प्रांजल, 28 साल का एक हट्टा-कट्टा जवान, जिसके चौड़े कंधे और मजबूत बाजू मेहनत से तराशे हुए थे, अपने दोस्त लखन के साथ उसके रिश्तेदार की पुरानी हवेली में किसी जरूरी काम से पहुंचा था। दोनों ने रास्ते में दो-दो ठंडी बियर गटक ली थीं, और नशे की हल्की गर्मी उनके दिमाग में चढ़ रही थी। हवेली पुरानी थी, लकड़ी के जर्जर दरवाजे और खिड़कियां, जिनमें से हवा के साथ-साथ नजरें भी अंदर झांक सकती थीं। दीवारों पर पुरानी पेंट की परतें उखड़ रही थीं, और हर कदम पर लकड़ी की चरमराहट गूंज रही थी। लखन को ऊपरी मंजिल पर प्रज्ञा की सास से कुछ बात करनी थी, सो वो सीढ़ियां चढ़ गया। प्रांजल नीचे एक छोटे से कमरे में अकेला बैठ गया, जहां पुरानी लकड़ी की कुर्सी चरमराई और उसकी बियर की बोतल मेज पर टिकी थी।
बैठे-बैठे प्रांजल को अचानक पेशाब की जोरदार हाजत हुई। उसने बोतल मेज पर रखी और बालकनी की तरफ बढ़ा, जहां से टॉयलेट का रास्ता था। बालकनी में पुराने लकड़ी के खंभे और जालीदार रेलिंग थी, जिसके बीच से ठंडी हवा उसका चेहरा सहला रही थी। तभी उसकी नजर पास के एक कमरे पर पड़ी। कमरे में पीले बल्ब की मद्धम रोशनी छन रही थी, और पुराने लकड़ी के दरवाजे की बड़ी-बड़ी दरारों से अंदर का नजारा साफ दिख रहा था। प्रांजल का दिल जोर से धड़का। उसने नशे के जोश में दबे पांव दरार की तरफ कदम बढ़ाए और झांकने लगा।
उफ! सामने थी प्रज्ञा भाभी, 32 साल की एक गदराई देह वाली औरत, जिसकी जवानी हर मर्द के होश उड़ा सकती थी। वो सिर्फ एक लाल रेशमी पेटीकोट और काली ब्रा में थी, ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी थी। उसके घने, काले बाल कमर तक लहरा रहे थे, और वो उन्हें कंघी से संवार रही थी। उसकी गोरी, चमकती जांघें, भारी-भरकम चूतड़, और 36D की चुचियां, जो ब्रा में कैद थीं, प्रांजल की आंखों को जकड़ रही थीं। प्रज्ञा का हर उभार उसकी देह की रसीली कहानी बयान कर रहा था। प्रांजल का 7 इंच का मोटा लंड पैंट में तन गया, उसकी नसें फूल गईं, और वो फड़फड़ाने लगा जैसे जेल से आजाद होने को बेताब हो।
प्रांजल ने हिम्मत जुटाई। उसने जेब से एक कंडोम निकाला, जो उसने पहले से रखा हुआ था, और उसे पैंट की जेब में डाल लिया। दरवाजा बिना लॉक के हल्का खुला था। उसने धीरे से धक्का दिया, और दरवाजा चरमराता हुआ खुल गया। प्रज्ञा ने जैसे ही पेटीकोट का नाड़ा खोला, वो नीचे सरक गया, और उसकी काली पैंटी में उभरी चूत का आकार साफ दिखने लगा। पैंटी का कपड़ा इतना तना हुआ था कि चूत के होंठों की शेप तक उभर रही थी। प्रांजल का लंड अब बेकाबू था, उसकी सांसें तेज हो रही थीं। तभी प्रज्ञा पलटी, और उसकी नजर प्रांजल पर पड़ी। उसकी आंखों में डर और आश्चर्य चमका। “भैया, ये… ये क्या कर रहे हो!” उसने हड़बड़ाते हुए कहा, उसकी आवाज में डर के साथ एक अजीब सी उत्तेजना थी।
प्रांजल ने उसकी बात अनसुनी की। उसने दो कदम बढ़ाए और प्रज्ञा को अपनी मजबूत बाहों में जकड़ लिया। उसने उसकी ब्रा में कैद चुचियों को जोर से मसल दिया। “आह्ह… भैया, छोड़ो… कोई देख लेगा!” प्रज्ञा ने विरोध किया, उसका शरीर कांप रहा था। लेकिन प्रांजल ने उसकी चुचियों को और जोर से दबाया, उनकी नरमी को अपने हाथों में महसूस करते हुए। उसने पैंटी के ऊपर से उसकी चूत को सहलाना शुरू किया। “उफ्फ, भाभी, तुम्हारी चूत तो जैसे रस से भरी है,” प्रांजल ने फुसफुसाया। प्रज्ञा ने धमकी दी, “मैं शोर मचा दूंगी! मैं बदनाम हो जाऊंगी!” लेकिन प्रांजल कहां मानने वाला था। उसने प्रज्ञा की पैंटी में उंगली डाल दी और उसकी गीली चूत को तेजी से रगड़ने लगा। “आह्ह… भैया… नहीं…” प्रज्ञा की सिसकारी निकली, लेकिन उसका विरोध धीरे-धीरे कमजोर पड़ रहा था। उसकी चूत इतनी गीली थी कि प्रांजल की उंगलियां रस में डूब रही थीं, और फच-फच की हल्की आवाज गूंज रही थी।
“भैया… ऊपर लखन भैया हैं… कोई आ जाएगा,” प्रज्ञा ने हांफते हुए कहा, लेकिन अब उसकी आवाज में वासना की गर्मी साफ सुनाई दे रही थी। प्रांजल ने अपनी पैंट का बटन खोला, जिप नीचे की, और जेब से कंडोम निकालकर अपने 7 इंच के मोटे, तने हुए लंड पर चढ़ाया। उसका लंड नसों से भरा था, और कंडोम उसकी चमक को और बढ़ा रहा था। “भाभी, अब रुकना नामुमकिन है,” प्रांजल ने कहा। उसने प्रज्ञा की एक टांग उठाकर ड्रेसिंग टेबल के स्टूल पर रख दी, उसकी पैंटी को एक तरफ खिसकाया, और अपने कंडोम वाले लंड का सुपारा उसकी गीली चूत पर रगड़ा। “आह्ह… भैया… धीरे… उह्ह…” प्रज्ञा ने सिसकारी भरी, उसकी आंखें आधी बंद थीं। प्रांजल ने उसकी कमर को कसकर पकड़ा और एक जोरदार धक्का मारा। फचाक की आवाज के साथ उसका लंड प्रज्ञा की चूत में पूरा समा गया।
“उह्ह… आह्ह… भैया… कितना मोटा है…” प्रज्ञा की सिसकारियां कमरे में गूंजने लगीं। प्रांजल ने उसके भारी चूतड़ों को दोनों हाथों से कसकर पकड़ा और तेजी से धक्के मारने लगा। फच-फच-फच की आवाज तेज हो रही थी, और प्रज्ञा की चूत का रस कंडोम को और चिकना कर रहा था। “भाभी, तुम्हारी चूत तो जैसे लंड को निगल रही है… उफ्फ… क्या टाइट है,” प्रांजल ने हांफते हुए कहा। उसका लंड प्रज्ञा की चूत की गहराइयों को चीर रहा था, हर धक्के में उसकी चूत की दीवारें लंड को और कस रही थीं। प्रज्ञा अब पूरी तरह उत्तेजित थी, उसकी सिसकारियां चीखों में बदल रही थीं। “आह्ह… भैया… और जोर से… उह्ह… फाड़ दो मेरी चूत को…” वो अपनी कमर हिलाकर प्रांजल के धक्कों का जवाब दे रही थी, उसकी चुचियां ब्रा में उछल रही थीं।
प्रांजल ने प्रज्ञा की ब्रा का हुक खोला, और उसकी भारी, रसीली चुचियां आजाद हो गईं। वो गोल, नरम, और भारी थीं, जिनके भूरे निप्पल सख्त होकर तन गए थे। प्रांजल ने एक निप्पल को मुंह में लिया और जोर-जोर से चूसने लगा, जबकि उसका दूसरा हाथ दूसरी चूची को मसल रहा था। “आह्ह… भैया… उह्ह… और चूसो… मेरी चुचियों को दबाओ,” प्रज्ञा चिल्लाई, उसकी आवाज में वासना की आग थी। प्रांजल ने उसकी चूत में धक्के मारते हुए उसकी एक चूची को हल्के से काटा, जिससे प्रज्ञा का शरीर कांप उठा। “उह्ह… भैया… तुम तो मेरी जान ले लोगे…” उसकी सिसकारियां बेकाबू थीं।
10 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद प्रांजल ने महसूस किया कि कंडोम फट गया। “अरे, भाभी, कंडोम टूट गया!” उसने हांफते हुए कहा। प्रज्ञा की आंखें चौड़ी हो गईं, लेकिन उसकी वासना इतनी चरम पर थी कि वो रुकना नहीं चाहती थी। “भैया… रुकना मत… बस खत्म करो… मैं iPill ले लूंगी,” उसने हांफते हुए कहा। प्रांjल ने उसकी चूत में और तेजी से धक्के मारने शुरू किए। प्रज्ञा की चूत ने रस छोड़ दिया, उसका शरीर थरथरा रहा था, और उसकी टांगें कांप रही थीं। प्रांजल ने अब अपनी रफ्तार बढ़ाई, और 5 मिनट बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला और प्रज्ञा के चेहरे पर अपना गर्म माल उड़ेल दिया। “आह्ह… भाभी… ले…” प्रांजल ने सिसकारी भरी, और प्रज्ञा का चेहरा उसके माल से भीग गया। वो हांफ रही थी, उसकी सांसें तेज थीं, और उसकी चूत से रस टपक रहा था।
प्रांजल ने जल्दी से अपनी पैंट ठीक की, प्रज्ञा ने अपनी पैंटी और साड़ी संभाली, और वो ऊपर लखन के पास चला गया। ऊपर पहुंचा तो लखन प्रज्ञा की 55 साल की सास से बात कर रहा था, जो पुरानी कहानियां सुना रही थी। थोड़ी देर बाद प्रज्ञा वहां आई। उसने प्रांजल की तरफ देखा तक नहीं। उसका चेहरा लाल था, और वो थोड़ा असहज लग रही थी, जैसे अभी-अभी हुए तूफान को छुपाने की कोशिश कर रही हो। उसकी साड़ी हल्की सी गीली थी, शायद उसकी चूत से टपकते रस की वजह से। जब दोनों दोस्त वहां से निकलने लगे, प्रांजल ने चुपके से एक 100 का नोट निकाला, उस पर “सॉरी” लिखा और प्रज्ञा की तरफ फेंक दिया। प्रज्ञा ने तेजी से उस नोट पर पैर रखा और चुपके से उठा लिया। नीचे तक छोड़ने आई तो प्रांजल ने एक और नोट पर अपना मोबाइल नंबर लिखकर उसे पकड़ा दिया। प्रज्ञा ने बिना कुछ बोले नोट ले लिया, लेकिन उसकी आंखों में एक चमक थी, जैसे वो इस चुदाई के रोमांच को फिर से जीना चाहती हो।
प्रज्ञा से ये प्रांजल की तीसरी मुलाकात थी। पहली मुलाकात में ही प्रांजल ने उसकी अदाओं से समझ लिया था कि वो चुदाई के लिए तड़प रही है। उसकी हंसी, उसका बदन हिलाने का तरीका, और उसकी आंखों की चमक सब कुछ जैसे न्योता दे रही थी। दूसरी मुलाकात में प्रांजल ने मौका पाकर प्रज्ञा की चुचियों को मसल दिया था, और उसने विरोध तो किया था, लेकिन 5 मिनट बाद चाय लाकर सबके सामने हंस-हंसकर बात की थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो। लखन को प्रज्ञा पर फिदा था, वो उसे चोदना चाहता था, लेकिन डरता था कि कहीं बदनामी न हो जाए। उसने प्रांजल को इस मिशन पर लगाया था। लखन को पता था कि प्रज्ञा का पति, 40 साल का एक कमजोर मर्द, उसे संतुष्ट नहीं कर पाता। वो जल्दी ढीला पड़ जाता था, और प्रज्ञा की जवानी को एक मजबूत लंड की जरूरत थी।
चुदाई के दो दिन बाद प्रज्ञा का फोन प्रांजल के पास आया। उसकी आवाज में उत्साह था। “भैया, वो चुदाई… उफ्फ… मैं आज तक नहीं भूली। खड़े-खड़े ऐसा मजा पहली बार मिला,” उसने कहा। उसने बताया कि उसने iPill ले लिया था, ताकि कोई खतरा न रहे। लेकिन उसने साफ कहा, “लखन भैया को कुछ पता नहीं चलना चाहिए।” प्रांजल ने हंसते हुए वादा किया कि वो राज रखेगा।
कुछ दिन बाद प्रांजल और लखन फिर हवेली पहुंचे। लखन ऊपर अपनी बातचीत में व्यस्त हो गया, और प्रांजल ने प्रज्ञा को फोन करके नीचे बुलाया। प्रज्ञा बहाने से आई, उसने हल्की नीली साड़ी पहनी थी, लेकिन पैंटी नहीं। उसकी चूत की गर्मी साड़ी के ऊपर से भी महसूस हो रही थी। “भैया, अभी नहीं… लखन भैया नीचे आ जाएंगे,” उसने कहा, लेकिन प्रांजल ने उसकी चुचियों को ब्लाउस के ऊपर से दबाना शुरू कर दिया। “भाभी, तुम्हारी ये चुचियां… उफ्फ… जैसे दूध भरा हो,” प्रांजल ने कहा। उसने जेब से एक नया कंडोम निकाला और अपने लंड पर चढ़ाया। उसने प्रज्ञा को दीवार के सहारे घोड़ी बनाया, उसकी साड़ी कमर तक उठाई, और अपना कंडोम वाला लंड उसकी चूत पर रगड़ा। “आह्ह… भैया… धीरे… कोई देख लेगा,” प्रज्ञा ने सिसकारी भरी, उसकी आंखें वासना से चमक रही थीं।
प्रांजल ने धीरे से अपना लंड उसकी चूत में घुसेड़ा। फच-फच की आवाज गूंजने लगी। प्रज्ञा अपनी कमर हिलाकर लंड को और गहराई में ले रही थी। “उह्ह… भैया… कितना मोटा है तुम्हारा… आह्ह… और गहरा करो,” वो सिसकार रही थी। प्रांजल ने उसके चूतड़ों को कसकर पकड़ा और धक्के मारने लगा। हर धक्के के साथ प्रज्ञा की चूत से रस टपक रहा था, और फच-फच-छप-छप की आवाज कमरे में गूंज रही थी। प्रांजल ने चुपके से लखन को मिस कॉल दी। तभी दरवाजा खुला, और लखन अंदर आ गया।
प्रज्ञा हड़बड़ा गई। उसने जल्दी से प्रांजल का लंड अपनी चूत से निकाला और साड़ी ठीक करने लगी। उसका ब्लाउस खुला था, वो हड़बड़ाहट में हुक लगाने लगी। “लखन भैया… ये… मेरा पति मुझे संतुष्ट नहीं करता… वो जल्दी ढीला पड़ जाता है,” प्रज्ञा ने हांफते हुए सफाई दी, उसकी आंखों में डर और शर्मिंदगी थी। लेकिन लखन ने उसकी बात अनसुनी की और उसकी चुचियों को पकड़ लिया। प्रज्ञा आश्चर्य से उसे देखने लगी, लेकिन उसकी आंखों में अब एक मुस्कान थी। लखन ने उसके ब्लाउस के हुक खोल दिए, और प्रज्ञा की चुचियां फिर से आजाद हो गईं।
चंद पलों में प्रज्ञा पूरी नंगी थी। लखन ने जेब से एक कंडोम निकाला और अपने 6 इंच के लंड पर चढ़ाया। उसने प्रज्ञा की चूत को चाटना शुरू किया, उसकी जीभ प्रज्ञा की चूत के होंठों को चाट रही थी। “आह्ह… उह्ह… लखन भैया…” प्रज्ञा सिसकारियां ले रही थी। लखन ने अपना कंडोम वाला लंड प्रज्ञा की चूत में घुसेड़ दिया। “फच-फच-फच…” की आवाज गूंजी। प्रज्ञा लखन को किस करके उकसा रही थी। “लखन भैया… और जोर से… आह्ह… चोदो मुझे… मेरी चूत को फाड़ दो,” वो चिल्ला रही थी। प्रांजल ने मौका देखकर प्रज्ञा के मुंह में अपना लंड डाल दिया। प्रज्ञा ने पहले हिचकिचाया, लेकिन फिर लंड को चूसने लगी, उसकी जीभ प्रांजल के सुपारे पर गोल-गोल घूम रही थी। “उह्ह… भाभी… क्या चूसती हो… उफ्फ…” प्रांजल ने सिसकारी भरी।
लखन ने प्रज्ञा को दीवार के सहारे घोड़ी बनाया और उसकी चूत में तेजी से धक्के मारने लगा। प्रज्ञा की सिसकारियां चीखों में बदल गई थीं। “आह्ह… लखन भैया… उह्ह… और गहरा… तुम्हारा लंड मेरी चूत को रगड़ रहा है…” उसका शरीर पसीने से तर था। तभी लखन का कंडोम भी फट गया। “अरे, भाभी, मेरा कंडोम भी टूट गया!” लखन ने कहा, लेकिन प्रज्ञा ने हांफते हुए कहा, “रुकना मत… बस चोदो… iPill तो है ही।” लखन ने और तेजी से धक्के मारे, और प्रांजल ने प्रज्ञा के मुंह में अपना लंड डाल रखा था।
लखन ने प्रज्ञा को गोद में उठाया, उसकी टांगें अपनी कमर पर लपेटीं, और उसकी चूत में अपना लंड डाला। प्रांजल ने पीछे से प्रज्ञा के चूतड़ों को सहलाया और एक नया कंडोम अपने लंड पर चढ़ाकर उसकी गांड के छेद पर रगड़ा। “आह्ह… भैया… वहां नहीं… उह्ह…” प्रज्ञा ने सिसकारी भरी, लेकिन उसकी आवाज में विरोध कम और उत्तेजना ज्यादा थी। प्रांजल ने धीरे से अपना लंड उसकी गांड में डाला, और फच-फच की आवाज के साथ दोनों ने प्रज्ञा को एक साथ चोदना शुरू किया। “आह्ह… उह्ह… तुम दोनों मेरी जान ले लोगे…” प्रज्ञा चिल्ला रही थी, उसकी चूत और गांड दोनों एक साथ रगड़े जा रहे थे। फच-फच-छप-छप की आवाज कमरे में गूंज रही थी। प्रज्ञा की चूत बार-बार रस छोड़ रही थी, और उसका शरीर कांप रहा था।
20 मिनट की इस थ्रीसम चुदाई के बाद लखन ने प्रज्ञा की चूत से अपना लंड निकाला और उसका कंडोम उतारकर उसके चेहरे पर अपना माल उड़ेल दिया। “आह्ह… भाभी… ले…” लखन ने सिसकारी भरी। प्रांजल ने भी अपनी रफ्तार बढ़ाई और प्रज्ञा की गांड से लंड निकालकर उसका कंडोम हटाया। उसने प्रज्ञा के चेहरे पर अपना गर्म माल छिड़क दिया। “उह्ह… भाभी… तुम तो जन्नत हो…” प्रांजल ने हांफते हुए कहा। प्रज्ञा का चेहरा दोनों के माल से भीगा हुआ था, उसकी सांसें तेज थीं, और उसकी चूत और गांड से रस टपक रहा था।
30 मिनट बाद प्रज्ञा अपनी सास के सामने चाय लेकर आई, जैसे कुछ हुआ ही न हो। उसकी साड़ी हल्की गीली थी, और उसकी आंखों में एक चमक थी, जैसे वो इस थ्रीसम के रोमांच को अभी भी जी रही हो।
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