देखी होंगी।”

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बापू बोले, “ऐसा क्या है?”

मैंने कहा, “मैं नहीं मानती कि वो सच होता है।”

बापू बोले, “क्या नहीं मानती?”

मैंने कहा, “वो दिखाते हैं कि… नहीं, मैं बोल नहीं सकती।”

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बापू बोले, “बता ना, ऐसा क्या है?”

मैंने कहा, “मैं तो सोच भी नहीं सकती कि ऐसा होता होगा।”

बापू बोले, “क्या होता होगा?”

मैंने कहा, “करके देखूँ? आप बुरा तो नहीं मानेंगे?”

बापू बोले, “नहीं मानूँगा।”

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मैंने बापू का चेहरा अपनी तरफ किया और उनके होंठों पर चूम लिया। बापू ने आँखें खोल लीं। मैंने कहा, “बापू, आपने कहा था कि बुरा नहीं मानेंगे।”

बापू बोले, “मुझे याद है।”

मैंने कहा, “मालिश क्यों रोक दी? वो तो करते रहो।”

बापू बोले, “क्या टीवी पर ये दिखाते हैं?”

मैंने कहा, “हाँ, बापू। आप ही बताओ, क्या लड़का-लड़की एक-दूसरे के होंठ मिलाते हैं?”

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बापू बोले, “मैंने तो नहीं सुना।”

मैंने कहा, “टीवी में तो लड़का-लड़की ऐसे होंठ मिलाते हैं, जैसे होंठों से होंठों की मालिश कर रहे हों। बापू, आप तो सिर्फ हाथ फेर रहे हो। अच्छी तरह मालिश करो। आप मेरे कपड़ों पर भी तेल लगा रहे हो। एक काम करो, आँखें खोल लो।”

बापू बोले, “आँखें खोल लेता हूँ, लेकिन तू किसी को बताना मत।”

मैंने कहा, “कभी नहीं बताऊँगी।”

बापू ने आँखें खोलीं और अपनी जवान बेटी को ब्रा और कच्छी में देखा। वो थोड़ा शरमा गए। मैंने कहा, “थोड़े लंबे-लंबे हाथ चलाओ। टीवी पर तो लड़का-लड़की होंठों से इतनी अच्छी मालिश करते थे, और आप तो हाथों से भी अच्छी नहीं कर रहे।”

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बापू बोले, “नहीं, ऐसी बात नहीं है। अब मैं कसकर करता हूँ।”

बापू ने लूँगी और बनियान पहनी थी। मैंने कहा, “बापू, आपकी बनियान पर तेल लग रहा है। इसे उतार दो।”

बापू ने बनियान उतार दी। अब मेरी मैक्सी ब्रा से ऊपर थी, और बापू सिर्फ लूँगी में मेरे पेट की मालिश कर रहे थे। मैंने कहा, “बापू, होंठों से होंठ मिलाना तो मैंने पहली बार देखा। लेकिन उससे भी बड़ी चीज देखी, जो मुझे नहीं लगता कि असल में होता होगा।”

बापू बोले, “अच्छा, क्या देखा?”

मैंने कहा, “बता नहीं सकती। अपना चेहरा इधर लाओ।”

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मैंने बापू का चेहरा पकड़ा और फिर से उनके होंठों पर चूम लिया। कुछ देर तक हमारे होंठ एक-दूसरे से चिपके रहे। फिर बापू बोले, “पर ये तो तू बता चुकी है।”

मैंने कहा, “हाँ, ये तो बता चुकी। अब जो करना है, वो थोड़ा अजीब लग रहा है। चलो, करती हूँ।”

हमने फिर से चूमना शुरू किया। मैंने अपनी जीभ बापू के होंठों पर फिराई और उनके मुँह में डालने की कोशिश की। बापू ने हल्का सा मुँह खोला, तो मैंने अपनी जीभ उनके मुँह में डाल दी। मैं उनकी जीभ चाटने लगी। बापू भी अपनी जीभ मेरी जीभ पर घुमाने लगे। कुछ देर तक एक-दूसरे की जीभ चूसने के बाद बापू ने अपना चेहरा ऊपर किया।

मैंने कहा, “बापू, अच्छा लगा?”

बापू बोले, “मैंने तो ये सब पहली बार किया है।”

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मैंने कहा, “मैं कौन-सा रोज करती हूँ? मैंने भी पहली बार किया। बापू, आपकी जीभ का स्वाद तो बड़ा अच्छा है।”

बापू बोले, “अच्छा?”

मैंने कहा, “मेरी जीभ का स्वाद आपको कैसा लगा?”

बापू बोले, “ह्म।”

मैंने कहा, “याद नहीं, तो फिर चख लो।”

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मैंने बापू का चेहरा पकड़कर अपनी जीभ बाहर निकाली। बापू मेरी जीभ चाटने लगे। इस दौरान मैंने तेल की कटोरी से तेल लिया और उनकी पीठ पर लगाने लगी। कुछ देर बाद बापू अलग हुए।

मैंने कहा, “बापू, अब तो बताओ, मेरी जीभ का स्वाद कैसा है?”

बापू बोले, “अच्छा है। लेकिन तू ये सब किसी से मत बताना।”

मैंने कहा, “बिल्कुल नहीं। बापू, मैं अपनी मैक्सी उतार देती हूँ।”

मैंने मैक्सी उतार दी। अब मैं सिर्फ ब्रा और कच्छी में थी, और बापू सिर्फ लूँगी में। मैंने कहा, “बापू, अब मेरी पीठ की मालिश करो।”

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मैं पेट के बल लेट गई। बापू मेरी नंगी पीठ और हिप्स देख रहे थे। वो मेरी पीठ की मालिश करने लगे। मैंने कहा, “बापू, मेरे कूल्हों पर तेल लगाओ। दबा-दबाकर मालिश करो।”

बापू मेरे कूल्हों पर तेल लगाने लगे। मेरी हिप्स मेरी उम्र के हिसाब से बड़ी थीं। मैंने कहा, “बापू, आप मम्मी के कूल्हों पर भी मालिश करते हो?”

बापू बोले, “हाँ, लेकिन अब तो पाँच-छह साल हो गए।”

बापू मेरे कूल्हों को खूब दबाकर मालिश कर रहे थे। मुझे यकीन था कि उनका लंड अब पूरी तरह कड़क हो चुका था। मैंने कहा, “बापू, अब आप थोड़ा आराम कर लो। काफी देर से मालिश कर रहे हो। मैं आपकी मालिश कर देती हूँ।”

बापू लेट गए, और मैं उनके ऊपर आ गई। मैंने तेल लिया और उनकी छाती पर लगाने लगी। बापू की नजर मेरे बदन पर थी। उनकी जवान बेटी ब्रा और कच्छी में उनकी मालिश कर रही थी। मैंने कहा, “बापू, अपनी लूँगी निकाल दो, तो मैं आपकी टाँगों की मालिश कर दूँ।”

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मैं जानती थी कि बापू का लंड खड़ा होगा। बापू बोले, “नहीं बेटी, मुझे मालिश की जरूरत नहीं। तू ऊपर से ही कर ले।”

मैंने कहा, “क्यों बापू, आज आपने कच्छा नहीं पहना?”

बापू बोले, “पहना है, लेकिन मुझे मालिश की जरूरत नहीं।”

मैं डॉगी स्टाइल में बापू के ऊपर थी। उनकी छाती पर तेल लगा रही थी। मैं जानबूझकर फिसल गई और उनके ऊपर लेट गई। हमारे नंगे जिस्म एक-दूसरे से सट गए। मेरी चूचियाँ उनकी छाती से दब रही थीं। मैंने कहा, “ओह, बापू, मेरे हाथ चिकने हैं, इसलिए फिसल गए। मैं थोड़ा थक गई हूँ। थोड़ी देर ऐसे ही रहूँ।”

बापू बोले, “मेरी छाती पर तेल लगा है। तेरी ब्रा खराब हो जाएगी।”

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मैंने कहा, “अब तो हो ही गया। आप मेरी पीठ की मालिश कर सकते हो।”

बापू लेटे थे, मैं उनके ऊपर, मेरी चूचियाँ उनकी छाती पर दब रही थीं, और उनके हाथ मेरी पीठ पर तेल मल रहे थे। हम दोनों में गर्मी बढ़ रही थी। मैंने कहा, “ऊह… बापू, मेरी मालिश अच्छी तरह करो।”

बापू बोले, “बब्बी, क्या हम ठीक कर रहे हैं? एक बाप-बेटी ऐसे करते हैं?”

मैंने धीरे से कहा, “कैसे?”

बापू बोले, “जैसे तू और मैं बिना कपड़ों के एक-दूसरे से चिपके हैं।”

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मैंने कहा, “कपड़े तो पहने हैं। मैंने ब्रा और कच्छी, और आपने लूँगी। बचपन में तो आपने मुझे बिल्कुल नंगी देखा होगा।”

मैं अपनी चूचियाँ उनकी छाती पर रगड़ने लगी। बापू बोले, “बचपन की बात और थी। अब तू जवान है।”

मैंने कहा, “बापू, क्या आपको मेरा जिस्म अच्छा लगा?”

बापू बोले, “पर मैं तेरा बाप हूँ।”

मैंने कहा, “हम जो भी करेंगे, मैं किसी को नहीं बताऊँगी। थोड़ा सा ही करेंगे। अब बताओ, मेरा जिस्म अच्छा लगा?”

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बापू बोले, “हाँ। सच कहूँ, तो तेरे कूल्हे बहुत आकर्षक हैं।”

वो मेरे कूल्हों को दबाने लगे। मैंने कहा, “ऊह… बापू, बदन से बदन की मालिश का मजा ही कुछ और है। मेरे कूल्हों को दबाओ।”

बापू बोले, “ओह बब्बी, तेरे कूल्हे तो तेरी माँ से भी ज्यादा अच्छे हैं।”

मैंने कहा, “बापू, आप मेरे ऊपर आ जाओ।”

बापू मेरे ऊपर आए और मेरी गर्दन चूमने लगे। मैंने कहा, “ऊह… बापू, मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ। चूमो, अपनी बेटी को चूमो।”

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बापू बोले, “बब्बी, तेरे बदन ने मुझे पागल कर दिया है।”

मैंने कहा, “आपकी मालिश ने मुझे भी पागल कर दिया है।”

बापू का एक हाथ मेरी चूचियों पर गया और हल्के-हल्के दबाने लगा। वो मेरी गर्दन और चेहरा चूमते रहे। मैंने कहा, “पापा… ऊह… आपके चुम्बन मुझे पागल कर देंगे। आपका ये हाथ मेरी छाती पर क्यों है? क्या करोगे?”

बापू बोले, “जी चाहता है, तेरी छाती को मसल दूँ।”

मैंने कहा, “ओह माँ… जो करना है, कर लो। मेरी चूचियाँ मेरे बापू के काम नहीं आएँगी, तो किसके काम आएँगी? ये ब्रा बीच में आ रही है। इसे निकाल दो। मेरे संतरों को आजाद कर दो।”

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बापू ने मेरी ब्रा उतार दी। मेरी चूचियों को देखते ही वो पागल हो गए। दोनों हाथों से मेरी चूचियों को दबाने लगे। बोले, “बब्बी, तेरी चूचियाँ संतरे नहीं, नारियल हैं। कितनी बड़ी और भरी-भरी।”

मैंने कहा, “ऊह… दबाते रहो। कितना मजा आ रहा है। मैंने अपने नारियलों में आपके लिए ढेर सारा पानी भरा है। पियो ना अपनी बेटी का नारियल पानी।”

बापू ने मेरी एक चूची मुँह में ले ली और चूसने लगे। मैं कराह उठी, “ऊह… आह… चूसो… मेरे अच्छे बापू… मेरा दूध पियो।”

बापू और जोर से मेरी चूचियाँ चूसने लगे। बीच-बीच में मेरे निपल्स को दाँतों से हल्का काटते। हर काटने पर मेरी जान निकल जाती, लेकिन मजा इतना था कि मैं रुकना नहीं चाहती थी। मैंने कहा, “ओह माँ… सारा दूध पी जाओ। मेरे दूध के कटोरे खाली कर दो। मैं आपकी माँ हूँ, और आप मेरे बेटे। मेरे बेटे, मेरी छाती से दूध पी।”

मैंने एक हाथ बापू की लूँगी में डाला और उसे खोल दिया। बापू ने कच्छा पहना था। वो मेरे निपल्स को चूसने और काटने में मगन थे। मैंने उनके कूल्हों को मसलना शुरू किया। सच कहूँ, तो बापू के कूल्हे मुझे बहुत आकर्षक लगते थे। मैं हमेशा सोचती थी कि उनके कूल्हे कितने बड़े और सख्त होंगे। मैंने उनकी लूँगी पूरी उतार दी। अब बापू सिर्फ कच्छे में थे, और मैं सिर्फ कच्छी में। मेरे दोनों हाथ उनके कूल्हों पर थे।

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मैंने कहा, “ओह बापू, आपका जिस्म कितना कठोर है।”

बापू बोले, “बेटी, जितने मुलायम तेरे अंग हैं, उतने ही कठोर मेरे अंग। तेरा दूध बहुत मीठा है। तू खुद चीनी है।”

बापू अब मेरी चूचियों से हटकर मेरे पेट को चूमने लगे। उनकी जीभ मेरी नाभि में घूम रही थी। मेरी चूत पूरी गीली हो चुकी थी। बापू मेरी काली कच्छी को चूमने लगे। मैं कराह उठी, “ओह… पापा… ये आपने क्या कर दिया। मुझसे अब और नहीं सहेगा। मेरी प्यास बुझा दो। अपनी प्यारी बेटी की प्यास बुझा दो।”

बापू बोले, “अब मुझसे भी नहीं सहेगा।”

बापू ने मेरी कच्छी उतार दी। फिर अपना कच्छा। मैंने उनका लंड देखा, तो घबरा गई। इतना मोटा और लंबा था, करीब सात इंच का। मैंने कहा, “ओह बापू, कितना मोटा डंडा है आपका। मुझे बहुत दर्द होगा।”

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बापू बोले, “थोड़ा दर्द तो होगा, लेकिन बाद में मजा आएगा।”

मैंने आँखें बंद कर लीं। बापू ने मेरी टाँगें चौड़ी कीं और धीरे-धीरे अपना लंड मेरी चूत के मुँह पर रगड़ने लगे। मेरी चूत पहले से गीली थी, लेकिन फिर भी मुझे डर लग रहा था। मैंने कहा, “बापू, धीरे करना।”

बापू बोले, “हाँ, मेरी जान। तू फिक्र मत कर।”

उन्होंने धीरे से लंड का सुपारा मेरी चूत में डाला। मैं चीख पड़ी, “ऊह… बापू… बहुत दर्द हो रहा है।”

बापू ने मेरे होंठों पर चुम्बन लिया और कहा, “बस थोड़ी देर, मेरी जान।”

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वो धीरे-धीरे लंड को अंदर-बाहर करने लगे। मेरी चूत इतनी टाइट थी कि हर धक्के में दर्द और मजा दोनों हो रहे थे। मैं कराह रही थी, “आह… ऊह… बापू… धीरे… आह…”

बापू ने धक्के तेज किए। उनका लंड अब मेरी चूत की गहराइयों में जा रहा था। मैंने अपनी टाँगें और चौड़ी कर दीं। हर धक्के के साथ मेरी चूचियाँ उछल रही थीं। मैंने कहा, “बापू… और तेज… आह… मेरी चूत को फाड़ दो… ऊह… कितना मोटा है आपका लंड…”

बापू बोले, “छम्मो… मेरी जान… तेरी चूत इतनी टाइट है… इतनी मुलायम… आह… मेरा लंड तेरे लिए ही बना है।”

मैं चिल्लाई, “आह… बापू… चोदो मुझे… अपनी बेटी की चूत मारो… ऊह… आ… और तेज… फाड़ दो मेरी चूत को…”

हर धक्के के साथ मेरी चूत में आग सी लग रही थी। बापू का लंड मेरी चूत की दीवारों को रगड़ रहा था। मैंने अपने कूल्हे उठाए, ताकि उनका लंड और गहराई तक जाए। मैं कराह रही थी, “ऊह… आह… बापू… मेरी जान… चोदो… और तेज… आ… मेरा निकलने वाला है…”

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बापू ने धक्के और तेज किए। उनकी साँसें तेज हो रही थीं। वो बोले, “बब्बी… मेरी रानी… तेरी चूत माखन है… आह… ले मेरा लंड… पूरा ले…”

मैं चीखी, “आह… ऊह… बापू… मैं गई… आआआ… ऊऊऊ…” मेरा शरीर काँपने लगा। मेरी चूत से रस निकल गया। मैं जन्नत में थी। बापू ने कुछ और धक्के मारे और फिर मेरी चूत से लंड निकालकर मेरे पेट और चूचियों पर झड़ गए। उनका गर्म-गर्म वीर्य मेरे बदन पर गिरा, तो मुझे और मजा आया।

हम दोनों थक गए थे। कुछ देर बाद हम सो गए। सुबह मेरी आँख खुली, तो बापू बाथरूम में नहा रहे थे। मैं पूरी नंगी थी, लेकिन बापू ने मेरे ऊपर चादर डाल दी थी। मैंने जल्दी से कपड़े पहने और नाश्ता बनाने लगी। मैंने स्कर्ट और टाइट टॉप पहना। घी खत्म हो रहा था, तो मैं शेल्फ पर चढ़कर नया पैकेट ढूँढने लगी। तभी बापू रसोई में आए।

बापू बोले, “क्या हुआ? क्या ढूँढ रही है?”

मैंने कहा, “बापू, घी का पैकेट नहीं मिल रहा।”

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मैं शेल्फ पर खड़ी थी। मेरी स्कर्ट छोटी थी, जिससे मेरी टाँगें नंगी थीं। बापू मेरे पास आए और मेरी टाँगों पर हाथ फेरने लगे। मैं घी ढूँढने में बिजी थी। बापू ने अपना हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर डाल दिया और मेरे कूल्हों को दबाने लगे। मैंने कुछ नहीं कहा। बापू ने स्कर्ट ऊपर उठाई और मेरे कूल्हों पर चूमने लगे। मैंने कच्छी नहीं पहनी थी।

मैंने कहा, “ऊह… बापू…”

बापू बोले, “छम्मो… कल रात तेरे कूल्हों का स्वाद नहीं लिया।”

बापू मेरे कूल्हों को जीभ से चाटने लगे। वो शेल्फ के नीचे मेरी टाँगों के बीच बैठ गए और मेरी चूत पर जीभ फेरने लगे। मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया। मैंने कहा, “ऊह… बापू… ये क्या कर रहे हो?”

बापू बोले, “चुप कर, मुझे नाश्ता करने दे।”

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मैंने कहा, “मेरी चूत का नाश्ता? ऊह… चाटो… एक बेटी अपने बाप को अपनी चूत से ज्यादा और क्या दे सकती है? आह… मेरे प्यारे पापा… खाओ अपनी बेटी की जवान चूत… ऊह… मेरी चूत पर आपका ही नाम लिखा है… अपनी जीभ घुसाओ… आह…”

बापू मेरी चूत में जीभ घुसाकर चाटने लगे। मैं कराह रही थी, “ऊह… आह… और चाटो… मेरी चूत को खा जाओ…”

बापू बोले, “चल, अब जमीन पर आ जा।”

मैं शेल्फ से उतरी और जमीन पर खड़ी हो गई। मैंने टाँगें चौड़ी कीं। बापू बैठकर मेरी टाँगों के बीच मुँह ले गए। बोले, “अब अपने कूल्हे मेरी तरफ कर।”

मैंने कूल्हे उनकी तरफ किए। बापू बोले, “मेरी जान, अब तेरे कूल्हों को चखना है। घुटनों के बल हो जा।”

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मैं डॉगी स्टाइल में आ गई। बापू ने मेरे कूल्हों को पकड़कर अलग किया और मेरे पीछे के छेद को चाटने लगे। मेरे कूल्हों के बीच बाल थे, जिन्हें वो चाट रहे थे। मैं कराह उठी, “ऊह… बापू… ये क्या… आह… कितना मजा आ रहा है… इस छेद के बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं… अपनी जीभ डालो… अपनी बेटी के हर छेद को भोग लो…”

मैंने कहा, “बापू, आप जरा लेट जाइए। मैं आपके मुँह पर बैठती हूँ।”

बापू लेट गए, और मैं उनके मुँह के ऊपर पॉटी पोजीशन में बैठ गई। मैंने टीवी पर 69 पोजीशन देखी थी। बापू मेरा पीछे का छेद चाट रहे थे। मैंने उनकी लूँगी उतार दी। उन्होंने कच्छा नहीं पहना था। मैंने उनका मोटा लंड हाथ में लिया और मुँह में डालकर चूसने लगी।

बापू बोले, “आह… छम्मो… ये तूने कहाँ से सीखा? ये तो तेरी माँ ने भी नहीं किया।”

मैंने कहा, “बापू, सीखा कहीं नहीं। सोचा, जब आप नाश्ता कर रहे हो, तो मैं भी कर लूँ। आपका डंडा चूसने में कैसा लग रहा है?”

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बापू बोले, “बहुत अच्छा। चूसती रह।”

मैं फिर उनका लंड चूसने लगी, और बापू मेरा पीछे का छेद। कुछ देर बाद बापू बोले, “चल बेटी, चाटना-चूसना बहुत हो गया। अब घुसाने का काम करें। घोड़ी बन।”

मैंने कहा, “क्यों मेरे प्यारे बाबुल? घुसाने के लिए घोड़ी बनने की क्या जरूरत?”

बापू बोले, “तेरे पीछे के छेद में घुसाना है।”

मैंने कहा, “ओह बापू, कहाँ-कहाँ घुसाएँगे?”

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मैं घोड़ी बन गई। बापू ने अपना लंड मेरे पीछे के छेद पर रखा और धीरे-धीरे अंदर करने लगे। मुझे बहुत दर्द हुआ। मैं चीखी, “ऊह… मेरे गांडू बाप… ये क्या कर दिया… मेरी जान निकल गई… आह…”

बापू बोले, “थोड़ा सह ले, मेरी जान। फिर बहुत मजा आएगा।”

बापू ने धीरे-धीरे अंदर-बाहर करना शुरू किया। मेरा दर्द कम होने लगा। मैंने कहा, “ऊह… बापू… मारो मेरी गाँड… अपनी बेटी की गाँड ले लो… आह… चोदो मुझे… आगे से, पीछे से… हर तरह से…”

बापू बोले, “साली, अपने बाप से मालिश करवाती है, तेल लगवाती है, दूध पिलाती है, और अब गाँड मरवाती है। तेरा बदन मखमली है। तेरा बाप तेरे जवान बदन का मजा लेगा।”

मैंने कहा, “यही तो मैं चाहती हूँ… आह… मेरे बापू, मेरे हर छेद में अपना मोटा डंडा घुसाओ… मेरे छेदों को रोज साफ करो… आह… मेरे बदन को भोगो…”

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बापू ने गाँड से लंड निकालकर मेरी चूत में डाल दिया और फिर शुरू हो गए। मैं चीखी, “आह… बापू… मेरे एक भी छेद न छोड़ना…”

बापू बोले, “छम्मो… मेरी प्यारी बेटी… तेरा हर छेद माखन है… तेरा बदन मक्खन है…”

मैंने कहा, “मेरे बेटी-चोद बापू… चोद दो अपनी जवान बेटी को… मार लो मेरी… बेरहम बन जाओ… आह…”

बापू बोले, “मेरी मस्त बेटी… रोज मुझे अपना दूध पिलाएगी ना? मेरी मलाई खाएगी ना?”

मैं चीखी, “आह… बापू… और तेज… मैं निकलने वाली हूँ… आ… ऊह… आआआ…”

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मैं निकल गई। मेरी चूत से रस बह रहा था। बापू ने मेरी चूत से लंड निकाला और मेरे मुँह के पास ले आए। मैंने उनका लंड मुँह में लिया और सारी मलाई चूस ली। अब जब मम्मी नहीं होतीं, तो हम घर में प्यार करते हैं। और जब मम्मी होती हैं, तो खेत में। बापू को अब अपनी बीवी में कोई दिलचस्पी नहीं रही। 18 साल की जवान बेटी जो मिल गई थी।

क्या आपको ये जवान बेटी और बापू की चुदाई की कहानी पसंद आई? अपनी राय कमेंट्स में जरूर बताएँ।

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