मेरे प्यारे भाइयों और बहनों को मेरा नमस्कार। ये कहानी मेरे दादाजी, जिनकी उम्र 72 साल है, और हमारे घर की नई नौकरानी डॉली के बीच की चुदाई मस्ती की है। ये बात तब शुरू हुई जब दादी के गुजरने के बाद दादाजी की चूत की भूख बेकाबू हो गई। वो तो जैसे पागल हो गए थे—माँ पर, पड़ोस की औरतों पर, हर किसी पर लाइन मारने की कोशिश की, लेकिन किसी ने उन्हें भाव तक न दिया। शायद उनकी ये जलन भगवान ने देख ली थी, क्योंकि तभी हमारे घर में एक ऐसी नौकरानी की, जिसने दादाजी की जिंदगी में फिर से आग लगा दी।
हमारे घर में पहले जो नौकरानी थी, उसकी तबीयत बार-बार खराब हो जाती थी। हर चार-पांच दिन में वो बीमार पड़ती, और आखिरकार उसने अपनी बहू को हमारे घर काम पर भेज दिया। उस नई नौकरानी का नाम था डॉली। उम्र करीब 28-30 साल, गोरी-चिट्टी, गदराया बदन, और वो चाल-ढाल कि कोई भी मर्द पागल हो जाए। जैसे ही डॉली हमारे घर आई, दादाजी की आँखों में चमक आ गई। मानो उनकी जवानी फिर से लौट आई हो।
हमारा घर का रूटीन ऐसा था कि माँ-पिताजी सुबह सात बजे तक काम पर निकल जाते। मैं कॉलेज के लिए साढ़े नौ बजे तक घर से निकलता। घर में सिर्फ दादाजी रहते, और यही वो वक्त था जब डॉली काम के लिए आती। दादाजी बड़े चाव से दरवाजा खोलते, और डॉली को अंदर बुलाते। मैंने कई बार देखा कि दादाजी उसकी कमर और गाँड़ को घूरते, और वो हल्की-सी मुस्कान देकर काम शुरू कर देती।
मुझे शक तो पहले से था कि दादाजी और डॉली के बीच कुछ चल रहा है, लेकिन पक्का पता तब चला जब एक दिन मैंने दादाजी को फोन किया। गलती से उन्होंने फोन कट नहीं किया, और मैंने उनकी और डॉली की सारी बातें सुन लीं। दादाजी उससे कह रहे थे, “डॉली, तू तो मेरी जान ले लेगी, तेरी ये गाँड़ देखकर मेरा लौड़ा तड़पता है।” और डॉली हँसते हुए बोली, “दादाजी, आप भी ना, इतनी उम्र में भी जवानी नहीं गई।” उनकी बातें सुनकर मेरा दिमाग हिल गया। ये तो साफ था कि वो दोनों घर में अकेले कोई नटखट मस्ती करते हैं।
मुझे ये जानना था कि आखिर ये दोनों क्या-क्या गुल खिलाते हैं। कॉलेज से छुट्टी लेना मुमकिन नहीं था, तो मैंने दूसरी तरकीब सोची। मेरे पास एक छोटा वीडियो कैमरा था, जो मैंने अपने कमरे में छिपा दिया। मैं कॉलेज जाते वक्त उसे चालू कर देता। पहले दो-तीन दिन तो कुछ खास नहीं दिखा। मैं और दादाजी एक ही कमरे में सोते थे, तो मैंने कैमरा वहाँ लगाया था, लेकिन शायद डॉली मेरे कमरे की सफाई ही नहीं करती थी। फिर मुझे ख्याल आया कि माँ-पिताजी अपना बेडरूम लॉक करके जाते हैं, तो अगर दादाजी और डॉली कुछ करते होंगे, तो हॉल में ही करते होंगे।
बस, अगले दिन मैंने कैमरा हॉल में एक कोने में छिपा दिया, जहाँ से सोफे और आसपास का पूरा नजारा रिकॉर्ड हो। सुबह कॉलेज जाते वक्त मैंने कैमरा ऑन किया और निकल गया। दोपहर को घर लौटा, तो सबसे पहले कैमरे की रिकॉर्डिंग चेक की। जो मैंने देखा, उसने मेरे होश उड़ा दिए।
सुबह करीब 9:45 बजे डॉली घर आई। दादाजी ने दरवाजा खोला और उसे अंदर बुलाया। डॉली सीधे हॉल के सोफे पर जाकर बैठ गई। उसने लाल रंग की सलवार-कमीज पहनी थी, जो उसके गदराए बदन पर चिपकी हुई थी। दादाजी बाथरूम गए और कुछ देर बाद वापस आए, हाथ में माँ की ब्रा और पैंटी लिए। वो ब्रा-पैंटी धोने के लिए रखी थी, लेकिन दादाजी ने उसे डॉली को थमा दिया। डॉली ने हँसते हुए कहा, “दादाजी, ये क्या, भाभी की ब्रा-पैंटी मुझे पहनने को दे रहे हो?” दादाजी बोले, “हाँ, तू इन्हें पहन, तेरा बदन और मस्त लगेगा।”
डॉली बिना शर्माए वहीं खड़ी हो गई और अपनी सलवार-कमीज उतारने लगी। उसकी पुरानी ब्रा और चड्डी इतनी घिसी हुई थी कि जगह-जगह छेद थे। उसने वो उतारी और माँ की काली लेस वाली ब्रा और पैंटी पहन ली। दादाजी ने अपना कुर्ता-पजामा उतार फेंका और नंगे सोफे पर बैठ गए। उनका मोटा, तना हुआ लौड़ा देखकर मेरी आँखें फटी रह गईं। वो उसे सहलाते हुए डॉली को घूर रहे थे, और बोले, “आजा मेरी जान, आज तो तुझे चोदकर ही दम लूँगा।”
डॉली हँसते हुए उनकी गोद में आकर बैठ गई। उसने अपनी गाँड़ को दादाजी के लौड़े पर रगड़ना शुरू किया, जैसे कोई झूले पर झूल रही हो। दादाजी ने उसकी कमर पकड़ी और उसे अपनी तरफ खींच लिया। वो डॉली के होंठों को चूमने लगे, और उनके हाथ उसकी गोल-मटोल चूचियों को जोर-जोर से दबाने लगे। डॉली की सिसकारियाँ निकल रही थी, “उफ्फ, दादाजी, धीरे दबाओ, दर्द होता है।” लेकिन दादाजी कहाँ मानने वाले थे। वो बोले, “तेरी ये चूचियाँ तो रसीली आम की तरह हैं, इन्हें तो मैं खा जाऊँगा।”
कुछ देर बाद डॉली नीचे बैठ गई और दादाजी के लौड़े को अपने मुँह में ले लिया। वो बड़े प्यार से उसे चूसने लगी, जैसे कोई लॉलीपॉप चूस रही हो। उसकी जीभ लौड़े की नोक पर घूम रही थी, और वो बीच-बीच में उनकी गोटियों को भी सहला रही थी। दादाजी ने उसके सिर को पकड़ लिया और अपना लौड़ा उसके मुँह में जोर-जोर से घुसाने लगे। डॉली का मुँह पूरा भरा हुआ था, लेकिन वो रुकी नहीं। दादाजी सिसकारते हुए बोले, “हाय, डॉली, तू तो जादू कर देती है, ऐसा चूस रही है जैसे मेरी जान निकाल देगी।”
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करीब दस मिनट तक डॉली ने उनका लौड़ा चूसा, फिर खड़ी हो गई। उसने दादाजी की तरफ अपनी गाँड़ की और झुक गई। दादाजी ने उसकी चूतड़ों को पकड़ लिया और उन्हें फैलाकर उसकी गाँड़ की छेद को चाटने लगे। उनकी जीभ उसकी गाँड़ के छेद में अंदर-बाहर हो रही थी, और डॉली उत्तेजना से काँप रही थी। वो बोली, “दादाजी, उफ्फ, ये क्या कर रहे हो, मेरी गाँड़ तो पिघल रही है।” दादाजी ने हँसते हुए कहा, “अभी तो शुरूआत है, मेरी रानी, आज तेरी गाँड़ और चूत दोनों की ठुकाई होगी।”
डॉली की कमर को कसकर पकड़कर दादाजी सोफे पर लेट गए और उसे अपने ऊपर चढ़ा लिया। उन्होंने उसकी पैंटी में हाथ डाला और उसकी गाँड़ को मसलने लगे। उनकी उँगलियाँ उसकी गाँड़ की दरार में फँस रही थीं, और वो उसे और फैलाने की कोशिश कर रहे थे। डॉली की सिसकारियाँ तेज हो गईं, “उह्ह, दादाजी, आप तो मेरी गाँड़ फाड़ दोगे।” दादाजी ने उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और उसे चूमते हुए बोले, “तेरी गाँड़ तो इतनी रसीली है, इसे तो मैं दिन-रात चाटूँ।”
कुछ देर बाद दादाजी ने उसकी पैंटी उतार फेंकी। डॉली की चिकनी, गोल गाँड़ देखकर मेरा लौड़ा भी तन गया, और मैंने उसे हिलाना शुरू कर दिया। दादाजी ने डॉली की गाँड़ में दो उँगलियाँ घुसा दीं और उन्हें अंदर-बाहर करने लगे। वो उसकी गाँड़ पर थप्पड़ मार रहे थे, जिससे डॉली की चीखें निकल रही थीं, “आह्ह, दादाजी, धीरे मारो, दर्द हो रहा है।” लेकिन दादाजी बोले, “चुप कर, रंडी, ये थप्पड़ तो तेरी गाँड़ को और मस्त कर रहे हैं।”
डॉली पलटकर दादाजी के लौड़े के पास मुँह करके लेट गई। वो फिर से उनका लौड़ा चूसने लगी, और दादाजी उसकी गाँड़ को फैलाकर उसकी चूत को चाटने लगे। उनकी जीभ उसकी झाँटों से भरी चूत में गहरे तक जा रही थी। वो उसकी चूत में थूक मारकर उसे और गीली कर रहे थे। डॉली उत्तेजना से चीख रही थी, “हाय, दादाजी, मेरी चूत को मत छोड़ो, इसे चाटते रहो।” दादाजी ने उसकी गाँड़ में फिर से उँगली घाएँसी, जिससे वो और जोर से सिस्कार कर दे।
फिर डॉली उठी और दादाजी के लौड़े पर बैठ गई। दादाजी ने अपने लौड़े की नोक को उसकी चूत के पास रखा और उसे धीरे से बिखाया। डॉली की गाँड़ को पकड़कर वो उसे अपने लौड़े पर उछालने लगे। डॉली की चूचियाँ हवा में उछल रही थीं, और वो सिस्कारते हुए बोली, “उफ्फ, दादाजी, आपका लौड़ा तो मेरी चूत को फाड़ रहा है।” दादाजी ने उसे और जोर से उछाला, और बोले, “ले, मेरी रानी, मेरे लौड़े का मजा ले, आज तेरी चूत की प्यास बुझा दूँगा।”
कुछ देर बाद दादाजी ने उसे अपने गले से लगाया और उसकी चुदाई और तेज कर दी। डॉली की गाँड़ उनके लौड़े पर पटक रही थी, और उसकी चीखें पूरे हॉल में गूँज रही थीं। मैं भी उत्तेजित होकर अपने लौड़े को तेजी से हिलाने लगा। दादाजी ने उसकी गाँड़ को मसला और थप्पड़ मारे, जिससे डॉली की चीखें और तेज हो गईं। वो उसके होंठों को चूसते हुए बोले, “तेरी चीखें सुनकर मेरा लौड़ा और तन रहा है, रंडी।”
घड़ी की तरफ देखते हुए दादाजी ने डॉली को अपने ऊपर से हटाया और सोफे के पास खड़े हो गए। उन्होंने डॉली को सोफे पर पीट के बल लेटाया, उसके पैर फैलाए, और अपने लौड़े को उसकी चूत के पास ले गए। उसकी चूत पर थूककर उन्होंने अपना लौड़ा अंदर घुसाया और जोर-जोर से ठोकने लगे। उनका पूरा वजन डॉली पर था, और वो उसकी चूत को रगड़ते हुए बोले, “तेरी चूत तो इतनी टाइट है, जैसे कोई कुंवारी लड़की की हो।” डॉली चिल्ला रही थी, “हाय, दादाजी, मेरी चूत फट जाएगी, धीरे चोदो। दादाजी ने उसकी चूचियों को पकड़कर मसलना शुरू किया और उसकी चुदाई और तेज कर दी।
लेकिन दादाजी की कमर में दर्द होने लगा, तो वो सोफे पर बैठ गए। उन्होंने डॉली को अपनी तरफ गाँड़ करके खड़ा किया और उसकी कमर पकड़कर उसे झुका लिया। फिर अपने लौड़े पर उसे उछालने लगे। डॉली अपने मुँह पर हाथ रखकर सिसक रही थी, और उसकी मोटी गाँड़ दादाजी के लौड़े पर थप-थप की आवाज कर रही थी। दादाजी ने उसकी गाँड़ पर थप्पड़ मारे और बोले, “हाँ, ऐसे ही पटक, मेरी रानी, तेरी गाँड़ का जवाब नहीं।”
डॉली की गाँड़ में दो उँगलियाँ घुसाकर दादाजी उसे और उत्तेजित करने लगे। वो उसकी चूत को रगड़ते हुए बोले, “तेरी गाँ की चूत, तू तो मेरा लौड़ा निचोड़ देगी।” मैं भी ये सब देखकर पागल हो रहा था, और मेरा लौड़ा हिलाते-हिलाते मेरे हाथ थक गए थे।
थोड़ी देर बाद दादाजी ने डॉली को अपनी जाँघों से पकड़कर फिर से अपने ऊपर बिताया। उन्होंने अपने लौड़े को उसकी चूत पर रगड़ा और उसे अंदर घुसाया। डॉली की चूत इतनी गीली थी कि लौड़ा आसानी से अंदर चला गया। दादाजी ने उसकी चूचियों को दबोच लिया और उसकी चुदाई तेज कर दी। डॉली चीखते हुए बोली, “दादाजी, मेरी चूत में आग लग गई, और जोर से चोदो।” दादाजी ने उसकी गाँड़ पर थप्पड़ मारा और बोले, “ले, रंडी, आज तेरी चूत का भोसड़ा बना दूँगा।”
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आखिरकार दादाजी खड़े हुए और अपना लौड़ा डॉली के मुँह में डाल दिया। डॉली ने उसे बड़े प्यार से चूसा, और उसकी जीभ लौड़े की नोक पर नाच रही थी। दादाजी सिस्कार कर रहे थे, “हाय, डॉली, तेरा मुँह तो जन्नत है।” कुछ देर बाद उनका माल निकल गया, और डॉली ने उनका सारा पानी पी लिया। वो खड़ी होकर दादाजी के होंठों को चूमने लगी, और दादाजी उसकी गाँड़ को सहलाते हुए बोले, “तू तो मेरी जान है, डॉली।”
दादाजी ने डॉली को उसके कपड़े पहनाए, और फिर दोनों बाथरूम चले गए। करीब आधा घंटा बाद डॉली बाहर निकली और घर से चली गई। दादाजी उसे दरवाजे तक छोड़ने गए, और जाते वक्त भी उनकी उंगलियाँ उसकी गाँड़ पर थीं। मैं ये सब देखकर सोच रहा था कि दादाजी की तो लॉटरी लग गई।