मेरा नाम प्रतिभा तिवारी है और मैं एक मिडिल क्लास घर की बहू हूँ। मेरी शादी तीन महीने पहले अभिषेक से हुई थी। अभिषेक एक व्यापारी हैं और उनका छोटा-सा कारोबार है, जो दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। हमारे घर में मेरी सासू माँ, जो सिर्फ 37 साल की हैं, और मेरी ननद शिल्पी रहती हैं। सासू माँ की शादी 15 साल की उम्र में हुई थी, और जब अभिषेक पैदा हुआ, तब वो सिर्फ 18 की थीं। अभिषेक 21 साल के हैं, मैं 19 की, और शिल्पी भी मेरी उम्र की है। सासू माँ बहुत धार्मिक हैं, उनका ज्यादातर समय पूजा-पाठ में बीतता है। उनके मुँह से हमेशा उनके गुरु जी, आरके महाराज, की बातें सुनने को मिलती थीं, जो हाल ही में उत्तर भारत की यात्रा पर थे।
जब मैं नई-नवेली दुल्हन बनकर इस घर में आई, तो मैंने सासू माँ और शिल्पी को गुरु जी के आश्रम जाते देखा। सासू माँ कहती थीं कि गुरु जी की कृपा से ही इस घर में सुख-शांति बनी हुई है। मैं घंटों पूजा-पाठ तो नहीं करती थी, लेकिन मेरे माँ-बापूजी ने मुझे हमेशा धर्म के प्रति आस्था रखने की सीख दी थी। मैं रोज़ सासू माँ के साथ पूजा-घर में बैठकर उनकी पूजा की सामग्री तैयार करती। मेरे मायके में हमेशा रिश्तेदारों के बीच जायदाद को लेकर झगड़े और नफरत देखी थी, लेकिन यहाँ आकर मुझे ऐसा लगता था मानो सारी परेशानियाँ पीछे छूट गई हों। मेरे माँ-बापूजी मेरी खुशी देखकर बहुत खुश थे।
अभिषेक मुझसे बहुत प्यार करते हैं। उनका कारोबार उन्हें व्यस्त रखता है, और हफ्ते में 2-3 बार वो देर रात घर लौटते हैं। फिर भी मैं उनका इंतज़ार करती, और हम साथ बैठकर खाना खाते। उस रात भी मैं अभिषेक का इंतज़ार कर रही थी। रात के 1 बज गए, जब वो थके-हारे घर लौटे। फ्रेश होकर वो खाने बैठे, और मैं उनके सामने बैठ गई। पहला निवाला खाने के बाद, अभिषेक ने दूसरा निवाला मेरे मुँह के पास लाकर कहा, “चलो, खा लो, जानेमन!” मैंने मुँह खोला, और जैसे ही उन्होंने अपनी उंगलियाँ पीछे खींचीं, मैंने उनकी कलाई पकड़कर उनकी उंगलियों को हल्के से चूस लिया।
मैं हल्के से हँस पड़ी। उनकी नजरें मेरे चेहरे से लेकर मेरे पूरे जिस्म का जायजा ले रही थीं, जैसे वो आँखों-आँखों में कुछ कहना चाह रहे हों। खाना खाकर अभिषेक अखबार लेकर बेडरूम में चले गए, और मैं रसोई का काम निपटाने लगी। काम खत्म करके जब मैं बेडरूम में आई, तो अभिषेक अखबार में डूबे हुए थे। मैं उनके पास बिस्तर पर बैठ गई और अखबार खींचते हुए थोड़ा नाराज़ होकर बोली, “आप इतनी देर से मत आया करो, जी! मुझे आपके साथ वक़्त बिताना अच्छा लगता है, और आप हैं कि हमेशा देर से आते हो। बाहर निकलने के बाद आपको याद भी रहता है कि आपकी बीवी घर पर इंतज़ार कर रही है?”
अभिषेक मुस्कुराए और बोले, “जानेमन, ये सब हमारे भविष्य के लिए ही तो कर रहा हूँ। हमारा परिवार बढ़ेगा, तो हमें आगे की भी तो सोचनी है, ना?” फिर उन्होंने मुझे अपनी बाहों में खींच लिया और सीने से लगाते हुए कहा, “कसकर पकड़ो ना, जान!” उनकी बाहों में मुझे जन्नत का एहसास होता था। उनके होंठ मेरी गर्दन को छू रहे थे। उन्होंने मेरी गर्दन पर जीभ फेरी और बोले, “इतनी शिकायत करोगी, तो कल से बिस्तर से ना उठूँगा और ना ही तुम्हें उठने दूँगा!”
उनकी प्यार भरी बातें सुनकर मैं जैसे पिघल गई। अभिषेक ने मेरे गालों को चूमा, फिर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। मैं भी उनके होंठों को चूमने लगी। “उम्म्म… म्म्म…” उनकी जीभ मेरे होंठों से खेल रही थी। फिर उन्होंने मेरा पल्लू हटाया, मेरी चोली के बटन खोले, और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। मेरी साड़ी और पेटीकोट उतारकर उन्होंने मेरी चूत को पैंटी के ऊपर से सहलाना शुरू किया। “आ… आह… स्स्स… अभिषेक… स्स्स…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी। अभिषेक ने मेरी पैंटी उतारी और मेरी चूत पर उंगलियाँ रगड़ने लगे।
“ओह… अभिषेक… आ… आह… क्या कर रहे हो… स्स्स…” मैं सिहर रही थी। फिर अभिषेक ने अपनी शॉर्ट्स उतारी और अपने लंड का सुपाड़ा मेरी चूत पर रगड़ने लगे। “ओह… म्म्म… कितना गर्म है तुम्हारा लंड, अभिषेक…” मैं मस्ती में बड़बड़ा रही थी।
“अंदर डालूँ, जानेमन?” अभिषेक ने पूछा।
मैंने मुस्कुराते हुए उनकी कमर पकड़कर कहा, “एकदम गहराई तक डालो, जानू… मेरी चूत सिर्फ तुम्हारी है…” और अभिषेक ने मेरे पैर फैलाकर एक झटके में अपना लंड मेरी चूत के अंदर डाल दिया। “उई… माँ… आ… उफ्फ… स्स्स…” अभिषेक मेरे ऊपर झुक गए और अपनी कमर हिलाते हुए मेरी चूत चोदने लगे। उनका लंड मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था, और मैं सिसकारियाँ ले रही थी। “स्स्स… ओह… आह… अभिषेक… स्स्स… म्म्म…”
2-3 मिनट बाद अभिषेक ने अपना लंड बाहर निकाला और सारा माल मेरे पेट पर उड़ेल दिया। मैं बाथरूम गई, खुद को साफ किया, और उनके बगल में आकर बैठ गई। अभिषेक ने कहा, “माँ जी ने बताया होगा ना कि गुरु जी वापस आ गए हैं?” मैंने हाँ में सिर हिलाया। “देखो, शायद गुरु जी कल दोपहर को घर आ रहे हैं।” मैंने उनके मुँह पर हाथ रखते हुए कहा, “जी, मैं जानती हूँ। माँ जी ने सब बताया। आप चिंता मत करो, आपकी जोरू कोई शिकायत का मौका नहीं देगी।”
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माँ जी ने मुझे गुरु जी के बारे में सब बताया था। कैसे 10 साल पहले अभिषेक की जान खतरे में थी, और गुरु जी ने उनकी रक्षा की थी। उनके कारोबार की शुरुआत भी गुरु जी के कहने पर हुई थी, और आज वो इस मुकाम पर हैं। उनकी बातें सुनकर मेरी गुरु जी से मिलने की उत्सुकता और बढ़ गई थी।
अगले दिन दोपहर को गुरु जी घर आए। उनके आते ही घर में रौनक छा गई। आस-पड़ोस की औरतें उनके दर्शन को आईं। गुरु जी ने जलपान किया और सबको आशीर्वाद दिया। जब सब चले गए, तो माँ जी, शिल्पी, और मैंने उनके चरण स्पर्श किए। मैंने गुरु जी को पहली बार देखा। उनके चेहरे पर एक अलग-सा तेज था। माँ जी ने बताया था कि उनकी उम्र 46-48 साल है, लेकिन वो 25-30 के ही लग रहे थे।
माँ जी ने मेरा परिचय गुरु जी से कराया। मैंने उनके पैर छुए, और उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया, “सदा सुहागन रहो, बहू।” फिर उन्होंने माँ जी से कहा, “बहू तो बहुत सुंदर है, और संस्कार भी बड़े अच्छे हैं।” उनकी तारीफ सुनकर मैं मुस्कुरा उठी।
माँ जी ने शिल्पी को तैयार होने को कहा, और मैं उसके कमरे में गई। शिल्पी ने मुझे गले लगाते हुए पूछा, “भाभी, गुरु जी कैसे लगे?” मैंने हँसते हुए कहा, “सचमुच 47-48 के हैं? 30-32 से ज्यादा नहीं लगते!” शिल्पी ने बताया कि माँ जी 17-18 साल से उनकी भक्त हैं, और गुरु जी उन्हें आदर से माँ जी कहते हैं।
तभी माँ जी की आवाज़ आई, “बहू, शिल्पी, जल्दी नीचे आओ!” हम दोनों नीचे आए, और शिल्पी ने भी गुरु जी के पैर छुए। गुरु जी ने आशीर्वाद दिया और जाने की इजाज़त माँगी। माँ जी ने उन्हें 2 मिनट रुकने को कहा। माँ जी ने हड़बड़ाते हुए बताया कि वो तीर्थ यात्रा पर जा रही हैं, शिल्पी को मुंबई जाना है, और अभिषेक को दिल्ली। “गुरु जी, बहू की चिंता हो रही है। वो गाँव में पली है, शहर में अकेले रहना ठीक नहीं। अगर आप कुछ दिन हमारे घर रुकें, तो बहू को आपकी सेवा का मौका मिलेगा।”
गुरु जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “अगर यही चाहती हो, माँ जी, तो मैं रुकूँगा। लेकिन दिन में आश्रम में भक्तों का ताँता रहता है, मैं रात 11:30 बजे के बाद ही आ पाऊँगा।” उन्होंने मुझसे पूछा, “बहू, तुम्हें कोई ऐतराज़ तो नहीं?” मैंने पल्लू ठीक करते हुए कहा, “गुरु जी, आप अनुमति क्यों माँग रहे हैं? आपके यहाँ रहने से ये घर पावन हो जाएगा।”
अगले दिन सुबह माँ जी, अभिषेक, और शिल्पी चले गए। मैं घर में अकेली थी। रात 11:40 बजे गुरु जी आए। मैंने उनके चरण स्पर्श किए और उनकी पसंदीदा द्रक वाली चाय बनाकर दी। चाय पीते हुए उन्होंने पूछा, “बहू, तुम्हें डरावने सपने आते हैं?” मैं चौंक गई, क्योंकि ये बात मैंने सिर्फ माँ जी को बताई थी।
“जी, गुरु जी… 2-3 बार डरावने सपने आए। मैं एक बंद कमरे में थी, जहाँ चारों तरफ खून था।” गुरु जी ने अपने झोले से एक नारियल निकाला और मुझे बेडरूम में ले जाने को कहा। वहाँ उन्होंने नारियल पर विभूति छिड़की, मंत्र पढ़े, और गंगा जल डाला। अचानक नारियल से धुआँ उठने लगा। मैं डर गई और बोली, “गुरु जी, ये क्या है?”
उन्होंने कहा, “इस कमरे में नकारात्मक ऊर्जा है, बहू। कुछ है जो तुम्हें नुकसान पहुँचाना चाहता है।” मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। मैं उनके पैरों में गिर पड़ी, “मुझे बचा लीजिए, गुरु जी!” उन्होंने मुझे उठाया, आँसू पोंछे, और कहा, “सब ठीक कर दूँगा।” फिर उन्होंने मुझे बिस्तर पर बैठाया और पूछा, “शादी के बाद तुम्हारे घर से कोई आया था?”
मैंने बताया कि मेरी मासी आई थीं। गुरु जी ने कहा, “उन्होंने तुम पर जादू-टोना किया है। अभिषेक को काम के लिए नहीं, बल्कि भेजा गया है। जब तक ये टोना नहीं हटेगा, वो तुममें दिलचस्पी नहीं लेगा।” मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। “गुरु जी, मैं अभिषेक के बिना नहीं रह सकती। कुछ कीजिए!”
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गुरु जी मेरे बगल में बैठ गए और बोले, “तेरे शरीर को शुद्ध करना होगा।” उन्होंने गंगा जल और शहद की बोतलें निकालीं, एक कटोरी में मिश्रण बनाया, और मेरी साड़ी हटाकर मेरी नाभि पर डालना शुरू किया। उनकी गर्म उंगलियाँ मेरी नाभि पर रगड़ने लगीं। “उम्म्म… गुरु जी… स्स्स…” मैं सिहर उठी। उन्होंने एक उंगली मेरी नाभि में डाली और हिलाने लगे। “आ… स्स्स… गुरु जी, ये क्या…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी।
उन्होंने कहा, “नाभि को शुद्ध करना होगा, बहू। मेरा साथ दे, वरना टोना नहीं हटेगा।” मैंने हामी भरी। गुरु जी नीचे झुके और अपनी जीभ मेरी नाभि पर रगड़ने लगे। “आ… स्स्स… गुरु जी…” मैंने उनके बालों में उंगलियाँ फेरीं। “और चाटिए, गुरु जी!” मैंने बिना सोचे कहा। उन्होंने अपनी जीभ मेरी नाभि के छेद में डाली और चाटने लगे। “आ… स्स्स… माँ… उफ्फ…” मैं उनके सिर को अपनी नाभि पर दबाने लगी।
फिर गुरु जी ने मेरा पल्लू हटाया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उनकी गर्म साँसें मेरे चेहरे पर टकरा रही थीं। मैंने उनकी पीठ पकड़कर उन्हें कसकर जकड़ लिया। उनकी जीभ मेरे होंठों पर रगड़ रही थी। “म्म्म… स्लर्प… स्लर्प…” मैंने अपना मुँह खोला, और उनकी जीभ मेरे मुँह में घुस गई। वो मेरी जीभ को चूसने लगे। “मुह… मुह…” उनकी चूसने की आवाज़ मेरे कानों में गूँज रही थी। मैंने उनकी जीभ अपने मुँह में ली और चूसने लगी।
गुरु जी ने मेरे गाल दबाकर मेरा मुँह खोला और अपनी गाढ़ी लार मेरे मुँह में डाल दी। मैंने उनकी लार को जीभ पर लिया, स्वाद चखा, और पी गई। “उम्म्म… गुरु जी, आपकी लार कितनी पावन है…” मैं मस्ती में बड़बड़ा रही थी। फिर उन्होंने मेरी क्लीवेज को चूमना शुरू किया। “आ… स्स्स… गुरु जी, मैं आपकी दासी बनना चाहती हूँ… मुझे अपनी वासना के लिए रोज़ इस्तेमाल कीजिए…” मैं उनके चुंबनों से पागल हो रही थी।
उन्होंने मेरी चोली और ब्रा उतारी, मेरे स्तनों को कसकर दबाया। “आ… स्स्स… ज़ोर से दबाइए, गुरु जी… मेरी चूत गीली हो रही है…” मेरी चूत ने पहली धार छोड़ी। उन्होंने मेरी एक चुचि मुँह में ली और चूसने लगे। “ओह… माँ… स्स्स… गुरु जी, मेरी पैंटी पूरी गीली हो गई…” मैं सिहर रही थी। उन्होंने मेरी चुचि को दाँतों से कसकर दबाया, और मैं पीछे झुकी। “आ… स्स्स… चूसिए अपनी रंडी की चुचियाँ…” मैं गंदी बातें करने लगी।
गुरु जी ने मेरी चुचियों को अपनी लार से भिगोया, जीभ से चाटा, और दाँतों से काटा। “आ… गुरु जी… मैं मर गई… स्स्स…” मेरी चूत ने दूसरी बार पानी छोड़ा। मेरी पैंटी और पेटीकोट पूरी तरह गीले हो चुके थे। गुरु जी ने मेरी साड़ी पूरी तरह उतार दी। अब मैं सिर्फ पैंटी में थी। उन्होंने अपना कुर्ता और धोती उतारी, और सिर्फ लंगोट में मेरे सामने बैठ गए।
मैंने वासना भरी नजरों से पूछा, “गुरु जी, आपकी कितनी रंडियाँ हैं? क्या वो मुझसे अच्छी हैं बिस्तर में?” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “तेरे खानदान में ही मेरी कई रंडियाँ हैं, बहू। तेरी सासू माँ 10 साल से मेरे साथ सो रही है। शिल्पी की नथ भी मैंने उतारी। माँ जी, शिल्पी, उनकी बहनें, भाभियाँ, सब मेरे साथ सो चुकी हैं। और उन्हें पता है कि इन दो दिनों में मैं तुझे दिन-रात चोदूँगा।”
उनकी बात सुनकर मुझे जलन हुई, लेकिन उत्साह भी जागा। “गुरु जी, मैं आपकी सबसे बड़ी रंडी बनना चाहती हूँ। माँ जी, शिल्पी, और अभिषेक के आने तक मैं दिन-रात नंगी रहूँगी, आपकी सेवा में।”
गुरु जी बिस्तर पर खड़े हो गए और मेरे बाल पकड़कर मेरा चेहरा अपने लंगोट पर दबाया। “सूंघ ले अपने गुरु जी का लंड, रंडी!” मैंने उनके लंगोट की मादक खुशबू सूँघी। “उम्म्म…” मैंने लंगोट चाटना शुरू किया, फिर उसे खोलकर उनके लंड के दर्शन किए। उनका लंड मोटा, काला, और अभिषेक के लंड से बड़ा था।
मैं उनके लंड से लिपट गई, उनके अंडकोषों को चूमा और चाटा। उनकी मादक खुशबू मुझे पागल कर रही थी। गुरु जी ने अपने लंड का टोपा मेरे होंठों पर रगड़ा। “स्स्स… गुरु जी, कितनी मस्त खुशबू…” मैंने उनके टोपे की चमड़ी पीछे की और चिपचिपा टोपा चाटने लगी। “आ… स्स्स… साली, चाट अपने गुरु जी के टोपे को!” गुरु जी मोन करने लगे।
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मैंने उनका लंड मुँह में लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगी। “स्लर्प… स्लर्प…” गुरु जी ने मेरे गाल पकड़े और अपने लंड से मेरा मुँह चोदने लगे। “स्वूप… स्वूप…” उनका लंड मेरे मुँह में थपेड़े मार रहा था। फिर उन्होंने लंड बाहर निकाला, उस पर थूक लगाया, और फिर से मेरे मुँह में डाल दिया। मैं और ज़ोर से चूसने लगी।
“ले, रंडी, मेरा मुठ!” गुरु जी ने कहा, और उनकी पहली धार मेरे मुँह में उफन पड़ी। मैंने उनका गाढ़ा रस जीभ पर लिया, चखा, और पी गई। मुझे लगा वो थक जाएँगे, लेकिन उन्होंने मुझे फिर से लिटाया, मेरा पेटीकोट उतारा, और मेरी जाँघों को चूमना शुरू किया। “स्स्स… गुरु जी… मेरी चूत फिर से पानी छोड़ देगी…” मैं सिहर रही थी।
उन्होंने मेरी जाँघों को चाटा, फिर मेरी चूत पर चुम्मों की बारिश की। मैंने उनके सिर को अपनी चूत पर दबाया और पैरों से उनकी गर्दन जकड़ ली। “आ… स्स्स… चाट लो मेरी चूत, गुरु जी… मैं आपकी रखेल हूँ…” उन्होंने मेरी चूत को मुँह में दबोच लिया। “आ… स्स्स… गुरु जी, खा जाइए मेरी चूत…” मेरी चूत ने फिर से पानी छोड़ा।
गुरु जी ने मेरी पैंटी उतारी और मेरी चूत को जीभ से चाटने लगे। उनकी जीभ मेरी चूत के दाने को रगड़ रही थी। “आ… माँ… स्स्स… गुरु जी, और चूसिए…” मैं कमर उठाकर उनकी चटाई का मज़ा ले रही थी। उन्होंने मेरी चूत को कसकर चूसा, और मैं फिर से झड़ गई।
फिर गुरु जी ने अपने लंड को मेरी चूत पर रगड़ा। “स्स्स… गुरु जी, डाल दीजिए…” मैंने कहा। उन्होंने एक झटके में अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया। “उई… माँ… स्स्स…” उनका लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर गया। वो ज़ोर-ज़ोर से मेरी चूत चोदने लगे। “आ… स्स्स… गुरु जी… और ज़ोर से… मेरी चूत फाड़ दीजिए…” मैं चीख रही थी।
उनका लंड मेरी चूत में गहराई तक जा रहा था। मैंने अपनी कमर उठाकर उनके धक्कों का जवाब दिया। “आ… स्स्स… गुरु जी… मैं आपकी रंडी हूँ… चोदिए मुझे…” 10 मिनट की चुदाई के बाद, गुरु जी ने अपना माल मेरी चूत में ही छोड़ दिया। “आ… स्स्स… गुरु जी, आपका गर्म माल… मेरी चूत में…” मैं सिहर उठी।
चुदाई के बाद, गुरु जी मेरे बगल में लेट गए। मैंने उनके सीने पर सिर रखा और कहा, “गुरु जी, ये दो दिन मैं सिर्फ आपकी हूँ। दिन-रात आपकी सेवा करूँगी।” गुरु जी ने मुस्कुराते हुए मेरे बाल सहलाए और कहा, “प्रतिभा, तू मेरी सबसे प्यारी रंडी है।”
मैं उनके बाहों में समा गई, और उस रात हमने कई बार चुदाई की। हर बार गुरु जी मुझे नए तरीके से चोदते, और मैं उनकी वासना में डूबती चली गई। दो दिन बाद, जब माँ जी, शिल्पी, और अभिषेक लौटे, मैंने गुरु जी की सेवा का ज़िक्र नहीं किया, लेकिन मेरे दिल में उनकी चुदाई की आग अब भी जल रही थी।