दीदी ने सिखाई चुदाई की कला

मेरा नाम प्रत्युष है। मैं बंगाल का रहने वाला हूँ। आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जो सुनकर शायद आप कहें कि प्रत्युष तो सचमुच हरामी निकला! मैं अपनी माँ का इकलौता बेटा हूँ। मेरी एक बड़ी बहन है, दीपा, जो मुझसे चार साल बड़ी है, यानी वो 22 साल की है और मैं 18 का। जब मैंने अपनी जवानी के मजे लेना शुरू ही किया था, तभी मुझे पता चला कि मैं इनका अपना बेटा नहीं हूँ। मेरे फ्लैट-सोसाइटी वाले लोग मुझे इस बात पर ताने मारते थे। मम्मी-पापा अलग कमरे में सोते थे, और मैं और दीदी बगल वाले कमरे में।

दीदी मेरा बहुत ख्याल रखती थी। मैंने अभी-अभी मुठ मारना शुरू किया था। स्कूल के दोस्त कहते थे कि अगर किसी लड़की से मुठ मरवाई जाए तो मज़ा दोगुना हो जाता है। मैं सोचने लगा कि दीपा तो मेरी सगी बहन नहीं है, क्यों न उस पर ही कोशिश की जाए? ये ख्याल मेरे दिमाग में बार-बार आता था, और रात को नींद नहीं आती थी।

एक रात दीदी गहरी नींद में थी। उसकी साँसें इतनी शांत थीं कि वो歪नियाँ सुनाई दे रही थीं। वो हल्की-सी नायटी पहने सो रही थी, जो थोड़ी ऊपर खिसक गई थी। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मैंने धीरे से अपना लंड निकाला और उसका मुलायम-सा हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया। आह्ह! उसकी उंगलियाँ इतनी नरम थीं कि मज़ा आ गया। मैंने धीरे-धीरे उसकी हथेली में मुठ मार दी। सुबह उठकर देखा तो वो अपने हाथ धो रही थी।

“दीदी, क्या हुआ?” मैंने पूछा, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

“अरे, ये देख ना, सोते वक्त हाथ में कुछ चिपचिपा-सा लग गया। साबुन जैसा चिकना है!” उसने कहा।

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“कैसी खुशबू है?” मैंने मज़ाक में पूछा।

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उसने सूंघा और बोली, “अजीब-सी है, पता नहीं क्या है!” बेचारी को कुछ समझ नहीं आया। वो अभी तक कुँवारी थी, और मैं बेकार में मनीष पर शक करता था। मनीष की पास में किराने की दुकान थी।

एक दिन मैं स्कूल से जल्दी घर आ गया। दरवाजा खुला था। मैंने अंदर जाकर देखा तो मनीष दीदी को चोद रहा था। दीदी की गोरी-गोरी टाँगें हवा में फैली थीं, और मनीष की काली गाँड जोर-जोर से हिल रही थी। “आह्ह… आह्ह…” दीदी की सिसकियाँ कमरे में गूँज रही थीं। दीदी की नायटी कमर तक चढ़ी थी, और उसकी गोरी चूत साफ दिख रही थी। मनीष मुझे देखते ही भाग खड़ा हुआ।

“प्रत्युष! मम्मी को मत बताना, प्लीज!” दीदी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, “मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़ती हूँ!”

“मैं तो जरूर बताऊँगा, दीदी!” मैंने गुस्से में कहा।

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“ठीक है, बता दे! फिर मैं भी पापा को बता दूँगी कि तू रात को मेरे हाथ में मुठ मारता है, हरामी कहीं का!” दीदी ने तपाक से जवाब दिया।

मैं चुप हो गया। रात को नींद नहीं आ रही थी। दीदी मेरे बगल में सो रही थी। मेरा दिमाग गर्म था। मैंने धीरे से दीदी को पकड़ लिया।

“आह्ह! प्रत्युष, ये क्या कर रहा है?” दीदी ने चौंककर कहा।

मैंने उसकी नायटी में हाथ डाला और उसकी पैंटी को छुआ। “कैसी दीदी? मैं तो हरामी हूँ ना?” कहते हुए मैंने उसकी पैंटी नीचे खींच दी। उसकी गोरी जाँघें देखकर मेरा लंड और सख्त हो गया। “आज मैं वही करूँगा जो मनीष ने छोड़ दिया!”

“आह्ह… प्रत्युष, नहीं…” दीदी ने हल्के से विरोध किया, लेकिन उसकी आँखों में भी वही आग थी। उसने अपनी नायटी पूरी तरह उतार दी। उसके मम्मे, गोरे और टाइट, मेरे सामने थे। मैंने एक मम्मे को मुँह में लिया और चूसने लगा।

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“दूध नहीं निकलता क्या?” मैंने मज़ाक में कहा, मम्मे को दबाते हुए।

“हट, पागल!” दीदी ने हँसते हुए कहा। फिर उसने मेरा लंड पकड़ा और अपनी चूत पर रगड़ने लगी। “आह्ह… कितना सख्त है तेरा लंड, प्रत्युष!”

मैंने धीरे से लंड उसकी चूत में डाला। “आह्ह… दीदी… कितनी टाइट है!” मैं सिसकने लगा। उसकी चूत गीली थी, और मेरा लंड आसानी से अंदर-बाहर होने लगा। “आह्ह… ओह्ह… दीदी, मज़ा आ रहा है!”

“आह्ह… प्रत्युष… और जोर से!” दीदी ने सिसकारी भरी। उसकी जाँघें मेरी कमर से लिपट गईं। मैंने धक्के मारने शुरू किए। “चक-चक-चक” की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी। दीदी की सिसकियाँ तेज हो गईं, “आह्ह… ओह्ह… हाँ, ऐसे ही… और जोर से!”

मैं जल्दी स्खलित हो गया। “बस, दीदी… निकल गया…”

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“अरे, बस दो-चार बार में ही?” दीदी ने हँसते हुए कहा। “मनीष तो कम से कम पचास बार करता है! चल, मैं तुझे सिखाती हूँ!”

उसने मेरा लंड मुँह में लिया और चूसने लगी। “आह्ह… दीदी…” मैं सिसकने लगा। उसकी जीभ मेरे लंड के चारों ओर घूम रही थी। मेरा लंड फिर से सख्त हो गया। दीदी ने उसे अपनी चूत पर रखा और बोली, “अब धीरे-धीरे कर… जल्दबाज़ी मत कर!”

मैंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। “आह्ह… दीदी, ये तो जन्नत है!” मैंने कहा। दीदी की चूत गर्म और गीली थी। हर धक्के के साथ उसकी सिसकियाँ बढ़ती गईं, “आह्ह… ओह्ह… प्रत्युष, तू तो मनीष से भी बेहतर है!”

“बता, दीदी, 5 गुना 5 कितना होता है?” उसने अचानक पूछा।

“पच्चीस…” मैंने जवाब दिया, और इस बार स्खलन नहीं हुआ।

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“वाह, मेरे राजा! अब सीख गया!” दीदी ने हँसते हुए कहा। उसने अपनी टाँगें और ऊपर उठाईं, और मैंने और जोर से धक्के मारे। “चक-चक-चक” की आवाज़ तेज हो गई। “आह्ह… ओह्ह… हाँ, प्रत्युष… और तेज!”

मैंने उसकी चूत को बार-बार चोदा। हर धक्के के साथ उसकी सिसकियाँ बढ़ती गईं। “आह्ह… दीदी… तू कितनी सेक्सी है!” मैंने कहा, और उसकी चूत में फिर से स्खलित हो गया।

“ओह, प्रत्युष, कितना शरारती है तू!” दीदी ने हँसते हुए कहा। मैंने उसकी होंठों पर मुठ मार दी, और उसका चेहरा मेरे माल से गीला हो गया।

अगले दिन छुट्टी थी। हम दोनों साथ में नहाने गए। दीदी ने अपनी नायटी उतारी और मेरे सामने पूरी नंगी थी। “आह्ह… दीदी, तेरा बदन तो जन्नत है!” मैंने कहा। हमने एक-दूसरे को साबुन लगाया, और फिर से चुदाई शुरू हो गई। “आह्ह… ओह्ह…” दीदी की सिसकियाँ बाथरूम में गूँज रही थीं।

“प्रत्युष, तू तो अब मास्टर हो गया!” दीदी ने हँसते हुए कहा।

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