ड्राइवर की बेटी की चूत का शिकार किया और मोटा लंड उसके भोसड़े में दिया

हेलो दोस्तों, मेरा नाम शिवकुमार है। मैं नोएडा के पास हापुड़ में रहता हूँ। मेरी उम्र 24 साल है, रंग गोरा, कद 6 फुट, और जिम की वजह से शरीर कसा हुआ है। मेरे पापा एक बड़े बिजनेसमैन हैं। उनके पास सात फैक्ट्रियाँ हैं, जहाँ तरह-तरह के स्नैक्स, बिस्किट, ब्रेड और खाने-पीने की चीजें बनती हैं। पापा का बिजनेस इतना बड़ा है कि वो हमेशा इधर-उधर भागते रहते हैं। इसीलिए उन्होंने सुखबीर काका को ड्राइवर रखा हुआ है। सुखबीर काका 42 साल के हैं, गाँव के साधारण इंसान, मेहनती और शांत स्वभाव के। मैं उन्हें सम्मान से काका बुलाता हूँ। उनका परिवार पास के एक छोटे से मोहल्ले में रहता है, जहाँ वो अपनी पत्नी और बेटी के साथ रहते हैं।

मेरी कहानी की शुरुआत तब हुई, जब सुखबीर काका की बेटी निभा मेरे जन्मदिन की पार्टी में हमारे घर आई। निभा 19 साल की थी, एकदम कच्ची कली, भोली-भाली, लेकिन उसकी खूबसूरती ऐसी थी कि बस देखते ही बन जाए। गोरा रंग, बड़ी-बड़ी काली आँखें, और होंठ जैसे गुलाब की पंखुड़ियाँ। उसकी सलवार-कमीज में से उसके भरे हुए दूध साफ उभर रहे थे, जो शायद 36 इंच से बड़े थे। उसका फिगर 36-28-36 का रहा होगा, एकदम मस्त माल। मैं तो उसे देखते ही पागल हो गया। मेरा 7 इंच का लंड कच्छे में तंबू बनाने लगा। मैंने मन ही मन सोचा, “हाय राम! ये तो जन्नत की हूर है। इसकी रसीली चूत में लंड डालने का मौका मिल जाए, तो जिंदगी बन जाए।”

पार्टी में निभा बहुत शर्मा रही थी। जब वेटर उसे कोल्ड ड्रिंक या जूस ऑफर करता, तो वो हिचकिचाती, जैसे उसे समझ न आए कि क्या करे। मैंने सुखबीर काका को कुछ मिठाइयाँ दीं और उनके पैर छुए। काका ने हँसकर कहा, “जुग-जुग जियो बेटा! भगवान तुम्हें सौ साल की उम्र दे!” फिर उन्होंने अपनी बेटी की तरफ इशारा किया और बोले, “मिलो, ये मेरी बेटी निभा है!” मैंने निभा से हाथ मिलाया। उसका हाथ इतना मुलायम था कि मैं उसे छूते ही मदहोश हो गया। मैंने उससे हाल-चाल पूछा, लेकिन वो बस शर्माकर मुस्कुरा रही थी। उसकी मासूमियत देखकर मेरा लंड और बेकाबू हो गया। फिर काका किसी काम से चले गए, और मैं निभा से बात करने लगा। मैंने वेटर को स्नैक्स लाने को कहा। धीरे-धीरे वो मुझसे खुलने लगी। उसकी मासूम आवाज और शर्मीली हँसी मुझे और दीवाना बना रही थी।

उसके बाद निभा हर हफ्ते हमारे घर आने लगी। वो ज्यादातर सादी सलवार-कमीज पहनती थी, कोई फैशन नहीं, लेकिन उसकी सादगी में ही जादू था। उसकी सफेद कमीज में से उसके भरे हुए दूध साफ दिखते थे, जो हर बार मुझे पागल कर देते। उसकी चाल, उसका शरमाना, सब कुछ ऐसा था कि मेरा लंड उसे देखते ही खड़ा हो जाता। मैं हर रात सोचता, “कब वो दिन आएगा, जब इसकी चूत में मेरा मोटा लंड जाएगा!” मैं उसकी चुदाई के सपने देखने लगा। उसकी मक्खन जैसी चूत को पेलने की ख्वाहिश मेरे दिल में घर कर गई थी।

एक दोपहर को निभा सुखबीर काका का टिफिन लेकर आई। उस दिन मैंने उसे बाजार में कुछ लफंगों से बचाया था, जो उसे छेड़ रहे थे। मैंने उन लड़कों से झगड़ा किया और निभा को सुरक्षित घर तक छोड़ा। उस दिन के बाद हमारी दोस्ती और गहरी हो गई। वो मुझे अब भरोसा करने लगी थी। एक दिन, जब मेरे घर में कोई नहीं था, निभा फिर टिफिन लेकर आई। उस दिन मेरे कमरे में नया 50 इंच का LED टीवी लगा था, जो मैंने पापा से खास अपने कमरे के लिए मँगवाया था। मैंने निभा को टीवी दिखाने के बहाने अपने कमरे में बुलाया। वो नहाकर आई थी, उसके बाल गीले थे, और उसकी खुशबू से कमरा महक रहा था। उसकी सलवार-कमीज में से उसका भरा हुआ बदन और सख्त दूध साफ दिख रहे थे। मेरा लंड तो बस कच्छे में उछल रहा था।

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“क्या मस्त टीवी है, शिवकुमार! इतना बड़ा!” निभा ने टीवी देखकर उत्साह से कहा। उसकी आँखें चमक रही थीं।

“पसंद आया?” मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।

“हाँ, बहुत सुंदर है! HD में तो सब कुछ साफ-साफ दिखता है!” उसने अपने होंठों पर हाथ रखते हुए कहा। मैं चैनल बदल-बदलकर उसे दिखा रहा था। तभी एक चैनल पर हीरो-हीरोइन का हॉट सीन आ गया। हीरो हीरोइन को बाथरूम में बाहों में भरकर चूम रहा था, दोनों भीगे हुए थे। मेरा मन मचल गया। मैंने वही चैनल छोड़ दिया। निभा ने वो सीन देखा तो शर्मा गई और दूसरी तरफ मुँह फेर लिया।

“क्या हुआ, निभा? मुँह क्यों फेर लिया?” मैंने हँसते हुए पूछा।

“नहीं… मुझे लाज आती है,” उसने धीरे से कहा।

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“क्यों? क्या हुआ?” मैंने मजा लेते हुए पूछा।

“बस… ऐसे ही,” वो और शर्मा गई। मैंने मौका देखकर उसे अपनी बाहों में खींच लिया और उसके गोरे गाल पर एक गहरा चुम्मा ले लिया। वो मुझे धकेलने लगी, लेकिन मैंने फिर से उसके रसीले होंठों पर चूम लिया और पीछे हट गया। “निभा, I love you!” मैंने कहा। वो शरमाकर दूर हट गई। उसकी पीठ अब मेरी तरफ थी।

“मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, निभा! तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊँगा,” मैंने दिल से कहा। लेकिन वो बिना कुछ बोले वहाँ से चली गई। अगले पाँच दिन तक वो टिफिन देने नहीं आई। उसकी माँ टिफिन देने आती थी। मैं परेशान हो गया कि कहीं मैंने जल्दबाजी तो नहीं कर दी। छठे दिन निभा फिर आई। वो सीधे मेरे कमरे में आई और मुझसे लिपट गई।

“शिव, मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ!” उसने कहा और मेरे गले लग गई। दोस्तों, उस पल मेरा लंड तो जैसे कच्छे से बाहर आने को बेताब हो गया। मैंने उसे बार-बार “I love you” कहा और उसे अपने सीने से चिपका लिया। मन ही मन मैं भगवान को धन्यवाद दे रहा था कि इतनी मस्त माल मेरे हाथ लग गई। उस दिन मैंने उसे चोदने की कोशिश नहीं की, क्योंकि मुझे डर था कि वो समझ जाएगी कि मैं सिर्फ उसकी चूत का भूखा हूँ। मैंने बस उसे चूमा और उसे प्यार से गले लगाया।

धीरे-धीरे हमारी मुलाकातें बढ़ने लगीं। अब मैं उसकी लिमिट से आगे बढ़ने लगा। मैं उसके दूध पर हाथ रखने लगा। वो भी अब मुझसे प्यार करने लगी थी, इसलिए कुछ नहीं कहती थी। उसकी सलवार-कमीज के ऊपर से उसके सख्त दूध दबाने में मुझे जन्नत का मजा आता था। एक दिन, जब मेरे घर में कोई नहीं था, निभा टिफिन लेकर आई। मैंने टिफिन नीचे हॉल में रख दिया, ताकि अगर सुखबीर काका आएँ तो उन्हें टिफिन मिल जाए और वो चले जाएँ। मैंने निभा को अपने कमरे में ले लिया। हम दोनों एक-दूसरे को चूमने लगे। मैंने उसके दूध दबाने शुरू किए। ओह, क्या मुलायम और भरे हुए दूध थे! मैंने उसकी कमीज के ऊपर से ही उसके मम्मों को जोर-जोर से दबाया।

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“निभा, आज तो मुझे चाहिए!” मैंने हँसते हुए कहा।

“क्या?” उसने भोलेपन से पूछा।

“वही…” मैंने इशारा करते हुए कहा।

“वही क्या?” वो फिर बोली।

“तेरी चूत!” मैंने साफ-साफ कह दिया। निभा के चेहरे पर जैसे बिजली गिर गई। वो चुप हो गई। मैं समझ गया कि वो चुदवाने को तैयार है। मैंने उसे अपनी बाहों में कस लिया। हम दोनों मेरे कमरे में खड़े थे, एक-दूसरे से चिपके हुए। उसकी साँसें तेज चल रही थीं। उसके हाथ मेरे बालों में नाच रहे थे। मैंने उसके होंठों को चूमना शुरू किया। उसकी जीभ मेरी जीभ से मिल रही थी। मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ उसके पुट्ठों की तरफ बढ़ाया। उसकी सलवार के ऊपर से उसके चूतड़ सहलाने लगा। उसकी गाँड इतनी मुलायम थी कि मैं बस उसे दबाता ही रहा। “आह… शिव…” उसने धीरे से सिसकारी भरी।

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मैंने उसकी कमीज के बटन खोलने शुरू किए। उसने हल्का सा विरोध किया, “शिव, ये क्या कर रहे हो?” लेकिन उसकी आवाज में शर्म थी, ना कि गुस्सा। मैंने उसकी कमीज उतार दी। उसकी काली ब्रा में उसके 36 इंच के दूध कैद थे। मैंने ब्रा के ऊपर से ही उसके दूध दबाए। “उह… शिव, धीरे…” वो सिसकार रही थी। मैंने उसकी ब्रा भी उतार दी। उसके नंगे दूध देखकर मेरा लंड और सख्त हो गया। मैंने उसके एक निप्पल को मुँह में लिया और चूसने लगा। “आआह… ऊह…” निभा की सिसकारियाँ तेज हो गईं। मैंने उसके दोनों दूध बारी-बारी से चूसे, उन्हें दबाया, और उनके बीच अपना चेहरा रगड़ा। उसकी चूत से रस टपकने लगा था, जो उसकी सलवार को गीला कर रहा था।

मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोला। उसकी पैंटी पूरी तरह गीली थी। मैंने उसकी पैंटी पर जीभ लगाई और उसका रस चाटने लगा। “आह… शिव, ये क्या कर रहे हो… ऊह…” वो सिसकार रही थी। मैंने उसकी पैंटी उतार दी। उसकी चूत एकदम सिलपैक थी, गोरी और मुलायम। उस पर सफ़ेद मलाई जमा थी। मैंने उसके पैर खोले और उसकी चूत चाटने लगा। “आआह… ऊह… शिव… हाय…” उसकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। मैंने उसकी चूत के दाने को जीभ से चाटा, उसे चूसा, और अपनी जीभ उसकी चूत के अंदर डाल दी। निभा की कमर और गाँड हिलने लगी। “आह… शिव, बस… ऊह…” वो पागल हो रही थी। उसकी चूत का रस मेरे मुँह में आ रहा था। मैंने उसकी चूत को और जोर से चाटा, जब तक वो पूरी तरह गीली नहीं हो गई।

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मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए। मेरा 7 इंच का लंड एकदम कड़क था। मैंने उसे निभा की चूत पर रखा। “शिव, धीरे… मुझे डर लग रहा है,” उसने कहा। मैंने उसकी आँखों में देखा और कहा, “निभा, तुझे दर्द नहीं होगा, बस मजा आएगा।” मैंने एक जोरदार धक्का मारा। मेरा लंड उसकी चूत में गहराई तक घुस गया। “आआह… ऊई… माँ…” निभा दर्द से चीख पड़ी। उसकी आँखों में आँसू आ गए। मैंने धीरे-धीरे कमर हिलानी शुरू की। “उह… आह… शिव, धीरे… दर्द हो रहा है…” वो कराह रही थी। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड जैसे फंस रहा था। मैंने उसके दूध दबाए और धीरे-धीरे चोदने लगा। “आह… ऊह… शिव… आआह…” उसकी सिसकारियाँ तेज हो गईं। मैंने उसके होंठ चूमे और उसकी चूत में और तेज धक्के मारे।

“निभा, तेरी चूत कितनी टाइट है! मजा आ रहा है!” मैंने कहा। वो शर्मा गई, लेकिन उसकी सिसकारियाँ नहीं रुकीं। मैंने उसे 25 मिनट तक पेला। उसकी चूत का रस मेरे लंड को गीला कर रहा था। “आह… शिव, और जोर से… ऊह…” वो अब मजा ले रही थी। मैंने और तेज धक्के मारे। “फट… फट… फट…” मेरे धक्कों की आवाज कमरे में गूँज रही थी। मैंने उसके दूध दबाए, उसके निप्पल चूसे, और उसकी चूत को जमकर पेला। फिर मैं झड़ गया। मेरा माल उसकी चूत से बाहर निकलने लगा। निभा ने अपनी उँगलियों से माल लिया और चाट लिया। “शिव, ये क्या था?” उसने शरमाते हुए पूछा। मैंने हँसकर कहा, “ये प्यार का रस है, निभा!”

हम दोनों नंगे एक-दूसरे से चिपके रहे। उसकी चूत की गर्मी और उसकी खुशबू मुझे और उकसा रही थी। मैंने उसे फिर से चोदा। इस बार मैंने उसे पेट के बल लिटाया और उसकी गाँड के बीच में लंड डाल दिया। “आआह… शिव, धीरे… उह…” वो फिर कराहने लगी। मैंने उसकी चूत को आधे घंटे तक पेला। “फट… फट… फट…” धक्कों की आवाज के साथ उसकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। उसकी चूत का रस और मेरे माल से बिस्तर गीला हो गया। “शिव, तू कितना जोर से पेलता है… आह…” उसने कहा। मैंने उसके होंठ चूमे और कहा, “निभा, तेरी चूत का जवाब नहीं!”

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इसके बाद निभा मुझसे पूरी तरह पट गई। अब वो हर हफ्ते मेरे घर आती और हम चुदाई का मजा लेते। दोस्तों, ये थी मेरी कहानी। आपको कैसी लगी? कमेंट में जरूर बताएँ।

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