दोस्त की बहन को ट्यूशन पढ़ा कर पेला

मैं, दीपेंद्र, गोरखपुर का रहने वाला हूँ, 24 साल का, 5 फुट 10 इंच का, गठीला बदन, गेहुंआ रंग, और कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ कुछ पॉकेट मनी के लिए ट्यूशन पढ़ाता हूँ। कुछ महीने पहले मेरे पड़ोस में एक नेपाली लड़का, कलिंग, किराए पर रहने आया। कलिंग 28 साल का था, 5 फुट 7 इंच, मरियल-सा बदन, लेकिन चेहरा तेज, आँखें चौकस। वो पास की फैक्ट्री में सिक्योरिटी गार्ड था। उसके साथ उसकी छोटी बहन गौरवी रहती थी, 18 साल की, कॉलेज में फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट। गौरवी थी तो 5 फुट की, लेकिन उसका फिगर, यार, क्या कहने! गोरी-चिट्टी, गोल-मटोल चेहरा, होंठ जैसे गुलाबी रसभरी, और 36 इंच के मम्मे, जो उसके टाइट कुर्ते में उभरे रहते थे। उसकी चिपटी नाक और मलाई जैसा रंग उसे नेपाली खूबसूरती का परफेक्ट नमूना बनाता था। उसकी कमर 28 इंच की थी, और गांड इतनी गदराई कि जींस में भी उभरकर दिखती थी।

शुरुआत में उनकी नेपाली भाषा मेरे पल्ले कम पड़ती थी। मैं जब भी उनके घर जाता, गौरवी की हंसी और उसकी चंचल आँखें मुझे बेकरार कर देती थीं। एक दिन कलिंग ने मुझसे कहा, “दीपेंद्र, मेरी बहन को ट्यूशन पढ़ा दे, वो मैथ्स में कमजोर है।” मुझे पैसे की जरूरत थी, तो मैंने हामी भर दी। मैं रोज शाम को उनके घर जाने लगा। गौरवी ट्यूशन के दौरान टाइट कुर्ता और लेगिंग्स पहनती, जिससे उसका फिगर और उभरता। मैं पढ़ाते-पढ़ाते उसकी तरफ देखता, और वो शरमाकर मुस्कुरा देती। धीरे-धीरे मेरे दिल में उसके लिए कुछ-कुछ होने लगा। लेकिन डर भी लगता था, क्योंकि कलिंग का खौफ था। सुना था, दो साल पहले किसी लड़के ने गौरवी को छेड़ा था, तो कलिंग ने फरसे से उसकी दो उंगलियाँ काट दी थीं। ये बात सुनकर मेरी हिम्मत जवाब दे जाती थी।

एक दिन ट्यूशन के दौरान गौरवी अचानक बोली, “म तपाईलाई प्रेम।” मैंने हैरानी से पूछा, “क्या बोली?” वो शरमाते हुए बोली, “मैं तुमसे प्यार करती हूँ, दीपेंद्र।” मेरे तो जैसे पैर जमीन पर नहीं टिक रहे थे। मैंने हंसते हुए कहा, “अरे, मैं भी तो तुझसे प्यार करता हूँ।” वो हंसी, और मैंने उसे बाहों में भर लिया। मैंने उसके गुलाबी होंठ चूमने शुरू किए। वो भी मेरे होंठ चूस रही थी, जैसे कोई प्यासी। मेरा 10 इंच का लौड़ा जींस में तन गया। मैं उसे बिस्तर पर लिटाना चाहता था, लेकिन तभी कलिंग की आवाज सुनाई दी। हम दोनों जल्दी से अलग हो गए। गौरवी अपने भाई से बहुत डरती थी, और मैं भी कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था।

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कुछ दिन बाद किस्मत ने साथ दिया। कलिंग को अपनी माँ की तबीयत खराब होने की खबर आई, और उसे एक हफ्ते के लिए नेपाल जाना पड़ा। वो सुबह की बस से चला गया। मेरे तो जैसे मजे आ गए। गौरवी अब घर पर अकेली थी। मैंने मौका देखकर उसे रात में अपने घर खाने पर बुलाया। उसने नारंगी सलवार सूट पहना था, जिसमें वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। खाना खाने के बाद, रात 10 बजे, मैं उसके कमरे में पहुँच गया। दरवाजा खुलते ही हम एक-दूसरे पर टूट पड़े। मैंने उसे दीवार से सटाकर उसके होंठ चूसने शुरू किए। “उम्म… दीपेंद्र…” वो सिसक रही थी। मैंने उसका दुपट्टा खींचा और कुर्ता ऊपर उठाया। उसने नीचे काली ब्रा और पैंटी पहनी थी। मैंने उसका कुर्ता और सलवार उतार दी। उसका गोरा, गदराया जिस्म देखकर मेरा लौड़ा फनफनाने लगा।

मैंने उसकी ब्रा खींची और 36 इंच के मम्मे आजाद कर दिए। गोल, मांसल, और लाल निप्पल्स वाले मम्मे देखकर मैं पागल हो गया। मैंने एक मम्मा मुँह में लिया और चूसने लगा। “आआह्ह… दीपेंद्र… और जोर से…” गौरवी सिसक रही थी। मैंने दूसरा मम्मा हाथ से दबाया, उसका निप्पल उंगलियों से मसला। वो तड़प रही थी, “उफ्फ… कितना अच्छा लग रहा है…” मैंने जीभ से उसके निप्पल्स को चाटा, फिर हल्के से काटा। वो चिल्लाई, “आह्ह… धीरे… दर्द हो रहा है…” लेकिन उसकी सिस्कारियाँ बता रही थीं कि उसे मजा आ रहा था। मैंने अपने कपड़े उतारे। मेरा 10 इंच का लौड़ा तना हुआ था। गौरवी ने उसे देखा और शरमाकर बोली, “हाय… ये तो बहुत बड़ा है…”

मैंने उसकी पैंटी उतारी। उसकी चूत क्लीन शेव थी, गुलाबी, और गीली। मैंने कहा, “गौरवी, तेरी चूत तो बिल्कुल मखमल है।” वो शरमाकर बोली, “हाय, तुम भी ना… ऐसी बातें मत करो।” मैंने उसे बिस्तर पर लिटाया और उसकी चूत पर जीभ फेरी। “आआह्ह… उउईई…” वो तड़प उठी। मैंने उसकी चूत के दाने को चाटा, चूसा, और हल्के से काटा। वो चिल्ला रही थी, “दीपेंद्र… हाय… मैं मर जाऊँगी… और चाटो…” मैंने अपनी उंगली उसकी चूत में डाली, और वो उछल पड़ी। “उफ्फ… धीरे… पहली बार है मेरा…” मैंने उंगली अंदर-बाहर की, और उसकी चूत और गीली हो गई।

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वो बोली, “बस, दीपेंद्र… अब डाल दो… और मत तड़पाओ।” मैंने थोड़ा थूक अपने लौड़े पर लगाया और उसकी चूत में धीरे से सरका दिया। “आआह्ह… उउईई… माँ…” वो चिल्लाई। उसकी चूत टाइट थी, क्योंकि वो कुंवारी थी। मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए। “पक… पक… पक…” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। गौरवी की सिस्कारियाँ तेज हो गईं, “आह्ह… ओह्ह… दीपेंद्र… और जोर से…” मैंने उसके होंठ चूसते हुए धक्के तेज किए। वो अपनी कमर उठाकर मेरा साथ दे रही थी। मैंने कहा, “गौरवी, तेरी चूत कितनी टाइट है… मजा आ रहा है।” वो बोली, “हाय… तुम्हारा लौड़ा तो मुझे फाड़ देगा…”

मैंने उसकी टाँगें क्रॉस कीं और कसकर पकड़ा। उसकी चूत और टाइट हो गई। मैं गचागच पेल रहा था। “पक… पक… पक…” की आवाज के साथ वो चिल्ला रही थी, “आआह्ह… उईई… दीपेंद्र… और जोर से… हाय…” मैंने देखा कि उसकी चूत से थोड़ा खून निकला, मतलब उसकी सील टूट चुकी थी। लेकिन वो इतनी गर्म थी कि उसे कुछ पता नहीं चला। मैंने और जोर से धक्के लगाए। वो अपने मम्मे दबा रही थी, अपनी जीभ से चाट रही थी। “उफ्फ… दीपेंद्र… कितना मजा आ रहा है…” वो सिसक रही थी।

करीब 20 मिनट की चुदाई के बाद मैंने अपना माल उसकी चूत में छोड़ दिया। वो भी झड़ चुकी थी। हम दोनों हाँफते हुए लेट गए। गौरवी मेरे सीने पर सर रखकर बोली, “म तपाईलाई प्रेम।” मैंने कहा, “मैं भी तुझसे प्यार करता हूँ।” थोड़ी देर बाद मेरा लौड़ा फिर खड़ा हो गया। मैंने उसे अपनी कमर पर बिठाया। वो थोड़ा झिझकी, बोली, “हाय… ये कैसे होगा?” मैंने उसकी चूत में लौड़ा सेट किया और कहा, “बस, उछलती रह।” वो धीरे-धीरे उछलने लगी। “आह्ह… उह्ह… दीपेंद्र… ये तो गजब है…” वो सिसक रही थी।

मैंने उसके मम्मे दबाए, और वो तेजी से उछलने लगी। “पक… पक… पक…” की आवाज फिर गूँजने लगी। वो पीछे झुकी, अपने हाथ बिस्तर पर टिकाए, और जोर-जोर से चुदवाने लगी। “आआह्ह… उईई… माँ… दीपेंद्र… मैं मर जाऊँगी…” वो चिल्ला रही थी। उसकी चूत पूरी तरह फूल चुकी थी। करीब 25 मिनट बाद हम दोनों फिर झड़ गए। वो थककर मेरे ऊपर लेट गई।

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अगले दिन सुबह, हम फिर मिले। गौरवी ने नीली सलवार सूट पहना था। मैंने उसे फिर बिस्तर पर लिटाया। इस बार वो कम झिझकी। मैंने उसका सूट उतारा, और उसकी चूत चाटने लगा। “आह्ह… दीपेंद्र… और चाटो…” वो सिसक रही थी। मैंने उसकी चूत में दो उंगलियाँ डालीं, और वो तड़प उठी। “उफ्फ… हाय… ये क्या कर रहे हो…” मैंने कहा, “बस, रानी, अभी और मजा आएगा।” मैंने अपना लौड़ा उसकी चूत में डाला और जोर-जोर से पेलने लगा। “पक… पक… पक…” की आवाज के साथ वो चिल्ला रही थी, “आह्ह… उईई… दीपेंद्र… फाड़ दो मेरी चूत…”

इस बार मैंने उसे डॉगी स्टाइल में चोदा। उसकी गदराई गांड देखकर मेरा लौड़ा और तन गया। मैंने उसकी कमर पकड़ी और गचागच पेलने लगा। वो चिल्ला रही थी, “आह्ह… ओह्ह… दीपेंद्र… और जोर से…” करीब 30 मिनट बाद हम फिर झड़ गए। अब गौरवी मुझसे पूरी तरह पट चुकी है। जब भी मौका मिलता है, वो मुझे अपनी चूत देती है। हम दोनों हर बार नए-नए तरीके से चुदाई करते हैं, और हर बार मजा दोगुना हो जाता है।

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