भाभी ने मुझसे चुदवा लिया

मेरा नाम समीर है। 25 साल का हूँ, कद 5 फुट 8 इंच, एक छोटे से शहर में रहता हूँ। सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा हूँ, दिन-रात किताबों में सिर खपाता हूँ। मेरे घर में कुल छह लोग हैं—मैं, मम्मी, पापा, मेरा बड़ा भाई अभिषेक, उसकी बीवी, यानी मेरी भाभी रश्मि, और उनकी एक साल की बेटी। भाई 28 साल का है, सरकारी नौकरी में है, सुबह जाता है, देर रात लौटता है। भाभी, 26 की, घर संभालती है। उसका कद 5 फुट 3 इंच, फिगर 36-30-36, हल्की सांवली सी, लेकिन वो सांवलापन ऐसा कि दिल में आग लगा दे। उसकी आँखों में एक चमक है, होंठ गुलाबी, और जब वो साड़ी में अपनी कमर मटकाती है, तो बस लंड खड़ा हो जाता है।

जब भाई की शादी हुई थी, दो साल पहले, तब पहली बार मैंने भाभी को देखा। बस, उसी पल दिल धक् से रह गया। रश्मि भाभी थी ही ऐसी—उसके बड़े-बड़े दूध, पतली कमर, और गोल-मटोल गान्ड, सब कुछ जैसे कामदेव ने खुद तराशा हो। मैं तो उसी दिन से उसका दीवाना हो गया। रात को बिस्तर पर लेटकर, आँखें बंद करके, बस भाभी को सोच-सोचकर मुठ मारता। कभी उसकी साड़ी के नीचे झांकती नाभि, कभी उसकी चूचियों का उभार—बस, मेरा लंड तन जाता। मैं हर मौके पर उसे छूने की कोशिश करता। कभी मजाक में उसके गाल पर हल्का सा चुम्मा ले लेता, तो वो बस हंस देती। कभी बुरा नहीं माना उसने, लेकिन मेरी हिम्मत नहीं थी कि बात को आगे बढ़ाऊँ। घर में मम्मी-पापा, भाई—सब थे, तो भाभी के साथ अकेले वक्त बिताने का मौका ही नहीं मिला।

फिर कुछ महीने बाद खबर आई कि भाभी प्रेग्नेंट है। मैं खुश भी था, उदास भी। खुश, क्योंकि भाई-भाभी की जिंदगी में नया मेहमान आने वाला था। उदास, क्योंकि मुझे लगा कि अब भाभी और दूर हो जाएगी। समय बीतता गया, बच्ची हुई, और दो साल कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला। भाभी अब और भी भरी-भरी लगने लगी थी। जब वो घर की सफाई करती, झुककर पोछा लगाती, तो उसकी साड़ी का पल्लू खिसक जाता, और उसकी गहरी दरार दिखती। मैं बस टकटकी बांधकर देखता रहता। वो जब बच्ची को दूध पिलाती, तो उसकी चूचियां ब्लाउज में तनी हुई दिखतीं, और मेरा लंड पैंट में तंबू बनाता। उसे पता था कि मैं देखता हूँ, फिर भी वो कुछ नहीं कहती। बस, कभी-कभी उसकी आँखों में एक शरारती सी चमक दिखती।

बाथरूम में कभी-कभी उसकी ब्रा-पैंटी मिल जाती। पहले मैं बस उन्हें सूंघता, उसकी खुशबू में खो जाता। लेकिन अब तो मैं उनमें मुठ मारने लगा। अपना गर्म-गर्म माल उसकी पैंटी पर गिराता, और सोचता कि काश ये भाभी की चूत पर गिर रहा होता। मुझे लगता था कि भाभी को सब पता है। वो कभी मजाक में कहती, “देवर जी, बड़ा काम कर रहे हो आजकल, खाना ढंग से खाओ!” मैं शरमाता, लेकिन हिम्मत नहीं थी कि उससे खुलकर बात करूँ।

दस दिन पहले की बात है। मेरी बुआ की सास का देहांत हो गया। घर में सब उनके घर जाने की तैयारी करने लगे। दो दिन का प्लान था। भाभी ने मना कर दिया, बोलीं कि बच्ची को वहाँ दिक्कत होगी। भाई ने कहा, “समीर, तू भी रुक जा।” मम्मी ने भी कहा, “हाँ, तू यहीं रह, भाभी का ख्याल रखना।” मैं तो मन ही मन खुशी से उछल पड़ा। सोचा, शायद अब मौका मिले। सबके जाने के बाद घर में बस मैं, भाभी और उनकी बच्ची रह गए। रात को हमने खाना खाया। भाभी किचन में बर्तन साफ करने लगीं, और मैं बच्ची के साथ खेलने लगा। बच्ची हंस रही थी, और मैं उसे देखकर भाभी की तरफ देखता, जो साड़ी में किचन में काम कर रही थी। उसकी कमर का वो हल्का सा उभार, साड़ी के नीचे से झांकती नाभि—मेरा लंड फिर से खड़ा होने लगा।

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काम निपटाकर भाभी आई और मेरे पास सोफे पर बैठ गई। फिर बोलीं, “चल, बच्ची को सुला दूँ।” वो मेरे सामने ही बच्ची को दूध पिलाने लगी। उसने साड़ी का पल्लू हटाया, ब्लाउज का बटन खोला, और अपनी एक चूची बाहर निकाली। मैं तो बस उसकी गोल, भारी चूची को देखता रह गया। निप्पल गहरा भूरा, थोड़ा सा तना हुआ। मेरा लंड पैंट में उछलने लगा। भाभी ने मुझे देखा और पूछा, “क्या हुआ, समीर?” मैं घबरा गया, जल्दी से बोला, “कुछ नहीं, लगता है बच्ची सो गई।” भाभी ने देखा, बच्ची सचमुच सो चुकी थी। वो उसे बेडरूम में सुलाने चली गई।

मैं लिविंग रूम में बैठा अपनी हॉरर फिल्म, पैरानॉर्मल एक्टिविटी, देखने लगा। कुछ देर बाद भाभी वापस आई और मेरे पास बैठ गई। बोलीं, “बच्ची अकेली सो रही है, चल, मेरे बेडरूम में फिल्म देखते हैं।” मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मैंने लैपटॉप उठाया, और हम उनके बेडरूम में चले गए। बेड पर एक तरफ बच्ची सो रही थी, बीच में भाभी, और दूसरी तरफ मैं। हमने एक ही कम्बल ओढ़ लिया। लैपटॉप भाभी की जांघों पर था। फिल्म चल रही थी, लेकिन मेरा ध्यान तो भाभी की गर्म जांघों पर था, जो मेरी जांघों से सट रही थीं। जब भी फिल्म में डरावना सीन आता, भाभी मेरा हाथ पकड़ लेती। उनकी उंगलियाँ मेरी हथेली पर रगड़तीं, और मेरा लंड पैंट में तनता जा रहा था।

धीरे-धीरे हम और करीब आ गए। मेरी जांघ उनकी जांघ से पूरी तरह सट गई। मैंने हिम्मत करके उनकी जांघ पर हाथ रखा। वो कुछ नहीं बोलीं, बस फिल्म देखती रहीं। मेरा लंड अब पैंट फाड़ने को तैयार था। मैंने धीरे से अपनी कोहनी उनकी चूची पर टच की, ब्लाउज के ऊपर से ही हल्का-हल्का दबाया। भाभी का शरीर थोड़ा सा कांपा, लेकिन वो चुप रहीं। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मैंने सोचा, अब मौका है। मैंने पैंट के अंदर से अपना 6.5 इंच का लंड बाहर निकाला। कम्बल के नीचे वो पूरा तना हुआ था। मैंने हल्का सा करवट ली, ताकि मेरा लंड उनके हाथ को छू जाए, जो मेरी जांघ पर था।

भाभी एकदम चौंकीं, उनका हाथ पीछे खिंच गया। मैं डर गया, सोचा अब गड़बड़ हो गई। लेकिन वो कुछ नहीं बोलीं। मैंने भी अपनी कोहनी उनकी चूची से हटा ली। पांच मिनट तक हम चुपचाप फिल्म देखते रहे। मेरा मन बेचैन था। सोचा, एक बार और कोशिश करूँ। तभी भाभी बोलीं, “समीर, मुझे नींद आ रही है। बाकी फिल्म कल देखेंगे।” मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था। मन तो किया कि भाभी को अभी पकड़कर चोद दूँ, लेकिन मैंने खुद को संभाला। बोला, “ठीक है, भाभी,” और लैपटॉप लेकर अपने कमरे में चला गया।

पांच मिनट बाद ही भाभी की आवाज आई, “समीर, सो गए क्या?” मैंने कहा, “नहीं, भाभी, क्या हुआ?” वो बोलीं, “दरवाजा खोलो।” मैंने दरवाजा खोला। भाभी ने कहा, “हॉरर फिल्म देखने के बाद डर लग रहा है। अकेले सोने में घबराहट हो रही है। क्या तुम मेरे कमरे में सो सकते हो?” मेरे तो जैसे लड्डू फूटने लगे। मैंने शांत स्वर में कहा, “हाँ, भाभी, मुझे भी अकेले डर लग रहा था।” हम उनके बेडरूम में गए। फिर वही—बच्ची एक तरफ, भाभी बीच में, मैं दूसरी तरफ। एक ही कम्बल। कुछ देर बातें हुईं, फिर भाभी चुप हो गईं। मुझे लगा वो सो गईं। मेरा लंड फिर से तन गया। मैंने हल्के से “भाभी” बोला, लेकिन कोई जवाब नहीं आया।

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मेरे दिमाग में फिर से गंदे ख्याल आने लगे। मैं धीरे-धीरे भाभी की तरफ खिसका। अब मेरा शरीर उनके शरीर से पूरी तरह सट गया। उनकी पीठ मेरे सीने से, उनकी गान्ड मेरे लंड से। मेरा लंड उनकी साड़ी के ऊपर से उनकी गान्ड की दरार में रगड़ रहा था। मैंने हिम्मत करके अपना हाथ उनकी नंगी कमर पर रखा। मेरी उंगलियाँ उनकी नाभि के आसपास गोल-गोल घूमने लगीं। भाभी की सांसें तेज होने लगीं। मेरा दिल धक-धक कर रहा था, लेकिन हिम्मत बढ़ रही थी। मैंने अपना चेहरा उनकी गर्दन के पास ले गया। मेरे होंठ उनकी गर्दन को हल्के-हल्के छूने लगे। वो चुप थीं, लेकिन उनकी सांसों की गर्मी बता रही थी कि वो जाग रही हैं।

मैंने अपना हाथ उनकी नाभि से ऊपर ले जाकर उनकी चूची पर रखा। ब्लाउज के ऊपर से ही हल्का-हल्का दबाया। भाभी की सांसें और तेज हो गईं। अब मैं उनकी गर्दन को चूमने लगा, होंठों से उनके कानों को सहलाने लगा। भाभी ने हल्की सी सिसकारी भरी, “उम्म…” मैं समझ गया कि वो भी मजे में हैं। मैंने धीरे से उनका ब्लाउज खोलना शुरू किया। भाभी ने कोई विरोध नहीं किया। अंदर ब्रा नहीं थी। उनकी गोल, भारी चूचियां मेरे सामने थीं। मैंने एक चूची को जोर से दबाया, दूसरी को मुँह में लेकर चूसने लगा। भाभी की सिसकारियाँ तेज हो गईं, “आह… समीर… धीरे…” मैंने उनके कान में फुसफुसाया, “मजा आ रहा है ना, भाभी?” वो चुप रहीं, लेकिन अचानक पलटकर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

मैं तो जैसे सातवें आसमान पर था। भाभी मेरे होंठ चूस रही थीं, उनकी जीभ मेरी जीभ से खेल रही थी। मैंने भी उनके होंठों का रस चूसना शुरू किया। दस मिनट तक हम एक-दूसरे के होंठ चूसते रहे। भाभी की सिसकारियाँ, “उम्म… आह…” कमरे में गूंज रही थीं। मैंने उनकी गर्दन चूमी, फिर उनकी चूचियों पर आ गया। एक-एक करके दोनों चूचियों को चूसा, निप्पल को दाँतों से हल्का सा काटा। भाभी सिहर उठीं, “आह… समीर, ये क्या कर रहे हो?” मैंने कहा, “भाभी, आज तुम्हें सारी रात चोदने वाला हूँ।” वो शरमाईं, लेकिन उनकी आँखों में वासना चमक रही थी।

मैंने अपना टी-शर्ट और पैंट उतार फेंका। मेरा लंड अब आजाद था, 6.5 इंच का, पूरा तना हुआ। भाभी ने उसे देखा, उनकी आँखें चमक उठीं। मैंने उनकी साड़ी और पेटीकोट उतारना शुरू किया। वो भी मेरा साथ दे रही थीं। मैंने नाइट बल्ब जला दिया। अब हम दोनों पूरी तरह नंगे थे। भाभी की चूत पर हल्के-हल्के बाल थे, जो उसे और कामुक बना रहे थे। वो मेरे लंड को प्यार से देख रही थीं, लेकिन थोड़ा शरमा भी रही थीं। मैंने उनका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रखा। वो धीरे-धीरे उसे सहलाने लगीं। मैंने कहा, “भाभी, इसे मुँह में लो ना।” वो बोलीं, “नहीं, समीर, मुझे चूसना पसंद नहीं।” मैंने जोर नहीं दिया।

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मैं उनकी जांघों के बीच आ गया। उनकी चूत पूरी तरह गीली थी। मैंने एक उंगली अंदर डाली, भाभी सिहर उठीं, “आह… समीर…” मैंने उनकी चूत को चाटना शुरू किया। मेरी जीभ उनकी चूत के दाने को सहला रही थी। भाभी मेरे बाल पकड़कर मुझे और दबाने लगीं, “आह… और करो… चाटो इसे…” वो पूरी तरह जोश में थीं। मैंने उनकी चूत को और जोर से चाटा, मेरी जीभ अंदर-बाहर हो रही थी। भाभी की सिसकारियाँ कमरे में गूंज रही थीं, “आह… समीर… चोद दो अब… बर्दाश्त नहीं हो रहा।”

मैं उनके ऊपर आ गया। मेरा लंड उनकी चूत पर रगड़ रहा था। मैंने धीरे से लंड का सुपारा अंदर डाला। भाभी की सिसकारी निकली, “आह… धीरे…” मैंने एक जोरदार झटका मारा, आधा लंड अंदर। भाभी चीख पड़ीं, “उई… समीर… आराम से…” मैंने एक और झटका मारा, पूरा लंड उनकी चूत में समा गया। भाभी की चीख और तेज थी, “आह… मर गई…” मैंने धीरे-धीरे चुदाई शुरू की। भाभी भी अपनी कमर उठाकर मेरा साथ देने लगीं। मैं कभी उनकी चूचियां दबाता, कभी उनके होंठ चूसता। भाभी बोल रही थीं, “हाँ… समीर… और जोर से… चोदो अपनी भाभी को…” मैंने रफ्तार बढ़ा दी। उनकी चूत इतनी गीली थी कि हर झटके के साथ “पच-पच” की आवाज आ रही थी।

करीब 20 मिनट तक चुदाई चली। भाभी का शरीर अकड़ने लगा, वो मुझे कसकर पकड़ने लगीं, “आह… समीर… मैं… मैं झड़ने वाली हूँ…” मैंने और जोर से धक्के मारे। भाभी झड़ गईं, उनकी चूत से गर्म रस बहने लगा। तभी मेरा लंड भी अकड़ने लगा। भाभी बोलीं, “अंदर ही झड़ जाओ, समीर…” मैंने पूरी ताकत से धक्के मारे और उनकी चूत में ही झड़ गया। मेरा गर्म माल उनकी चूत को भर रहा था। हम दोनों हांफ रहे थे। मैंने भाभी को बाहों में लिया, उनके होंठ चूमे। फिर मैंने उन्हें अपने सीने से लगाया, और हम दोनों नंगे ही सो गए।

सुबह जब आँख खुली, भाभी मेरे बगल में थीं, अभी भी नंगी। वो मुस्कुराईं, बोलीं, “समीर, ये हमने क्या कर लिया?” मैंने कहा, “भाभी, जो दिल ने कहा, वही किया।” वो शरमाईं, लेकिन उनकी आँखों में फिर से वही शरारत थी। उस रात के बाद हमारा रिश्ता बदल गया। अब जब भी मौका मिलता है, हम एक-दूसरे की आग बुझाते हैं।

क्या आपको लगता है कि समीर और रश्मि को ऐसा रिश्ता बनाए रखना चाहिए? या ये गलत है? अपनी राय कमेंट में बताएं!

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